सोमवार, 20 मई 2024

 ईष्र्या और कुंठा !!

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कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता,

कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता !

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निदा फाजली ने इस गीत के जरिए बेचैन लोगों को तसल्ली देने की अच्छी कोशिश की है।

 एक हद तक वे इस काम में सफल भी रहे।

फिर भी राजनीति सहित ऐसे विभिन्न क्षेत्रों के अनेक लोग कुछ खास न पाने या दूसरों की अपेक्षा कम पाने के गम में कंुठित और ईष्र्यालु हुए जा रहे हैं।

खुद नहीं मिला तो कुंठा,दूसरे को मिल गया तो ईष्र्या !

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मैंने पिछले दशकों में विभिन्न क्षेत्रों के अनेक लोगों, खास कर राजनीतिक क्षेत्र के अनेक कंुठित और ईष्र्यालु लोगांे को समय से पहले परलोक सिधारते देखा है।

अरे भाई ,ऊपर के बदले जरा नीचे देखो।

और फिर ‘अमृत’ फिल्म के एक मशहूर गाने के इस मुखरे को ही गुनगुना लो--

‘‘दुनिया में कितना गम है,मेरा गम कितना कम है !.....’’

इससे थोड़ी तसल्ली मिलेगी।

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वैसे विभिन्न क्षेत्रों के ईष्यालुओं और कंुंिठत जन के लिए बड़े पेशेवर चिकित्सकों को भी कुछ सलाह जरूर देनी चाहिए।

ये अलग तरह की बीमारियां हैं।

 कंुठित और ईष्यार्लु होने के बाद , पहले से शरीर में पल रहे किस रोग में बढ़ोत्तरी हो जाती है ? 

कौन सा नया रोग शरीर में घर कर जाता है ?

आदि आदि।

ये सवाल तो हैं।

ईष्र्या-कंुठा से मुक्ति के लिए अलग से किसी टबलेट का इजाद हुआ है क्या ं?

यदि नहीं तो अब होना ही चाहिए।

क्योंकि इस रोग के बढ़ने के संकेत हैं।

 वैसी -वैसी हस्तियां भी इस मर्ज की शिकार हो रही हैं जिनके बारे में पहले सोचा तक नहीं गया था। 

नहीं हो तो कोरोना वैक्सीन की तरह युद्ध स्तर पर इजाद क्यों नहीं हो सकता ?

4 जून के बाद उसकी जरूरत बढ़ जाएगी।

कोरोना  वैक्सीन के साइड इफेक्ट की चर्चा इन दिनों है।

पर,सवाल है कि साइड इफेक्ट किस एलोपैथिक दवा में नहीं होता ?

उसमें भी होगा।

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ईष्र्या-कंुठा-जलन नामक त्रिदोष यदि बुजुंर्ग में है तो उनके बाल -बच्चे उन्हंे जरूर समझाएं।

कहें कि ऐसे मर्ज को दिल से न लगाओ।गंभीर बात है।लाइलाज है।

इससे आपकी आयु कम हो जाएगी तो हमें बड़ी तकलीफ होगी।

वैसे भी ईष्र्या-कुंठा-जलन से तो कोई भौतिक लाभ होता नहीं।

अच्छे-खासे  व्यक्तित्व में भी ओछापन जरूर आ जाता है।अपना अच्छा-खासा स्वास्थ्य गला लेते हैं सो अलग।

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17 मई 24 

  


रविवार, 19 मई 2024

 किसी बड़ी लकीर के पास ही 

उससे भी बड़ी लकीर खींच देना

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सुरेंद्र किशोर

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मेरे छात्र जीवन में मेरे पिता अक्सर एक बात मुझसे कहा करते थे--

 ‘‘यदि तुम कहीं कोई बड़ी लकीर देखों तो उसे छोटा करने की कोशिश मत करो।

 उसके पास में अपनी बड़ी लकीर खींच दो।

वह अपने-आप छोटी हो जाएगी।’’

यानी, किसी की आलोचना करके या उसे नीचा दिखाकर उसे खुद से छोटा साबित करने की कोशिश मत करो।

  उसका कोई लाभ नहीं होगा।

बल्कि खुद अपने प्रयासों ,मेहनत और सत्कर्मों के जरिए उससे भी बड़ा बनने की कोशिश करो।

उनके अनुसार, यह कोई कठिन काम नहीं है।तुम जरूर सफल होगे। 

  परम्परागत विवेक से लैस पिता की यह बात मैंने याद रखी।

मुझे उसका लाभ भी हुआ।

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जब आप किसी की उचित-अनुचित व्यक्तिगत आलोचना या निन्दा करते हैं तो सामने वाला फिलहाल तो आपकी बातों में बड़ा रस लेता है।

पर, कई दफा खुद वह उसे अच्छा नहीं मानता।

कई बार तो आपकी निन्दापूर्ण टिप्पणियों को उस व्यक्ति तक पहुंचा देता जिसकी आप निन्दा कर रहे होते हैं।

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15 मई 24


मंगलवार, 14 मई 2024

 सन 2022 में देश में 14.61 लाख कैंसर पीड़ित 

तो सन 2023 में 14.96 लाख इसके मरीज

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जल्द सरकारों ने कार्रवाई नहीं की तो 

कैंसर महामारी का रूप ग्रहण कर लेगा

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सुरेंद्र किशोर

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अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़ दें तो आज लगभग हर खाद्य-भोज्य पदार्थ मिलावट से ग्रस्त है।

 रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं आदि के कारण  भी कैंसर के मरीज बढ़ रहे।

 बिहार विधान परिषद की विशेष जांच समिति ने राज्य के खादय व पेय पदार्थों में मिलावट की शिकायतों की जांच की थी।

  समिति ने राज्य के दौरे के बाद 84 पेज की रपट तैयार की। रपट 3 अप्रैल, 2002 कोे विधान परिषद को पेश की गई। रपट में कहा गया कि पूरा बिहार मिलावटी कारोबारियों की दया पर निर्भर हो गया है।(शासन में भ्रष्टाचार में इस बीच काफी बढ़ोत्तरी के साथ ही यह समस्या आज और भी गंभीर हो चुकी है।)

 बिहार में हर साल कैंसर के करीब सवा लाख नये मरीज सामने आते हैं।

कई सामने नहीं आ पाते हैं।

ऐसे मरीजों की संख्या के मामले में देश में बिहार का चैथा स्थान है।

बिहार सरकार के खाद्य निरीक्षक जगह जगह तैनात हैं।

उनका कत्र्तव्य है कि हर दुकान से कम से कम हर तीन महीने में एक बार संदेहास्पद पदार्थ का नमूना उठाना। जांच के लिए प्रयोगशाला में भेजना है।

जांच रपट के आधार पर कार्रवाई की सिफारिश करनी है।

ऐसा होता है ?

सिर्फ भगवान जानता है।

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कुछ दशक पहले तक जब विधान सभा-परिषद में आज जैसा हंगामा नहीं होता था तो सदस्य सवाल पूछते थे कि कितने नमूने उठाये गये ?

कितनों की जांच हुई ?

क्या रिपोर्ट आई ?

क्या कार्रवाई हुई ?

पर आज ?????

थोड़ा कहना बहुत समझना।

लोग कैंसर से मरते रहें, भला कौन परवाह करता हैं !

हां,जब अपने परिवार को कोई सदस्य कैंसर से मरता है तो थोडे़ समय के लिए चिंता होती है।

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इस देश के अनेक लोग मुनाफाखोर मिलावटखोरों और घूसखोर प्रशासन के बीच कराह रहे हैं, तिल -तिल कर मर रहे हंै।

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3 अप्रैल, 2002 कोे विधान परिषद में जो रपट पेश की गई उसमें कहा गया कि प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पटना में परोसे जाने वाले मिनरल वाटर की गुणवत्ता संदेहास्पद थी।

  2010 में कानपुर से खबर आई कि प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को परोसे जाने वाले भोज्य पदार्थ भी घटिया किस्म के थे।

   दरअसल इस देश के प्रधान मंत्री के साथ यह सुविधा है कि उनके पेय व खादय  पदार्थों की एस.पी.जी. के लोग पहले ही जांच कर लेते हैं।

पर सवाल है कि आम लोगों को उनके हाल पर क्यों छोड़ दिया जाता है ?क्या मिलावट के सौदागरों के सामने विभिन्न  सरकारों ने घुटने टेक रखे हैं ? 

  विधान परिषद समिति की रपट में यह भी कहा गया था यहां तक कि बिहार विधान सभा का कैंटीन भी अपमिश्रण के मामले में अछूता नहीं रहा।

पटना की कई प्रतिष्ठित किराना दुकानों को भी समिति ने अपमिश्रण के मामले में अपवाद नहीं माना था।

उस समिति ने तो तब सिफारिश की थी कि खादय अपमिश्रण से संबंधित अधिनियम व नियमावली की देश,काल और परिस्थिति के अनुसार समीक्षा की जाए।अपमिश्रण निवारण हेतु राज्य मुख्यालय में पूर्ण रूप से आवश्यकता के अनुसार सहायकों को पदस्थापित किया जाए।मुख्यालय स्तर से छापेमारी के द्वारा नमूनों के संग्रह के लिए गाड़ियों तथा पर्याप्त राशि व सुरक्षा का प्रबंध किया जाए।लोक विश्लेषक व खादय निरीक्षक के पदों को भरने की व्यवस्था की जाए।

  समिति की इन सिफारिशों का भी कोई असर राज्य सरकार पर नहीं पड़ा। आम आदमी मिलावट के धीमे जहर से तिल -तिल कर मर रहा है।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर पीठ ने सन 2011 में ही कहा था कि मिलावट खारों के  खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का इस्तेमाल किया जा सकता है।समय- समय पर इस देश की विभिन्न अदालतों ने भी कड़ी कार्रवाई की जरुरत बताई।

पर एन एस ए की बात कौन कहे,सामान्य कानूनों को लागू करने में भी प्रशासनिक मशीनरी विफल रही है।कारण आपद -मस्तक भ्रष्टाचार है।

इन्हीं सब बातों को देखते हुए मैं कई बार लिख चुका हूं कि भ्रष्टाचार के लिए इस देश में भी फांसी की सजा का प्रावधान हो।

अन्यथा, बहुमूल्य जानें जाती रहेंगी।

अपवादों को छोड़ दंे तो देश के अधिकतर फूड इंस्पेक्टर व औषधि निरीक्षक 

नमूनों के बदले कुछ दूसरी ही चीजें ग्रहण करने के लिए  दुकानों पर जाते हैं।

वैसे भी फूड इंस्पेक्टर व औषधि निरीक्षकों की संख्या इतनी नहीं है कि नियमतः वे तीन महीने के अंतराल पर  हर दुकान से नमूने ले सकें।कहीं किसी इंस्पेक्टर ने नमूने लेने की गुश्ताखी की भी तो उसे दुकानदारों ने मार कर भगा दिया।उसे पुलिस संरक्षण नहीं मिलता।उसके भी कारण हैं।

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मिलावट के कुछ नमूने

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इंडिया टूडे हिंदी-15 जून, 1989 के अनुसार,

1.-बिक्रेता गण सब्जियों की ताजगी बरकरार रखने अथवा उनके परिरक्षण के लिए उन्हें कीटनाशकों में डूबोते हैं।

तेलों और मिठाइयों में वर्जित पदार्थों की मिलावट की जाती है।

2.-सब्जियों और दूसरे खाद्य पदार्थ को धोना फायदेमंद है।लेकिन पकाने से विषैले अवशेष बिरले ही खत्म होते हैं।निगले जाने के बाद छोटी आंत कीटनाशकों को सोख लेती हैं।

3.-शरीर भर में फैले बसायुक्त उत्तक इन कीटनाशकों को जमा कर लेते हैं।इनसे दिल,दिमाग,गुर्दे और जिगर सरीखे अहम अंगों को नुकसान पहुंच सकता है।

(आज तो हालात और भी बिगड़ चुके हैं।

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वाजपेयी के शासन काल में  भारत की संसद में सरकार से पूछा गया था कि क्यों अमेरिका की अपेक्षा हमारे देश में तैयार हो रहे कोल्ड ड्रिंक में 

रासायनिक कीटनाशक दवाओं का प्रतिशत अधिक है ?

मंत्री सुषमा स्वराज का जवाब था-‘‘ यहां कुछ अधिक की अनुमति है।’’

क्या अब नरेंद्र मोदी सरकार भी इस बात से सहमत है ?

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  एक ताजा खबर के अनुसार, इस देश में बिक रहे 85  प्रतिशत दूध मिलावटी है।जितने दूध का उत्पादन नहीं है,उससे अधिक की आपूत्र्ति हो रही है।  

सवाल है कि इस देश में अन्य कौन सा खाद्य व भोज्य पदार्थ शुद्ध है ?

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  तथाकथित हरित क्रांति के साथ ही जिसे जहर क्रांति कहा जा सकता है,हमारी सरकारों ने साठ के दशक से ही रासायनिक खाद-रासायनिक कीटनाशक दवाओं के साथ खेतों में जहर डलवाना शुरू कर दिया था।

नतीजतन मिट्टी जहरीली होने लगी है।उपज में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ने लगी।

ऐसे में कैंसर नहीं बढ़ेगा तो क्या होगा ?

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और अंत में

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जैविक उत्पादों का इस्तेमाल कीजिए।

महंगा पड़ेगा।

पर कैंसर के इलाज का खर्च कौन सा सस्ता है !

इतना ही नहीं, कैंसर पीड़ित मरीज जब अपने अंतिम समय में कैंसर की अपार पीड़ा(दर्दनाशक दवा का अभी इजाद नहीं हुआ है।)झेलने लगता है तो पास खड़े लाचार परिजन भी रोने लगते हैं।अपने तथा अपने परिवार के प्राण बचाइए।क्योंकि इस देश-प्रदेश का महा भ्रष्ट सरकारी अमला अपने अपार लोभ का संवरण कब करेगा ,यह कहना कठिन है।

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14 मई 24






सोमवार, 13 मई 2024

 


 दूर की कौड़ी

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कुछ खास लोगों के परिजन अपने खास 

के लिए 4 जून से पहले ही कुछ खास 

तरह के अस्पतालों में सीटें रिजर्व करा लें

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सुरेंद्र किशोर

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 ज्ञानपीठ पुरस्कृत कन्नड लेखक यू.आर. अनन्तमूर्ति ने 

19 सितंबर. 2013 को कहा था कि 

‘‘यदि नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बन जाएंगे तो मैं इस देश में नहीं रहूंगा।’’

   26 मई 2014 को मोदी प्रधान मंत्री बन गये।

इसके बावजूद अनन्तमूर्ति जी ने देश नहीं छोड़ा ।

उन्होंने अपना विचार बदल लिया।

पर, मोदी के पी.एम.बनने के तीन ही महीने बाद अनन्तमूर्ति जी का निधन हो गया।

पर,इस बीच इस देश में ‘‘अनन्तमूर्तियों’’ की संख्या बढ़ गयी है।

 विभिन्न क्षेत्रों के आज के अनन्तमूर्तियों के समक्ष 4 जून के बाद और भी अधिक कठिनाइयां उपस्थित होने वाली हैं।

सन 2014 में सत्ता में आने के बाद कई हलकों में यह उम्मीद भी की भी जाती थी कि मोदी अगली बार शायद सत्ता से हट सकता है।

पर तीसरी बार सत्ता में आ जाने के बाद फिलहाल उस उम्मीद की गुंजाइश काफी कम हो जाएगी।

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4 जून 2024 को लोक सभा चुनाव के नतीजे आ जाएंगे।

राजनीति के मौसमी पक्षियों ने हमें पहले ही संकेत दे दिया है कि चुनावी हवा का रुख किधर है।

आपने जरूर ध्यान दिया होगा कि पिछले कुछ महीनों में किस खास दल की ओर अन्य दलों से सबसे 

अधिक महत्वपूर्ण दल बदल हुए हंै। 

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संकेत मिल रहे हैं कि 4 जून और 5 जून 24 को कई जगह ‘‘सीटों’’ की भारी कमी महसूस की जा सकती है।

संभव है कि मेरा यह पूर्व अनुमान गलत निकले।यदि गलत निकलेगा तो मुझे भी खुशी होगी।

पर,संकेत तो गड़बड़ मिल रहे हैं।

आज के अनन्तमूर्तियों के बोल वचन भी ठोस संकेत दे रहे हैं।

जहां -जहां कमी हो सकती है ,उनके नाम हैं--

1.-अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में

2.-इस देश के सामान्य अस्पतालों में

3.-इस देश के वैसे अस्पतालों में जिसकी हृदय रोग 

 की विशेज्ञता है।

4.-मानसिक आरोग्यशालाओं में तो भारी कमी हो सकती है।

क्योंकि पहले से ही वहां जगह की तंगी है।  

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13 मई 24



 जब पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने 1980 के लोक 

सभा चुनाव के लिए जयगुरुदेव से आशीर्वाद मांगा था

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सुरेंद्र किशोर

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सन 1979 के नवंबर में मथुरा के धार्मिक गुरु जयगुरुदेव से मिलकर पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी भूलों के लिए माफी मांगी।

जानकार सूत्रों के अनुसार लगभग गिड़गिड़ाते हुए लोक सभा के चुनाव (1980)के लिए आशीर्वाद की याचना की।

चर्चित साप्ताहिक ‘रविवार’ (9 दिसंबर 1979)की खबर के अनुसार इंदिरा गांधी ने गुरुदेव से कहा कि मुझे आप पर इमर्जेंसी में हुए अत्याचारों की कोई जानकारी नहीं थी।

  नवंबर की मुलाकात के बारे में पत्रकारों ने जब 4 दिसंबर 1979 को लखनऊ में इंदिरा गांधी से पूछा तो पूर्व प्रधान मंत्री ने कहा कि मैंने जयगुरुदेव से कोई राजनीतिक चर्चा नहीं की।मुझे किसी के आशीर्वाद की जरूरत नहीं।हालांकि यह  माना कि मुलाकात हुई थी।दूसरी ओर जयगुरुदेव के शिष्यों ने दोनों (जयगुरुदेव और इंदिरा गांधी )के बीच की बातचीत की टेप रिकाॅंडिंग कर ली थी।

  उससे पहले कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने इंदिरा के लिए जयगुरुदेव से मिलने का समय मांगा था।

  याद रहे कि आपातकाल में जयगुरुदेव को गिरफ्तार करके उन्हें बेड़ी-हथकड़ी लगाई गयी।यह भी आरोप लगा कि बाबा की भक्त सत्संगियों को नंगा करके अपमानित किया गया था।

इसकी चर्चा करने पर इंदिरा गांधी ने जयगुरुदेव से कहा कि (तब के यू.पी.के मुख्य मंत्री )बहुगुणा को यह सब देखना चाहिए था कि न हो। ं 

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 जयगुरुदेव के दुनिया भर में करोड़ों भक्त रहे हैं।

जय गुरुदेव का निधन सन 2012 में हो गया।

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सन 1980 के लोक सभा चुनाव से ठीक पहले अन्य अनेक बड़े नेताओं ने भी उनके आश्रम में जाकर जयगुरुदेव से मुलाकात की और अपने अपने दल के लिए समर्थन मांगा था।

उधर दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम अब्दुला बुखारी से भी चुनाव को लेकर तब इंदिरा गांधी की बातचीत की खबरें आई थीं।

याद रहे कि शाही इमाम ने 1977 के लोक सभा चुनाव में जनता पार्टी का समर्थन किया था।क्योंकि मुसलमान आपात काल में चले परिवार नियोजन कार्यक्रम को लेकर नाराज थे। 

दिल्ली के तुर्कमान गेट पर भी पुलिस ने कार्रवाई की थी।

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13 मई 24


 


 


जो नेता गण हाल के वर्षों में यह आरोप लगाते रहे हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में अघोषित इमर्जेंसी लगा रखी है,वे असली इमर्जेंसी की एक असली कहानी को यहां पढ़ लें।

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सुरेंद्र किशोर

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यह कहानी साप्ताहिक ‘रविवार’ (9 दिसंबर 1979)में छप चुकी है।

कहानी यानी आत्मदाह से ठीक पहले तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के नाम प्रभाकर शर्मा की मार्मिक चिट्ठी में वर्णित  कहानी।

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याद रहे कि शर्मा ने उस पत्र की प्रति ‘सरकारी संत’ विनोबा भावे को भी भेजी थी।

पर विनोबा ने उस पत्र की किसी से चर्चा तक नहीं की।

सरकारी भय का ऐसा ही आतंक था।

याद रहे कि इमर्जेंसी में विनोबा की पत्रिका ‘‘मैत्री’’ को भी महाराष्ट्र पुलिस ने जब्त कर लिया था।विनोबा उसके संपादक थे।

जबकि अभूतपूर्व दमनकारी आपातकाल के समर्थन में विनोबा ने आपातकाल को सार्वजनिक रूप से ‘‘अनुशासन पर्व’’ बता दिया था।

याद रहे कि केंद्र सरकार ने आपातकाल में आम लोगों के जीने तक का अधिकार छीन लिया था।

देश के विभिन्न जेलों में कैद हजारों छोटे-बड़े प्रतिपक्षी नेताओं व पत्रकारों को अदालत जाने की अनुमति नहीं थी।

केंद्र सरकार के इस कदम को भयभीत सुप्रीम कोर्ट का भी पूरा समर्थन मिल गया था।

आपातकाल (1975-77)की क्रूरता के खिलाफ प्रभाकर शर्मा ने  आत्म दाह करने से ठीक पहले प्रधान मंत्री    

इंदिरा गांधी को पत्र लिखा-

‘‘इंदिरा जी,मैं आपके पापी राज्य में (जिन्दा)नहीं रहना चाहता।’’

महात्मा गांधी के आह्वान पर प्रभाकर शर्मा ग्राम सेवा क्षेत्र में कूदे थे।

शर्मा ने यह भी लिखा था--‘‘क्या आपका मीसा (दमनकारी कानून)ईश्वर पर भी लागू होगा ?

आपके पापी शरीर के छूटने पर आपके पिट्ठू और रक्षक साथ नहीं जाएंगे।

अतःअच्छा तो यही है कि आप प्रायश्चितपूर्वक हृदय से भारतीय जनता से अपने अक्षम्य अपराधों के लिए क्षमा मांगें।’’ 

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याद रहे कि आपातकाल की जन विरोधी क्रूरता और सत्ताधारियों के नग्न 

नाच से संतप्तं होकर प्रभाकर शर्मा ने 

14 अक्तूबर 1976 को महाराष्ट्र के वर्धा के निकट सुरगांव में अपने शरीर पर तेल छिड़क कर आत्म दाह कर लिया था।

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8 मई 24



 डी.जे.का भारी शोर बच्चों और 

बूढ़ों के लिए नुकसानदेह 

पड़ोसियों को भी कष्ट

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धीमी आवाज में मधुर संगीत बेहतर

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सुरेंद्र किशोर

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वैसे तो मेरी इस सलाह पर कोई ध्यान नहीं देगा,पर शालीनता से  विरोध दर्ज कराना मैं अपना कर्तव्य समझता हूं।

आम तौर पर लोग शादी,शादी की साल गिरह या जन्म दिन आदि के अवसरों पर शोर मचाऊ डी.जे.यानी डिस्क जाॅकी का इंतजाम कर देते है।इसमें वे अपनी शान समझते हैं।

  इन अवसरों पर शुरू से अंत तक डी.जे.लगातार भारी व कर्कश शोर मचाता रहता है।

सरकार द्वारा निर्धारित आवाज सीमा का कोई ध्यान नहीं रखा जाता।

नियमानुसार दिन में 45 से 55 डेसिबल आवाज की अनुमति है।

रात में उसकी निर्धारित सीमा और भी कम हो जाती है।

पर,आम तौर पर 100 डेसिबल से कम पर कोई डी.जे.नहीं बजाता।डी.जे. की आवाज में जितनी अधिक कर्कशता होगी,लोग हमें उतना ही बड़ा आदमी मानेंगे,यह मान कर चला जाता है।

किसी समारोह में आप अपने अनेक मित्रों -रिश्तेदारों को बुला ही लेते हैं।ऐसे अवसर कम आते हैं।कई लोग दूर-दूर  से आते हैं।उनमें से कई आपस में भी रिश्तेदार होते हैं।

 बहुत दिनों के बाद आपस में मिलने का उनके लिए वह एक अवसर होता है।

उस अवसर का वे सदुपयोग 

करना चाहते हैं।

आपस में दुख-सुख बतियाना चाहते हैं।

  पर,डी.ज.े के कर्कश शोर के बीच वे आपस में ठीक से बातचीत भी नहीं कर पाते।क्योंकि एक दूसरे की आवाज वे ठीक से नहीं सुन पाते।

  अधिक शोर का कुपरिणाम बच्चों और बूढ़ों के स्वास्थ्य पर अधिक पड़ता है।

ऐसे विशेष अवसरों पर बच्चे तो मां-बाप के साथ जाएंगे ही।

पर,बूढ़ों का जाना कोई जरूरी नहीं है।उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए ऐसे समारोहों में विवेकशील मेजबान किसी उम्रदराज को आमंत्रित न करें।

  क्योंकि मैं जानता हूं कि अनेक असंवदेनहीन लोग बूढ़े और डी.जे.के बीच चुनना हो तो वे किसे चुनेंगे।

  ऊंची आवाज वाला डी.जे.लगवाकर कर्कश शोर मचवाने से आपका निकट का अधिकतर पड़ोसी भी परेशान हो 

जाता है।आपके बारे में उसकी धारणा बदल सकती है।

  पर डर या लिहाज से आपसे कुछ नहीं बोलता। 

अच्छा हो ऐसे शुभ अवसरों पर दूसरों को परेशान करने के बदले आप अपने यहां धीमे स्वर में मधुर संगीत 

का इंतजाम करें।

करके देखिए,लोगबाग आपकी शालीनता की तारीफ करेंगे। 

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13 मई 24


 मां के साथ-साथ आज पिता की याद में भी 

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सुरेंद्र किशोर

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मेरे बाबू जी जब हम दोनों भाइयों को अपनी पुश्तैनी जमीन बेच कर छपरा और पटना रखकर पढ़ा रहे थे तो उसी बीच एक स्थानीय मुखिया मेरे घर आये।

बाबू जी से बोले--‘‘आप सोना जइसन जमीन बेचकर पढ़ा रहे हैं।पढ़- लिखकर उ सब शहर में बस जइहन स,रउआ के ने पूछिहन स।’’

उस पर बाबू जी बोले--‘‘सोना अइसन जमीन बेच के हीरा गढ़त बानी।

ने पूछिहन त कवनो बात नइखे।हमरा खाए -पिए के कवन दिक्कत बा ?तोहरा इ सब ने बुझाई।’’

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बाबू जी खुद सिर्फ साक्षर थे।जमींदारी की मालगुजारी की  रसीद पर कैथी में कुछ लिखकर दस्तखत करते हुए मैं उन्हें देखता था जब मैं छोटा था।

खुद लघुत्तम जमीन्दार थे और एक बड़े जमीन्दार के तहसीलदार थे।मेरे घर में राम चरित मानस,शुकसागर और आल्हा ऊदल की किताब को छोड़कर कोई पठनीय सामग्री नहीं रहती थी।

पर शिक्षा के प्रति बाबू जी को बेहद लगाव था।

मैं 1963 में अपने परिवार में पहला मैट्रिकुलेट हुआ।

आसपास के गांव के किसी ऐसे परिवार को मैं नहीं जानता जो अपने बाल- बच्चों को जमीन बेच कर पढ़ा रहा हो।

मेरे बचपन में मेरे परिवार के पास जितनी जमीन थी,अब उससे आधी से भी कम रह गई है।पर, सड़क-बिजली-बाजार आदि विकसित हो जाने के कारण पहले की अपेक्षा आज की कम जमीन की कीमत भी,पहले की अधिक जमीन की कीमत से कई गुणा बढ़ चुकी है।बढ़ ही रही है।उस इलाकों को न्यू पटना बनाने का नीतीश कुमार का वायदा है।

यानी, मेरे बाबूजी दूरदर्शी थे--परंपरागत विवेक से लैस थे।

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मेरी मां के साथ मेरे बाबू जी जितना आदर से बातें करते थे ,उतना आदर-भाव मैंने किसी अन्य जोड़ी के बीच नहीं देखा।

 मां तो मां ही होती है।

किसी ने ठीक ही कहा है कि चूंकि ईश्वर हर जगह मौजूद नहीं रह सकते, इसलिए उन्होंने घर-घर मां भेज दिया।

मेरे बड़े भाई सौतेले थे।

फिर भी, मेरी मां ने उन्हें अपने पुत्र के समान ही प्यार दिया।

1986 में जब बाबू जी का निधन हुआ तो हमने मां से कहा कि अब आप पटना चल कर हमारे साथ रहिए।उसने कहा कि यह नहीं हो सकता।

लोग क्या कहेंगे ?

कहेंगे कि सौतेले बेटे को छोड़कर पटना चली गयी।मेरी मां नहीं आई। बाद में अपने आखिरी दिनों में पटना आकर मेरे साथ रही थी।

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 मां के साथ संतान के संबंध में कोई स्वार्थ नहीं होता।

यानी, निःस्वार्थ प्यार सिर्फ मां का प्यार ही होता है।

पिता का तो कम से कम यह स्वार्थ रहता ही है कि मेरी संतान मुझसे आगे बढ़ जाए।अधिक तरक्की करे।

  पर, मां को इन सबसे भी कोई मतलब नहीं।

बाकी लोगों के साथ तो लोगों का आपसी ‘लेन देन’ का रिश्ता होता है।

जरूरी नहीं कि उससे पैसे ही जुड़े हों।

लेन देन मतलब आप जितना स्नेह दीजिएगा,उतना पाइएगा।

जितना सम्मान दीजिएगा,उतना पाइएगा।

जितना दूसरे का ध्यान रखिएगा,उतना वह आपका ध्यान रखेगा।

अपवाद की बात और है।

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इसलिए विपरीत परिस्थितियों के लिए ठीक ही कहा गया है,

‘कुछ हंस कर बोल दो,

कुछ हंस कर टाल दो।

परेशानियां बहुत हैं,

कुछ वक्त पर डाल दो।’ 

मां के अलावा बाकी लोगों से संबंध निभाते रहने के लिए इस फार्मूले का इस्तेमाल किया जा सकता है।

संबंध तो कच्चा धागा है जिस पर निरंतर प्रेम का मांझा

लगाते रहना पड़ता है।

पर मां के मामले में इसकी भी जरूरत नहीं पड़ती।

और अंत में

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एक बार मेरी पत्नी मेरे नन्हे पुत्र को पीट रही थीं।शिक्षिका हैं,वैसे भी उनका अधिकार था।

तब तक सरकार ने शिक्षकों के हाथों से छड़ियां नहीं छीनी थीं।

खैर ,उन दिनों मेरी मां भी मेरे साथ ही रहती थीं।

उसे पोते  पर दया आ गई।

बोली, क्यों मार रही हो ?

उसने कहा कि ‘होम वर्क नहीं बनाया है।’

 मेरी मां ने कहा कि 

‘मैंने तो कभी एक चटकन भी नहीं मारा,

 फिर भी मेरे दोनों बबुआ कैसे पढ-लिख गए ?’ 

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12 मई 24


 सन 1977 में पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की 

गिरफ्तारी की घटना को याद कर लीजिए

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जांच एजेंसी किसी व्यक्ति को सिर्फ गिरफ्तार कर सकती है।पर उसे जेल भेजने का काम तो अदालत ही कर सकती है,करती भी हैं।उसे ही वह अधिकार प्राप्त है।

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सुरेंद्र किशोर

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सी.बी.आई. ने 3 अक्तूबर, 1977 को 

भ्रष्टाचार के आरोप में पूर्व प्रधान मंत्री श्रीमती गांधी को उनके समर्थकों के भारी विरोध के बीच गिरफ्तार किया।

तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री चरण सिंह उन्हें जल्द से जल्द जेल भेजने के लिए तत्पर थे।इमर्जेंसी पीड़ित लोगों के बीच इंदिरा जी के खिलाफ भारी गुस्सा था।आपातकाल में जेलों के भीतर और बाहर भारी पीड़ा झेल चुके  लोग सरकार पर खास कर चरण सिंह पर इंदिरा की गिरफ्तारी के लिए दबाव डाल रहे थे।

3 अक्तूबर को इंदिरा जी को अदालत में पेश किया गया।

अदालत ने यह कहते हुए उन्हें तुरंत रिहा कर देने का आदेश दे दिया कि जो कागजात सी.बी.आई.ने यहां पेश किया है उसमें प्रथम दृष्टवा कोई सबूत नजर नहीं आ रहा है।सी.बी.आई.े के वकील ने कहा कि सबूत हम एकत्र कर रहे हैं।इनकी गिरफ्तारी से भी हमें सबूत जुटाने में मदद मिलेगी।पर,अदालत ने सी.बी.आई.के वकील की बात नहीं मानी। 

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ऐसा नहीं है कि इंदिरा गांधी के खिलाफ सबूत नहीं थे।लेकिन तब तक सी.बी.आई.के पास नहीं पहुंचे थे।

 तब तक एकत्र नहीं किये जा सके थे।या कोई अन्य मजबूरी होगी।

कई बार जांच एजेंसी सबूत को समय से पहले जाहिर नहीं करना चाहती।पर,इंदिरा के मामले में ऊपरी आदेश से सी.बी.आई.जल्दीबाजी में थी।

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दूसरी ओर, जब हाल में जांच एजेंसी ने बारी -बारी से अरविन्द केजरीवाल और हेमंत सोरेन को गिरफ्तार करके उन्हें कोर्ट में पेश किया तो कोर्ट ने दोनों को जेल भेज 

दिया।

  क्योंकि इनके मामलों में अदालत को पहली नजर में ही उन कागजात में सबूत नजर आ गये थे जो कागजात जांच एजेंसी ने कोर्ट में पेश किये थे।

बचाव पक्षों के बड़े- बड़े वकील भी इन दोनों नेताओं को जेल जाने से नहीं बचा सके।

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यानी, 

यानी,जांच एजेंसी सिर्फ गिरफ्तार करती है।

किंतु जेल भेजने या न भेजने का फैसला अदालत का होता है।

फिर भी, इन कैद नेताओं के पक्ष में यह प्रचार किया जाता है कि मोदी सरकार ने जेल भेज दिया।

ऐसा कह कर कोर्ट को 

प्रकारातंर से पक्षपाती साबित करने की कोशिश अघोषित रूप से की जाती है।यानी कोर्ट की मोदी से साठगांठ है।

आश्चर्य है कि कोर्ट पर ऐसे परोक्ष आरोप को लेकर किसी के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला नहीं चलता।

इसीलिए ऐसे आरोप लगते रहते हैं।

याद रहे कि इस देश के कानून के अनुसार किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के 24 घंटे के भीतर अदालत में उसे पेश करने की कानूनी मजबूरी है।

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13 मई 24


 


अपने नेताओं के झूठे बयानों पर ऐसे 

काबू किया था यूरोप के एक अखबार ने

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सुरेंद्र किशोर

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यह बात यूरोप के एक देश से संबंधित है।

बहुत पुरानी भी है।

किंतु अपने इस देश पर आज भी लागू है।

 मैंने कई दशक पहले कहीं यह कहानी पढ़ी थी।

उस देश के अधिकतर नेता अक्सर झूठा  बयान या गलत आंकड़ा देते रहते थे।

वे बयान छपते थे तो अखबारों को दूसरे दिन परेशानी होती थी।या तो उसका खंडन आता था या फिर मानहानि के मुकदमे हो जाते थे।

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एक अखबार ने उसका ठोस उपाय किया।

झूठे नेताओं के झूठे बयान या आंकड़े जब अखबार के दफ्तर में आते थे तो अखबार वाले शंका होने पर उस संबंध में सही बात का पता लगा लेते थे।या पहले से ही उनके पास उस संबंध में सही तथ्य उपलब्ध होते थे।

अखबार उस झूठे बयान या गलत आंकड़े के साथ ही सही बात व सही आंकड़े भी उसी दिन छापने लगे।

अपनी ओर से टिप्पणी--इस नेता की झूठी बात यह है कि उसके विपरीत सही बात यह है।

पाठकगण दोनों को पढ़ें और उसके बाद ही उस पर अपनी राय बनायें।

जब ऐसे- ऐसे अनेक खंडन लगातार छपने लगे तो झूठे नेताओं को शर्म आई।उन्होंने झूठ बोलना काफी कम कर दिया।

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भारत के प्रिंट मीडिया के लिए तो यह करना कई कारणों से संभव नहीं लगता है।

पर, सोशल मीडिया

यह काम करे तो वह अधिक लोकप्रिय हो जाएगा।

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हां, इस मामले में संतुलन बरतने से मीडिया को अधिक लाभ होगा।

समानांतर मीडिया इस मामले में पक्ष और विपक्ष के नेताओं के साथ समान रुख अपनाए।

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अंत में 

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सत्तर-अस्सी के दशकों के बिहार के एक बड़े नेता जब सत्ता में होते थे तो वे राज्य की सिंचित जमीन का एक आंकड़ा बताते थे।आंकड़े को बढ़ा देते थे।

पर जब वही नेता विपक्ष में होते थे तो उनके आंकड़े में भारी कमी आ जाती थी।

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चुनाव के समय अपने देश के अधिकतर नेता लोग सार्वजनिक रूप से झूठ और अशिष्ट शब्दों का कुछ अधिक ही इस्तेमाल करते हैं।कई बार गाली-गलौज भी।

शायद पहले चंडूखानों में ही वैसी अशिष्टता देखी जाती थी।

पर,अब तो ऐसा हो गया है कि नयी पीढ़ी के अनेक लोगों को सक्रिय राजनीति से

घिन आती है।

एक बार एक छात्र ने सरल भाव से 

पूछा--क्या राजनीति में खादी के साथ-साथ झूठ बोलने की भी कोई मजबूरी होती है ?

शिक्षक ने कहा--कोई मजबूरी नहीं।

छात्र सोचने लगा--इन गालीबाज,अशिष्ट और झूठे नेताओं के परिजन और बाल-बच्चे अपने अभिभावक के बारे में कैसी राय बनाता होगा !

निजी टी.वी.चैनलों के कुत्ता भुकाव कार्यक्रमों पर अशिष्ट अतिथियों के बारे में उनके ही परिजन क्या सोचते होंगे ?

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सुरेंद्र किशोर

12 मई 24

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पुनश्चः

एक बार एक पूर्व केंद्रीय मंत्री जो बिहार के प्रमुख नेता थे, कहा था कि चुनाव के समय के गाली-गलौज को हम होली की गालियों की तरह ही बाद में भुला देते हैं।

पर सवाल है कि इस बीच नयी पीढ़ी को आप कैसी शिक्षा दे जाते हैं ? 





रविवार, 12 मई 2024

 अति सर्वत्र वर्जयेत्

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चाणक्य से किसी ने पूछा--

‘‘जहर क्या है ?’’

चाणक्य ने कहा --

‘‘ हर वो चीज जो जिन्दगी में आवश्यकता से अधिक होती है,वही जहर है।

फिर चाहे वो ताकत हो,

धन हो,

भूख हो,

लालच हो,

अभिमान हो,

आलस हो,

या घृणा होे।

आवश्यकता अधिक जहर ही हैं’’

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शनिवार, 11 मई 2024

    बिना विचारे जो करे.........!.

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सुरेंद्र किशोर

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नब्बे के दशक में मंडल आरक्षण विरोधियों से मैं सवाल करता था--

‘‘आप लोग पिछड़ा आरंक्षण का विरोध क्यों कर रहे हैं ?

क्या इस विरोध का परिणाम समझते हैं ?

परिणाम यह होगा कि आज गज नहीं फाड़िएगा तो कल थान हारना पड़ेगा।’’

(कांग्रेस के पूर्व विधायक हरखू झा मेरी इस बात

के आज भी गवाह हैं।वे बिहार विधान सभा के प्रेस रूम में हमलोगों के साथ बैठते थे।मेरी यह बात सुनते थे।बाद के दिनों में झा जी ने एक बार मुझसे कहा भी कि आप तो गज और थान वाली बात कहते ही रहते थे।) 

  आरक्षण के विरोध का क्या नतीजा हुआ ?

लंबे समय तक बिहार में ‘जंगल राज’ रहा।आज भी बिहार में कोई योग्य सवर्ण भी मुख्य मंत्री बनने के लिए तरस जाता है।

दरअसल आजादी के बाद कांग्रेस को बिहार विधान सभा में जब भी खुद का पूर्ण बहुमत मिला,उसने चुन-चुन कर सवर्ण को ही मुख्य मंत्री बनाया।

तब तो किसी सवर्ण ने इस बात को नहीं उठाया।

पर आज कुछ लोगों को लग रहा है कि 1990 से ही लगातार पिछड़ा ही मुख्य मंत्री क्यों है ?

नब्बे के दशक के कुछ आरक्षण विरोधियों को अपनी गलती का आज एहसास हो रहा है।पर,सबको नहीं।

 नब्बे के दशक में कुछ आरक्षण विरोधी मेरे पीठ पीछे

यह कहकर मेरी आलोचना करते थे कि यह पत्रकार

तो सवर्ण होते हुए भी एक खास पिछड़ा नेता का दलाल बन गया है।

उस पिछड़ा नेता का वे नाम भी लेते थे।

जबकि बाद के वर्षों में उसी पिछड़ा नेता ने मुझे एक अखबार की नौकरी से हटवा दिया था।क्योंकि मैं आरक्षण का तो समर्थक था,किंतु भ्रष्टाचार-अपराध का नहीं।

मैं तो भई आरक्षण का समर्थन इसे संवैधानिक प्रावधान मानकर व समाज में समरस स्थिति बनाये रखने के लिए करता था।

वैसे मेरे कुछ करीबी रिश्तेदारों ने तब (मेरे आरक्षण समर्थन के कारण )मुझे पागल घोषित कर रखा था।

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कई दशक पहले जब मैं बिहार के समझदार कम्युनिस्ट नेताओं से पूछता था कि आप तो ईमानदार हैं।

किंतु भ्रष्ट और जातिवादी नेताओं व दलों का समर्थन आप लोग क्यों करते हैं ?

उनका जवाब होता था--‘‘हम सांप्रदायिक तत्वों यानी भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए ऐसा करते है।’’

मैं उन्हें कहता था कि इस तरीके से तो आप नहीं रोक पाएंगे।

वहीं हुआ भी।

आज भाजपा केंद्र व राज्य दोनों जगह सत्ता में है और कम्युनिस्ट लोग अपनी अदूरदर्शिता के कारण अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हाथ -पैर मार रहे हैं।जबकि कम्युनिस्ट आंदोलन में एक से एक त्यागी-तपस्वी नेता व कार्यकर्ता रहे हैं।यदि वे अपनी कुछ नीतियों-रणनीतियों को सुधार कर लेते तो इस गरीब देश के लिए वे उपयुक्त थे।

चीन और रूस के कम्ुयनिस्टों ने तो देश,काल,पात्र की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अपनी नीतियां-रणनीतियां बदल लीं।पर भारत के कम्युनिस्टगण कालबाह्य विचारों की बंदरमूठ पकडे हुए हैं। 

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मेरे मित्र नीतीश कुमार दो बार राजग छोड़कर इस उम्मीद में कांग्रेस गठबंधन में गये थे ताकि कांग्रेस उन्हें अपने गठबंधन का नेता घोषित कर दे।

मैं पहले ही दिन से यह जानता था कि उन्हें कांग्रेस महत्व नहीं देगी।क्योंकि मनमोहन सिंह और नीतीश कुमार मंे भारी फर्क है।

नीतीश जी मुझसे पूछते तो मैं उन्हें असलियत बताता।

पर,बिना पूछे ऐसी सलाह देने पर नेता लोग बहुत नाराज हो जाते हैं।

क्योंकि कुछ खास अवसर पर वे खास तरह के ‘नशे’ में होते हैं।

अपने खुद के फायदे के लिए उनके कुछ करीब सलाहकार उन्हें गुमराह कर देते हैं।

ऐसा मैंने यहां इसलिए लिखा क्योंकि मैं नीतीश जी का प्रशंसक रहा हूं।

मैंने 1967 से मुख्य मंत्रियों को काम करते देर और करीब से देखा है।मैं अंतर कर सकता हूं।

नीतीश ने बिहार को काफी बदल दिया है।

ईमानदार हैं।वंशवादी-परिवारवादी नहीं हैं।सभी जातियों-धर्मों के लोगों को साथ लेकर चलने की कोशिश करते हैं।

पर, गठबंधन बदल-बदल कर उन्होंने खुद ही अपना ज्यादा नहीं तो थोड़ा नुकसान तो कर ही लिया है।जिस तरह तीसरे क्लास का मेरा एक सहपाठी स्लेट पर अपना ही लिखा हुआ बाद में मिटा देता था।

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अभी लोक सभा चुनाव के लिए प्रचार हो रहा हैं।

 वोट डाले जा रहे हैं।

आज भी अनेक अदूरदर्शी नेता और एक हद तक मतदाता भी उसी तरह की अदूरदर्शिता का परिचय दे रहे हैं।

वे कौन -कौन नेता हैं,कौन दल है  और कौन सी गलतियां कर रहे हैं,वह सब

मैं 4 जून के बाद बता दूंगा।

अभी नहीं।

क्योंकि उससे अभी कोई लाभ भी नहीं।ध्यान रहे कि 4 जून के बाद देश मंे बहुत बड़ा बदलाव होने वाला है। 

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गिरधर कविराय

ने ठीक ही कहा है--

बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय,

काम बिगारे आपनो जग में होत हंसाय

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11 मई 24



 


शुक्रवार, 10 मई 2024

 


पद्म पुरस्कार ग्रहण करने के लिए मुझे भी आज यानी 9 मई को दिल्ली बुलाया गया था।

पर,अस्वस्थता के कारण मैं उस समारोह में शामिल नहीं हो सका।

शामिल हो पाता तो मुझे अच्छा लगता।

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सुरेंद्र किशोर

9 मई 24



 जरूरी थी बालि की हत्या

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यदि रावण को अंततः पराजित करना था तो उससे पहले बालि की हत्या जरूरी थी।

श्रीराम ने बालि को पेड़ की आड़ से छिपकर मारा।

इसके बावजूद उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहना किसी ने बंद नहीं किया।

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अब आप महाभारत काल पर आइए।

क्या सामान्य युद्ध नियमों पर चलकर कर्ण ,भीष्म,द्रोणाचार्य यहां तक कि दुर्योधन को मारना आसान काम था ?

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सुरेंद्र किशोर


बुधवार, 8 मई 2024

  अपरिपक्व भतीजे को मायावती ने शीर्ष पद से हटाया

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 अन्य परिवारवादी राजनीतिक दलों के सुप्रीमो 

अपरिपक्व उत्तराधिकारियों 

पर ऐसा ही कोई फैसला करंेगे ?

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नहीं करेंगे तो डूबेंगे।

डूबने के संकेत शायद 4 जून को ही मिल जाएं !!

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सुरेंद्र किशोर

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बसपा प्रमुख व पूर्व मुख्य मंत्री मायावती ने अपने भतीजे आकाश को अपरिपक्व व्यक्ति करार देते हुए उसे बसपा के राष्ट्रीय संयोजक पद से हटा दिया।

साथ ही, मायावती ने उसे अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने के अपने पुराने निर्णय को भी वापस ले लिया।

मायावती ने घोषणा की है कि आकाश में पूर्ण परिपक्वता आने तक उसे इन जिम्मेदारियों से दूर ही रखा जाएगा।

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काश ! इस देश के कुछ अन्य वंशवादी-परिवारवादी राजनीतिक दल भी मायावती का अनुकरण करते।

अन्य दल क्यों अनुकरण नहीं कर रहे हैं ?

उसका जवाब एक राजनीतिक प्र्रेक्षक ने मुझे दिया।

कहा कि अनिल अंबानी का व्यापार जब मंदा पड़ने लगा,तब क्या अनिल ने अपनी कंपनी किसी और को सिपुर्द कर दी !?

जब राजनीति, सेवा व त्याग की जगह व्यापार और वाणिज्य बन जाए,अधिकतर नेताओं की व्यक्तिगत संपत्ति अरबों में होने लगे  तो कोई अपने ‘व्यापार’ को किसी और को नहीं सौंप  देता।

भले व्यापार डूब जाए !!

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8 मई 24 


मंगलवार, 7 मई 2024

 जिनके यहां 25 करोड़ रुपए से अधिक नाजायज धन बरामद हो, उन आरोपियों की नार्को -ब्रेन मैपिंग-डीएनए टेस्ट का कानूनी प्रावधान हो

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सुरेंद्र किशोर

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आज के ‘‘प्रभात खबर’’ के अनुसार.

झारखंड के मंत्री आलमगीर के निजी सचिव के नौकर के घर से 35 करोड़ 23 लाख रुपए बरामद किए गए हैं।

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ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने कहा है कि इन रुपयों से मेरा कोई संबंध नहीं है।

याद रहे कि झारखंड के मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन भी भ्रष्टाचार के एक अन्य मामले में इन दिनों जेल में हैं।

झारखंड से आए दिन भ्रष्टाचार व भारी धन की बरामदगी की खबरंे आती रहती हैं।

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सन 2000 में बिहार से काट कर झारखंड  अलग प्रदेश बना।

उससे पहले दशकों तक अलग प्रदेश की मांग के समर्थन में आंदोलन होता रहा।आंदोलन कारी झामुमो के नेताओं का आरोप था कि अविभिजित बिहार

ंके नेता गण हमारे संसाधनों को लूट कर हमें गरीब बनाये हुए हैं।संपन्नता के लिए हमें अलग राज्य चाहिए।

अब जब झारखंड बन गया तो क्या हो रहा है ?कौन संपन्न हो रहा है।झामुमो की ही वहां सरकार है।

आंदोलनकारी पार्टी की सरकार की मौजूदगी के बावजूद झारखंड को आज कौन लूट रहा है ?

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मंत्री आलमगीर,उनके पी.एस.और पी.एस.के नौकर का नार्को ,ब्रेन मैपिंग तथा अन्य टेस्ट जरूरी है ताकि सच्चाई का पता चल सके।ऐसे टेस्ट से

सच्चाई सामने आ ही जाएगी।

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पर,ऐसे टेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है।सिर्फ अदालती आदेश से ही ऐसे टेस्ट संभव हंै।अदालत आम तौर पर जल्दी ऐसे टेस्ट की अनुमति नहीं देतीं।

भ्रष्ट अफसरों,नेताओं और व्यापारियों के लिए यह अनुकूल स्थिति है।

वे झारखंड ही नहीं बल्कि बिहार सहित देश के विभिन्न हिस्सों को चंबल के डकैतों की तरह लूट रहे हैं।इस कारण देश की गरीबी कम करने में देरी हो रही है।

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जांच एजेंसियों को आवश्यकतानुसार नार्को,ब्रेन मैपिंग और डी एन ए टेस्ट की अनुमित होनी चाहिए।,

इस संबंध में कड़ा कानून बने।

उस कानून को संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल कर दिया जाना चाहिए ताकि उस कानून को अदालत में चुनौती न दी जा सके।

अन्यथा इन लुटेरों से यह देश नहीं बचेगा।

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7 मई 24  


शनिवार, 4 मई 2024

 लगता है कि कांग्रेस यही चाहती है कि जो गलती 

खुद उसने की,वही गलती भाजपा भी करे।

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सुरेंद्र किशोर

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यानी,कांग्रेस चाहती है कि भाजपा न तो भ्रष्टाचारियों पर कोई कार्रवाई करे और न ही 

जेहादियों के खिलाफ एक शब्द का भी उच्चारण करे।

यदि भाजपा ने भी वही गलती की होती तो वह आज सत्ता में नहीं होती।

कल जनता उसे सत्ता से हटा देगी,इस बात की कोई गारंटी नहीं।

भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई का नतीजा है कि आज केंद्र सरकार का कर राजस्व सन 2014 की अपेक्षा बढ़कर तीन गुणा हो गया है।बढ़ता ही जा रहा है।

अन्य कामों को छोड़ भी दीजिए तो देश भर में आज बिजली हैं और 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है।

1947 -1985 के काल खंड में कांगेसी सरकारों ने 100 सरकारी पैसों में से 85 पैसों की लूट नहीं करवा दी होती तो 80 करोड़ लोगों को आज अनाज नहीं देना पड़ता।

सिर्फ मनमोहन सिंह सरकार में 16 लाख करोड़ रुपए का घोटाला हुआ।

इस देश की अदालत दोषी होने पर भी किसी प्रधान मंत्री को सजा नहीं देना चाहती अन्यथा अब तक आधे दर्जन पी.एम.सजा पा गये होते।

संभवतः इस देश की अदालत यह महसूस

करती है कि पी.एम.को सजा देने से देश की दुनिया भर में बदनामी होगी।

मोदी सरकार के 10 साल में मोदी या किस मंत्री पर घोटाले का केस चला ?

नहीं चला।क्योंकि उनके द्वारा कोई घोटाला नहीं हुआ।हां,केंद्र सरकार में भ्रष्टाचार जरूर है जिसे रोकने में मोदी सरकार विफल है।वकील अश्विनी उपाध्याय ठीक कहते हैं कि उसके लिए कड़े कानून चाहिए। 

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सन 2014 के लोक सभा चुनाव में शर्मनाक पराजय के बाद सोनिया गांधी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री ए.के.एंटोनी से कहा था कि आप हार के कारणों पर रपट बनाइए।

  एंटोनी ने रपट बनाई।

 सोनिया जी को दे दी।

उस रपट में अन्य कारणों के साथ- साथ यह भी लिखा गया था कि ‘‘मतदाताओं को, हमारी पार्टी अल्पसंख्यक की तरफ झुकी हुई लगी जिसका हमें नुकसान हुआ।’’

पर कांग्रेस हाईकमान ने एंटोनी की इस मूल बात को भी नजरअंदाज कर दिया।

याद रहे कि कांग्रेस अब भी उसी लाइन पर है।बल्कि अब तो कांग्रेस ने एक अतिवादी मुस्लिम संगठन से अपना संबंध पहले से भी अधिक मजबूत कर लिया।वह संगठन यानी प्रतिबंधित पी.एफ.आई. जिसका राजनीतिक संगठन -एस.डी.पी.आई.है,इस देश को इस्लामिक देश में बदलने के लिए हथियारबंद दस्ते तैयार कर रहा है।कहता है कि हम 2047 तक हम सफल हो जाएंगे।उसें अनेक वोट लोलुप गैर मुसलमान नेताओं का समर्थन जो हासिल हैं।

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इसके बावजूद कांग्रेस चाहती है कि भाजपा नेता पी.एफ.आई.यानी मुस्लिम आतंकवाद की चर्चा तक न करे।

जबकि जनता को बताना मोदी का कर्तव्य है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आ जाएगी तो पी.एफ.आई.का काम आसान हो जाएगा।

जिस तरह ममता बनर्जी सरकार की मेहरबानी से बांग्ला देशी-रोहिंग्या घुसपैठियों का काम आसान हो गया है।

बी.बी.सी.के पूर्व संवाददाता डा.विजय राणा के अनुसार पश्चिम बंगाल के एक बड़े इलाके में कश्मीर जैसी स्थिति पैदा हो चुकी है।संदेशखाली की घटना साफ संकेत दे रही है।

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4 अगस्त, 2005 को सांसद ममता बनर्जी ने नाटकीय ढंग से लोक सभा के स्पीकर के टेबल पर कागज का 

पुलिंदा फेंका था।

उसमें अवैध बंाग्लादेशी घुसपैठियों को भारत यानी पश्चिम बंगाल में मतदाता बनाए जाने के सबूत थे।

वाम मोर्चा शासन काल में उनके नाम पश्चिम बंगाल में भी गैरकानूनी तरीके से मतदाता सूची में शामिल करा दिए गए थे।बांग्ला देश की मतदाता सूची में भी उनके नाम थे।इसी का कागजी सबूत ममता के पास था।

ममता ने कहा था कि घुसपैठ की समस्या राज्य में महा विपत्ति बन चुकी है।

इन घुसपैठियों के वोट का लाभ सत्ताधारी वाम मोर्चा उठा रहा है।

ममता ने उस पर सदन में चर्चा की मांग की।

चर्चा की अनुमति न मिलने पर ममता ने सदन की सदस्यता

 से इस्तीफा दे देने के अपने निर्णय की घोषणा कर दी थी।

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यह और बात है कि घुसपैठियों पर ममता बनर्जी का रवैया अब पूरी तरह बदल चुका है।क्योंकि अब वे ममता के लिए ‘‘संपत्ति’’ बन चुके हैं।

ममता बनर्जी ने तो घुसपैठियों के वोट के लिए अपने रुख में परिवर्तन कर लिया।क्या नरेंद्र मोदी को भी घुसपैठियों के खिलाफ बोलना बंद कर देना चाहिए ?

यदि मोदी बंद कर देंगे तो उनके दल का भी जनता वही हाल करेगी जो हाल कांग्रेस का कर चुकी है और ममता की पार्टी का इस चुनाव करने वाली है,ऐसी उम्मी की जा रही हैै।

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2017 के आंकड़े के अनुसार इस देश में 5 करोड़ बांग्ला देश-रोहिंग्या घुसपैठिए थे।

अब तक उनकी संख्या दुगुनी हो चुकी होगी।धर्म परिवर्तन और लव जेहाद के जरिए हिन्दुओं की संख्या घटाई जा रही है सो अलग।उसके लिए विदेश से पैसे आ रहे हैं।

हावड़ा रेलवे स्टेश पर किसी भी दिन कोई भी जाकर उन घुसपैठियों की संख्या गिन सकता है।घुसपैठ में बोर्डर सिकुरिटी फोर्स में कई लोग घूसखोर हैं या दोतरफा आक्रमणों से फोर्स डरा हुआ है।

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हाल की खबर है कि ब्रिटेन सरकार अपने देश से हजारों अवैध घुसपैठियों को दो माह बाद से जबरन निकालना शुरू करेगी।

अमेरिका भी यही करेगा।पर भारत ?

भारत के कई भाजपा विरोधी दल यह चाहते हैं कि आने वाले वर्षों में भले देश का एक और बंटवारा करना पड़े,पर अभी घुसपैठिए हमें वोट देकर सत्ता में पहुंचाते रहें।भाजपा इस पर आवाज उठाएगी तो हम कहेंगे कि वह हिन्दू-मुस्लिम कर रही है।

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याद रहे कि घुसपैठियों आदि के कारण देश के इस देश के कई जिलों-इलाकों में

हिन्दू आबादी का अनुपात घटता जा रहा है।जहां मुस्लिम आबादी 40 या 50 प्रतिशत से अधिक हो गई ,वहां कानून का शासन असंभव है।

मुख्य मंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने अपने शासनकाल में कहा था कि हमारे प्रदेश के सात जिलों में सामान्य प्रशासन अपना काम नहीं कर पा रहा है।उनका यह बयान मैंने जनसत्ता में पढ़ा था।

माकपा के शीर्ष नेताओं ने उन पर दबाव डाल कर बयान वापस करवाया।

पर,इस बीच माकपा को नुकसान हो चुका था।जेहादियों ने करीब 30 प्रतिशत मुसलमान वोट का रुख ममता की ओर कर दिया।

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मोदी सरकार सामान्य व शांतिप्रिय मुसलमानों के खिलाफ नहीं बल्कि जेहादी मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है या आवाज उठा रही है।

हथियारबंद जेहादी संगठन पी.एफ.आई.भी यह मानता है कि उसके साथ अभी 10 प्रतिशत मुसलमान भी नहीं हैं।

पर,शाहीनबाग जैसा धरना कांड करने व जहां -तहां दंगा करने के लिए 5 प्रतिश भी काफी है।

जनता नरेंद्र मोदी को इसीलिए बार -बार प्रधान मंत्री बना रही है और फिर बनाएगी ताकि वे भ्रष्टाचारियों और जेहादियों-घुसपैठियों के खिलाफ तो कार्रवाई करें किंतु शांतिप्रिय मुसलमानों की आर्थिक बेहतरी के लिए काम करें।वे कर भी रहे हैं।इसलिए 2024 भी मोदी का ही है,ऐसा मेरा अनुमान है। सन 1967 से चुनाव देखते रहने का अनुभव मुझे है।उस आधार पर कह रहा हूं।

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4 मई 24 


 


     कैंसर की महामारी को रोकने के लिए

   सरकारें चुनाव बाद युद्ध स्तर पर काम करें

    अन्यथा,शासकों और उनके परिजन की भी बारी 

    आने में अब देर नहीं होगी 

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      --सुरेंद्र किशोर ---

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हाल में यह चिंताजनक जानकारी मिली कि वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी कैंसर ग्रस्त हो गये हैं।

ताजा खबर सी.पी.आई.नेता अतुल कुमार अनजान के बारे में आई।

कैंसर से उनका निधन हो गया।

मेरे छोटे सहोदर भाई का गत सात इसी जानलेवा बीमारी से निधन हुआ।

सर्वाधिक दर्दनाक बात यह है कि कैंसर से होने वाले भीषण दर्द के निवारण के लिए किसी दर्दनाशक दवा का अब तक आविष्कार ही नहीं हुआ है।

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कैंसर के कई कारण होते हैं।

पर,खाद्य और भोज्य पदार्थ में मिलावट एक बड़ा कारण है।

खेतों में धुआंधार रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल से स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है।

(हरित क्रांति ने हमें बर्बाद कर दिया।)

मिलावट के खिलाफ सरकारों को चाहिए कि वे चुनाव के बाद सघन अभियान चलाएं।पुलिस की मौजूदगी में नमूने लिये जाएं और उनकी विश्वस्त प्रयोगशाला में जांच कराई जाए।

सिर्फ फूड इंस्पेक्टरों पर सरकार भरोसा न करे।

यदि कोई इस्पेक्टर चाहे भी तो वह रसीद के साथ खाद्य-भोज्य पदार्थ के नमूने नहीं ले सकता।

उन्हें मारकर भगा दिया जाएगा।इसीलिए वे सह अस्तित्व की रणनीति अपनाते हैं।

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स्थिति ऐसी गंभीर हो चुकी है कि आज बाजारों में कौन सा पदार्थ मिलावट रहित है,यह नहीं कहा जा सकता।

मिलावट के खिलाफ जांच के लिए तैनात सरकारी एजेंसियों में भारी भ्रष्टाचार है।

पूरी व्यवस्था ने मिलावटखोरों को हमें तड़पा -तड़पा कर मारने का अघोषित लाइसेंस दे रखा है।

इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि इस समस्या की व्यापकता के अनुपात में सजाएं नाम मात्र की ही हो पाती हैं।

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बिहार सहित देश के 10 राज्यों में कैंसर के मरीज अधिक हैं।

2023 में बिहार में एक लाख नये कैंसर मरीजों का पता चला।

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इस तरह हो रहा है मानव शरीर के साथ खिलवाड़ !

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‘‘1.-बिक्रेता गण सब्जियों की ताजगी बरकरार रखने अथवा उनके परिरक्षण के लिए उन्हें कीटनाशकों में डूबोते हैं।

तेलों और मिठाइयों में वर्जित पदार्थों की मिलावट की जाती है।

2.-सब्जियों और दूसरे खाद्य पदार्थ को धोना फायदेमंद है।लेकिन पकाने से विषैले अवशेष बिरले ही खत्म होते हैं।

निगले जाने के बाद छोटी आंत कीटनाशकों को सोख लेती हैं।

3.-शरीर भर में फैले बसायुक्त उत्तक इन कीटनाशकों को जमा कर लेते हैं।इनसे दिल,दिमाग,गुर्दे और जिगर सरीखे अहम अंगों को नुकसान पहुंच सकता है।

(-इंडिया टूडे हिंदी-15 जून, 1989)

(यह खबर पुरानी है।आज तो हालात और भी बिगड़ चुके हैं।

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 अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में सरकार ने संसद में कहा था कि अमेरिका की अपेक्षा हमारे देश में तैयार हो रहे कोल्ड ड्रिंक में 

रासायनिक कीटनाशक दवाओं का प्रतिशत अधिक है।

 केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि यहां कुछ अधिक की अनुमति है।(क्यों भई ?)

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खुद वाजपेयी जी को ,जब वे प्रधान मंत्री थे, पटना हवाई अड्डे पर जो बोतलबंद पानी परोसा जाने वाला था,वह अशुद्ध पाया गया था।

ऐसी ही घटना मनमोहन सिंह के साथ कानपुर में हुई थी जब वे प्रधान मंत्री के रूप में वहां गए थे।

यानी, प्रधान मंत्री तक मिलावटखोरों की पहुंच है।

वे सिर्फ इसलिए बच पा रहे हैं क्योंकि उन्हें परोसने से पहले उसकी जांच का प्रावधान है।

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  एक ताजा खबर के अनुसार, इस देश में बिक रहे 85  प्रतिशत दूध मिलावटी है।

जितने दूध का उत्पादन नहीं है,उससे अधिक की आपूत्र्ति हो रही है।  

सवाल है कि इस देश में अन्य कौन सा खाद्य व भोज्य पदार्थ कितना शुद्ध है ?

यह जानलेवा समस्या बहुत पुरानी है।

बढ़ती ही जा रही है।

विभिन्न सरकारें लोक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए क्या -क्या करती हंै ? 

कितने दोषियों को हर साल सजा हो पाती है ?

राज्यों में कितनी प्रयोगशालाएं हैं ?

मिलावट का यह कारोबार जारी रहा तो कुछ दशकों के बाद हमारे यहां कितने स्वस्थ व कितने अपंग बच्चे पैदा होंगे ?

पीढ़ियों के साथ इस  खिलवाड़ को आप क्या कहेंगे ?

क्या सबके मूल मंे शासकीय भष्टाचार नहीं है ? 

मिलावटखोरों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए ?  

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4 मई 24



शुक्रवार, 3 मई 2024

 हैदराबाद के पास दैनिक मजदूरी कर रहे 

पद्मश्री से सम्मानित मोगुलैया  

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सुरेंद्र किशोर

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भारत के चैथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से सम्मानित दर्शनम मोगुलैया हाल में हैदराबाद के पास एक निर्माण स्थल पर मजदूरी करते देखे गये।

दो साल पहले राष्ट्रपति ने दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्र के आविष्कारक 71 वर्षीय मोगुलैया को पद्मश्री से सम्मानित किया था।

इस सम्मान के कारण लंबे समय तक तो वे मीडिया में छाए रहे।

 पर,परिवार के गुजर- बसर के लिए जब काम खोजने लगे उम्रदराज होने के कारण उन्हें कोई ढंग का काम नहीं मिला।

नतीजतन वे मजदूरी कर रहे हैं।

यह खबर आज के टाइम्स आॅफ इंडिया में भी छपी है।

कल्पना कीजिए कि जब कुछ विदेशियों ने यह खबर नेट पर पढ़ी होगी तो भारत और भारत सरकार के बारे में कैसी धारणा बनी होगी !

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इस बीच मोगुलैया के तीन बच्चे बीमारी से गुजर गये।अब भी बड़े परिवार की देखरेख की उन पर जिम्मेदारी है।

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उम्मीद की जानी चाहिए कि लोक सभा चुनाव की आंधी के गंुजर जाने के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जरूर ऐसी विचित्र व विडंबनापूर्ण समस्या के स्थायी निदान के बारे में जरूर कुछ सोचेंगे। ताकि, विदेश में हमारी छवि खराब न हो।

याद रहे कि मोदी राज में ऐसे ही अनेक गरीब,अनाम व साधनहीन किंतु समाज के लिए उपयोगी लोगों को पद्म सम्मान अधिक मिलने लगे हैं।

पहले भी मिलते थे,पर अब ऐसे लोगों को अधिक मिल रहे हैं।

दूसरी ओर , अपना देश तो ऐसा बनता जा रहा है जहां जो जितना बड़ा तिकड़बाज व टैक्स चोर है,उसके पास उतने ही अधिक पैसे हैं।

वैसे लोगों के सामने खर्च करने की समस्या है।

समाज के अधिकतर लोग ,अपवादों को छोड़कर उन्हें ही सलाम करते हैं।

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3 मई 24

 


गुरुवार, 2 मई 2024

    पटना के आॅटो चालक प्रत्येक फेरे में 

    100 रुपए रंगदारी देने का बाध्य हैं।

     ---आॅटो चालक यूनियन

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    सुरेंद्र किशोर

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   एक आॅटो चालक को बिहार के पटना जिले के दानापुर 

या पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन से बैरिया बस स्टैंड जाने में हर बार करीब 100 रुपए अवैध रूप से असामाजिक तत्वों को देना पड़ता है।सब जानते हैं कि उन असामाजिक तत्वों को पुलिस का संरक्षण मिलता है।

यूनियन की शिकायत है कि इस अतिरिक्त खर्च को उठाने के लिए आॅटो चालकों को ओवर लोडिंग करना पड़ता है।

यात्रियों से खचाखच भारे आॅटो अक्सर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।एक -एक दुर्घटना में एक से अधिक यात्री मर जा रहे हैं।

इस संबंध में 20 अप्रैल 24 को प्रभात खबर ने सचित्र समाचार छापा।

कई दिन बीत जाने के बावजूद पटना की सड़कों पर ट्रैफिक अराजकता मंे कोई फर्क नहीं पड़ा है।

इसका कारण सब जानते हैं।

सिर्फ प्रशासन या राज्य सरकार को असली कारण का पता नहीं है।

पता है भी तो उस कारण को दूर करने में बिहार सरकार असमर्थ है।

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एक पुरानी बात

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नब्बे के दशक में एक रेल पुलिस थाने के थाना प्रभारी

ने मुझे बताया था कि हमारा उच्च अधिकारी कहता है कि चोरों से ट्रेन के पेसेंजर का बक्सा चोरी करवाओ।उसमें से गहना-गुरिया बेच कर हमें अधिक से अधिक पैसे पहुंचाओ।

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2 मई 24 


बुधवार, 1 मई 2024

 मेरे फेसबुक वाॅल से

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   जेहाद का खुलेआम आह्वान

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 प्रतिबंधित जेहादी संगठन ‘सिमी’ के सुप्रीम 

  कोर्ट में वकील थे सलमान खुर्शीद

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सुरेंद्र किशोर

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पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की भतीजी मारिया आलम खान(समाजवादी पार्टी )ने अपनी बिरादरी के लोगों से ‘‘वोट जेहाद’’ करने की सार्वजनिक रूप से अपील की है।

 इसको लेकर चाचा-भतीजी पर केस दायर हुआ है।

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं।

 उत्तर प्रदेश कांग्रेस के तब के अध्यक्ष 

सलमान खुर्शीद तो प्रतिबंधित जेहादी संगठन सिमी के सुप्रीम कोर्ट में वकील रह चुकेे हैं।  

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1977 में अलीगढ़ में स्थापित सिमी यानी स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आॅफ इंडिया, जमात ए इस्लामी से जुड़ा हुआ था।

पर, जब सन 1986 में सिमी ने ‘‘इस्लाम के जरिए भारत की मुक्ति’’ का नारा दे दिया तो 

जमात ए इस्लामी हिंद ने सिमी 

से अपना संबंध तोड़ लिया।

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सन 2001 में जब ‘सिमी’ पर वाजपेयी  सरकार ने प्रतिबंध लगाया तो प्रतिबंध के खिलाफ सलमान खुर्शीद सिमी के सुप्रीम कोर्ट में वकील बन गये।

सिमी ने प्रतिबंध के खिलाफ अदालत की शरण ली थी।पर,अदालत से उसे कोई राहत नहीं मिली।

कोई कह सकता है कि वकील तो किसी का भी वकील बन सकता है।

  तो क्या यह पूछा जा सकता है कि सलमान खुर्शीद कभी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के वकील बनना पसंद करेंगे ?

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    अटल सरकार ने ही नहीं 

  बल्कि मनमोहन सरकार ने भी 

   सिमी पर प्रतिबंध लगाया था।

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मन मोहन सिंह सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि ‘‘सिमी के लोग जेहाद का प्रचार कर रहे हैं और कश्मीर में आतंकवादियों की पूरी मदद

कर रहे हैं।’’

(.टाइम्स आॅफ इंडिया --21 अगस्त 2008)

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केरल के डी.जी.पी.ने केरल हाईकोर्ट को बताया था कि ‘‘सिमी के लोगों ने ही पी.एफ.आई.यानी पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया बनाया है।’’

याद रहे कि पी.एफ.आई.ने हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देने का लक्ष्य तय किया है।

जांच एजेंसियों के अनुसार,इस उद्देश्य से पी.एफ.आई. इस देश में हथियारबंद कातिलों दस्ता बना रहा है।

पी.एफ.आई.ने कहा है कि जिस दिन 10 प्रतिशत मुसलमान भी हमारे साथ आ जाएंगे,हम भारत को इस्लामिक देश बना देंगे।

इसका मतलब है कि भारत के 10 प्रतिशत मुस्लिम भी उसके साथ नहीं हैं।यह इस देश के लिए शुभ लक्षण है।जो नहीं हैं,उन्हें धन्यवाद।

किंतु दूसरी ओर लगभग सारे तथाकथित सेक्युलर दल सिमी और पीएफआई के साथ रहे हैं।याद कीजिए कि शाहीन बाग के धरने में एकजुटता दिखाने के लिए इस देश के किन किन दलों के कौन कौन नेता गये थे।

उस धरने को विदेशी पैसे पी एफ आई ने ही आयोजित किया था।

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पी.एफ.आई.के राजनीतिक संगठन एस.डी.पी.आई. से कांग्रेस का पुराना तालमेल चल रहा है।

पी.एफ.आई. की मदद से ही राहुल गांधी नायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं।पी.एफ.आई.-एस.डी.पी.आई. ने ही पिछले विधान सभा चुनाव में कर्नाटका और तेलांगना में मुसलमानों के अधिकतर वोट सिर्फ कांग्रेस को दिलवाये।

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याद रहे कि सलमान खुर्शीद, हिन्दुत्व की तुलर्ना आइ. एस. आई. एस. और बोको हरम से कर चुके हैं।

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     पाॅपुलर फं्रट आॅफ इंडिया से 

  हामिद अंसारी का कैसा रिश्ता 

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सितंबर, 2017 में पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी केरल के कोझीकोड में आयोजित महिलाओं के एक सम्मेलन में शामिल हुए थे।

वह महिला संगठन पाॅपुलर फं्रट आॅफ इंडिया से संबद्ध है।

 क्या हामिद साहब को फ्रंट की 2047 वाली योजना का तब पता नहीं था ?

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 क्या इस देश के वे तथाकथित सेक्युलर नेता देश से माफी मांगेंगे जो वर्षों तक आई.एम. और पी.एफ.आई. के पूर्ववर्ती संगठन सिमी  को छात्रों का एक मासूम संगठन बताते रहे ?

 एक तरफ सिमी अखबारों में बयान देेकर यह कहता रहा कि हमारा उद्देश्य 

हथियारों के बल पर इस देश में इस्लामिक शासन कायम करना है।दूसरी ओर अनेक राजनीतिक व बौद्धिक संगठन सिमी का बचाव करते रहे।

सिमी ने कई बार यह घोषणा की कि वह हथियारों के बल पर पूरी दुनिया में इस्लाम का शासन कायम करना चाहता है। आश्चर्य है कि इसके बावजूद इस देश के कई बुद्धिजीवी और अनेक नेता सिमी को छात्रों का निर्दोष संगठन बताते रहे।

सिमी के बिहार जोन के सचिव रियाजुल मुसाहिल ने 20 सितंबर 2001 को कहा था कि ‘‘कुरान हमारा संविधान है। यदि भारतीय संविधान का कुरान से टकराव होता है तो हम संविधान से बंधे हुए नहीं हैं। हम भारत सहित पूरी दुनिया में खलीफा का शासन चाहते हैं।’’ 

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 अहमदाबाद धमाकों के बाद पकड़े गए सिमी सदस्य अबुल बशर ने बताया था कि ‘‘सिमी की इस नीति से प्रभावित हूं कि लोकतांत्रिक तरीके से इस्लामिक शासन संभव नहीं है। उसके लिए एकमात्र रास्ता जेहाद है।’’

याद रहे कि 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में एक साथ 21 बम विस्फोट हुए थे जिनमें 56 लोगों की जानें गयीं थीं। इंडियन मुजाहिदीन ने विस्फोट की जिम्मेदारी ली थी। याद रहे कि सिमी के सदस्य ही आई.एम. में सक्रिय हो गये थे। 

सिमी के अहमदाबाद के जोनल सेके्रट्री साजिद मंसूरी ने 2001 में एक मीडिया से  बातचीत  में कहा था कि ‘‘जब हम सत्ता में आएंगे तो सभी मंदिरों को नष्ट कर देंगे और वहां मस्जिद बना देंगे।’ मंसूरी का बयान 30 सितंबर 2001 के  अखबार में छपा था। उपर्यक्त तथ्य  सिमी-इंडियन-पी एफ आई की कार्य शैली को समझने के लिए पर्याप्त होना चाहिए।

2012 में पश्चिम बंगाल के डी.जी.पी.एन.मुखर्जी ने कहा था कि सिमी के जरिए आई.एस.आई.ने माओवादियों से तालमेल बना रखा है।

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हरि अनंत हरि कथा अनंता !

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1 मई 24