गुरुवार, 29 जून 2023

 क्या हमारे अनेक नेतागण वोट के लिए 

इस देश को धीरे- धीरे

जेहादियों के हवाले नहीं करते जा रहे ?

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कैसे ‘‘घुसपैठिया वोट बैंक’’ ममता बनर्जी के 

लिए ‘‘महा विपत्ति’’ से

बन गया ‘‘महा संपत्ति’’ ! 

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सुरेंद्र किशोर

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4 अगस्त, 2005 को ममता बनर्जी ने लोक सभा के स्पीकर के टेबल पर कागज का 

पुलिंदा फेंका।

उसमें अवैध बंगला

देशी घुसपैठियों को  मतदाता बनाए जाने के सबूत थे।

तब पश्चिम बंगाल में वाम मोरचे की सरकार थी।

सांसद ममता बनर्जी का आरोप था कि 

उनके नाम गैरकानूनी तरीके से मतदाता सूची में 

शामिल करा दिए गए थे।

ममता ने कहा कि घुसपैठ की समस्या राज्य में ‘‘महा विपत्ति’’ बन चुकी है।

इन घुसपैठियों के वोट का लाभ वाम मोर्चा उठा रहा है।

उन्होंने  उस पर सदन में चर्चा की मांग की।

चर्चा की अनुमति न मिलने पर ममता बनर्जी ने सदन की सदस्यता

 से इस्तीफा भी दे दिया था।

 चूंकि एक प्रारूप में विधिवत तरीके से इस्तीफा तैयार नहीं था,

इसलिए उसे मंजूर नहीं किया गया।

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दृश्य -2

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जब घुसपैठियों के वोट ममता 

बनर्जी को मिलने लगे

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3 मार्च 2020 को

पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि 

जो भी बांग्ला देश से यहां आए हैं,पश्चिम बंगाल में रह रहे हैं ,

चुनाव में वोट देते रहे हैं, वे सभी भारतीय नागरिक हैं।

इससे पहले सीएए,एनपीआर और एन आर सी के विरोध में 

ममता ने कहा कि इसे लागू करने पर गृह युद्ध हो जाएगा । 

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उन्हीं दिनों पश्चिम बंगाल से एक भाजपा सांसद ने संसद में कहा 

कि पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में हिंदुओं को त्योहार मनाने के 

लिए अब स्थानीय इमाम से अनुमति लेनी पड़ती है।

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कई साल पहले इंडियन एक्सप्रेस में एक खबर छपी थी।

उसमें एक गांव की कहानी थी।

वह गांव बंाग्ला देशी मुस्लिम घुसपैठियों के कारण

 मुस्लिम बहुल बन चुका था।

वहां हिंदू लड़कियां पहले हाॅफ पैंट पहने कर 

हाॅकी खेला करती  थी।

पर, अब मुसलमानों ने उनसे कहा कि फुल पैंट 

पहन कर ही खेल सकती हो।

खेल रुक गया है।

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दृश्य-3

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यह बात तब की है जब माकपा के बुद्धदेव भट्टाचार्य पश्चिम 

बंगाल के मुख्य मंत्री थे।

उनका एक बयान जनसत्ता में छपा।

उन्होंने कहा था कि घुसपैठियों के कारण सात जिलों में 

सामान्य प्रशासन चलाना मुश्किल हो गया है।

बाद में उन्होंने उस बयान का खुद ही खंडन कर दिया।

पता चला कि पार्टी हाईकमान

के दबाव में कह दिया कि मैंने वैसा कुछ कहा ही नहीं था।

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कई दशक पहले मांगने पर वाम मोरचा सरकार ने केंद्र

 सरकार को 

सूचित किया था कि 40 लाख अवैध बांग्ला देशी पश्चिम 

बंगाल में रह रहे हैं।

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अनुमान लगाइए कि अब 2023 में वह संख्या

 कितनी बढ़ चुकी होगी !!!! 

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मेरे एक रिश्तेदार ने हाल में हावड़ा रेलवे स्टेशन पर जो दृश्य देखा,उससे वह दंग रह गया।

सैकड़ोें की संख्या में बांग्ला

देशी और रोहिंग्याई घुसपैठिये ट्रेन का इंतजार कर रहे थे।

वे इस देश के दूसरे हिस्से में जाकर बसने वाले थे।

वे सीमा पर रिश्वत देकर भारत में घुसे थे।

उसे बताया गया कि यह दृश्य रोज का है।ममता बनर्जी उन्हें खुलेआम मदद करती हैं।

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हमारा देश भी कितना अभागा है !

मध्य युग में मान सिंह जैसे कुछ ही राजा थे थे जो अपनी सत्ता के लिए महाराणा प्रताप के बदले अकबर का साथ दे रहे थे।

पर,आज तो इस देश के करीब- करीब हर राज्य में ऐसे- ऐसे अनेक राजनीतिक दल सक्रिय हैं जो अपनी सत्ता के 

लिए इन घुसपैठियों को मदद करके उन्हें मतदाता बनवा रहे हैं।

कब तक बचेगा यह देश ?

कौन बचाएगा ?

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इस्लामिक प्रवक्ता डा.जाकिर नाइक को यू ट्यूब पर यह कहते सुना जा सकता है कि भारत में 

मुसलमानों की संख्या अब 40 प्रतिशत हो चुकी हैै।

जाकिर नाइक के ‘लक्ष्य’ को कार्यरूप दे रहे संगठन पी.एफ.आई. हथियारों के बल 

पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देने के लक्ष्य को पाने के लिए 

दिन-रात लगा हुआ है।उसी के राजनीतिक संगठन एस.डी.पी.आई.ने कर्नाटका के  

गत विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को जितवाया।

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह कहते हैं कि जाकिर नाइक शांति दूत है।

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गैर भाजपा दल मोदी को हटाने के लिए इन दिनों एकजुट हो रहे हैं।

पर,जेहादियों की गतिविधियों का जब तक ये दल विरोध नहीं करेंगे तब तक 

भाजपा को वे कैसे हरा पाएंगे ?

गत साल उत्तर प्रदेश में आजम गढ़ और राम पुर लोक सभा क्षेत्रों में उप चुनाव हुए।

वहां भाजपा क्यों जीत गयी ?

क्या भाजपा विरोधी दलों ने उसका विश्लेषण किया ?

इस देश के अनेक लोग यह मान रहे हैं कि इस समय देश पर 

भीषण भ्रष्टाचारियांें और जेहादियों से  भारी 

खतरा है।

क्या कांग्रेस और अन्य भाजपा विरोधी राजनीतिक दल इन दो समस्याओं को स्वीकार भी करते हैं ?

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इन्हीं दो समस्याओं को बढ़ाने के कारण सन 2014 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस की महा पराजय हुई ।

 पराजय की जांच सोनिया गांधी ने ए.के. एंटोनी से करवाई।

एंटोनी ने अन्य कारणों के साथ -साथ यह भी बताया कि जनता को यह अच्छा नहीं लगा था कि 

कांगे्रस मुसलमानों की तरफ कुछ अधिक ही झुकी हुई है।

हम इसीलिए हारे।

एंटोनी की बात अधूरी थी।

दरअसल कांग्रेस आम मुसलमानों की ओर झुकी होती तो नुकसान नहीं होता,

कांगेस तो अतिवादी मुसलमानों की ओर झुकी हुई थी।

अब भी कांग्रेस ने खुद को नहीं बदला और कर्नाटका में हाल के चुनाव में जेहादियों 

से तालमेल कर लिया।इन सब बातों का लाभ भाजपा को अगले चुनाव में मिल 

जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

गैर भाजपा दलों के लिए अब भी संभलने का समय है।

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28 जून 23 


  



मंगलवार, 27 जून 2023

 केरल की एक मस्जिद से सेक्युलर पहल

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केरल के एर्नाकुलम जिले की एक मस्जिद के लाउड स्पीकर से इस महीने के मध्य में आधी रात को एक ऐसी घोषणा की गयी जैसा पहले कभी नहीं हुआ था।

मस्जिद से यह घोषणा की गयी कि पड़ोस के 75 वर्षीय कुट्टप्पन (हिन्दू)की मृत्यु हो गयी है।

मस्जिद सूत्रों ने बताया कि गत अप्रैल में हमने सर्वसम्मति से यह निर्णय किया था कि हम पड़ोस के लोगों के सुख-दुख में शामिल होंगे चाहे वे जिस किसी समुदाय के क्यों न हों।ऐसी जानकारियां आगे भी प्रसारित की जाएंगी। 

ऐसा करके एक धर्म निरपेक्ष संदेश देने की कोशिश की गयी है।

यह एक शुभ संकेत है जिसका वहां के लोगों ने स्वागत किया है।

यह भी फैसला किया गया है कि जनोपयोगी सेवाओं के बारे में भी मस्जिद के लाउड स्पीकर से लेागों को बताया जाएगा।

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द हिन्दू (-25 जून 23-)  की खबर पर आधारित

सुरेंद्र किशोर

27 जून 23


 इमरजेंसी (1975-77) और सामान्य 

दिनों के बीच के फर्क या समानताएं बताइए

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सुरेंद्र किशोर

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आज विभिन्न क्षेत्रों के अनेक बेईमान या अनजान लोग आए दिन यह कहते रहते हैं कि आपातकाल में जो कुछ हुआ था,वही सब या उससे से भी बुरा आज देश में हो रहा है।

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  क्या यह बात सही है ?

इस संबंध में मैं जानकारियों के आधार पर इमरजेंसी की कुछ अनर्थकारी बातें व घटनाएं बताता हूं।

फैसला आपको करना है।

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1.-इमरजेंसी में (भारत सरकार के वकील) एटार्नी जनरल नीरेन डे ने सुप्रीम कोर्ट को साफ-साफ यह कह दिया था कि देश में लोगों के  ंमौलिक अधिकारों को, जिनमें जीने का अधिकार भी शामिल है,स्थगित कर दिया गया है।

 डे ने कोर्ट से यह भी कहा कि यदि हमारी पुलिस किसी की जान भी ले ले तो उस हत्या के खिलाफ आज अदालत की शरण नहीं ली जा सकती।

नीरेड डे की बात को उचित मानकर सुप्रीम कोर्ट ने उस पर अपनी मुहर लगा दी।

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1.-देश में इमरजेंसी से पहले या बाद में क्या ऐसा कुछ कभी हुआ या हो रहा है ?

क्या अंग्रेजों के राज में भी ऐसा हुआ था ?

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2.-इमरजेंसी में मीडिया पर पूर्ण सेंसरशिप लागू कर दिया गया था।

अखबारों के संपादकीय विभागों के लोग जो खबर,लेख, रिपोर्ट आदि छपने के लिए तैयार करते थे,उन्हें लेकर पहले प्रेस इंफोरमेशन ब्यूरो (भारत सरकार)के स्थानीय आॅफिस में जाते थे।

पी.आई.बी.के अफसर को उसे दिखाकर उस पर मुहर लगवाते थे,तभी अखबारों में वह सामग्री छप पाती थीं।

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2.-क्या इमरजेंसी से पहले या बाद में ऐसा कुछ हुआ ?या हो रहा है ?

प्रतिपक्षी नेताओं के बयोन कौन कहे,उनके नाम तक अखबारों में नहीं छपते थे।

बीमारी के कारण इमरजेंसी में ही जेपी जब जेेल छूट

कर आए तो केंद्र सरकार ने मीडिया को निदेश दिया कि उनकी किसी गतिविधि की खबर न छपे,यानी उनके कहीं आने-जाने की खबर भी न छपे।नहीं छपा। 

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3.-जयप्रकाश नारायण सहित एक लाख से अधिक प्रतिपक्षी राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को अनिश्चित काल तक के लिए जेलों में ठूंस दिया गया था।

उन्हें अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ अदालत में अपील करने से भी रोक दिया गया था।

जब उन गिरफ्तारियों के खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण के कई मामले हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट गये तो सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया था कि 

गिरफ्तारियों के खिलाफ अदालतें सुनवाई नहीं कर सकतीं।

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3.-क्या इमरजेंसी से पहले और बाद में ऐसा कोई आदेश सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कभी आया ?

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 4.-1971 में रायबरेली संसदीय क्षेत्र में इंदिरा गांधी ने संसोपा के राजनारायण को हराया।

राजनारायण ने चुनाव में भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की।

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरोप सही पाते हुए प्रधान मंत्री की लोस की सदस्यता रद कर दी।

इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी में चुनाव कानून की उन धाराओं को संसद से बदलवा दिया जिन धाराओं के तहत उन्हें अयोग्य करार दिया गया था।

इतना ही नहीं,उस कानूनी संशोधन को पिछली तारीख से लागू करा दिया गया ताकि उसका लाभ इंदिरा गांधी को तुरंत मिल सके।

किसी कानून को पिछली तारीख से लागू करने की बात अजूबी थी।

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4.-क्या इमरजेंसी से पहले या बाद में वैसा कुछ हुआ था ?

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जो लोग अब भी कहना चाहते हैं कि जो कुछ इमरजेंसी में हुआ था,वह सब आज भी हो रहा है तो वे आज के ऐसे उदाहरण दें।

कुछ अशिष्ट टी.वी.डिबेटरों की तरह इधर-उधर की बातें न करें।

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27 जून 23


रविवार, 25 जून 2023

 केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में अनेक उपलब्धियां हासिल की हंै।

किंतु वह जिन महत्वपूर्ण मामलों में विफल रही है,उनमें दो मामलों को मैं अभी महत्वपूर्ण मानता हूं।

  1.-केंद्र सरकार बांग्ला देश से पश्चिम बंगाल के जरिए बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं की घुसपैठ को रोकने में बुरी तरह विफल रही है।

वहां अब भी ममता बनर्जी सरकार की ही चलती है।बल्कि, घुसपैठियों की संख्या बढ़ती जा रही है।वे वहां से पूरे देश में तेजी से फैल रहे हैं।

इस तरह देश की सुरक्षा और अखंडता के लिए भारी खतरा पैदा हो रहा है।

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2.-दूसरा मामला फिल्म सेंसर बोर्ड का है।

  बोर्ड को सुधारने में मोदी सरकार बुरी तरह विफल रही है।

फिल्मों को देखकर लगता है कि बोर्ड पर पहले जिन शक्तियों और तत्वों का कब्जा था,आज भी उनका ही कब्जा है।

भारतीय सभ्यता -संस्कृति को नष्ट करने वाली फिल्में अब भी बन रही हैैं

और उन्हें प्रमाण पत्र भी मिल रहे हैं।

आज कितनी फिल्में बन रही हैं जिन्हें आप परिवार के साथ देख सकें ?

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सुरेंद्र किशोर

25 जून 23


     भाड़े के 8 विमानों से पटना आए थे गरीब देश के अमीर नेता

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           सुरेंद्र किशोर

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प्रतिपक्षी नेताओं को लेकर 22 और 23 जून को 8 चार्टर्ड विमान पटना आए थे।

चार्टर्ड विमानों यानी भाड़े के विमानों की बहुलता के कारण पटना हवाई अड्डे की पार्किंग फुल हो गयी थी।

 जिस अनुपात में इस गरीब देश के अमीर नेतागण कहीं आने-जाने के लिए चार्टर्ड विमान का इस्तेमाल इन दिनों करने लगे हैं,उससे लगता है कि अब हर राज्य मुख्यालय के हवाई अड्डे के आकार को जल्द बढ़ाना पड़ेगा।

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याद रहे कि ये नेता वैसे गरीब देश भारत के हैं ,जहां की 80 करोड़ जनता को हर माह पांच किलो अनाज भारत सरकार अत्यंत कम दाम पर देती है।

देती क्या है,देने को बाध्य है।

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इस सिलसिले में कुछ दशक पहले की कहानी सुनाता हूं।

लोकदल नेता कर्पूरी ठाकुर बिहार के दो बार मुख्य मंत्री और एक बार उप मुख्य मंत्री रहे चुके थे।

  अस्सी के दशक में पटना के सालिमपुर अहरा स्थित पार्टी आॅफिस में बैठे थे।

पीलू मोदी एक आराम कुर्सी पर पसरे हुए थे।

मैं भी वहां मौजूद था।

कर्पूरी ठाकुर ने बहुत ही विनयी भाव से पीलू मोदी से कहा,‘‘मोदी साहब,यदि आप बिहार पार्टी के लिए एक हेलीकाॅप्टर का प्रबंध कर दें तो हम विधान सभा की आधी सीटें जीत जाएंगे।’’

हंसोड़ स्वभाव के पीलू मोदी ने बिना देर किए कहा,‘‘मिस्टर कर्पूरी,दो की कर देता हूं।सारी सीटें जीत जाना।अरे भई, हेलीकाॅप्टर चुनाव नहीं जितवाया करता।’’

  खैर,यह कहानी कहने का आशय यह है कि कर्पूरी जी जैसे ईमानदार नेता के लिए  चुनाव प्रचार के लिए एक हेलीकाॅप्टर का प्रबंध नहीं हो पाता था।किंतु आज विभिन्न दलों के अधिकतर नेतागण गैर चुनावी मौसम में भी रिजर्व विमान से चल रहे हैं।

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क्या अस्सी के दशक के बाद इस देश की जनता इतना अधिक अमीर हो गयी है कि वह चंदा देकर अपने नेताओं को भाड़े के विमानों से भ्रमण करने की सुविधा दे रही है ?

या, फिर इन नेताओं के पास अपार धन कहां से आ रहे हैं ?

कैसे आ रहे हैं ?

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   24 जून 23


 


शनिवार, 24 जून 2023

 गुटका के शौकीनो , शरद पवार का चेहरा 

गौर से देख लो

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सुरेंद्र किशोर

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शरद पवार सन 1997 में कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे थे।

अन्य उम्मीदवार थे सीताराम केसरी और राजेश पायलट।

केसरी जी विजयी हुए।

यह खबर बताने के लिए मैंने इस बात की चर्चा नहीं की।

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दरअसल तब पवार साहब पटना आए थे-प्रचार के सिलसिले में।

डा.जगन्नाथ मिश्र के सरकारी आवास पर उनका प्रेस कांफं्रेस था।

संवाददाता के रूप में मैं भी वहां मौजूद था। 

करीब पौन घंटे के प्रेस कांफ्रेंस में शरद पवार ने पाॅकेट से निकाल कर दो या तीन बार गुटका फांक लिया।

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तब तक उनका चेहरा गोल मटोल और व्यक्तित्व प्रभावशाली था।

मुझे उनके ‘गुटका फांको अभियान’ से तभी यह लग गया था कि इनके स्वास्थ्य को गंभीर पैदा हो सकता है।

आज पटना में शरद पवार संवाददाताओं के समक्ष बोल रहे थे।

आपने देखा होगा कि उन्हें बोलने में कितनी दिक्कत हो रही थी।

 क्या आपने उनकी बातों को समझा ?

इन दिनों एक तरफ का उनका चेहरा बुरी तरह सूजा हुआ रहता है।

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वर्षों से उनके चेहरे का यही हाल है।

यदि ऐसा नहीं होता तो राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री पद के वे गंभीर उम्मीदवार होते।

बनते या नहीं बनते ,यह अलग बात है।

पवार साहब आर्थिक रूप से अत्यंत संपन्न व्यक्ति हैं।

सर्वोत्तम इलाज के बल पर ही चल रहे हैं।

पर सामान्य आर्थिक क्षमता वालों  पर जब गुटका की मार पड़ती है तो उनके हश्र की कल्पना कर लीजिए।गुटका प्रेमियो,पवार साहब से सबक ले लो।

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23 जून 23


गुरुवार, 22 जून 2023

   

सन 1957 की नम्बूदरीपाद सरकार में मंत्री रहे  

कृष्णा अय्यर के सुप्रीम कोर्ट जज बनने की कहानी

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बिशन टंडन 

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आज (यानी 20 जून 1975 को)सुप्रीम कोर्ट में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के वकील ने कहा कि प्रधान मंत्री की अपील सोमवार को लेने के लिए समय निर्धारित कर दिया जाये।

उनकी विनती जज ने स्वीकार कर ली।

राज नारायण के वकील ने कोई आपत्ति नहीं की।

सुप्रीम कोर्ट की छुट्टियां हैं।

आजकल जस्टिस वी.आर.कृष्णा अय्यर छुट्टी के जज के रूप में काम कर रहे हैं।

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सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति सहज में नहीं हुई थी।

कृष्णा अय्यर किसी समय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे।

सत्रह-अठारह साल पहले केरल में नम्बूदरीपाद के मंत्रिमंडल के सदस्य थे।

इस मंत्रिमंडल को जनान्दोलन के आग्रह पर बर्खास्त कराने में प्रधान मंत्री का (तब इंदिरा गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थीं।)बड़ा हाथ था।

 1973 में जब सुप्रीम कोर्ट में कई स्थान खाली हुए तो गोखले व कुमारमंगलम के कहने पर नये मुख्य न्यायाधीश ए.एन.राय ने कृष्णा अय्यर का नाम भी भेजा।

नम्बूदरीपाद मंत्रिमंडल छोड़ने के बाद वे फिर वकालत करने लगे थे।

और, बाद में केरल हाईकोर्ट के जज हो गये थे।

  वहां से विधि आयोग के सदस्य होकर दिल्ली आ गये थे।

प्रो.धर और मैंने (कृष्णा अय्यर को जज बनाने के )प्रस्ताव का विरोध किया था।

हमारा कहना था कि हाल ही में तीन जजों को सुपरसीड करने से हलचल मच गयी है।

इसके शीघ्र बाद एक जाने माने कम्युनिस्ट को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाना ,जबकि उनसे वरिष्ठ जज व मुख्य न्यायाधीश मौजूद हैं,ठीक नहीं लगेगा।

बड़ी कटु आलोचना हुई।कई दिनों तक प्रधान मंत्री ने कोई आदेश नहीं दिया।

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फिर मंत्रिपरिषद की राजनीतिक कार्यसमिति के सम्मुख मामले को रखा गया।

  वहां गोखले व कुमार मंगलम ने इस प्रस्ताव की विशेष सिफारिश की और इसे स्वीकार कर लिया गया।

 प्रधान मंत्री भी यही चाहती थीं।

पर वे अकले निर्णय नहीं करना चाहती थीं।

 वैसे सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की नियुक्तियों पर प्रधान मंत्री स्वयं आदेश देती हैं,मंत्रिपरिषद या उसकी किसी समिति के समक्ष मामला नहीं जाता।

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प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के संयुक्त सचिव(1969-76)

रहे बिशन टंडन की चचर््िात डायरी से

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आपात काल: डायरी -भाग-एक 

20 जून 1975 

पेज-386

वाणी प्रकाशन,नई दिल्ली 

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      बिना सबूूत के किसी को भ्रष्ट कहने-लिखने 

    पर आप कानूनी  परेशानी फंस सकते हंै 

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राहुल गांधी का उदाहरण सामने है

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सुरेंद्र किशोर

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जब से राहुल गांधी को गुजरात की अदालत ने सजा सुनाई है,तब से संभवतः राहुल ने न तो यह कहा है कि ‘‘चैकीदार चोर है’’ और न ही यह भी सवाल पूछा है कि ‘‘सारे मोदी चोर ही क्यों होते हैं ?’’

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दरअसल होशियार व्यक्ति दूसरों की गलतियों से सबक ले लेते हैं।

किंतु जो हाशियार नहीं होते वे खुद गलती करने के बाद ही सीख पाते हैं।

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राहुल गांधी ने तो शिक्षा ग्रहण कर ली।

हालांकि पता नहीं कि वह स्थायी है या अस्थायी !!

किंतु फेसबुक पर सक्रिय कुछ लोग कभी भी किसी नेता को भ्रष्ट और चोर लिख देते हैं।

वैसे कुछ लोग मेरे फेसबुक वाॅल पर भी अपनी भंड़ास यदा कदा निकालते रहते हैं।

मैं तो वैसे लोगों को धीरे -धीरे अनफं्रेड करता जा रहा हूं।

पर,ऐसे लोगों को एक बात समझ लेनी चाहिए--

आप कानूनन उसी व्यक्ति को भ्रष्ट लिख या कह सकते हैं जिसके खिलाफ आरोप सुप्रीम कोर्ट तक में सिद्ध हो चुका हो और राष्ट्रपति से भी उसे कोई राहत नहीं मिली हो।

इस स्थिति का लाभ आपको अधिक दिनों तक नहीं मिलेगा कि मुकदमा करने की फुर्सत बहुत कम लोगों को है।

लेकिन जब उसे फुर्सत मिल जाएगी तो आप परेशानी में पड़ सकते हैं।

ऐसा नहीं है कि जिस व्यक्ति को आप भ्रष्ट लिख रहे हैं,वह भ्रष्ट नहीं है।पर,क्या आपके पास उसका कोई ठोस सबूत भी है ?

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अस्सी के दशक में एक व्यक्ति ने मुझ पर मानहानि का केस कर दिया।

जब मैं उसके यहां समझौते के लिए गया तो उसने कहा कि आपने एक लाइन भी गलत नहीं लिखा है।

पर,मैं यह भी जानता हूं कि आपके पास एक लाइन का भी सबूत नहीं है।

अंततः मुझे व हमारे संपादक को लिखित क्षमा मांगनी पड़ी।

यह सोच कर हमने अपमान स्वीकार कर लिया कि मैं गलत नहीं था।जनहित

में मैंने लोगों को सूचना देने के अपने कर्तव्य का पालन किया।

लेकिन उस दौरान मुझे कचहरी व वकील ने खूब दौड़ाया,थकाया और पैसे खर्च करवाया।

छपने पर तो लोग तालियां बजाते हैं,पर मुकदमा होने पर कोई मदद नहीं करता। 

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हाल में मैं भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी के फेसबुक वाॅल पर गया। देखा कि उनको मिलने वाली गालियां अब लगभग लुप्त हो गयी हैं।

क्यों ?

इसलिए कि सुना है कि गांलियां देने वाले मुकदमे झेल रहे हैं।

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आप जिसे भ्रष्ट कहते या मानते हैं,वे संभव है कि भ्रष्ट ही हों।

किंतु जब आप पर केस होगा तो आपको कोर्ट में साबित करना पड़ेगा।

क्या आप कर पाएंगे ?

यदि नहीं तो केजरीवाल की तरह माफी मांगेंगे।या राहुल की तरह सजा झेल कर चुप हो जाएंगे।

वैसे उस बीच कचहरी का चक्कर तो लगाना पड़ेगा।

कचहरी और अस्पताल का चक्कर बड़ा थकाऊ होता है।

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किसी नेता को पसंद या नापसंद करने का आपको पूरा अधिकार है।

ऐसा है तो शालीन शब्दों में उसका विरोध करिए।

मतदान के समय उसके या उसके दल के खिलाफ कुछ ज्यादा ही जोर लगा कर बटन दबाइए।

पर,इस बीच मन की भड़ास निकालने के चक्कर में खुद को या किसी अन्य के फेसबुक वाॅल को कानूनी पचड़े में मत डालिए।

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हर व्यक्ति में कुछ खूबियां हैं तो कुछ खामियां भी हैं।

किसी में कम तो किसी में ज्यादा।

राजनीतिक नेताओं व दलों पर भी यही बात लागू होती है।

 कुछ अधिक ही लागू होती है।

पर,जो राजनीति में हंै,उन्हीं में से जनता किसी को चुनेगी।

गद्दी पर बैठाएगी।आप तो आराम से पारिवारिक जीवन बिता रहे हैं।

आप तो 24 कैरेट के सोना हैं।

सक्रिय राजनीति में जाइए।

पूरी राजनीति को बदल दीजिए।लोग स्वागत करेंगे।

पर,आप तो जाएंगे नहीं।

इसीलिए जो जाएगा,वही अपने ढंग से राज व राजनीति चलाएगा।

उसके खिलाफ सबूत के साथ आरोप अपने फेसबुक वाॅल पर लगाइए।

उससे आपका वाॅल भी रातों-रात लोकप्रिय हो जाएगा।

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22 जून 23 

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सोमवार, 12 जून 2023

 मेरा यह लेख आज वेबसाइट मनीकंट्रोलहिन्दी पर प्रकाशित

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शेर को हराने वाला विदेशी पहलवान जब भारतीय  

पहलवान से डरा,किया कुश्ती से इनकार 

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सुरेंद्र किशोर

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   मशहूर जर्मन पहलवान सैंडो ने भारत के ‘‘कलियुगी भीम’’ से कुश्ती लड़ने से इनकार कर दिया था। क्योंकि उससे पहले कलियुगी भीम राममूत्र्ति  ने सैंडो के शरीर के वजन की अपेक्षा अधिक वजन उठाकर दिखा दिया था।

 याद रहे कि सैंडो भी कोई मामूली पहलवान नहीं था।

 सैंडो ने एक बार अमेरिका में निहत्था लड़कर शेर को भी पराजित कर दिया था।

  इस कलियुगी भीम का जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के वीराघट्टम् गांव के एक साधारण परिवार में सन 1882 में हुआ था।सन 1942 में उनका निधन हो गया।

लंदन के राज भवन बकिंघम पैलेस में कोडा राममूत्र्ति नायडु का शारीरिक बल और कौशल देख कर जार्ज पंचम ने पहले तो उन्हें इंडियन हरकुलिस और बाद में इंडियन सैंडो की उपाधि दी थी।

पर जब राममूत्र्ति ने शारीरिक बल के मामले में उन्हें महाभारतयुगीन भीम का महत्व बताया तो जार्ज पंचम ने उन्हें राजकीय समारोहपूर्वक ‘‘कलियुगी भीम’’ की उपाधि दी।

  साथ ही, गलत तुलना के लिए उन्होंने साॅरी भी कहा।

  राममूर्ति ने दुनिया भर में अपने शारीरिक बल का लोहा मनवा दिया था।

जर्मनी का मशहूर पहलवान सैंडो एक बार भारत आया था।उसने राममूत्र्ति से कुश्ती लड़ने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि राममूत्र्ति ने सैंडो की अपेक्षा अधिक वजन उठाकर दिखा दिया ।

  याद रहे कि उससे पहले सैंडों ने एक बार अमेरिका में निहत्था लड़कर शेर को भी पराजित कर दिया था।

  राममूत्र्ति को आंध्र प्रदेश के लोग बड़े सम्मान से याद करते हैं।

उनकी विशाल मूत्र्ति विशाखापत्तनम् के बीच रोड पर लगी हुई है।

उनकी दूसरी मूत्र्ति उनके पैतृक जिला श्रीकाकुलम में भी लगी है।

   बचपन में मां के निधन हो जाने के कारण बालक राममूत्र्ति निरंकुश हो गया था।

 वह गांव के हमउम्र लड़कों की बुरी तरह पिटाई करता रहता था।इससे क्षुब्ध होकर पिता ने एक बार राममूत्र्ति की पिटाई कर दी।वह जंगल में जाकर छिप गया।एक सप्ताह बाद जब वह लौटा तो उसके साथ चीते का बच्चा था।

 वह उसे गर्दन पर उठाए गांव में घूमता रहता था।

  डर के मारे लोग उसे देखकर अपने घरों में छिप जाते थे।

 पिता ने परेशान होकर उसे अपने छोटे भाई नारायण स्वामी के पास विजयनगरम् भेज दिया। 

स्वामी वहां पुलिस निरीक्षक थे।

वहां राममूत्र्ति ने मन लगाकर पढ़ाई की और साथ ही वह कसरत भी करता रहा।शरीर बनाने के प्रति उसकी तीव्र इच्छा को देखते हुए नारायण स्वामी ने उसे फिटनेस सेंटर में भर्ती करा दिया।

 वहां राममूत्र्ति ने जी तोड़ मेहनत की।उसका सपना महाबली बनने का था।

वह गांव लौटा।

  पर गांव में उसे शाबासी के बदले व्यंग्य वाण ही मिलने लगे। उसकी पहलवानी का मजाक उड़ाने वाले लोगों को वह पटक -पटक कर पीटने लगा।

   गांव में तनाव का माहौल बन गया।

  इससे परेशान पिता ने राममूत्र्ति को एक बार फिर विजयनगरम् भेज दिया।

  नारायण स्वामी ने राममूत्र्ति को मद्रास भेज दिया।

  वहां उसने एक साल तक पहलवानी की ट्रेनिंग ली।राममूत्र्ति एक विद्यालय में शिक्षक बन गये।

  उसके बाद वह अपने शारीरिक बल का सार्वजनिक रुप से प्रदर्शन करने लगे।

इस बीच सन 1911 में एक घटना हुई जिसने राममूत्र्ति के जीवन में मोड़ ला दी।

एक बार लार्ड मिंटो विजयनगरम् गये हुए थे।

वह एक लंबी-चैड़ी कार पर सवार थे।राममूत्र्ति ने उस कार के चालक  को चुनौती दे दी।

चुनौती अपनी ताकत से चलती कार को रोक लेने की थी।

मिंटो ने भी इस तमाशे को देखना चाहा।

राममूत्र्ति ने कार के पीछे का हुड अपने हाथों से कसकर पकड़ लिया।

ड्रायवर ने कार स्टार्ट कर दी।मिंटो के आश्चर्य के ठिकाना नहीं रहा कि उनकी कार राममूत्र्ति की ताकत के सामने हार मान गई।

कार एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकी।

 इस घटना से राममूत्र्ति की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। 

फिर क्या था।राममूत्र्ति ने अपने एक मित्र के साथ मिलकर एक सर्कस कंपनी बना ली।वह लोहे के चेन को अपने सीने में कस कर बांध लेते थे।फिर वह सीने को फुलाकर चेन को तोड़ देते थे।वह हाथी के पैर को अपने सीने पर थाम लेते थे।

दर्शक वाह -वाह कर तालियां बजाने लगते थे।

उनकी सर्कस कंपनी खूब चलने लगी।

  राममूत्र्ति अपने कार्यक्रमों के जरिए देशभक्ति जगाने का भी काम करते थे।

वे लोगों को दंड -बैठक करके अपने शरीर मजबूत रखने की सीख देते थे ताकि दुश्मनों का सामना किया जा सके।सर्कस कंपनी ने पूरे देश का भ्रमण किया।

उनकी ख्याति सुनकर महामना मदन मोहन मालवीय ने उन्हें कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में बुलाया।

वहां उन्होंने अपने शारीरिक बल का प्रदर्शन करके मालवीय जी का मन मोह लिया।मालवीय जी ने उनके विदेश दौरे का प्रबंध करा दिया।

उसी के बाद लंदन में उन्होंने बकिंघम पैलेस में प्रदर्शन किया और किंग जार्ज पंचम और क्विन मेरी को प्रभावित किया।उसके बाद उन्हें कई देशों से बुलावा आया।

 वह  फ्रांस,जर्मनी और जापान भी गये।स्पेन में तो राममूत्र्ति ने कमाल ही कर दिया।

वहां उन्हें सांड़ की लड़ाई देखने के लिए बुलाया गया था।

वह वहां की लड़ाई से प्रभावित नहीं हुए।

वह खुद सांड़ से लड़ने के लिए निहत्था मैदान में उतर गये।

कुछ देर के लिए तो कुछ लोग घबरा गये कि क्या होगा।

पर अति बलशाली कलियुगी भीम ने सांड का सींग पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया।

सांड़ को मैदान से बाहर भागना पड़ा।ऐसे थे कलियुगी भीम।

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11 जून 23      


 


शनिवार, 10 जून 2023

 मेरा यह लेख आज के दैनिक जागरण और दैनिक नईदुनिया के 

सारे संस्करणों में एक साथ प्रकाशित

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देशहित में नहीं राजद्रोह कानून का खात्मा

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      सुरेंद्र किशोर

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देश के समक्ष बढ़ रही चुनौतियों को देखते हुए राजद्रोह कानून के मामले में समग्र परिदृश्य को ध्यान में रखकर विचार करने की आवश्यकता है।

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देश में अक्सर यह बहस जोर पकड़ने लगती है कि अब राजद्रोह कानून की विदाई दे दी जाए।

  इसी शाश्वत बहस के बीच बीते दिनों विधि आयोग की ताजा रपट में 

इस कानून को बनाए रखने की अनुशंसा की गई है।

   देश की एकता और अखंडता के लिए इस कानून की आवश्यकता रेखांकित करते हुए विधि आयोग ने कहा है कि इस कानून में कुछ संशोधन किए जा सकते हैं।

  इस सिलसिले में निर्धारित सजा को बढ़ाने की बात भी उसने की।

 स्वाभाविक है कि ऐसी सिफारिश के बीच राजद्रोह कानून विरेाधी लाॅबी को नए सिरे से अपना विरोध करने का अवसर मिल गया है,लेकिन सामान्य समझ वाला कोई भी व्यक्ति सहजता से यह देख सकता है कि संप्रति देश में राजद्रोही मंशा एवं मनोवृति वाले तत्वों की संख्या बढ़ती जा रही है।

  ऐसे में इस कानून की समाप्ति राष्ट्रीय हितों के प्रति बड़ा आघात होगी।

  इस रिपोर्ट के संदर्भ में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने कहा कि विधि आयोग की सिफारिश बाध्यकारी नहीं है और हम सभी हितधारकों से विचार-विमर्श के बाद ही राजद्रोह कानून पर कोई अंतिम फैसला करेंगे।

    वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर नई चुनौतियों ने दस्तक दी है।

सरकार इससे जुड़ी समस्याओं का समाधान निकालने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।

इसमें न्यायिक तंत्र से भी आवश्यक सहयोग अपेक्षित है।

 न्यायिक तंत्र सामान्य अपराध और आतंकी अपराधों के बीच फर्क करें।

 राजद्रोह कानून की समाप्ति के पीछे सबसे बड़ा तर्क इसके दुरुपयोग का दिया जाता है।

 निःसंदेह ,दुरुपयोग रोकने के उपाय होने चाहिए,लेकिन याद रहे कि सिरदर्द होने पर सिर को तो नहीं काटा जाता।

  आखिर किस कानून का दुरुपयोग नहीं होता ?

फिर राजद्रोह कानून की समाप्ति पर इतना जोर क्यों ?

 खुद सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में यह कहा कि राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को लेकर उसने यानी सुप्रीम कोर्ट ने सन 1962 में जो दिशा निर्देश दिया,वह यानी सुप्रीम कोर्ट आज भी उससे सहमत है।

 हालांकि राजद्रोह कानून को लागू करने पर रोक से संबंधित हालिया फैसले से विचित्र स्थिति उत्पन्न हो रही है।

 उम्मीद है कि केंद्र सरकार संबंधित पक्षों से मंत्रणा कर  देशहित में सुप्रीम कोर्ट को ताजा स्थिति से अवगत कराएगी,क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी केंद्र सरकार की ही है।

  राजद्रोह कानून पर केंद्र सरकार किस तरह आम सहमति बनाती है,यह तो भविष्य के गर्भ में है।

लेकिन इस कानून से जुड़े कुछ विवादों पर दृष्टि डालने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि किसी भी देश के लिए इस प्रकार का कानून कितना आवश्यक है।(भारत के लिए तो और भी आवश्यक है क्योंकि बाहर-भीतर की राष्ट्रद्रोही शक्तियां इस देश को खरबूजे की तरह काट कर बांट लेना चाहती हैं।उसके लिए वे तेजी से काम भी कर रही हैं।)

  इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के 1962 के एक फैसले को याद करना उपयोगी होगा।

 26 मई, 1953 को बिहार के बेगूसराय में एक रैली हो रही थी।

 फारवर्ड कम्युनिस्ट पार्टी के नेता केदारनाथ सिंह रैली को संबांेधित कर रहे थे।

सरकार के विरुद्ध कड़े शब्दों का उपयोग करते हुए उन्होंने कहा कि ‘सी.आई.डी. के कुत्ते बरौनी में चक्कर काट रहे हैं।

कई सरकारी कुत्ते यहां इस सभा में भी हैं।

जनता ने अंग्रेजों को यहां से भगा दिया।

कांग्रेसी कुत्तों को गद्दी पर बैठा दिया।

इन कांग्रेसी गुंडों को हम उखाड़ फेंकेंगे।’

ऐसे उत्तेजक और अमर्यादित भाषण के लिए बिहार सरकार ने केदारनाथ सिंह के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दायर किया।(तब डा.श्रीकृष्ण सिंह बिहार के मुख्य मंत्री थे।) 

केदारनाथ सिंह ने पटना हाईकोर्ट की शरण ली।

हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी।

बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई।

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह से संबंधित आई.पी.सी.की धारा को परिभाषित किया।

20 जनवरी, 1962 को मुख्य न्यायाधीश बी.पी.सिन्हा (जो बिहार के ही शाहाबाद जिले के मूल निवासी थे)की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि ‘राजद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है ,जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा ,असंतोष या फिर सामाजिक आक्रोश बढ़े।’

चूंकि केदारनाथ सिंह के भाषण से ऐसा कुछ नहीं हुआ था,इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ सिंह को राहत दे दी।

(याद रहे कि आज इस देश के जो लोग राजद्रोह कानून की समाप्ति चाहते हैं,उनमें से अधिकतर लोग नक्सली और जेहादी हिंसा का प्रत्यक्ष या  परोक्ष रूप से समय -समय पर किसी न किसी बहाने समर्थन करते रहते हैं।इसलिए यह आम लोगों के लिए समझने की बात है कि राजद्रोह को समाप्त करवा कर कौन-कौन  शक्तियां अपने कैसे-कैसे लक्ष्य को हासिल करना चाहती हंै !!)

    हालांकि राजद्रोह के सभी मामले केदारनाथ सिंह सरीखे नहीं होते।

जैसे फरवरी, 2016 में जवाहरलाल नेहरू विश्व विद्यालय यानी जेएनयू परिसर में हुआ भारत विरोधी आयोजन। 

    उसमें कश्मीरी आतंकी अफजल गुरु की बरसी मनाई जा रही थी।

भारत की बर्बादी के नारे लगाए जा रहे थे।

नारा लगाने वाले जेएनयू में थे और इस आयोजन के कर्ताधर्ता कश्मीर में।

(कश्मीर में अफजल गुरु जैसे लोग क्या-क्या करते रहे हैं,यह किसी से कभी छिपा हुआ नहीं रहा है।)

जेएनयू मामले में राजद्रोह का केस दर्ज हुआ।

लेकिन विडंबना देखिए कि दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने मामला चलाने की  अनुमति देने में एक साल का समय लगा दिया।

मामला अब भी अदालत में लंबित हैै।

यह भी कोई संयोग नहीं कि आम आदमी पार्टी भी राजद्रोह कानून की समाप्ति के पक्ष में है।

(जेएनयू कांड के एक आरोपित कन्हैया कुमार अब कांग्रेस में हैं।पहले सी.पी.आई. में थे।

सी.पी.आई. के डी.राजा ने राज्य सभा में निजी विधेयक पेश कर रखा है।वह विधेयक राजद्रोह कानून की समाप्ति के लिए है।कांग्रेस तो राजद्रोह कानून की समाप्ति के पक्ष में है ही।)

सवाल वोट बैंक का जो है।

अब तो पापुलर फं्रट आॅफ इंडिया यानी पी.एफ.आई. भी देश में बड़े पैमाने पर सक्रिय है।

उसके पास से हाल में मिले साहित्य से यह स्पष्ट है कि उसका घोषित लक्ष्य है कि सन 2047 तक हथियारों के बल पर इस देश में इस्लामिक शासन कायम कर देना है।

  राजद्रोह कानून के अभाव में ऐसे तत्वों से निपटना आसान नहीं।

  किसी भी कानून के कार्यान्वयन पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के सामने जब पूरे तथ्य आ जाते हैं तो अक्सर वह अपना पिछला निर्णय बदल देता है।

जैसे सुप्रीम कोर्ट ने आपातकाल(1975-77)के दौरान अपने एक चर्चित निर्णय से बाद में स्वयं को अलग कर लिया था।

 वह निर्णय बंदी प्रत्यक्षीकरण से जुड़ा था।

 तब यानी आपातकाल में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘आपातकाल में कोई नागरिक अपने मौलिक अधिकारों की मांग नहीं कर सकता।’

  उल्लेखनीय है कि मौलिक अधिकारों में जीने का अधिकार भी शामिल है।

तब केंद्र सरकार के वकील नीरेन डे ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यह आपातकाल ऐसा है जिसके दौरान यदि शासन किसी की जान भी ले ले तो उस हत्या के विरुद्ध अदालत की शरण नहीं ली जा सकती।

सुप्रीम कोर्ट ने तब नीरेन डे की बात पर मुहर लगा दी थी।

वहीं,जब आपातकाल का आतंक समाप्त हुआ तो सुप्रीम कोर्ट को अपने उस निर्णय पर पछतावा हुआ।

ऐसी उदारता इस देश के सुप्रीम कोर्ट में मौजूद है।

ऐसे में राजद्रोह के मामले में भी शीर्ष अदालत को समग्र परिदृश्य को ध्यान में रखकर विचार करना चाहिए।

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(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ स्तभकार हैं।)

9 जून 23  

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नोट-इस लेख के बीच में जहां -तहां ब्रैकेट में कुछ वाक्य लिखे गए हैं।वे प्रकाशित लेख का हिस्सा नहीं हैं।बातें और भी स्पष्ट हों,इसलिए मैंने बाद में उसे जोड़ा है।याद रहे कि किसी ऐसे लेख में शब्द सीमा का ध्यान रखना पड़ता है।

    

  

  

   






गुरुवार, 8 जून 2023

 समर शेष हैं,नहीं पाप का भागी केवल व्याध,

जो तटस्थ हैं,समय लिखेगा,उनका भी अपराध !

   --- राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर

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भारतीय इतिहास के चार अध्याय

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(वर्तमान दौर सर्वाधिक खतरनाक)

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     अध्याय-1

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 जयचंद ने जब-जब पृथ्वीराज चैहान का साथ दिया, 

गोरी तब-तब हारा।

पर,जब निजी अपमान के कारण जयचंद चुप बैठ गया तो गोरी ने चैहान को हरा दिया।

भले अपुष्ट इतिहास के अनुसार बाद में जयचंद भी गोरी के हाथों ही मरा।पर,देश का इतिहास तो बदल चुका था।  

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कौन नहीं जानता कि मान सिंह ने अपनी सत्ता के लिए अकबर से समझौता करके महाराणा प्रताप के खिलाफ युद्ध लड़ा !ऐसे अन्य उदाहरण भी हैं।

किन्हीं दो-चार शासकों से 

ही इतिहास नहीं बदला।

लाखों-करोड़ों तटस्थ लोगों ने भी विदेशी आक्रंाताओं की प्रत्यक्ष-परोक्ष मदद की।

 आज यह देख-समझ कर आंखों से आंसू आ जाते हैं कि वही इतिहास आज दुहराया जा रहा है।

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अध्याय-2

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ब्रिटिश साम्राज्य के संस्थापक राबर्ट क्लाइव के अनुसार,

 ‘‘हिन्दुस्तान को गुलाम बनाने के लिए 

जब हमने पहला युद्ध किया और जीतने के बाद हम जब विजय जुलूस निकाल रहे थे तो वहां मौजूद हिन्दुस्तानी जुलूस देखकर तालियां बजा रहे थे।

अपने ही देश के राजा के हारने पर वे खुशी से हमारा स्वागत कर रहे थे।

  अगर वहां मौजूद सब हिन्दुस्तानी मिलकर उसी समय को सिर्फ एक -एक पत्थर उठाकर हमलोगों ही मार देते तो हिन्दुस्तान आजाद हो जाता।उस समय हम अंग्रेज सिर्फ तीन हजार थे।’’

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अध्याय-3

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 ब्रिटिश इतिहासकार सर जे.आर.सिली (1834-1895)ने लिखा है कि ब्रिटिशर्स ने भारत को कैसे जीता।

मशहूर किताब ‘द एक्सपेंसन आॅफ इंगलैंड’ के लेखक सिली  के अनुसार , 

‘‘हमने (यानी अंग्रेजों ने) नहीं जीता,बल्कि खुद भारतीयों ने ही भारत को जीतकर हमारे प्लेट पर रख दिया।’’

  सिली ने लिखा है कि ‘‘भारत को जीतने की दिशा में जिस समय हमने पहली सफलता प्राप्त की थी,उसी समय हमने अमेरिका में बसी अपनी जाति के तीस लाख लोगों को,जिन्होंने इंगलैंड के ताज के प्रति अपनी भक्ति को उतार फेंक दिया था,अनुशासन के तहत लाने में पूरी विफलता का मुंह देखा था।’’

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अध्याय-4

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हाल में अतिवादी जेहादी संगठन पाॅपुलर फं्रट आॅफ इंडिया का एक गुप्त केंद्र बिहार के फुलवारीशरीफ में पकड़ा गया।

उसके पास से बरामद गुप्त कागजात से यह पता चला कि पी.एफ.आई. हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देने के लक्ष्य के तहत पूरी तरह सक्रिय है।वह हजारों हथियार अपने लश्करों को बांट रहा है।

उसका एक राजनीतिक संगठन है जिसका नाम है--एस.डी.पी.आई.।

इस दल के साथ हाल के कर्नाटका चुनाव में भी कांग्रेस ने पिछले दरवाजे से तालमेल किया।

नतीजतन कांग्रेस को अधिकांश मुस्लिम वोट मिल गये।मुसलमानों ने कांग्रेस से कुछ खास शर्तें मनवाने के बाद  जद एस को वोट नहीं दिया।

इससे पहले सन 2018 के विधान सभा चुनाव में भी पी.एफ.आई.के साथ कांग्रेस ने कर्नाटक में 25 विधान सभा सीटों पर तालमेल किया था।

कांगे्रस तथा अन्य सभी दलों को मालूम है कि पी.एफ.आई.का लक्ष्य क्या है। 

  फिर भी कोई भी तथाकथित सेक्युलर दल या प्रगतिशील बुद्धिजीवी पी.एफ.आई. और उसके कारनामों के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलता।देश व हमारी अगली पीढ़ियों के लिए कितनी खतरनाक बात है !

  यानी, आज एक बार फिर मध्य युग दुहराया जा रहा है।

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पी.एफ.आई. तथा अन्य अतिवादी मुस्लिम संगठन सेक्युलर दलों की प्रत्यक्ष-परोक्ष मदद से लव जेहाद,अवैध घुसपैठ,धर्मांतरण और अन्य तरीकों से इस देश में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ा रहे हैं।लव जेहाद ने तो महामारी का रूप ग्रहण कर लिया है।

जाकिर नाइक ने, जिसे कांग्रेसी दिग्विजय सिंह शांति दूत कहते हैं,कहा है कि भारत में मुसलमानों की आबादी बढ़कर 40 प्रतिशत हो चुकी है।

पिछले कुछ ही साल में देश के कई हिन्दू बहुल जिले मुस्लिम बहुल हो चुके हैं।

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और केरल में सी.पी.एम.सरकार इनके सबसे बड़े मददगार हैं।

अब कर्नाटका के सिद्धारमैया भी ममता और सी.पी.एम. से इस मामले में प्रतियांगिता कर रहे हैं।हालांकि अन्य सेक्युलर दल भी दूध के धोए नहीं हैं।

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अब अगले दस-पंद्रह वर्षों में हिन्दुओं के ही एक हिस्से के मौन व मुखर समर्थन से पी.एफ.आई व अन्य क्या-क्या गुल खिलाने वाले हैं,उसकी कल्पना कर लीजिए।

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7 जून 23

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इतिहास के इस नाजुक मोड़ पर ऐसे कटु सत्य लिखने के लिए मैं मजबूर हो गया था।

यदि नहीं लिखता तो मेरी अंतरात्मा मुझे माफ नहीं करती।

मेरा यह पोस्ट जिसे जैसा लगे,लगता रहे,मैंने जीवन की संध्या बेला में सिर्फ लेखक -पत्रकार के रूप में अपना धर्म निभाया है।

 

  


मंगलवार, 6 जून 2023

       

    जोधा -अकबर की झूठी कहानी 

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गीतकार जावेद अख्तर की एक खास टिप्पणी यू ट्यूब पर उपलब्ध है।

उसमें वे यह कहते सुने जा रहे हैं कि 

‘‘अकबर की कोई पत्नी नहीं थी जिसका नाम जोधा बाई था।’’

आज के ‘‘राष्टीय सहारा’’ में भी इसी तरह की बात छपी है।

 उदय ठाकुर लिखते हैं कि 

‘‘जोधा अकबर की कहानी झूठी निकली।

सैकड़ों सालों से प्रचारित झूठ 

का खंडन हुआ।

अकबर की शादी हरकू बाई से हुई जो मान सिंह की दासी थी।

जयपुर रिकार्ड व पुरातत्व विभाग भी यही मानता है कि जोधा एक झूठ है जिस झूठ को वामपंथी इतिहासकारों व फिल्मी भांडी ने रचा है।’’

---उदय ठाकुर

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मुगल ए आजम और जोधा अकबर की चर्चा करते हुए वामपंथी गीतकार जावेद अख्तर ने भी इस संदर्भ में यह भी कहा है कि ‘‘फिल्मों को हिस्ट्री मत समझिए और हिस्ट्री को फिल्म मत समझिए।’’

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याद रहे कि अकबर मीना बाजार भी लगवाता था।

बाजार क्यों लगता था ?

उसमें  किन -किन लोगों का प्रवेश होता था ?

वे वहां क्या करते थे ?

इतिहास के गंभीर विद्यार्थी इन प्रश्नों के जवाब जानते हैं।



 




मेरा यह लेख 4 जून, 23 को वेबसाइट ‘‘मनी कंट्रोल हिन्दी’’ पर प्रकाशित

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आखिर किस महारानी ने हारे हुए पति के लिए किले का दरवाजा बंद कर दिया था ?

वह उदयपुर के महाराणा की पुत्री थी और महाराजा जसवंत सिंह को ब्याही गयी थी

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इस अभूतपूर्व घटना का विवरण किसी भारतीय ने नहीं बल्कि फ्रांसीसी इतिहासकार बर्नियर ने लिखा है।

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सुरेंद्र किशोर

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मध्य युग में राजस्थान की एक महारानी  ने अपने पराजित 

महाराजा पति के लिए किले का दरवाजा बंद करवा दिया था।

     फ्रांसिसी इतिहासकार बर्नियर ने लिखा है कि महाराजा जसवंत सिंह जब युद्ध में हार कर अपने किले के गेट पर वापस पहुंचे तो उनकी पत्नी ने किले का दरवाजा बंद करवा दिया।

उसने पति की हार से खुद को अपमानित महसूस किया था।

अपने राज घराने की परंपरा को ध्यान में रखते हुए वह चाहती थी कि पति या तो जीत कर आएं या युद्ध भूमि में ही शहीद हो जाएं।

याद रहे कि कई राज घरानों की महिलाएं पराजय के बाद खुद को जला लिया करती थीं।क्योंकि उन्हें आशंका रहती थी कि आक्रांता मृत शरीर के साथ भी कुकृत्य कर सकते थे।ऐसा ही उन आक्रांताओं का इतिहास था।

  एक तरफ तो बर्नियर ने ऐसा लिखा है,पर,दूसरी तरफ 

  आधुनिक भारत में बंधकों के कुछ सौ रिश्तेदारों ने

अटल बिहारी सरकार पर भारी दबाव बनाकर सन 1999 में खूंखार आतंकवादी मसूद अजहर और उसके दो साथियों को  रिहा कर देने के लिए बाध्य कर दिया था।

अजहर के गुर्गों ने भारतीय विमान का अपहरण करके फिरौती में मसूद अजहर की रिहाई की मांग की थी।

  आज भी जब कुछ खास  आतंकवादियों के खिलाफ सरकार कोई कार्रवाई करती है तो इसी देश के कुछ खास तरह के (वोटलोलुप) लोगों को भारी दर्द होने लगता है।

  बर्नियर के अनुसार महाराजा जसवंत सिंह राठौर अपने 30 हजार राजपूत वीरों को लेकर विदेशी हमलावरों की सेना के साथ युद्ध करने के लिए गया था।

 राजपूतों ने पूरी बहादुरी दिखाई।

जहां तक उनका वश चला वे लड़े भी।

परंतु आखिर में हुआ यह कि शत्रु सेनाओं ने हर ओर से घेरा डाल दिया। घेराव से बचने के लिए महाराजा जसवंत सिंह राठौर अपने 20 हजार सैनिकों को लेकर अपनी राजधानी वापस पहुंच गया।

याद रहे कि उसके 10 हजार सैनिक युद्ध में मारे जा चुके थे।

 महाराजा के लौटने की खबर सुनकर महारानी के चेहरे पर जो भाव व्यक्त हो रहे थे,उसे देख कर बर्नियर को यही लग रहा होगा,जो उसने लिखा।

बर्नियर के अनुसार महाराजा की पत्नी उदय पुर के महाराणा की पुत्री थी।

वह राठौर को युद्ध से हार कर लौटते देखना नहीं चाहती थी।वह समझती थी कि वैसा व्यक्ति न तो मेरा पति होने लायक है और न ही राणा का दामाद होने लायक है।

 महारानी ने बंद द्वार के उस पार खड़े अपने पति को यह संदेश भिजवाया कि या तो जीत कर आएं या वीर गति को प्राप्त हो जाएं।

यह संदेश पाते ही महाराजा फिर से युद्ध भूमि की ओर चला गया और वहीं लड़ते -लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गया।

  बर्नियर ने लिखा कि बाद में महारानी ने खुशी -खुशी अपने लिए 

चिता जलवायी और उसमें कूद गयी।

बर्नियर ने लिखा कि ऐसी हिम्मत मैंने इसी देश की महिलाओं में देखी।

  पर, इस घटना की तुलना सन 1999 की एक घटना से करें।

उस साल के दिसंबर में कंधार विमान अपहरण कांड हुआ था।

उस विमान में डेढ़ यात्री बंधक थे।

वे जीवन और मौत के बीच झूल रहे थे।

इधर नई दिल्ली में प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के आवास के समक्ष उनके घरों के स्त्री-पुरूषों की भीड़ तरह -तरह के नारे लगा कर सरकार पर दबाव डाल रही थी।

भीड़ में शामिल स्त्रियां अधिक गुस्से में थीं।भीड़ यह मांग कर रही थी कि केंद्र सरकार किसी भी कीमत पर उन बंधकों को रिहा कराए।

उधर कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ  अघोषित युद्ध में संलग्न आतंकवादियों ने बड़ी कीमत मांगी थी।

‘युद्धरत’ मसूद अजहर नामक खूंखार आतंकवादी को रिहा कर देने की मांग थी।इस युद्ध की गंभीरता की कत्तई परवाह उन परिजनों को नहीं की।

 उनके लिए देश के ऊपर उनके अपने रिश्तेदार थे।

 सरकार पर जब बंधकों के रिश्तेदारों से भारी दबाव पडा़ तो उसने सर्वदलीय बैठक बुलाई।

सोनिया गांधी सहित सभी प्रमुख दल के नेता बैठक में आए।

सर्वदलीय बैठक ने सर्वसम्मति से अटल सरकार को यह सलाह दी कि वे बंधकों को छुड़ाने के लिए कुछ भी करें।

 मसूद अजहर और दो अन्य खूंखार आतंकवादियों को जेल से निकाल कर उन्हें केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के संरक्षण में कंधार पहुंचा दिया गया।

एक वह महाराजा जसवंत सिंह राठौर की पत्नी थी और दूसरे एक आधुनिक जसवंत सिंह थे जिन्होंने वोट के लिए आतंकवादियों को कंधार पहंुचा दिया।

 पर, इस प्रकरण में सिर्फ आधुनिक जसवंत सिंह जिम्मेदार नहीं थे।

बल्कि सर्वदलीय बैठक में शामिल वे सारे नेता गण जिम्मेदार थे।

इन विपक्षी नेताओं में से कई नेताओं ने बाद में राजनीतिक कारणों से उस कंधार रिहाई के लिए अटल सरकार को दोषी ठहराया जबकि उस फैसले में वे खुद भी शामिल थे।

सन 2016 में पठानकोट में आतंकी हमला मसूद अजहर ने ही करवाया था।उससे पहले भी न जाने उसने और उसके साथियों ने भारत में कितने सौ लोगों के खून बहाए और बहवाए !

याद रहे कि अमेरिका तथा इसरायल जैसे देश ऐसे किसी अपराधी को  किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ते, चाहे वे बंधकों के साथ जो भी व्यवहार करें।उन देशों की जनता भी  सरकार के ऐसे किसी  निर्णय को स्वीकार करती  है।

मध्य युग की उस की महारानी ने जो काम किया, अमेरिका -इसरायल जैसे देश आज भी कर रहे हैं।

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4 जून 23

   

  




    

   


रविवार, 4 जून 2023

 वोट बैंक का दबाव रंग दिखाने लगा

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कर्नाटका की नवगठित कांग्रेस सरकार 

गो वध पर रोक हटाने पर अमादा !

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क्या अनजाने में इस तरह भाजपा की सेवा नहीं कर रही कांग्रेस ??

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सुरेंद्र किशोर

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इस देश के संविधान के नीति निदेशक तत्व वाले चैप्टर में लिखा हुआ है कि राज्य गो वध को रोकने की दिशा में कदम उठाएगा(अनुच्छेद- 48)।

किंतु कांग्रेस की कर्नाटका सरकार के पशुपालन मंत्री वी.वेंकटेश ने सवाल उठाया है कि जब भैंस का वध किया जा सकता है तो गाय का क्यों नहीं ?

संभवतः कर्नाटका सरकार इस संबंध में संबंधित कानून में संशोधन करेगी ताकि गायों का भी वध किया जा सके।जाहिर है कि वह सरकार किसके दबाव में यह काम करने जा रही है।

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और कुछ नहीं,यह मुस्लिम वोट बैंक का कर्नाटका सरकार पर दबाव का नतीजा है।

अतिवादी मुस्लिम संगठनों का कर्नाटका सरकार पर दबाव है कि वह 

उनकी इच्छा के अनुसार अन्य कानूनों और नियमों में संशोधन करे।

कुछ अन्य मामलों में राज्य सरकार वैसा करने  भी जा रही  है।

याद रहे कि कर्नाटका के मुसलमानों ने हाल के विधान सभा चुनाव में ज द एस को छोड़कर अपना एकमुश्त मत कांग्रेस को दे दिए । कर्नाटका में कांग्रेस सरकार इसीलिए बन सकी है।

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कांग्रेस कहती है कि भाजपा भावनाएं उभार कर हिन्दुओं के वोट ले लेती है।संभव है कि वैसा वह करती होगी।

किंतु कांग्रेस यह बताए कि गो वध की खुलेआम वकालत करने वाले अपने मंत्री के ताजा बयान पर देश भर के हिन्दुओं की भावनाएं उभरेगी या नहीं।उभरेगी तो उसके लिए 

कौन जिम्मेदार होगा ?

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कर्नाटका के मंत्री के. वेंकटेश के बयान की गूंज पूरे देश भर में नहीं फैलेगी ?

अक्सर संविधान की दुहाई देने वाली कांग्रेस का यह बयान संविधान सम्मत है ?

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गाय और गंगा के प्रति हमारे पूर्वजों की भावनाओं से हम अपने बचपन से वाकिफ हंै।

हमारे किसान परिवार में हमेशा दो गायें पाली जाती थीं।

जब कोई बूढ़ी गाय मरती थी तो हमारे परिवार की महिलाएं उसी तरह रोती थीं जिस तरह किसी परिजन के निधन पर रोती थीं।

गाय के उस मृतक शरीर को हमने सादर जमीन में गाड़ते हुए भी देखा है।

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हमारे यहां की देसी गाय के दूध में ऐसा विशेष औषधीय तत्व मौजूद रहता है जैसा किसी अन्य नस्ल की गाय में नहीं।

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आजादी तक गंगा में स्वच्छ पानी पाया जाता था।

मध्य युग में तो अकबर बादशाह गंगा जल मंगवा कर रोज पीता था।

पर,आजादी के बाद की हमारी सरकारों ने गंगा को बांध कर और उसके किनारे प्रदूषण फैलाने कारखानों की संख्या बढ़ा कर गंगा जल को नाले के जल में परिणत कर दिया।

कांग्रेस सरकार ने कभी हिन्दू भावनाओं का ध्यान नहीं रखा।भाजपा के उभरने के जो कारण रहे उनमें कांग्रेसी सरकारों के भीषण भ्रष्टाचार,बेशर्म परिवारवाद और गाय-गंगा-पीपल आदि की उपेक्षा।

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4 जून 23

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 वोट बैंक का दबाव रंग दिखाने लगा

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कर्नाटका की नवगठित कांग्रेस सरकार 

गो वध पर रोक हटाने पर अमादा !

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क्या अनजाने में इस तरह भाजपा की सेवा नहीं कर रही कांग्रेस ??

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सुरेंद्र किशोर

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इस देश के संविधान के नीति निदेशक तत्व वाले चैप्टर में लिखा हुआ है कि राज्य गो वध को रोकने की दिशा में कदम उठाएगा(अनुच्छेद- 48)।

किंतु कांग्रेस की कर्नाटका सरकार के पशुपालन मंत्री वी.वेंकटेश ने सवाल उठाया है कि जब भैंस का वध किया जा सकता है तो गाय का क्यों नहीं ?

संभवतः कर्नाटका सरकार इस संबंध में संबंधित कानून में संशोधन करेगी ताकि गायों का भी वध किया जा सके।जाहिर है कि वह सरकार किसके दबाव में यह काम करने जा रही है।

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और कुछ नहीं,यह मुस्लिम वोट बैंक का कर्नाटका सरकार पर दबाव का नतीजा है।

अतिवादी मुस्लिम संगठनों का कर्नाटका सरकार पर दबाव है कि वह 

उनकी इच्छा के अनुसार अन्य कानूनों और नियमों में संशोधन करे।

कुछ अन्य मामलों में राज्य सरकार वैसा करने  भी जा रही  है।

याद रहे कि कर्नाटका के मुसलमानों ने हाल के विधान सभा चुनाव में ज द एस को छोड़कर अपना एकमुश्त मत कांग्रेस को दे दिए । कर्नाटका में कांग्रेस सरकार इसीलिए बन सकी है।

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कांग्रेस कहती है कि भाजपा भावनाएं उभार कर हिन्दुओं के वोट ले लेती है।संभव है कि वैसा वह करती होगी।

किंतु कांग्रेस यह बताए कि गो वध की खुलेआम वकालत करने वाले अपने मंत्री के ताजा बयान पर देश भर के हिन्दुओं की भावनाएं उभरेगी या नहीं।उभरेगी तो उसके लिए 

कौन जिम्मेदार होगा ?

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कर्नाटका के मंत्री के. वेंकटेश के बयान की गूंज पूरे देश भर में नहीं फैलेगी ?

अक्सर संविधान की दुहाई देने वाली कांग्रेस का यह बयान संविधान सम्मत है ?

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गाय और गंगा के प्रति हमारे पूर्वजों की भावनाओं से हम अपने बचपन से वाकिफ हंै।

हमारे किसान परिवार में हमेशा दो गायें पाली जाती थीं।

जब कोई बूढ़ी गाय मरती थी तो हमारे परिवार की महिलाएं उसी तरह रोती थीं जिस तरह किसी परिजन के निधन पर रोती थीं।

गाय के उस मृतक शरीर को हमने सादर जमीन में गाड़ते हुए भी देखा है।

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हमारे यहां की देसी गाय के दूध में ऐसा विशेष औषधीय तत्व मौजूद रहता है जैसा किसी अन्य नस्ल की गाय में नहीं।

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आजादी तक गंगा में स्वच्छ पानी पाया जाता था।

मध्य युग में तो अकबर बादशाह गंगा जल मंगवा कर रोज पीता था।

पर,आजादी के बाद की हमारी सरकारों ने गंगा को बांध कर और उसके किनारे प्रदूषण फैलाने कारखानों की संख्या बढ़ा कर गंगा जल को नाले के जल में परिणत कर दिया।

कांग्रेस सरकार ने कभी हिन्दू भावनाओं का ध्यान नहीं रखा।भाजपा के उभरने के जो कारण रहे उनमें कांग्रेसी सरकारों के भीषण भ्रष्टाचार,बेशर्म परिवारवाद और गाय-गंगा-पीपल आदि की उपेक्षा।

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4 जून 23

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शुक्रवार, 2 जून 2023

यदाकदा

सुरेंद्र किशोर

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सजा मिलते ही सदस्यता की समाप्ति वाले प्रावधान को बदला जाए 

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निचली अदालत से सजा मिलने के बाद सपा नेता आजम खान की विधान सभा की सदस्यता गत साल चली गयी।

वे उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य थे।

इस साल ऊपरी अदालत ने उस केस में उन्हें सजामुक्त कर दिया।

इस बीच उस चुनाव क्षेत्र से एक अन्य व्यक्ति चुन लिया गया।

यदि आजम खान का यह मामला बारी -बारी से उच्चत्तर अदालतों में जाए और वहां से भी आजम खान निर्दोष ही घोषित हो जाएं तो क्या कहा जाएगा ?

क्या यह माना जाएगा कि आजम खान के साथ न्याय हुआ ?

दरअसल यह मामला सिर्फ आजम खान का नहीं है।

इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि राहुल गांधी के मामले में भी ऊपरी अदालत ऐसा ही जजमेंट नहीं दे देगी। 

दरअसल यह प्रकरण लिली थाॅमस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से जुड़ा हुआ है।

उस केस में अदालत ने कहा कि यदि किसी एम.पी.या एम.एल.ए. को दो वर्ष या उससे अधिक सजा होगी तो सदन की सदस्यता तत्काल प्रभाव से चली जाएगी।

अब इस जजमेंट के एक पक्ष को लेकर सुप्रीम का ध्यान आकृष्ट किया जाना चाहिए।

वह यह कि ऐसी परिस्थिति में क्या किया जाए जब ऊपरी अदालत किसी को दोषमुक्त कर दे और उस बीच उस क्षेत्रमें उप चुनाव हो जाए ?

मौजूदा स्थिति बनी रहेगी तो सजामुक्त हुए लोग दिल से यह कैसे यह स्वीकार करेंगे कि उनके साथ न्याय हुआ ?     

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आर्यभट्ट स्मारक 

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बिहार सरकार ने 2009 में यह घोषणा की थी कि आर्यभट्ट से जुड़े बिहार के तीन स्थलों को विकसित किया जाएगा।

वे स्थान हैं खगौल,तरेगना और परेब।

नीतीश सरकार आम तौर पर अपने वायदे को निभाती रही है।यदि इस बीच यह काम हो चुका है या हो रहा है तो अच्छी बात है।

यदि नहीं हुआ तो इन पंक्तियों के जरिए याद दिलाई जा रही है। 

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मेउिकल काॅलेजों में आरक्षण

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मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने जून, 2021 में यह घोषणा की थी कि बिहार के मेडिकल और इंजीनियरिंग काॅलेजों में लड़कियों के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की जाएंगी।

तब उनकी इस घोषणा का स्वागत हुआ है।

हाल में भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा के

नतीजे आए।

लड़कियों ने लड़कों से बेहतर परिणाम दिए हैं।

विद्यालय बोर्ड परीक्षाओं के नतीजों में भी हम यह पाते हैं कि लड़कियों के रिजल्ट बेहतर हो रहे हैं।

आज इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षा -परीक्षा की गुणवत्ता पर यदा कदा  सवाल उठते रहते हैं ।

ऐसे में लड़कियों को यदि अधिक संख्या में वहां दाखिला मिलेगा तो आम तौर पर मेडिकल-इंजीनियरिंग की शिक्षा -परीक्षा -रिजल्ट में बेहतरी आएगी।

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कैसे बनें सुव्यवस्थित काॅलोनियां

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बिहार सरकार ने सत्तर के दशक के पटना के दीघा में और अस्सी के दशक में पटना के ही धनौत में जमीन का अधिग्रहण किया।

प्रादेशिक राजधानी में व्यवस्थित काॅलोनियां बसाने के नेक उद्देश्य से वैसा  हुआ था।

पर,दोनों महत्वाकांक्षी योजनाओं में भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया।

उसके बाद राज्य सरकार ने काॅलोनी विकसित करने के लिए जमीन के  अधिग्रहण का काम त्याग दिया।नतीजतन अब काॅलोनियां बसाने की पूरी जिम्मेदारी निजी डेवलपर्स पर आ गयी है।

अधिकतर निर्माणकर्ताओं को किसी तरह की ‘सुव्यवस्था’ से प्यार नहीं है।

 पटना और आसपास के इलाकों में बड़े पैमाने पर अव्यवस्थित काॅलोनियां बस रही हैं। स्लम विकसित हो रहे हैं।वे एक दिन राज्य सरकार के लिए भी सिरदर्द बनेंगे।क्यों नहीं सरकार अभी से उन डेवलपर्स और बिल्डर्स पर नजर रखती है ?

यदि उन्हें किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो सरकार उन्हें करे।यदि वे  अनर्थ कर रहे हैं तो उन्हें समय रहते सरकार रोके।

निर्माणधीन व प्रस्तावित काॅलोनियांे में राज्य सरकार ही सड़क और नाले बनाए। 

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भूली-बिसरी यादें

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इस देश में गठबंधनों की सरकारों का मिलाजुला अनुभव रहा है।

पहली बार केंद्र में सन 1977 में गैर कांग्रेसी सरकार बनी।

चुनाव के ठीक पहले चार दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनायी थी।

 दल के भीतर दल थे।

वह सरकार 27 महीनों के बाद गिर गयी।

उसकी जगह कांग्रेस के बाहरी समर्थन से चरण सिंह प्रधान मंत्री बने।

वे तो संसद का भी सामना नहीं कर सके।सन 1989 में भाजपा और वाम दलों के बाहरी समर्थन

से वी.पी.सिंह की सरकार बनी।

 वह सरकार 343 दिन ही चली।

उनकी जगह कांग्रेस के बाहरी समर्थन से चंद्रशेखर की सरकार बनी।वह 223 दिन चली। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी।वह 16 दिन चली।

सन 1996 में ही एच.डी.देवगौड़ा की सरकार बनी।वह 324 दिन चली।

उसके बाद आई.के.गुजराल की सरकार 332 दिन चली।

हां,अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 1998 में बनी सरकार लगातार 6 साल 64 दिन चली।   

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और अंत में

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किसी भी अगले चुनाव के दौरान आप सब मतदान केंद्रों पर जरूर जाइए।

तभी आप अपनी पसंद की सरकार बनवा सकेंगे।

आप चाहे जिस किसी दल,नेता या विचारधारा के समर्थक हों,किंतु आपके मन लायक सरकार तभी बन सकेगी, जब आप मतदान करेंगे।मतदान के दिन न तो आप घर में बैठे रहें और न ही छुट्टी मनाएं। लोकतंत्र का उत्सव मनाएं। 

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2 जून 23


 समकालीनों के भी अच्छे कामों की चर्चा वाला कठिन 

काम कर रहे हैं एक बड़े संपादक शंभूनाथ शुक्ल

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सुरेंद्र किशोर

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दुनिया में सर्वाधिक ‘कष्टकर’ काम क्या है ?

मेरी समझ से तो दूसरों की प्रशंसा में दो शब्द बोलना या लिखना।

खासकर उनके बारे में लिखना जो समकालीन हों,समकक्ष हों,सहकर्मी रहे हों, और लगभग समवयस्क भी।

  पर, इतना कठिन काम भी शंभूनाथ शुक्ल सहज भाव से कर लेते हैं।

पहले भी कर चुके हैं।

क्योंकि वे कोई कुंठा भाव नहीं पालते।

शंभूनाथ जी कोई मामूली लेखक नहीं हैं।

वे सन 1999 से ही राष्ट्रीय अखबारों के ंसंपादक रहे हैं।

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इधर शुक्ल जी अपने फेसबुक वाॅल पर एक श्रृंखला चला रहे हैं जिसका नाम है--‘जिनसे मैंने भाषा सीखी।’

नौ किस्तें प्रस्तुत कर चुके हैं।

सुखद आश्चर्य-उस श्रृंखला में शुक्ल जी ने मुझे भी शामिल कर लिया है।

इस बार उन्होंने रवीश कुमार पर लिखा है।

मैं जब जनसत्ता में था तो शुक्ल जी मेरी काॅपी शुद्ध किया करते थे।

   पर,पता नहीं,उन्होंने मुझसे क्या सीखा जो अपनी इस श्रंृखला में शामिल किया !

खैर, मुझ पर लिखकर मुझे कुछ और जीने का उन्होंने सहारा दे दिया।

इसमें एक और बात हुई है।

जिन -जिन हस्तियों पर उन्होंने लिखा है,वे मुझसे बहुत बड़े लोग हैं।

पर,मुझ पर लिखे शुक्ल जी के विवरण पर अब तक सर्वाधिक ‘लाइक’ आई है।

वैसे कुल मिलाकर (यानी,लाइक -कमेंट -शेयर)चंचल जी मुझसे आगे हैं।

यह बात मुझे चकित करती है।

चंचल बीएचयू-716 लाइक

हेमंत शर्मा-514 लाइक

रवीश कुमार-346 लाइक

डा.शारिक अहमद खान-475 लाइक

वीर विनोद छाबड़ा--422 लाइक

राकेश तिवारी--292 लाइक 

प्रियदर्शन-231 लाइक 

वीरेंद्र यादव-424 लाइक 

सुरेंद्र किशोर--735 लाइक

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 अभी और किस्तें आनी हैं।

शुक्ल जी मुक्त चिंतक और खुले दिल -ओ -दिमाग के पत्रकार रहे हैं।

लगता है कि उनके अधिकतर फेसबुक फं्रेड भी मुक्त चिंतक ही हैं।

मैं भी पूरा नहीं तो थोड़ा-थोडा़ मुक्त चिंतक ही हूं।

लगता है कि इसीलिए इस श्रृंखला में शामिल किए गए बड़ों की अपेक्षा  अधिक ‘लाइक’ मुझे मिली हंै।

वैसे इसका कोई कारण शुक्ल जी भी बता ही सकते हैं।

क्योंकि यह तो अचंभे की बात मानी जाएगी  कि आज के एक बड़े वर्ग के लिए स्टार रवीश कुमार से भी अधिक लाइक पटना जिले के एक गांव में बैठा मुझे मिल जाए !!

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 कभी के हम समाजवादी युवजन के स्टार रहे चंचल बीएचयू के गांव जाकर शुक्ल जी ने उनके बारे में लिखा है।

उस पर चंचल जी ने शुक्ल जी को संबोधित करते हुए जो कुछ लिखा है ,उसे मैं यहां पेश कर रहा हूं।--

‘‘आज तो हम धन्य हो गये पंडित जी आपकी कृपादृष्टि आपका प्यार पाकर।

एक साथ कई रंगों में डूब उतरा रहा हूं।

कुछ दबा हुआ भी महसूस कर रहा हूं और बार -बार खुद से पूछ रहा हूं  

कि क्या हम ऐसे हैं ?

लेकिन एक शब्द बार -बार फंस रहा है-चंचल के साथ ‘सर’ इसे मिटा दीजिए पंडित जी तो जायका और बढ़ जाएगा।...’’

अपने बारे में शुक्ल जी की टिप्पणी पढ़कर मुझ मंे भी चंचल जी जैसी ही भावानुभूति हुई है।वैसे शुक्ल जी का आभारी हूं।उनको एक हद तक इस स्थायी सवाल का जवाब मिला है कि.‘‘...सुरेंद्र किशोर ने अपने जीवन में किया ही क्या है ?’’

यानी,वैसे सफल लोगों के लिए असफल जीवन रहा है मेरा। 

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23 अप्रैल 23