मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

     वरीय पत्रकार रवींद्र कुमार की नई पुस्तक 

   है ‘‘स्वाधीनता आंदोलन की बिखरी कड़ियां’’

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     सुरेंद्र किशोर

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वरीय पत्रकार रवींद्र कुमार ने ‘‘स्वाधीनता आंदोलन की बिखरी कड़ियां’’ नाम से एक पठनीय पुस्तक लिखी है।

नव बिहार,प्रदीप,हिन्दुस्तान और प्रभात खबर के संपादकीय विभाग के महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके रवींद्र जी मलखाचक गांव के मूल निवासी हैं जो सारण जिले के दिघवारा अंचल में पड़ता है।

  आजादी की लड़ाई में मलखाचक गांव की बड़ी भूमिका रही है।

स्वाभाविक ही है कि उस गांव के एक रचनात्मक मिजाज के पत्रकार उस भूमिका को कलमबद्ध करना चाहे।वह काम रवींद्र जी ने बखूबी किया है।

राजेंद्र काॅलेज, छपरा में रवींद्र भाई मुझसे वरीय छात्र थे।

मैंने उनसे ‘दिनमान’ पढ़ना सीखा। सन 1965 में जब अज्ञेय के संपादकत्व में दिनमान का प्रकाशन शुरू हुआ तो रवींद्र कुमार जी ने प्रारंभ से ही उसे खरीदना और पढ़ना शुरू कर दिया था।

मैंने उन्हीं की देखा-देखी दिनमान पढ़ना शुरू किया।मैं पत्रकार बना तो उसमें दिनमान की बड़ी भूमिका थी।

खैर,इस संस्मरण के जरिए मैंने यह बताया कि स्वाधीनता आंदोलन की बिखरी कड़ियां के लेखक एक गंभीर पत्रकार और सधे हुए लेखक रहे हैं।

कई किताबें उन्होंने लिखी हैं।

 उनकी यह ताजा किताब भी मैं पढ़ूंगा जरूर।क्योंकि उसके जरिए कई नई जानकारियां मुझे मिलेंगी।

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सुरेंद्र किशोर

24 फरवरी 23


 भ्रष्टाचार के सवाल पर सिर्फ दस साल में ही 

पूरी तरह पलटी मार दी आम आदमी पार्टी ने

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सुरेंद्र किशोर

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सन 2013 की जनवरी में मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा 

था कि ‘‘भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए 

अपनी पूरी जिंन्दगी दांव पर लगा दूंगा।’’

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दस ही साल के बाद यानी सन 2023 में आम आदमी पार्टी 

भ्रष्टाचार को लेकर क्या कर रही है ?

जेल में महीनों से बंद अपने मंत्री सत्येंद्र जैन और आज 

गिरफ्तार हुए उप मुख्य मंत्री मनीष सिसोदिया के बचाव में 

जान की बाजी लगाकर वह आंदोलन रही है।

दोनों पर भ्रष्टाचार के गंम्भीर आरोप हैं।

‘आप’को अदालत पर भी भरोसा नहीं है।इसलिए 

वह सड़कों पर है।

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पिछले कुछ दशकों से अपने देश में यत्र तत्र सर्वत्र यह सब बेशर्मी पूर्वक होता आ रहा है।

हर बार जनता ठगी जाती है।

नेतागण, भ्रष्टाचार के खिलाफ पहले आंदोलन करते हंै।

उनसे खुश होकर और अपने लिए कुछ उम्मीद करके जनता 

उन्हें सत्ता दिला देती है।

पर, सत्ता पाकर वे भी उसी धंधे में लग जाते हंै।

अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी भी अलग नहीं साबित हुई।

बल्कि यह जमात कुछ अधिक ही ‘‘.............’’ निकली-

शरद पवार की पार्टी की ही तरह।

सत्येंद्र जैन जेल में भी मंत्री बने हुए हंै।

केजरीवाल ने पहले ही घोषणा कर रखी है कि जेल 

जाने पर हम मनीष सिसोदिया से भी इस्तीफा नहीं लेंगे।

शरद पवार के मंत्री भी जेल में भी मंत्री बने हुए थे।

(सुप्रीम कोर्ट की नाक के नीचे यह अनर्थ हो रहा है।अदालत को 

अपनी पहल से यह देखना चाहिए कि जेल गए मंत्री अपने पद छोड़ दें।) 

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मुख्य मंत्री बनने के बाद की अरविंद केजरीवाल की एक उक्ति यहां पेश है--

‘‘भ्रष्ट क्रियाकलापों में लिप्त किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा।

फिर चाहे वह शीला दीक्षित हों ,भाजपा का कोई नेता हो या फिर हमारी अपनी ही  पार्टी का कोई सदस्य हो।’’

  अरविंद केजरीवाल ने कई साल बीत जाने के बाद भी पूर्व मुख्य मंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ कोई कार्रवाई न खुद की और न ही लोकहित याचिका के जरिए करवाई।

 नहीं की तो उसी से यह लग गया था कि दिल्ली के नए मुख्य मंत्री को भ्रष्टाचार से अब कोई परहेज नहीं है।

इसी तरह ममता बनर्जी ने बंाग्ला देशी घुसपैठियों का सवाल उठा कर वाम मोरचा को सत्ता से हटाया।अब उन्हंीं बांग्लादेशियों व मुस्लिम मतों के बल पर ममता सत्ता में हैं।ं

वह अब कहती हैं कि बांग्लादेशियों को यदि पश्चिम बंगाल से निकाला जाएगा तो खून की नदी बह जाएगी।

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ऐसे नेताओं की संख्या इस देश में बढ़ती ही जा रही है।

ऐसे में क्या इस स्थिति का लाभ एक दिन कोई क्रूर तानाशाह नहीं उठा लेगा ???

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27 फरवरी 23   


   

राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ की कोशिश 

कामयाब हुई तो देश के लोकतंत्र की छवि सुधरेगी

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सुरेंद्र किशोर

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जो काम करीब ढाई दशक पहले संसद की छह दिनों की गंभीर चर्चा के बावजूद नहीं हो सका ,उसे राज्य सभा के मौजूदा सभापति जगदीप धनखड़ ने पूरा करने का बीड़ा उठा लिया है।

  वह असंभव सा दिखने वाला काम है संसद की कार्यवाही में   अनुशासन और शालीनता लाने का एक बहुत जरूरी काम।

  सभापति की पहल से कई हलकों में उम्मीद तो बंधी है।

क्योंकि सभापति दृढ संकल्प वाले व्यक्ति माने जाते हैं।

सभापति ने राज्य सभा के 12 सदस्यों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का मामला संबंधित समिति को सौंप दिया है।

   उन पर सदन की कार्यवाही में बार -बार बाधा पहुंचाने का आरोप है।

  देखना है कि इस पर विशेषाधिकार समिति कौन सा कठोर फैसला करती है।

 अब जरा सन 1997 की उस ऐतिहासिक चर्चाओं को हम याद कर लें।

   आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर छह दिनों तक संसद के सत्र चले।

कोई दूसरा काम नहीं हुआ।

अपने विशेष सत्र में दोनों सदनों ने प्रस्ताव पास किया।

  कहा गया कि  ‘‘संसद ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारत के भावी कार्यक्रम के रूप में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया।

प्रस्ताव में भ्रष्टाचार को समाप्त करने ,राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त करने के साथ -साथ चुनाव सुधार करने ,जनसंख्या वृद्धि,निरक्षरता और बेरोजगारी को दूर करने के लिए जोरदार राष्ट्रीय अभियान चलाने का संकल्प किया गया।’’

   उस प्रस्ताव को सर्वश्री अटल बिहारी वाजपेयी,इंद्रजीत गुप्त,सुरजीत सिंह बरनाला,कांसी राम,जार्ज फर्नांडीस, शरद यादव,सोम नाथ चटर्जी,एन.वी.एस.चितन,मुरासोली मारन,मुलायम सिंह यादव,डा.एम.जगन्नाथ,अजित कुमार मेहता,मधुकर सरपोतदार,सनत कुमार मंडल,वीरंेद्र कुमार बैश्य ,ओम प्रकाश जिंदल और राम बहादुर सिंह ने सामूहिक रूप से सदन में पेश किया था।

 यह प्रस्ताव आने की भी एक खास पृष्ठभूमि थी।

सन् 1996 के लोक सभा चुनाव में विभिन्न दलों की ओर से 40 ऐसे व्यक्ति लोक सभा के सदस्य चुन लिए गए थे जिन पर गंभीर आपराधिक मामले अदालतों में चल रहे थे।

उन में से दो बाहुबली सदस्यों ने लोक सभा के अंदर ही चलते सत्र में एक दिन आपस में मारपीट कर ली।

  इस शर्मनाक घटना को लेकर अनेक नेता शर्मसार हो उठे।  उनलोगों ने तय किया कि ऐसी समस्याओं पर सदन में विशेष चर्चा की जाए और इन्हें रोकने के लिए कदम उठाए जाएं। वक्ताओं ने सदन में देशहित में भावपूर्ण भाषण किए।

पर,संकल्प को पूरा करने की दिशा में बाद के वर्षों में कोई खास ठोस काम नहीं हुआ।

बल्कि उससे उलट सदन में हंगामा और शोरगुल बढ़ता चला गया है।

  जिन मुद्दों और समस्याओं को लेकर  हमारे नेताओं ने तब संसद में भारी चिंता प्रकट की थी,उन मामलों में इस देश की हालत तब की अपेक्षा बाद के वर्षों में और बिगडती चली गई है।

  राजनीति में अपराधी और भ्रष्ट तत्वों का पहले की अपेक्षा अब अधिक बोलबाला है।

 हाल के वर्षों में यानी नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद बुराइयों को कम करने की दिशा में कुछ ठोस काम जरूर हुए हैं।

पर,वे नाकाफी माने जा रहे हैं।

  जब आज की अपेक्षा कुछ बुराइयां कम थीं, तब हमारे नेताओं ने सन 1997 में सदन में क्या- क्या कहा था,उसकी कुछ बानगियां यहां पेश हैं।

  इससे भी यह पता चलेगा कि इन समस्याओं को हल करना अब और भी कितना जरूरी हो गया है। 

  लोक सभा में प्रतिपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने बहस का समापन करते हुए तब कहा था कि ‘‘एक बात सबसे प्रमुखता से उभरी है कि भ्रष्टाचार को समाप्त किया जाना चाहिए।इस बारे में कथनी ही पर्याप्त नहीं,करनी भी जरूरी है।

उन्होंने यह भी कहा था कि राजनीति के अपराधीकरण के कारण भ्रष्टाचार बढ़ा है।’’

 पूर्व प्रधान मंत्री एच.डी.देवगौड़ा ने कहा कि ‘‘भ्रष्टाचार के खिलाफ सभी दलों को मिलकर लड़ाई लड़नी चाहिए।’’

  तत्कालीन रेल मंत्री राम विलास पासवान ने कहा कि ‘‘देश के सामने उपस्थित समस्याओं के हल के लिए सभी दलों को मिल बैठकर ठोस कदम उठाने चाहिए।’’

  तत्कालीन स्पीकर पी.ए.संगमा ने तो आजादी की दूसरी लड़ाई छेड़ने का आह्वान कर दिया।

    पर,इस बीच इस देश के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह रही  कि कुछ प्रमुख दलों के टिकट पर लोक सभा चुनाव में विवादास्पद छवि के लोग जीत कर आते रहे हैं।

  1997 में संसद में जो प्रस्ताव सर्वसम्मत से पास हुआ था,उसे भाजपा नेता श्री वाजपेयी ने पेश किया था।यह भी दुर्भाग्यपूर्ण ही रहा कि 1997 के बाद के कुछ वर्षों में राजनीति के अपराधीकरण व भ्रष्टीकरण के खिलाफ जो भी कदम उठाए गए,वे मुख्यतः चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट की पहल पर ही उठाए गए।

इस मामले में न तो विधायिकाओं में शांति बनाए रखने केी दिशा में कोई ठोस काम हुआ,न ही अन्य मुद्दों पर बीच की सरकारों ने अपने 1997 के संकल्प का पालन किया।

हां, नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद कई क्षेत्रों में स्थिति सुधर रही है।पर,विधायिकाओं में हंगामों को लेकर स्थिति बिगड़ती ही जा रही है।

उम्मीद है कि राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ का प्रयास सफल होगा ताकि देश के लोकतंत्र की छवि सुधरे।

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वेबसाइट ‘मनी कंट्रोल हिन्दी’ पर 27 फरवरी, 23 को प्रकाशित 


 ताजा सर्वेक्षण के अनुसार बिहार में 

शराबबंदी की सार्थकता सिद्ध

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    सुरेंद्र किशोर

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ताजा सर्वेक्षण के अनुसार बिहार में गत सात साल में कुल एक करोड़ 82 लाख लोगों ने शराब छोड़ दी है।,

इतना ही नहीं,राज्य के 92 प्रतिशत पुरुष शराब बंदी के पक्ष में हैं तो 99 प्रतिशत महिलाएं चाहती हैं कि शराबबंदी जारी रहे।

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सर्वेक्षण के इस नतीजे ने शराबबंदी की सार्थकता सिद्ध कर दी है।

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इन दिनों महा गठबंधन के बाहर और भीतर से मुख्य मंत्री पर यह दबाव पड़ रहा है कि वे शराब बंदी समाप्त कर दें।

पर, इस मामले में मैं नीतीश कुमार की दृढ इच्छा शक्ति की सराहना करता हूं।

 वास्तव में ,शराबबंदी व्यापक जनहित में हैं।

  जब राजनीतिक वर्ग से शराबबंदी के खिलाफ दबे और खुले स्वर में आवाज उठती है तो मुझे कई पुराने दर्दनाक किस्से याद आ जाते हैं।

यानी, ‘‘थ्री डब्ल्यू’’ने इस देश-प्रदेश के अनेक छोटे- बड़े नेताओं को बर्बाद किया है।

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पुनश्चः मैं शुरू से इस बात की वकालत करता रहा हूं कि मेडिकल आधार पर परमिट के जरिए कुछ लोगों को शराब खरीदने की छूट मिलनी चाहिए।

दरअसल आदतन शराबियों को जब देर तक शराब से अलग रखा जाता है तो उनके शरीर में अजीब डरावना कम्पन होने लगता है।

सन 1977 में जब प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई की सरकार ने देश भर में फेज वाइज शराबबंदी लागू करनी शुरू की थी तो सरकार

ने मेडिकल आधार पर शराब खरीदने की सुविधा मुहैया कराई थी।

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25 फरवरी 23 


      सरकारी दफ्तरों के लिए ‘‘आवेदन 

     प्राप्ति स्वीकृति कानून’’ बने

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        सुरेंद्र किशोर

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यदि आप अपना कोई आवेदन पत्र किसी सरकारी आॅफिस में देना चाहते हैं तो क्या होता है ?

आप चाहते हैं कि उसकी ‘प्राप्ति स्वीकृति’ तत्काल आपको मिल जाए।

पर, क्या ऐसा होता है ?

98 प्रतिशत मामलों में ऐसा नहीं होता।

संबंधित सरकारी सेवक उस आवेदन पत्र को लेकर रख लेता है।आप बहस करने लगते हैं तो वह सेवक आपको डांट कर भगा देता है।(दरअसल सरकारी नौकरी पाते ही वह सेवक से आपका मालिक बन चुका होता है।वह अपनी ड्यूटी को अधिकार समझ लेता हैै।अत्यंत थोड़े सरकारी सेवक ही इसके अपवाद होते हैं।) 

यदि कोई आग्रही आवेदक जिद्द करता है तो वह सेवक प्रतिलिपि पर ऐसा घसीट कर दस्तखत कर देता है कि पता ही नहीं चलता कि उसने क्या लिखा।

  अब आप अगली बार वहां गए तो यह बताने के लिए कोई तैयार ही नहीं होता कि आपने किसे अपना आवेदन पत्र दिया था।

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आवेदन पत्र गायब हो जाने के बाद आपको किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है,वह आप जानें और आपका काम जाने।

फिर आप अपना काम-धंधा छोड़कर दौड़ते रहिए।

इस तरह लाखों-करोड़ों लोग सरकारी बाबुओं के चक्रव्यूह में फंसकर तब तक पीड़ित होते रहते हैं जब तक वे ‘‘शुकराना-नजराना-हड़काना नीति’’ के तहत आत्म समर्पण नहीं करते।

ऐसा लगभग पूरे देश में होता रहता है।

अपने और अपने परिवार के भरण-पोषण और देश के प्रत्यक्ष-परोक्ष विकास के काम को छोड़कर बड़ी आबादी वर्षों तक आॅफिस -आॅफिस करती रहती है।

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क्या इस संबंध में कोई कानून नहीं बन सकता ?

सूचना के अधिकार की तरह ‘‘आवेदन प्राप्ति स्वीकृति का कानून’’ क्यों नहीं बन सकता ?

ऐसा कड़ा कानून बने जिसके तहत उलंघनकारी के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया जाए।

अलग से यह कानून हो कि आपके आवेदन पत्र पर खास अवधि के भीतर हां या ना का फैसला हो जाए।यदि काम न होना हो तो उसका लिखित कारण बता दिया जाए। 

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25 फरवरी 23

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पुनश्चः

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स्वीडन सरकार ने एक कानून बना रखा है।

जो भी व्यक्ति ,चाहे वे जिस किसी देश के हों,स्वीडन सरकार को पत्र लिखेंगे,तो उन्हें सरकार जवाब जरूर देगी।

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बाफोर्स तोप घोटाला कांड के समय लाखों भारतीयों ने बोाफोर्स सौदे की जानकारी के लिए विभिन्न भाषाओं में स्वीडन सरकार को पत्र लिखे थे।

  स्वीडन सरकार ने भारतीय भाषाओं के जानकार को भारत से बुलवाया।उनसे अनुवाद करवाकर उन्हीं की भाषा में जवाब भिजवाया था।

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किसी पिछले पोस्ट में मैंने जब स्वीडन के इस पक्ष की चर्चा की थी तो किसी ने लिखा कि भारत स्वीडन नहीं है।

खैर,मान लिया कि स्वीडन नहीं है।

पर,इस बार यह टिप्पणी मत कीजिएगा कि भारत के लोगों को ‘‘रिसिविंग’’ हासिल करने का भी अधिकार नहीं मिलना चाहिए।


 


     आटा या जेहाद ?

   पाक में दुविधा जारी !

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    --सुरेंद्र किशोर--

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गीतकार जावेद अख्तर ने हाल में लाहौर (पाकिस्तान) जाकर पाकिस्तानियों से कहा कि जिन लोगों ने 26 नवंबर, 2008 को मुम्बई पर हमला किया,वे अब भी यहां आजादी से घूम रहे हैं।

यानी,जावेद ने उनकी जमीन पर जाकर उन्हें उनके मुंह पर आतंकी कह दिया।

फिर भी वहां के श्रोताओं की ओर से जावेद का विरोध नहीं हुआ।

क्यों भई !

इसलिए कि इन दिनों पाकिस्तान ‘आटा’ और ‘जेहाद’ के बीच झूल रहा है।

 पाक टी.वी. आप देखेंगे तो आप पाएंगे कि पाक की एक बड़ी आबादी इन दिनों दोराहे पर है।वहां के कई लोगों को यह कहते हुए आप सुनेंगे कि भारत तो हर क्षेत्र में अच्छा कर रहा है ,किंतु हम ??????

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पिछले ही महीने पाक के प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ ने कहा था कि ‘‘भारत के साथ हमने तीन युद्ध लड़े हैं

और इससे हमारी दुख,गरीबी और बेरोजगारी बढ़ी है।

इस तरह से हम अपना सबक सीख चुके हंै।

अब हम शांति से रहना चाहते हैं।हम भारत से वार्ता चाहते हैं।’’

अभाव की पीड़ा झेल रहे शरीफ साहब ने कहने को तो 

 यह बात कह दी ,पर जब उनपर अतिवादियों का दबाव पड़ा तो उनके आॅफिस ने सफाई देते हुए कहा कि 

  ‘‘जम्मू कश्मीर के विभाजन पर भारत सरकार अपनी कार्रवाई वापस ले।तभी कोई बात होगी।’’

यानी पाक की जनता का एक हिससा जो सोचे किंतु शरीफ साहब के लिए कश्मीर में जेहाद जरूरी है।

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खैर,कुल मिलाकर यह बात सच है कि पाक जन में यह द्विविधा जारी है कि हमें आटा चाहिए या जेहाद।

यह दुविधा अभाव से उपजी है।पहले कोई दुविधा नहीं थी।

 अपने देश को ‘‘आतंक का कारखाना’’ बनाए रखने में उन्हें गर्व का अनुभव होता था।

दरअसल वहां के मदरसों में दी जा रही एक खास तरह की ‘शिक्षा’ का ही वह असर है।

उस खास तरह की शिक्षा जब तक जारी रहेगी,तब तक कोई शहबाज शरीफ कुछ नहीं कर सकता।

समय-समय चीन या दूसरे देश पाक को भले कर्ज देते रहेंगे ,पर वह भी कब तक ?

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लाहौर में फैज फेस्टिवल, 2023 में तो जावेद अख्तर के खिलाफ उनकी बात पर श्रोताओं ने कोई हंगामा नहीं किया।

पर,भारत के अल्पसंख्यक समुदाय का एक अतिवादी हिस्सा उतना भी उदार नहीं है।

केरल में वहां के राज्यपाल भरी सभा में मंच पर भीड़ से अपमानित होते हंै।

कई साल पहले की तसलीमा नसरीन की हैदराबाद यात्रा आपको याद होगी।

सभा भवन से वह किसी तरह अपनी जान बचा कर निकल पाई थीं।

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23 फरवरी 23


  


 अति सर्वत्र वर्जयेत्

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सुरेंद्र किशोर

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अनुभवी लोग बताते हैं कि भूख से थोड़ा कम ही

भोजन करना चाहिए।

लेकिन अपने यहां समय-समय पर अति भोजन की 

प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।

  गत महीने अधिकाधिक मछली खाने की प्रतियोगिता

 कराई गई।

एक साथ तीन किलोग्राम मछली खाने में सफल हुए 

मदन कुमार को 10 हजार रुपए का इनाम मिला।

इसी तरह कभी आम खाने की प्रतियोगिता होती है 

तो कभी दही खाने की।

इनाम के लोभ में कई लोग अधिक खाने का 

अभ्यास करते रहते हैं।

 क्या कभी इस बात का सर्वेक्षण हुआ है कि 

अति भोजन का उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर 

कैसा असर पड़ता है ?

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साप्ताहिक ‘कानोंकान’

प्रभात खबर,

पटना--27 फरवरी 23

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पुनश्चः

किसी ने चाणक्य से पूछा था,

‘‘जहर क्या है ?’’

चाणक्य ने कहा,

‘‘हर वो चीज जो जिन्दगी में 

आवश्यकता से अधिक होती हैं

वही जहर है।

फिर चाहे वो ताकत हो,धन हो,भूख हो,

लालच हो,

अभिमान हो,आलस हो,

महत्वाकांक्षा हो,

प्रेम हो या घृणा।

आवश्यकता से अधिक जहर ही है।’

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 ‘‘भ्रष्ट लोग देश को तबाह कर रहे हैं।

वे पैसों की मदद से बच निकलते हैं।    

    --सुप्रीम कोर्ट 

     9 नवंबर 2022

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नागरिकों की जान व संपत्ति की सुरक्षा सरकार का परम कर्तव्य

 ---सुप्रीम कोर्ट

26 फरवरी 23

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यू.पी.ए.सरकार(मनमोहन सिंह सरकार)में हुए 12 लाख करोड़ रुपए के घोटाले हुए 

---भाजपा अध्यक्ष अमित शाह

  27 मई 2015

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गरीबों के लुटेरे भ्रष्टाचार खत्म करने पर मुझे गालियां दे रहे हैं

   --प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी

2 दिसंबर 2022

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कांग्रेसी नेता मुझे मारना चाहते है।

  ---प्रधान मंत्री मोदी

6 मार्च 2019

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जांच एजेंसियों से प्रधान मंत्री मोदी ने कहा कि किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचारी बचने न पाए।

उन्हें राजनीतिक और सामाजिक प्रश्रय नहीं मिलना चाहिए

---3 नवंबर 2022

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यह भ्रष्ट राजनीति का गुरू मंत्र है--

आगे पढ़ लीजिए।

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‘‘चाहे यह भ्रष्टाचार का विरोध हो या भ्रष्ट के रूप में देखे जाने का भय,

शायद भ्रष्टाचार अर्थ -व्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था, इसे काट दिया गया है।

मेरे कई व्यापारिक मित्र मुझे बताते हैं कि इससे निर्णय लेेने की गति धीमी हो गई है।.’’

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--नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी,

हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान टाइम्स

23 अक्तूबर 2019

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याद रहे कि राहुल गांधी की न्याय योजना, इसी नोबल पुस्कार विजेता के दिमाग की उपज है।

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एशिया में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार भारत में है

---ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट

26 नवंबर 2020

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ऊपर लिखी बातों से भ्रष्टाचार और उसके खिलाफ ताजा स्थिति का मोटा -मोटी अनुमान आपको हो ही गया होगा।

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इस पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट भी चाहता है कि भ्रष्टों के खिलाफ केंद्र सरकार सख्त कार्रवाई करे।

पर,इस काम में एक बड़ी समस्या आ रही है।

देश में ऐसे अफसरों की भारी कमी है जो भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता रखते हैं।और जांच ठीक ढंग से करते हैं।अत्यंत थोड़े से कट्टर ईमानदार अफसरों में एस.के. मिश्र शामिल हैं।

इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक एस.के.मिश्र के कार्यकाल को बढ़ाने का निर्णय किया।

भ्रष्ट लोगों के खिलाफ श्री मिश्र अत्यंत ईमानदारी व बहादुरी से जांच का काम कर रहे हैं।

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पर सेवा काल में बढ़ोत्तरी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली है।

उस पर मार्च में विचार होगा।

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उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कोई वैसा निर्णय नहीं देगा जो समय-समय पर प्रकट की गई सबसे बड़ी अदालत की खुद की मंशा के खिलाफ जाए।

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इस देश के भ्रष्टाचार को लेकर 10 पुरानी टिप्पणियां

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1.-भ्रष्टाचार को लोकतंत्र की अपरिहार्य उपज नहीं बनने दिया जाना चाहिए

--महात्मा गांधी

2.-भ्रष्टाचारियों को नजदीक के लैंप पोस्ट से लटका दिया जाना चाहिए

--प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू

3.-भ्रष्टाचार तो विश्वव्यापी फेनोमेना है--(यानी इंडिया में भी है तो कौन सी अजीब बात है ?)

----प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी

4.-सत्ता के दलालों के खिलाफ कार्रवाई होनी  चाहिए--

प्रधान मंत्री राजीव गांधी

5.-मुल्क के शक्तिशाली लोग इस देश को बेच कर खा रहे हैं

 --मधु लिमये--/1988/

6.-इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है--

मनमोहन सिंह-/1998/

7.-भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकता--

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूत्र्ति बी.एन.अग्रवाल--5 अगस्त ,2006

8.-भ्रष्ट लोगों से छुटकारा पाने का एकमात्र रास्ता यही है कि कुछ लोगों को लैंप पोस्ट से लटका दिया जाए--

सुप्रीम कोर्ट-7 मार्च 2007

9.-भ्रष्टाचार को साधारण अपराध के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।

-दिल्ली हाईकोर्ट --9 नवंबर 2007

10-भ्रष्टाचार में जोखिम कम और लाभ ज्यादा है-

एन.सी.सक्सेना,पूर्व सचिव ,केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय

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28 फरवरी 23


   

     चुनावी भविष्यवाणियां,

     पर, जरा सावधानी से !

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      सुरेंद्र किशोर

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एक तरह से सन 2024 के लोस चुनाव के लिए चुनावी वर्ष शुरू हो चुका है।

  इस तरह 2024 के भावी रिजल्ट को लेकर चुनावी भविष्यवाणियां भी प्रारंभ हो गईं।

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भविष्यवाणियां करने से पहले हम इस बात पर जरा आत्मावलोकन कर लें कि हमारी पिछली भविष्यवाणियां कितनी सही साबित हुई थीं।

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अब आएं मूल बात पर

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कांग्रेस ने कह दिया है कि अगले लोक सभा चुनाव में राहुल गांधी ही उसके चेहरा होंगे।

अब आप टी.वी.देखने वाले किसी स्कूली छात्र से भी पूछिए-

राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के बीच किसे तुम अधिक पसंद करते हो ?

उसका जवाब क्या होगा ?

सब जानते हैं।

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अब बिहार के महागठबंधन पर आएं।

गत साल हुए कुढ़हनी विधान सभा उप चुनाव में पराजित जदयू उम्मीदवार को 73 हजार वोट मिले थे।

वे वोट किन सामाजिक समूहों से थे ?

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2015 के बिहार विधान सभा चुनाव राजद,जदयू और कांगे्रस ने मिलकर लड़ा था।

तब भाजपा को कितनी सीटें मिलीं ?

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अब महा गठबंधन में सात राजनीतिक दल हैं।

2015 और 2024 के चुनावों के रिजल्ट में कितना फर्क आएगा ?

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यह सब मेरे ज्ञानवर्धन के लिए है।

अभी मैं अपनी ओर से यह नहीं कह रहा हूं कि अगले लोकसभा चुनाव में बिहार में किसे कितनी सीटें मिलेंगी।

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सामान्य अपराध की बात अभी छोड़ दीजिए।

यदि बिहार के सत्ताधारी दलों से जुड़े लोग भी बड़े -बड़े अपराध करने लगें तो उसका अगले चुनाव पर कैसा असर पड़ेगा ?

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रामचरित मानस और अग्निवीर के खिलाफ बयानों का कैसा असर  पड़ेगा ?

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28 फरवरी 23



शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

    पंजाब से एक बार फिर चिंताजनक खबरें

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‘‘पंजाब में जो कुछ हो रहा है,उसकी जड़ें उस घोर अराजक किसान आंदोलन में भी हंै जिसे खाद-पानी देने का काम कांग्रेस,आम आदमी पार्टी समेत अन्य विपक्षी दलों ने भी किया था।

                                  ---ट्विटर पर राजीव सचान,

                                        राष्ट्रीय सहारा,

                                         24 फरवरी 23

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अपने एक साथी की गिरफ्तारी के खिलाफ खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह के समर्थकगण गुरुवार को तलवार और अन्य घातक हथियार लिए पुलिस से भिड़ गए।

छह पुलिसकर्मी घायल हो गये।

उसे रिहा करने का आश्वासन पुलिस को देना पड़ा।

यह घटना अमृतसर जिले के एक पुलिस थाने में हुई।

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इस घटना ने अस्सी के दशक की याद दिला दी जब भिंडरवाले ने पंजाब को अस्थिर कर रखा था।

पंजाब विधान सभा के गत चुनाव के नतीजे आने के बाद यह आम चर्चा थी कि 

पृथकतावादी खालिस्तानियों का समर्थन ‘आप’ को मिल गया था।

नतीजतन ‘आप’ सरकार ने कल खालिस्तानियों के सामने घुटने टेक दिए।

देखते जाइए,आगे- आगे क्या-क्या होता है !!!

लक्षण अच्छे नहीं हैं।

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24 फरवरी 23


 जावेद अख्तर और दिग्विजय सिंह का फर्क !

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सुरेंद्र किशोर

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गीतकार जावेद अख्तर ने पाकिस्तान जाकर पाकिस्तानियों से कहा कि जिन लोगों ने 26 नवंबर 2008 को मुम्बई पर हमला किया,वे अब भी यहां आजादी घूम रहे हैं।

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दूसरी ओर, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने तब कहा था कि मुम्बई पर जो हमला हुआ था,वह आर.एस.एस.ने करवाया था।

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कांग्रेस के एक थिंक टैंक मणिशंकर अय्यर ने सन 2015 में 

पाकिस्तान जाकर वहां के 

 एक टी.वी चैनल के जरिए वहां के लोगों से सार्वजनिक रूप से यह यह अपील की थी कि ‘‘आप लोग मोदी को हटाइए और हमें सत्ता में लाइए।’’

मणि शंकर को यह पता होना चाहिए कि इस देश में जावेद अख्तर जैसे लोग भी हैं,जो पाक के कहने पर भारत में किसी को वोट नहीं देते।

बल्कि वे पाकिस्तान में जाकर उनसे यह कहने का साहस  दिखाते हैं कि मुम्बई पर हमला आप लोगों ने ही करवाया था।

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मणि शंकर और दिग्विजय दोनों अब भी कांग्रेस में ही हैं।

ऐसे में राहुल गांधी की ‘‘भारत जोड़ो यात्रा’’ कौन सा राजनीतिक लाभ मिलने वाला है !!!

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22 फरवरी 23


सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

 29 फरवरी, 1896 को जन्मे थे मोरारजी देसाई

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चूंकि इस साल 29 फरवरी आएगी नहीं,इसलिए उन्हें आज ही याद कर लें

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जानिए किस पीएम की जान बचाने के लिए एयरफोर्स के 5 अफसरों ने गंवाई थी अपनी जान

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देश में एक पीएम ऐसे थे जिन्होंने सरकार के पैसे बचाने के लिए छोटे विमान का इस्तेमाल किया और अपनी जान खतरे में डाल दी थी।

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--सुरेंद्र किशोर--

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 4 नवंबर, 1977 को तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई  विमान दुर्घटना में बाल -बाल बचे थे।

दरअसल वायु सेना के चालक दल के पांच सदस्यों ने आत्म बलिदान देकर प्रधान मंत्री को साफ बचा लिया था।

  वायु सेना का वह विमान उस दिन असम में जोरहाट के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।

खराब मौसम और तेल की कमी के कारण विमान का ‘नोज- -डाइव’ कराना पड़ा था।

नोज डाइव यानी, नाक की सीध में विमान को धरती पर गिरा दिया गया।

   दिल्ली से उड़ान भरने से पहले अफसरों ने प्रधान मंत्री देसाई से यह आग्रह किया था कि जोरहाट दिल्ली से काफी दूर है । इस विमान में ईंधन की टंकी छोटी है।

इसलिए आप बोइंग -737 से यात्रा करें।

पर,मोरारजी देसाई ने कहा कि हम सामान्य विमान से ही जाएंगे।उनका आशय यह था कि बोइंग -737 पर खर्च अधिक आएगा।गांधीवादी मोरारजी देसाई अपने प्रधान मंत्रित्व काल में सेवा विमान से ही विदेश यात्रा पर जाते थे,भले वह यात्रा सरकारी होती थी।विशेष विमान से न जाने के कारण कई पत्रकार उनसे नाराज रहते थे।याद रहे कि उनसे पहले

और बाद के प्रधान मंत्री विशेष विमान में बड़ी संख्या में पत्रकारों को अपने साथ विदेश ले जाया करते थे।

 सन 1977 में वायु सेना के जिन अफसरों ने आत्म बलिदान दिया था,उनमें विंग कमांडर सी.जे.डी.लिमा,विंग कमांडर जोगिन्दर सिंह,स्क्वाड्रन लीडर वी.वी.एस.सुनकर,स्क्वाड्रन लीडर एम.सायरिक और फ्लाइट लेफ्टिनेंट ओ.पी.अरोड़ा शामिल थे।

  वे टी.यू.-124 पुष्पक विमान से वहां गए थे।

विमान 4 नवंबर,1977 को दिल्ली से शाम सवा पांच बजे उड़ा।

उसे पौने आठ बजे जोरहाट पहुंचना था।

पर,असम में प्रवेश करने के बाद अचानक विमान का संबंध जमीन से टूट गया।

विमान जोरहाट के पास आकाश में चक्कर लगाने लगा।

ईंधन खत्म होने का डर था।विमान को उसकी नाक के बल पर खेत में यानी बांस के उपवन में गिराना पड़ा।इससे यह हुआ कि विमान के पिछले हिस्से में बैठे महत्वपूर्ण सवारों की जानें बच गई।पर काॅकपीट में पांचों अफसर शहीद हो गए।

साथ चल रहे फ्लाइट लेफ्टिनेंट पी.के. रवीन्द्रण और काॅरपोरल के.एन.उपाध्याय प्रधान

मंत्री और उनके सहयात्रियों को पास के टेकेला गांव ले गए।

प्रधान मंत्री के साथ उनके पुत्र कांति देसाई,सर्वोदय नेता नारायण देसाई और अरूणाचल प्रदेश के मुख्य मंत्री पी.के. थंुगन थे।

 इन्हें चोटें आई थीं।

वायु सेना के एक जवान पास के गांव से एक जीप लेकर वायु सेना के निकट के केंद्र में गए और संबंधित लोगों को जानकारी दी।

यह भी बताया कि प्रधान मंत्री सुरक्षित हैं।

मदद करने वाले ग्रामीण इंन्द्रेश्वर बरूआ को तब प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने आश्वासन दिया था कि इस गांव का विकास किया जाएगा और आपको इनाम दिया जाएगा।

पर,इस संबंध में तैयार फाइल प्रधान मंत्री आॅफिस में 26 साल तक पड़ी रही।

 

हमारी सरकारें किस तरह काम करती हैं,उसका एक और नमूना  3 अप्रैल, 2003 के दिल्ली के एक अखबार में छपी संबंधित खबर से मिला।

  खबर का संबंध 4 नवंबर, 1977 को असम के जोरहाट के पास के एक गांव में हुई चर्चित विमान दुर्घटना से था।

मोरारजी देसाई को बचाने में मुख्य भूमिका तो उन जांबाज विमान चालक दल की थी जिन्होंने अपनी जान देकर प्रधान मंत्री को बचा लिया था।

  पर, दूसरी महत्वपूर्ण भूमिका उस गांव के इंद्रेश्वर बरूआ की थी जिन्होंने उस अंधेरी रात में मोरारजी की मदद की।

याद रहे विमान बांस के उप वन में गिर गया था।

तब प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने उस गांव के विकास का  घटनास्थल पर ही वादा किया था।साथ ही, बरूआ को इनाम देने का भी वचन दिया था।

 गांव के विकास का क्या हुआ,यह तो पता नहीं चला,पर इनाम की फाइल प्रधान मंत्री आॅफिस में लटक गयी ।सन 1979 में मोरारजी प्रधान मंत्री पद से हट गए।

मोरारजी देसाई के बाद बारी -बारी से सत्तासीन हुए आठ प्रधान मंत्रियों का ध्यान उस फाइल की ओर अफसरों ने नहीं खींचा ।

दरअसल किसी पिछले प्रधान मंत्री के प्रति बाद के प्रधान मंत्री के रुख-रवैये का अनुमान लगा कर ही अफसर ऐसी फाइल की ओर मौजूदा प्रधान मंत्री का ध्यान खींचते हैं। 

जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधान मंत्री बने तो प्रधान मंत्री सचिवालय में धूल खा रही संबंधित फाइल किसी संवेदनशील अफसर ने उन्हें दिखाई।अटल जी ने सन 2003 में यानी 26 साल बाद बरूआ को डेढ़ लाख रुपए इंद्रेश्वर बरूआ को भिजवाए थे। 

हां वायु सेना ने रवीन्द्रण और उपाध्याय को शौर्य चक्र देने में कोई देर नहीं की थी।

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मेरे लेख का संपादित अंश वेबसाइट ‘मनी कंट्रोल हिन्दी’ में आज 20 फरवरी 23 को प्रकाशित 


शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

 इस देश के राजनीतिक दलों का राष्ट्रहित 

पर भी असंतुलित रवैया चिंताजनक

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   सुरेंद्र किशोर

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बागेश्वर धाम के बड़बोले बाबा पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री कह रहे हैं कि हम ‘‘जनमत और बहुमत के बल पर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे।’’

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दूसरी ओर, प्रतिबंधित जेहादी संगठन पाॅपुलर फं्रट आॅफ इंडिया कह रहा है कि ‘‘हम हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को मुस्लिम राष्ट्र बना देंगे।’’

जांच एजेंसी के सूत्रों के अनुसार, इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पी.एफ.आई.बड़े पैमाने पर देश में आग्नेयास्त्र बांट रहा है।

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इन दो पाटों के बीच हमारे जैसे ‘संविधानवादियों’ का अंततः क्या हश्र होगा ?!!

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खैर, हमारा जो भी हश्र हो,वह तो बाद में देखा जाएगा।

पर, पहले इस बात पर गंभीरता से गौर कीजिए कि विभिन्न राजनीतिक दलों का इन दोनों तरह के अतिवादी संगठनों के प्रति मौजूदा रवैए के कारण उनका व देश का 

क्या हश्र हो सकता है !

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जहां तक मेरी जानकारी है,भाजपा के कोई नेता पंडित धीरेंद्र शास्त्री के खिलाफ कोई बयान नहीं दे रहे हैं।

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दूसरी ओर, भाजपा विरोधी दलों के खास कर तथाकथित ‘‘सेक्युलर’’ दलों के कोई नेता या पत्रकार-बुद्धिजीवी पाॅपुलर फं्रट को नाराज करने वाली कोई बात नहीं बोल रहे हंै।

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एक पूर्व उदाहरण,

27 फरवरी , 2002 की सुबह में ही गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर मुस्लिम अतिवादियों ने टे्रन के डिब्बे में पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी और 59 कार सेवकों को जिन्दा जला दिया।

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उस दिन पूरे दिन वह खबर चलती रही।

 पर,जहां तक मुझे याद है,किसी ‘सेक्युलर नेता’ ने कार सेवक दहन कांड की निन्दा करते हुए कोई बयान नहीं दिया।

हां, जब गुजरात में हिन्दू अतिवादियों ने जवाबी हिंसा शुरू की तो सभी सेक्युलर दल एक साथ भाजपा और मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी पर टूट पड़े।

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इस पक्षपाती रवैये का नतीजा--

तब से आज तक गुजरात विधान सभा चुनाव में कोई दल भाजपा को हरा नहीं सका।

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काश ! गोधरा कार सेवक दहन कांड और बाद की हत्याओं कीे समान रूप से सेक्युलर दलों ने तब निन्दा की होती।

 मेरी समझ से तब गुजरात में गैर भाजपा दलों की लगातार शर्मनाक पराजय नहीं होती।बल्कि नरेंद्र मोदी का भी राष्ट्रीय फलक पर उदय संभवतः नहीं होता।

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17 फरवरी 23 


शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

    कर्पूरी ठाकुर की पुण्य तिथि पर 

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  26 मार्च, 1972 को कर्पूरी ठाकुर ने मुझसे कहा था,

‘‘आप तेज ,मृदुभाषी और सुशील लड़का हैं।’’

(मेरी निजी डायरी में यह बात दर्ज है) 

तब मैं एक समाजवादी कार्यकर्ता के तौर पर कर्पूरी जी का निजी सचिव था।

उनके बुलावे पर मैं उनसे जुड़ा था।

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कर्पूरी जी इस तरह अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाते थे।

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ऐसे मामलों में आज के शीर्ष नेताओं का अपने दल के सामान्य कार्यकर्ताओं से ‘व्यवहार’ का मुझे कोई अनुभव या जानकारी नहीं है।

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सुरेंद्र किशोर

17 फरवरी 23 


मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

 कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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पाटलिपुत्र विवि को बख्तियारपुर में भूमि देने का प्रस्ताव सही 

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मुख्य पटना नगर से भीड़-भाड़ कम करना समय की सख्त जरूरत है।

  ऐसा जल्द से जल्द नहीं हुआ तो बाद में पछताना पड़ेगा।

न सिर्फ शासन को बल्कि निवासियों को भी।

 समस्या को कम करने के लिए बिहार सरकार ने पाटलिपुत्र विश्व विद्यालय के लिए बख्तियारपुर के पास दस एकड़

जमीन देने की योजना बनाई है।

विश्व विद्यालय के प्रस्तावित स्थानांतरण का विरोध हो रहा है।विरोध के पीछे दूरदृष्टि नहीं है।

मुख्य पटना पर से बढ़ती आबादी का बोझ घटाने के लिए कुछ अन्य संस्थानों को भी आसपास के इलाकों में स्थानांतरित करना पड़ेगा।

गंगा पार सारण जिले में जमीन मिलने में अभी आसानी होगी।

याद रहे कि सारण जिले के कुछ अंचलों को पटना महानगर का हिस्सा बनाने का प्रस्ताव है।

बढ़ती आबादी के कारण भी नगरों में प्रदूषण की समस्या विकराल होती  जा रही है।यूनाइटेड नेशन्स की डराने वाली एक रपट सन 2019 में आई थी।

उसमें कहा गया कि एशिया और अफ्रीका में पर्यावरण और जल प्रदूषण की समस्या अति गंभीर है।यदि उस पर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो  इस सदी के मध्य तक लाखों लोगों की अकाल मृत्यु हो जाएगी।

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पंचायती राज की विफलता

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 शिक्षकों की नियुक्ति का काम पहले ग्राम पंचायतों और नगर निकायों के जिम्मे था।

कटु अनुभवों के बाद अब वह काम आयोग करेगा।

इसके लिए अलग नियम होंगे।

यानी, पंचायतों और नगर निकायों से यह अधिकार वापस लिया जा रहा है।

कई साल पहले जब यह अधिकार पंचायतों और नगर निकायों को दिया गया था तो एक खास तरह की कल्पना राज्य सरकार ने की थी।

माना गया था कि अधिकतर जन प्रतिनिधियों के बाल-बच्चे भी तो उन्हीं स्कूलों में पढ़ते हैं।उनके बेहतर भविष्य की चिंता करते हुए वे योग्य शिक्षक बहाल करेंगे।

पर,पिछले अनुभवों ने बताया कि अधिकतर जन प्रतिनिधियों ने अपने बच्चों के भविष्य के बदले किन्हीं अन्य ‘चीजों’ की ंिचंता की।नतीजतन बड़ी संख्या में अयोग्य शिक्षक बहाल कर लिए गए।हालांकि सारे शिक्षक अयोग्य नहीं हैं।

ठीक ही कहा गया है कि यदि आप अपने अधिकारों का सदुपयोग नहीं करेंगे तो वे अधिकार एक न एक दिन आपके पास नहीं रहेंगे।

अब बिहार सरकार पर जिम्मेदारी है कि वह प्रस्तावित चयन आयोग के काम पर सतत निगरानी रखे।

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  संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण

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गत 8 फरवरी को राहुल गांधी ने लोक सभा में जोरदार भाषण किया।

किंतु अपने भाषण में उन्होंने 18 बार ऐसी बातें कह दीं

 जिन्हें सभाध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही से हटा दिया।

राहुल गांधी ने ऐसी बातें कही थीं जो उन्हें सदन में नहीं कहनी

चाहिए थी।उनकी कुछ बातें असंसदीय थीं।

कुछ ऐसे आरोप थे जिनके बारे में उन्होंने स्पीकर को पहले से नहीं बताई थी।

  ऐसे मामलों में एक प्रश्न खड़ा होता है।क्या अब भी सदन की कार्यवाही को लाइव प्रसारण किया जाना चाहिए ?

बड़ी संख्या में लोग उसे देखते हैं।

राहुल गांधी की बातें उन तक तो पहुंच ही गईं।

यानी, कार्यवाही से हटा देने का कितना लाभ हुआ ?

पूरा लाभ तो नहीं हुआ।

ऐसी समस्या अक्सर आती रहती है।

हां,यदि टी.वी.चैनलों पर प्रसारण से पहले संसद की कार्यवाही का संपादन करने का प्रावधान होता तो ऐसी समस्या नहीं आती।

यही समस्या विधान सभाओं के सीधा प्रसारण के दौरान पैदा होती रहती है।  

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भूली-बिसरी याद

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सन 1977 के लोक सभा चुनाव से ठीक पहले की बात है।

जयप्रकाश नारायण प्रतिपक्षी दलों में एकता चाहते थे।

कुछ प्रतिपक्षी दल अपना अलग अस्तित्व बनाए रखने के पक्ष में थे।

जेपी चाहते थे कि सब मिलकर एक दल बनाएं जिससे जनता में उनके प्रति विश्वास बढ़े।

जब दलों के विलयन में देर होने लगी तो जेपी ने कहा कि आपलोग नहीं मिलेंगे तो हम अलग से पार्टी बना लेंगे।इसके बाद राजनीतिक दल ‘लाइन’ पर आ गए।

पर,दो समस्याएं और थीं।कुछ प्रतिपक्षी नेता ये मुद्दे उठाने लगे।

मोरारजी देसाई का अड़ियल स्वभाव और जनसंघ की एक खास तरह की छवि।

इस समस्या का हल कुछ इस तरह हुआ।उन प्रतिपक्षी नेताओं को जेपी ने बताया कि मोरारजी भाई ने एक बार मुझसे एक बात कही थी।वह यह कि ‘जेपी, मैंने विपक्ष में पांच साल रहकर जितना सीखा है,उतना सरकार में रहते हुए 20 वर्षों में भी नहीं सीखा।’

  जेपी की यह राय थी कि ‘जनसंघ अब सांप्रदायिक चरित्र वाला दल नहीं रह गया है।

पार्टी के नजरिए में बदलाव आया है।

जनसंघ एक राष्ट्रीय दल के रूप में उभर सकता है।’

इस तरह कुछ दलों को मिलाकर तब बन पाई थी जनता पार्टी। 

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और अंत में

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मई, 2018 में पटना के जिलाधिकारी कुमार रवि ने यह घोषणा की थी कि 

जिला प्रशासन उन व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को बंद करा देगा जहां पार्किंग की व्यवस्था नहीं है।

वैसे प्रतिष्ठानों के मालिकों को दो बार नोटिस दिया जाएगा।बात नहीं मानने पर दो बार जुर्माना लगाया जाएगा।उस पर भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो प्रतिष्ठान बंद कर दिए जाएंगे।

  इस दिशा में क्या प्रगति हुई है,यह किसी को नहीं मालूम। 

वैसे यह समस्या बिहार के सारे नगरों की है।

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12 फरवरी 23


शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

 शराब बंदी को लेकर मुख्य मंत्री 

 की दृढ इच्छा सराहनीय

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सुरेंद्र किशोर

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मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने कल कहा कि 

‘शराबंदी खत्म नहीं होने देंगे।’

मैंने पिछले कुछ दशकों में अपने पेशे के साथ-साथ विभिन्न पेशों के अनेक परिचितों को शराब के अति सेवन के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त होते देखा है।

  कई प्रतिभाशाली पत्रकार शराब-सिगरेट-गलत खानपान के कारण अपने परिवारों को रोते-कलपते छोड़ असमय गुजर गए।

 सीमित आय वाला व्यक्ति जब शराब पीकर समय से पहले गुजर जाता  है तो अधिकतर मामलों में उसके परिवार को 

भारी कष्ट उठाना पड़ता है।

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  जो लोग यह कहते हैं कि बिहार में शराब बंदी विफल है,उनसे मैं पूछना चाहता हूं कि इस ढीले-ढाले लोकतंत्र में कौन सा अन्य कानून पूरी तरह सफल है ?

 आई.पी.सी.के तहत के अपराधों में सजा की दर इस देश में 56 प्रतिशत है।

बिहार में हत्या के मामले में सजा की दर तो बहुत ही कम है।

तो क्या दफा-302 को समाप्त कर दिया जाना चाहिए ?

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मेरे अनुमान के अनुसार बिहार में शराबबंदी की सफलता की दर लगभग उतनी है जितनी आई.पी.सी.के तहत के अपराधों में सजाओं की दर है।

इस बात का भी अनुमान करिए कि शराब बंदी के कारण नए पियक्कड़ों की ंसंख्या में पहले जैसी बढ़ोत्तरी़ अब नहीं हो रही है।

आम तौर पर कोई पैसे वाला मित्र किसी कम धनी मित्र को अपने पैसे से शराब पिलाना सिखाता है,आगे उसका साथ देने के लिए।

अब तस्करी वाली शराब इतनी हंगी पड़ रही है कि दूसरों को भी पिलाना अब अधिक महंगा शौक बन चुका है।

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3 फरवरी 23 


गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

     कामराज योजना से 1967 के चुनाव में 

  कांग्रेस को नहीं हुआ था फायदा ,

  जानिए कहां चूकी थी सरकार


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        सुरेंद्र किशोर

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सन 1963 की चर्चित कामराज योजना के तहत केंद्रीय मंत्री मोरारजी देसाई से तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि ‘‘आपको इस्तीफा दे देना चाहिए।’’

  उस पर बिना कोई देर किए देसाई ने कहा कि ‘‘मुझे इस्तीफा देकर खुशी होगी।किंतु आप चंदभानु गुप्त से इस्तीफा न लें। 

क्योंकि इससे लोगों को लगेगा कि चूंकि आप उन्हें नापसंद करते हैं,इसलिए उन्हें हटना पड़ा।’’

  प्रधान मंत्री  नेहरू ने मोरारजी देसाई की सलाह नहीं मानी और 

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री चंद्रभानु गुप्त को भी अंततः पद छोड़ना ही पड़ा।

   योजना बनी थी कि देश के कुछ प्रमुख सत्ताधारी सरकार से निकल कर कांग्रेस संगठन को मजबूत बनाएं।

 कई प्रमुख सत्ताधारियों को केंद्र व राज्य सरकारों से हटा कर संगठन के काम में लगाया गया।

फिर भी 1967 के चुनाव में उसका कोई लाभ कांग्रेस को नहीं मिला ।

लोक सभा में कांग्रेसी सदस्यों की संख्या सन 1962 की अपेक्षा 1967 में घट गई।

बाद में यह चर्चा चली कि राजनीतिक विरोधियों को रास्ते से हटाने के लिए शीर्ष नेतृत्व ने कामराज योजना लाई थी।के. कामराज तब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे।

  याद रहे कि संसद का सत्र समाप्त हो जाने के बाद सन 1963 के मध्य में प्रधान मंत्री नेहरू कश्मीर गये थे।

वहां बीजू पटनायक से उनकी मुलाकात हुई थी।वहां से लौटने के बाद श्री पटनायक ने मोरारजी देसाई को जवाहर लाल जी के साथ हुई मुलाकात की बात बताई थी।

  उस बातचीत में पटनायक ने जवाहर लाल जी को एक योजना सुझाई जो बाद में ‘कामराज योजना’ के नाम से मशहूर हुई।कामराज ने अपनी ओर से वह योजना 1963 के जून के अंत या जुलाई में प्रस्तुत की।’

  उसी दौरान लाल बहादुर शास्त्री  ने मोरारजी देसाई से कहा था कि मैंने स्वयं ही पद मुक्त होने का आग्रह किया है।

 इसलिए मैं तो मुक्त होऊंगा ही। पर आपको इस्तीफा देने की कोई जरूरत नहीं है।

आपके ऊपर यह योजना लागू नहीं होनी चाहिए।’’

मोरारजी देसाई के अनुसार ‘‘दूसरे दिन जवाहर लाल जी ने मुझे बुलाकर ं बातचीत की।उन्होंने कहा कि इस योजना के अंतर्गत अब मैं और आप दो ही वरिष्ठ बच रहे हैं।जिनमें से एक को तो जाना ही चाहिए।

मैं पद से न हटंू ,ऐसा सबका आग्रह है।इसलिए मुझे लगता है कि संगठन के काम के लिए आपको ही पदमुक्त हो जाना चाहिए।आखिर मोरार जी मुक्त हुए भी। ये बातें पूर्व प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने अपनी जीवनी में लिखी हंै।

याद रहे कि ‘कामराज योजना’ के तहत जिन नेताओं को सरकार से हटा कर पार्टी के कामों में लगाया गया,उनमें बीजू पटनायक और मोरारजी देसाई भी शामिल थे।

 सन 1962 में चीन के हाथों भारत की पराजय के बाद यह धारणा बन रही थी कि जनता के बीच कांग्रेस का प्रभाव कम हो रहा था।

फिर से जनता से कांग्रेस को मजबूती से जोड़ने के लिए कुछ बड़े नेताआंे को संगठन के काम में लगाने का निर्णय हुआ था।

मूल योजना यह थी कि दो-तीन मुख्य मंत्रियों और राज्यों के कुछ मंत्रियों को उनके पदों से हटाया जाए।

पर बाद में उस सूची में छह केंद्रीय मंत्रियों के नाम भी जोड़ दिए गए।

 केंद्रीय मंत्रिमंडल से जो नेता हटाए गए,उनमें लाल बहादुर शास्त्री,मोरारजी देसाई,एस.के.पाटील,जगजीवन राम और गोपाल रेड्डी शामिल थे।

इनके अलावा जिन मुख्य मंत्रियों से इस्तीफा लिया गया उनमें कामराज (मद्रास),बी.आर.मंडलोई(मध्य प्रदेश)विनोदानंद झा(बिहार)चंद्र भानु गुप्त(उत्तर प्रदेश)शामिल  थे।

इसके साथ ही एक अनोखी राजनीतिक घटना भी हुई।

उस समय नेशनल कांफ्रेंस के नेता गुलाम मुहम्मद बख्शी कश्मीर के मुख्य मंत्री थे।

यानी, वे कांग्रेस में नहीं थे।

 फिर भी उन्होंने कहा कि ‘चूंकि इस योजना के तहत किसी मुसलमान नेता का इस्तीफा नहीं लिया जा रहा है,इसलिए मैं मुख्य मंत्री पद से इस्तीफा देता हूं ताकि देश में अच्छा संदेश जाए।’

साथ ही, वे कांग्रेस में शामिल भी हो गए।

उसी दौरान मोरारजी देसाई और लाल बहादुर शास्त्री के बीच की एक दिन हुई बातचीत भी उल्लेखनीय है।

 शास्त्री जी ने मोरार जी देसाई से कहा कि मैंने स्वयं ही पद मुक्त होने का आग्रह किया है । इसलिए मैं तो मुक्त होऊंगा ही। पर आपको इस्तीफा देने की कोई जरूरत नहीं है।

आपके ऊपर यह योजना लागू नहीं होनी चाहिए।

कामराज योजना के लागू होने के बाद सबसे पहला आम चुनाव सन 1967 में हुुआ। उस समय तक लोक सभा और विधान सभाओं के चुनाव एक ही साथ होते थे।कुछ हलकों में यह उम्मीद की गयी थी कि कामराज योजना से कांग्रेस को चुनाव लाभ मिलेगा।पर ऐसा हुआ नहीं। 

 जिन छह राज्यों के मुख्य मंत्रियों को इस योजना के तहत हटाया गया था, उन राज्यों में भी सन 1967 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता से हट गयी। वैसे कुल नौ राज्यों में तब कांग्रेस हार गयी थी।

1963 के बाद कांग्रेस या किसी अन्य दल ने ‘कामराज योजना’ जैसी कोई योजना नहीं चलाई।

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वेबसाइट मनी कंट्रोल हिन्दी (20 जनवरी 2023 )पर प्रकाशित