बिहार के एक गालीबाज नेता का शुक्र
गुजार हूं जिसके कारण मैं अब टी.वी.
चैनल के लाइव डिबेट में शामिल नहीं होता।
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शुक्रगुजार इसलिए हूं क्योंकि उससे मेरा
समय बचता है। उस समय में मैं कुछ अन्य
उपयोगी काम कर पाता हूं।
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सुरेंद्र किशोर
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कुछ लोग कई बार मुझसे पूछते हैं कि आप टी.वी.
चैनलों के डिबेट्स में क्यों नहीं जाते ?
क्या चैनल वाले आपको नहीं पूछते ?
मैं उनसे कहता हंू कि चैनल वाले मुझ पर बहुत
मेहरबान हैं।वे अक्सर पूछते रहते हैं।डिबेट में
शामिल होने का आग्रह करते हैं।पर,मैं उनसे
कह देता हूं कि मेरे पास समय नहीं है।
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पर,असली कारण कुछ और है।
कई साल पहले की बात है।एक चैनल के लाइव
डिबेट में मैं शामिल हुआ था।
राजनीतिक चर्चा के दौरान बिहार के एक गाली बाज
नेता ने मेरे खिलाफ ऐसी सड़क-छाप अशिष्ट टिप्पणी
कर दी कि उसके बाद ही मैंने तय कर लिया कि मैं किसी डिबेट में शामिल
नहीं होऊंगा।
दरअसल मेरे परिवार का एक सदस्य वह डिबेट देख रहा था।उसने मुझसे कहा कि आपके खिलाफ बोला तो हमें बहुत अपमान महसूस हुआ।जब आपकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है या किसी दल में आप नहीं हैं,कोई मजबूरी नहीं है तो क्यों अपनी और परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लगाने के लिए टी.वी.डिबेट में शामिल होते हैं ?
उसके बाद तो यह निश्चय करना ही था।
अब आप ही अनुमान लगाइए कि उस निश्चय से मुझे कितना लाभ हुआ होगा।दूसरे काम के लिए मेरा समय कितना बचता है।इसलिए मैं उस गालीबाज नेता का बहुत-बहुत शुक्रगुजार हूं।
उस नेता का नाम नहीं बताऊंगा अन्यथा वह मेरे घर में घुस कर भी मुझे अपमानित करने की ताकत रखता है।
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लगे हाथ राष्ट्रीय चैनलों पर इन दिनों हो रहे डिबेट्स पर जरा ध्यान दीजिए।
आए दिन गाली-गलौज-,मारपीट की नौबत आ जाती है।
जो गेस्ट लोग उस जंगली व्यवहार में शामिल होते हैं,उन्हें शामिल होने की कोई मजबूरी होगी।या फिर उनके बाल-बच्चे उनसे यह नहीं कहते होंगे कि पापा,आपको जब टी.वी.डिबेट के दौरान कोई गाली देता है,अपमानित करता है या
मारने दौड़ता है तो हमें बहुुत अपमान महसूस होता है।
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और अंत में
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लगता है कि अधिकतर टी.वी.चैनल वाले कई गाली बाज, असभ्य और अप्रासंगिक बातें करने के लिए कुख्यात गेस्ट को जानबूझ कर बुलाते हैं ताकि दर्शकों -श्रोताओं का मनोरंजन हो सके।चैनल की दर्शक-संख्या बढ़े।
पर,वे यह नहीं महसूस करते कि ऐसे अशिष्ट डिबेट्स से नई पीढ़ियों के मानस पर प्रतिकूल असर पड़ता है, ठीक उसी तरह जिस तरह अनेक सांसदों के सदन में लगातार असंसदीय व्यवहार से आम लोगों की राजनीति के प्रति घृणा बढ़ती जाती है।
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6 अप्रैल 25
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