शनिवार, 12 जुलाई 2025

 दैनिक ‘आज’ (फरवरी,1977)में प्रकाशित जेपी के 

इंटरव्यू की फोटोकाॅपी हासिल करने पर मैं 

दस हजार रुपए तक पुरस्कार या पारिश्रमिक दूंगा

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सुरेंद्र किशोर

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दैनिक ‘आज’ के पटना ब्यूरो प्रमुख पारसनाथ सिंह और मैंने मिलकर 

फरवरी, 1977 में जयप्रकाश नारायण से लंबी भेंट वार्ता की थी।

भेंट वार्ता 13 फरवरी, 1977 को हुई।

  16 या 17 फरवरी, 1977 को आज के वाराणसी और कानपुर संस्करणों में प्रमुखता से वह भेंट वार्ता छपी थी।उसे बी बी सी रेडियो ने भी अपने बुलेटिन में उधृत किया था।

   मेरे पास उस ऐतिहासिक इंटरव्यू की काॅपी नहीं है।मैं पिछले कई साल से इसे प्राप्त करने की कोशिश करता रहा हूं।पर,मैं विफल रहा।

शायद उसके लिए किसी को कुछ अधिक प्रयास करने की जरूरत है।

   यदि कोई महानुभाव इस मामले में मेरी मदद करेंगे तो मैं उन्हें पुरस्कार दूंगा ।साथ ही मेरी इंटरव्यू वाली प्रस्तावित पुस्तक में उनके प्रयास की चर्चा रहेगी जो उस इंटरव्यू की फोटो काॅपी हासिल करने में मुझे मदद करेंगे।

   अपने पत्रकारीय जीवन में मैंने दर्जनों बड़ी हस्तियों का इंटरव्यू किया है।उनमें जेपी सबसे बड़ी हस्ती थे।

सारी भेंट वार्ताओं को मिलाकर एक पठनीय पुस्तक बन जाएगी।

पर,जेपी के इंटरव्यू के बिना वह पुस्तक अधूरी ही रहेगी।देखता हूं , मेरी इस विनती 

का मान कौन रख पाते हैं !

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8 जुलाई 25    

 


 बिहार में गत साल नवंबर में 4 विधान सभा सीटों पर उप चुनाव हुए थे।

इनमें से तीन सीटें इंडी गठबंधन के पास थीं।

पर उप चुनाव में चारों सीटें राजग जीत गई ।

नवंबर, 24 के बाद कौन सा इतना बड़ा  परिवर्तन हो गया कि अब अगले बिहार विधान सभा चुनाव में राजग को सिर्फ 45-50 सीटें ही मिलने की उम्मीद है ?

कांग्रेस कह रही है कि कम सीटें मिलने जा रही हंै,इसीलिए विशेष सर्वेक्षण करा कर नाम हटाने का षड्यंत्र हो रहा है।

दरअसल किसी सर्वेक्षण से कांग्रेस को यही पता चला है कि 45-50 सीटें ही राजग को बिहार में मिलेगी।कैसा सर्वेक्षण कराती है कांग्रेस ?

   सन 2019 के लोक सभा चुनाव रिजल्ट आने से पहले भी कांग्रेस ने तथाकथित एग्जिट पोल करवाया था।उसके रिजल्ट के अनुसार भाजपा को 200 से भी कम सीटें मिलनी थीं।पर राजग को सन 2019 में मिली 303 सीटें।

23 मई 2019 के अखबार में वह खबर छपी थी।इस पोस्ट के साथ उस खबर की कटिंग दी जा रही है।उसी तरह का पोल कराती है कांग्रेस।

  जबकि यह खबर भी है कि एक पेशेवर जनमत संग्रह कर्ता ने अनुमान लगाया है कि बिहार विधान सभा के आगामी चुनाव में राजग को आसानी से बहुमत मिल जाएगा।

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सुरेंद्र किशोर

जुलाई 25


   क्या मेरी यह आशंका निराधार है ?

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सुरेंद्र किशोर

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सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह सलाह दी है कि वह आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को भी भारतीय नागरिकता के सबूत के रूप में स्वीकार करने पर विचार करे।

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यदि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की यह सलाह मान ली तो अगले दस-बीस वर्षों  में भारत में सिर्फ उसी की सरकारें बनेंगी जिसे घुसपैठियों के एक मुश्त वोट मिलेंगे।अब भी एक राज्य में बन ही रही है।

उसके बाद तो सेकेंड फेज में कोई बांग्लादेशी या रोहिंग्या ही इस देश के प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री बन सकते हैं !

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क्या मेरी यह आशंका निराधार है ?

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11 जुलाई 25


 मेरा अनुमान है कि संघ नेता मोरोपंत पिंगले यदि आज 

जीवित होते तो कहते कि सार्वजनिक जीवन से

रिटायर होने की उम्र 87 साल होनी चाहिए।

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सुरेंद्र किशोर

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आर.एस.एस. के नेता मोरोपंत पिंगले ने सन 1994 में कहा था कि 75 वर्ष का

हो जाने के बाद रिटायर हो जाना चाहिए।

   यदि मोरोपंत आज जीवित होते तो कहते कि 87 साल की उम्र में रिटायर हो जाना चाहिए।

ऐसा मैं क्यों लिख रहा हूं ?

इसलिए कि जब सन 1994 में पिंगले ने 75 बताया था तो कोई उसका आधार तो रहा होगा।

ठोस या वैज्ञानिक आधार यही हो सकता है--शारीरिक और मानसिक क्षमता।

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1994 में भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा 60 साल थी।

1947 में भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा 32 साल थी।

आज कितनी है ?

आज भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा 72 साल है।

ऐसे में यदि जिन्दा होते तो खुद मोरोपंत जी कहते कि सक्रिय राजनीति या सार्वजनिक जीवन से रिटायर होने की उम्र 87 होनी चाहिए।

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1947 में यहां के सरकारी सेवकों की अवकाश ग्रहण आयु 55 थी।

पर,जब जीवन प्रत्याशा बढ़ने लगी तो रिटायरमेंट की आयु भी बढ़ती गयी।

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75 साल की चर्चा के बाद मोदी विरोधी खुश हैं।

सबसे अधिक खुश तो पाकिस्तान हो रहा होगा क्योंकि उसके कुछ नेताओं को यह कहते हुए मैंने सुना है कि हमारा विरोध इंडिया से नहीं,हिन्दुओं से भी नहीं,बल्कि सिर्फ मोदी से है।

वे ऐसा इसलिए कहते हैं कि वे समझते हैं कि मोदी रहेगा तो गजवा ए हिन्द किसी भी हालत में नहीं होने देगा।

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12 जुलाई 25

 


गुरुवार, 10 जुलाई 2025

 शहाबुद्दीन जी अमर रहें ’’कह कर तेजस्वी यादव ने समय से पहले ही अपना ‘‘चुनाव घोषणा पत्र’’ जारी कर दिया है।

जिसे समझना है,समझ ले।जो ना समझे,वह अनाड़ी है।

यानी राजद को यदि सत्ता मिली तो फिर वही सब होगा,जो सन 1990 से 2005 तक हुआ था।


बुधवार, 9 जुलाई 2025

 दैनिक ‘आज’ (फरवरी,1977)में प्रकाशित जेपी के 

इंटरव्यू की फोटोकाॅपी हासिल करने पर मैं 

दस हजार रुपए तक पुरस्कार या पारिश्रमिक दूंगा

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सुरेंद्र किशोर

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दैनिक ‘आज’ के पटना ब्यूरो प्रमुख पारसनाथ सिंह और मैंने मिलकर 

फरवरी, 1977 में जयप्रकाश नारायण से लंबी भेंट वार्ता की थी।

भेंट वार्ता 13 फरवरी, 1977 को हुई।

  16 या 17 फरवरी, 1977 को आज के वाराणसी और कानपुर संस्करणों में प्रमुखता से वह भेंट वार्ता छपी थी।उसे बी बी सी रेडियो ने भी अपने बुलेटिन में उधृत किया था।

   मेरे पास उस ऐतिहासिक इंटरव्यू की काॅपी नहीं है।मैं पिछले कई साल से इसे प्राप्त करने की कोशिश करता रहा हूं।पर,मैं विफल रहा।

शायद उसके लिए किसी को कुछ अधिक प्रयास करने की जरूरत है।

   यदि कोई महानुभाव इस मामले में मेरी मदद करेंगे तो मैं उन्हें पुरस्कार दूंगा ।साथ ही मेरी इंटरव्यू वाली प्रस्तावित पुस्तक में उनके प्रयास की चर्चा रहेगी जो उस इंटरव्यू की फोटो काॅपी हासिल करने में मुझे मदद करेंगे।

   अपने पत्रकारीय जीवन में मैंने दर्जनों बड़ी हस्तियों का इंटरव्यू किया है।उनमें जेपी सबसे बड़ी हस्ती थे।

सारी भेंट वार्ताओं को मिलाकर एक पठनीय पुस्तक बन जाएगी।

पर,जेपी के इंटरव्यू के बिना वह पुस्तक अधूरी ही रहेगी।देखता हूं , मेरी इस विनती 

का मान कौन रख पाते हैं !

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8 जुलाई 25    

 


मंगलवार, 8 जुलाई 2025

 ‘आज भी अघोषित इमर्जेंसी है।’

‘आज भी बिहार में जंगल राज है।’

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सुरेंद्र किशोर

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आए दिन कुछ खास लोगों की ओर से ऐसा कहा जाता है।

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मैं मान लूंगा कि आज भी अघोषित इमर्जेंसी है यदि मोदी सरकार

अखबारों को यह निदेश जारी कर दे कि वे राहुल गांधी का कोई भी चित्र अपने अखबार न छापंे।

  लोकतंत्र का स्विच आॅफ कर दिया जाए ताकि इस आदेश के खिलाफ कोई कोर्ट न जा सके और अखबार को इस आदेश का पालन करना पड़े।

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इमर्जेंसी में स्वास्थ्य कारणों से जब 12 नवंबर 1975 को जयप्रकाश नारायण को पेरोल पर रिहा किया गया तो अखबारों को इंदिरा सरकार ने यह आदेश दे दिया था कि जेपी का फोटो नहीं छापा जाए।उनके बयान न छापे जाएं ।साथ ही,वे कहां से कहां जाते हैं, इसका विवरण भी अखबार न छापंे।अखबारों को इस आदेश का पालन करना पड़ा था।

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आज बिहार में जंगल राज है,यह बात भी मैं मान लूंगा यदि आज के सत्ताधारी दल का कोई सांसद रंगदारी न देने के कारण किसी व्यापारी के बेटों को तेजाब से नहला कर मार डाले और सत्ताधारी दल उसे अपने दल से नहीं निकाले।

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ये दो उदाहरण सिर्फ नमूने मात्र हैं।ऐसे न जाने कितने अत्याचार आपातकाल और ‘जंगल राज’ में हुए।दोनों काल खंडों का मैं खुद भी गवाह और भुक्तभोगी हूं।भयंकर भुक्तभोगी।अभूतपूर्व अपमान व कष्ट सहने पड़े थे।

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  6 जुलाई 25

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पुनश्चः कानून -व्यवस्था के मामले में बिहार में आज कोई आदर्श स्थिति नहीं है जैसा खुद नीतीश कुमार के कार्यकाल के शुरू के कुछ साल रहे।

जब थाने नीलाम होंगे,गवाहों की सुरक्षा नहीं होगी तो हत्यारे बेफिक्र होकर मर्डर करेंगे ही।

  पुलिस का चरित्र देश भर में एक ही है।पर,मुख्य मंत्री पर निर्भर करता है कि वे लगाम कसते हैं या ढीला छोड़ देते हैं।

यू.पी.के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ उसी पुलिस से अच्छा काम करवा रहे हैं।हमारे मुख्य मंत्री नीतीश कुमार को चाहिए कि वे भी योगी आदित्यनाथ की राह पर चलें।

अन्यथा, नीतीश के अच्छे काम भी जनता की नजरों से धीरे- धीरे ओझल हो जाएंगे।

उसे बिहार के बेलगाम अपराधी और निकम्मे पुलिसकर्मी ही याद रहेंगे।वह राजग को महंगा पड़ सकता है।

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