सन् 1966 में बिहार में भयंकर सूखा पड़ा था। तब बिहार में के.बी. सहाय के नेतृत्व में कांग्रेस की ही सरकार थी। केंद्र में कांग्रेसी प्रधानमंत्री थीं इंदिरा गांधी। इसके बावजूद के.बी. सहाय ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया था कि ‘केंद्र न तो बिहार को पर्याप्त अन्न सहायता दे रहा है और न ही उसे अन्य प्रदेशों से सीधे अन्न खरीदने दे रहा है।
उन दिनों यह भी खबर आई थी कि आंध्र प्रदेेश की सरकार ने धमकी दी थी कि वह अपने प्रदेश से अनाज तब तक बिहार नहीं जाने देगा जब तक केंद्र सरकार आंध्र को यह पक्का आश्वासन नहीं दे देती कि देश का पांचवां इस्पात कारखाना आंध्र में ही लगेगा। हालांकि बाद में तब के मुख्यमंत्री ब्रह्मानंद रेड्डी ने समाचार पत्रों में छपी इस आशय की खबर का खंडन करते हुए कहा था कि आंध्र प्रदेश ने ऐसी कोई शर्त नहीं लगाई है।
खैर सूखा राहत को लेकर तब भी खींचतान चली थी। बिहार के सूखे की पृष्ठभूमि में ही चौथा आम चुनाव हुआ था। बिहार में कांग्रेस हार गई। मार्च 1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की गैर कांग्रेसी सरकार बिहार में बन गई। वह इस दृष्टि से बिहार की अब तक की सबसे अच्छी सरकार मानी जाती है कि उसके अधिकतर मंत्री ईमानदार व कर्मठ थे। महामाया सरकार ने उस अकाल में अद्भुत सेवा कार्य किए। उस समय संयोग से जयप्रकाश नारायण जैसे नेता भी उपलब्ध थे जिन्होंने राहत के सराहनीय काम किए।
दिसंबर 1966 में दिल्ली में प्रेस के जरिए जयप्रकाश नारायण ने लोगों से अपील की कि वे ‘बिहार की अकालग्रस्त जनता को हरसंभव सहायता दें। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार के प्रशासनिक ढांचे के सुधार के लिए जो भी कदम उठाए जा रहे हैं, उनका मैं स्वागत करता हूं।
याद रहे कि तब भी यह कहा गया था कि इस भीषण अकाल से निपटने में प्रशासनिक ढांचा अक्षम साबित हो रहा है। जेपी ने निर्दल लोकतंत्रवादियों के सम्मेलन में बिहार की अन्न वितरण व्यवस्था को असंतोषजनक बताया था। सर्वोदय नेता ने इस संबंध में उच्चस्तरीय समिति के गठन की सरकारी घोषणा का स्वागत किया।
साप्ताहिक दिनमान के अनुसार, ‘इस समिति में दो केंद्रीय मंत्री, जिनमें केंद्रीय कृषि और खाद्य मंत्री होंगे, तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल का एक सदस्य होगा। इसके अतिरिक्त इसमें केंद्र तथा राज्य से तीन वरिष्ठ अधिकारियों को भी शामिल किया जाएगा। प्रदेश सरकार के प्रशासनिक ढांचे को संतुलित करने के लिए केंद्र संयुक्त सचिव स्तर के छह अधिकारियों को भी बिहार भेजेगा। प्रशासनिक अनुशासन की इस व्यवस्था को जीवन बीमा निगम के अध्यक्ष श्री बी.डी. पांडेय का नेतृत्व मिलेगा। अतिरिक्त खाद्यान्न वाले प्रदेशों का हृृदय भी कुछ- कुछ पसीज रहा है। इस सिलसिले में भारतीय खाद्य निगम की अकर्मण्यता की चर्चा प्रायः हो चुकी है। इस बात के बावजूद श्री सुब्रह्मण्यम भारतीय खाद्य निगम का ढांचा ज्यों का त्यों बनाए रखने की घोषणा कर रहे हैं और भूख की समस्या के छू मंतर हो जाने की भविष्यवाणी करते फिर रहे हैं।’
बिहार अक्सर सूखे और बाढ़ की समस्याओं से जूझता रहता है, इसलिए 1966 की चर्चा मौजू है।
सन 1966-67 के बिहार के अकाल के संदर्भ में ब्रितानी अखबार गार्जियन ने बिहार की खाद्य समस्या को विश्व संकट घोषित कर अमेरिका, सोवियत संघ व अन्य समृद्ध देशों का अंतःकरण जगाने की कोशिश की। इस पर दिनमान ने लिखा कि लेकिन अंतःकरण अब तक केवल कनाडा और आस्ट्रेलिया का जागा है। कनाडा की संसद ने भारत-पाकिस्तान के अकालग्रस्त क्षेत्रों के लिए आपातकालीन पैमाने पर अन्न भेजने का कानून पास कर दिया है। आस्ट्रेलिया सरकार ने भी भारत को डेढ़ लाख टन गेहूं भेजने का फैसला किया है। खाद्यान्न सहायता पर मौजूदा अमेरिकी प्रतिबंध की भारत में तीव्र प्रतिक्रिया हुई है और अब यह समाचार आने लगा है कि अमेरिका अपना निर्णय बदल रहा है।
उस समय के अकाल को लेकर दिनमान की कुछ पंक्तियां आज भी इस देश में प्रासंगिक हैं, ‘जानलेवा भूख और भूख मिटा देने वाले भाषणों का सह अस्तित्व अकालग्रस्त भारत के लिए नया नहीं है। वरुण देवता से भारत सरकार की अनबन वैसे पुरानी है।’
ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति आजादी के 66 साल बाद भी बनी हुई है कि यहां का अधिकांश भूखंड वर्षा के जल पर ही निर्भर है।
उन दिनों यह भी खबर आई थी कि आंध्र प्रदेेश की सरकार ने धमकी दी थी कि वह अपने प्रदेश से अनाज तब तक बिहार नहीं जाने देगा जब तक केंद्र सरकार आंध्र को यह पक्का आश्वासन नहीं दे देती कि देश का पांचवां इस्पात कारखाना आंध्र में ही लगेगा। हालांकि बाद में तब के मुख्यमंत्री ब्रह्मानंद रेड्डी ने समाचार पत्रों में छपी इस आशय की खबर का खंडन करते हुए कहा था कि आंध्र प्रदेश ने ऐसी कोई शर्त नहीं लगाई है।
खैर सूखा राहत को लेकर तब भी खींचतान चली थी। बिहार के सूखे की पृष्ठभूमि में ही चौथा आम चुनाव हुआ था। बिहार में कांग्रेस हार गई। मार्च 1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की गैर कांग्रेसी सरकार बिहार में बन गई। वह इस दृष्टि से बिहार की अब तक की सबसे अच्छी सरकार मानी जाती है कि उसके अधिकतर मंत्री ईमानदार व कर्मठ थे। महामाया सरकार ने उस अकाल में अद्भुत सेवा कार्य किए। उस समय संयोग से जयप्रकाश नारायण जैसे नेता भी उपलब्ध थे जिन्होंने राहत के सराहनीय काम किए।
दिसंबर 1966 में दिल्ली में प्रेस के जरिए जयप्रकाश नारायण ने लोगों से अपील की कि वे ‘बिहार की अकालग्रस्त जनता को हरसंभव सहायता दें। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार के प्रशासनिक ढांचे के सुधार के लिए जो भी कदम उठाए जा रहे हैं, उनका मैं स्वागत करता हूं।
याद रहे कि तब भी यह कहा गया था कि इस भीषण अकाल से निपटने में प्रशासनिक ढांचा अक्षम साबित हो रहा है। जेपी ने निर्दल लोकतंत्रवादियों के सम्मेलन में बिहार की अन्न वितरण व्यवस्था को असंतोषजनक बताया था। सर्वोदय नेता ने इस संबंध में उच्चस्तरीय समिति के गठन की सरकारी घोषणा का स्वागत किया।
साप्ताहिक दिनमान के अनुसार, ‘इस समिति में दो केंद्रीय मंत्री, जिनमें केंद्रीय कृषि और खाद्य मंत्री होंगे, तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल का एक सदस्य होगा। इसके अतिरिक्त इसमें केंद्र तथा राज्य से तीन वरिष्ठ अधिकारियों को भी शामिल किया जाएगा। प्रदेश सरकार के प्रशासनिक ढांचे को संतुलित करने के लिए केंद्र संयुक्त सचिव स्तर के छह अधिकारियों को भी बिहार भेजेगा। प्रशासनिक अनुशासन की इस व्यवस्था को जीवन बीमा निगम के अध्यक्ष श्री बी.डी. पांडेय का नेतृत्व मिलेगा। अतिरिक्त खाद्यान्न वाले प्रदेशों का हृृदय भी कुछ- कुछ पसीज रहा है। इस सिलसिले में भारतीय खाद्य निगम की अकर्मण्यता की चर्चा प्रायः हो चुकी है। इस बात के बावजूद श्री सुब्रह्मण्यम भारतीय खाद्य निगम का ढांचा ज्यों का त्यों बनाए रखने की घोषणा कर रहे हैं और भूख की समस्या के छू मंतर हो जाने की भविष्यवाणी करते फिर रहे हैं।’
बिहार अक्सर सूखे और बाढ़ की समस्याओं से जूझता रहता है, इसलिए 1966 की चर्चा मौजू है।
सन 1966-67 के बिहार के अकाल के संदर्भ में ब्रितानी अखबार गार्जियन ने बिहार की खाद्य समस्या को विश्व संकट घोषित कर अमेरिका, सोवियत संघ व अन्य समृद्ध देशों का अंतःकरण जगाने की कोशिश की। इस पर दिनमान ने लिखा कि लेकिन अंतःकरण अब तक केवल कनाडा और आस्ट्रेलिया का जागा है। कनाडा की संसद ने भारत-पाकिस्तान के अकालग्रस्त क्षेत्रों के लिए आपातकालीन पैमाने पर अन्न भेजने का कानून पास कर दिया है। आस्ट्रेलिया सरकार ने भी भारत को डेढ़ लाख टन गेहूं भेजने का फैसला किया है। खाद्यान्न सहायता पर मौजूदा अमेरिकी प्रतिबंध की भारत में तीव्र प्रतिक्रिया हुई है और अब यह समाचार आने लगा है कि अमेरिका अपना निर्णय बदल रहा है।
उस समय के अकाल को लेकर दिनमान की कुछ पंक्तियां आज भी इस देश में प्रासंगिक हैं, ‘जानलेवा भूख और भूख मिटा देने वाले भाषणों का सह अस्तित्व अकालग्रस्त भारत के लिए नया नहीं है। वरुण देवता से भारत सरकार की अनबन वैसे पुरानी है।’
ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति आजादी के 66 साल बाद भी बनी हुई है कि यहां का अधिकांश भूखंड वर्षा के जल पर ही निर्भर है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें