गुरुवार, 3 अक्तूबर 2024

      

   आज के ‘राज’ दरबारों में 

   बिदुरों का नितांत अभाव

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        सुरेंद्र किशोर

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मैं 1967 से ही इस देश-प्रदेश की राजनीति और राजनेताओं को देखता-पढ़ता और समझने की कोशिश करता रहा हूं।

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कुछ शीर्ष नेताओं और दलों को अपनी दुर्दशा इसलिए झेलनी पड़ी और पड़ रही है क्योंकि वे अपने दरबार में ‘‘शकुनी’’ को तो सम्मान की जगह दे देते हैं, पर, किसी ‘‘बिदुर’’ को स्थान नहीं देते।

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ठीक ही कहा गया है कि दुनिया की सबसे अधिक मीठी चीज मुंह से नहीं खाई जाती है,बल्कि कान से पी जाती है-वह है  प्रशंसा ! 

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3 अक्तूबर 24


बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

 महात्मा गांधी-लालबहादुर शास्त्री जयंती

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अपने यहां आज मैंने पीपल 

का पौध रोपण किया

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सुरेंद्र किशोर

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 मैंने आज अपने घर के पास पीपल का पौधा लगाया।

  स्कंद पुराण में एक श्लोक है जिसका अर्थ है--

‘‘एक पीपल, एक नीम, एक वट वृक्ष ,दस इमली, तीन खैर, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम का वृक्ष लगाने वालों को नरक का मुंह नहीं देखना पड़ता है।’’

  ध्यान दीजिए, यहां भी पहला नाम पीपल का ही है।

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नीम,आंवला,आम तो हमारे परिसर में पहले से मौजूद हैं।

बाकी के बारे सोचूंगा।यहां या गांव मंे लगेगा।

 पर्यावरण विशेषज्ञ बताते हैं कि जहां हर पांच सौ मीटर की दूरी पर पीपल का एक वृक्ष हो, आॅक्सीजन की वहां कोई कमी नहीं रहेगी।

  यदि आजादी के तत्काल बाद से ही केंद्र व राज्य सरकारें पीपल का पौध रोपण करवातीं तो हमारे यहां पर्यावरण असंतुलन की समस्या कम रहती।

 खबर है कि कुछ ही साल पहले बिहार सरकार ने अपने साधनों से पीपल के पौधे लगवाने शुरू किए हैं।

पता नहीं, उसमें प्रगति कितनी है ! 

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आजादी के बाद हमारी सरकारों ने पीपल की जगह यूकेलिप्टस और गुल मोहर आदि के पौधों का रोपण सरकारी स्तर से करवाया।

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आजादी के तत्काल बाद की सरकार ने पीपल का पौधा नहीं लगाया क्योंकि उस ‘‘एकांगी सेक्युलर’’ सरकार को उससे देश में हिन्दू धार्मिक भावना बढ़ने का खतरा लगा।

   याद रहे कि इस देश की बहुसंख्यक आबादी का बड़ा हिस्सा पीपल को पूजता है।

उनका मानना है कि पीपल के वृक्ष पर सभी देवताओं का वास होता है।

पीपल की पूजा करने से सभी देवताओं के आशीर्वाद मिलते हैं।

साथ ही, यह भी कहा जाता है कि पीपल पर रोज जल चढ़ाने से पितरों के आशीर्वाद भी मिलते हंै।

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पीपल वृक्ष लगवाने पर आजादी के तत्काल बाद के उन शासकों पर यह आरोप लगने का खतरा था कि वे स्कंद पुराण का अनुसरण कर रहे हैं ?

जब इस देश में वायु प्रदूषण, कंट्रोल से बाहर होने लगा तो

एक राज्य के मुख्य मंत्री ने वन विभाग के अफसर से कहा कि आप राज्य में बड़े पैमाने पर पीपल के पेड़ लगवाइए।

  अफसर ने कहा कि सरकारी स्तर पर पीपल लगाने पर पहले की सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा है।

उस गैर कांग्रेसी मुख्य मंत्री ने पीपल लगाने का आदेश दे दिया।

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2 अक्तूबर 24

     




मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

 अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस

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बेटी और बहू में फर्क 

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इस देश में ओल्ड एज होम्स की संख्या बढ़ रही है।

इसके कई कारण हैं।

पर, मैं यहां सिर्फ एक कारण की चर्चा करूंगा।

वैसे तो सभी सास एक तरह की नहीं होतीं।

पर,यह भी सच है कि अधिकतर सास को यह 

याद नहीं रहता कि वह भी कभी बहू थी।

यदि हर सास अपनी बेटी और बहू में फर्क करना छोड़ दे तो 

ओल्ड एज होम की संख्या नहीं बढ़ेगी।

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सुरेंद्र किशोर

1 अक्तूबर 24


 सन 1978 में 60 साल में रिटायर,

सन 2014 में 75 साल में रिटायर,

तो सन 2025 में कितने साल में रिटायर ?! 

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सुरेंद्र किशोर

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मशहूर जनसंघ नेता नानाजी देशमुख ने

1978 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था।

उनका मानना था कि 60 साल की उम्र के बाद नेताओं को सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए।

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सत्तर के दशक में भारतीयों की जीवन प्रत्याशा औसतन 50 साल थी।

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सन 2014 में भाजपा ने 75 साल या उससे अधिक उम्र वाले कुछ शीर्ष नेताओं के लिए मार्ग दर्शक मंडल का गठन कर दिया।

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2014 में जीवन प्रत्याशा--69 वर्ष थी।

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सन 2024 में भारतीय की औसत जीवन प्रत्याशा 71 साल रहने  की उम्मीद है।

नरेंद्र मोदी जब सन 2025 में 75 साल के होंगे तब तो जीवन प्रत्याशा थोड़ा और भी बढ़ जाएगी।

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1978 में 60 साल में रिटायर

2014 में 75 साल में रिटायर

फिर तो 2025 में रिटायरमेंट की उम्र उसी 

अनुपात में बढ़ानी होगी।

यदि ऐसा हुआ तो नरेंद्र मोदी 

की सक्रिय राजनीति से रिटायरमेंट की उम्र 

पिछले ‘‘अनुपातों’’ को देखते हुए सन 2025 में 

कितनी तय होनी चाहिए ?

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वैसे तो भाजपा में अधिकतर नेताओं, कार्यकर्ताओं तथा बड़ी संख्या में देशवासियों की यह इच्छा रही है कि मोदी जी खुद जब तक चाहें और जब तक उन्हें जनता चुनाव जितवाये,तब तक उन्हें प्रधान मंत्री बने रहना चाहिए।

क्योंकि उनके अनुसार देश की कुछ गंभीर बीमारियों के लिए ‘‘मोदी’’ नामक ‘‘एंटी बाॅयटिक’’अभी जरूरी है। 

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1 अक्तूबर 24


रविवार, 29 सितंबर 2024

 भारत की ‘डायनेस्टिक डेमोक्रेसी’ के ‘राजाओं’ की 

संख्या एक बार फिर 565 तक कब पहुंचेगी ?!

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सुरेंद्र किशोर

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तमिलनाडु के मुख्य मंत्री एम.के.स्टालिन के पुत्र और पूर्व मुख्य मंत्री दिवंगत एम.करुणानिधि के पौत्र उदयनिधि स्टालिन को उप मुख्य मंत्री का दर्जा मिल गया है।

 इस तरह यह देश धीरे -धीरे ‘‘डायनेस्टिक डेमोक्रेसी’’ में बदल रहा है। भारतीय लोकतंत्र के नये राजाओं की कुल संख्या 565 तक कब तक पहुंच जाएगी ?

आजादी से पहले तक हमारे यहां 565 राजा-महाराजा थे।

 हां, उदयानिधि की पदोन्नति के साथ हम उस दिशा में एक कदम और आगे जरूर बढ़ गये हैं।

   दक्षिण भारत के ही एक अन्य मुख्य मंत्री ने कुछ साल पहले सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि अपना मुख्य मंत्री पद मैं अपने पुत्र को उसके अगले जन्म दिन पर उपहार में दे दूंगा।पर,उनके पुत्र का दुर्भाग्य रहा कि बीच में वे चुनाव हार कर सत्ता में अलग हो गये हैं।

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राजनीति में वंशवाद की शुरुआत कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष  मोतीलाल नेहरू ने सन 1928-29 में ही कर दी थी।प्रारंभिक झिझक के बाद महात्मा गांधी ने उन्हें इस काम में ठोस मदद की थी।

कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय के लिए इलाहाबाद में अपना बड़ा मकान दे देने वाले मोतीलाल जी ने गांधी जी पर दबाव डाला और दबाव काम कर गया।

  क्योंकि उन दिनों कांग्रेस को अपना मकान दे देने का खतरा उठाने वाले कितने थे ?

दरअसल वे मोतीलाल जी जैसे दूरदर्शी भी नहीं थे।

 मोतीलाल जी ने जवाहरलाल नेहरू को सन 1929 में कांग्रेस अध्यक्ष बनवा दिया।खुद मोतीलाल जी 1928 में कांग्रेस अध्यक्ष थे।

उन्होंने अपने पुत्र को अध्यक्ष बनवाने के लिए उससे पहले  गांधी जी को लगातार तीन चिट््््््ठयां लिखीं(देखिए मोतीलाल पेपर्स)।दो चिट्ठियों पर तो गांधी जी ने साफ-साफ जवाब दे दिया कि अभी समय नहीं आया है कि जवाहर को अध्यक्ष बनाया जाये।पर, वे तीसरी चिट्ठी के दबाव में गांधी जी आ गये और जवाहरलाल को बना दिया।

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आजादी के बाद और समय के साथ वंशवाद -परिवारवाद ने विकराल रूप धारण कर लिया है।अब तो इस बुराई ने महामारी का स्वरूप ग्रहण कर लिया है।

इस देश में कुछ सौ राजनीतिक परिवार हैं जिनके बाल-बच्चे सांसद विधायक,मंत्री, मुख्य मंत्री, प्रधान मंत्री बनते जा रहे हैं।

कोई किसी खास परिवार से हो तो यह कोई अयोग्यता नहीं है।पर,वह गरीब देश की जनता के लिए काम ईमानदारी से करे तो पद जरूर पाये।

पर, 100 सरकारी पैसों को घिसकर 15 पैसे कर दे फिर भी उस परिवार को सत्ता मिलती रहे ?!!

आज कितने वंशवादी-परिवारवादी नेता हैं जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप में मुकदमे नहीं चल रहे हैं ?

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इस देश की राजनीति पर यानी पूरब,पश्चिम,उत्तर और दक्षिण व मध्य क्षेत्रों पर नजर दौड़ाइए।

  आप आसानी से गिन सकते हैं कि कितने अधिक परिवार राजनीति पर हावी है।यूं कहें कि राजनीति कितने परिवारों के कब्जे में है।

अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर वंशवाद-परिवारवाद के साथ कुछ अन्य बुराइयां भी अनिवार्य रूप से चलती रहती हैं--जैसे जातिवाद,

भ्रष्टाचारवाद,

तुष्टिकरण 

और अपराधवाद।

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  भाजपा भी कहती है कि वह किसी एक राजनीतिक परिवार से एक ही सदस्य को टिकट देती है।

उससे अधिक हम नहीं देंगे।

दूसरी ओर, सपा जैसी पार्टी में सुप्रीमो के कितने परिजन

को चुनावी टिकट मिलेंगे,उसकी कोई सीमा नहीं।

  कुछ लोग यह तर्क देते हंै कि यदि किसी खास परिवार को लोग वोट देते हैं तभी तो वह सत्ता में आता है।

दरअसल जनता भी क्या करे ?

पार्टी सिस्टम भी ऐसा हो चुका है कि वह किसी न किसी परिवार व जाति के कब्जे में है।

मजबूर है।

  एक परिवार,एक टिकट की भाजपा नीति पर गौर करें तो पता चलेगा कि लोस-विस की कुछ खास सीटें पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार के कब्जे में होगी,यदि भाजपा अपनी एकल नीति पर कायम रही तो।

    फिर उन खास क्षेत्रों के ईमानदार पार्टी कार्यकर्ता क्या करेंगे ?

 जीवन भर भूंजा फांकेंगे ?

झाल बजाएंगे ?

दूसरी ओर कुछ लोग वंशवाद-परिवारवाद  के आधार पर सांसद-विधायक बनेंगे और उनके कार्यकर्ता बनेंगे--एम.पी.-विधायक फंड के ठेकेदार ?

अच्छी मंशा वाले कार्यकर्तागण पद पाकर समाज के व्यापक हित में जो कुछ करना चाहते हैं,वे जनहित के काम कैसे करेंगे ?

उनका सशक्तीकरण कैसे होगा ?

यह कैसा लोकतंत्र है ?

लोकतंत्र के नाम पर वंश तंत्र ? 

यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि किसी राजनीतिक परिवार का सदस्य अच्छी मंशा वाला हो ही नहीं सकता।पर एक परिवार के सदस्य को ही टिकट दे ही देना है तो वह अच्छी मंशा का ही हो,यह जरूरी तो नहीं।वह तो नहीं देखा जाएगा ! 

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भारत में विकसित हो रही  इस तरह की डायनेस्टिक डेमोके्रसी में नये राजाओं की संख्या 565 तक पहुंचने में कितने साल लगेंगे ?

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क्या ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल भारत की आजादी के समय हमारे बारे में गलत भविष्यवाणी की थी ?

लगता तो नहीं है।वह हमारी आजादी के खिलाफ था।

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29 सितंबर 24



शनिवार, 28 सितंबर 2024

 इटली समेत 5 देश अवैध प्रवासियों पर सख्त

इस साल 2 लाख को वापस भेजने की तैयारी

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सुरेंद्र किशोर

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जिस तेजी से अवैध मुस्लिम प्रवासी यूरोप पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं,उसकी अपेक्षा अधिक गंभीरता और ताकत के साथ यूरोप ने उन्हें विफल कर देने के लिए कमर कस ली है।

क्योंकि यूरोप,भारत नहीं हैै।

   सीरिया,अफगानिस्तान,पाकिस्तान,अल्जीरिया,मोरक्को और मिस्र जैसे देशों से अवैध मुस्लिम प्रवासी यूरोप में घुसते रहे हैं।

यूरोप के देश यह शिकायत कर रहे हैं कि अवैध प्रवासी  हमारे यहां कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा कर रहे हैं और धार्मिक बैमनस्य फैला रहे हैं।

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वैसे भारत की एकता-अखंडता-सार्वभौमता पर इस मामले में अवैध मुस्लिम घुसपैठियों से सबसे अधिक खतरा मंड़रा रहा है।

पिछले दशकों से अवैध घुसपैठिए भारत में गांव दर गांव और शहर दर शहर में अपना बहुमत बनाते जा रहे हैं।

इसके बावजूद भारत की मूल आबादी पिछली सदियों की ही तरह आज भी इस आसन्न समस्या के हल के सवाल पर बंटे-कटे हैं।

 वोट बैंक के लोभी दल व नेता गण और महा भ्रष्ट भारतीय प्रशासन तंत्र इस समस्या को इस देश में रोज-रोज बढ़ा रहे हैं।कहीं यह समस्या लाइलाज न हो जाए !!

 अब देखा जा रहा है कि  इस समस्या के प्रति भारत की आम जनता का एक बड़ा हिस्सा जहां-तहां जागरूक और सक्रिय हो रहा है,किंतु सरकारें समस्या की गंभीरता के अनुपात में तनिक भी गंभीर नहीं है।

भारत की कई राज्य सरकारें तो अवैध घुसपैठियों की खुलेआम मदद कर उन्हें अपने यहां बसा रही हैं।

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यूरोप का हाल भारत से 

 अलग हैै।

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यूरोप के अवैध प्रवासी -पीड़ित देश यह समझ गये हैं कि हमने जिस पर दया करके कभी शरण दी थी ,वे ही लोग हमारे देश पर कब्जा करने के लिए प्रयत्नशील हैं।

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इटली 

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पी.एम.मेलोनी की सरकार अवैध प्रवासियों पर सबसे 

ज्यादा सख्त है।

प्रवासियों को देश से खदेड़ने के लिए स्पेशल पेट्रोलिंग शुरू की गई है।

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हंगरी

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हंगरी सरकार प्रवासियों को बिना मुकदमे निर्वासित कर 

रही है।इसके लिए सरकार ने इमर्जेंसी कानून पास किया है।

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नीदरलैंड

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यहां की सरकार ने शरणार्थियों के मुद्दे पर ही हाल में चुनाव में जीत हासिल की।

वह शरण के नियम को कड़ा कर रही है।

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फ्रांस

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फ्रांस सरकार ने इस साल 23 हजार प्रवासियों को देश से निकाल दिया।

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जर्मनी

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जर्मनी ने नौ देशों से लगती अपनी सीमा पर आवाजाही सीमित कर दी है।

जर्मनी के चुनावों में दक्षिणपंथी दल जीत रहे हैं क्योंकि वे 

अवैध प्रवासियों के सख्त खिलाफ हैं।वे जान गये हैं कि यदि हम सतर्क नहीं हुए तो जेहादी तत्व उनके देश पर देर-सबेर कब्जा कर लेंगे।

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अब देखना है कि छह-सात करोड़ अवैध मुस्लिम प्रवासियों वाला देश भारत इस गंभीर व कठिन हो चुकी समस्या 

से कैसे उबरता है !

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28 सितंबर 24


बुधवार, 25 सितंबर 2024

     लतीफ बनाम सोहराबुद्दीन

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    राजनीति सदा करती रही 

    है मुंठभेड़, मुंठभेड़ में फर्क !

   यानी, सेक्युलर मुंठभेड़ बनाम 

    कम्युनल मुंठभेड़ ।

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      सुरेंद्र किशोर

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 सन 1995 में आतंक विरोधी दस्ते ने गुजरात के खूंखार माफिया लतीफ को दिल्ली से गिरफ्तार किया। गुजरात पुलिस ने सन 1997 में लतीफ को मुंठभेड़ में मार

 दिया।

आरोप लगा कि मुंठभेड़ नकली थी।

यह भी कहा गया कि उसे हिरासत से निकाल कर मारा गया था।

पर, गुजरात की कांग्रेस समर्थित राजपा सरकार ने तब उन पुलिस अफसरों को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जिन्होंने लतीफ को मारा था। 

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सोहराबुद्दीन शेख पहले लतीफ का ड्रायवर था।लतीफ गुजरात में वही काम करता था जो काम महाराष्ट्र में दाऊद इब्राहिम करता था।

 पहले लतीफ दाउद का सहयोगी ही था।बाद में दोनों के बीच झगड़ा हो गया।

एक बार तो गुजरात में जब दाऊद गैंग और लतीफ गंैग 

में मुंठभेड़ हुई तो लतीफ गैंग ने दाऊद गैंग को हराकर भगा दिया था।

लतीफ की मौत के बाद सोहराबुददीन वही काम करने लगा था जो काम पहले लतीफ करता था।गुजरात सहित तीन राज्यों के बड़े व्यापारी रोहराबुद्दीन से परेशान थे।

   सोहराबुद्दीन के खिलाफ 50 आपराधिक मुकदमे लंबित थे।

नरेंद्र मोदी के मुख्य मंत्रित्वकाल में सोहराबुदद्दीन सन 2005 में गुजरात पुलिस के साथ मुंठभेड़ मेें मारा गया।

तब अमित शाह गुजरात के गृह राज्य मंत्री थे।इसे नकली मुंठभेड़ बताकर अमित शाह पर केस कर दिया गया।

उन्हें जेल भिजवा दिया गया।

सन 2014 में अमित शह कोर्ट से दोषमुक्त हो गये।

याद रहे कि आरोप लगा कि सन 2000 से 2017 तक इस देश में नकली मुंठभेड़ के 1782 मामले सामने आये।सारे मामले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास गये थे।पर,उनमें से सोहराबुद्दीन के मामले को लेकर किसी बड़े नेता को जेल भिजवाया गया।

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सवाल कम्युनल मुंठभेड़ का जो था।

उस केस को आगे बढ़ाने से वोट मिलने वाले थे।

आज भी इस देश में यही सब हो रहा है।

कम्युनल मुंठभेड़ और सेक्युलर मुंठभेड़ के बीच रस्साकसी चल रही है।

आज तो यह भी देखा जा रहा है कि पुलिस के साथ मुंठभेड़ में अगड़ी जाति के अपराधी मारे जा

रहे हैं या पिछड़ी जाति के अपराधी।

हां,जब खूंखार अपराधी पुलिस मुंठभेड़ के दौरान पुलिसकर्मियों की जान लेते हैं तो नेतागण आम तौर पर मृतक पुलिसकर्मियों की जाति नहीं पूछते।

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24 सितंबर 24