बुधवार, 24 जुलाई 2024

 संसद में लगातार बवाल,हंगामे और अशिष्टता से 

राजनीति के प्रति नयी पीढ़ी की वितृष्णा बढ़ी

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संकेत हैं कि प्रतिपक्षी नेताओं के खिलाफ जारी 

भ्रष्टाचार के मुकदमों के निपटारे तक न तो सदन 

में शांति आएगी न ही सड़कों पर बवाल कम होगा

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सुरेंद्र किशोर

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प्रतिपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में जारी मुकदमे जब तक अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच जाते,तब तक संसद और संसद के बाहर अभूतपूर्व हंगामे और बवाल होते रहेंगे।

 भारत की मौजूदा संसदीय प्रणाली और उसके बेतरतीब संचालन को लेकर पूरी दुनिया में लोग क्या सोचते होंगे,

उसकी जरा कल्पना कर देख लीजिए।

इस पर हमारी नयी पीढ़ी क्या सोच रही है,इस पर तो 

मीडिया को सर्वे कराना चाहिए।

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इस विषम स्थिति में पीठासीन पदाधिकारियों और सत्ताधारी दलों की क्या जिम्मेदारी है ?

क्या वे संसद को हंगामा -सदन बनते देखते रहने के  

लिए अभिशप्त हैं ?

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कत्तई नहीं।

पीठासीन पदाधिकारियों के पास सदन की कार्य संचालन नियमावली की ताकत है।

उनके पास अखिल भारतीय पीठासीन पदाधिकारी सम्मेलनों की अनेक तत्संबंधी सिफारिशों का बल है।

भीतर मार्शल तैनात हैं और बाहर सी.आई.एस.एफ. के दस्ते संसद भवन की रखवाली कर रहे हैं।

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मार्शलों को वेतन इसीलिए दिया जाता है ताकि 

जरूरत पड़ने पर उनसे काम भी लिया जाये।

यदि मोदी सरकार कहती है कि भ्रष्टाचारियों और देशद्रोहियों के प्रति शून्य सहनशीलता की हमारी नीति है तो रोज-रोज सदन की गरिमा नष्ट करने वालों के प्रति 

इतनी उदारता क्यों ?

नियम के खिलाफ आचरण करते पाए जाने पर सदस्यों को सदन से मार्शल के जरिए बाहर कीजिए।

दूसरे दिन यदि फिर वही सदस्य वैसा ही व्यवहार करता है तो उन्हें बाकी बैठकों से वंचित करिए।

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पचास और साठ के दशकों में जिस गरिमापूर्ण ढंग से 

सदन की बैठकें हुआ करती थीं,उस गरिमा की पुनर्वापसी हो।

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24 जुलाई 24 


  


शनिवार, 20 जुलाई 2024

 इन दिनों ब्रिटेन जल रहा हैं ।

उसे कौन जला रहा है ?

घुसपैठिए और शरणार्थीगण--

जिन्हें वहां के मिरजाफरों ने पाल-पोस कर मजबूत किया है।

उसी तरह की बारूद पर भारत भी बैठा है।

यहां भी वैसे ही संकेत समय-समय पर मिलते रहते हैं।लेकिन हमारी चमड़ी तो थोड़ी मोटी है।

ब्रिटेन तथा इसी तरह की यूरोप में हो रही और होने वाली घटनाओं पर नजर रखिए।

भारत पर भी आने वाले वैसे ही भीषण बल्कि उससे भी अधिक खतरनाक खतरों से बच सकते हो, बचने की कोशिश अभी से शुरू कर दो।अन्यथा.......????

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सुरेंद्र किशोर

20 जुलाई 24


शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

 आवश्यकता आविष्कार की जननी 

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अब हेलमेट सिर्फ पारदर्शी बनें।

हत्यारे,लुटेरे तथा अन्य तरह के अपराधी आम तौर अपारदर्शी हेलमेट पहनते हैं।

 सरकार को चाहिए कि वह हेलमेट निर्माताओं पर दबाव डालकर अब पारदर्शी हेलमेट का ही उत्पादन कराए।

इससे पुलिस का बोझ हल्का होगा।अपराध भी कम होंगे।

क्योंकि अनुसंधान कार्य आसान होगा।

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आप कह सकते हैं कि पारदर्शी हेलमेट के पीछे चेहरे पर अपराधी फिर भी रुमाल बांध सकते हैं।

बांध सकते हैं।

किंतु उन्हें देखते ही पुलिस कौन कहे, राहगीर भी समझ जाएगा कि इनका इरादा बुरा है।

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सुरेंद्र किशोर

14 जुलाई 24  


गुरुवार, 18 जुलाई 2024

 एक घटना के चलते मेरा सामान्य ज्ञान बढ़ा।

निजी क्षेत्र में सूद का रेट चल रहा है 4 प्रतिशत मासिक यानी 48 प्रतिशत सालाना।

  सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के सूद का रेट अधिकत्तम 10 या 11 प्रतिशत सालाना है।

एक तरफ 11 प्रतिशत सालाना तो दूसरी ओर 

 48 प्रतिशत सालाना।

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संदर्भ --बिहार के एक पूर्व मंत्री के सूदखोर

 पिता की निर्मम हत्या 

18 जुलाई 24

 


बुधवार, 17 जुलाई 2024

 जरूरी हाजिरी विरोधी शिक्षकों के समक्ष योगी सरकार झुकी

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 चीन सरकार कहती है कि इस्लामिक जेहाद की समस्या का समाधान लोकतंत्र में संभव नहीं है।वह हमारी तरह की व्यवस्था में ही संभव है।

 दूसरी ओर, भारत की स्थिति तो यह बन गई है कि यहां जेहाद कौन कहे,शिक्षा-परीक्षा में कदाचार और सरकार में व्याप्त भीषण भ्रष्टाचार कम करना भी लोकतंत्र में संभव नहीं हो पा रहा है।

भ्रष्ट व्यवस्था में जेहाद खूब फलता-फूलता है।यहां फल-फूल रहा भी है।

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सुरेंद्र किशोर

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चीन सरकार का मानना है कि इस्लामिक जेहाद की समस्या का समाधान लोकतंत्र में संभव नहीं है।

चीन का शिंगजियांग प्रांत जेहादी आतंकवाद और अतिवाद से बुरी तरह पीड़ित है।

  नतीजतन वहां के जेहादी उइगर मुसलमानों का चीन सरकार अभूतपूर्व दमन कर रही है।

  यूं कहें कि उसे करना पड़ रहा है।

 चीन सरकार का कहना है कि हमारी सरकार का यह कर्तव्य है कि हम जनता को अतिवाद और आतंकवाद से बचाएं।

(दूसरी ओर भारत में बड़े पैमाने पर सक्रिय जेहादी आतंकवादियों से लड़ने के लिए आज उसी तरह इस देश के नेतागण बंटे हुए हैं जिस तरह मध्य युग में बंटे थे।)

भारत जैसे बहुदलीय लोकतंत्र में जेहाद कौन कहे,शिक्षा-परीक्षा की समस्या का समाधान भी संभव नहीं।

उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिक्षकों की अनिवार्य हाजिरी व्यवस्था को वापस लेकर अपनी सरकार बचा ली है।

 सन 1992 में कल्याण सिंह सरकार ने नकल विरोधी कानून बनाया।सपा ने 1993 के यू.पी.विधान सभा चुनाव में उसे सबसे बड़ा मुद्दा बनाया।नकल पक्षी जनता ने सपा को सत्ता सौंप दी। 

मुलायम सिंह सरकार ने सन 1994 में उस नकल विरोधी कानून को रद कर दिया।

दरअसल यू.पी.बोर्ड की परीक्षा में पहले से जारी भीषण कदाचार को पूरी तरह रोक देने के कारण कल्याण सिंह की सरकार सन 1993 के चुनाव में सत्ता से बाहर हो गई।

1992 में बाबरी ढांचा गिराने के कारण उत्पन्न भावना को भंजाने का चुनावी लाभ तक भाजपा को नहीं मिल सका था।

उत्तर प्रदेश की जनता के एक बड़े हिस्से की प्राथमिकता तो देखिए। सन 2024 के लोस चुनाव में वैसी ही प्राथमिकता फैजाबाद(अयोध्या)तथा अन्य चुनाव क्षेत्रों मेें नजर आई। 

सन 1993 में मुलायम सिंह यादव कदाचारी विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों के ‘हीरो’ बन गए थे।शायद अनिवार्य हाजिरी को लेकर मौजूदा मुख्य मंत्री योगी को किसी ने 1993 की याद दिला दी होगी।

   यानी,मुझे तो यह लगने लगा है कि  चुनाव लड़ने वाली कोई भी पार्टी और उसकी सरकार आम परीक्षाओं में नकल नहीं रोक सकती।

 न ही नौकरियों के लिए आयोजित परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीक होने से रोक सकती है।

उसके लिए शायद देर-सबेर चीन की तरह किसी एकाधिकारवादी शासक की जरूरत पड़ेगी।मेरा अनुमान है कि वैसा हो सकता है ,पर तब तक देश को बहुत बड़ा नुकसान हो चुका रहेगा।

भारत के अनेक हिस्सों में तो जेहादी जिस बड़े पैमाने पर अपनी जड़ें मजबूत करते जा रहे हैं, और यदि उनकी यह रफ्तार जारी रही तो उससे यह साफ है कि अगले पांच-दस साल में 1947 वाली नौबत एक बार फिर आ सकती है।

आज भारत में जहादियों के जितने गैर मुस्लिम समर्थक मौजूद हैं,उतने तो मध्य युग में भी नहीं थे।

  क्योंकि मध्य युग में चुनाव जीतने के लिए जातीय-सांप्रदायिक वोट बैंक बनाने की जरूरत नहीं पड़ती थी।

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17 जुलाई 24


    कर्पूरी ठाकुर के बारे में 

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मुझे भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर के जीवन पर पुस्तक लिखने का काम मिला है।

यह जिम्मेदारी मुझे एक प्रतिष्ठित संस्थान ने दी है।

सन 1972-73 में मैं समाजवादी कार्यकर्ता की हैसियत से कर्पूरी जी का निजी सचिव था।बाद में मुख्य धारा की पत्रकारिता से जुड़ा।

इसलिए मैं जानता हूं कि बिहार में और बिहार के बाहर भी कर्पूरी ठाकुर का असंख्य लोगों से निकट का संबंध रहा था।

उनमें से अनेक लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं।

पर,बहुत सारे हमारे बीच मौजूद हैं।

मेरा निवेदन है कि जिनके पास कर्पूरी जी से संबंधित कोई प्रेरक संस्मरण,तथ्य या अन्य सामग्री उपलब्ध हों,वे मुझे उपलब्ध कराएं,यदि चाहें तो।

इस अपील के साथ मैं अपना मो.नंबर दे रहा हूं।इस नंबर पर व्हाट्सेप्प भी है।

मुझे व्हाट्सेप पर सूचित करें।जरूरत पड़ने पर पोस्टल एड्रेस और ईमेल एड्रेस भी भेज सकता हूं।

कर्पूरी जी पर पहले भी कई अच्छी पुस्तकें आ चुकी हैं।उनमें जो कुछ जानकारियां छप चुकी हैं,उसके दोहराव से कोई लाभ नहीं।

    -----सुरेंद्र किशोर

  मो.नंबर--933 411 65 89 

  


मंगलवार, 16 जुलाई 2024

   खेती में निवेश नहीं तो 70 प्रतिशत आबादी का विकास नहीं 

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 आर्थिक विकास नहीं होगा तो कारखानों का विकास कैसे होगा ?

70 प्रतिशत लोगों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ेगी तो करखनिया माल कौन खरीदेगा ?

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सुरेंद्र किशोर

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सी.एस.डी.एस.के सन 2014 के एक सर्वे के अनुसार 

इस देश के ‘‘किसानों को विकल्प मिल जाए तो भारत के 76 प्रतिशत किसान खेती छोड़ देंगे।

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2014 के बाद कृषि संकट और भी बढ़ा है।

हाल में उसी के मद्देनजर मोदी सरकार ने तीन कृषि कानून लाए थे।

पर, सरकार को उन कानूनों को वापस लेने को बाध्य कर दिया गया।

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दरअसल खेती में पंूजी निवेश की सख्त जरूरत है।

पर,किसानों के पास पूंजी नहीं है।

मजदूरों से खेती करवाना अब घाटे का सौदा है।

मैं भी गांव का ही मूल निवासी हूं।गांवों से मेरा जीवंत संबंध अब भी है।

  किसान-सह -मजदूर तो खुद खेती करते हैं।

 पर,जो मझोले ओर बड़े किसान, मजदूरों से खेती कराते थे,वे अब खेत को ठेके पर दे दे रहे हैं।

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जितने दाम की जमीन है,उस अनुपात में रिटर्न नहीं आ रहा है।

इसलिए उनकी आर्थिक तरक्की नहीं हो रही है।उनकी क्रय शक्ति भी नहीं बढ़ रही है।

 क्रय शक्ति नहीं बढ़ने से करखनिया माल की बिक्री नहीं बढ़ रही है।नतीजतन उद्योगों का विकास नहीं हो रहा है।

इसीलिए रोजगार के अवसर बढ़ती आबादी के अनुपात में नहीं बढ़ रहे हैं।

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अब सामान्य लोगों और नीति निर्धारकांे सोचना है कि कृषि क्षेत्र का विकास कैसे हो ? 

याद रहे कि इस देश के 70 प्रतिशत लोग खेती और खेती से जुड़े धंधांें पर निर्भर हैं।

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पर,अपने लोकतांत्रिक देश में यदि सरकार को अढ़तियों-मंडी

के दलालों के हितों और 70 प्रतिशत आबादी वाले किसानों के हित के बीच चुनना होता है तो वोट के चक्कर में सरकार अढ़तियों और मंडी के दलालों के सामने झुक जाती है।

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ऐसा कब तक चलेगा ?

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16--7--2024