शनिवार, 25 जून 2022

 वी.पी.सिंह के जन्म दिन के अवसर पर

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सभी जातियों की महिलाओं को भी विशेष 

अवसर देने के पक्षधर थे डा.लोहिया

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काश ! ऐसा मान कर यदि वी.पी.सिंह सरकार ने 

आरक्षण लागू किया होता

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आरक्षण का कर्पूरी फार्मला उदाहरण के 

रूप में पहले से मौजूद था

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सुरेंद्र किशोर

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‘‘भले मेरी टांग टूट गई,किंतु मैंने गोल कर दिया।’’

प्रधान मंत्री पद से हटने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने यही बात कही थी।

उन्होंने पिछड़ों के लिए आरक्षण का फैसला किया और भाजपा ने उनकी सरकार से समर्थन वापस कर लिया।

एल.के.आडवाणी ने कहा था कि यदि मंडल नहीं होता तो मंदिर आंदोलन भी नहीं होता।

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डा.राम मनोहर लोहिया की आरक्षण नीति का पालन किया होता तो शायद उनकी टांग नहीं टूटती।

मंडल आयोग लागू करने के कारण वी.पी.सिंह न अगड़ों के प्यारे रहे और न ही पिछड़ों के अपने बन सके।

याद रहे कि डा.लोहिया हर जाति व समुदाय की महिलाओं को

भी पिछड़ा ही मानते थे।

यदि आरक्षण होना था तो उसका लाभ महिलाओं को भी मिलना चाहिए था।पहले नहीं तो अब मिले।

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संविधान के अनुच्छेद-340 में यह दर्ज है कि ‘‘सरकार  सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछडे़ वर्गों की दशाओं के अन्वेषण और उनकी कठिनाइयों को दूर करने के उपाय करेगी।’’

  मंडल आयोग और उससे पहले काका कालेलकर आयोग उसी अनुच्छेद के तहत बना।

 इस अनुच्छेद के कार्यान्वयन पर विचार करते समय सरकार को एक काम करना चाहिए था ।

वह आयोग को यह जिम्मेदारी भी सौंपती कि वह समाज में हर जाति की महिलाओं की दशा पर अलग से विचार करता।

यदि मंडल आयोग ने यह काम नहीं किया तो आरक्षण लागू करने से पहले यह काम वी.पी.सिंह सरकार को कर देना चाहिए था।

उसमें तीन प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षण था।

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वैसे वी.पी.सिंह को याद करने के कुछ अन्य कारण भी हैं।

वी.पी.सिंह ने एक ईमानदार नेता थे।

वे राजनीति में वंशवाद के खिलाफ थे।

उन्होंने व्यापक हित में आरक्षण लागू करते समय 

अपनी जाति के हितों का भी ध्यान नहीं रखा।

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उनके बोफोर्स और मंडल आरक्षण के कारण कांग्रेस की ऐसी दुर्दशा हुई कि उसके बाद कभी उसे लोक सभा में बहुमत नहीं मिल सका।

  मैं इस आरोप से सहमत नहीं हूं कि वी.पी.सिंह ने अपनी गद्दी बचाने के लिए मंडल आरक्षण लागू कर दिया।

यह इतना बड़ा काम था जिसके हो जाने से हलचल मचने ही वाली थी।मची भी।

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गुरुवार, 23 जून 2022

 कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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रेलवे संपति और यात्रियों की सुरक्षा के लिए कोई भी खर्च 

सस्ता ही पड़ेगा

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ताजा घटनाओं से एक बार फिर एक गंभीर बात सामने आई  है।

वह यह कि उपद्रवियों से रेलवे संपत्ति और यात्रियों के जान-माल बचाने के मौजूदा उपाय पर्याप्त नहीं हैं।

रेलवे और यात्रियों की रक्षा के लिए जरूरत के अनुसार कितनी भी अधिक राशि सरकार खर्च कर दे,वह बेकार नहीं जाएगी।

 देश में जारी तनावपूर्ण राजनीतिक व गैर राजनीतिक स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि रेलवे पर खतरा बढ़

सकता है।

  इस बीच यह अच्छी बात हुई है कि मौजूदा रेल मंत्री  अश्विनी वैष्णव ने स्थिति की गंभीरता को समझा है।

वे कह रहे है कि ट्रेनों की सुरक्षा के लिए वे कड़े कानून लाएंगे।

रेलवे अधिनियम को मजबूत बनाया जाएगा।

साथ ही, उन्हें आर.पी.एफ.को और कानूनी अधिकार देने होंगे।साथ ही, उनकी संख्या बढ़ानी होगी।

रेलवे की सुरक्षा में लगे सरकारी सेवकों के बीच जारी भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता की नीति अपनानी होगी।

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  सामान्य बहाली के बाद ‘अग्निपथ’

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गत दो साल से भारतीय सेना में बहाली नहीं हो सकी है।

इसके लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है।

परिस्थितियां जिम्मेदार रहीं।

इस बीच अग्नि पथ योजना के तहत बहाली की प्रक्रिया शुरू होने वाली है।

यदि अग्नि पथ योजना से पहले ‘सामान्य सेना बहाली’ का एक छोटा दौर गुजर जाता तो अग्नि पथ के खिलाफ इतना हंगामा नहीं होता।

वैसे अग्नि पथ योजना देश की सुरक्षा-व्यवस्था को मजबूत करने के लिए बहुत जरूरी है।

चीन सहित दुनिया के कई प्रमुख देश सैनिकों की संख्या घटाकर उससे हो रही बचत के पैसों से आधुनिकत्तम हथियारों का संग्रहण कर रहे हैं।अब युद्ध सैनिकों से कम ताकतवर हथियारों से अधिक होंगे। 

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     राजमार्गों पर गलत पार्किंग

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केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी अभिनव प्रयोग करते 

रहते हैं।

उनका ताजा प्रयोग न सिर्फ कारगर हो सकता है,बल्कि हजारों लोगों की आय का जरिया भी बन सकता है।

 उन्होंने कहा है कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर गलत पार्किंग की फोटो भेजने वाले को 500 रुपए का इनाम मिलेगा।

  वाहन मालिक पर एक हजार रुपए का जुर्माना होगा।

इन दिनों असंख्य हाथों में स्मार्ट फोन हैं।

उनमें से अधिकतर लोग बेरोजगार हैं।

उनमें से भी अनेक लोग सड़कों पर गलत पार्किंग से रोज -रोज पीड़ित भी होते रहते हंै।

इसलिए लोग फोटो तो भेजेंगे।

पर, इनाम की राशि बढ़ा देनी चाहिए।

कम से कम तीन हजार रुपए इनाम रखिए।

वाहन चालक पर 5000 रुपए का जुर्माना कीजिए।

जब ड्राइविंग लाइसेंस नहीं रहने पर 5 हजार फाइन है और गति की निर्धारित सीमा का उलंघन करने पर 4 हजार फाइन है तो फोटो खींचने का खतरा उठाने पर इतना कम इनाम क्यों ?

फोटो लेने वाले को कम से कम अपने दो बलवान साथियों के साथ ही वाहन के पास जाना चाहिए।

 अन्यथा, उधर से हमले का खतरा है।प्रतिरक्षा में लगने वाले  उन साथियों को भी तो कुछ इनाम मिल सके,इतनी राशि तय कीजिए। 

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बहाली में धांधली के लिए मृत्युदंड ?

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  कर्नाटका की एक अदालत ने एक ऐसी टिप्पणी की है जिस ओर देश का ध्यान जाना चाहिए।जिस मुद्दे पर टिप्पणी की है,वह समस्या देशव्यापी है।

कलबुर्गी के सत्र न्यायाधीश ने कहा है कि पुलिस अफसर की बहाली में धांधली की गंभीरता उन अपराधों से भी अधिक गंभीर है जिन अपराधों में मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।

  याद रहे कि कर्नाटका में पुलिस उप निरीक्षक के पद के लिए जिन 545 लोगों का चयन हुआ ,उनमंे से 75 प्रतिशत उम्मीदवारों ने प्रतियोगी परीक्षा में धांधली की।

उस धांधली में एक भाजपा नेत्री की भी संलिप्तता पाई गई।

अदालत ने उस नेत्री की जमानत की अर्जी नामंजूर करते हुए उक्त टिप्पणी की।

कर्नाटका सरकार ने उस परीक्षा को रद कर दिया है।

बेहतर तो यह होता कि ऐसी धांधलियों को लेकर देश की अन्य अदालतें भी ऐसी ही गंभीरता दिखाती और विधायिकाएं इस अपराध के लिए मृत्यु दंड नहीं तो आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान करतीं।

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भूली -बिसरी याद

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देश के पूर्व उप प्रधान मंत्री दिवंगत यशवंतराव चव्हाण से अस्सी के दशक में  किसी ने पूछा था,

‘‘राजनीति में नहीं आए होते तो क्या बनते ?’’

उन्होंने कहा कि ‘‘तब मैं मराठी साहित्यकार होता।

अच्छा साहित्यकार होता।

लिखने-पढ़ने में मेरी दिलचस्पी शुरू से रही है।

मराठी में अपनी जीवनी लिख रहा हूं।’’

जब उनसे पूछा गया कि मराठी ही क्यों ?

उन्होंने कहा कि ‘‘इसलिए कि मैं मराठी में अच्छी तरह अपने को व्यक्त कर सकता हूं।’’

पूर्व राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद का उदाहरण देते हुए चव्हाण साहब ने कहा कि 

‘‘राजेन्द्र  बाबू भी अंग्रेजी बहुत अच्छी लिखते थे।

लेकिन उन्होंने मुझसे कहा था कि मैं हिन्दी में ज्यादा अच्छी तरह लिख सकता हूं।

राजेंद्र बाबू ने अपनी जीवनी हिन्दी में ही लिखी।’’ 

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और अंत मंे

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नूपुर शर्मा प्रकरण में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार की टिप्पणी संतुलित रही।

उन्होंने कहा कि ‘‘ भाजपा ने जब एक्शन ले ही लिया तो विरोध-प्रदर्शन का कोई मतलब नहीं।’’

तथाकथित सेक्युलर दल ,नेता और बुद्धिजीवी भी ऐसे मामलों में इसी तरह का रुख अपनाया करते तो समस्या के समाधान में सुविधा होती।

याद रहे कि किसी भी समस्या के समाधान के लिए अपने देश के संविधान-कानून वगैरह पर्याप्त रूप से सक्षम हैं।

उसका इस्तेमाल संतुलित रूप से और किसी भेदभाव के बिना होना चाहिए।

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प्रभात खबर

पटना

20 जून 22


    ‘राष्ट्रपति को रबर स्टांप बना देना 

   चाहते थे राजीव गांधी’

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ज्ञानी जैल सिंह ने कहा था कि प्रधान मंत्री राजीव गांधी को बरखास्त करने का मेरा कोई इरादा नहीं था

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सुरेंद्र किशोर

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‘‘प्रधान मंत्री राजीव गांधी सरकार ने राष्ट्रपति पद को रबर स्टांप की तरह इस्तेमाल करना चाहा था।’’

यह बात खुद पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कही थी।

यह सब उस पुस्तक में दर्ज है जो जैल सिंह के जीवन पर

मनोहर सिंह बत्रा ने लिखी है।

ज्ञानी जैल सिंह के अनुसार ‘‘राजीव सरकार के कुछ मंत्री तो राष्ट्रपति (यानी जैल सिंह )को नीचा दिखाने के लिए षड्यंत्र रचने और व्यंग्य वाण छोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे।’’

    बत्रा की पुस्तक के अनुसार, पूर्व राष्ट्रपति जैल सिंह ने कहा कि ‘‘राजीव गांधी के प्रधान मंत्री बनने के तीन-चार दिनों के भीतर ही उनसे मतभेद पैदा होने लगे थे।

मैं राजीव गांधी से मिलना चाहता था।

लेकिन मुझे महसूस हुआ कि उन्होंने मेरी उपेक्षा करनी शुरू कर दी।

एक समारोह में मैंने राजीव गांधी से कहा कि मुझे आपसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं।

इस पर श्री गांधी ने कहा कि मैं निश्चित रूप से अरुण सिंह या अरुण नेहरू को आपके पास भेजूंगा।’’

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 कोरोना तो अभी गया नहीं,ं

उधर से अगली लहर की आहट भी है !

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सुरेंद्र किशोर

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शादी हो या श्राद्ध,

जन्म दिन हो या कोई और समारोह।

कम से कम लोगों को अपने यहां बुलाइए। 

क्योंकि कोरोना अभी गया नहीं है।

उधर से अगली लहर की आहट भी आ रही है।

याद है न पहली और दूसरी लहर की की विभीषिका ?!!

बड़े -बड़े वी वी आई पी भी न आॅक्सीजन दिलवा पा रहे थे और न बेड !

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जो लोग कहीं जुटें, वे दो गज की दूरी बनाए रखें।

मुंह से मुंह सटाकर तो कभी बात न करें।

छोटी भीड़ में जाने पर भी मास्क लगाना न भूलें। 

यानी, जितने अतिथियों को बुलाना अति आवश्यक हो,सिर्फ उन्हें ही बुलाइए।

कोई न आ पाए तो उस पर नाराज पर होइए।

जान है तो जहान है !

जिन्दगी रहेगी तो एक-एक करके बाद में भी भेंट -मुलाकात होती रहेगी।

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23 जून 22



 वंशवादी-परिवारवादी दल का हश्र

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यदि किसी वंशवादी -परिवारवादी राजनीतिक दल का उत्तराधिकारी

अदूरदर्शी हो,अयोग्य हो और सत्तालोलुप हो,तो उस दल का वही हश्र होता है जो शिवसंेना का हो रहा है।

   ऐसे अन्य दलों का भी देर -सबेर यही हश्र होना है जिन दलों के उत्तराधिकारी योग्य नहीं हैं।

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   याद रहे कि उद्धव ठाकरे ने मुख्य मंत्री पद के लिए बाल ठाकरे की राजनीति की मूल स्थापनाओं को भी तिलांजलि दे दी है।

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सुरेंद्र किशोर

22 जून 22 


गुरुवार, 16 जून 2022

    भारत में तैयार शुद्ध जैविक सत्तू इन दिनों अमेरिका में एक हजार रुपए प्रति किलो बिक रहा है।

वहां उस सत्तू की जितनी डिमांड है,उतनी सप्लाई नहीं हो पा रही है।

  वही सत्तू भारत में 319 रुपए किलो बिक रहा है।

मैं उसे ही खरीदता हूं।

सामान्य सत्तू छपरा में सौ रुपए किलो और पटना में करीब 150 रुपए किलो बिक रहा है।

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मैंने गांव में बचपन में जो सत्तू खाया है ,वही स्वाद इस जैविक सत्तू में है।

जैविक सत्तू में पौष्टिता भरपूर है।

हमलोग गांव में देखते थे कि हमारे मजदूर रोज दोपहर में सत्तू ही खाते थे।

हमलोग उसे खेत में पहुंचाते थे।

 वही खाकर वह हट्ठा-कट्ठा रहता था।

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सुरेंद्र किशोर

16 जून 22


मंगलवार, 14 जून 2022

  कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है,

सतर्क रहने की जरूरत

--केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने ठीक ही कहा है कि महामारी अभी खत्म नहीं हुई है।

कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करते रहिए।

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मंत्री तो हमें चेता ही सकते हैं।

हमें चाहिए कि हम भीड़भाड़ वाली जगह में, जरूरी हो तभी जाएं।

वह भी कोरोना नियमों का पालन करते हुए।

बच्चे और बुजुर्ग अधिक सावधानी बरतें।

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किसी अवसर पर कोई आपको बुला रहे हैं और यदि वहां भीड़ जुटने की आशंका है तो हो सके तो वहां जाना टाल दीजिए।

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जान है तो जहान है।

जान बचेगी तो जिन्होंने आज बुलाया है,उनके यहां आप बाद में भी जाकर उनसे माफी मांग सकते हैं।

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14 जून 22

 


 संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण बंद हो

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नूपुर-नवीन प्रकरण के बाद अब टी.वी.चैनलों पर 

लाइव डिबेट के बदले संपादित डिबेट प्रसारित हो 

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सुरेंद्र किशोर

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संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण न करके कार्यवाही को पहले संपादित करके ही उसे प्रसारित किया जाना चाहिए।

क्योंकि पीठासीन पदाधिकारियों का यह आदेश अब बेमतलब हो गया है कि

 ‘‘यह अंश सदन की कार्यवाही से निकाल दिया जाएगा।’’

अरे भई ,इसे तो देश-दुनिया ने पहले ही देख-सुन लिया।

इसे बाद में निकाल कर आप क्या हासिल करेंगे ?

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नूपुर -नवीन प्रकरण के बाद सरकार को चाहिए कि वह हस्तक्षेप करे।

क्योंकि नूपुर -नवीन विवाद के बाद जो दंगे हुए,उसे सरकार को ही तो झेलना पड़ा।आम जन को भी।

अनेक अफसर व कर्मी घायल हुए।संपत्ति नष्ट हुई। 

सरकार टी.वी.चैनलों को अब यह कड़ा निदेश दे कि आप डिबेट को संपादित करके ही प्रसारित करें।

यदि चैनल न मानें तो ऐसे मामलों में चैनलों के मालिकों और संपादकों पर भी उन्हीं दफाओं में मुकदमा चलाया जाए। 

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एक तो अधिकतर टी.वी.चैनल वाले एक साथ बहुत सारे ‘अतिथियों’ को बुलाकर डिबेट में बैठा देते हैं।

(उनमें से कई कुख्यात हैं।अपने घर के किसी

सदस्य से कह कर देखिए कि उस कुख्यात में से एक को आज यहां बुला रहे हैं।

तो सदस्य यह कह सकता है कि उसे ड्राइंग रूम में नहीं बल्कि बरामदे में ही बैठाइएगा।

उस बेचारे कुख्यात की भी गलती कम ही है।

वह तो अपने खुद,दल के और सुप्रीमो के चाल,चरित्र और चिंतन के अनुसार ही तो टी.वी.पर बोलेगा !!)

 उनमें से कई ऐसे हैं जो पूरे डिबेट में कुत्ते की तरह झांव- झांव करते रहते हैं।

या फिर वे दूसरे को बोलने ही नहीं देते।

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क्या कोई विवेकशील व्यक्ति अपने ड्राइंग रूम में ऐसे अशिष्ट अतिथियों को बैठाकर कोई चर्चा कराना चाहेगा ?

कत्तई नहीं।

फिर आपके ड्राइंग रूम में रखे टी.वी.सेट पर ऐसे लोगों का अवतरण क्यों होना चाहिए ?

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14 जून 22

 



      सावधानी हटी,दुर्घटना घटी !

   सोशल मीडिया के इस्तेमाल में सावधानी बरतें

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सुरेंद्र किशोर

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कुछ लोग मेरे फेसबुक वाॅल पर ऐसी-ऐसी बातें लिख मारते है,ं किसी के खिलाफ ऐसे -ऐसे आरोप लगा देते हैं,जिन आरोपों की पुष्टि के लिए उनके पास कोई सबूत नहीं हेाता।

    भले आपके आरोप सही हों,किंतु जब पीड़ित व्यक्ति आप पर ,साथ -साथ मुझ पर भी मानहानि का मुकदमा करेगा तो कोर्ट में उन आरोपों को आप साबित नहीं कर पाएंगे।

फिर क्या होगा ?

आप भी फसेंगे और मैं भी फंसंूगा,वह भी नाहक।

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इसलिए कुछ भी आरोप लगा देने से पहले यह मान लें कि आप पर केस भी हो सकता है।

99 प्रतिशत पीड़ित लोग केस नहीं करते।

किंतु एक व्यक्ति ने भी केस कर दिया,तो उसका नतीजा भुगतना पड़ेगा।

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जिन लोगों ने कोई केस नहीं भुगता है,वैसे ही लोग बिना सबूत के आरोप लिखते रहते हैं।

 याद रखिए।

कोर्ट और अस्पताल के चकर में पैसे भी खर्च होते हैं और थकावट भी बहुत होती है।

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सोशल मीडिया मुफ्त का मंच है तो उसका सदुपयोग कीजिए।

अन्यथा, फेर में पड़िएगा तो बाद में आपको सोशल मीडिया की ओर झांकने की इच्छा भी नहीं रह जाएगी।़

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कुछ लोग व्यक्तिगत बातचीत को भी सोशल मीडिया पर डाल देते हैं।

जरूर डालिए।

किंतु जिन्हें आप उधृत कर रहे हैं,उससे पहले अनुमति ले लीजिए ।

अन्यथा, अगली बार से आपसे वह व्यक्ति कोई बातचीत करना नहीं चाहेगा।

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10 जून 22


 कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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उच्च सदन के लिए एक नेता को राजनीतिक दल एक ही अवसर दें 

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 उच्च सदन यानी राज्य सभा या विधान परिषद में जाने का किसी राजनीतिक कार्यकर्ता या नेता को सिर्फ एक ही अवसर मिलना चाहिए।

 इसके कुछ अपवाद हो सकते हैं।

यदि ऐसा हुआ तो इससे अधिक से अधिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को अवसर मिल पाएंगे।

इससे पार्टी के प्रति नए लोगों का आकर्षण व जुड़ाव बढ़ेगा।

दलों में कार्यकर्ताओं के लिए वेतन या गुजारा-भत्ता का कोई प्रावधान नहीं होता।

कम्युनिस्ट दलों में इसका थोड़ा- बहुत प्रावधान रहता था।

अब भी संभव है कि जहां -तहां कुछ होगा।पर,अब तो खुद कम्युनिस्ट दलों के साधन सूख रहे हैं।

   अधिक से अधिक नेता या कार्यकर्ता बारी -बारी से उच्च सदन में जाएंगे तो रिटायर होने के बाद उनके लिए पेंशन की व्यवस्था होती जाएगी।

 नतीजतन बाद में भी उनके सामने आर्थिक अनिश्चितता नहीं रहेगी।

अभी तो जो कार्यकर्ता घर से अमीर नहीं हैं,उनके लिए अपनी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति कठिन है।

यदि कार्यकर्ता अच्छी मंशा वाला है और ईमानदार है तो वह सक्रिय राजनीति में टिक नहीं पाता।जो ‘व्यावहारिक’ हैं,वे इधर-उधर से जुगाड़ कर लेते हैं।

 अब सांसद-विधायक फंड की ठेकेदारी भी एक उपाय है।

  पर यह सब सबके लिए संभव भी नहीं है।

कभी सी.पी.आई.ने एक ही बार भेजने के नियम का पालन किया था।

पर बाद में उसने भी इस नियम को शिथिल कर दिया था।

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सेवांत लाभ में दिक्कतें

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बिहार के सरकारी कर्मचारियों को सेवांत लाभ हासिल करने में आम तौर पर काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

इसलिए भी कि वर्षों तक बगल की कुर्सी पर बैठे सेवारत कर्मचारी का रवैया भी अपने सेवानिवृत सहकर्मी के प्रति अचानक बदल जाता है।

अपवादों की बात और है।

यह आम चर्चा है कि सेवांत लाभ हासिल करने के लिए नजराना-शुकराना अनिवार्य है।

इससे मुक्ति पाना असंभव नहीं तो कठिन जरूर है।

 कई मामलों में तो सेवानिवृत सेवक भी उस सेवा का लाभ उठाता रहा था जब वह सेवारत था।

 फिर उसे मुक्ति कैसे मिले ?

सरकार चाहे तो मुक्ति संभव है।

 क्यों न रिटायर होने के तीन माह पहले ही कर्मचारियों के नाम सेवांत लाभ की राशियां तय हो जाएं ?

छह माह पहले ही उसकी प्रक्रिया शुरू हो जाए।

इस संबंध में नियम बने।

उसका उलंघन करने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान हो।

वेतन स्थगन,वार्षिक बढ़ोत्तरी पर रोक और निलंबन जैसी  सजाएं अब नाकाफी साबित हो चुकी हंै।कुछ और सोचना होगा।

  यदि किसी के लिए सेवांत लाभ तय करने व देने में कठिनाई हो तो

रिटायरमेंट के छह महीने पहले ही निचले स्तर का पदाधिकारी अपने ऊपर के पदाधिकारी को उसकी लिखित सूचना दे।   

अगले छह महीने में सेवानिवृत कर्मचारियों से, उनके खिलाफ आए एतराजों पर, सफाई ले ली जाए।

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भूमि अधिग्रहण और मुआवजा

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बिहार में सड़कों के विकास की अनेकानेक योजनाओं पर काम चल रहा है।

 इसके लिए जमीन का अधिग्रहण हो रहा है।

सड़कांे के अलावा भी कुछ अन्य योजनाओं के लिए भी जमीन चाहिए।

  पर,जमीन अधिग्रहण में एक खास तरह की समस्या भी आ रही है।

राज्य में जारी आम विकास के कारण अनेक लोगों के पास पैसे आ रहे हैं।

 वे भी अपने लिए जमीन खरीद रहे हैं।इससे जमीन की कीमत बढ़ रही है।

 इस तरह जमीन बेचने वालों के समक्ष दो विकल्प हंै।

  सरकार ने हर इलाके के लिए सर्किल दर तय कर रखी है।

 वह उसी को ध्यान में रखते हुए कुछ बढ़ाकर मुआवजा देती है।पर निजी खरीददार को बाजार मूल्य पर जमीन खरीदनी पड़ती है।

जहां छोटे -बड़े बाजार या शहर विकसित हो रहे हैं, वहां की बाजार दर बहुत अधिक है।कई-कई गुणा अधिक।

सर्किल रेट उसके सामने कुछ भी नहीं।

सरकार यदि विकास के लिए अधिग्रहण करना चाहती है, तो भूमि स्वामी उसे देने को मजबूर हो जाता है।

 यदि वह निजी खरीदार को बेचता तो उसे लाखों-लाख रुपए अधिक मिलते।जब भूमि स्वामी कम पैसे में सरकार को बेचने को मजबूर होता है तो उसमें असंतोष बढ़ता है।

 इस असंतोष को दूर करने के लिए शासन को कुछ उपाय करना चाहिए। 

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भूली-बिसरी याद 

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बात अधिक पुरानी नहीं है।पर, दिलचस्प है।

नब्बे के दशक में बिहार के प्रमुख सी.पी.आई. नेता दिवंगत चतुरानन मिश्र केंद्र सरकार में कृषि मंत्री थे।

 उन्होंने एक जगह लिखा है,

‘‘मेरे पूरे मंत्रित्व काल में कामरेड ए.के. राय ही एकमात्र व्यक्ति थे जिन्होंने आकर पूछा कि यह तो नया काम है, आप कैसा महसूस कर रहे है ?

बाकी साथी तो कुछ काम-धंधा के लिए ही आते थे।

 जब मैंने ए.के. राय को बताया कि यहां बैठकर पूंजीवाद का विकास कर रहा हूं तो वे आश्चर्य में पड़ गए।

उन्होंने पूछा,तब क्यों यहां हैं आप ?

मैंने कहा कि पूंजीवाद में विकास कार्यों में भी दर्द अवश्यम्भावी है।

मैं यही कोशिश कर रहा हूं कि न्यूनत्तम दर्द हो।’’

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और अंत में

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सुप्रीम कोर्ट ने 3 फरवरी, 2022 को कहा था कि 

‘मनी लाउंडरिंग’ का अपराध हत्या से भी अधिक 

जघन्य है।

याद रहे कि प्रिवेंशन आॅफ मनी लाउंडरिंग एक्ट के कुछ कड़े प्रावधानों को समाप्त करने की सुप्रीम कोर्ट से गुहार की गई थी।

  अब जरा याद कर लें कि इन दिनों इस देश के कितने और किन -किन बडे़ नेताओं के खिलाफ इस कानून के तहत मुकदमे चल रहे हैं।

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13 जून 22

  


 उर्वर दिमाग का नकारात्मक इस्तेमाल

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सुरेंद्र किशोर

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वैकल्पिक मीडिया खासकर यू ट्यूबर जमात के एक हिस्से को दाद देनी पड़ेगी !

उसके उर्वर दिमाग के लिए।

कतिपय यू ट्यूबर (सब नहीं)रोज सुबह ‘न्यूज बे्रक’ के नाम पर एक झूठ का आविष्कार करता है।

 दिन भर उसे चलाता रहता है।

शाम होते -होते उसके झूठ की हवा निकल जाती है।

उसके बावजूद वह अगले दिन के लिए एक नए झूठ के सृजन में लग जता है।

उस झूठ को वह अगले दिन चला देता है।

एक बार फिर मुंह की खाता है।

फिर भी वह हार नहीं मानता।

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यह उर्वर दिमाग का दुरूपयोग है।

यदि तुम्हारे पास खबर नहीं मिल रही है तो ‘सूचना के अधिकार’ का इस्तेमाल करो।

वह भी संभव नहीं हो तो बड़े अपराध और भ्रष्टाचार की भुला दी गई कहानियों का फाॅलो अप करो।

यानी यह पता लगाओ कि किसी बड़े अपराध को किस तरह दबा दिया गया है।

 भ्रष्टाचार के गंभीर मामले की जांच को किस तरह अधूरा छोड़ दिया गया है।

इससे वैकल्पिक मीडिया की साख भी बढ़ेगी और लोकप्रियता भी।

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12 जून 22


बुधवार, 8 जून 2022

 डा.राममनोहर लोहिया ने कहा था,‘‘

‘‘संसोपा ने बांधी गांठ ,पिछड़े पावें सौ में साठ।’’

लोहिया जी सभी जातियों -संप्रदायों की महिलाओं को भी पिछड़ा ही मानते थे।

 यानी ,उनका आशय यह था कि साठ प्रतिशत में महिलाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए।

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यदि कोई व्यक्ति पिछड़ा आरक्षण के संदर्भ में लोहिया को उधृत करता है तो वह लोहिया की उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखकर ही करे।

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सुरेंद्र किशोर

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पुनश्चः,

बिहार में जाति आधारित गणना करने का निर्णय हुआ है।

इस संदर्भ में देश भर में तरह -तरह की चर्चाएं हो रही हैं।

एक टी.वी.चैनल पर मैंने वैसी ही एक चर्चा सुनी।

उसमें एंकर साहब लोहिया को गलत ढंग से उधृत कर रहे थे।

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7 जून 22

 


मंगलवार, 7 जून 2022

 कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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सिर्फ योग्य और ईमानदार वी.सी.ही बहाल हांे,इस जरूरत को  कौन करेगा पूरा !

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बिहार में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इस बात की सख्त जरूरत महसूस की जाती रही है कि सिर्फ योग्य और ईमानदार कुलपतियों की ही विश्व विद्यालयों में तैनाती हो।

एक हद तक यह काम हो भी रहा है।पर, कई विश्व विद्यालयों में ऐसा नहीं हो रहा है।कुछ जगह तो स्थिति शर्मनाक है।

 मगध विश्व विद्यालय का मामला ताजा है।

उसके कुलपति रहे डा.राजेंद्र प्रसाद इन दिनों भारी विवादों में हैं।

वैसे यह इस तरह का इकलौता मामला नहीं है।

करीब एक दशक पहले तत्कालीन चांसलर यानी राज्यपाल से एक कांग्रेस विधायक ने सार्वजनिक रूप से यह सवाल कर दिया था कि 

‘‘आज कल आपके यहां वी.सी.का रेट क्या चल रहा है ?’’

ऐसे हालात में केंद्र सरकार और राज्य सरकार को मिल बैठकर इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान कर ही लेना चाहिए।क्योंकि समस्या नई पीढ़ियोें की बर्बादी का है।

यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी दागदार व्यक्ति को बिहार के विश्व विद्यालय का वी.सी.न बनने दिया जाए।

इसके लिए वी.सी.की बहाली का तरीका बदलने की जरूरत हो तो वह काम भी हो ही जाना चााहिए।क्योंकि बिहार की उच्च शिक्षा को बचाने का काम किसी अन्य काम से कम महत्वपूर्ण नहीं है।

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अन्य राज्यों में भी विवाद

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पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु सरकारें वी.सी.बहाल करने के राज्यपाल के अधिकार को समाप्त करने की तैयारी में है।

 केरल के गवर्नर ने तो खुद सी.पी.एम. सरकार से कहा है कि वह हमें चांसलर की जिम्मेदारी से मुक्त कर दे।

   पश्चिम बंगाल के मंत्रिमंडल और वहां के राज्यपाल में इस मामले में भी तनातनी चलती रहती है। 

 चांसलर पद से मुक्त करने के लिए एक राज्य ने विधेयक भी तैयार कर लिया है।

ये बातें तो वैसे राज्यांे के बारे में हैं जहां गैर राजग दलों की सरकारें हैं। 

वहां की इस समस्या का समाधान कठिन लगता है।

किंतु बिहार और केंद्र में तो राजग की ही सरकारंे हंै।

दोनों पक्ष चाहें तो बिहार के विश्व विद्यालयों की आर्थिक व शैक्षणिक दुर्दशाओं  का हल मिल बैठकर खोजा जा सकता है। 

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तेलंगाना के मुख्य मंत्री का प्रचार

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तेलंगाना के मुख्य मंत्री का इन दिनों पूरे देश में प्रचार चल रहा है।

अच्छी बात है।चलना ही चाहिए।उन्होंने अपने राज्य में कुछ ऐसे काम किए भी हंै जिनका प्रचार होना चाहिए।

उन कामों से न सिर्फ उन्हेें राजनीतिक लाभ मिला है,बल्कि आम जनता को भी फायदा हुआ है।

पर,उनका मौजूदा प्रचार का उद्देश्य सीमित नहीं है।

संकेत बता रहे हैं कि के.सी.आर.की नजर 2024 के लोक सभा चुनाव पर है।

उससे भी बड़ा लक्ष्य है।

यानी प्रधान मंत्री की कुर्सी पर उनकी नजर है।

लोकतंत्र में यह चलता ही है।

पर सवाल है कि प्रधान मंत्री पद के लिए  यदि अधिक उम्मीदवार होंगे तो उसका राजनीतिक व चुनावी लाभ किसे मिेलगा ?

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 ब्यायलर विस्फोट की घटनाएं

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पिछले साल बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक कारखाने का ब्यायलर

में विस्फोट हो गया।सात लोगों की जानें चली गईं।

उत्तर प्रदेश के हापुड़ के एक कारखाने में इसी शनिवार को ब्यायलर में विस्फोट हुआ।उसमें 12 लोगों की जानें चली गईं।

इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं।ऐसी घटनाओं में आम तौर पर मजदूरों की ही जानें जाती हैं।

ब्यायलर में विस्फोट के अन्य कारण भी हो सकते हैं।किंतु मुख्य कारण यह होता है कि आम तौर पर उसके रख-रखाव में लापारवाही बरती जाती है।ऐसी घटनाओं के जिम्मेदार लोगों को सबक सिखाने वाली कोई सजा भी नहीं मिल पाती है।

मिलती है तो पता नहीं चलता।सरकार की तरफ से कारखानों के निरीक्षण के लिए तैनात अफसर अपनी भूमिका ठीक ढंग से निभाते हैं ?

मुजफ्फरपुर में गत साल हुई विस्फोट की घटना के लिए कौन जिम्मेदार था ?

या कोई जिम्मेदार नहंीं था ?

कोई जिम्मेदार था तो उसे क्यों सजा मिली ?

क्या मजदूरंो की जान की कोई कीमत नहीं ? 


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भूली बिसरी याद

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सोनिया गांधी ने प्रधान मंत्री पद क्यों स्वीकार नहीं किया,यह जानने के लिए पूर्व प्रधान मंत्री वी.पी.सिंह सोनिया जी से मिलने गए थे।

दोनों के बीच क्या बातें हुईं ?

उसका खुलासा वी.पी.सिंह ने अपने जीवनी लेखक के सामने किया है।

  वे बातें ‘‘मंजिल से ज्यादा सफर’’नामक पुस्तक में दर्ज है।

वी.पी.सिंह बताते हैं.‘‘सोनिया जी ने इस संबंध में दो-तीन बातें कहीं।

उन्होंने कहा कि अगर मैं प्रधान मंत्री पद स्वीकार कर लेती हूं तो बी.जे.पी.को बड़ा भारी हथियार मिल जाएगा।

उससे मेरी पार्टी और मेरी सरकार हमेशा परेशान रहेगी।

भाजपा विदेशी मूल का मुद्दा उठाती रहेगी।

तो मेरा कर्तव्य है कि मैं कांग्रेस और सरकार को इससे बचाऊं।

यह भी हमें सोचना होगा कि ये यानी मेरा प्रधान मंत्री बनना देश के मिजाज के माफिक होगा भी या नहीं ।’’

खैर, यह सच है कि पद अस्वीकार करके सोनिया जी ने उस समय तो पार्टी व सरकार को आशंकित फजीहत से बचा लिया।

किंतु उनके निदेशन में चलने वाली मनमोहन सिंह सरकार ने ऐसा क्या कर दिया कि सन 2014 के लोक सभा चुनाव में  कांगे्रस की सदस्य संख्या 50 के आसपास आकर अटक गई ?

उन कारणों की न तो अब तक पहचान हुई है और न ही उसमें सुधार का कोई रास्ता कांग्रेस को मिला है।

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और अंत में

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सरस्वती सम्मान प्राप्त कन्नड लेखक एस.एल.भैरप्पा ने कहा है कि विद्यालयों के टेक्स्ट बुक्स में सिर्फ तथ्य होने चाहिए।

खास विचारधारा के प्रचार के लिए तथ्यों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा है कि मातृभाषा में ही पढ़ाई होनी चाहिए। 

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प्रभात खबर

पटना 

6 जून 22   



   

 


 तब और अब 

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नेहरू और नेहरू-गांधी परिवार

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सुरेंद्र किशोर

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बात तब की है जब भीमसेन सच्चर पंजाब के मुख्य मंत्री  और सी.एम.त्रिवेदी राज्यपाल थे।

तब शिमला पंजाब में ही था।

विजयलक्ष्मी पंडित शिमला के सर्किट हाउस में रहीं ,पर उन्होंने बिल का पेमेंट नहीं किया।

बकाया बिल ढाई हजार रुपए का था।

  राज्यपाल ने मुख्य मंत्री से कहा कि आप इसे राज्य सरकार के फुटकर खर्चे में शामिल कर लीजिए।

पर,उन दिनों के नेता आज जैसे नहीं होते थे।

सच्चर साहब ऐसा करने को तैयार नहीं हुए।

इसके बदले मुख्य मंत्री ने प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू से इस संबंध में बात की।

अब इस मामले में नेहरू कर बड़प्पपन देखिए।

उन्होंने सच्चर साहब से कहा कि यह तो बड़ी राशि है।

एक बार में तो नहीं किंतु मैं कुछ किश्तों में इसका भुगतान कर दूंगा।

नेहरू ने अपने निजी खाते से पांच किश्तों में चेक के जरिए उस राशि की भुगतान कर दिया।

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नई पीढ़ी के जिन लोगों को मालूम नहीं हो,उनके लिए बता दूं कि विजयलक्ष्मी पंडित जवाहरलाल नेहरू की सगी बहन थीं।

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यह कहानी भीमसेन सच्चर के दामाद ने लिखी है।

उनके दामाद अन्य कोई नहीं बल्कि मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर थे।

बियोंड द लाइन्स के अलावा भी उनकी कई पुस्तकें काफी चर्चित हुईं।

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अन्य अनेक मामलों में आप भले नेहरू पर दोषारोपण कर सकते हैं,पर रुपए-पैसे के मामले में वे अंत तक ईमानदार बने रहे।

  हां,अपनी सरकार में अपने सहकर्मियों के भ्रष्टाचार पर उन्होंने अंकुश नहीं लगाया।

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इसके विपरीत उनके परिजन का हाल जानिए।

इस देश में यदि सचमुच कानून का शासन होता तो अधिकतर परिजन बारी -बारीे से जेल में होते।

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आज भी क्या हाल है ?

नेहरू-गांधी परिवार के दो प्रमुख सदस्य फिलहाल जमानत पर हैं।

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7 जून 22

 


शनिवार, 4 जून 2022

 


दूज के चांद की तरह बढ़ता ‘रेट’ !!!

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    सुरंेद्र किशोर 

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कई दशक पहले की बात है।

दाऊद इब्राहिम का एक खास आदमी 75 लाख रुपए लेकर राज्य सभा की सीट खरीदने के लिए पटना आया था।

  नब्बे के दशक में जब उस व्यक्ति का निधन हुआ तो पता चला कि उसने दाऊद की मदद से दिल्ली में 2500 करोड़ रुपए की अवैध सम्पत्ति बनाई थी।

खैर, इन रुपए से यानी 75 लाख रुपए से एक राज्य सभा और एक विधान परिषद की सीट खरीदनी थी।

विधान परिषद की सीट एक बिहारी नेता के लिए थी।

वह उस महा दलाल का स्थानीय दलाल था।

   उन दिनों ‘रेट’ यही था।

अब तो ‘रेट’ दूज की चांद की तरह बढ़ता जा रहा है।

हालांकि बता दूं कि इन सदनों की  सारी  सीटें न तो तब बिका करती थीं और न ही आज।

  हालांकि सीट के एवज में जो पैसे लिए जाते हैं ,उसे पार्टी फंड में मिला चंदा कहा जाता है।

 तब दिल्ली के राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में दाऊद के लिए सक्रिय वह महा दलाल पटना के फ्रेजर रोड के एक बड़े होटल में ठहरा था।

  सब कुछ पहले से तय था।

स्थानीय दलाल ने किसी हस्ती से बात तय करा दी थी।

यह काम गुपचुप हो जाना था।

पर खुफिया एजेंसी पहले से सक्रिय थी।

 संभव है कि उस महा दलाल की गतिविधियों पर लगातार नजर रखी जाती होगी !!

दिल्ली से पटना तक उस उस महा दलाल के नाम पर  सनसनी फैल गई थी।

संबंधित ‘टिकट दाता’ दल के कर्ताधर्ता भी डर गए।

भारी बदनामी का डर था।

  75 लाख रुपए ‘सीट बिक्रेता’ को दिए जा चुके थे।

फिर भी नेता ने उसे उम्मीदवार बनाने से अंतिम समय में इनकार कर दिया।

पकड़ मं आने के डर से वह महा दलाल दिल्ली भाग गया।

उसका पैसा डूब गया।

पर, उस महा दलाल के स्थानीय दलाल को बिहार विधान परिषद की सीट मिल गई थी या नहीं ,यह बताना यहां जरूरी नहीं है।

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31 मई 22


    अब पटना में भी महाराणा प्रताप स्मारक

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        सुरेंद्र किशोर

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करीब बीस साल पहले एक बड़ी (भूमिहार) हस्ती ने मुझे बताया था कि ‘‘हमारे घर में महाराणा प्रताप की तस्वीर वाला कलेंडर 

टांगने की परंपरा बहुत पुरानी रही है।’’

वे कहना चाहते थे कि महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक रहे हैं।

 मेरा भी यही मानना है कि उन्हें पूरे देश के स्वाभिमान का प्रतीक ही बने रहने दिया जाना चाहिए न कि किसी एक जाति में बांध कर उन्हें देखना चाहिए।

  वैसे महाराणा को राजस्थान के राजपूतों से अधिक भीलों ने मदद की थी।

  भामाशाह ने युद्ध के लिए उन्हें साधन मुहैया कराए।

 पटना के एक ‘अग्रवाल साहब’ ने मुझे बताया था कि हमारे पूर्वज पहले क्षत्रिय ही थे,परिस्थितिवश हम व्यवसाय में आ गए।व्यवसायी बन गए।

पटना में महाराणा प्रताप की मूर्ति लगने जा रही है।

  यह राजपूतों सहित सबके लिए गौरव की बात है।

उस समारोह में यदि बिहार के राजस्थानी समाज को आगे रखा जाए तो बेहतर होगा।

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 आजादी के तत्काल बाद की सरकार ने इतिहास लेखकों को यह हिदायत दे दी थी कि वे छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप की गौरव गाथा न लिखें ।

उससे हिन्दुत्व की भावना फैलेगी।

 इतिहासकारों ने वैसा ही किया।

  घास की रोटी खाने की कथा, दंत कथा बन चुकी है,इसलिए लोग महाराणा प्रताप को भुला नहीं सके।

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शिवाजी और महाराणा प्रताप को उनकी समग्रता से इस देश के विद्यार्थियों को दशकों तक दूर रखा गया।

फिर भी इस देश में ‘हिन्दुत्व’ का उभार क्यों हुआ है ?

(हालांकि असल में वह राष्ट्रवाद की भावना है जिसे स्वार्थी तत्व हिन्दुत्व से जोड़ कर उसे बदनाम करते हैं।

चीन सरकार जेहादी उइगर मुसलमानों से लड रही है।क्या वह वहां के बहुसंख्यक ‘हान’ समुदाय के ‘हानत्व’ के पक्ष में होकर लड़ रही है या अपने देश की रक्षा के लिए राष्ट्रवाद के तहत लड़ रही है ?) 

वैसा इसलिए हुआ क्योंकि कुछ तथाकथित सेक्युलर दल व बुद्धिजीवी कुछ जेहादी तत्वों के साथ मिलकर जाने -अनजाने मध्ययुग दोहराना चाहते हैं।

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    गत 3 मई को ईद के अवसर पर ममता बनर्जी ने एक अल्पसंख्यक भीड़ को संबोधित करते हुए क्यों कहा कि हम ‘काफिर’ नहीं हैं ?

उस भाषण का वीडियो यू टूब पर उपलब्ध है।

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दूसरी ओर,मोहन भागवत कह रहे हैं कि हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग तलाशने की कोई जरूरत नहीं।

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4 जून 22