गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

  एक तरफ तो पाकिस्तान के भीतर के ही कुछ लोग पाक सरकार से यह सवाल कर रहे  हंै कि हाफिज सईद,सैयद सलाउद्दीन और मौलाना मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों के लिए पूरे  पाकिस्तान को खतरे में क्यों डाल रहे हो ?
उनको भारी खतरा इसलिए महसूस हो रहा है क्योंकि पाक न सिर्फ चीन की सहानुभूति-समर्थन खो चुका है बल्कि आर्गनाइजेशन आॅफ इस्लामिक कोआॅपरेशन की बैठक में सुषमा स्वराज को बतौर ‘गेस्ट आॅफ आॅनर’ बुलाया गया है।इसके विरोध स्वरूप पाक को उस बैठक का बहिष्कार करना पड़ रहा है।
  पाक सरकार के सामने ऐसी नौबत लाने में भारत सरकार की मुख्य भूमिका रही  है।ऐसा पहली बार हो रहा है।
  पर, दूसरी ओर भारत के कुछ प्रतिपक्षी नेता व कतिपय बुद्धिजीवी गण भारत सरकार को ही परेशानी डालने की  तरह- तरह की कोशिशें कर रहे हैं ।जबकि, किसी देश के लिए यह नाजुक घड़ी होती है।
इसे आम जनता किस रूप में लेगी ?  

अपने पैर की बिवाई महसूसने के बाद चीन को अब भारत की पीर समझ में आ गई



चीनी विदेश मंत्रालय के एक सूत्र के मुताबिक बिजिंग इस्लामाबाद को यह साफ कर देना चाहता है कि पाकिस्तान भारत के साथ होने वाले किसी तरह के युद्ध में चीन से किसी तरह की सहायता की उम्मीद नहीं करे।
हमारा सहयोग सिर्फ आर्थिक विकास तक सीमित है।
   एक कहावत है,
‘जाके पैर न फटे बिवाई सो क्या जाने पीर पराई।’
चीन के शिनजियांग प्रांत के जेहादी मुसलमानों से पाला पड़ने पर चीन सरकार ने अपना रुख बदला है।
सन 2009 से चीन जेहादी आतंकवादी हिंसा का शिकार हो रहा है।
पर चीन एक ताकतवर देश है।इसलिए वह अपने ढंग से कड़ाई से आतंकवादी तत्वों से निपट रहा है।वहां भारत की तरह भीतरघातियों की भी नहीं चलती।
  चूंकि सवा दो करोड़ मुसलमानों वाले पश्चिमोत्तर प्रदेश शिनजियांग में  धारा 370 की कोई समस्या नहीं है,इसलिए चीन उस प्रदेश में गैर मुसलमानों यानी हान को बसा रहा है।
यदि 370 धारा होती भी तो वह उसे उलट देता।क्योंकि वह देश को ध्यान में रखता है न कि वोट बैंक को।
साथ ही, चीन सरकार हजारों जेहादी मुसलमानों को पेशेवर स्कूलों में भेज रही है ।वे  स्कूल आतंकवाद व कट्टरपंथ से लड़ना सिखाते हैं।
 कुछ लोग कह रहे हैं कि हजारों मुसलमानों को चीन सरकार गायब कर रही है।पर चीन सरकार कहती है कि वे अपनी मर्जी से उन स्कूलों में जा रहे हैं।
 पाकिस्तान पर  चीन का ताजा बयान परोक्ष रूप से अपने पुराने मित्र पाक को यह कड़ा संदेश दे रहा है कि वह अपने देश में चल रहे  आतंक के कारखानों को तत्काल बंद करे।
पूरी दुनिया में खलीफा का शासन कायम करने की कोशिश करने वाले आतंकियों को पाक अपने देश में शरण व संरक्षण न दे।
 भारत के लिए यह अनुकूल अवसर है।
अभी नहीं तो कभी नहीं ! 
अन्यथा, इस देश में यदि फिर कभी कोई पाक समर्थक सरकार आ गई तो ‘फिर बेताल उसी डाल पर’ होगा।
भारत सरकार पाक को यह कहने को मजबूर करे कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
 यदि ऐसा होता है तो भारत सरकार पाक को एक विकसित देश बनाने में मदद करे।आखिर कल तक  वहां के लोग  हमारे भाई ही तो थे !
  भारत और पाक की आर्थिक स्थिति  1947 मंे तो समान ही थी।
पर, अब एक तरफ भारत मंगल यान भेज रहा है और दूसरी ओर पाकिस्तान कश्मीर में घुसने की कोशिश कर रहा है।

  
  

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

राहुल गांधी ने वायु सेना के पायलेटों को सैलूट किया है।अच्छा किया है।उन्हें  सैलूट किया ही जाना चाहिए।
यह और भी अच्छी बात है कि इस बार कांग्रेस ने कोई सबूत नहीं मांगा।
पर एक सवाल बच गया ।
बंगला देश युद्ध के लिए तो इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी ने ‘दुर्गा’ तक कह दिया, पर ताजा कदम के लिए नरेंद्र मोदी को कोई श्रेय नहीं ! ? 
   हालांकि तब बंगला देश युद्ध विजय का श्रेय तो तत्कालीन रक्षा मंत्री और सेनाध्यक्ष भी ले रहे थे।वैसे उससे इंदिरा गांधी का योगदान कम नहीं हो जाता।

सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

बिहार की  प्राथमिक शिक्षा-स्वास्थ्य सेवा को 
सुधारने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक जरूरी
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केंद्रीय मंत्री आर.के.सिंह ने कहा है कि ‘स्कूलों में मास्टर नहीं आते हैं और डी.एस.ई.आंखें मूंदे रहते हैं।
यह व्यवस्था सिर्फ बिहार में है।
सरकार को इस संबंध में विचार करना चाहिए।
बिहार में स्वास्थ्य विभाग का भी बुरा हाल है।प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डाक्टर नहीं जाते।वे आरा और पटना में बैठकर प्रैक्टिस करते हैं।भागे रहने के एवज में सारे डाक्टर, सिविल सर्जन को कमाई का एक हिस्सा दे देते हैं।
आगे सिविल सर्जन क्या करते हैं, सबों को पता है।’
 बिहार काॅडर के आई.ए.एस. रहे आर.के. सिंह ने वही कहा है जिसकी जानकारी सरकार को ‘छोड़कर’ पूरे बिहार को है।
 आर.के.सिंह उन थोड़े से जन प्रतिनिधियों में शामिल हैं जो सांसद फंड से  कमीशन नहीं लेते।
जो जन प्रतिनिधि लेते हैं,वे अफसरों के सामने लज्जित रहते हैं।वे भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ इस तरह आवाज नहीं उठाते ।
   दरअसल गरीब व पिछड़े वर्ग के लोग शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए सरकारी स्कूलों व अस्पतालों पर ही निर्भर रहने को मजबूर होते हैंं।पर उसकी भी ऐसी उपेक्षा ?
  आर.के.सिंह की इस आवाज को कुछ अन्य विक्षुब्ध सत्ताधारी सांसदों की आवाजों से अलग करके देखना चाहिए।
 आर.के. अपनी सेवा के प्रारंभिक काल से ही ऐसे ही हैं।
 मैं उसका गवाह हूं।
बात तब की है जब आर.के. सिंह पटना के डी.एम. थे।
डी.एम. ही प्राथमिक शिक्षा की जिला स्थापना समिति के प्रधान हुआ करते थे।
हम लोग लोहिया नगर में रहते थे।मेरी पत्नी पटना में ही पर आवास से  दूर स्थित एक सरकारी मिडिल स्कूल में पढ़ाने जाती थी।
अल्प वेतन का आधा पैसा रिक्शा भाड़े मेें चला जाता था।
लोहिया नगर के एक ‘बाबू साहब’ कभी- कभी  मेरे घर आया करते थे।
एक दिन जब उन्हें चाय नहीं मिली तो पता चला कि मेरी पत्नी तो स्कूल जा चुकी हैं।
उन्होंने पूछा,‘इतनी जल्दी ?अभी तो नौ ही बजे हैं ?’
मैंने कहा कि ‘दूर जाना होता है,इसलिए जल्दी चली गयी।’
उन्होंने कहा कि आर.के. मेरे परिचित हैं,उनसे मैं बात करूंगा।मैंने उन्हें मना नहीं किया।
  एक दिन वे डी.एम.साहब से मिले।
उनसे कहा कि ‘सुरेंद्र किशोर को जानते हैं न ! जनसत्ता का रिपोर्टर है।
अपना जात-भाई है।उसकी पत्नी कष्ट में है।उसे नजदीक के किसी स्कूल में ट्रांसफर कर दीजिए।’
इस पर आर.के. ने अनिच्छा दिखाते हुए कहा कि
 ‘पटना से पटना में बदली होती है ?
यह संभव नहीं है।’
वे ऐसे कडि़यल अफसर थे कि कोई उनसे बहस नहीं कर सकता था।
बेचारे उदास ‘बाबू साहब’ दूसरे दिन मेरे पास आए।कहा कि गजब आदमी है आर.के. ! ऐसे -ऐसे कह दिया। 
मैं तो मन ही मन खुश हुआ।
एक ऐसा अफसर जो न जात के प्रभाव में आया और न ही जनसत्ता जैसे अखबार से सहमा ।जरूर राज्य का भला करेगा।
याद रहे कि उन दिनों जनसत्ता की 18 हजार प्रतियां पटना आती थीं।
कई विवादास्पद हस्तियों को यह आशंका रहती थी कि पता नहीं कल के जनसत्ता में किसके बारे में क्या छपा होगा !
आर.के.कभी विवादास्पद रहे नहीं।उन्हें किसी अखबार से भला क्यों डरना !
 मैं कभी आर.के.सिंह से मिला नहीं।न अब कोई वैसा अवसर आने की उम्मीद है।क्योंकि मैंने कहीं आना-जाना काफी कम कर दिया है।
  पर, राज्य सरकार खास कर मुख्य मंत्री नीतीश कुमार को
चाहिए कि वे गरीबों व पिछड़ों के भले के लिए प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को पटरी पर लाने के लिए  यथाशीघ्र सर्जिकल स्ट्राइक करें । 
   
  


रविवार, 24 फ़रवरी 2019

चुनाव के दिनों अनेक नेतागण एक दूसरे के खिलाफ जातिवाद 
के आरोप कुछ ज्यादा ही लगाने लगते हैं।
 ऐसा करने का नैतिक अधिकार किसको है ? किसको नहीं है ? 
1.-उसे तो बिलकुल नहीं है जिसके निजी सचिव और बाॅडी गार्ड दोनों उस नेता की ही जाति के हैं।
2.-कल्पना कीजिए कि किसी सत्ताधारी नेता या अफसर को 
कहीं किसी संस्थान में 100 कर्मचारियों की बहाली का अधिकार मिला ।यदि उस नेता या अफसर की जाति के 20 प्रतिशत से अधिक लोग वहां बहाल हो गए तो उसे दूसरे पर जातिवादी होने का आरोप लगाने का  अधिकार नहीं है।
3.-यदि कोई नेता अपने दल के चुनावी टिकट के लिए अपनी जाति से दस  प्रतिशत से अधिक लोगों का चयन करता है तो उसे भी दूसरे को जातिवादी कहने का अधिकार नहीं है।
 4.-यही बात दलीय पदाधिकारियों की संख्या पर भी लागू होती है।
5.-किसी व्यक्ति की निजी फोन डायरी में उसकी अपनी जाति के कितने प्रतिशत लोगों के नंबर हैं।रिश्तेदारों को छोड़कर।
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सत्तर के दशक में एक समाजवादी नेता के साथ एक दिन मैं 
पटना में घूमा ।नेता जी छह या सात व्यक्तियों के घर गए।
  दिन का भोजन एक डाक्टर के यहां हुआ।
दूसरे दिन सुबह मैं उसी नेता के यहां बैठा हुआ था।
नये जोश में मेरे मुंह से निकल गया,‘बिहार की राजनीति में बहुत जातिवाद है।’
नेता जी समझ गए।उन्होंने कहा कि ‘ दुर बुरबक ,जब तक जाति में शादी होती रहेगी ,तब तक तो जातिवाद  
रहेगा ही !’
  


शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

यह प्रचार मुझे गलत लगता है कि फिरोज गांधी मुस्लिम थे।
मेरी जानकारी के अनुसार उनका जन्म गुजरात के  भरूच के एक पारसी परिवार में हुआ था।उनके पिता का नाम था-फरिदून जहांगीर घंडी।
जन्म के समय फिरोज का नाम पड़ा था-
फिरोज जहांगीर घंडी।
यह ‘घंडी’ शब्द गांधी में कैसे बदल गया,यह मैं नहीं जान सका हूं।
यानी फिरोज गांधी कैसे कहलाए ?
खैर नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता।वे एक बहुत अच्छे सासंद थे।

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

--सतत निगरानी के बिना सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिलना मुश्किल--


जब कोई पत्रकार पूछता है कि आपके अस्पताल में मरीजों के लिए ब्लड का बोतल टांगने के लिए स्टैंड तक नहीं है तो संबंधित अफसर जवाब देता है कि ‘अच्छा तो देखता हूं।प्रबंध करा दूंगा।’
जब कोई मीडिया मैन पूछता है कि मैन होल का ढक्कन क्यों नहीं है तो अफसर कहता है कि ‘जानकारी देने के लिए धन्यवाद ।ढक्कन लगवा दूंगा।’
 इसी तरह जब संबंधित अफसर को यह बताने के लिए कोई पत्रकार उसके पास जाता है कि ‘आप के आॅफिस के ठीक बाहर ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए खुलेआम रिश्वत ली जा रही है’ तो अफसर अपनी अनभिज्ञता प्रकट कर देता है।
ऐसे अनेक उदाहरण आपको कहीं न कहीं मिल जाएंगे।
ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकारी सेवा व विकास के कार्यों की आम तौर पर मोनिटरिंग ठीक से नहीं होती।यदि कोई अफसर निगरानी करने के लिए तैनात भी है तो वह शुकराना-नजराना लेकर सब कुछ ठीकठाक होने की कागजी खानापूत्र्ति करता रहता है।
मुजफ्फर पुर शेल्टर होम कांड इसका ताजा उदाहरण है।
यदि राज्य सरकार ने टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान,मुम्बई  के  लड़कों से  उसकी जांच नहीं करवाई  होती तो वहां अब तक  वही सब अमानवीय  कुकर्म होता रहता।
 ईमानदार निगरानी से किस तरह भ्रष्टाचार पकड़े जा सकते हैं,उसका एक नमूना हाल में सामने आया है।
 मुख्य सचिव ने विकास आयुक्त को स्थल निरीक्षण के लिए हाल में सारण भेजा था।
विकास आयुक्त सुभाष शर्मा छपरा पहुंच कर सरकारी सहायता से खोले गए बकरी पालन केंद्र का स्थल निरीक्षण करना चाहते थे।
 चूंकि सब कुछ कागज पर चल रहा था,इसलिए सारण जिला  पशु पालन पदाधिकारी  शर्मा की टीम को स्थल निरीक्षण से रोकने के लिए बहाने बनाने लगा।
पर सुभाष शर्मा कुछ दूसरे ढंग के अफसर हैं।उन्होंने स्थल निरीक्षण किया ।उन्होंने पाया कि जिस बकरी पालन केंद्र के लिए लाखों रुपए सरकार ने दिए हैं ,स्थल पर उसका कोई नामो निशान तक नहीं था।
शर्मा ने जिलाधिकारी से  कहा कि संबंधित दोषियों के खिलाफ एफ.आई.आर.दर्ज करिए।
अब इस बात की भी निगरानी करनी पड़ेगी कि प्राथमिकी दर्ज हुई या नहीं।हुई तो उस केस की प्रगति क्या है।स्वाभाविक है कि दोषी लोगों को बचाने में कुछ शक्तियां लग गई होंगी।
  सुभाष शर्मा जैसे अफसरों से निरंतर  स्थल निरीक्षण नहीं करवाया जा सकता ?इसके लिए कोई तंत्र विकसित नहीं किया जा सकता ?
ऐसा नहीं है कि सुभाष शर्मा जैसे कत्र्तव्यनिष्ठ अफसर उपलब्ध हैं ही नहीं।मौजूद हैं। यह और बात है कि  कम संख्या में हैं।
पर उतने ही अफसर  सरकारी धन के लुटेरों पर भारी पड़ेंगे।
   --प्रस्तावित शेर पुर-दिघवारा गंगा पुल-- 
हाल में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की  कि शेर पुर-दिघवारा गंगा पुल बन कर तैयार हो जाने के बाद दिघवारा से नया गांव तक ‘नया पटना’ बन जाएगा।
 ताजा खबर यह है कि छह लेन के प्रस्तावित शेर पुर-दिघवारा पुल के लिए डी.पी.आर.तो बनवाई जा रही है।पर 
साथ ही यह भी सूचना  है कि 
इसके बन कर तैयार होने में दस साल लग सकते हैं।
प्रस्तावित ‘नया पटना’ जितना जल्द बस जाता,उतनी ही जल्दी पटना महानगर से आबादी का बोझ घट जाता।
या फिर बोझ बढ़ने की रफ्तार काफी कम हो जाती।
 यदि दस साल में पुल ही बनेगा तो नया पटना बसेगा कब ?
इस बीच भूजल और पर्यावरण की दृष्टि से प्रादेशिक राजधानी की स्थिति और भी खराब  हो जा सकती है।
  --जमीन पर विरोध तो आसमान में सड़क--  
दाना पुर से बिहटा तक अब एलिवेटेड सड़क बनेगी।
पहले इसकी जगह कोइलवर और पटना के बीच सतह पर 
नेशनल हाईवे प्रस्तावित था।वह पटना-बक्सर रोड का हिस्सा था।
पहले के प्रस्ताव के अनुसार कोइलवर -पटना रोड को एम्स होते हुए बेऊर की ओर जाना था।
अब एम्स-बेऊर की ओर जाने वाले हिस्से को रद करने के लिए बिहार सरकार ने नेशनल हाईवे आॅथोरिटी को पत्र लिख दिया है।
  दानापुर -बिहटा सड़क को ऊपर उठा कर बनाने की जरूरत क्यों पड़ी ?
दरअसल बिहटा के आसपास भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों के साथ सरकार सहमति नहीं बना पा रही थी।
 संरेखन यानी एलाइनमेंट को लेकर भी जमीन वालों की ओर से विरोध के स्वर उठ रहे थे।मुआवजे को लेकर भी परेशानियां थीं। 
अब जब एलिवेटेड सड़क बनने जा रही है तो किसानों व सड़क के किनारे के लोगों को अपना नुकसान नजर आ रहा है।
एक तो आम तौर से जो भी मुआवजा मिल रहा था,वह बाजार दर से अधिक था।
साथ ही एलिवेटेड बनने के बाद सड़क के आसपास के विकास की संभावना  कम हो जाएगी।
चार लेन एन.एच.होता तो सड़क के दोनों तरफ के इलाके विकसित होते।नए -नए उद्योग,स्कूल और अस्पताल आदि
खुलते।उनसे किसानों को भी अधिक लाभ होता।
  खबर है कि एलिवेटेड बनाने के निर्णय से अनेक किसानों को अफसोस हो रहा है।
  पर अब क्या हो सकता है ?
अन्य स्थानों के लिए भी यह चेतावनी है।
अब तो लगता है कि  जमीन अधिग्रहण को लेकर जहां भी विवाद  होगा,सरकार एलिवेटेड सड़क बनवा देगी।
--‘आप’ से दोस्ती को तैयार नहीं कांग्रेस-- 
मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि हम कांग्रेस से कह -कह कर थक गए,पर वह हमसे चुनावी तालमेल करने को तैयार ही नहीं है।
 आश्चर्य है ! कांग्रेस  अन्य राज्यों में इस काम के लिए बेेचैन है ।पर दिल्ली में क्यों नहीं ?
 क्या कांग्रेस को लगता है कि वह इतनी ताकतवर हो चुकी है कि दिल्ली की सभी लोस सीटें अकेले ही जीत लेगी ?
या क्या कांग्रेस यह मानती है कि जेएनयू राष्ट्रद्रोह केस में अभियोजन की अनुमति नहीं देकर दिल्ली सरकार ने गलत काम किया है और उसका खामियाजा ‘आप’ को चुनाव में भुगतना पड़ेगा ? पता नहीं।
  --भूली बिसरी याद--
पटना हाईकोर्ट के ताजा आदेश से जिन पूर्व मुख्य मंत्रियों को सरकारी बंगले छोड़ने पड़ेंगे,उनमें एक ऐसे नेता भी हैं जिन्हें कुछ दशक पहले भी जबरन निकाला गया था।वे अनधिकृत रूप से सरकारी बंगले में रह रहे थे।
उन्हें एक बार पटना के सरकारी बंगले से तो दूसरी बार  दिल्ली के बंगले से निकाला गया।
 इस बार तो खैर कानून के तहत उन्हें पटना में बंगला मिला था।हाईकोर्ट के आदेश के बाद उसे खाली करना पड़ेगा।
पर, पिछली बार तो वे अवैध ढंग से रह रहे थे।
  हालांकि वैसे नेता देश भर में भरे पड़े हैं।
बहुत पहले सुप्रीम कोर्ट ऐसे अवैध कब्जादारों के खिलाफ जनहित याचिका पर विचार कर रहा था।देश भर के कब्जादारों के मामले सुप्रीम कोर्ट के सामने थे।
निष्कासन के लिए सुप्रीम कोर्ट बार-बार विभिन्न सरकारों को आदेश दे रहा था,पर उन्हें मकानों से हटाया नहीं जा रहा था।
  एक बार तो क्षुब्ध होकर सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कह दिया था कि जब सरकारें हमारी बात ही नहीं मान रही है तो इस मामले की सुनवाई से क्या फायदा ?
1994 में पटना के 768 सरकारी आवासों पर अनधिकृत कब्जा था।उनमें 60 नेता व शीर्ष अफसर शामिल थे।
अब तो उतनी खराब स्थिति नहीं है।पर कोई आदर्श स्थिति भी नहीं है।
        --और अंत में-
बिहार विधान परिषद में बुधवार को स्कूटर पर सांड ढोने की एक पुरानी घटना की चर्चा हुई।
भाजपा सदस्य ने राजद पर तंज कसते हुए कहा कि ‘स्कूटर पर सांड ढोने का जमाना अब नहीं रहा।’
भाजपा सदस्य जरा अपनी जानकारी बढ़ा लें।
स्कूटर पर सांड ढोने की घटना 6 दिसंबर, 1985 को हुई थी।
सी.ए.जी.की रपट के अनुसार रांची से घाघरा 4 सांड एक ही स्कूटर पर ‘चढ़ कर’ गए थे।वाहन का बिल बना था --1285 रुपए। 1985 में बिहार में राजद की सरकार नहीं  थी ।
कांग्रेस की सरकार थी।
  मेहरबानी करके राजद पर इतना मामूली आरोप तो मत लगाइए !!
  --kanokan --22 Feb 19--Prabhat khaba
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  बात उस समय की है जब आंध्र प्रदेश की राजनीति में
‘तेलुगु बिड्डा’ एन.टी.रामा राव का उदय हुआ था।
इनाडु मीडिया समूह ने एनटीआर के स्वर मेें स्वर में मिलाकर तेलुगु स्वाभिमान को जगाया और एनटीआर की सरकार बनी।
मेरी खबर के अनुसार एनटीआर के साथ-साथ तेलुगु अखबार इनाडु का सर्कुलेशन भी काफी  बढ़ गया था।
  उसके कई साल बाद उत्तर  के एक राज्य के एक अखबार के प्रधान संपादक चिंतित थे कि उनका अखबार तो स्थानीय सरकार के अच्छे कामों की खबरें खूब छाप रहा है,पर क्या यह सब पाठकों को अच्छा लग रहा होगा ?
  मैंने उनसे पूछा कि आपके अखबार का प्रसार बढ़ रहा है या घट रहा है ?
उन्होंने कहा कि वह तो बहुत बढ़ रहा है।
फिर मैंने कहा कि फिर क्या चिंता है ?इनाडु की तरह 
आपका अखबार भी जनता  के साथ है।
 आज जब  2019 का लोस  चुनाव सामने है तो मीडिया का बड़ा हिस्सा दो  खेमों में बंट गया दिखता है।
  जिस खेमे  को पाठक -श्रोता अपेक्षाकृत अधिक पसंद कर रहे हैं,उसे मोटा -मोटी यह समझ लेना चाहिए कि उसकी पसंदीदा पार्टी की ही सरकार बनने वाली है। 



फुलगांवा कांड पर कुछ फुटकर  टिप्पणियां
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  फुलवामा कांड के कारण उत्पन्न देशव्यापी गुस्से व गम के माहौल में 
केंद्र सरकार को जो करना चाहिए,वह तो कर  रही है।कुछ और करने भी जा रही है।
पर, आम देशभक्त व शांतिप्रिय लोगों को भी इस देश के भीतर के  उन वोटलोलुप और जेहादी तत्वों को भी इस अवसर पर एक बार फिर याद करके उन्हें ठीक से पहचान लेना चाहिए। 
  1.-जेएनयू में कुछ लोगों ने ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्ला इंशा अल्ला’ का नारा लगाया।पर उनके खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया तो दिल्ली राज्य की सरकार मुकदमा चलाने की अनुमति ही नहीं दे रही है।
   2.-अतिवादी प्रतिबंधित संगठन सिमी के अहमदाबाद के जोनल सेके्रट्री साजिद मंसूरी ने 29 सितंबर 2001 को कहा था कि ‘जब हम सत्ता में आएंगे तो सभी मंदिरों को नष्ट कर देंगे।यह बयान 30 सितंबर 2001 के अखबार में छपा था।
अहमदाबाद धमाकों के बाद पकड़े गए सिमी सदस्य अबुल बशर ने बताया था कि ‘सिमी की इस नीति से प्रभावित हूं कि लोकतांत्रिक तरीके से यहां इस्लामिक शासन संभव नहीं है। उसके लिए एकमात्र रास्ता जेहाद है।’
जब सिमी ने ‘इस्लाम के जरिए भारत की मुक्ति’ का नारा दिया तो जमात ए इस्लामी ने उससे अपना संबंध तोड़ लिया।
 2001 में केंद्र सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगाया तो सिमी के लोगों ने मिल कर 2002 में इंडियन मोजाहिद्दीन नामक नया आतंकवादी संगठन बना लिया।
इस पर एक राष्ट्रीय दल से जुड़े पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि गुजरात दंगे के विरोध में इंडियन मुजाहिददीन का गठन हुआ।
 उसी दल के एक दूसरे पूर्व केंद्रीय मंत्री  सिमी पर से प्रतिबंध हटाने के लिए दायर याचिका के मुख्य वकील थे। 
 दूसरी ओर हिन्दी इलाके के तीन क्षेत्रीय दलों के शीर्ष नेताओं ने बयान दिया कि सिमी छात्रों का एक निर्दोष संगठन है।
इन सब बातों से क्या देश-विदेश के आतंकवादियों का मनोबल नहीं बढ़ेगा ?
3.-2008 में मुम्बई पर हुए आतंकी हमले के बाद दो पूर्व मुख्य मंत्रियों ने कहा कि इसमें आर.एस.एस.का हाथ है।
बटाला हाउस मुंठभेड़ के बाद भी एक बड़े नेता ने,जो मुख्य मंत्री भी रह चुके हैं, बयान दिया कि मुंठभेड़ फर्जी थी।
4.-कई साल पहले आतंक के आरोप में एक भारतीय मुस्लिम जब आस्ट्रेलिया में गिरफ्तार हुआ तो इस देश के प्रधान मंत्री ने कहा था कि इस गिरफ्तारी से मुझे पूरी रात नींद नहीं आई।यह पता लगाने से पहले कि वह गिरफ्तार व्यक्ति दोषी था या निर्दोष, प्रधान मंत्री की ओर से ऐसा बयान आ गया।
ऐसे बयानों से किसका मनोबल बढ़ता है ?
5.-अतिवादी संगठन पोपुलर फं्रट आॅफ इंडिया पर कतिपय राज्य में प्रतिबंध है।केरल की वाम सरकार की भी राय में यह सिमी का ही नया रूप है।
पर उसके कार्यक्रम में एक पूर्व उपराष्ट्रपति शामिल हुए थे।
5.-इन दिनों इलेक्ट्रानिक मीडिया के हिस्से के जरिए इस देश में फैले आतंकियों के अंडरग्रांउड लड़ाकों के पक्ष में आतंकियों के ओवरग्राउंड समर्थक खुलेआम प्रचार करते रहते हैं।इससे अनेक नौजवानों को प्रेरणा मिलती होगी।
आश्चर्य है कि कुछ टी.वी चैनल आखिर क्यों इसकी अनुमति देते हैं ?
कुछ माह पहले लाइव चर्चा में टी.वी.पर एक मौलाना को यह कहते हुए मैंने 
सुना कि हम जब 18 करोड़ थे तो पाकिस्तान बना था।अब हमलोग फिर 18 करोड़ हो गए हैं।
पर इस देश के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि अधिकतर मुस्लिम आबादी आतंकियों की मानसिक गिरफ्त से अभी बाहर लगती है।
यहां तक कि असदुददीन ओवैसी जैसे एकपक्षीय व अतिवादी नेता को भी बगदादी के संगठन की ओर से जान से मारने की धमकी मिली हुई है।
  यह भी खबर है कि पाकिस्तान की नई पीढ़ी के  अनेक युवा वहां के अतिवादियों के डिक्टेशन मानने को तैयार नहीं हैं।  
  

21 फरवरी 2019 के नव भारत टाइम्स की एक खबर
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टाइम्स मेगा पोल
84 प्रतिशत लोग चाहते हैं,मोदी फिर बनें पी.एम.
टाइम्स मेगा पोल के जरिए जनता की नब्ज टटोली
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इस पोल में शामिल करीब तीन चैथाई लोगों ने कहा कि आज चुनाव हो तो पीएम पद के लिए नरेंद्र मोदी पहली पसंद होंगे।
  करीब इतने ही यूजर्स ने माना कि चुनाव के बाद भी मोदी की ही सरकार बनेगी।
  टाइम्स ग्रूप के वेबसाइटों पर 11 से 20 फरवरी तक सर्वे में 5 लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया था।
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अभी तो चुनाव से पहले तक अनेक सर्वे रपटें आएंगी।
जाहिर है कि टाइम्स मेगा पोल  पढ़े -लिखे लोगों के बीच का सर्वे है।
इसलिए इसे पूर देश के मूड का प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता।
पर कुछ संकेत तो मिल रहे हैं।
टाइम्स ग्रूप को मैं उन थोड़े से मीडिया समूहों में मानता हूं जिनका कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है।
इसलिए इस सर्वे नतीजे को मैंने पोस्ट किया।
यदि इसके विपरीत भी कोई सर्वे रपट आएगी तो मैं उसे भी पोस्ट करूंगा।
  दरअसल इन दिनों अनेक लोगों में अगले चुनाव को लेकर छोटी -छोटी बातें भी जानने की उत्सुकता देखी जा रही है।

बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

-- सही टैक्स वसूली से कम नहीं पड़ेंगे विकास-कल्याण के लिए पैसे--


बिहार सरकार के पास आज न तो विकास के लिए पैसों की पहले जैसी कमी है और न ही कल्याण के लिए।
राज्य के बजट और सरकारी घोषणाओं से तो यही लगता है।
इस राज्य में एक समय ऐसा भी था जब सरकारी कर्मचारियों को समय पर वेतन  भी नहीं मिल पा रहे थे।
2004 में केंद्र सरकार ने बिहार सरकार से कहा था कि केंद्रीय मदद के पैसों का इस्तेमाल  वेतन बांटने के काम में नहीं होना चाहिए।
  टैक्स वसूली के काम में ईमानदारी इसी तरह बढ़ती जाए तो आगे बिहार  की आर्थिक स्थिति और भी अच्छी हो सकती है।
हालांकि अब भी कर वसूली में कोताही है।भ्रष्टाचार है।उसका कारण भी सब जानते हैं।उसे दूर किया जाना चाहिए।
वैसे बीस साल पहले वाली स्थिति से राज्य काफी आगे निकल चुका है।
  1999-2000 वित्तीय वर्ष में वाणिज्य कर से बिहार सरकार की आय मात्र 1982 करोड़ रुपए थी।जबकि, उसी अवधि में इस मद में आंध्र प्रदेश को करीब 6 हजार करोड़ रुपए मिले थे।
 अब इस राज्य में इस मद में करीब 25 हजार करोड़ रुपए की आय है।
 इसमें और भी वृद्धि की गुंजाइश बनी हुई है।
विकास व कल्याण की अन्य कई योजनाओं के साथ- साथ बिहार सरकार इसी अप्रैल से मुख्य मंत्री वृद्धजन पेंशन योजना लागू करने का निर्णय किया है।
पहले की इस योजना में कुछ लोग छूट जाते थे।अब इसका लाभ सभी वर्गों के लोगों को मिलेगा।
हमारे यहां प्राचीन काल में ही एक विवेकपूर्ण बात कह दी गई थी।वह यह कि  जमीन की सतह का पानी वाष्प बन कर ऊपर जाता है।वही बाद में तपती धरती पर बरसात के रूप में राहत देता है।
  किसी अच्छी सरकार का भी यही काम है कि वह ईमानदारी से टैक्स वसूले और बाद में जनता के लिए  राहत की बरसात करे ।    
  --कब सुधरेगी बिजली आपूत्र्ति व्यवस्था--
इस देश में जितनी बिजली का उत्पादन होता है,उसमें से 
27 प्रतिशत बिजली चोरी और  ‘लाइन लाॅस’ में चली जाती है।
नतीजतन हर साल करीब एक लाख करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होता है।यह दशकों से हो रहा है।
   जाड़े की सुबह जब मोटर से टंकी में पानी चढ़ाने के लिए पर्याप्त वोल्टेज नहीं मिलता तो अनेक लोगों को बिजली चोरों पर गुस्सा आता है।
सुबह -सुबह कुछ लोग हीटर पर खाना पकाने लगते हैं तो कुछ अन्य ब्लोअर चलाने लगते हैं।कई जगह धान उबालने का काम भी उसी पर होता है।
 खैर, ऐसे लोगों पर  नकेल कसने का उपाय सरकार कर रही है।
 मोटे -मोटे केबुल बिजली के खम्भों पर टांगे जा रहे हैं।हर घर में स्मार्ट मीटर लगाने का निर्णय हुआ है।
साथ ही पीक आवर में इस्तेमाल करने पर उपभोक्ताओं को अधिक पैसे देने होंगे।
पीक आवर में खपत का रिकाॅर्ड दर्ज हो जाएगा और उसी के हिसाब से चार्ज वसूला जाएगा।
कल्पना कीजिए उस दिन की।जब हमारे देश की सरकार के पास अतिरिक्त  एक लाख करोड़ रुपए उपलब्ध हो जाएंगे। उससे  अधिक स्कूल और अस्पताल खोले जा सकेंगे।
   --मेढक तौलने का करतब--
1967 से 1972 तक बिहार में कई मिलीजुली सरकारें बनीं और बिगड़ीं।
तब राजनीतिक हलकों में यह चर्चा होती थी कि मिली जुली सरकार चलाना यानी मेढ़क तौलना।
 एक मेढ़क को तराजू पर रखिए तो दूसरा उछल पड़ेगा।तीसरे को रखिए तो चैथा छलांग लगा देगा।
 उन दिनों  कुछ अन्य राज्यों में भी यही हो रहा था।
 1967 में हरियाणा में गया लाल  नाम के विधायक ने जब एक ही पखवाड़े में तीन बार दल बदला तो दलबदलुओं के लिए ‘आया राम, गया राम’ की कहावत प्रचलित हो गई। 
बाद के वर्षों में तो इस देश में राज्यों व केंद्र में ऐसी कई मिलीजुली सरकारें बनीं।
 अब  2019 का लोक सभा चुनाव सामने है । कहा जा रहा है कि इस बार मिलीजुली सरकार ही बनेगी।
अनेक लोग यह कह रहे हैं कि यह देश के लिए ठीक नहीं होगा।
इसलिए मतदाता किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत दे दे।
देखना है कि यह सदिच्छा पूरी होती है या नहीं।
पर एक बात तय है।
अपवादों को छोड़कर इस देश के अधिकतर मतदाता सयाने हो चुके है।
वे राजनीतिक दलों को बाहर -भीतर से अच्छी तरह पहचानने लगे हैं।
वे यह भी जानते हैं कि कौन सा दल सत्ता में आकर देश की आम जनता को अधिक लाभ पहुंचाएगा और कौन कम।
फिर क्या है ?
आपके अनुसार आम जन को  जो अधिक लाभ पहुंचाने वाला हो,उसे ही वोट दीजिए।
  --कर्पूरी ठाकुर की विनम्रता--
17 फरवरी को कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि मनाई जाएगी।
उस अवसर पर उनके व्यक्तित्व के  खास पक्ष की याद आती है।
  कर्पूरी ठाकुर की लोकप्रियता में पचास प्रतिशत योगदान उनकी कठोर ईमानदारी और उनके अत्यंत शिष्ट व्यवहार का था।पचास प्रतिशत योगदान अन्य तत्वों का था।
 राजनीति में इन दिनों ये दोनों बातें विरल हैं।
अब तो गुस्सा,अशिष्टता,गाली गलौज और कभी कभी हिंसा भी। 
     --भूली बिसरी याद--
चुनाव के इस मौसम में टी.एन.शेषण को एक बार फिर याद करना मौजूं होगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त शेषण ने चुनाव नियमों की किताब पर से धूल झाड़ कर उन्हें लागू करने की कारगर कोशिश की थी।
उन्होंने अपने कुछ ठोस कदमों के जरिए कानून तोड़कों में भय पैदा तो कर ही दिया था।
व्यापक पैमाने पर धांधली का उदाहरण देते हुए शेषण ने बिहार और उत्तर प्रदेश के 5 चुनाव क्षेत्रों के चुनाव रद कर दिए।
नेशनल फ्रंट ने इस कार्रवाई को पक्षपात पूर्ण करार दिया।
तब केंद्रीय मंत्री गैस और फोन कनेक्शन मनमाने ढंग से जारी कर रहे थे।शेषण ने उस पर आपत्ति की।मंत्री नाराज हुए।प्रधान मंत्री को बीच -बिचाव करना पड़ा।
शेषण ने  बिहार में चुनाव टालना चाहा।शेषन को काूनन -व्यवस्था को लेकर भी शिकायत थी।पर यह काम वे नहीं कर सके।
पहले तो लालू प्रसाद शेषन के खिलाफ थे।पर जब शेषन ने निष्पक्ष चुनाव करा दिया और लालू फिर सत्ता में आ गए तो लालू ने शेषण की तारीफ की।
 शेषण ने कुछ अन्य कड़े कदम उठाए।केंद्र सरकार ने शेषण पर नकेल कसने के लिए चुनाव आयोग को एक सदस्यीय से तीन सदस्यीय बना दिया।जो हो,शेषण अपने ढंग के अफसर थे। 
शेषन 1990 से 1996 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे।
   --और अंत में --
बिहार के नए डी.जी.पी. प्रो-एक्टिव रोल में लग रहे हैं।
संभव है कि यह शुरुआती उत्साह हो।यह भी संभव है कि यह उनका स्थायी भाव साबित हो।
 इस अवसर पर एक बात कही जा सकती है ।वह यह कि  यदि स्थायी भाव है तो ऐसे अफसर को किसी आशंकित विभागीय साजिश व राजनीति से बचाया जाना चाहिए।
पुलिस ही क्यों,हर क्षेत्र में ईष्यालु और विघ्नसंतोषी लोगों की कभी कोई कमी नहीं रही है।
--kanokan--15 Feb.19
डा.नामवर सिंह की कुछ यादें 
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डा.नामवर सिंह एक पत्रिका का समारंभ करने के 
लिए पटना आए थे।
साथ में प्रभाष जोशी भी थे।
उस पत्रिका के प्रथम अंक में मैंने प्रभाष जोशी पर एक लेख लिखा था।
याद रहे कि जनसत्ता छोड़कर तब मैंने दैनिक हिन्दुस्तान ज्वाइन कर लिया था।
 नामवर सिंह मेरा लेख पढ़ चुके थे।उन्होंने कहा कि ऐसा लेख किसी संवाददाता ने अपने संपादक के बारे में नहीं लिखा है।नामवर जी की यह टिप्पणी मेरे लिए महत्वपूर्ण थी।
इसी तरह की उनकी एक टिप्पणी मैंने  हेमंत शर्मा के बारे में सुनी थी।हेमंत शर्मा जनसत्ता के लखनऊ संवाददाता थे।उन्होंने कहा था कि इन दिनों सबसे अच्छा गद्य कोई हिन्दी साहित्यकार नहीं बल्कि एक पत्रकार हेमंत शर्मा लिख रहे हैं।यानी नए लोगों को प्रोत्साहित करना कोई उनसे सीखे।
 पटना में भी नामवर सिंह की 75 वीं जयती मनाई जा रही थी।प्रभाष जी ही आयोजक थे।
प्रभाष जी की शिकायत रहती थी कि मैं न तो किसी को खाने पर बुलाता हूं और न कहीं भोजन पर जाता हूंं।
उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा कि बड़े लोगों को घर बुलाने से आपके बच्चों में हीन भावना नहीं आएगी।
आप खाने पर बुलाइए। अब भला प्रभाष जी के आदेश को मैं कैसे ठुकरा सकता था।
मेरे आवास पर डा. नामवर सिंह, प्रभाष जोशी, चंद्र शेखर धर्माधिकारी तथा कुछ अन्य गणमान्य लोग आए।
 मेरे निजी पुस्तकालय की सामग्री देख कर नामवर जी ने कहा कि सुरेंद्र जी, आपने तो हीरा संजो कर रखा है।
यह सुन कर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था !
मैंने पूछा कि इसका बेहतर इस्तेमाल कैसे हो सकेगा,यह सोच कर कभी बताइएगा।खैर उसका अवसर उन्हें न मिला।
 डा.नामवर जी का  मैं कोई खास करीबी तो नहीं हो सका था,पर उनकी याद आती रहती थी।उनके करीबी रहे अजित राय को दिल्ली फोन करके कभी-कभी मैं नामवर जी के स्वास्थ्य के बारे में पूछता रहता था।
 टुकड़ों में कुछ घंटों की मुलाकातों से मुझे लगा कि वे एक स्नेहिल व्यक्ति हैं।अभिमानी कहीं से नहीं थे।अहंकारी तो बिलकुल नहीं।
 साथ ही, ग्रामीण पृष्ठभूमि के होते हुए भी शहरियों के बीच समान रूप से सहज थे।
 किसी भेंट वात्र्ता में उन्होंने एक बार कहा था कि मैं अपने पुत्र को अपनी गोद में खेलाने को तरस गया।क्योंकि गांव के संयुक्त परिवार में कोई अपने पुत्र को गोद नहीं लेता था।वह दूसरे के पुत्र को लेगा।उसके पुत्र को बच्चे के  चचा या दादा खेलाएंगे।
 नामवर जी जैसा अद्भुत वक्ता मैंने
नहीं देखा।आलोचक थे, पर किसी साहित्यकार से उनका कद ऊंचा था।
 मुझे यह देख कर और भी अच्छा लगा कि वे अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क थे।नाश्ते के साथ एक सेव लेते थे और भोजन के बाद वज्रासन पर बैठना नहीं भूलते थे।
वे बहुत याद आएंगे ।  

कानून सिर्फ उन पूर्व मुख्य मंत्रियों के लिए बना 
होता जिनका प्रादेशिक राजधानी में अपना मकान 
न हो तो शायद अदालत ऐसी कार्रवाई नहीं करती।

कश्मीर की स्थिति पर 
किसी की लिखी 
ये चार पंक्तियां
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उम्र जन्नत में रह कर ,
उसे उजाड़ने में गुजार दी,

और जिहाद बस इस बात का था,
कि मरने के बाद जन्नत मिले......।
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ऐसे जिहादी तो पूरी दुनिया में फैले हुए हैं,
पता नहीं, कल इस दुनिया का क्या होगा ? !
पर, भारत व शेष दुनिया में फर्क यह है कि 
वोट के लिए जिहादियों के समर्थक सिर्फ भारत मेंेें हैं।
शायद अन्य किसी देश में ऐसा नहीं है।

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

जिन्दगी हर कदम एक नई जंग है,
जीत जाएंगे हम,तुम अगर संग है।
1985 की सुपर हिट फिल्म ‘मेरी जंग’ के गीत का
 यह मुखरा व्यक्ति पर लागू है तो देश पर भी।

मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने ठीक ही कहा है कि ‘सवर्ण आरक्षण का जो विरोध करेगा,वह बुरी तरह झेलेगा।’
  नीतीश कुमार की बात अनुभव जनित है।
1990 में जिन लोगों ने ओबीसी आरक्षण का विरोध किया था,उन्होंने झेला।
बाद में उनमें से कुछ आरक्षण विरोधियों को पछतावा भी हुआ।
 पर तब तक तो चिडि़या खेत चुग चुकी थी।
पता नहीं, राजद ने सवर्ण आरक्षण का विरोध करने की गलती क्यों की ?
मुझे लगता है कि अगले लोस चुनाव को अगड़ा-पिछड़ा जंग में बदलने की कोशिश में उसने ऐसा किया है।
क्योंकि राजद सुप्रीमो को लगता होगा कि सिर्फ एम.वाई.से काम नहीं चलेगा।उतने से तो उतनी ही सफलता मिलेगी जितनी 2014 के लोक सभा व 2010 के बिहार विधान सभा चुनाव में मिली थी।
2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में एक हद तक ऐसा इसलिए हो पाया था क्यांेंकि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की जरूरत बता दी थी।एक बार नहीं, तीन -तीन बार।
साथ ही, तब जदयू भी राजद के साथ था।
2015 में लालू प्रसाद ने कहा था कि यह चुनाव अगड़ा और पिछड़ा के बीच है।
पर आज तो  ओबीसी आरक्षण पर कहीं कोई सवाल नहीं उठा रहा है।
 उठा भी नहीं सकता।कोई उठाएगा भी तो अदालत उसका साथ नहीं देगी।
 कुल मिला कर स्थिति यह है कि उपेंद्र कुशवाहा के साथ आने से राजद ने जो थोड़ा बहुत अर्जित किया था,उससे अधिक 10 प्रतिशत आरक्षण का विरोध करके गंवा दिया।कम से कम उन चुनाव क्षेत्रों में तो उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा जहां महा गठबंधन के उम्मीदवार सवर्ण होंगे।
जिलों -जिलों से तो ऐसी ही खबरें आ रही  हैं। 

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

2004 में ‘हिन्दुस्तान’ में छपा मस्तराम कपूर का एक लेख मैंने अभी -अभी पढ़ा है।
मार्मिक लेख तो उर्मिलेश झा पर है,पर उसमें नई दिल्ली के निर्माणाधीन लोहिया भवन की चर्चा है।
डा.राम मनोहर लोहिया के निजी सचिव रहे उर्मिलेश झा उस भवन के निर्माण की देखरेख कर रहे थे।
दिवंगत कपूर के अनुसार उर्मिलेश झा की इच्छा थी कि जल्द से जल्द वह भवन तैयार हो जाए जो नेलशन मंडेला रोड पर बन रहा था।उस भवन में  संदर्भ ग्रंथालय स्थापित होना था ।उसके लिए डा.हरिदेव शर्मा  60 हजार पुस्तकों का अपना निजी संग्रह दे गए थे।
मस्तराम जी ने जिस भवन और संदर्भ ग्रंथालय की चर्चा की है ,उसके बारे में बाद में कभी कहीं न सुना, न पढ़ा।
शायद दिल्ली में रह रहे लोहियावादियों -समाजवादियों को इस बारे में जानकारी हो !
 याद रहे कि उर्मिलेश झा बिहार के सहरसा जिले के बनगांव के रहने वाले थे।
स्वतंत्रता सेनानी थे।
खुद के लिए उन्होंने कोई दौलत नहीं जोड़ी।
जब उनका निधन हुआ तो श्मशान घाट पर सिर्फ दो समाजवादी पहुंच सके थे ! चलिए दो तो थे ! !

  
  1966 में कश्मीर हित में इस्तीफा देने 
   वाले दूरदर्शी मंत्री महावीर त्यागी
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5 अगस्त, 1965 को जीती हुई हाजी पीर की चैकियों को
ताशकंद समझौते के तहत भारत सरकार ने जब पाकिस्तान को वापस करने का निर्णय  किया तो उसके विरोध में महावीर त्यागी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था।
 दिवंगत त्यागी@1899-1980@ के अनुसार ‘हाजी पीर सैनिक दृष्टि से इतना महत्व का स्थान है कि जिस सेना का इस मोर्चे पर कब्जा होगा,उसे किसी भी हालत में हटाना संभव नहीं होगा।’
त्यागी ने यह भी लिखा है कि ‘केवल भारत के प्रतिरक्षा मंत्री पद का ही नहीं बल्कि मुझे प्रथम महा युद्ध के सैनिक की हैसियत से भी युद्ध के मोर्चों के कुछ निजी अनुभव हैं।’
 बाद के अनुभव बताते हैं कि पाकिस्तानी घुसपैठिए आम तौर पर हाजी पीर दर्रे के रास्ते ही कश्मीर में प्रवेश करते हैं।
कश्मीर को तबाह करते हैं।

हाल में मेरा भतीजा सुमन हैदराबाद से पटना आया था।
वहीं  वह नौकरी करता है।
उसे दशकों बाद पटना नगर में कई जगह जाने का अवसर मिला था।
वह पहले और बाद का फर्क आसानी से महसूस कर सकता था।
उसने मेरे घर लौट कर कहा कि कल्पनाशील मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने तो पटना को पूरी तरह बदल दिया है।
मैंने उससे कहा कि अगली बार आओ तो  बिहार के जिलों में भी घुमकर देखो।वहां भी फर्क नजर आएगा।

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

कभी- कभी छोटे -छोटे युद्धों का अंत करने के लिए कुछ
देशों को महा युद्ध करना पड़ा है।
महा युद्ध के खतरे बड़े हैं।पर उसमें सफल हो जाने की भी गुजांइश रहती है।
  पर लंबे समय तक चलने वाले छोटे -छोटे युद्ध तो दीमक की तरह किसी देश को नष्ट कर सकते हैं।इसमें बड़ा खतरा यह है कि अंततः शायद कुछ भी न बचे ! 
संभवतः इतिहास में महा युद्धों की चकभी- कभी छोटे -छोटे युद्धों का अंत करने के लिए कुछ
देशों को महा युद्ध करना पड़ा है।
महा युद्ध के खतरे बड़े हैं।पर उसमें सफल हो जाने की भी गुजांइश रहती है।
  पर लंबे समय तक चलने वाले छोटे -छोटे युद्ध तो दीमक की तरह किसी देश को नष्ट कर सकते हैं।इसमें बड़ा खतरा यह है कि अंततः शायद कुछ भी न बचे ! 
संभवतः इतिहास में महा युद्धों की चर्चाएं हैं , छोटे युद्धों के अंत के लिए।वार टू एंड वार ! 
र्चाएं हैं , छोटे युद्धों के अंत के लिए।वार टू एंड वार ! 

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

कुछ दशक पहले मुझे डा.नामवर सिंह के साथ टुकड़ों में कुछ घंटे बिताने का अवसर मिला था।
  स्वास्थ्य-रक्षा के लिए उन्हें दो काम करते देखा।
उन्हें नाश्ते के साथ एक सेव जरूर लेते देखा।भोजन के बाद उन्हें वज्रासन पर बैठते भी देखा।
 इन दो मामलों में कोई कोताही नहीं।

--कर्पूरी ठाकुर की विनम्रता--
इस साल भी 17 फरवरी को कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि मनाई जाएगी।
उस अवसर पर उनके व्यक्तित्व के एक खास पक्ष की याद आती है।
 बिहार के पूर्व मुख्य मंत्री  कर्पूरी ठाकुर की लोकप्रियता में पचास प्रतिशत योगदान उनकी कठोर ईमानदारी और उनके अत्यंत शिष्ट व्यवहार का था।
पचास प्रतिशत योगदान अन्य तत्वों का था।
 राजनीति में इन दिनों ये दोनों बातें विरल हैं।
अब तो गुस्सा, अशिष्टता,गाली -गलौज और कभी -कभी हिंसा भी हावी हैं। 
  दरअसल राजनीति जब सेवा की  जगह संपत्ति-संतति के विकास का साधन बन जाए तो आपसी कटुता बढ़ेगी ही।
अपवादों की बात और है।
    

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

पिछले कुछ दशकों में मैंने कई अच्छे -भले नेताओं की बर्बादी देखी है। उनके  गैर राजनीतिक स्वार्थों के कारण ऐसा हुआ है।
  जन कल्याण के प्रारंम्भिक कामों के बाद कोई नेता खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए।
कुछ की संतान भ्रष्ट बन गई।
कुछ अन्य अपनी उप पत्नियों के चक्कर में बर्बाद हो गए 
तो कुछ अपने परिजन के बेहतर राजनीतिक कैरियर के लोभ में समझौतावादी बन गए। 

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

सत्तर के दशक की बात है।
एक व्यक्ति ने इस देश के एक बड़े औद्योगिक घराने 
की एक खास बात बताई थी।
 उस घराने के किसी पदाधिकारी  पर जब मालिक नाराज होते थे तो वे उसे तत्काल नौकरी से नहीं निकालते थे।
उसे इतने ऊंचे पद पर बैठा देते थे जिस लायक वह नहीं होता था।
काम बहुत कम ,वेतन बहुत ज्यादा।
बैठने के लिए ठंडा-गरम स्थान !
कुछ महीनों के बाद उसकी छुट्टी कर दी जाती थी।
 अब उसे उतने ऊंचे पद वाली  नौकरी भला कौन देगा ?
उससे नीचे और उससे कम वेतन पर काम करना वह अपनी तौहीन मानने लगता था।
अब उसकी हालत का अंदाज लगा लीजिए।वह न घर का रहता था और न घाट का।
बिहार में दो नेता ऐसे नेता हुए जो पूर्व मुख्य मंत्री होने के बावजूद बाद में राज्य में कैबिनेट मंत्री बने थे।पर सिर्फ दो ही।
उनमें से एक से किसी ने तब पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया ?
उन्होंने कहा कि मुझे तुरंत दिल्ली जाना है । अभी कोई एक्सप्रेस ट्रेन नहीं है तो क्या मैं साधारण ट्रेन से नहीं चला जाऊंगा ?
  इन दिनों चुनावी तालमेल व टिकटों के बंटवारे का दौर चल रहा है।कतिपय नेता ऐसे हैं जिनका मन -मिजाज  अब भी सातवें आसमान पर है।इस बीच राजनीति के बाजार में डिमांड और सप्लाई के बीच भारी अंतर आ चुका है।
 देखना है कि वे उन पूर्व मुख्य मंत्रियों  की ‘गति’ को प्राप्त होते हैं या उद्योगपति के पदाधिकारी  की नियति को !

1991 में बीबीसी के एक बड़े अधिकारी से एक न्यूज एजेंसी के संवाददाता ने पूछा था कि आपकी साख का राज क्या है ?
उसका जवाब यहां प्रस्तुत है।
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सिंगा पुर।‘यदि किसी देश से कम्युनिज्म जा रहा है तो हम उसे बचाने की कोशिश नहीं करते।
हम लोगों को सिर्फ यही बताते हैं कि कम्युनिज्म@यानी कम्युनिस्ट शासन@जा रहा है।
यदि किसी देश में कम्युनिज्म आ रहा है तो हम उसे रोकने की भी कोशिश नहीं करते।
हम सिर्फ यह रिपोर्ट करते हैं कि कम्युनिज्म आ रहा है।
यही हमारी साख का राज है।’ 
@--इंडियन नेशन ,पटना-1991@

बिहार-- आंकड़ों में
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1.-1951 से 1990 तक का हाल--
कृषि व इससे संबंधित क्षेत्र में बिहार में प्रति व्यक्ति करीब 172 रुपए खर्च किए गए।उसी अवधि में पंजाब में 594 रुपए खर्च किए गए।
2.-1999-2000 वित्तीय वर्ष में बिहार सरकार ने आंतरिक स्त्रोत से कुल 1982 करोड़ रुपए जुटाए।
याद रहे कि केंद्रीय आर्थिक सहायता आंतरिक राजस्व के अनुपात में मिली ।
3.-अनुमान है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में बिहार सरकार की
अपनी आय 38 हजार 606 करोड़ रुपए होगी।
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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

 ठग सम्राट् नटवर लाल ने करीब 50 साल तक ठगी की।उस पर 8 राज्यों में 100 से अधिक मुकदमे चले।
उसे कुल मिलाकर 113 साल की सजा हुई।वह 20 साल विभिन्न जेलों में रहा भी।
बुढापे के उसके फोटोग्राफ  उपलब्ध हंै।उसकी लिवास की दशा देख कर लगता है कि उससे बेहतर  आर्थिक हाल में तो आधुनिक नटवरलालों के दरबारी  रहते हैं।  
कुल मिला कर कितने रुपए ठगे होंगे नटवर लाल ने ?
 आज के नटवरलालों की अपेक्षा
 मूंगफली के बराबर !
 नटवर न तो करोड़पति बन सका और न ही अरबपति।
 इसके बावजूद उसकी न जाने कितनी बदनामी हुई।जीते जी वह संज्ञा से विशेषण हो गया था।
वह यह भी न कह सका कि ‘भेंडेटा’ यानी बदले की भावना  के तहत मुझे और मेरे परिवार को परेशान किया जा रहा है।
 यह भी वह कहां कह पाया था कि हम सत्ता में आएंगे तो 
जांच एजेंंिसयों को नानी याद दिला देंगे।धर्म निरपेक्षता खतरे में है।
संविधान को बचाने की जरूरत है।
यदि इतना भी कह पाता कि देश में इमरजेंसी आ गया,लोकतंत्र खतरे में है और वाणी की स्वतंत्रता नहीं है तो शायद कहीं से कुछ राहत मिल जाती।
कोई अदालत उसे सात -आठ बार अग्रिम जमानत दे देती ! 
  दूसरी ओर, आज के राजनीति,व्यापार व ब्ूयरोक्रेसी व एक हद तक मीडिया के कई नटवरलालों के हाल देख -सुन-जान लीजिए ।
 यदि उसे धरती खास कर भारत के मौजूदा हाल का पता चल रहा होगा तो  परलोक में नटवर सोच रहा होगा कि काश,  हम सत्तर- अस्सी के दशक में ही पैदा होते तो कितना बेहतर रहता !
आखिर कुल मिलाकर कितने पैसे ठगे होंगे ओरिजनल नटवरलाल ने ! ?
और दूसरी ओर आज के नटवरलाल ........! 

--15 साल पुराने वाहनों को कड़ाई से सड़कों से हटाने की सख्त जरूरत--



सुप्रीम कोर्ट ने पिछले ही साल यह निदेश जारी किया था कि 
15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों और दस साल पुराने डीजल 
वाहनों को सड़कों से हटा दिया जाए।
 बढ़ते प्रदूषण की पृष्ठभूमि में ऐसा आदेश दिया था।  अब जब पटना देश के उन तीन चार नगरों में शामिल हो चुका है जहां सर्वाधिक प्रदूषण है तो इस आदेश के पालन की सख्त जरूरत है।
  पटना हाईकोर्ट भी प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों के खिलाफ समय -समय पर सख्त टिप्पणियां करता रहा है।बिहार सरकार और राज्य प्रदूषण बोर्ड ने भी इसकी जरूरत बताई है।वैकल्पिक ऊर्जा सीएनजी की पटना में उपलब्धता की व्यवस्था की जा रही है।
  पर  राज्य सरकार को इस समस्या को लेकर और भी गंभीर होने की जरूरत है।
प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों यहां तक कि मोटे मोटे काले धुण्ं छोड़ने वाले वाहनों के खिलाफ भी कार्रवाई में यहां भारी ढिलाई हो रही है।यह चिंताजनक स्थिति है।
  जहां लोगों की जान पर आ रही हो,वहां तो राज्य सरकार को समस्या के अनुपात में गंभीर होना ही पड़ेगा।
 वैसे पुराने वाहनों को सड़कों से हटाने का काम किसी सरकार के लिए आसान नहीं होता।
पर जब प्रदूषण से लोगों की आयु कम होने लगे और तरह तरह की बीमारियां बढ़ने लगें तब तो सरकार को तो जगना पड़ेगा।
भले कुछ लोग नाखुश होंगे।पर प्रदूषण के कारण आम लोगों की सेहत के बिगड़ने की रफ्तार कम हो जाएगी।
स्वास्थ्य सेवा पर भी दबाव घटेगा।
 प्रदूषण के अन्य अनेक कारण हैं।
पर जिस कारण को शासन अधिक आसानी से दूर कर सकता है,वह यह है कि पुराने वाहनों को तुरंत हटा दिया जाए।
दिल्ली में इस दिशा में ठोस काम हुए हैं।
 हां,पुराने वाहनों से सरकारी तंत्र के एक हिस्से की  अच्छी -खासी ऊपरी आय हो जाती है।क्या उस पर रोक लगाना 
राज्य सरकार के लिए बहुत मुश्किल काम है ? होना तो नहीं चाहिए।
    --विश्वसनीय अस्पताल की ऐसी कमी !--
देश के वित्त मंत्री अरूण जेटली ने अपने पैर के ट्यूमर का आपरेशन विदेश में कराया।सफल आपरेशन के लिए उन्हें बधाई !
 जेटली जैसे मेधावी नेता की लंबी आयु की कामना है।
पर, इसके साथ एक सवाल भी है।
हमारे देश में आज भी एक ऐसा विश्वसनीय अस्पताल क्यों नहीं है जहां कोई प्रधान मंत्री या केंद्रीय  मंत्री अपने पैर के ट्यूमर का इलाज करवा सके ? 
 इस मामले में जेटली अकेले नहीं हैं।
सोनिया गांधी का इलाज भी विदेश में होता है।
 नेता गण तो  विदेश में अपना इलाज करवा सकते हैं।
पर सामान्य लोग कहां जाएं ?
इस देश के अधिकतर अस्पतालों की विश्वसनीयता घटती जा रही है।
सबसे बड़ी समस्या मेडिकल की गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई की है।
क्यों नहीं सरकार देश के निजी व सरकारी मेडिकल काॅलेजों में हो रही पढ़ाई की गुणवत्ता की जांच के लिए अलग से उड़न दस्तों का गठन करती ?
क्या जब चीजें पूरी तरह बिगड़ जाएंगी,तभी  कार्रवाई होगी ?
अपवादों को छोड़ कर मेडिकल शिक्षा के बारे में अपुष्ट सूत्रों से जो सूचनाएं मिल रही हैं,वे काफी चिंताजनक हैं।
--चिट फंड घोटाला और मुकुल राय--
जिस तरह की प्रारंभिक पूछताछ के लिए  कोलकाता के पुलिस कमिश्नर तैयार ही नहीं हो रहे थे,उस तरह की पूछताछ मकुल राय की पहले ही हो चुकी है।
तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए घोटाले के आरोपी मुकुल राय यदि समझ रहे हों कि ऐसा करने से वे बच जाएंगे तो शायद ही यह संभव हो सके।
 उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा का उदाहरण सामने है।
नेशनल रूरल हेल्थ मिशन घोटाले के इस आरोपी ने खुद को बचाने के लिए दल भी बदले थे।
पर उनकी करोड़ों की संपत्ति जब्त होने से नहीं बच सकी।
दरअसल सी.बी.आई. जिस केस की जांच अदालत के आदेश से और उसकी निगरानी में कर रही होती है,उसमें इधर -उधर करने की उसके लिए गुंजाइश बहुत ही कम होती है।
 वैसे तो वह सरकारी तोता खुद को कई बार साबित कर चुकी है।जो गड़बड़ी सी.बी.आई. ने ललित नारायण मिश्र हत्याकांड में की थी,वैसा ही गड़बड ़झाला उसने बाॅबी हत्याकांड में किया।
पर पटना हाईकोर्ट की सतत निगरानी के कारण चारा घोटाले में सी.बी.आई.आरोपितों को नहीं बचा सकी।जबकि तत्कालीन प्रधान मंत्री की ओर से भी उस पर भारी दबाव था।
   -- प्लांटेड खबरों से सावधान !--
2012 में एक अखबार ने यह खबर दी थी कि तब के सेनाध्यक्ष वी.के.सिंह सैनिक क्रांति के जरिए राज सत्ता पर कब्जा करना चाहते थे।
अपनी खोजबीन के बाद हाल में नई दिल्ली से प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्रिका ने लिखा है कि वह खबर बिलकुल गलत थी जो तब की केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों के दिमाग की उपज थी।
हालांकि तब के रक्षा मंत्री ए.के.एंटोनी ने भी तब सैनिक क्रांति की ऐसी किसी आशंका को खारिज किया था।
 अब सवाल है कि  बिना सिर पैर की ऐसी खबरों पर विश्वास करके  कुछ नामी गिरामी पत्रकार भी उसे क्यों छाप देते हैं ?
इसी तरह की एक खबर अस्सी के दशक में प्लांट की गयी थी।वह खबर वी.पी.सिंह के पुत्र अजेय सिंह के सेंट किट्स के बैंक में खाते से संबंधित थी।
 वी.पी.सिंह को बदनाम करने के लिए कुछ निहित स्वार्थी नेताओं ने ही अजेय सिंह के नाम पर खुद खाता खोलवा कर उसमें पैसा डाल दिया था।
ऐसी खबरें लिखने वाले पत्रकारों की बाद में काफी बदनामी हुई थी।हालांकि उनमें से एक पत्रकार लोक सभा में भी गया।
इस तरह के कई अन्य उदाहरण भी समय -समय पर आते रहते हैं।मुख्य धारा  मीडिया के लिए यह अच्छा है कि इस देश के  जिम्मेवार पत्रकार ऐसी खबरों से दूर ही रहते हैं।
   --भूली बिसरी याद--
सन 1989 का लोक सभा चुनाव !
तीस साल पहले की बात है।यह जानना  दिलचस्प होगा कि तब  लोक सभा चुनाव के समय  अखिल भारतीय स्तर पर कांग्रेस का चुनाव अभियान कैसे चल रहा था। 
 उन दिनों राजीव गांधी प्रधान मंत्री थे।
‘बैकरूम ब्वायज’ नाम से एक छोटा समूह परदे के पीछे से तब सक्रिय था।
उस समूह के  अधिकतर ‘ब्वाय’ राजीव गांधी के दोस्त व सहपाठी थे।
उन लोगों ने प्रचार व आंकड़े जुटाने का काम संभाला था।
दून स्कूल में सहपाठी रहे विश्वजीत पृथ्वीजीत सिंह केंद्रीय चुनाव कार्यालय में समन्वयकारी की भूमिका में थे।वे राज्यों को प्रचार सामग्री भेजने  का बंदोबस्त कर रहे थे।
राजीव गांधी के अन्य स्कूली दोस्तांे में रोमी चोपड़ा और एक विज्ञापन एजेंसी के प्रबंध निदेशक अरूण नंदा भी इस काम में लगे थे।
उन पर यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वे चुनाव प्रचार का तेवर तीखा बनाएं।
हाल में भारतीय विदेश सेवा से इस्तीफा देकर अभियान से   जुड़े मणि शंकर अय्यर राजीव गांधी के चुनाव दौरों के कार्यक्रम तय कर रहे थे।
राज्य सभा सदस्य एस.एस.अहलूवालिया पार्टी मुख्यालय नियंत्रण कक्ष के प्रभारी थे जो राज्य इकाइयों से संपर्क रख रहे थे।
कांग्रेस मुख्यालय में 30 हाॅटलाइनें लगा दी गयी थीं।
सीताराम केसरी संसाधन वितरण का काम कर रहे थे।
सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी आर.के.धवन और सतीश शर्मा को सौंपी गई थी।
उन्हें विपक्षी खेमे के इक्के -दुक्के नेताओं को फुसलाने का काम मिला था।आनंद शर्मा प्रवक्ता का काम देख रहे थे।
      --और अंत में-
डा.प्रवीण तोगडि़या ने ‘हिन्दुस्तान निर्माण दल’ का गठन किया है।
उन्होंने घोषणा की है कि उनकी यह पार्टी गुजरात और उत्तर प्रदेश की सारी लोक सभा सीटों से  उम्मीदवार खड़ा करेगी।
साथ ही, देश के अधिकतर चुनाव क्षेत्रों में उनके उम्मीदवार होंगे।
 डा.तोगडि़या नरेंद्र मोदी से खार खाए हुए हैं।इसी तरह कभी बलराज मधोक, अटल बिहारी वाजपेयी से खार खाए रहते  थे।
देखना है कि बलराज मधोक के इस नए ‘अवतार’ के साथ मतदाता कैसा सलूक करते हैं।
@ मेरा यह काॅलम ‘कानोंकान’ 8 फरवरी, 2019 के प्रभात खबर-बिहार-में प्रकाशित@









सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

बिहार के नए पुलिस प्रमुख गुप्तेश्वर पांडेय के काम के
प्रति पेशेवर उत्साह को देख कर शांतिप्रिय लोगों में खुशी देखी जा रही है।
  कभी एक कत्र्तव्यनिष्ठ थानेदार के भय से उस क्षेत्र के अपराधी पूरा इलाका छोड़ देते थे।
 बहुत दिन नहीं हुए जब कुछ चर्चित जिला एस.पी. की कड़ाई से अपराधी जिला छोड़ देते थे।
 फिर डी.जी.पी. कुछ ठान लें तो बहुत कुछ  हो सकता है ।
 पर, नए डी.जी.पी.को चाहिए कि वे साथ-साथ यह भी  सुनिश्चित करें कि कोई  एस.पी. थानों की नीलामी न करे।
थानों के जरूरी खर्चे के लिए गैर सरकारी निर्भरता समाप्त हो।
इस तरह की कुछ अन्य बातें भी हैं।
थोड़ा लिखना, बहुत समझना !
  कुछ जिलों  के कुछ पुराने लोग कुछ एस.पी.को आज भी  याद करते हैं।
अस्सी के दशक में  सारण से एक कत्र्तव्निष्ठ एस.पी.को भ्रष्ट व अपराधी नेताओं ने समय से पहले बदलवा दिया था।
मैंने सुना था कि जब स्थानांतरित एस.पी.पटना के रास्ते में सड़क मार्ग  से छपरा
 से सोन पुर की ओर जा रहे थे तो बीच के अनेक स्थानों में सड़क के किनारे  खड़ी जनता उसी तरह रो रही थी जिस तरह राम के वनवास के समय अयोध्या की प्रजा रो रही थी।
ऐसी उम्मीदें रहती हैं जनता को पुलिस तंत्र से ! !
 डी.जी.पी.साहब, आप भी कुछ ऐसा कर के जाइए ताकि लोग आपको दशकों तक याद रखंे।
मानुष जन्म बार-बार नहीं मिलता !
  कल क्या होगा, मैं नहीं जानता, पर मैं आपके प्रारंभिक अभियानों  को सकात्मक रूप से ही देखने के लिए खुद को बाध्य पाता हूंं । क्योंकि न तो मैं पूर्वाग्रहग्रस्त हूं और न ही विघ्नसंतोषी !
  इसीलिए कभी भी इस देश के किसी सत्ताधारी नेता या अफसर में कत्र्तव्य परायणता जैसा विरल गुण देखता हूंं तो मेरी उम्मीदें जग जाती हैं।
भले बाद में जो हो !  

अंग्रेजी अखबारों ने इस खबर को नहीं छापा, पर 'दैनिक जागरण' ने आज मन खुश कर दिया....

अंग्रेजी अखबारों ने इस खबर को नहीं छापा, पर 'दैनिक जागरण' ने आज मन खुश कर दिया....: भारत के सर्वोच्च न्यायालय की इस खबर ने आज मुझे बहुत खुश...
विषैले रसायनों के बिना निर्मित शुद्ध,प्राकृतिक काला गुड़
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मैं काला गुड़ खोज ही रहा था कि किसी ने मुझे 
भागल पुर का काला गुड़ लाकर दिया।
तपोवर्धन प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र निर्मित इस विशेष गुड़
के डिब्बे पर लिखा हुआ है--
‘इस काले गुड़ का उत्पादन स्वास्थ्य लाभ के निमित
आदर्श परिस्थितियों में सभी नियमों का पालन सुनिश्चित करते हुए किया गया है।
सीमित मात्रा में उत्पादित यह काला गुड़ सिर्फ तपोवर्धन प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र, भागल पुर में स्वास्थ्य लाभ लेने वाले व्यक्तियों को विशेष तौर पर उपलब्ध है तथा इसका उद्देश्य व्यावसायिक लाभ नहीं है।
अतः कोई भी व्यक्ति इस काले गुड़ का व्यवसायिक लाभ लेने हेतु अधिकृत नहीं है।’
  ग्रामीण पृष्ठभूमि के एक व्यक्ति ने जब मेरे घर में इसे देखा तो मुझसे कहा कि ऐसा  गुड़ हमलोग जानवर को खिलाने के लिए खरीदते हैं।सस्ता पड़ता है।
 यानी जानवर के लिए सस्ता काला गुड़ और अपने परिवार के लिए विषैले रसायनों से साफ किया हुआ पीला गुड़ ! !
वाह ! क्या बात है ।
किसी ने बताया है कि पटना में भी काला गुड़ मिलता है।
कभी खरीद कर देखूंगा ।़   

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

इन दिनों राजद के झारखंड से राज्य सभा सदस्य 
माननीय प्रेम गुप्त की राजनीतिक गतिविधियों के बारे में
कहीं कुछ न तो छप रहा है और न ही कोई कुछ बता
 रहा है।
आखिर  कहां हैं गुप्त जी ? !
--9 फरवरी 2019

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

1.-सारधा-रोज वैली चिट फंड घोटाला
2.-घोटाले की रकम लगभग 80 हजार करोड़ रुपए
3.-अल्प आय वाले लाखों लोगों को अधिक मुनाफे
का लोभ देकर ये पैसे वसूले गए थे।
4.-पैसे वापस नहीं मिलने के कारण करीब 200 पीडि़तों ने आत्म हत्या कर ली
5.-घोटाले के पैसों की बंदरबाट नेताओं, अफसरों तथा अन्य प्रभावशाली लोगों के बीच हुई
6.-सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सी.बी.आई.जांच की आंच तेज होने पर देश के दर्जनों राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं द्वारा  घोटालेबाजों के बचाव में शर्मनाक हरकतंे
7.-जब किसी देश की राजनीति में इतनी गिरावट व बेशर्मी आ जाती है तो किसी तानाशाह के पैदा हो जाने की आशंका बढ़ जाती है।
8.- पता नहीं लोकतांत्रिक मिजाज वाले इस देश की तकदीर में क्या लिखा हुआ है !
9.-पता नहीं हमारे तथाकथित नेतागण इस देश को कहां ले जाएंगे ! हालांकि नेताओं में अपवाद भी हैं।पर वे भ्रष्टों व देशद्रोहियों के सामने कमजोर पड़ते नजर आ रहे हैं।
10-ऐसे में उन लोगों पर देश को बचाने की अधिक जिम्मेदारी आन पड़ी है जो अपार निजी स्वार्थ, घनघोर जातिवाद व घृणित संप्रदायवाद से ऊपर होकर सोचते हैं।
अगला चुनाव एक अच्छा अवसर है।जिस किसी दल में भी भ्रष्ट,अपराधी, सांप्रदायिक व देशद्रोही तत्व पाया जाए उसके खिलाफ वोट के हथियार का इस्तेमाल होना चाहिए।
ध्यान रखिए ,जिस किसी दल यानी जिस किसी दल ! कोई अपवाद नहीं होना होना चाहिए।  
  

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

 भारत सरकार जब आॅगस्ता वेस्टलैंड मामले के सह आरोपी राजीव सक्सेना को इजराइली स्टाइल में दुबई से खींच कर भारत लाती है तो कुछ लोग कहते हैं कि मोदी हिटलरशाही की ओर बढ़ रहा है।
पर जब ‘बैंक लुटेरा’ विजय माल्या भारत सरकार को कानूनी पेचदगियों में उलझा कर महीनों से लंदन में जमा हुआ है तो वही लोग कहते हैं कि उससे अरूण जेटली मिला हुआ है।
  आखिर अरबांे रुपए के लुटेरों को कानून के सामने खड़ा करने के लिए तीसरा कौन सा  उपाय किया जाना  चाहिए ?

एक आग्रह ,आखिरी बार
ब्लाक करने पर मजबूर न करें !
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मेरे व्हाॅट्सेप पर अनेक लोग बहुत सारी बिनमांगी सामग्री भेजते रहते हैं।
यही हाल मेरे फेसबुक वाॅल का भी है।
जो मेरे फेसबुक फ्रेंड नहीं हैं,वे भी तरह -तरह की टिप्पणियां करते रहते हैं--कुछ वांछित और कुछ अवांछित।
कई बार टिप्पणियां मानहानिकारक होती हैं।
मेरी द्विविधा  यह होती है कि मैं उसका जवाब दूं या उसे हटा  दूं।
डिलीट करने से लिखने वाले को गुस्सा आता है।
जवाब देने में समय लगता है जो मेरे पास इस काम के लिए काफी कम है।
मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि आप किसके खिलाफ क्या लिखते हैं।मतलब सिर्फ इसी से है कि हम कहीं किसी कानूनी पचड़े में न पड ़जाएं।
मैंने इससे पहले भी आग्रह किया था कि मेरी सहमति के बिना कोई सामग्री व्हाॅट्सेप  पर न डालें।या फिर टैग न करें।
साथ ही जो मेरे ‘फेसबुक फें्रड’ नहीं हैं,वे कोई टिप्पणी मेरे वाॅल पर न लिखें।
मैं सारी टिपप्णियां यदि  पढ़ने लगूं तो अधिक दिनों तक मेरी आंखें मेरा साथ नहीं देंगी।
इसलिए आखिरी बार आग्रह कर रहा हूं।
व्हाट्सेप पर कुछ भेजने से पहले मुझसे पूछ लें।
जो ‘मित्र’ नहीं हैं,वे मेरे फेसबुक वाॅल पर कुछ
न लिखें।
अन्यथा मैं अब ब्लाॅक करना शुरू कर दूंगा।
एक बात और
फेसबुक एक बहुत अच्छा साधन है।इसने आम लोगों को भी पत्रकार बना दिया है।या जिनमें पत्रकार या विचारक की  प्रतिभा है,उन्हें चमकने का मौका दिया है।
अतः इस साधन का सावधानी से इस्तेमाल कीजिएगा तो यह आपके पास बना रहेगा।
अन्यथा नाहक मुकदमेबाजी में फंस जाइएगा तो बाद में आपको ही इसका इस्तेमाल करने का जी नहीं करेगा।
अभी मैं एक खास  प्रवृति देख रहा हूं।कुछ लोग समझते हैं कि फेसबुक पर कुछ भी लिखकर बचा जा सकता है। 
ऐसा है नहीं।आप तभी तक बचे रहेंगे,जब तक आपके पीछे कोई नहीं पड़ा है।
अभी तो इस साधनों का और विस्तार होने वाला है।
नतीजतन इसका प्रभाव भी बढ़ेगा।
फिर तो जिसकी मानहानि होगी, वह निष्क्रिय नहीं रहेगा।

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

 मोदी सरकार भगोड़े आर्थिक अपराधियों को तरह -तरह के उपायों से एक- एक करके विदेशों से खींच कर यहां ला रही है।
यदि उसी तरह का सलूक कांग्रेस सरकार ने बोफर्स दलाल क्वात्रोचि तथा अन्य भगोड़ों के साथ किया होता तो कांग्रेस को आज का दिन नहीं देखना पड़ता।
  

  अस्सी के दशक में बिहार के एक मुख्य मंत्री जमानत पर थे।
उन पर भ्रष्टाचार का आरोप था।
पटना हाईकोर्ट के न्यायमूत्र्ति उदय सिन्हा ने तब कहा था कि बिहार के बाहर जाना हो तो मुख्य मंत्री को पहले स्थानीय पुलिस थाने को सूचित करना होगा।
  तब देश में  इसको लेकर बिहार की बहुत बदनामी हुई थी।
लोग पूछते  थे कि कैसा राज्य है जहां के मुख्य मंत्री को राज्य से बाहर जाने से पहले थाने को सूचित करना होता है ?
  पर, ऐसे मामले में अब पूरे देश का क्या हाल है ?
लगता है कि आज तो पूरा देश ही बिहार बन गया है।
कुएं में ही भांग पड़ चुकी है।
बिहार सहित देश के दर्जनों बड़े -बड़े नेता आज जमानत पर हैं।
मैं ऐसे नेताओं की एक सूची बनाना चाहता हूंं।
कई नाम तो मुझे मालूम हैं।पर लिस्ट को पूरा करने में आप भी मेरी मदद करें।नाम बताएं।
चाहे नेता जिस किसी दल को हो,उसका ध्यान रखे बिना जानकारी दें।
‘सर्वदलीय’ सूची बन जाएगी।
पर पक्की जानकारी रहने पर ही किसी का नाम दें।अनुमान से नहीं।
हां, ऐसे नेता का ही नाम दें जो कभी न कभी सत्ता में रह चुका  हो या आज भी सत्ता में है।
 देश को मालूम होना चाहिए कि आज की राजनीति का क्या हाल है।कैसा स्वरूप बन गया है हमारे लोकतंत्र का।
कैसे-कैसे लोग इस देश के लोकतंत्र के मंदिर को ‘सुशोभित’ कर रहे हैं। इसका नतीजा क्या होगा ? बीमारी बढ़ती जा रही है।भ्रष्ट लोग शर्माने के बदले उल्टे सांड़ की तरह सींग मार रहे हैं।
  स्थिति की गंभीरता देख कर शायद कुछ लोग जगें और राजनीति की सूरत बदलने की दिशा में अपनी-अपनी ओर से जो बन पाए, वैसा प्रयास करें।व्यक्तिगत प्रयास शायद किसी दिन सामूहिक प्रयास में बदल जाए ! 

सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

1.-कांग्रेस नेता अहमद पटेल के राज्य सभा सदस्य चुने जाने के खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी।
  पर अदालत की रजिस्ट्री से याचिका की काॅपी गायब पाई गयी।
शुक्रवार को गुजरात हाई कोर्ट ने गायब होने की इस घटना की जांच का आदेश दे दिया ।
        --हिन्दुस्तान टाइम्स- 3 फरवरी 2019
2.- सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगई और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने अहमद पटेल की याचिका जल्द सूचीबद्ध होने पर आश्चर्य व्यक्त किया। 
अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि कोई इस मामले को लेकर बहुत ज्यादा बेचैन है।
हम रजिस्ट्री से यह पता लगाना चाहेंगे कि यह कैसे हुआ ?
            ---नवभारत टाइम्स-1 फरवरी 2019

     त्वरित जनमत सर्वे जरूरी
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कोलकाता में जो कुछ हो रहा है,उससे लगता है कि अपने देश का लोकतंत्र एक बार फिर संक्रमणकाल के दौर में प्रवेश कर गया है।
  2019 के लिए अघोषित चुनाव घोषणा पत्र तैयार हो रहा है।
इसकी तार्किक परिणति क्या होगी ?
इस पर देश के आम लोग क्या सोचते हैं ?
मेरी राय है कि मीडिया संगठनों को इस ऐतिहासिक अवसर पर अपने- अपने पाठकों -श्रोताओं के बीच त्वरित  जनमत सर्वेक्षण कराना चाहिए।

अब भी जीवित है 2 जी घोटाला मुकदमा
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 दिल्ली हाईकोर्ट ने चर्चित 2 -जी घोटाला मामले की सुनवाई शुरू कर दी है।
मुकदमे में आरोपितों की लोअर कोर्ट से रिहाई के खिलाफ 
सी.बी.आई ने  अपील की है।
अपील का मुख्य बिन्दु यह है कि लोअर कोर्ट के जज ने इस केस में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा -165 में  मिली शक्ति का उपयोग क्यों नहीं किया ?जबकि, उनके पास  यह सूचना थी कि इस घोटाले में 200 करोड़ रुपए की रिश्वत देने का आरोप लगा हैै ।
  उक्त धारा के अनुसार- ‘न्यायाधीश सुसंगत तथ्यों का पता चलाने के लिए या उनका उचित सबूत अभिप्राप्त करने के लिए ,किसी भी रूप में किसी भी समय, किसी भी साक्षी या पक्षकारों से, किसी भी सुसंगत या विसंगत तथ्य के बारे में कोई भी प्रश्न, जो वह चाहे पूछ सकेगा तथा किसी भी दस्तावेज या चीज को पेश करने का आदेश दे सकेगा और न तो पक्षकार और न उनके अभिकत्र्ता हकदार होंगे कि वे किसी भी ऐसे प्रश्न या आदेश के प्रति कोई भी आक्षेप करंे , न ऐसे किसी भी प्रश्न  के  प्रत्युत्तर में दिए गए किसी भी उत्तर पर किसी भी साक्षी की न्यायालय की इजाजत के बिना प्रति परीक्षा करने के हकदार होंगें।’
    2 जी. स्पैक्ट्रम घोटाला मुकदमे में ए.राजा और कनिमोझी को दोषमुक्त करते हुए दिल्ली स्थित विशेष सी.बी.आई. जज ओ.पी.सैनी ने कहा था कि कलाइनगर टी.वी.को कथित रिश्वत के रूप में शाहिद बलवा की कंपनी डी.बी.ग्रूप द्वारा 200 करोड़ रुपए देने के मामले मेंं अभियोजन पक्ष ने किसी गवाह से जिरह तक नहीं की।कोई सवाल नहीं किया।
   याद रहे कि उस  टीवी कंपनी का मालिकाना करूणानिधि परिवार से जुड़ा है।
मान लिया कि कोई सवाल नहीं किया ।क्योंकि शायद मनमोहन सरकार के कार्यकाल में  सी.बी.आई. के वकील को ऐसा करने की ‘अनुमति’ नहीं रही होगी।
पर, खुद जज साहब के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में ऐसे ही मौके के लिए  धारा -165 का प्रावधान किया गया है।आश्चर्य है कि  धारा -165 में प्रदत्त अपने अधिकार का सैनी साहब ने इस्तेमाल क्यों नहीं किया ?
  इस सवाल पर अब हाई कोर्ट में विचार होगा कि 
 जज ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-165 में  मिली शक्ति का उपयोग क्यों नहीं किया जबकि उनके पास  यह सूचना थी कि इस घोटाले में 200 करोड़ रुपए की रिश्वत देने का आरोप लगा हैै ?
इस केस का यह सबसे प्रमुख सवाल है।
@ 3 फरवरी 2019@
  



रविवार, 3 फ़रवरी 2019

- बेहतर कानून-व्यवस्था के लिए नये डी.जी.पी.से लोगों की बड़ी उम्मीदें-


उम्मीद है कि नए डी.जी.पी.के कार्यकाल में बिहार के शांतिप्रिय लोगों को बेहतर कानून-व्यवस्था उपलब्ध होगी।
पिछले कुछ महीनों की व्यवस्था से तो मुख्य मंत्री भी चिंतित रहे हंै।उन्होंने एकाधिक बार कानून -व्यवस्था सुधारने का निदेश पुलिस प्रमुख को दिया था।
पर, फर्क नहीं पड़ा।
 क्यों नहीं पड़ा,इसकी खुफिया जांच होनी चाहिए ताकि आगे उससे शिक्षा ली जा सके।
खैर, अभी तो नए पुलिस प्रमुख से उम्मीदों की बात है।
इस बीच सेंट्रल रेंज के डी.आई.जी.ने पुलिस बल की कमी की कृत्रिम समस्या का  समाधान ढूंढा है।
तय किया गया है कि पटना के कुल नौ हजार जवानों को 12 सौ सेक्शन में बांट दिया जाएगा।
इससे अब तक ‘अदृश्य’ पुलिसकर्मी  भी
ड्यूटी पर दृश्यमान होेंगे।होना पड़ेगा।
नए डी.जी.पी.को चाहिए कि वे पूरे राज्य में भी ऐसी ही व्यवस्था कराएं ।
 पूरे राज्य में ट्रैफिक अराजकता है।यह लोगों की नाक में दम किए हुए है।
कई जगह अतिक्रमणों के कारण ऐसा है तो कई अन्य जगह कुछ अन्य कारणों से ।
 सबसे बड़ा कारण व्यापक घूसखोरी है।
जब एक चोर-डकैत  देखता है कि पटना तथा अन्य नगरों में खुलेआम रिश्वत देकर कुछ लोग रोज ही कानून तोड़ रहे हैं तो उन्हें भी चोरी,डकैती हत्या करने की अघोषित छूट मिल जाती है।
उन्हें लगता है कि पैसों और पैरवी के बल पर कुछ भी किया जा सकता है।
ऐसी स्थिति से राज्य को उबारने की एक बड़ी जिम्मेदारी पुलिए महकमे के शीर्ष नेता की बनती है।हालांकि अन्य संबंधित लोग भी ऐसी जिम्मेवारी से बच नहीं सकते।यह अच्छी बात है कि पटना हाईकोर्ट प्रादेशिक राजधानी की ट्रैफिक अराजकता को समाप्त करने के लिए प्रयत्नशील है।  --अदालती निर्णयों को राजनीतिक रंग-- 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘जब भी किसी राजनीतिक मसले पर किसी भी पक्ष में निर्णय आता है तो विवेकहीन व्यक्तियों या
वकीलोें द्वारा उसे राजनीतिक रंग दे दिया जाता है।
ऐसा करने से आम लोगों के मन में न्याय -व्यवस्था के प्रति भरोसा कम होता है।
किसी जज के खिलाफ उचित शिकायत के लिए व्यवस्था बनी हुई है।वहां शिकायत की जानी चाहिए।
 राजनीतिक रंग और गलत आरोपों के जरिए न्यायपालिका की छवि को खराब करने की किसी को भी इजाजत नहीं दी जा सकती।’
  सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी सामयिक है।
न्यायपालिका के खिलाफ छिटपुट ढंग से लगभग पूरे देश में यही हो रहा है।
तब ऐसी टिप्पणियां आए दिन की जाती रही हैं जब किसी नेता को सजा मिलती है।
सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया जाता है कि 
साजिश करके फलां नेता को सजा दिलवा दी गई।
आशय यह होता है कि साजिश में न्यायपालिका का भी हाथ है।
 कभी -कभी तो संबंधित जज की जाति की भी चर्चा सार्वजनिक रूप से की जाती है।
 यदि लोअर कोर्ट के किसी जज से किसी फैसले में चूक होती है तो ऊपर की अदालत में अपील का कानूनी हक  हासिल है।यदि किसी जज के खिलाफ कोई खास शिकायत के सबूत हांे तो उसके निराकरण के भी उपाय हैं।
पर यूं ही ऐसे न्यायापालिका को बदनाम कर देने की  छूट किसी को नहीं मिलनी चाहिए।या तो सरकार इस संबंध में कठोर कानून बनाए या फिर सुप्रीम कोर्ट कोई सख्त कदम उठाए।    
   --राजद्रोह पर 1962 का  जजमेंट-- 
केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट का
एक ऐतिहासिक निर्णय 1962 में आया था।
अदालत ने कहा था कि ‘सरकार पर सिर्फ कड़ा शब्द प्रहार राजद्रोह नहीं है ।हां,यदि शब्द प्रहार के परिणामस्वरूप हिंसा हो जाए तो उसे राजद्रोह माना जा सकता है।’
  याद रहे कि केदारनाथ सिंह पर राजद्रोह का आरोप लगा था।
पर उनके भाषण से कहीं हिंसा नहीं हुई थी।
  अब बदली हुई स्थिति में आज इस देश में जो कुछ हो रहा है,उसकी तुलना केदार सिंह प्रकरण  से की जा सकती है ?
  आज तो शहरी नक्सली खुलेआम हिंसा को उचित ठहरा रहे हैं और छत्तीस गढ़ के जंगलों में सक्रिय उनके माओवादी साथी वास्तव में हिंसा कर रहे हैं।
  विश्वविद्यालयों के परिसरों में कश्मीरी अतिवादियों के समर्थक गण ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे ’ और ‘घर -घर अफजल पैदा होगा’ के नारे लगा रहे हैं और उधर उनसे जुड़े कश्मीरी आतंकी घाटी में भीषण  हिंसा कर रहे  हैं।क्या इन लोगों पर 1962 का जजमेंट लागू होता है ?
नहीं लागू होता है।यदि किसी को यह गलतफहमी है कि लागू होता है तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करना चाहिए कि इस बारे में स्थिति क्या है ? क्या माना जाए ?
    --जेल में आई.ए.एस.--
बिहार काॅडर के पूर्व आई.ए.एस अफसर बी.के. सिंह को सी.बी.आई.कोर्ट ने तीन साल की सजा दी है।
भ्रष्टाचार के आरोप में सी.बी.आई.ने 1986 में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी।
करीब तीन दशक  बाद लोअर कोर्ट से यह निर्णय आया है।
ठीक ही कहा जाता है कि ‘देर से हुए मिले न्याय को न्याय नहीं कहते।’
खैर इस बहाने इस अफसर की गिरफ्तारी के समय की एक कहानी याद आ गई।
जब बी.के.सिंह को बांकी पुर जेल भेजा गया था तो वहां के अधीक्षक ने उन्हें ऐसी-ऐसी सुविधाएं भी मुहैया करा दीं जिसके वे हकदार नहीं थे।
इतना ही नहीं, अधीक्षक ने उन सुविधाओं का जिक्र करते हुए 
तब के जेल आई.जी. सुरेन्द्र प्रताप सिंह को चिट्ठी लिख दी।
 लगा था कि जेल आई.जी.खुश होंगे।शाबासी देंगे।
पर दिवंगत  सुरेन्द्र बाबू कुछ दूसरे ही तरह के अफसर थे।उन्होंने अधीक्षक को कारण बताओ नोटिस भेजा कि आपने  जेल मैनुअल के प्रावधानों का उलंघन करते हुए ऐसा क्यों किया ?
अधीक्षक की हालत पतली हो गई।
पता नहीं, उसका अंततः क्या हुआ ! पर बेचारा अधीक्षक भी क्या करता ?
उससे ठीक पहले कमिश्नर रैंक के ही एक अन्य अफसर उसी जेल में गए थे।
उन्होंने दबाव डाल कर अपने लिए ‘हर तरह’ की सुविधा का प्रबंध करवा लिया था।हर तरह की सुविधा यानी सचमुच  मतलब हर की ।घर से भी बेहतर।
अधीक्षक को लगा कि बी.के.सिंह के लिए प्रबंध आखिर करना
ही पड़ेगा तो पहले से ही कर दिया जाए।
काश ! सुरेन्द्र प्रताप सिंह जैसे जेल आई.जी.बिहार सहित पूरे देश में होते !  
--भूली बिसरी याद--
25 जून, 1975 को देश में आपातकाल लग जाने के बाद अपने लोग भी किस तरह अचानक बदल गए थे,उसका विवरण जार्ज फर्नांडिस के शब्दों में।तब वे ओडि़शा में थे।
जार्ज ने बताया था,‘मैंने उससे कहा कि मेरे लिए एक कार का इंतजाम कर दो।दो दिन पहले तक मेरे आगे -पीछे दौड़ने वाले शहर के सब राजनीतिक नेता ,बड़ी -बड़ी दो -दो मोटरें रखने वाले ,जो 26 तारीख की सुबह में हमें अपने -अपने घर ले जाकर चाय पानी देने के लिए होड़ कर रहे थे ,उनमें से हरेक ने हमें गाड़ी देने से इनकार कर दिया।
कहा कि अब स्थिति बदल गयी है।लेेकिन एक आदमी ने टैक्सी किराए पर करा के दी।’
 जो कुछ जार्ज के साथ हुआ,वही पूरे देश में अन्य नेताओं व राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं के साथ भी तब हुआ था।
 अब जार्ज का तब का अनुभव सुनिए जब वे ओडि़शा से एक मछुआरे की पोशाक में बस से कलकत्ता पहुंचे थे।
 ‘हावड़ा स्टेशन से टैक्सी करके एक मित्र के यहां गया।
जो बहुत ही डरे हुए थे।मुझे देखकर वे परेशान हो गए।उन्होंने बताया कि पुलिस तीन दिन से हमारे घर रोज आ रही है  -तुमको खोजने।मैंने कहा तो ठीक है,कुछ इंतजाम कर दो।उन्होंने इंतजाम कर दिया।
--और अंत में--
बड़ौदा डायनामाइट मुकदमे के आरोपी के रूप में रेलवे यूनियन नेता महेन्द्र नारायण वाजपेयी महीनों तक जार्ज के साथ जेल में बंद थे।इस केस में जेल में वे बिहार से अकेले आरोपी थे।
फिर भी उन्हें बिहार जेपी सेनानी पेंशन का हकदार नहीं माना गया। क्या जार्ज फर्नांडिस का आपात विरोधी अभियान जेपी आंदोलन का हिस्सा नहीं था ?
@-मेरा यह काॅलम कानोंकान 1 फरवरी, 2019 के प्रभात खबर-बिहार-में प्रकाशित@




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