मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

कांग्रेस सरकार बनाम रामनाथ गोयनका वाला ‘इंडियन एक्सप्रेस’

भूली-बिसरी याद


इंडियन एक्सप्रेस अखबार समूह के मालिक रामनाथ गोयनका का दो -दो बार कांग्रेस सरकारों से भीषण संघर्ष हुआ था। किसी अन्य मीडिया समूह से केंद्र सरकार की शायद ही कभी वैसी भिड़त हुई होगी! पहली बार इंदिरा गांधी सरकार से और दूसरी बार राजीव गांधी सरकार से।

इन भिड़ंतों के परिणामस्वरूप गोयनका व एक्सप्रेस समूह पर शासन ने समय -समय पर अनगिनत मुकदमे लादे। विकली के संपादक प्रीतीश नंदी से लंबी बातचीत में आर.एन.जी. यानी रामनाथ गोयनका ने एक बार कहा था कि आई.पी.सी. में जितनी धाराएं हैं, उन सबके तहत हम पर मुकदमे हो चुके हैं।

आर.एन.जी.स्वतंत्रता सेनानी भी थे। संविधान सभा के सदस्य थे। दो बार लोकसभा के लिए भी चुने गए थे। गोयनका जी जयप्रकाश नारायण के मित्र थे। उन्होंने जेपी आंदोलन का समर्थन किया था। आपातकाल में इंदिरा सरकार ने एक्सप्रेस समूह के निदेशक मंडल को भंग करके उसके प्रधान पद पर एक दूसरे अखबार समूह के मालिक को बैठवा दिया था।

एक दिन गुस्से में लाल रामनाथ गोयनका तत्कालीन सूचना व प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल के आफिस में गए। उन्हें इतनी कड़ी बातें कह कर आ गए जितनी कड़ी बातें किसी अखबार मालिक ने कभी किसी केंद्रीय मंत्री को सामान्य दिनों में भी नहीं कही होगी, वह तो आपातकाल था।

स्वतंत्र चेता लोगों के लिए आपातकाल में भय-आतंक का ऐसा माहौल सरकार ने बना रखा था जैसा अंग्रेजों के राज में भी नहीं था। जानकारों के अनुसार गोयनका जी लौटते समय सोच रहे थे कि पहुंचने के साथ ही मैं गिरफ्तार कर लिया जाऊंगा। पर उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई।

गोयनका जी को बाद में महसूस हुआ कि उसका कारण क्या था। फिरोज गांधी कभी एक्सप्रेस के प्रबंधक निदेशक थे। गोयनका के पास के उस परिवार से संबंधित कुछ सनसनीखेज दस्तावेज थे।
गिरफ्तारी के बाद उनके लीक हो जाने का भय था।



गोयनका जी की सरकार से दूसरी भिड़ंत राजीव गांधी के शासनकाल में हुई। राजीव के शासन काल के प्रारंभिक दिनों में तो गोयनका राजीव से खुश थे। तब तक राजीव की छवि ‘मिस्टर क्लीन’ की थी। संभवतः इसीलिए राजीव से दोस्त सुमन दूबे को एक्सप्रेस का संपादक बना दिया गया था।

पर जब बोफोर्स तथा एक पर एक अन्य घोटालों के दलदल में राजीव सरकार फंसती चली गई  तो एक्सप्रेस समूह से सरकार का टकराव हो गया। नतीजतन एक्सप्रेस समूह परिसर में छापामारी के लिए सरकारी एजेंसियों को लगा दिया गया।

नई दिल्ली स्थित एक्सप्रेस बिल्डिंग के एक हिस्से को ध्वस्त करने का उप राज्यपाल जगमोहन ने आदेश जारी कर दिया। पर अंततः सुप्रीम कोर्ट में गोयनका की जीत हुई।

इस बीच गोयनका के एक्सप्रेस समूह पर एकतरफा पत्रकारिता का आरोप लगता रहा। पर अंततः दोनों मामलों में यह बात साबित हुई कि गोयनका व एक्सप्रेस सही थे। सही बातें कहने के सिलसिले में कोई एकतरफा भी नजर आता है तो इस देश की अधिकतर जनता उसे पसंद करती है। किया भी।

इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए लोस चुनाव में न सिर्फ इंदिरा सरकार सत्ता से बाहर हो गई, बल्कि खुद इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी लोकसभा की अपनी सीटें भी हार गए।

अस्सी के दशक के बोफोर्स आदि विवाद के बाद राजीव गांधी की कांग्रेस पार्टी की ऐसी हार हुई कि उसके बाद कांग्रंस को कभी लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका।


  ---सुरेंद्र किशोर-28 अप्रैल 2020     

  

     महाभारत से सबक 
    ...................................
दूरदर्शन पर जारी धारावाहिक ‘महाभारत’ में आज की पीढ़ी 
जल्द ही वह दृश्य देखेगी जब अंध पुत्र मोह के कारण
किस तरह धृतराष्ट्र अपना सब कुछ गंवा देता है।
  अस्सी के दशक में यही धारावाहिक दिखाने का एक उद्देश्य यह भी था ताकि समकालीन लोकतंत्र के ‘‘राजा गण’’ उससे सबक ले सकें।
  पर, ऐसा नहीं हो सका।
पुत्र मोह के अलावा भी उन्हें अन्य कई तरह के मोह ने भी  ग्रस जो लिया था !
नतीजतन इस देश के कई ‘हस्तिनापुर’ बर्बाद हो गए।
अब जब एक बार फिर महाभारत की कहानी दूरदर्शन पर है तो कम से कम नई पीढ़ी के राज नेताओं के लिए अच्छा मौका है। 
इस कहानी से वे तो सबक ले लें !
हालांकि देशहित में मेरी यह सदिच्छा मात्र है।
जिस तरह चीजें बर्बाद हो चुकी हैं,उससे अच्छाई की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती।
...........................
   ---सुरेंद्र किशोर --27 अप्रैल 20
  

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

कोरोना में ‘घर-वास’

मोबाइल फोन भारत में सन 1995 में आया और स्मार्ट फोन 2009 में। अब तो सोशल मीडिया भी हाजिर है। कल्पना कीजिए कि इन तीनों के आने से पहले कोरोना आ गया होता तो कैसा रहता हमारा जीवन! हमारा ‘घर-वास’ और कितना ‘कष्टदायी’ होता !!
कुछ की गलतियों के लिए पूरे
समुदाय को बदनाम करना गलत
..........................................
पाकिस्तान इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन  
के अध्यक्ष डा.इफ्तिखार बर्नी ने कहा है कि पाक में 
मस्जिदें कोेरोना संक्रमण का प्रमुख स्रोत बन गई हैं।
-- दैनिक भास्कर, पटना, 27 अप्रैल 2020
.....................
इस बयान के बाद क्या पाक में किसी ने कहा कि इफ्तिखार
नफरत फैला रहा है ?
नहीं कहा।
पर, भारत में तो लोग सिर्फ एक खास संगठन यानी तब्लीगी जमात के प्रमुख साद के विवादास्पद बयान की चर्चा 
करते हैं।
 उस बयान के परिणामस्वरूप उसके अनुयायियों की हरकतों का विवरण देते हैं।
यहां किसी ने कभी यह नहीं कहा कि मस्जिदें कोरोना फैला रही हैं।
बल्कि, अनेक मुस्लिम धार्मिक गुरुओं ने भी तब्लीगी जमात की हरकतों की निंदा की है और अपने घरों में ही नमाज पढ़ने की लोगों से अपील की है।
ऐसे में तो कोई पागल ही पूरी कौम को बदनाम करेगा।
  पर, मुस्लिम समुदाय के कुछ स्वार्थी लोग और बहुसंख्यक जमात के कुछ तथाकथित सेक्युलर लोग तब्लीगी जमात पर लगाए जा रहे आरोपों को पूरी कौम पर फैलाने की कोशिश रहे हैं।
वे आखिर किसका भला कर रहे हैं ?
 उन्हें अब तो संघ प्रमुख मोहन भागवत की ताजा टिप्पणी पर गौर करना चाहिए जिन्होंने कल कहा है कि 
‘‘कुछ विशेष लोगों की गलती के लिए पूरे समाज को आरोपित नहीं करना है।’’ 
   दरअसल हाल के वर्षों से इस देश के कुछ भ्रष्ट नेताओं ने एक परंपरा शुरू कर दी है।
जब वे किसी गंभीर आरोप में पकड़े जाते हैं तो आरोप लगा देते हैं कि हमारी जाति को बदनाम किया जा रहा है।
किसी भी जाति या समुदाय में न तो सारे लोग अच्छे होते हैं और न ही सारे लोग बुरे।
.....................................
---सुरेंद्र किशोर- 27 अप्रैल, 20 

   एक अखबार समूह का 
  आर्थिक प्रबंधन ऐसा भी था
    ....................................
कई दशक पहले की बात है।
एक अखबार समूह के मालिक को लगा कि 
यदि प्रेस की स्वतंत्रता बनाए रखनी है तो
अखबार के घाटे को पाटने के लिए आय का 
वैकल्पिक स्रोत भी बनाना पड़ेगा।
क्योंकि सरकारी विज्ञापनों के भरोसे अखबार नहीं 
निकाला जा सकता है।
कई बार कुछ स्वतंत्र अखबारों को कुछ सरकारें ‘‘अभियानी मीडिया’’कहने लगती हैं।
हालांकि अभियानियों की एक अलग प्रजाति आज भी है।
फिर उसे सरकारी विज्ञापन नाम मात्र का ही मिलता है।
या, नहीं मिलता रहा है।
वैसे अभियानी अखबारों को सरकार से उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए।
हां, वह आय का वैकल्पिक स्रोत तो खड़ा कर सकता है। 
 खैर, उसकी बातें जिनकी चर्चा मैंने शुरू की थी।
 इसीलिए उस मालिक ने देश के कुछ बड़े नगरों में अपनी बहुमंजिली इमारतें बनवाईं।
इमारत के कुछ स्थानों में अखबार के प्रेस व आॅफिस वगैरह रहे।
 बाकी को किराए पर उठा दिया ।
किराए के पैसों से अखबार का घाटा पूरा होने लगा।
हालांकि अखबार में आज जैसी शाहखर्ची नहीं थी।
मालिक अपनी फियट के खुद ही ड्रायवर थे।
................................. 
    --सुरेंद्र किशोर--26 अप्रैल, 20

रविवार, 26 अप्रैल 2020

आजादी और गुलामी का फर्क
...........................
बहुत साल पहले मैंने एक आई.सी.एस.अफसर 
का संस्मरण पढ़ा था।
वह अंग्रेजों के जमाने में एक जिले का कलक्टर था।
उसने लिखा कि जब किसी गांव में आग लगती थी तो वहां राहत पहंुचाने के लिए सरकार के पास कोई फंड नहीं हुआ करता था।
  हमलोग स्थानीय व्यापारियों से आग्रह करते थे कि वे मदद करें।
 उनसे जो कुछ मिलता था,उसी से उन अभागों को थोड़ी-बहुत राहत पहुंच पाती थी।
   अब आज का जमाना देखिए।
कोरोना महामारी के समय में विभिन्न हमारी सरकारें लोगों को राहत पहुंचा रही हैं।
  कितना पहुंचा रही हैं,कैसे पहुंचा रही हैं ,इसको लेकर मतभेद हो सकता है।
पर आज का हाल अंग्रेजों के जमाने जैसा तो नहीं ही है !
आजादी ने हमें अपने लोगों का ध्यान रखने का भरसक अवसर दिया है। 
   यदि आजादी के बाद की विभिन्न सरकारों के कामकाज और उपलब्धियों पर गौर करें तो माना जाएगा कि बहुत काम हुए हैं।
पर, उतने नहीं हुए जितने हो सकते थे।
मुख्य कारण सरकारी भ्रष्टाचार रहा।
नतीजतन 2011-12 के आंकड़ों  के अनुसार इस देश के 21 दशमलव 9 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे थे।
यह आंकड़ा सुरेश तेंदुलकर कमेटी की रपट पर आधारित है।
उनमें से करीब 20 करोड़ लोगों को एक ही जून का भोजन उपलब्ध था।
बाद के वर्षों का आंकड़ा जानना भी दिलचस्प होगा।
मेरे पास नहीं है।
पर, बहुत अधिक फर्क तो नहीं ही आया होगा !
यदि फर्क आया होता तो हजारांे-हजार मजदूरों के 
पैदल मार्च का दृश्य आज उपस्थित नहीं होता। 
   ...................................
कोरोना महामारी के बाद के वर्षों में क्या हमारे हुक्मरान 
कुछ ऐसे ढंग से और इस गति से शासन चलाएंगे ताकि 
कोई भी भारतीय 
भूखा न सोए ? !!
.......................
---सुरेंद्र किशोर--26 अप्रैल 20  
    

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

अब अधिक अनुशासित और ईमानदार प्रशासन की पड़ेगी जरुरत --सुरेंद्र किशोर

   
देश के प्रमुख अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने आज के ‘हिन्दुस्तान’ में लिखा है कि 
‘‘सरकार के पास अब संसाधन काफी कम होंगे।
सरकार को इनका इस्तेमाल कुछ इस तरह से करना होगा कि उत्पादन बढ़े और मांग की स्थिति भी पैदा हो।’’
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कल कहा है कि
 ‘‘आत्म निर्भर और स्वावलंबी बनना कोरोना महामारी से 
मिला सबसे बड़ा सबक है।
गांवों को समृद्ध करने का वक्त आ गया है।’’
 उत्तर प्रदेश के पूर्व डी.जी.पी. प्रकाश सिंह ने दैनिक जागरण-25 अप्रैल, 20- में लिखा है कि 
‘‘पाकिस्तान से जो खतरे हैं,वे तो अपनी जगह पर हैं।
उससे भी ज्यादा खतरा वैश्विक स्तर पर जेहादी आतंक से होने वाला है।’’
  इन और इस तरह की स्थितियों से इस देश की सरकारों को 
जल्दी ही निपटना होगा।
कैसे निपटेगी ?
क्या पुरानी रीति-नीति काम आएगी ?
कत्तई नहीं।
किसी भी घनघोर समस्या से जूझने ,विकास और कल्याण करने की राह में भारत की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है।
अन्य समस्याएं द्वितीय महत्व की है।
नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद उस पर एक हद तक काबू पाया गया है।
पर, अब भी इस क्षेत्र में बहुत कुछ करना बाकी है।
कोरोना से निपटने के बाद इस देश की अर्थ व्यवस्था में नई जान फंूकनी पड़ेगी।
  क्या इस देश के भ्रष्ट नेता,व्यापारी और अफसर ऐसा करने देंगे ?
  जब तक भ्रष्टाचार में मुनाफा अधिक और घाटा कम है,
तब तक वे इस देश का पुनर्निर्माण नहीं करने देंगे।
अपना ही घर भरते जाएंगे।
  मेरी समझ से कोरोना संकट से निपटने के तत्काल
बाद केंद्र सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे।
1.-भ्रष्टाचार के लिए फांसी का प्रावधान करना ही होगा।
जरुरत पड़ने पर अन्य मामलों में सजाएं बढ़ाई जाती ही रही हैं।
2.-सांसद-विधायक फंड को हमेशा के लिए समाप्त करना होगा।
यह भ्रष्टाचार का ‘रावणी अमृत कुंड’ है।
 अधिकतर अफसर व सांसद अपनी  सेवा अवधि के प्रारंभिक काल 
से ही...............।सब नहीं।
3.-पूर्व केंद्रीय मंत्री चतुरानन मिश्र ने अपनी संस्मरणात्मक पुस्तक ‘‘मंत्रीत्व का अनुभव’’ में लिखा है कि 
नब्बे के दशक में केंद्रीय कृषि मंत्रालय से जुड़े संस्थान के निदेशक पद पर
तैनाती के लिए उम्मीदवार को दस 
लाख रुपए की रिश्वत देनी पड़ती थी।
  नरेंद्र मोदी को खुफिया तौर पर इस बात का पता लगाना चाहिए कि 
यह गोरखधंधा अब भी जारी है या बंद है ?
कोई घूस देकर कहीं पद पाएगा तो वह भ्रष्टाचार का कोरोना ही तो फैलाएगा !! 
मोदी मंत्रिमंडल के किसी सदस्य पर अब तक महा घोटाले का आरोप तो नहीं लगा है , इस बात की आम लोग भी सराहना करते हैं,पर उससे ठीक नीचे के स्तर को लेकर अब भी कई आशंकाएं व अफवाहें हैं।
  उसे सुधारे बिना कोरोना द्वारा नष्ट किए जा रहे इस देश को बाद में भी संभालना मुश्किल होगा।
 4.- इस देश में आई.ए.एस.की संख्या तत्काल बढ़ाई जानी चाहिए।
इसके लिए व्यापक तौर पर ‘‘लेटरल बहालियां’’ हों।
 उन्हें राज्यों में भी तैनात किया जाए।
यदि जरुरत हो तो संविधान में संशोधन हो।
इस देश की विभिन्न सरकारों में मलाईदार पद अधिक हैं
 और आई.ए.एस.अफसर कम।
  आप आम तौर पर उनकी बदली करते हैं।
साधारणतया उससे समस्या बनी की बनी रह जाती है।
  इस देश में आई.ए.एस.अफसरों के बीच के जो 
ईमानदार लोग हैं,उन्हें भी 
कत्र्तव्यनिष्ठ बने रहने में अक्सर कठिनाई होती है। 
5.- प्रधान मंत्री की बातों से लगता है कि डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के बारे में सही सूचनाएं उन्हें नहीं मिल रही हैं।
उनकी धारणा है कि अब ऐसा नहीं होता कि दिल्ली से सौ पैसे चलते हंै और 15 पैसे ही पहुंच पाते हंै।
मोदी जी को लगता है कि सौ के सौ पैसे पहुंच जा रहे हैं।
मुझे तो सरजमीन से इससे विपरीत खबरें मिलती रहती हैं।
 85 पैसों की तो लूट अब नहीं है।
पर लूट तो जारी है।
कितनी लूट है ?
उसकी नमूना जांच प्रधान मंत्री प्रामाणिक एजेंसी से करा लें। 
  नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट में जो भूमिका निभाई है,
उससे मोदी जी की लोकप्रियता बढ़ी है।
इसलिए इस महामारी से उबरने के बाद मोदी सरकार 
कुछ कड़े कदम उठाने का भी जोखिम ले सकती है।
क्योंकि अपवादों को छोड़ कर यह आम धारणा है कि 
मोदी गलती कर सकता है,पर बेईमानी नहीं।
  ऐसा कदम जैसा सिंगापुर के प्रधान मंत्री ली कुआन यू ने 
कभी उठाया था।
अनुशासित व ईमानदार प्रशासन के जरिए ली कुआन ने सिंगा पुर के लोगों की प्रति व्यक्ति आय को 500 डालर से बढ़ा कर 55 हजार डाॅलर कर दिया था।
  कुआन के 2015 में निधन के बाद नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 
‘‘वे एक दूरदर्शी राजनेता थे।
 नेताओं में सिंह थे।
ली कुआन का जीवन हर किसी को अमूल्य सीख देता है।’’
  मोदी जी, आपके लिए भी वह सीख लेने का एक अवसर आ गया है।
मत चूको चैहान !!    
............................
25 अप्रैल 2020

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

दैनिक ‘आज’ के संस्थापक शिवप्रसाद गुप्त 
की पुण्य तिथि-24 अप्रैल-पर दो बातें
---------------
सन् 1977 के प्रारंभ में मैंने ‘आज’ अखबार 
के पटना ब्यूरो में नौकरी शुरू की थी।
उस संस्थान में 1983 तक रहा।
इस बीच ‘आज’ और उसके संस्थापक व पूर्व संपादकों के बारे में मैंने कई प्रेरणादायक संस्मरण अपने वरीय संपादकों से सुने।
 1.-महात्मा गांधी की प्रेरणा से शिवप्रसाद गुप्त ने वाराणसी से दैनिक आज अखबार का प्रकाशन शुरू किया था।
उसके सर्वाधिक प्रतिष्ठित व चर्चित संपादक थे--बाबूराव विष्णु पराड़कर।
2.-‘आज’ अखबार के मालिक किसी भी समय संपादक के कमरे में नहीं चले जाते थे।
किसी को भेज कर पहले पता लगवाते थे कि 
‘‘जरा देख लो कि पंडित जी व्यस्त तो नहीं हैं।’’
  3.-शिवप्रसाद गुप्त वाराणसी के आधा दर्जन सर्वाधिक धनी हस्तियों में एक थे।
वे कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष भी थे।तब कांग्रेस का मुख्यालय इलाहाबाद में था।
‘आज’ में कभी -कभी कांग्रेस के खिलाफ भी छप जाता था।
मैंने सुना था कि गुप्त जी कभी आलोचना करने से संपादक को रोकते नहीं थे।
हां, आलोचना वाले मामले में कांग्रेस के पक्ष को संपादक के नाम पत्र काॅलम में जरुर
जगह मिल जाती थी।
4.-तब ‘आज’ अखबार पढ़कर लोग अपनी हिन्दी सुधारते थे।
5.-भाषण देने के आमंत्रण को पराड़कर जी स्वीकार नहीं करते थे।
कह देते थे कि मैंने संपादकीय आज लिखा है,उसे सभा में पढ़कर सुना दीजिएगा।
जाहिर है कि आज की संपादकीय स्वतंत्रता अखबार के मालिक शिव प्रसाद गुप्त की देन थी।
उस स्वतंत्रता का तब के संपादक दुरुपयोग भी नहीं करते थे।
6.-अस्सी के दशक में राजेंद्र माथुर ने कहा था कि किसी संपादक की स्वतंत्रता उतनी ही है जितनी कोई अखबार मालिक अपने संपादक को देता है।
पर जितनी स्वतंत्रता देता है,उसका यदि सदुपयोग हो तो वह भी पर्याप्त है।
जो बात माथुर साहब ने नहीं कही,उसे मैंने महसूस किया कि जब कुछ संपादक उस स्वतंत्रता का सदुपयोग नहीं करने लगे तो बाद के वर्षों में कुछ मालिकों ने अपने ‘‘हाथ खींच’’ लिए।
  यानी, मैं ही क्यों नहीं ???!!!!
   .....................................
 --सुरेंद्र किशोर-24 अप्रैल 20


  अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी ?
  ..................................................
किसी संगठन या सत्ता के पास बिदुर जैसा सलाहकार
होना चाहिए या शकुनी जैसा ?
कौरव पक्ष के पास तो दोनों तरह के सलाहकार थे।
पर, उसने शकुनी की सलाह मानी ।
बिदुर की सलाह को ठुकराया।
नतीजा क्या हुआ ?
डीडी भारती पर जारी धारावाहिक ‘महाभारत’ की  अगली 
किस्तों से नई पीढ़ी को भी नतीजे का पता चल जाएगा।
 आज यह देखकर दुःख होता है कि कुछ संगठनों में न सिर्फ नेतृत्व की गुणवत्ता का संकट है,बल्कि अच्छे सलाहकारों की भी भारी कमी है।
यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।
  वैसे यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कौन नेता किस तरह की सलाह को मानता है और कौन किस सलाह को ठुकरा देता है।
 काफी पहले की बात है।
एक बार एक व्यक्ति ने बिना मांगे एक सलाह एक मुख्य मंत्री को दे दी थी।
  सलाह यह थी कि आप अपने मंत्रिमंडल से चार प्रमुख जातियों के सारे मंत्रियों को निकाल बाहर कर दें।
आपकी राजनीति और चमक जाएगी।
उस मुख्य मंत्री ने वह बात नहीं मानी।
   पर आज के कुछ नेता इस तरह की बातें भी मान कर अपने ही पैरों में लगातार कुल्हाड़ी मारते जा रहे हैं।
...................................
कुल्हाड़ी मारने के कुछ उदाहरण-
1.-एक राजनीतिक दल ने 2019 के लोस चुनाव से पहले सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत 
आरक्षण का संसद में विरोध कर दिया।
2.-दूसरे राजनीतिक दल मोदी सरकार से मांग कर दी कि सरकार मीडिया को विज्ञापन देना बंद कर दे।
3.-एक नेता ने आज यह आरोप लगा दिया कि भाजपा संकट में नफरत फैला रही है।
जबकि इस नेता ने तब्लीगी जमात के प्रमुख के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया। जबकि उस पर नफरत फैलाने का आरोप बनता था। 
  तब्लीगी मरकज के मौलाना मोहम्मद शाद  ने हाल में कहा था कि
‘‘कोरोना कोई बीमारी नहीं है।
बल्कि एक मुसलमान को दूसरे मुसलमान से अलग करने की साजिश है।’’
 शाद की आवाज में यह बात टीवी चैनलों पर असंख्य लोगों ने सुनी भी।
ऐसा कह कर उसने अपने अनुयायियों को नियम-कानून-प्रतिबंध तोड़ने के लिए उकसाया।
.................................................
  --सुरेंद्र किशोर--23 अप्रैल 20
  

बुधवार, 22 अप्रैल 2020


 जान की कीमत पर अनुशासन तोड़ने 
 में भला कैसी समझदारी !--सुरेंद्र किशोर
..............................................
 ये बातें सिर्फ उनके लिए हैं जो लोग जहां -तहां आए दिन लाॅकडाउन की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
ये बातें उनके लिए नहीं जो दूरदर्शी हैं और इसलिए अनुशासन में हैं।
  अरे नियम भंजक भाइयो ! अपने और अपने परिजन की जान की  कीमत पर लाॅकडाउन तोड़ने में भला कौन सी समझदारी है ?
सरकार और शासन से लड़ने के अनेक अवसर बाद में आपको मिल ही सकते हैं।
पर, अभी तो हम कोरोना वायरस नामक एक अदृश्य दुश्मन से लड़ रहे हैं।
पहले इसे तो पराजित करने में मदद कीजिए !
सबकी मदद मिलेगी तो मर्ज जल्दी भागेगा।
दूसरे प्रदेशों से रेलगाड़ियों में भर कर जल्द से जल्द क्यों अपने प्रदेश में
लौटना चाहते हैं ?
  यदि उस टे्रन में पांच व्यक्ति भी कोरोना संक्रमित होगा,तो उसका क्या नतीजा होगा ?
भयंकर नतीजा होगा।वे जहां-जहां जाएंगे,कोरोना वहां-वहां फैल जाएगा।
उससे पहले तो उस ट्रेन की लंबी यात्रा में ही महामारी  अपनी करामात दिखा चुकी होगी !  
उस आशंकित नतीजों की कल्पना तो कर लीजिए।
  इधर भी जहां -तहां भारी भीड़ जुटा कर क्यों बीमारी को फैलाना 
चाहते हैं ?
चिकित्सकों,पुलिस और चिकित्साकर्मियों  पर हमला करने से अंततः किसका नुकसान होगा ?
 यदि स्थिति ठीक रही तो बिहार के 38 जिलों में से 27 जिलों में 20 अप्रैल से लाकॅडाउन में ढील मिलने वाली है।
 यदि स्थिति को ठीक बनाए रखने में मदद नहीं कीजिएगा तो कैसे छूट मिल पाएगी ?
फिर उसका नुकसान किसे होगा ? 
......................................
 कोरोना से मुक्ति के बाद की
 कालावधि को लेकर चिंता क्यों ?
.......................................... 
 कुछ अपवादों को छोड़कर इस देश-प्रदेश  के अधिकतर लोग 
कोरोना वायरस से संघर्ष में शासन का साथ दे रहे हैं।
  इसलिए देर-सवेर हमें कोरोना से मुक्ति मिलनी ही है।
अधिक अनुशासन रहेगा तो उससे अपेक्षाकृत जल्दी महामारी से मुक्ति मिलेगी।
पर, इस बीच यह महामारी हमारी बहुत सारी व्यवस्थाओं को उलट -पुलट कर रख दे सकती है ,ऐसी आशंका जाहिर की जा रही है।
  पर इस देश के लोगों में ऐसी इच्छाशक्ति मौजूद रही है जो उन व्यवस्थाओें को पटरी पर लाकर ही रहेगी।
इसलिए अभी से आशंकित बुरे दिनों की चिंता क्यों ?
  1994 का सूरत का प्लेग इसका एक नमूना है।
 प्लेग महामारी के फैलने से पहले सूरत की गिनती देश के गंदे 
नगरों में होती थी।
  प्लेग से तो सिर्फ 56 लोगों की जानें गई थीं ,पर एक हजार लोग रोगग्रस्त हो चुके थे।
  रोगग्रस्त लोगों की संख्या के अनुपात में वहां तब आतंक बहुत अधिक था।करीब दो लाख लोगों ने सूरत छोड़ दिया था।
  पर प्लेग थमने के बाद शुरू हुआ था सूरत के पुनर्निर्माण का काम।
  इस काम में मुख्य भूमिका निभाई आई.ए.एस.अफसर एस.आर.राव ने।
उन्होंने नगर की सूरत इस तरह बदल दी कि सूरत देश के सबसे स्वच्छ शहरों में एक गिना जाने लगा।
साथ ही,कुछ ही साल के भीतर निवेश के मामले में भी गुड़गांव और नोयडा के बाद सूरत का ही नाम आने लगा था।
 हां,तब की गुजरात की राजनीतिक कार्यपालिका ने एस.आर.राव के काम में हस्तक्षेप न करके उन्हें सहयोग किया।
अक्सर यह देखा जाता है कि यदि राजनीतिक कार्यपालिका किसी कत्र्तव्यनिष्ठ अफसर को उसके काम में हस्तक्षेप न करे तो बहुत अच्छे नतीजे आते हैं।
  हम उम्मीद करें कि कोरोना के बाद का देश-प्रदेश का जन- जीवन भी पहले से बेहतर ही होगा। 
........................................... 
पर्यटन वीसा पर धर्म प्रचार !
...........................................
कोरोना संकट के समय एक खास बात का भी आम लोगों को पता चला।
विदेशों से लोगबाग आते तो रहे हैं पर्यटन वीसा पर ,पर करते रहे हैं धर्म प्रचार !
 यह काम कोई नया नहीं है।
पिछली सरकारों के दौर से ही यह होता रहा है।
पर सरकारें इस अनियमितता को नजरअंदाज करती रही है।
संभवतः अब ऐसा नहीं होगा।होना भी नहीं चाहिए।
  धार्मिक प्रचार करने या फिर धार्मिक समारोह में शामिल होने के लिए भारत सरकार किसी विदेशी को वीसा नहीं देती।
ऐसा कोई नियम ही नहीं है।
 केंद्र सरकार ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के तहत 2015 में यह बात बताई थी।
.........................................
    उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाकर
   चीन कर सकता है प्रायश्चित !
 ----------------- 
 कोरोना वायरस को लेकर बाकी अनेक देशों में चीन के प्रति नाराजगी देखी जा रही है।
पता नहीं कोरोना संकट से उबरने के बाद अन्य देशों का चीन से कैसा रिश्ता रहेगा !!
 यदि रिश्ता सामान्य हो जाए तो एक काम करके चीन अन्य देशों का गुस्सा थोड़ा कम कर सकता है।
  अक्सर यह शिकायत आती रहती है कि चीन के उत्पादों की गुणवत्ता 
ठीक नहीं है।
 हाल में चीन ने भारत को एक लाख 70 हजार पर्सनल प्रोटेक्सन इक्वीपमेंट भेजे।
उनमें से 50 हजार पी.पी.ई.सुरक्षा मानक पर खरे नहीं उतरे।
 अब तो गुणवत्ता सुधार कर चीन अपनी साख बढ़ाए !
.................................. 
   और अंत में 
  .............................
सऊदी अरब सरकार ने विशेष नमाज घरों में ही पढ़ने को कहा है।
दूसरी ओर, पाकिस्तान के करीब 50 सिनियर मौलानाओं ने धार्मिक कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ पाक सरकार को चेतावनी दे दी है।
मौलानाओं ने यह भी कहा कि वायरल से छुटकारा पाने के लिए जरुरी है कि वे अल्ला से माफी मांगें और मस्जिदों में जमघट बढ़ाएं।
 याद रहे कि भारत के अनेक मुस्लिम धर्म गुरुओं ने घरों में ही नमाज पढ़ने की लोगों से अपील की है।
 ...............................
17 अप्रैल 2020 के प्रभात खबर,पटना में प्रकाशित मेरे साप्ताहिक काॅलम कानोंकान से।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

तब्लीगी जमात और सेक्युलर दल
 .......................................
खुद को ‘सेक्युलर’ कहने वाले किसी राजनीतिक 
दल के किसी शीर्ष नेता ने तब्लीगी जमात के 
कारनामों के खिलाफ कोई सार्वजनिक बयान 
जारी किया है ?
यदि किया है तो बहुत अच्छी बात है।
 मुझे भी बताएं ।
मैं उस बयान को फेसबुक वाॅल पर शेयर करूंगा।
1.- ताकि उनके खिलाफ बहुमत आबादी में पल रहे
 अकारण गुस्से को कम किया जा सके।
 2.- ताकि अगले किसी चुनाव में उन सेक्युलर दलों 
को अकारण कोई चुनावी नुकसान न हो जाए ।
...........................
  ---सुरेंद्र किशोर--21 अप्रैल 2020

सोमवार, 20 अप्रैल 2020

   अरूंधति की ताजा भारत विरोधी राय !!
     .........................................
सन 2008
----
कश्मीर को भारत से स्वतंत्रता चाहिए--अरुंधति राय।
सन 2010
.................
कश्मीर कभी भारत का अविभाज्य अंग नहीं रहा--अरुंधति राय।
सन 2011
................
 पाकिस्तान ने अपने लोगों के खिलाफ कभी अपनी सेना का 
 इस्तेमाल नहीं किया जिस तरह भारत ने कश्मीर तथा अन्य राज्यों में किया।
--याद रहे कि इस बयान के लिए अरुंधति को बाद में माफी मांगनी पड़ी थी।--
सन् 2013
....................
अफजल को दी गई  फांसी भारतीय लोकतंत्र पर दाग है--अरुंधति राय।
सन 2019
.................
 भारतीय नागरिकों से मेरी अपील है कि यदि एन.पी.आर के लिए सर्वे
करने के लिए सरकारी कर्मचारी आपके घर जाएं तो आप उन्हंे अपना गलत नाम और पता बता दीजिए--अरुंधति राय।
सन् 2020
 ...............
कोरोना संकट की आड़ में भारत सरकार हिन्दू-मुस्लिम के बीच तनाव बढ़ा रही है।
हालात जातीय या सामूहिक संहार की ओर बढ़ रहे हैं--अरुंधति राय।
--------------
अरुंधति ने एक बार इस देश के माओवादियों को गांधीवादी बताया था।
................
अरुंधति राय के इसी तरह के भारत विरोधी बयान समय -समय पर आते ही रहते हैं।जब भी वह जुबान खोलती है,इस देश के खिलाफ आग ही उगलती है। 
...........................
कई लोग इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि ऐसे देशतोड़क बयानों को लेकर सुश्री राय के खिलाफ सबक सिखाने वाली कार्रवाई क्यों नहीं होती ?
........................
कार्रवाई नहीं होने के कारण अन्य राष्ट्र विरोधी तत्वों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
ठीक उसी तरह जिस तरह इस देश के कुछ निजी इलेक्टाॅनिक चैनलों के डिबेट में बैठकर कई राष्ट्र विरोधी तत्व अक्सर आग उगलते रहते हैं ।
उससे उनके समर्थकगण उत्साहित होकर अपनी गतिविधियां यदाकदा तेज कर देते हैं।
इससे शासन की कठिनाइयां बढ़ जाती हैं।
......................
यह भी आश्चर्य की बात है कि देश में आग लगाने वालों को 
कुछ प्रमुख न्यूज चैनल बढ़ावा क्यों देते हैं ?
संभवतः उन्हें इस बात की समझ ही नहीं है कि टी.आर.पी.-विज्ञापन रेवेन्यू से अधिक महत्वपूर्ण देश की  एकता-अखंडता है।
........................................
----सुरेंद्र किशोर-- 19 अप्रैल 2020

      एक अलगाव इस तरह का भी !!
     ..................................................................
 इस देश में कोरोना वायरस फैलाने में ‘‘सिंगल श्रोत’’
का 30 प्रतिशत योगदान रहा है,
वह भी जानबूझकर।
  ‘‘योगदान’’अनजाने में रहा होता तो गुस्सा कम होता।
फिर भी, उस श्रोत के खिलाफ तथाकथित सेक्युलर दलों व बुद्धिजीवियों में से अधिकतर के रुख-रवैए से अधिकतर आम लोग क्षुब्ध नजर आ रहे हैं।
गांवों से लेकर शहरों तक जहां -तहां दुःख भरा गुस्सा देखा जा रहा है।
 विपत्ति लाने वालों के खिलाफ कुछ दलों-नेताओं ने मौन व्रत धारण किया तो कुछ अन्य ने ‘‘सिंगल श्रोत’’ का तरह -तरह के बहाने बनाकर बचाव किया।
  कुछ प्रेक्षक यह आशंका जाहिर कर रहे हैं कि कुछ खास दलों को उसका खामियाजा अगले चुनाव में भुगतना पड़ सकता है,यदि वे अपने रवैए पर तब तक कायम रहे ।
---सुरेंद्र किशोर--

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

कोरोना महामारी को देखते हुए ब्रिटेन की महारानी की पोती बीट्रिस की शादी तो टाल दी गई।
पर पूर्व प्रधान मंत्री देवगौड़ा के पोते निखिल की शादी होकर रही।
यही है परपरांगत शाही परिवार और लोकतांत्रिक शाही परिवारों के बीच का फर्क !!
कैसा लगा ??
..............................
   --सुरेंद्र किशोर -17 अप्रैल 2020

दिवंगत प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के सकारात्मक पक्षों के बारे में जब कोई प्रशंसात्मक पोस्ट मैं लिखता हूं तो 15-20 से अधिक लाइक नहीं मिलते।
फेसबुक वाॅल पर 12 अप्रैल, 2020 का मेरा एक ताजा पोस्ट भी इसका उदाहरण है।
पर जैसे ही किसी मामले में उनकी आलोचना लिख देता हूं तो 
देश भर से एक खास तरह  के बुद्धिजीवी नाराज हो उठते हैं।
ऐसा क्यों होता है ?
 ......................
मेरी व्यक्तिगत राय में आजादी की लड़ाई में नेहरू का योगदान प्रशंसनीय है।
पर आजादी के बाद एक सत्ताधारी के रूप में उनकी भूमिका को लेकर जो कुछ सवाल यदा- कदा उठते रहे हैं,उन्हें कालीन के नीचे तो दफनाया नहीं जा सकता है !  
  आपकी इसमें क्या राय है ?
.................................
  ---सुरेंद्र किशोर--16 अप्रैल 2020

सोमवार, 13 अप्रैल 2020


 दल -बदलुओं के बच निकलने का रास्ता बंद करने वाला कानून बने
    --सुरेंद्र किशोर--

मध्य प्रदेष की राजनीति में जो कुछ हो रहा है,वह कोई पहली बार नहीं  है।
ऐसी  राजनीतिक उठापटक को कोई लोकतंत्र प्रेमी पसंद नहीं करता ।
आप पांच साल के लिए चुने जाते हैं।
इसी बीच आप सरकार गिरा देंगे ?!
सरकार गिराने के पक्ष में आप जो भी तर्क दें,पर
एक बात जान लीजिए कि संविधान निर्माताओं ने इसकी कोई कल्पना तक
 नहीं की थी।
इसीलिए उन लोगों ने उसे रोकने के लिए कोई प्रावधान भी नहीं किया ।
बाद में करना पड़ा।
दल बदल विरोधी कानून बना।
 जरुरत पड़ी तो उसमें संषोधन भी हुआ।
फिर भी दल बदलू उस कानूनी फंदे से बचने के रास्ते निकालते रहे।
अब सरकार को कोई ऐसा उपाय करना पड़ेगा ताकि दलबदलू अपने स्वार्थ में उस कानून 
में कोई छेद न बना  पाएं।
    मध्य प्रदेष में दल बदल का लाभ भाजपा को मिलता नजर आ रहा है। 
किसी अन्य मामले में
लाभ कांग्रेस को मिल सकता है।
इस तरह सरकारों के गिरने-बनने से बारी -बारी से दल खुष होते रहै हैं।
पर निरपेक्षा जनता उदास ही होती रही है।
 दल -बदलू किसी के नहीं होते।
वैसे लोगों को ध्यान में रखते हुए खास कानूनी प्रावधान होना चाहिए।
ऐसा प्रावधान बने जिसके तहत जो भी दल बदल करें,उन्हें सदन से इस्तीफा देना पड़े।
चाहे उसके पक्ष में दो -तिहाई  जन प्रतिनिधि क्यों न हों।
दल बदलू को उस विधान सभा या लोक सभा के 
बचे कार्यकाल के लिए उप चुनाव नहीं लड़ने देना चाहिए।
कोई दूसरा लड़े।
उसका कोई करीबी रिष्तेदार भी न लड़े।
फिर देखिए।इससे कुछ तो फर्क आ ही सकता है। 
 राजनीति की शरद यादव षैली !
........................................
राजद ने शरद यादव को राज्य सभा का टिकट नहीं दिया।
इसको लेकर शरद यादव के कुछ समर्थकों ने राजद खास कर 
लालू प्रसाद के खिलाफ सार्वजनिक रूप से रोष प्रकट किया।
अब जरा पीछे जाइए।
2007 में शरद यादव ने एक अखबार में लेख लिखा था।
उन्होंने लिखा कि ‘‘मेरी जिन्दगी की सबसे बड़ी भूल यह थी कि 
मैंने कर्पूरी ठाकुर के उत्तराधिकारी के रूप में बिहार 
की राजनीति में लालू प्रसाद को बिहार की राजनीति 
में आगे बढ़ाया ।जबकि, जनता दल के विधायकों में 
दो  दर्जन से ज्यादा लोग बिहार की राजनीति में लालू से 
ऊंची हैसियत रखते थे।’’
    शरद जी, जब आपको तब मौका मिला था तो आपने 
किन्हीं खास बातों का ध्यान रखते हुए 
योग्य नेताओं को नजरअंदाज किया।
अब जब लालू प्रसाद के हाथों में अधिकार है तो वे अपनी 
राजनीतिक तथा अन्य सुविधाओं का
ध्यान रख रहे हैं ।
फिर  उसमें आपके समर्थकों को  एतराज 
करने का  नैतिक हक नहीं है।  
भूली-बिसरी याद
पहली कथा-
बिहार के स्वतंत्रता सेनानीष्ष्याम नारायण सिंह 1937 में बिहार की विधायिका के
सदस्य चुने गए थे।वह जिला बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे ।
  नालंदा जिले के मूल निवासीष्ष्याम बाबू ने 1946 के सांप्रदायिक दंगे के समय 
सराहनीय काम किया था।उन्होंने 
तब दंगाई भीड़ से हजारों अल्पसंख्यकों को बचाया था।
उन्होंने अपने पारिवारिक मंदिर के पीछे स्थित 
अपने उद्यान में उन लोगों को पनाह दी थी।  
दूसरी कथा-
सन 1963 में दीन दयाल उपाध्याय उत्तर प्रदेष के ब्राह्मण बहुल क्षेत्र 
जौन पुर से लोक सभा 
का चुनाव लड़ रहे थे।वहां उप चुनाव हो रहा था।
वहां के कुछ लोगों ने उपाध्याय जी से आग्रह किया कि आप ब्राह्णों
को अलग से संबोधित करें।
उन्होंने यह कहते हुए ऐसा करने से इनकार कर दिया कि जातिवाद की जीत,
रास्ट्रवाद की हार होगी।
जातिवाद की जीत जनसंघ की सैद्धांतिक पराजय भी होगी ।
उपाध्याय जी वह उप चुनाव हार गए।
तीसरी कथा-
सन 1967 में डा.राम मनोहर लोहिया लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे।
उसी समय किसी संवाददाता ने उनसे पूछ दिया कि सामान्य नागरिक संहिता पर
आपकी क्या राय है ?
उन्होंने तपाक से कहा कि वह तो बननी ही  चाहिए।
इस पर उनके कुछ समाजवादी सहकर्मियों ने कहा कि यह आपने 
क्या कर दिया ?
अब तो आप चुनाव हार जाएंगे।
क्योंकि आपके क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या काफी है।
उस पर लोहिया ने कहा कि मैं सिर्फ चुनाव जीतने के लिए
 राजनीति में नहीं हूं।
देष बनाने के लिए राजनीति में हूं।
वे इस बयान के कारण  हारते -हारते बचे।
मात्र 400 वोट से लोहिया जीते।
चैथी  कथा-
1994 में भाजपा नेता तरूण विजय ने  एक लेख लिखा था।
उसमें उन्होंने कम्युनिस्टों की 
तारीफ की थी।
तरूण विजय ने लिखा कि ‘‘अगर अपवाद माना जाए तोष्षायद कम्युनिस्ट 
पार्टी के सांसद होंगे जिन्होंने
 अपने लिए मिलने वाली आवासीय सुविधाएं पार्टी के संगठनों और कार्यकत्र्ताओं में 
बहुत ईमानदारी से बांटी।
यह लिखने का आषय यह है कि कुछ दषक पहले तक लगभग सभी दलों में आदर्षवादियों 
की संख्या कम नहीं थी।
पर,अब बहुत खोजने पर वैसे लोग मिलते हैं।   
और अंत में 
------ 
स्न 2008 से अब तक एन.आई.ए. को जांच के लिए 319 मामले 
समर्पित किए गए थे।
उनमें से 237 मामलों में अदालतों में आरोप पत्र दाखिल कर दिए गए।
62 मुकदमों में अदालतों के निर्णय भी आ गए।
उनमें से 56 में आरोपितों को सजा भी हो गई।
यानी, सजा का प्रतिषत 
करीब 90
फीसद  रहा।
केरल  में सामान्य अपराधों में भी सजा का प्रतिषत 80 से अधिक रहा।
  पर पूरे देष में सामान्य अपराधों में सजा का प्रतिषत 46 रहा।
इतना  अंतर क्यों ?
इस अंतर के कारणों का पता लगा कर उन्हें दूर करने से सरकार का भी 
भला होगा और जनता का भी।
....................................
कानोंकान,
प्रभात खबर,
पटना 
20 मार्च 2020
    



सिर्फ आपदा आने पर ही हमें सालती है भ्रष्टाचार-काहिली की कथाएं--सुरेंद्र किशोर
.......................................................
कोरोना वायरस ऐसी महामारी है जिसका मुकाबला अमीर देश भी नहीं कर पा रहे हैं।
जरुरतों के अनुपात में वहां भी मेडिकल संरचनाएं नाकाफी ही साबित हो रही हैं।
सर्वाधिक पीड़़ादायक स्थिति यह है कि इस मर्ज की दवा तक का इजाद होना अभी बाकी है।
पर, इस बीच हमारा हाल कैसा है ?
सरकार व जनता का मनोबल तो ऊंचा है।
इसे बनाए रखने में सरकार का भी योगदान है।
पर, मरीजों की देखभाल के लिए ढांचागत प्रबंधन यहां पहले ही जैसा अत्यंत नाकाफी है।
 इस देश में जितने डाॅक्टर चाहिए,उससे पांच लाख कम हैं।ग्रामीण व अर्ध शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य से संबंधित ढांचागत व्यवस्था तो 
राम भरोसे है।
न तो हम पर्याप्त संख्या में चिकित्सा कर्मी तैयार कर पाएं हैं और न ही अस्पताल और बेड।
सरकारी अस्पतालों की आधी मशीनें 
तो खराब ही रखी जाती है।
हमारे पास वैसी क्षमता तो कत्तई नहीं है कि हम चीन की तरह 10 दिनों में 1000 बेड का अस्थायी अस्पताल बना लें।
  इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यहां सिस्टम में भ्रष्टाचार व काहिली हंै।
 स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च करने के लिए कंेद्र और राज्य सरकारें जितने पैसों का आबंटन भी करती हैं,उसका सदुपयोग नहीं हो पाता।
आबंटन भी जरुरत के अनुपात में कम ही होता है।
निगरानी तंत्र में ही घुन लगा हुआ है। 
तंत्र का अधिकतर अंग लूट की ताक में रहता है।यह हाल कमोवेश पूरे देश का है।
हमारी अनेक अन्य समस्याओं का भी सबसे बड़ा व मूल  कारण भ्रष्टाचार ही है।
भारत के बारे में चीन में एक कहावत है-‘‘भारत सरकार अपने बजट के पैसों को ऐसे लोटे में रखती है जिसमें अनेक छेद हैं।’’ 
.....................................  
  महान उक्तियों के बावजूद 
  नतीजा निराशाजनक
...............................
आजादी के बाद से ही  नेताओं ने  भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने की जरुरत समझी।
फिर भी स्थिति में अब जाकर थोड़ा सुधार हुआ है।
यानी पिछले कुछ वर्षों में महा घोटाले तो थमे हैं,पर खुदरा घोटाले जारी हैं।यदि हमें कोरोना जैसी  विपत्ति  पर अपनी दयनीयता के कारण शर्मिंदा नहीं होना है तो  भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के सिवा कोई चारा नहीं।
  इस मौके  नेताओं की उक्तियों से आपको अवगत करा दूं।    
भ्रष्टाचार को लोकतंत्र की अपरिहार्य उपज नहीं बनने दिया  जाना चाहिए--महात्मा गांधी।
भ्रष्टाचारियों को नजदीक के लैंप पोस्ट से लटका दिया जाना चाहिए--जवाहर लाल नेहरू।
भ्रष्टाचार तो विश्वव्यापी फेनोमेना है--इंदिरा गांधी।
सत्ता के दलालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए--राजीव गांधी।
मुल्क के शक्तिशाली लोग इस देश को बेच कर खा रहे हैं --मधु लिमये।
इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है--मनमोहन सिंह।
भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकता--सुप्रीम कोर्ट ।
.भ्रष्ट लोगों से छुटकारा पाने का रास्ता यही है कि कुछ लोगों को लैंप पोस्ट से लटका दिया जाए-सुप्रीम कोर्ट।
 ‘‘हमारा संकल्प है जनता को लूटने वालों को उनकी सही जगह पहुंचाने का।
इस पर काम हो रहा है।
कुछ लोग चले भी गए हैं।
  खुद को कानून से ऊपर मानने वाले बेल के लिए चक्कर काट रहे हैं।’’
--नरेंद्र मोदी।
................................
आत्म मंथन का अच्छा अवसर 
..................................
इन दिनों घर से बाहर निकलना मना है।इसलिए लगभग सारी गतिविधियां ठप हैं।
राजनीतिक गतिविधियों का  ठप होना नेताओं के लिए अखरने वाली बात है।
पर, कोई हर्ज नहीं !
बाहर नहीं तो नेता जी खुद के भीतर ही चले जाएं !
थोड़ा आत्म -मंथन कीजिए।
  सोचिए कि आपने पिछले कुछ वर्षों  में क्या खोया और क्या पाया ?
खोया तो क्यों खोया ?
पाया तो उसे बनाए रखने के लिए आपको क्या-क्या करना है ?
 क्या वैसा आप कर रहे हैं ?
या, कुछ दूसरे ही दुनियादारी ‘‘काम-धंधे’’  में लगे हुए हैं ?
दुबले होते एक राजनीतिक दल की स्थिति कैसे सुधरे ?
उस पर उस दल के हितचिंतकों के अनेक लेख इन दिनों छप रहे हैं।
कारण भी बताए जा रहे हैं और निराकरण भी।
पर सुधार के कोई लक्षण नहीं।
क्योंकि कारण भी गलत है और निराकरण भी।
यहां तक कि एक खास रपट को भी कांग्रेस हाईकमान ने नजरअंदाज कर दिया।
एंटोनी कमेटी ने रपट सोनिया गांधी  को 2014 में ही दे दी।
उसमें अन्य कारणों के साथ- साथ यह भी लिखा गया था कि मतदाताओं को, हमारी पार्टी अल्पसंख्यक की तरफ झुकी हुई लगी जिसका हमें नुकसान हुआ।
पर कांग्रेस हाईकमान ने एंटोनी की इस बात को भी नजरअंदाज कर दिया।वैसे भी एंटोनी साहब की सीमा है।खुल कर वे पूरी बात बोल नहीं सकते।
इसलिए बेहतर यह होगा कि कांग्रेस कुछ खास तरह के  विशेषज्ञों को विदेश से बुलाए।
उनसे कहें कि हमारी दुर्दशा के कारणों को आप ही हमें निर्भीक होकर बताएं।ं
साथ ही उससे उबरने के उपाय भी।
शायद कोई राह मिल जाए !
यदि कांग्रेस सचमुच कोई राह खोजना चाहती है !!
.......................................
      और अंत में
...................................
आपात काल में दुकानदारों के लिए यह जरुरी कर दिया गया था कि
वे अपनी दुकानों  में मूल्य सूची टांगेें।
वे टांगने को मजबूर थे।
  आज कोरोना वायरस आपदा से उत्पन्न स्थिति का गलत लाभ उठाकर कुछ व्यापारी मुनाफाखोरी कर रहे हैं। 
क्या  प्रशासन मूल्य सूची की तख्ती लटकाने के लिए उन्हें एक बार फिर बाध्य नहीं कर सकता ?
  सब्जी के एक ही बाजार में एक ही सब्जी कई भाव में बिकती रहती  हैं।
शासन चाहे तो हर सब्जी मार्केट में एक -एक मूल्य सूची का बोर्ड लगवा सकता है।
..................................
27 मार्च 20 के प्रभात खबर,पटना में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से ।



स्वास्थ्य और सुरक्षा की संरचनाओं को मजबूत बनाने की जरुरत-सुरेंद्र किशोर
  कोरोना महामारी ने विकसित देशों की स्वास्थ्य संबधित बुनियादी  संरचनाओं को भी नाकाफी साबित कर दिया है।
पर, हमारे यहां कोरोना का प्रकोप अपेक्षाकृत अब तक कम रहा है।
फिर भी हमारी कमियां भी उभर सामने आ गईं हैं।
स्वास्थ्य कर्मियों के मामले में और प्रशासन तथा  सुरक्षा तंत्र के मामले में भी।
लाॅकडाउन को आखिरी दिन तक सख्ती से लागू करने का आदेश था।
पर उसे लागू करवाने वाला तंत्र जहां तहां नाकाफी साबित हुआ।
   ये कमियां मौजूदा सरकार को विरासत में मिली हैं।
वैसे कतिपय विघ्नसंतोषियों को छोड़कर आम लोग इन कमियों
को भरसक नजरअंदाज ही कर रहे हैं।
पर, ऐसी किसी अगली विपत्ति से पहले इन कमियों को दूर कर लेना होगा।
  यदि इस सिलसिले में साधन जुटाने के लिए सरकार को कोरोना टैक्स भी लगाना पड़े तो कम ही लोग उसे अन्यथा लेंगे।
    ...........................................................
     पूर्व चेतावनी को किया
    गया था नजरअंदाज 
  ...................................................  
 माइक्रोसाॅफ्ट कारपोरेशन के संस्थापक बिल गेट्स ने
2014 में ही महामारी के खतरों से आगाह किया था।
उन्होंने यह चेतावनी दी थी कि इबोला के संक्रमण से तो दुनिया बच गई थी, लेकिन भविष्य में  यदि ऐसा या इससे भी खतरनाक वायरस हमला करता है तो हम उस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं हैं।
  बिल गेट्स ने हाल में भी एक और चेतावनी दी है।उनके अनुसार 
 मनुष्य के प्रकृति से लड़ने का यह कुपरिणाम है।
       ...................................................  
    इतिहास दुहराने को अभिशप्त
    ..............................................
जो व्यक्ति,समाज या देश अपने इतिहास से शिक्षा ग्रहण नहीं करता,
वह उसे दुहराने को अभिशप्त होता है।
इस देश के साथ यह कई बार हुआ है।
ताजा खबर के अनुसार दिल्ली पुलिस की क्राइम शाखा तब्लीगी जमात को हवाला के जरिए मिले पैसों के आरोप की पड़ताल कर रही है।
इससे पहले यह खबर भी आई थी कि पाॅपुलर फं्रट आॅफ इंडिया को हवाला के जरिए बाहर से पैसे मिलते हैं।
एक स्टिंग आपरेशन के जरिए यह  बात सामने आई थी।
  ऐसे अनेक आरोप समय -समय बाहर आते रहते हैं जिसमें यह कहा जाता है कि इस देश को नुकसान पहुंचाने के लिए बाहर से पैसे आ रहे हैं।
  इसी तरह का बल्कि अधिक चर्चित हवाला कांड नब्बे के दश्क में सामने आया था।
 जो हवाला कारोबारी कश्मीरी आतंकियों तक पैसे पहुंचाता था,उसीसे  इस देश के 55 प्रमुख नेताओं को हवाला के पैसे मिले थे।
 केस चला ,पर उन्हें कुछ नहीं हुआ।
 इससे हवाला कारोबारियों व देश विरोधी तत्वों का मनोबल बढ़ गया। 
उस हवाला केस में आरोपितों को सजा हो गई होती तो बाद के हवाला कारोबारियों पर लगाम लग सकती थी।  
............................
भूली-बिसरी याद
..................................
10 अप्रैल पूर्व प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई की पुण्य तिथि है।
इस अवसर पर भूदान नेता विनोबा भावे और मोरारजी देसाई
के बीच 1955 में हुए संवाद को एक बार फिर पढ़ना दिलचस्प व शिक्षाप्रद होगा।
विनोबाजी--पैदल चलने वालों की आयु बढ़ जाती है।
मोरारजी --किसी की आयु बढ़ने की बात मैं नहीं मानता।
विनोबाजी--मैं कई बार विनोद में कहता हूं कि जो चलता रहता है,
उसे यमराज पीछे से आकर पकड़ नहीं सकते।
मोरारजी--मैं तो यह मानता हूं कि जिसकी आयु मर्यादा जितनी निश्चित होती है,उससे एक क्षण भी अधिक वह जीवित नहीं रह सकता।
विनोबाजी--मेरी मां ने कहा था कि प्रत्येक के लिए यह निश्चित होता है कि वह अपने जीवन में कितनी बार भोजन करेगा।
अतः दो वक्त के बजाय रोज एक वक्त हम खाना खाएं तो जीवनकाल दुगुना हो जाता है।
मोरारजी--जो संयम बिना समझे किया जाए,वह टिकता नहीं।
 ................................... 
 जहां अधिक पिछड़ापन,
वहां हो अधिक विकास
................................
 लाॅकडाउन के कारण इस राज्य के हजारों 
लोग बाहर के राज्यों में फंसे रह गए।
उन्हें बिहार सरकार ने सहायता राशि जरुर भिजवाई।
पर,इस सिलसिले में पता चला कि किस जिले के कितने लोग 
कहां फंसे हैं।
उससे यह भी पता चला कि किन जिलों के कम और किन जिलों के अधिक लोग रोजी-रोटी के लिए बिहार से बाहर जाते हैं।
इस मामले में सारण, मुजफ्फर पुर और मधुबनी का क्रमशः पहला,दूसरा और तीसरा स्थान है।
   डबल इंजन की सरकार को चाहिए कि वह कोरोना से निपटने के बाद  इन तीन जिलों पर प्रथामिकता के आधार पर ध्यान दे।
वहां विकास करे।
कृषि आधारित उद्योग स्थापित करने से किसानों की क्रय शक्ति बढ़ेगी।
  खरीदने की ताकत बढ़ने पर ही करखनिया सामग्री की भी बिक्री बढ़ेगी।तभी  उद्योग को भी बढ़ावा मिल पाएगा।
........................  
और अंत में
 ..........................
कोरोना विपत्ति में भी अनेक लोग अनुशासन का पालन नहीं कर रहे हैं।
जबकि ,अनुशासन ही कोरोना संक्रमण से बचाव है।
जब विपत्ति में उनका यह हाल है तो सामान्य दिनों की कल्पना आप कर ही सकते हैं।लोगबाग देखते ही रहते हैं।
 सी.बी.एस. ई. ने छठी से ग्यारहवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए कौशल विकास पाठ्यक्रम शुरू करने का निर्णय किया है।
   पाठ्यक्रम में एक बात और सिखाई  जानी चाहिए ।वह यह कि घर से लेकर सड़कों तक और दफ्तरों से लेकर सार्वजनिक स्थानों तक में कैसा व्यवहार करने से देश का भला होगा।
साथ ही, कोरोना जैसी महामारी या इस तरह के अन्य अवसरों पर उससे किस तरह लोग लाभान्वित होंगे।
..............
10 अप्रैल 2020 के प्रभात खबर,पटना में प्रकाशित मेेरे काॅलम कानोंकान से।

इसी नीम के बगल में मैंने गिलोई का एक पौधा लगा दिया 
है।
तेजी से बड़ा हो रहा है।
जल्द ही पौधा बड़ा होकर नीम पर चढ़ जाएगा।
फिर कहा जाएगा --
‘‘एक तो गिलोई,दूजे नीम चढ़ी !!’’
सुनते हैं कि नीम पर चढ़ी गिलोई और अधिक गुणकारी हो जाती है।

रविवार, 12 अप्रैल 2020

भारत और अमेरिका-तब और अब
   --सुरेंद्र किशोर-
कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में भारत ने अमेरिका को
जरुरी दवा भिजवाने का निर्णय किया,
तो, उससे खुशी में भावुक होकर राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि 
‘‘भारत की इस मदद को हम याद रखेंगे।’’
   पर, 1962 का एक वह भी जमाना था जब चीन के हमले 
से इस देश को बचाने के लिए जवाहरलाल नेहरू अमेरिका को लगातार त्राहिमाम संदेश भेज रहे थे।
एक बार तो उन्होंने एक ही दिन में कैनेडी को दो एस.ओ.एस.भेजे।
यानी,हमले की महामारी से खुद को बचाने के लिए  तब हम उस महाशक्ति पर पूरी तरह निर्भर हो गए थे।
क्योंकि हमारा ‘‘मित्र’’ सोवियत संघ चीन से भीतर -भीतर मिला हुआ था।
   अमेरिका ने इतना जरुर किया कि तब पाकिस्तान को भारत पर हमला करने से रोक दिया था।
याद रहे कि चीनी हमले के वक्त ही मौका पाकर पाक ने भी हम पर हमले की योजना बना ली थी।
   भारत सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति जे.एफ.कैनेडी के उस उपकार को कितना याद रखा ?
शायद नेहरू कुछ अधिक दिनों तक जीवित रहते तो जरुर याद रखते।
पर इंदिरा गांधी तो सोवियत संघ के प्रभाव में थीं।
अब सत्तर-अस्सी के दशकों के एक अन्य प्रसंग को 
दुहरा दूं ! 
पहले आम अमेरिकी यह कहा करते थे कि भारत हाथी,संपेरों और जादू-टोने वाला देश है।
  अस्सी के दशक में माइकल टी.काॅफमैन पटना आए तो मैंने उनसे पूछा था कि अमेरिका के आम लोग भारत के बारे में क्या सोचते हैं ?
 वे न्यूयार्क टाइम्स के नई दिल्ली ब्यूरो प्रधान थे।
पहले तो उन्होंने मेरे सवाल को टाला।
फिर कहा-‘सोचने की फुर्सत कहां !’
पर, जिद करने पर उन्होंने कहा कि आप यदि मेरे देश में होते तो मैं पहला काम यह करता कि आपको नजदीक के किसी अस्पताल में भर्ती कर देता।--मैं तब और भी दुबला-पतला था।--
  काॅफमैन के अनुसार
‘‘ भारत के एक तिहाई लोग कचहरियों में रहते हैं।
एक तिहाई अस्पतालों में और बाकी एक तिहाई स्वच्छंद हैं।’’
  खैर, आज तो हम दुनिया को अपनी कुछ खास चीजें दिखा देने की स्थिति में भी आ गए हैं ।
वह यह कि इतनी बड़ी आबादी के बावजूद कोरोना के कुप्रभाव को विकसित देशों की अपेक्षा हमने खुद पर काफी कम पड़ने दिया।   
 यह हमारे भरसक प्राकृतिक जीवन और अधिकतर लोगों के शाकाहारी होने के कारण भी है।साथ ही महामारी से निपटने के लिए समय पर सरकारी पहल हुई।
प्राकृतिक जीवन से  हम में रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत अधिक है।
कोरोना की आंधी थम जाने के बाद कुछ विकसित देश 
के लोग संभवतः शायद हमारी जीवन शैली का अध्ययन करके  उससे भी कुछ सीखेंगे !
उन्होंने ‘नमस्ते’ तो अपना ही लिया।
हाल में गमछे की भी चर्चा रही।
योग तो पहले ही अपना चुके हैं।
‘‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।’’
हां,यदि आजादी के तत्काल बाद के वर्षों में --बकौल राजीव गांधी --सौ सरकारी पैसों में से 85 पैसे लूट नहीं लिए गए होते तो हमारी बुनियाद और भी मजबूत पड़ती।
...............................
  --11 अप्रैल 20

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

परदेस की जगह घर के आसपास ही मामूली काम से करें शुरूआत-सुरेंद्र किशोर



नरेंद्र मोदी बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे।
बाद के वर्षों में पार्टी आॅफिस में यदाकदा झाड़ू भी 
लगा देते थे ।
आज वे प्रधान मंत्री हैं और एक सफल प्रधान मंत्री हैं।
यही नहीं, धीरुभाई अंबानी जीवन के प्रारंभिक दिनों में यमन में पेटोल पंप पर अटेंडेंट थे।
पर आज उनका परिवार देश का सर्वाधिक अमीर घराना है।
 इन दो महारथियों ने मामूली कामों से शुरुआत करने में कोई संकोच नहीं किया था।
  पर आज अनेक लोग इस संकोचवश कि अपने लोग क्या कहेंगे, अपने घर के आसपास ऐसे काम की संभावना को भी नकारते हुए अन्य प्रदेशों में चले जाते हैं।
  और जब कोरोना जैसी विपत्ति आती है तो उन्हें वहां से लौटने तक मंे अपार कष्ट होता है।  
वैसे तमाम लोग जो मजदूरी करने के लिए बिहार-उत्तर प्रदेश से दूसरे प्रदेशों में जाते हैं,यह भी सच है कि उनमें से सभी लोग अपने घरों के आसपास काम नहीं पा सकते।
 कुछ लोग अधिक कमाई के लिए बाहर जाते हैं।जाते रहेंगे।
उसमें हर्ज नहीं है।
पर जिन लोगों के पास घर में ही इतने साधन उपलब्ध हैं कि वे कोई छोटी सी दुकान से शुरूआत कर सकते हैं,वे क्यों जाएं ?
जो  आटा चक्की या फिर कर्ज से जीप खरीद सकते हैं।वे भी बाहर चले जाते हैं।
ऐसा वे पारिवारिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए करते हैं।
ऐसा परिवार और इतना मामूली काम ?लोग क्या कहेंगे ?
       विपत्ति में अपनों का सहारा
         ...................................................
  दिल्ली से बिहार लौटे मजदूर को  यह कहते सुना गया कि हम अब फिर कभी दिल्ली नहीं जाएंगे।
 पता नहीं,यह तात्कालिक रोष था या 
यह स्थायी भाव भी बनेगा !
यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
 साथ ही, यह बात भी कही जानी चाहिए कि दिल्ली वालों को अपना दिल थोड़ा बड़ा करना चाहिए।
पटना में घर बेच कर दिल्ली में बसे एक बुजुर्ग व्यक्ति ने 
मुझसे पिछले दिनों कहा था कि 
‘‘मुझसे गलती हो गई।यहां कोई सामाजिक जीवन है ही नहीं।’’
 बिहार में बिजली आपूत्र्ति और सड़कों की स्थिति पहले से बेहतर है।
इसलिए छोटे -मोटे स्वरोजगार की गंुजाइश भी बढ़ी है।
यदि कृषि आधारित उद्योगों की ओर सरकारें कुछ अधिक ध्यान दंे तो भी पलायन कम हो सकता  है।
 इस बीच एक अच्छी खबर आई है।
कोरोना और उसके कुप्रभाव से अर्थ- व्यवस्था को बचाने के लिए केंद्र सरकार बाजार से 4.88 लाख करोड़ रुपए जुटाएगी।
 बेहतर हो, इन पैसों में से कुछ कृषि आधारित उद्योग में लगाने से किसानों को भारी लाभ मिलेगा।
किसानों की क्रय शक्ति बढ़ेगी तो वे करखनिया माल भी अधिक खरीद सकेंगे।उससे कारखाने भी बढ़ेंगे।
 सब दिन रहत न एक समाना
  ........................................
कोरोना वायरस  के लिए सब बराबर हैं।क्या राजा और  क्या रंक !
एक तरफ परेशान होकर मजदूर दिल्ली से पैदल अपने गांवों की ओर जा रहे हैं तो 
दूसरी ओर अनेक अपार दौलत के मालिक अपनी संपत्ति का आकलन कर रहे हैं।कुछ वसीयत तैयार करने के लिए वकीलों से विमर्श कर रहे हैं।
शेयर बाजार का मौजूदा रुख कायम रहा तो आने वाले दिनों में पता नहीं क्या-क्या होने वाला है।
 कोराना का असर शेयर बाजार ही नहीं अर्थ -व्यवस्था पर भी पड़ना ही है।
इस देश के लिए संतोष की बात  है कि जानकार लोगों के अनुसार अन्य अनेक देशों की अपेक्षा हम लोग बेहतर स्थिति में रहेंगे।
  कोरोना जैसी विपत्ति जब आ जाती है तो कई लोगों को लगता है कि कफन में जेब नहीं होती।
पर विपत्ति टलने के साथ ही अनेक लोग एक बार फिर समझने लगते हैं कि वे यहां का ‘कमाया’ शायद लेकर  ऊपर भी जाएंगे !! 
......................................  
 उपलब्धियों के साथ-साथ 
  मारक विफलताएं भी
  .....................................
नाग पुर के एक डाक्टर ने सुप्रीम कोर्ट से एक याचना की है।वह याचना चिकित्सकों को जरुरी उपकरण मुहैया कराने के लिए है।
डाक्टर चाहते हैं कि देश भर के चिकित्साकर्मियों को पर्सनल प्रोटेक्सन की सामग्री मिले।
इसके लिए अदालत सरकार को निदेश दे।
   अब भला बताइए कि इतनी  छोटी किंतु जरुरी  चीज के  
लिए आजादी के 70 साल बाद भी किसी को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़े।यह अत्यंत चिंता की बात है।
आजादी के बाद से ही टैक्स के पैसांे के दुरुपयोग व लूट के कारण ऐसी नौबत आई है।
इसी के साथ यह भी खबर है कि इस देश में कोरोना मरीजों की जांच में देरी इसलिए भी हो रही है क्योंकि हमारे देश में बहुत कम संख्या में प्रयोगशालाएं हैं।
  कोरोना विपत्ति से उबरने के बाद उम्मीद है कि इस देश की सरकारें शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों की बुनियादी जरुरतों पर जरुर कुछ अधिक काम करेंगी।
क्योंकि इस देश के गरीब कौन कहे, सामान्य आय के लोगों की कमाई भी निजी चिकित्सा व शिक्षा का खर्च उठाने लायक नहीं है। 
    और अंत में
    ...........................
यूनानी कहावत है और सही भी है कि
‘‘ईश्वर उन्हीं की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करते हंै।’’
  पटना में प्रशासन ने घाट पर जाने से रोका तो छठव्रती रो पड़ीं।
उधर दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में शामिल लोगों ने क्या किया,वह भी लोगों ने देखा।
....................
--कानोंकान, प्रभात खबर,
   पटना,3 अप्रैल 20

   
   


  


मोरारजी देसाई की पुण्य तिथि के अवसर पर 
     -सुरेंद्र किशोर-
इस अवसर पर भूदान नेता विनोबा भावे और मोरारजी देसाई
के बीच 1955 में हुए संवाद को एक बार फिर पढ़ना दिलचस्प व 
शिक्षाप्रद होगा।
विनोबाजी--पैदल चलने वालों की आयु बढ़ जाती है।
मोरारजी --किसी की आयु बढ़ने की बात मैं नहीं मानता।
विनोबाजी--मैं कई बार विनोद में कहता हूं कि जो चलता रहता है,
उसे यमराज पीछे से आकर पकड़ नहीं सकते।
मोरारजी--मैं तो यह मानता हूं कि जिसकी आयु मर्यादा जितनी निश्चित होती है,उससे एक क्षण भी अधिक वह जीवित नहीं रह सकता।
विनोबाजी--मेरी मां ने कहा था कि प्रत्येक के लिए यह निश्चित होता है कि वह अपने जीवन में कितनी बार भोजन करेगा।
अतः दो वक्त के बजाय रोज एक वक्त हम खाना खाएं तो जीवनकाल दुगुना हो जाता है।
मोरारजी--जो संयम बिना समझे किया जाए,वह टिकता नहीं। 
..........................
  --कानोंकान,प्रभात खबर,पटना, 10 अप्रैल 202

  स्वघोषित अभिभावको ! आदत से बाज आओ
     --सुरेंद्र किशोर-- 
आज सोशल मीडिया में मुख्यतः तीन तरह 
के लोग सक्रिय हैं।
1.-नरेंद मोदी के समर्थक 
2.-नरेंद्र मोदी के विरोधी
3.-निरपेक्ष-यानी मोदी के अच्छे कामों के
समर्थक और
खराब कामों के विरोधी  
..................
तीनों अपनी -अपनी जगह पर सही हैं जब तक 
कि वे तथ्यपरक हैं।
सूचना में शक्ति होती है।
तीनों से तथ्यपरक सूचनाएं देने की उम्मीद की जाती है।
टिप्पणियां भी उन्हीं तथ्यपरक सूचनाओं पर आधारित हों।
इससे लोगों को ज्ञानवर्धन भी होता है।
------
पर,इसके  विपरीत असल में हो क्या रहा है !!?
आपस में बतकूचन अधिक हो रही है।
जिस तरह अधिकतर टी.वी चैनलों की बहसों में होती है।
अक्सर कुछ लोग, कुछ अन्य लोगों के स्वघोषित गार्जियन की 
भूमिका निभाने लगते हैं।
कुछ शालीनता से तो कुछ अन्य बदतमीजी से।
उनकी अपनी -अपनी प्रतिबद्धताएं हैं।
या फिर उनकी डोर किसी अन्य के हाथों में हैं।
कई मामलों में पैसे,विचारधारा और जातिवाद तथ्यों पर हावी रहते हैं।
कुछ लोग बौद्धिक अहंकार में डूबे रहते हैं।
 मोदी समर्थक ,मोदी विरोधियों को उपदेश दे रहे हैं।
मोदी विरोधी, मोदी समर्थकों को प्रवचन दे रहे हैं।
निष्पक्ष लोगों को बारी -बारीे से दोनों के प्रवचन सुनने पड़ जाते  हैं।
.........................
अरे भई ,दूसरे क्या कर रहे हैं, इसकी चिंता छोड़कर 
अपनी भूमिका निभाइए।
दूसरों में समय क्यों लगा रहे हैं ?
आप तथ्य संकलन कीजिए।
लोगों तक पहुंचाइए।
इंफाॅरमेशन इज पावर !
आज कौन ठीक काम कर रहा है और कौन गलत,
इसका निर्णय समय कर देगा।
समय बड़ा निर्मम होता है।
लेखन के स्तर पर इतिहास को छिपाने व उसे तोड़ने-मराड़ने
की यदा -कदा कोशिश होती रहती है।
पर सही बातें कानोंकान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक 
पहंुचती रहती है।    
लोग सही समय पर सही निर्णय कर देते हैं।
अपने हीरो और विलेन तय कर देते हैं।
कल्पना कीजिए !
आज से सौ साल पहले हमारे कौन -कौन हीरो और 
कौन वीलेन थे ?
क्या हम जिन्हें सौ साल पहले जैसा मानते थे ,
उन्हें ही आज भी उसी रुप में मानते हैं ?
अपवादों को छोड़कर 
ऐसा नहीं है।
 डा.राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि किसी महापुरुष 
की मूत्र्ति उसके निधन के सौ साल बाद ही लगाई जानी चाहिए।
क्योंकि सौ साल मंे इतिहास उसके बारे में विचार तय कर चुका होता है।
.............................
--10 अप्रैल 20 

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

    सारे सरकारी विज्ञापन बंद कर देने 
    की आपकी खुन्नस भरी मांग 
    में इमरजेंसी वाली 
    मानसिकता प्रकट हो 
    गई सोनिया जी !
   ..............................................
   --सुरेंद्र किशोर- 
लगता है कि तानाशाही मानसिकता के मामले में सोनिया गांधी इमर्जेंसी वाली इंदिरा गाधी से भी एक कदम आगे चली र्गइं हैं।
इमरजेंसी में भी सभी अखबारों के सारे सरकारी विज्ञापन बंद नहीं हुए थे।
पर, सोनिया गांधी कह रही हैं कि 
‘‘दो साल के लिए सरकार को प्रिंट,टेलीविजन और आॅनलाइन मीडिया को कोई विज्ञापन नहीं देना चाहिए।’’
यदि सोनिया जी ने यह कहा होता कि गैर जरुरी सरकारी विज्ञापन न छपे तो बात समझ में आती।
तब कहा जाता कि सोनिया किसी निजी खुन्नस के तहत यह बयान नहीं दे रही हैं।
 दरअसल जो बात संभव ही नहीं है ,उसकी मांग कर देना खुन्नस निकालना भर ही तो है !
क्या यह संभव है कि सांसदों की वेतन आदि की सारी सुविधाएं समाप्त कर दी जाएं ?
संभव नहीं है,इसीलिए तो मात्र 30 प्रतिशत की 
ही कटौती की गई।
 यदि सोनिया की सलाह मानकर सरकार कोई विज्ञापन न दे तो देश में अगले दो साल तक सारे निर्माण कार्य भी ठप हो जाएंगे।
क्योंकि निर्माण कार्यों के टेंडर अखबारों में ही तो निकलते हैं।
सरकार जनहित में अन्य अनेक जरुरी सूचनाएं तथा निदेश अखबारों के जरिए ही तो लोगों तक पहुंचाती है।   
आज के दैनिक जागरण ने ठीक ही लिखा है-
‘‘आपातकाल की तरह ही मीडिया को फिर से नष्ट करने की मानसिकता पार्टी पर हावी हो रही है।’’
8 अप्रैल 20