बुधवार, 11 सितंबर 2024

    इसलिए नहीं शामिल होता लाइव टी.वी.शो में

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       सुरेंद्र किशोर

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कई साल पहले की बात है।

बहुत आग्रह करने पर मैं एक स्थानीय चैनल के लाइव डिबेट शो में शामिल हुआ था।

चर्चा के दौरान एक अशिष्ट नेता ने मेरे खिलाफ ऐसी टिप्पणी कर दी कि मैं चुप रह गया।

क्योंकि उसके स्तर पर मैं नहीं उतर सकता था।

  उसके बाद ही मैंने निश्चय कर लिया कि कभी लाइव डिबेट शो में नहीं शामिल होऊंगा।

  क्योंकि मेरे परिजन-रिश्तेदार नहीं चाहेंगे कि कोई गुंडा मेरा अकारण सार्वजनिक रूप से अपमान करे।वैसे भी किसी शो में शामिल होने का मेरे पास समय भी नहीं होता,शामिल होने का कोई प्रयोजन भी नहीं है।

मैं अपने किसी-न किसी पसंद के काम लगा रहता हूं।उससे फुर्सत भी नहीं है।

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आजकल तो अधिकतर राष्ट्रीय चैनलों पर भी बहस का स्तर काफी नीचे गिर चुका है।

  कभी -कभी तो यह तय करना कठिन हो जाता है कि संसद में बहस का स्तर अधिक नीचे है या 

कुछ (सबका नहीं )टी.वी.चैनलों का ! 

देश की कई प्रतिष्ठित हस्तियां भी सच बात बोलने के कारण अक्सर चैनलों पर अपमानित होती रहती हैं।

मुझे उन पर दया आती है।उनके बाल-बच्चों को चाहिए कि वे उन्हें शो में जाने से मना करें।

यह चैनलों और उनके एंकरों की विफलता है कि वे आदतन बिगड़ैल ‘‘अतिथियों’’ को 

अनुशासित नहीं कर पाते, न ही उनके फेडर डाउन करते हैं।

लगता है कि जानबूझ कर वे कुत्ता-भुकाओ कार्यक्रम चलाकर खुश होते हैं।

एक साथ तीन से अधिक लोगों को बैठाओगे तो कोई सार्थक बहस हो ही नहीं सकती।क्योंकि कम ही लोग अपनी बारी का इंतजार करते हैं।  

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और अंत में

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एक तरफ भारतीय रेल, हाई स्पीड ट्रेन और बुलेट ट्रेन पर जोर दे रहा है।दूसरी ओर, अधिकतर टी.वी.चैनलों के समाचार वाचकों और वाचिकाओं ने वाचन की गति काफी बढ़ा दी है।

गति ऐसी है कि कई बार उनका एक  शब्द अगले शब्द पर चढ़ता जाता है और श्रोताओं को अंततः कुछ समझ में नहीं आता।

 आप थोड़े समय में 100 समाचार पढ़ते हो।उनमें से 25 समाचारों का ओर-छोर समझ में नहीं आता।

 75 ही पढ़ो।

इतमिनान से पढ़ो ताकि सारे समाचार लोगों की समझ में आ जाये।टी.वी.चैनलों की लोकतंत्र में बहुत बड़ी भूमिका है।लोगबाग उम्मीद भरी नजरों से उस ओर देखते हैं।

इसके स्तर को और उठाइए,गिराइए मत।

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11 सितंबर 24


मंगलवार, 10 सितंबर 2024

 घर के बुजुर्ग से सवाल

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क्या सुबह उठकर आप खुद ही घर के आगे-पीछे के दरवाजे खोलते हैं और जलती बत्तियां आॅफ करते हैं या आपके बेटा या पोता अब यह काम करने लगा है ?

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शाम होते ही या रात में सोने से (जिस इलाके में कानून -व्यवस्था की स्थिति जैसी होती है,उसके अनुसार ही लोग घर बंद कर लेने का समय तय कर लेते हैं)पहले घर के दरवाजे कौन बंद करता है ?

कौन यह देखता है कि बत्तियां जली हैं या नहीं ?

आप या आपके पुत्र या आपका पोता ?

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इस सवाल के जवाब में ही यह तथ्य निहित है कि आपकी जिम्मेदारियां संभालने लायक आपका उत्तराधिकार तैयार हो चुका है या अभी नहीं !

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9 सितंबर 24


 



कारगिल युद्ध में यदि इजरायल ने हमारी मदद

 न की होती तो पता नहीं क्या होता !

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फिर भी इस देश की कुछ शक्तियां यह चाहती हैं 

कि भारत सरकार, इजरायल से दोस्ती न निभाए

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सुरेंद्र किशोर

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  कारगिल युद्ध की कठिन घड़ी में भारतीय सेना को 

उपग्रह निगरानी तंत्र की सख्त जरूरत थी।रात्रि दर्शी उपकरण चाहिए था।

हमें उन दुर्गम पहाड़ियों पर बारूद रोधी वाहन और मानव रहित विमान चाहिए था।

फ्रिक्वेंसी हाॅपर और युद्ध क्षेत्रीय रडार

आदि चाहिए थे।

इनमें से कई जरूरी साज ओ सामान हमें तब इजरायल ने ही मुहैया कराए थे।

कहावत है--फें्रड इन नीड, इज फं्रेड इनडीड।

(फरवरी, 23 में तुर्की में भीषण भूकम्प आया।भारी तबाही हुई।भारत सरकार ने तुर्की की भारी तदद की।पर एक ही माह बाद तुर्की सरकार कश्मीर के सवाल पर भारत के विरूद्ध पाकिस्तान के पक्ष में खड़ी हो गयी।)

कई देशों ने कारगिल युद्ध के समय भारत को ऐसी युद्ध सामग्री देने से इजरायल को रोकने तक की भी कोशिश की थी।याद रहे कि किसी अन्य देश ने मांगने पर भी तब हमारी जरूरी मदद नहीं की थी।

पर इजरायल उन देशों के विरोध को दरकिनार करके हमें जरूरी सामान भेजे जिससे हम तब युद्ध जीत सके थे। 

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पर, आज जब इजरायल को भारत से युद्ध सामग्री की सख्त जरूरत है तो स्वाभाविक ही है कि यह देश उसकी आपूर्ति करे।

पर,इस निर्यात को रोकने के लिए चर्चित वकील प्रशांत भूषण हाल में सुप्रीम कोर्ट चले गये।

 यह अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने कल उस वकील को भारतीय संविधान का अनुच्छेद-253 दिखा दिया।

कहा कि अंतरराष्ट्रीय संधियों को लेकर सरकार का ही क्षेत्राधिकार है।इसमें कोर्ट कुछ नहीं कर सकता।

आपकी याचिका विचार योग्य नहीं है।

याद रहे कि 12 साल पहले प्रशांत भूषण ने कहा था कि कश्मीर में जनमत संग्रह होना चाहिए।उस बयान से गुस्साए कुछ युवकों ने उनके चेम्बर में घुसकर प्रशांत भूषण की पिटाई की थी।

पिटाई करके अच्छा नहीं किया था।बल्कि ऐसे लोगों को बोलने देना चाहिए जो कुछ वे बोलना चाहते हें।

क्योंकि उससे यह पता चल जाता है कि देश में सक्रिय कुछ खास तरह की शक्तियां क्या चाहती हैं।

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दुनिया के अन्य सारे देश अपने मित्रों का चयन सदैव सोच-समझकर और अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर ही करते हैं।पर भारत में आजादी के बाद ही कुछ खास तरह के लोगों ने नेहरू सरकार को सलाह दी थी कि अमेरिका नहीं बल्कि सोवियत संघ से दोस्ती कीजिए।हालांकि ऐसा कोई बंधन नहीं होना चाहिए था।सब से अलग -अलग देशहित में दोस्ती करने की कोशिश की जानी चाहिए थी।

वैसी सलाह का खामियाजा सन 1962 में इस देश को भुगतना पड़ा।सोवियत संघ से पूर्वानुमति लेकर चीन ने भारत पर चढ़ाई करके हमारी हजारों वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया।अंततः नेहरू ने अमेरिका को कुछ ही घंटों के भीतर बारी- बारी से तीन  त्राहिमाम संदेश भेजे । जब चीन को लगा कि अमेरिका हस्तक्षेप कर देगा तो चीन पीछे हट गया।

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आज भी प्रशांत भूषण सदृश्य लोग व शक्तियां चाहती हंै कि 

जब पाक -चीन-कुछ भीतरी तत्व -अब तो बांग्ला देश से भी गंभीर खतरा पैदा हो तो इजरायल जैसे मित्र हमारे काम न आ पायें।

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10 सितंबर 14



सोमवार, 9 सितंबर 2024

     दो हजार साल में कुछ नहीं बदला ?!!

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विष्णु शर्मा रचित ‘‘पंचतंत्र’’के एक श्लोक का अर्थ है--

‘‘कुलीनता, प्रवीणता तथा सज्जनता आदि गुणों की अपेक्षा न करके लोग सम्पन्न व्यक्ति को कल्पतरु की भांति सन्तुष्ट करने का प्रयास करते हैं।

  निर्धन व्यक्ति चाहे जितना भी कुलीन एवं कुशल हो,कोई उसकी परछाई तक लांघना नहीं चाहता है,जबकि अकुलीन होने पर भी धनी व्यक्ति की छाया में रहना सबको पसन्द होता है।’’

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पंचतंत्र की रचना गुप्तकाल में हुई थी।

  अब आप आज चारों तरफ नजर दौड़ाइए।

आकलन कीजिए।

फिर बताइए कि पिछले करीब दो हजार साल में इस मामले में अपना देश कितना बदला है ?

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सुरेंद्र किशोर

9 सितंबर 2024 

 


शनिवार, 7 सितंबर 2024

 


कितना कारगर होगा जाति गणना का दांव 

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राहुल गांधी जाति गणना कराकर आरक्षण बढ़ाने को जो वादा कर रहे हैं,वह एक झांसा ही अधिक है और झांसा देना कांग्रेस की आदत है।

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सुरेंद्र किशोर

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कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी का कहना है कि हम जातीय  गणना अवश्य कराएंगे और उससे मिले आंकड़ों के आधार पर जिस जातीय समूह को जितने अधिक आरक्षण की जरूरत होगी, उसें उतना आरक्षण देंगे।

वह कहते हैं कि सर्वोच्च अदालत ने 50 प्रतिशत आरक्षण की जो अधिकत्तम सीमा तय कर रखी है,उसे सत्ता में आने के बाद हम समाप्त कर देंगे।

   यदि राहुल की पार्टी सत्ता में आ भी गई तो क्या वह यह काम कभी कर पाएगी ?

संभव तो नहीं लगता,

क्योंकि यहां अधिकार संपन्न सुप्रीम कोर्ट भी मौजूद है, जो  किसी भी ऐसे निर्णय की समीक्षा ‘‘संविधान की मूल संरचना’’के तय सिद्धांत की परिधि में रहकर करता है।

   इसके बावजूद राहुल गांधी लोगों से कह रहे हैं कि हम आपके लिए चांद तोड़कर ला देंगे।यानी वह लोगों को झांसा देकर उनके वोट लेना चाहते हैं।

ऐसा ही झांसा सन 1969 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने भी दिया था जो जाहिर है कि झूठा साबित हुआ।

उन्होंने कहा था कि हम गरीबी हटा देंगे।वह यह कहतीं कि गरीबी कम कर देंगे तो वह सही हो सकता था।पर, उससे लोग उनके झांसे में नहीं आते।

झांसा देना कांग्रेस के लिए कोई नई बात नहीं है।

  आजादी के तत्काल बाद के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था,‘‘कालाबाजारियों को निकत्तम लैम्पपोस्ट पर फांसी दे दी जानी चाहिए।’’

उनके इस उद्गार का जनता पर सकारात्मक असर  पड़ा।लोगों में उम्मीद जगी कि अब भ्रष्टाचार से राहत मिलेगी।

  पर उसके बाद हुआ क्या ?

आजादी के तत्काल बाद जब पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ 

की तो भारतीय सेना को जीपों की भारी कमी महसूस हुई।

  सरकार ने तय किया कि ब्रिटेन से तत्काल दो हजार जीपें खरीदी जाएं।

प्रधान मंत्री कार्यालय ने ब्रिटेन में उच्चायुक्त वी.के.कृष्ण मेनन को महत्वपूर्ण तत्संबंधी संदेश भेजा।

बाद में पता चला कि ब्रिटेन की किस कंपनी से जीपें खरीदी जाएं उसके बारे में संकेत भी प्रधान मंत्री कार्यालय ने मेनन को दे दिया था।

उस कंपनी की कोई साख नहीं थी।

  मेनन ने प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन किए बिना उस कंपनी को एक लाख 72 हजार पाउंड का अग्रिम भुगतान भी कर दिया।

    कंपनी ने दो हजार में से सिर्फ 155 जीपें भारत भेजीं।

वे भी इस्तेमाल लायक ही नहीं थीं।

उन्हें बंदरगाह से चलाकर गैरेज तक भी नहीं ले जाया जा सकता था।

  उस पर संसद में भारी हंगामा हुआ।

यह बात भी सामने आई कि पैसे का भुगतान खुद कृष्ण मेनन ने कर दिया था जबकि यह काम उनका नहीं था।

अनंत शयनम अयंगार की अध्यक्षता जांच कमेटी बनी।

 कमेटी ने अपनी रपट में कहा कि जीप खरीद की प्रक्रिया गलत थी।इसकी न्यायिक जांच होनी चाहिए।

  पर,नेहरू सरकार ने न्यायिक जांच नहीं कराई।

जब फिर यह मामला संसद में उठा तो 30 सिंतबर, 1955 को तत्कालीन गृहमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत ने कहा कि हमारी सरकार ने इस केस को बंद करने निर्णय किया है।यदि इस निर्णय से प्रतिपक्ष संतुष्ट नहीं तो वह अगले आम चुनाव में इसे मुद्दा बनाकर देख ले।

यह बात एक ऐसी सरकार कह रही थी जिसके मुखिया नेहरू ने जनता से वायदा किया था कि गलत करने वालों को नजदीक के लैम्प पोस्ट पर फांसी से लटका दिया जाना चाहिए।यानी उनका वायदा झांसा साबित हुआ।

   नेहरू के शासन काल में अन्य घोटाले भी हुए।

 तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सी.डी.देशमुख ने नेहरू को सलाह दी कि भ्रष्टाचार पर निगरानी के लिए एक संगठन  बनना  चाहिए।इस पर नेहरू ने कहा कि इससे प्रशासन में पस्तहिम्मती आएगी।

  नतीजतन तत्कालीन कांग्रेस  अध्यक्ष डी.संजीवैया को  यह कहना पड़ा  कि ‘‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे हैं।झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’’(इन्दौर का भाषण )

  वर्ष 1971 के बाद तो सरकारी  लूट की गति और तेज हो गई।

 इंदिरा गांधी की सरकार 1969 में उस समय अल्पमत में आ गई, जब कांग्रेस में विभाजन हो गया।

  कम्युनिस्टों,डी.एम.के आदि की बैसाखी के सहारे उनकी सरकार किसी तरह घिसट रही थी।

ऐसे मौके पर ही इंदिरा गांधी ने आम गरीबों को झांसा देने के लिए ‘‘गरीबी हटाओ’’ का नारा दिया।

 लोग उनके झांसे में आ गये और 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेसं को लोक सभा में पूर्ण बहुमत मिल गया।

इस जीत के बाद वह गरीबी हटाने का वायदा भूल गईं।उन्होंने पहला सर्वाधिक महत्वपूर्ण काम स्वहित में किया। 

अपने पुत्र संजय गांधी को मारुति कारखाने का उपहार दे दिया।

जब मारुति कारखाने की स्थापना का योजना आयोग ने विरोध किया तो उसका पुनर्गठन कर दिया गया।

इंदिरा सरकार ने जब 14 निजी बैकों का राष्ट्रीयकरण किया और पूर्व राजाओं के प्रिवी पर्स समाप्त किए तो जनता को लगा कि वह गरीबी हटाना चाहती हैं और पूंजीपतियों का असर कम करना चाहती हैं।पर हुआ इसके उलट।ं

  जब देश में घोटालों की झड़ी लग गई तो जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन शुरू हो गया।

(जेपी ने जब भ्रष्टाचार का आरोप लगाया तो प्रधान मंत्री ने जेपी की ओर संकेत करते हुए कहा कि ‘‘जो लोग पैसे वालों से मदद लेते हैं ,वे कैसे भ्रष्टाचार के बारे में बोलने का साहस करते हैं ?’’)

 ऐसे माहौल में इंदिरा गांधी ने कहा था कि भ्रष्टाचार सिर्फ भारत में ही नहीं है ।

यह तो विश्वव्यापी परिघटना है।

इसके जवाब में जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि ‘‘इंदिरा जी,आप सरीखे निचले स्तर तक मैं नहीं जा सकता।’’

(जेपी ने यह भी कहा कि अपने ‘‘टू द डिट्रैक्टर’’ (एवरीमेन्स-13 अक्तूबर, 1973)नामक लेख में मैंने साफ-साफ लिख डाला है कि मैंने इन पिछले वर्षों में अपना कैसे निर्वाह किया।’’)

  सन 1984 में राजीव गांधी ने प्रधान मंत्री बनते ही ‘‘सत्ता के दलालों’’ के खिलाफ अभियान चलाने की घोषणा कर दी।

अंततः उनका झांसा ही साबित हुआ।बाद में वह खुद दलालों से घिर गये।

  राजीव गांधी ने यह भी कहा था कि केंद्र सरकार 100 पैसे भेजती है,पर उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही गांवों तक पहुंच पाते हैं। वह जब कांग्रेस महा मंत्री थे तो उन्होंने इंदिरा गांधी से कह कर  तीन विवादास्पद कांग्रेसी मुख्य मंत्रियों को हटवा दिया था।

यह सब उन्होंने जनता में अपनी छवि बेहतर बनाने के लिए किया।बेहतर छवि बनी भी,पर,वह जब बोफोर्स घोटाले में फंस गये तो बचाव की मुद्रा में आ गए।

 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका।उसके बाद अब तक कभी कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला।

 राहुल गांधी अब उसी तरह केे राजनीतिक हथकंडे का इस्तेमाल करना चाहते हैं।वस्तुतः वह दलितों-पिछड़ों को  झांसा दे रहे हैं।

वह भी अंततः विफल ही होंगे।

गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने खटाखट नकदी देने के लिए मतदातओं से जो फार्म भरवाया था,उस झांसे को लोग अभी भूले नहीं हैं।

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आज के दैनिक जागरण और नईदुनिया में एक साथ प्रकाशित

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(इस लेख में कोष्टक में लिखे गये वाक्य अखबारों में नहीं छपे हैं।)


  




शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

       

      एक निवेदन अपने असहमतों से

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         सुरेंद्र किशोर

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 मेरे कुछ पोस्ट पर कुछ लोगों की इन दिनों बड़ी शिकायतें रहती हैं।

चूंकि वे भी बुद्धिजीवी ही हैं,इसलिए गाली-गलौज तो नहीं करते,पर मेरी मंशा पर सवाल जरूर उठाते रहते हैं।

  यदि वे मुझसे स्वस्थ बहस करना चाहते हैं तो उन्हें चााहिए कि वे मेरे तथ्यों को गलत साबित करें और मेरे तर्कों और निष्कर्षों का तार्किक ढंग से खंडन करें।

  पर, वे वैसा नहीं करेंगे,कर भी नहीं पाएंगे, यह मैं जानता हूं।क्योंकि उनमें से अनेक के विचार ठहर गये हैं।

इसलिए मैं उन्हें ‘अन फे्रंड’ कर देता हूं।क्योंकि उनसे बहस में पड़ने का मेरे पास समय भी नहीं है।

मुझसे असहमत लोगों से निवेदन है --आप खुश रहिए, मस्त रहिए, जिस विचार धारा में आप जी रहे हैं,उसमें ही बने रहिए।

मैं तो आपसे यह सवाल नहीं करता कि आप उस खास विचार धारा में क्यों पड़े हुए हैं ?

 मैं आपकी मंशा पर भी शक नहीं करता। मैं आपका अभिभावक नहीं हूं।

इसलिए आप भी किसी का अभिभावक बनने की कोशिश न करें,यही शिष्टता है।

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  मैं हमेशा कहता हूं कि अच्छे नेताओं और शासकों का यह कत्र्तव्य है कि वे देश, काल, पात्र की मौजूदा जरूरतों के अनुसार अपनी काल बाह्य नीतियों -रणनीतियों से बाहर निकलें ।अन्यथा, न तो देश बचेगा और न ही आपका नेतृत्व।

इस मामले में मैं इस देश के सिर्फ दो और दो विदेश के उदाहरण देता हूं।

डा.राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण ने समय -समय पर और देश की जरूरतों के अनुसार  

(भगवा धारी !)जनसंघ से सहयोग किया और लिया था।

इतना ही नही, डा.लोहिया को तो इस बात पर भी अफसोस रहा कि उनके समाजवादी सहकमियों ने उनके निदेश के बावजूद सन 1963 में जौनपुर जाकर जनसंघ के दीनदयाल उपाध्याय के चुनाव में उनकी मदद नहीं की।वहां लोस का उप चुनाव हो रहा था।उपाध्याय जी हार गये थे।क्योंकि उन्होंने ब्राह्मणवाद नहीं किया। 

  ध्यान रहे कि सिर्फ देश की तात्कालिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ही दोनों महान नेताओं ने लीक से हटकर भी वैसे कदम उठाये थे।

  न तो समाजवादी, सर्वोदयी, भूदानी नेता जेपी को खुद सत्ता में आना था और न ही कट्टर समाजवादी लोहिया को।(आज भी देश के समक्ष कुछ अत्यंत कठिन समस्याएं और कुछ कठोर प्रश्न उपस्थित हैं।)

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सन 1967 में डा.लोहिया के ही प्रयास से जनसंघ,सी.पी.आई.और संयुक्त समाजवादी पार्टी के नेतागण एक साथ महामाया प्रसाद सिन्हा की बिहार सरकार में मंत्री थे।याद रखिए--उस सरकार में सी.पी.आई.के चंद्रशेखर सिंह और इंद्रदीप सिंहा कैबिनेट और तेज नारायण झा राज्य मंत्री थे।तब यू.पी. में भी उपर्युक्त तीनों दल एक साथ कैबिनेट में थे।

(दूसरी ओर ,मशहूर लेखक रशीद किदवई ने दैनिक भास्कर --17 मार्च 24--में लिखा है कि ‘‘समाजवादी विचारधारावाली पार्टियों और आर.एस.एस.नियंत्रित जनसंघ सहित मध्यमार्गी दक्षिणपंथी ताकतों के द्वारा गठबंधन की राजनीति में एक नया प्रयोग था।’’ उस संदर्भ में रशीद साहब सी.पी.आई.की चर्चा करना भूल गये।पता नहीं क्यों, जबकि देश की राजनीति की अभूतपूर्व घटना यही थी कि सी.पी.आई. और जनंसघ दोनों एकाधिक राज्यों के एक ही मंत्रिमंडल में मंत्री बने थे।)

जेपी आंदोलन (1974-77) में अ.भा.वि.प.के लोग भी शामिल थे।

1977 के चुनाव के बाद जो सरकारें केंद्र व राज्यों में बनीं,उनमें जनसंघ घटक के भी नेतागण मंत्री और मुख्य मंत्री बने थे।

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इसके बावजूद किसी ने यह आरोप नहीं लगाया कि समाजवादी लोहिया और जेपी भगवाधारी बन गये।

दरअसल इन दो महान नेताओं ने देश की तात्कालिक जरूरतों के अनुसार ही अपनी पिछली रणनीति बदली और उन्हें सफलता भी मिली।

उन लोगों को देश को विचारधारा से ऊपर रखा।

दरअसल विचारधारा देश के लिए होती है न कि देश विचारधारा के लिए।

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अब आप आज के रूस और चीन पर नजर दौड़ाइए।

 सन 1985 में ही एक चीनी पत्रकार ने लिख दिया था कि ‘‘आज का चीन बस पूंजीवाद का इस्तेमाल समाजवाद को सुदृढ़ करने के लिए कर रहा है।’’

एक चीनी शासक ने यह भी कहा है कि हम समाजवाद की रक्षा के लिए पूंजीवाद अपना रहे हैं।

  पर,भारत के कम्युनिस्टों की पब्लिक सेक्टर के बारे में क्या राय रही है ?

दरअसल वे यह बात समझ ही नहीं पाए हैं कि पब्लिक सेक्टर की सफलता के लिए भ्रष्ट और काहिल स्टाफ की जरूरत नहीं होती।

  कम्युनिस्टों के बारे में यह माना जाता रहा है कि वे धर्म निरपेक्ष होते हैं।सही भी है बशर्ते यह विचारधारा देश को नुकसान न पहुंचाए। (दरअसल ‘‘भाजपा को सत्ता से बाहर रखने ’’के बहाने कम्युनिस्ट लोग इस देश की भ्रष्टत्तम राजनीति से हाथ मिलाते रहते हैं,उन्हें ताकत पहुंचाते रहते हैं, जबकि कम्युनिस्टों में अधिकतर नेतागण खंुद ईमानदार होते हैं।इस गलत रणनीति के कारण न तो वे भाजपा को सत्ता में आने से रोक सके न ही अपना अस्तित्व ही बचा पा रहे हैं।)

 तदनुसार जब चीन की सरकार ने देखा कि उसकी अंध धर्म निरपेक्षता देश को खंडित कर देगी तो उसने उसके बदले राष्ट्रवाद अपनाया।(भारत में इसके विपरीत हो रहा है।)

 उसने चीन के दो करोड़ उइगर मुसलमानों के बीच के जेहादियों की अभूतपूर्व प्रताड़ना शुरू कर दी।

अब भी जारी है।उस प्रताड़ना के खिलाफ भारत के कोई प्रगतिशील बुद्धिजीवी या कम्युनिस्ट चीन के खिलाफ कभी कुछ नहीं बोलते।

जबकि यहां की ऐसी छोटी -छोटी घटनाओं पर भी शोर मचाने लगते हैं।यह उनके खिलाफ जाता है।

(उनमें से अधिकतर भारत को खोखला कर रहे जेहादियों से गलबहियंा करते हैं।शाहीन बाग में भी वे उनके साथ ही थे।)

दरअसल उइगर मुसलमान हथियारों के बल पर चीन के शिंगजियांग प्रांत में इस्लामिक जेहाद करने के काम में लगे थे।लगता है कि अब वहां के उइगर मुसलमान जेहाद भूल गये हैं।

भारत में भी पी.एफ.आई.तथा इस तरह के अन्य संगठन जेहाद के काम में गंभीरता से लगे हुए हैं।पर,भारत के कम्युनिस्ट उनका विरोध नहीं करते।

 ऐसे ही कारणों से पश्चिम बंगाल से माकपा साफ हो गयी और अब केरल में भी उनकी स्थिति डंावाडोल हो रही है।

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कभी पब्लिक सेक्टर के लिए जाना जाता था सोवियत संघ।

पर, बाद के वर्षों में जब रूस के हुक्मरानों ने देखा कि अब निजीकरण करना होगा तो वे उसी राह पर चल दिए।ऐसे बदलाव के नतीजतन ही रूस और चीन में कम्युनिस्ट पार्टी भी बची हुई है और कम्युनिस्टों की सरकारें भी चाहे आज स्वरूप जो भी हो।

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पर,हमारे यहां की कई ऐसी जमातों को यह पता ही नहीं चल रहा है कि भारत की आज की विषम समस्याएं कौन-कौन सी हैं और उनका क्या इलाज है ?या फिर वे ईमानदारी से सोच नहीं रहे हैं।जो लोग सोच भी रहे हैं,उन्हें बदनाम करने में वे लोग लगे हुए हैं।या कोई और बात है ?

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28 अगस्त 24 



  इस देश में आत्म रक्षा दल और स्वयंसेवी 

जमात की जरूरत इसलिए भी है 

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सुरेंद्र किशोर

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इन दिनों रेलवे लाइनों पर छोटे -बड़े पत्थर रख कर

या अन्य तरह के अवरोधक खड़ा करके टे्रन दुर्घटनाएं कराने के काम में जेहादी तत्व बड़े पैमाने पर लगे हुए हैं।

पाकिस्तान परस्त देसी-विदेशी इस्लामिक जेहादी इस तरीके से आए दिन रेल गाड़ियां उलट रहे हैं।लोग मर रहे हैं,घायल हो रहे हैं।उन जेहादियों के लिए इस बात का कोई महत्व नहीं है कि उस ट्रेन में भाजपाई बैठे हैं या उनसे सहानुभति रखने वाले वोट लोलुप नेता या उनके परिजन।

    इस देश में रेलवे लाइन की कुल लंबाई लगभग सवा लाख किलोमीटर से भी अधिक है।

इतनी लंबी रेलवे लाइन की रखवाली करने के काम में कितने अधिक रेलवे स्टाफ व सुरक्षाकर्मियों की जरूरत होगी ?

क्या उतने अधिक स्टाफ कोई सरकार बहाल कर सकती है ?

नहीं।

जब भी बाढ़,भूकम्प,तूफान आदि की समस्या आती है तो बड़े पैमाने पर स्वयंसेवी दल अपने सरंजाम के साथ सक्रिय हो जाते हैं।

पर,जिस अनुपात में रेलवे लाइनों पर जेहादियों से खतरा उपस्थित हो गया है और जितनी बड़ी संख्या में दुघर्टनाएं कराई जा रही हंै,वैसे में संगठित आत्म रक्षा दलों और स्वयं सेवी जमातों की जरूरत होगी।उन्हें अपने अपने इलाकों में रेल लाइनों की रखवाली का भार दिया जा सकता है।

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देसी-विदेशी जेहादी गण पूरी दुनिया में अब काफी जल्दीबाजी में हैं, न सिर्फ भारत में बल्कि यूरोप और इजरायल में भी।

(विश्वास न हो तो गुगल पर यूरोप के अखबार पढ़ लीजिए।)

भारत में सक्रिय प्रतिबंधित संगठन पी.एफ.आई.ने तो सन 2047 तक हथियारों के बल पर

भारत को इस्लामिक देश बना देने का लक्ष्य निर्धारित कर ही दिया है।

  इस विपत्ति के क्षण में भी भारत पहले की ही तरह विभाजित है मतलब मध्य युग और ब्रिटिश काल की तरह ही।

इस देश के कुछ राजनीतिक और गैर राजनीतिक तत्वों को लगता है कि वे बांग्ला देश की तरह ही यहां भी तख्ता उलटवा कर अपने मुकदमों से बरी हो जाएंगे और फिर से गद्दी भी पा लेंगे।

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जो लोग यह कह रहे हैं कि यहां के मुसलमान, भाजपा-संघ के कारण परेशान हैं तो फिर ब्रिटेन,जर्मनी और फ्रांस में कौन सा भाजपा-संघ है ?

इजरायल में इस तरह की क्या समस्या है ?

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यानी कुल मिलाकर स्थिति यह है कि हमें समय से पहले चेत जाने की जरूरत है।

इस बीच यह अच्छी बात है कि प्रतिबंधित जेहादी संगठन

पी.एफ.आई.ने कहा है कि यदि भारत के 10 प्रतिशत मुसलमान भी हमारा साथ दे दें तो हम जल्द ही भारत में इस्लामिक शासन ला देंगे।

यानी दस प्रतिशत भी अभी उनके साथ नहीं हैं।किंतु रेल गाड़ियां उलटने या इस तरह की हिंसक कार्रवाईयों के लिए तो 9 प्रतिशत भी काफी साबित होंगे।

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30 जनवरी 1985 को बिहार विधान सभा में कर्पूरी ठाकुर ने कहा था कि ‘‘बूथ लुटेरों और जान लेने की कोशिश करने वालों का मुकाबला करने के लिए हथियार उठाना पड़े तो भी वह गलत नहीं होगा।कानूनन जायज है।

इसलिए आम्र्स लाइसेंस का प्रावधान बिहार सरकार खत्म कर दे । इस बात की छूट दे दे कि जिनके पास पैसे हों वे आग्नेयास्त्र खरीद लें।’’

आज जब कुछ लोग हथियारों के बल पर इस पूरे देश पर कब्जा करने के लिए सक्रिय है तो देशभक्त सरकार व राष्ट्रभक्त लोगों को क्या-क्या करना चाहिए ?

इस समस्या की चिंता करने वालों को गालियां देनी चाहिए ?

उनकी मंशा पर शक करना चाहिए ?

 शुतुरमुर्ग की भूमिका निभानी चाहिए ?

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30 अगस्त 24