शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

स्वच्छ भारत के लिए सफाई का ‘सूरत माॅडल’ जरूरी



प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि चाहे जितने महात्मा गांधी और  नरेंद्र मोदी आ जाएं, जब तक व्यापक जन भागीदारी नहीं होगी ,देश में स्वच्छता नहीं लाई जा सकती।
  इस तरह प्रधान मंत्री ने यह स्वीकार किया कि उनका महत्वकांक्षी 
स्वच्छ भारत अभियान फिल्हाल  विफल रहा।
 पर इस संबंध में उम्मीद की किरण खुद गुजरात के सूरत से आती रही है।उसे खुद प्रधान मंत्री ने भी नजरअंदाज कर दिया है।
यदि उन्होंने पूरे देश में सफाई का ‘सूरत माॅडल’ लागू करवाने का प्रयास किया होता तो शायद उनका स्वच्छता अभियान इस तरह विफल नहीं होता।
 एक बात तो समझ ही लेनी चाहिए । पूरे देश में स्वच्छता अभियान की सफलता के लिए यह जरूरी है कि पहले नगरों और महा नगरांे की सफाई हो।बाद में अन्य स्थानों के लोग उससे सबक और प्रेरणा लेंगे।
  अन्यथा वह दिन दूर नहीं कि  नगरों-महा नगरों में महामारी फैल सकती है जैसा भारी गंदगी के कारण मई, 1995 में सूरत में फैला  था।
 तब वहां प्लेग से 52 लोगों की मृत्यु हो गयी थी।सूरत से लोगों का पलायन होने लगा था।
 पर इस स्थिति को बदलने मंे एक आई.ए.एस.अफसर, एस.आर.राव ने ऐतिहासिक काम किया था।
 थोड़े ही समय में उन्होंने सूरत को गुजरात का सर्वाधिक स्वच्छ नगर बना दिया।पूरे देश में भी तब से सूरत को नमूने के रूप में पेश किया जाने लगा ।
इस काम के लिए उस अफसर की इतनी तारीफ हुई कि लोगबाग उनका आॅटोग्राफ लेने लगे थे।
  श्री राव  सूरत के नगरपालिका आयुक्त थे।
राव ने सबसे पहले  अपने अधीनस्थ अफसरों को ए.सी.दफ्तरों से बाहर निकाल पर सड़कों पर खड़ा कर दिया।उन्हें उस काम में लगा दिया जिस काम के लिए उन्हें वेतन मिलता था।
 साथ ही उन्होंने बड़े -बड़े नेताओं और बिल्डरों की नाराजगी की परवाह किए बिना नगर से अतिक्रमण हटवा दिया।जो अमीर लोग अधिक गंदगी  फैलाते थे,उन पर सबसे पहले कार्रवाई हुई।
इसके अलावा भी उन्होंने कई कदम उठाए।
ऐसे कदमों के कारण न सिर्फ जनता वाहवाह कह उठी,बल्कि उसे अफसर को बाद में जन भागीदारी का भी पूरा लाभ मिला।  क्या प्रधान मंत्री जी राज्य सरकारों की मदद से देश के कम से कम एक दर्जन नगरों में ‘सूरत माॅडल’ नहीं दुहरा सकते हैं ? शुरूआत छोटे पैमाने पर ही  हो।बाकी बाद में करने लगेंगे।
 तमाम गिरावट के बावजूद अब भी इस देश में एस.आर.राव जैसे कुछ अफसर मिल जाएंगे ।पर शत्र्त है कि निहितस्वार्थियों के कोप से ऐसे अफसरों को  बचाना सरकार का काम है।
  यदि पटना, वाराणसी और दिल्ली जैसे महा नगरों को सफाई के मामले में ‘सूरत’ बना दिया गया तो छोटी जगहों के लोगबाग भी उसका अनुसरण करेंगे।
 लोगों से सफाई की अपील करने से  पहले सरकारों को चाहिए कि वे अपने महा पालिकाओं के अफसरों और कर्मचारियों को टाइट करें।जरूरत के अनुसार उनकी संख्या बढ़ाएं।
आप देश के नगर और महा पालिकाओं के अधिकतर अफसरों 
को जनता के पैसे लूटने की छूट दिए रहेंगे और जनता से कहेंगे कि वह सफाई करे तो यह तो जनता के प्रति अन्याय है।
 भगवान भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करता है।पहल तो शासन को ही करनी होगी।
  अतिक्रमणकारियों का अमानवीय रवैया
पूरे बिहार के शहरी क्षेत्रों में मुख्य सड़कों पर भी अतिक्रमणकारियों का ही राज चलता है।उन्हें पुलिस और नगर निकायों के भ्रष्ट अफसरों से  पूरा सहयोग मिलता है।
‘गरीबों की रोजी -रोटी’ के बहाने सरकार भी उन पर कभी कड़ाई नहीं करती। वैकल्पिक व्यवस्था का आश्वासन भी पूरा नहीं किया जाता।बेचारी अदालत भी लाचार नजर आती है।
 स्मार्ट सिटी के शोर के बीच दरअसल अतिक्रमणकारियों ने न सिर्फ नगरों की सूरत बिगाड़ कर रख दी  है बल्कि वाहन चालकों के लिए  तो रोज ही ‘मरण’ का दिन होता है।
  भारी अतिक्रमणों से  लगातार हो रहे जाम के कारण कई बार न तो गंभीर मरीज समय पर अस्पताल जा पाते हैं और न छात्र-शिक्षक स्कूल -कालेज।
 सरकारी कमियों के लिए भी यह एक अच्छा -खासा बहाना मिल गया है।लेट पहुंचने पर वे अपने नियंत्रक पदाधिकारी  से आसानी कह देते  हैं कि ‘क्या करें सर, जाम में फंस गए थे।’ सड़कों की हालत देखकर अफसरों को भी उनकी बात मान लेनी पड़ती है।
जब अतिक्रमणकारी शासन से  लड़कर भी अपनी जगह पर बने रहते हैं तो अन्य कानून तोड़कों का भी मनोबल बढ़ता है।इस तरह शासन का दबदबा  कम होता है।इसका असर आम कानून-व्यवस्था पर भी पड़ता है। 
 इतनी बड़ी कीमत चुका कर सरकार अतिक्रमणकारियों के प्रति नरम बनी हुई है।ऐसा करके वह गरीबों की रोजी- रोटी की रक्षा कर रही है।अरे भई, उनके लिए कोई अन्य वैकल्पिक उपाय भी ढंूढ़े जा सकते हैं।यदि आपने शहर बसाया है तो क्या उस पर सिर्फ अतिक्रमणकारियों का ही राज चलेगा ? अन्य आम बांशिंदे कब तक कष्ट झेलते रहेंगे ?
     संघ प्रमुख का समयोचित आह्वान
  आर.एस.एस.प्रमुख मोहन भागवत ने आरा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय  धर्म सम्मेलन के मंच से एक अच्छी बात कही है।उन्होंने आह्वान किया है कि  लोगों को उंच-नीच की भावना से उपर उठकर जाति विहीन भारत का निर्माण करना चाहिए।
   संघ प्रमुख के इस आह्वान को कार्य रूप देने की दिशा में खुद संघ कई तरह से महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
 दरअसल संघ के कुछ प्रमुख नेता समय-समय पर पिछड़ों के लिए सरकारी नौकरियों में दिए गए जारी आरक्षण को लेकर तरह-तरह के बयान देते रहते हैं।हालांकि संघ दावा करता  है कि वह आरक्षण के खिलाफ नहीं है।वह उसमें सुधार चाहता है।
पर ऐसे बयानों से आरक्षण के दायरे में आने वाले समूहों को यह नाहक आशंका होने लगती है कि संघ आरक्षण पर ही पुनर्विचार के पक्ष में है।पिछड़ों -दलितों के लिए आरक्षण का प्रावधान भी जातीय भेदभाव कम करने की दिशा में एक छोटा सा कदम ही है।यह एक संवैधानिक प्रावधान है जिस पर 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगा दी है।
  इसलिए संघ यदि अपने परिवार के राजनीतिक संगठन  भाजपा को उलझन में नहीं डालना चाहता है तो उसके बड़े नेताओं को चाहिए कि वे आरक्षण पर कोई विचार व्यक्त करने से खुद को अलग ही रखें।   
       एक भूली बिसरी याद
  दिल्ली के एडिशनल चीफ मेट्रोपाॅलिटन मजिस्ट्रेट आर.दयाल ने 4 अक्तूबर 1977 को आरोपों को अपर्याप्त बताते हुए इंदिरा गांधी को तुरंत रिहा करने का आदेश दे दिया।उन्हें एक दिन पहले सी.बी.आई.ने गिरफ्तार किया था।
इस रिहाई पर तत्कालीन कें्रदीय गृह मंत्री चरण सिंह ने कहा था कि 
‘जिन आरोपों के तहत उन्हें गिरफ्तार किया गया था,वे गंभीर हैं।जांच के बाद कुछ और सबूत मिलेंगे।’
जय प्रकाश नारायण ने इस गिरफ्तारी पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया था।उन दिनों खबर थी कि इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी को लेकर मोरारजी सरकार के मंत्रियों के बीच मतभेद था।पर गृह मंत्री जल्दबाजी में थे।जल्दीबाजी में सी.बी.आई. ने आधे मन से केस तैयार किया था।
पर गिरफ्तारी और रिहाई का राजनीतिक असर पड़ा।सत्ता में वापसी की इंदिरा गांधी की राह कुछ आसान हो गयी।बाद की कुछ अन्य राजनीतिक घटनाओं ने तो 1980 में इंदिरा गांधी को एक बार फिर सत्ता में पहुंचा ही दिया।  
   और अंत में
 केंद्र सरकार उन मुखबिरों को 15 लाख से एक करोड़ रुपए तक का इनाम देने की तैयारी में है जो उसे बेनामी संपत्ति रखने वालों के खिलाफ खुफिया जानकारी देंगे।
  यह एक सराहनीय पहल है।पर इसमें थोड़ा संशोधन की जरूरत है।
एक करोड़ रुपए की अधिकत्तम सीमा  के बदले उद्घाटित बेनामी संपत्ति की कुल कीमत  का एक खास प्रतिशत खुफिया जानकारी देने वालों को मिलना चाहिए।तब यह पहल अधिक कारगर होगी।
@प्रभात खबर-- बिहार-- में 6 अक्तूबर 2017 को प्रकाशित मेेरे कानोंकान काॅलम से@ 






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