रविवार, 8 दिसंबर 2024

 बिहार पुलिस का शेर चला गया !

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‘‘लफंगे नेताओं के हाथ में सत्ता’’

--बिहार पुलिस के महा निदेशक

डीपी.ओझा, 28 नवंबर, 2003

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सुरेंद्र किशोर

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पद पर रहते हुए ऐसी बातें कहने वाले डी.पी.ओझा का आज पटना में निधन हो गया।

वे 1967 बैच के आई.पी.एस. अफसर थे।

अपने कार्यकाल में ओझा ने बड़े- बड़े कानून तोड़कों और कई क्षेत्रों के माफियाओं के खिलाफ ऐसे -ऐसे कठिन अभियान चलाये कि सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष नेता लालू प्रसाद ने एक बार कहा कि ‘‘डी.जी.पी.अपनी सीमा लांघ रहे हैं।’’

जब ऐसी टिप्पणी आ गयी तो रिटायर होने के बाद उनके सहकर्मियों ने ओझा जी को औपचारिक विदाई भी नहीं दी।

ऐसे थे ओझा जी !

कम कहना अधिक समझना।

काश ! हमारे पुलिस बल में ऐसे -ऐसे अफसर अधिक संख्या में आज होते !

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मैं ओझा जी के कामों पर तब से ही गौर कर रहा था जब वे समस्तीपुर जिले में एस.पी. थे।

उन्हीं दिनों केंद्रीय रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की अत्यंत उच्चस्तरीय शक्तियों ने समस्तीपुर में हत्या करवा दी।

डी.पी.ओझा ने दो असली हत्यारों को तत्काल गिरफ्तार कर लिया।उनके कबूलनामे भी मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज करवा लिये।

पर उससे देश की बड़ी शक्तियां नाराज हो गयीं।

सी.बी.आई.के निदेशक को तुरंत समस्तीपुर भेज कर उस केस को बिहार पुलिस से छीन लिया गया।दोनों गिरफ्तार हत्यारों को सी.बी.आई. ने रिहा करवा दिया।सी.बी.आई.ने आनंदमार्गियों को नाहक फंसा दिया गया।

ललित बाबू के पुत्र ने मुझसे एक बार कहा था कि जिन्हें फंसाया गया है,उनसे ललित बाबू की कोई दुश्मनी नहीं थी।ललित बाबू के भाई डा.जगन्नाथ मिश्र ने कोर्ट में गवाही दी कि ललित बाबू की आनंदमार्गियों से कोई दुश्मनी नहीं थी।

ओझा जी जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं,फिर भी उन्होंने ललित बाबू के केस में डर कर अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ा।

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ऐसे अनेक अवसर उनके जीवन में आये थे।

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6 दिसंबर 24



 


 (वोट के) बताशे के लिए (इस भारतीय 

लोकतंात्रिक) मंदिर को मत तोड़ो

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धर्म निरपेक्षता की अनोखी परिभाषा पेश है

नेहरूवादी मणि शंकर अय्यर के शब्दों में 

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सुरेंद्र किशोर

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‘‘......कुमारी उमा भारती ने हमें बताया कि जब वह वाराणसी गईं और एक मस्जिद और एक मंदिर को इकट्ठा देखा तो उनके मन में जज्बात उभरे कि मंदिर को उजारा गया है।हिन्दू धर्म का अपमान हुआ है।

और एक मुसलमान राजा ने वहां एक मस्जिद बना दी।

उन (उमा भारती) में और मुझमें एक अंतर है।

वह जिस चीज को गुलामी का चिन्ह समझती हैं,मैं उसी चीज को धर्म निरपेक्षा का प्रतीक समता हूं।

 जब एक मंदिर और एक मस्जिद को साथ-साथ देखता हूं तब मेरे मन में एक ही भावना आती है कि यह धर्म निरपेक्ष देश है।’’

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9 सितंबर 1991 को लोक सभा में दिए गए कांग्रेस सांसद  मणि शंकर अय्यर के भाषण का अंश।)

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(मत भूलिए।आज पूरी कांग्रेस इसी अनोखी धर्म निरपेक्षता की लाइन पर है।)

  माक्र्सवादी इतिहासकार इरफान हबीब यू ट्यूब पर यह कहते हुए सुने जा सकते हैं---

‘‘औरंगजेब ने काशी और मथुरा के मंदिर को तोड़ा था।वह गलत हुआ था।

फारसी इतिहास तथा कई अन्य किताबों में यह बात दर्ज है।

मस्जिद बनानी थी तो कहीं भी बना देते।

मंदिर तोड़कर बनाने की जरूरत क्या थी ?’’

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(याद रहे कि काशी की ज्ञापनव्यापी मस्जिद की एक दीवार पूर्व में अवस्थित मंदिर की है।)

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अब आप नेहरूवादी मणिशंकर अय्यर के उपर्युक्त भाषण को एक बार फिर पढ़िए।(7 दिसंबर, 2024 के दैनिक हिन्दुस्तान में पूरा भाषण छपा है।)

अय्यर की धर्म निरपेक्षता कुछ इस तरह है--मंदिर तोड़ो और उसकी एक दीवार को मिलाकर मस्जिद बना लो ,उसे खांटी धर्म निरपेक्षता का मधुर संगीत माना जाएगा।

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मुहम्मद गजनवी को सोमनाथ मंदिर के पुजारी कह रहे थे कि आप इस मंदिर के सारे धन ले लो,पर मूत्र्ति को मत तोड़ो।

पर गजनवी का जवाब था-यदि मैं वैसा करूंगा तो मरने के बाद खुदा को क्या मुंह दिखाऊंगा ?

मैं बुत परस्त नहीं बल्कि बुत शिकन के रूप में मरना चाहता हूूं।

(याद रहे अय्यर जैसे वामपंथी,नेहरूवादी और कम्युनिस्ट इतिहासकार व विचारक कहते और लिखते रहे हैं कि मुस्लिम आक्रंात भारत को लूटने आये थे न कि धर्म प्रचार करने।

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पुनश्चः

 भारत जिस दिन हिन्दू बहुल से मुस्लिम बहुल बन जाएगा,उस दिन इस देश में लोकतंत्र भी नहीं रहेगा।याद रहे कि किसी मुस्लिम बहुल देश में लोकतंत्र नहीं है।

इसलिए वोट का मोह छोड़कर वे लोग चेत जाएं जो वोट के बताशे के लिए भारत को जान-अनजाने जेहादियों के हाथों सौंपने के सारे उपाय कर रहे हैं।

जेहादी लोग घुसपैठ करा कर भारत में आबादी का अनुपात बदल रहे हंै,पर कोई तथाकथित सेक्युलर दल घुसपैठ के खिलाफ नहीं बोलता।बल्कि उल्टें उन्हें बसाने में वे दल व उनकी सरकारें मदद कर रहे हैं। 

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7 दिसंबर 24


µ  


     आने वाले खतरे को पहचानिए

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  जिस बांग्ला देश को सन 1971 में पाकिस्तान से मुक्त कराने के लिए 17 हजार सैनिकों ने अपनी जान गंवा दी,जिस भारत ने तब एक करोड़ बांग्ला देशी शरणार्थियों को आश्रय,भोजन और कपड़े दिए ,उस भारत को बांग्ला देश अब दुश्मन मान रहा है।

  दूसरी ओर ,जिस पाकिस्तान ने तब 30 लाख बांग्ला देशी लोगों को मार डाला और दो लाख महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया,उसे दोस्त मानने लगा है।

     ----तस्लीमा नसरीन

         दैनिक जागरण

          8 दिसंबर 24

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भारत और यूरोप सहित दुनिया के अनेक देशों में इन दिनों जेहाद की लहर चल रही है।

ऐसे में जेहादी तत्व इस बात का ध्यान नहीं रखते कि पहले किसने हमारा साथ दिया था या तटस्थ रह गया था।

याद रहे कि जयचंद सिर्फ तटस्थ रह गया था,फिर भी गोरी के सैनिकों ने उसे भी मार डाला था।

 अरब-इजरायल युद्ध इस बात का सबूत है कि जेहादी लोग किसी अन्य धर्म के लोगों के साथ सह अस्तित्व में रहना स्वीकार नहीं करते।

  तभी तक भाई चारा रहता है जब तक जेहादी अल्पमत में रहते हैं।

 असम में 1950 में 12 प्रतिशत मुसलमान थे।

अब उनकी संख्या 40 प्रतिशत है।बढ़ती ही जा रही है।

खतरे का पूर्व अनुमान लगा लीजिए।

इस देश के अनेक इलाकों का भी यही हाल होता जा रहा है। 

 भारत मंे प्रतिबंधित फिर भी सक्रिय जेहादी संगठन पी.एफ.आई. जेहाद के लिए कातिलों का दस्ता तैयार कर रहा है।

उसका लक्ष्य है कि भारत को सन 2047 तक हथियारों के बल पर इस्लामिक देश बना देना है।वे तो ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं।पर इस देश को वैसे तत्वों से बचाने का काम क्या लोकतांत्रिक मिजाज वाले लोग कर रहे हैं ?संविधान की रक्षा का नारा देने वालों की इस पर क्या राय है ?

नहीं।साफ है कि उनके लिए वोट बैंक सर्वोपरि है।

लगता है कि मध्य युग लौट रहा है।

पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया के राजनीतिक संगठन एस.डी.पी.आई.से कई राजनीतिक दलों का गहरा संबंध रहा है।

खबर है कि इस देश में इन दिनों अधिकतर मुस्लिम वोट पी.एफ.आई.ही कंट्रोल कर रहा है।डा.जाकिर नाइक को यह कहते आप यूट्यूब पर सुन सकते हैं--‘‘अब भारत में सिर्फ 60 प्रतिशत ही हिन्दू रह गये हैं।

भारत की ऐसी ही (आपस में कटी-बंटी )‘‘स्थिति’’ से उत्साहित होकर बांग्ला देश के जेहादी तत्व अब सार्वजनिक रूप से यह भी घोषणा करने की हिम्मत कर रहे हैं कि हम बंगाल-बिहार-ओड़िशा पर कब्जा कर लेंगे।

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चीन सरकार ने अपने श्ंिागजियांग प्रदेश के उइगर मुसलमानों का , जो जहादी हैं, अभूतपूर्व दमन करके उन्हें काबू में रखा है।

चीन सरकार कहती है कि ऐसे तत्वों का ‘‘इलाज’’लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था वाले देश में संभव नहीं है।

हमारे यहां यानी चीन  में जैसी एकाधिकारवादी राजनीतिक व्यवस्था हैं,उसी व्यवस्था में जेहादियों का सफाया संभव है।

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एक आंशका

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पी.एफ.आई.अभी तो घातक हथियार जुटा रहा है।

जिस दिन वह भारत में गृह युद्ध शुरू करेगा,उस दिन क्या यहां मार्शल लाॅ लागू करने की भारत सरकार के सामने मजबूरी नहीं हो जाएगी ?

वोट के लिए जो लोग आज पी.एफ.आई.के

प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थक बने हुए हैं,वे उस दिन की पूर्व कल्पना कर लें।

यदि वोट के लोभ में वैसे नेता खुद अंधा बने हुए हैं तो उनके परिवारजन को चाहिए कि वे उन पर दबाव डाल कर उनकी राष्ट्रद्रोही और आत्म घाती राह को बदलने के लिए उन्हें मजबूर कर दें।वैसे मैं खुद ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि वह दिन भारत में कभी न आये।

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8 दिसंबर 24


बुधवार, 27 नवंबर 2024

 योगी अदित्यनाथ लोकप्रिय क्यों ?

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सुरेंद्र किशोर

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महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव नतीजा आने के तत्काल बाद वरिष्ठ नेता शरद पवार ने कहा कि योगी आदित्यनाथ के 

नारे और शिन्दे सरकार की लाड़िली बहन योजना के कारण राजग को इस चुनाव में लाभ मिला।(द हिन्दू-25 नवंबर 24)

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शरद पवार जैसे अनुभवी नेता की टिप्पणी को गंभीरता से लेने की जरूरत है।

आखिकार योगी का नारा काम क्यों कर रहा है ?

इससे पहले हरियाणा विधान सभा चुनाव

नतीजे पर भी योगी के नारे का भाजपा के पक्ष में 

असर पड़ा था।

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योगी का चर्चित नारा असरदार क्यों हुआ ?

क्योंकि योगी के नारे के पीछे उनके कर्मों और उपलब्धियों का बल हैं।

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4 सितंबर, 24 के इंडिया टूडे (हिन्दी) में एक देशव्यापी सर्वेक्षण का नतीजा छपा है।

‘‘देश का मिजाज सर्वेक्षण’’ के नतीजे के अनुसार पूरे देश के एक लाख 36 हजार 463 लोगों में से 46.30 प्रतिशत लोगों ने योगी अदित्यनाथ को देश का सबसे अच्छा मुख्य मंत्री बताया।

इंडिया टूडे के अनुसार , 

‘‘लोकप्रियता में कुछ गिरावट के बावजूद उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ देश में अव्वल नंबर पर’’ हंै। 

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अब सवाल है कि योगी आदित्य नाथ को सबसे अधिक लोग पसंद क्यों करते हैं ?

ध्यान रहे कि यह सिर्फ किसी एक राज्य के सर्वे का नतीजा नहीं है।

बल्कि 30 राज्यों में यह सर्वे हुआ था।

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मेरी समझ से देश के समक्ष जो मुख्य तीन सबसे कठिन समस्याएं हैं ,उनके समाधान के लिए योगी जी   

किसी भी अन्य मुख्य मंत्री की अपेक्षा अधिक गंभीरता से यहां तक कि भारी खतरा उठाकर भी देशहित में सचेष्ट हैं।

उनकी सचेष्टता के कारण ही योगी को जान से मारने की लगातार धमकियां मिल रही हंै।

वे समस्याएं कौन-कौन सी हैं ?

वे हैं--

1.-सर्वव्यापी भीषण भ्रष्टाचार,

2.- बेलगाम (सामान्य) अपराध 

और 3--जेहाद का गंभीर खतरा।

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निष्कर्ष--ये तीनों समस्याएं देशव्यापी हैं।

पर,इन समस्याओं के प्रति अलग -अलग राज्य सरकारों के 

रुख-रवैऐ में भारी फर्क है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।

कहीं -कहीं तो कुछ राज्य सरकारें ही ऐसी समस्याएं बढ़ा रही हैं।ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि योगी की ओर देश के विवेकशील व राष्ट्रभक्त लोगों का ध्यान जाये।

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याद रहे जो भी सत्ताधारी या विपक्षी नेता इन समस्याओं को लेकर जितना कम चिंतित हंै या जो इन समस्याओं को घटाने के बदले बढ़ाने की दिशा में प्रयत्नशील हैं,उनकी ओर से आम जनता (अपवादों को छोड़कर )धीरे -धीरे विमुख होती जाएगी।बल्कि होती जा रही है।

बेहतर है कि वे देशहित मेें अब भी सावधान हो जाएं ,यदि वे अपनी राजनीतिक खैर चाहते हैं।

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26 नवंबर 24 



शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

 क्षमा-याचना सहित

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स्वाभाविक ही है।

लोग सामाजिक तथा अन्य तरह के समारोहों 

में शामिल होने के लिए मुझे यदाकदा बुलाते हैं।

पर, कई कारणों से मैं शामिल नहीं हो पाता।

इसके कुछ तो अपरिहार्य कारण हैं।

मेरा न जाना, किन्हीं के प्रति अवज्ञा कत्तई नहीं है।

किसे अच्छा नहीं लगेगा कि वह कहीं जाये और वहां उसे मान मिले।

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स्वाभाविक ही है कि उम्र बढ़ते जाने के कारण कार्य क्षमता कम होती जाती है।

 साथ ही, मेरे पास समय कम है और बहुत काम अभी बाकी हंै।

कुछ प्रकाशकों के प्रति इस बीच मेरी वचनबद्धता भी हो गयी है। काम पूरा करके उन्हें समय पर सौंपना है।

ऐसा न करने पर साख खराब होती है।

इसलिए बुलावे पर भी न जा पाने के लिए मेरी तरफ से क्षमा याचना !

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सुरेंद्र किशोर

15 नवंबर 24 


गुरुवार, 14 नवंबर 2024

 नेहरू के जन्म दिन (14 नवंबर) पर

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आज इस देश के कितने लोग अपनी सुख-सुविधाएं छोड़कर 

सिर्फ जन सेवा के लिए (कुर्सी के लिए नहीं)सक्रिय राजनीति में खुद को झांेक दे रहे हैं ?!!

अत्यंत विरल।

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सुरेंद्र किशोर

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 किंतु जवाहरलाल नेहरू ने जालियांवाला बाग नर संहार (1919)की हृदय विदारक घटना से क्षुब्ध होकर उसके तत्काल बाद आजादी की लड़ाई में कूद कर देशहित में खुद के

अनिश्चिंतता के भंवर डाल दिया था।

1919 में कितने लोगों को यह उम्मीद थी कि अंग्रेज कभी भारत छोड़ेंगे और हमें राजपाट करने का 

अवसर मिल जाएगा ?

बहुत ही कम लोगों को।

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नेहरू की उसी भूमिका को लेकर उनके आलोचक डा.राम मनोहर लोहिया ने उनके निधन (1964) पर कहा था--   

‘‘1947 के पहले के नेहरू को मेरा सलाम !’’  

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  यह और बात है कि प्रधान मंत्री के रूप में जवाहरलाल नेहरू विफल साबित हुए।यह सिर्फ मेरी नहीं,बल्कि आज की पीढ़ी की भी राय है।

इसीलिए गत साल ‘‘इंडिया टूडे’’ ने लोगों से जब यह पूछा कि अब तक के इस देश के किस प्रधान मंत्री को आप सबसे अच्छा प्रधान मंत्री मानते हैं तो सिर्फ पांच प्रतिशत लोगों ने नेहरू के पक्ष में अपनी राय दी।

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इसके बावजूद नेहरू के बारे में खास कर उनके जीवन के कुछ खास वर्षों के बारे में जो बातें स्मरणीय-प्रेरणादायक हैं ,उनकी चर्चा जरूरी है।शायद उससे आज की (अपवादों को छोड़कर) भौतिकवादी पीढ़ी को कुछ प्रेरणा मिले !

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   उस भीषण नर संहार से पहले भी आजादी की लड़ाई में वह शामिल होना चाहते थे।पर,उनके पिता मोतीलाल नेहरू के मना करने पर वे मान गये थे।

  तब मोतीलाल नेहरू की राय थी कि 

‘‘मुट्ठी भर लोगों के जेल चले जाने से देश गुलामी से मुक्त नहीं हो सकता।’’

 जवाहर की बहन कृष्णा हठी सिंह ने लिखा है कि ‘‘जवाहर के आजादी की लड़ाई में शामिल होने से  

हमारे परिवार का जीवन प्रवाह ही बदल गया।

जालियां वाला बाग की दर्दनाक घटना के बाद आजादी की लड़ाई में शामिल होने को लेकर परिवार की दुविधा समाप्त हो गई थी।’’

    एक नरंसहार के कारण जवाहर लाल नेहरू जैसे शानदार और जानदार नेता आजादी की लड़ाई के लिए मिल गया।

नेहरू ने अपना सुखमय जीवन छोड़कर अनिश्चितता के भंवर में खुद को डाल दिया था।इस देश में त्याग करने वालों कोे सम्मान की नजर से देखा जाता है।

नेहरू तब युवकांे के हृदय सम्राट थे।उनसे प्रेरणा लेकर न जाने कितने नौजवान आजादी की लड़ाई में शामिल हुए होंगे।  कोई व्यक्ति अपना सुखमय जीवन छोड़कर सिर्फ देश के भले के लिए (न कि अपना घर भरने के लिए)खुद को राजनीतिक अनिश्चितता के भंवर में डाल दे,यह बात आज विरल है।

आज इस देश के अधिकतर लोग सत्ता-पैसा-धाक  के लिए ही राजनीति ज्वाइन कर रहे हैं।

आज तो एक पार्टी से जब उनका स्वार्थ साधन नहीं होता है तो वे तुरंत दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं।

हाल के दशकों में उच्च सदनों के कितने निवर्तमान सदस्य रहे हैं जिन्हें यदि अगली बार भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो भी वे उसी दल में जमे रह गये ?!

वैसे भी आज देश की राजनीति का महत्वपूर्ण स्थान वंशवादियों और परिवारवादियों से भरता जा रहा है।कुछ अयोग्य वंशजों के कारण तो खुद वैसी वंशवादी-परिवारवादी पार्टियां भी बर्बाद होती जा रही हैं।

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 लगे हाथ बता दूं कि राजनीति में वंशवाद -परिवारवाद की नींव खुद मोतीलाल नेहरू ने 1928-29 में डाली थी जब उन्होंने महात्मा गांधी पर भारी दबाव बनाकर(मोतीलाल नेहरू पेपर्स इसका गवाह है)

1929 में अपने पुत्र को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया।

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14 नवंबर 24

     


 


 


बुधवार, 13 नवंबर 2024

 जिस देश में भ्रष्टाचार कैंसर की 

तरह पनप रहा हो ,उसे देर-सबेर गुलाम 

होने से भला कौन बचा सकता है ?!

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जेहादियों के लिए भारत में आज

बहुत ही अनुकूल अवसर है

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सुरेंद्र किशोर

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मौजूदा पृष्ठभूमि में आज के दैनिक जागरण तथा दैनिक भास्कर में प्रकाशित सनसनीखेज रपटों को पढ़िए-- कटिंग्स की स्कैन काॅपिज यहां दी जा रही हंै।

छापों के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने यह उद्घाटित किया है कि 

किस तरह बड़े पैमाने पर भारत में बगल के देश से मुसलमानों की घुसपैठ कराई जा रही है।इस तरह  भारत में मुसलमानों

की आबादी बढ़ाई जा रही है।

अन्य सूत्रों के अनुसार जेहादी तत्व गृह युद्ध शुरू करके भारत पर कब्जा कर यहां इस्लामिक शासन कायम करना चाहते हैं।

पी.एफ.आई. इसके लिए बड़े पैमाने पर हथियार जुटाने और हत्यारी जमात गठित करने में लगा हुआ है।कह रहा है कि यदि भारत के दस प्रतिशत भी मुस्लिम उसका साथ दे दें तो हम यहां इस्लामिक शासन कायम कर लेेंगे।

यह अच्छा पक्ष है कि उसके साथ हथियारबंद होने के लिए इस देश के 10 प्रतिशत मुस्लिम भी तैयार नहीं हैं।हालांकि अब थोक में किसी एक ही मोदी विरोधी उम्मीदवार या गठबंधन को वोट देने में लगे हैं।गत लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के 95 प्रतिशत मुसलमानों ने सपा-कांग्रेस को वोट दिये।

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इस देश के किसी भी तथाकथित सेक्युलर दल या बुद्धिजीवी के लिए यह चिंताजनक स्थिति भी कोई समस्या नहीं।

क्योंकि उन्हें तो सिर्फ मुस्लिम वोट चाहिए ताकि वे सत्ता में आकर लूटपाट कर सकें।

इस नाजुक स्थिति की वे चर्चा तक नहीं करते है। वे मुसलमानों के अधिकतर वोट पाकर एक ऐसी केंद्र सरकार को हटाने के प्रयास में लगे हैं जो सरकार जेहादियों से भरसक लड़ रही है।

  हालांकि केंद्र की लड़ाई अभी कमजोर है ।क्योंकि कई राज्य सरकारें जेहादियों के पूरी तरह साथ हैं,उन्हें मदद कर रही हैं या उनकी गतिविधियों के प्रति अंधी हैं।इसीलिए एन.आई,ए,को बंगाल -झारखंड में छापेमारियां करनी पड़ रही हैं।

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कल टी.वी.पर सीमा सुरक्षा बल के एक रिटायर डी.जी.की टिप्पणी सुन रहा था।उन्होंने कहा कि बी.एस.एफ.में सब ईमानदार नहीं हैं।पर जो ईमानदारी से घुसपैठियों को पकड़कर राज्य पुलिस को सौंप भी देते हैं उन्हें भी ऊपरी निदेश के तहत राज्य पुलिस बाद में छोड़ देती है।उनका इशारा बंगाल सरकार की ओर था।

घुसपैठिए देश के विभिन्न हिस्सों में बस रहे हैं।राज्य सरकारें अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए उन्हें छुड़वा देती हैं।

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हाल में एक पाक टी.वी.चैनल पर वहां के एक वक्ता को यह कहते हुए सुना कि --‘‘भारत के 150 जिलों में अब हिन्दू बहुमत में नहीं हैं।’’

  कुछ साल पहले मणि शंकर अय्यर पाकिस्तान जाकर वहां के टी.वी.चैनल के जरिए पाकिस्तानियों से यह अपील कर चुके हैं कि आप मोदी को सत्ता से हटाइए।

  याद रहे कि अय्यर मनमोहन सरकार में मंत्री थे।वे भारत सरकार को चेताते रहते हैं कि पाक से झगड़ा मत करो क्योंकि उसके पास एटम बम है।ऐसे नेताओं से भरा-पड़ा है अपना यह देश।मध्य युग से भी आज इस मामले में बदतर  स्थिति बन गई लगती है।पर अच्छी बात है कि भारत सरकार के पास आज काफी पैसा है।क्योंकि उसने केंद्रीय मंत्रिमंडल स्तर पर से भ्रष्टाचार लगभग समाप्त कर दिया है।सन 2014 की अपेक्षा भारत सरकार का कर राजस्व आज तीन गुना है।

उसने सेना और अर्ध सैनिक बल को मजबूत करना शुरू कर दिया है ताकि किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना किया जा सके।

  हालांकि स्थिति की गभीरता देखिए।

उधर डा.जाकिर नाइक ने करीब साल भर पहले कह दिया था कि अब भारत में हिन्दुओं की आबादी सिर्फ 60 प्रतिशत ही रह गई है।

प्रतिबंधित जेहादी संगठन पी.एफ.आई.का लक्ष्य सन 2047 है,पर टी.वी.पर अक्सर प्रकट होने वाले एक मौलाना को यह कहते हुए सुना कि हम वह लक्ष्य उससे पहले ही प्राप्त कर लेंगे।

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अत्यंत भ्रष्ट प्रशासन,वोटलोलुप नेता और कमजोर (अन इक्वल टू द टास्क )केंद्र सरकार से जेहादियों का मनोबल बढ़ रहा है।

अब आम राष्ट्र भक्त व लोकतांत्रिक जनता को ही यह सोचना है कि उसे इस देश को बचाना है या मध्य युग की पुनरावृति होने देनी  है ्!!!

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13 नवंबर 24