शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

 कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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सरकार के अलावा सामाजिक संगठन भी चलाए दहेज विरोधी अभियान

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दहेज जनित बुराइयों की जितनी खबरें बाहर आती हैं,उससे बहुत अधिक खबरें घरों की दीवारों के भीतर ही रह जाती हैं।

दहेज प्रताड़ना की पीड़िताएं घुट -घुट कर उपेक्षित जीवन बिताती हैं।

  हर पीड़िता के पिता इतने प्रभावशाली व साहसी व साधनसंपन्न नहीं होते कि वे दहेज दानवों को सजा दिला सकें।

 यह कहना कठिन है कि शराब-पान से मरने वालों की संख्या अधिक है या दहेज दानवों से पीड़ित होकर घुट-घुट कर रोज मरने वाली कितनी नारियां ! 

  यदि इस देश-प्रदेश में सक्रिय सामाजिक व राजनीतिक संगठनों ने दहेज पीडि 

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  गंगा की अविरलता में बाधक 

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बादशाह अकबर दूर से मंगा कर रोज गंगा जल पीता था।

वह उसकी निर्मलता व औषधीय गुणों से परिचित था।

ब्रिटिश शासकों ने भी गंगा को गंदा नहीं होने दिया या नहीं किया।

बचपन में मैं गंगा के किनारे घुटने भर पानी में खड़ा होता था तो मेरे पैरों की अंगुलियां भी दिखाई पड़ती थी।

   आजादी के बाद गंगा को बांध कर और इसके किनारे बड़ी संख्या में कारखाने लगाने की अनुमति देकर इसे गंदे नाले में परिणत कर दिया गया।

गंगा को गंदा करने में कारखाने से निकले गंदे जल की भमिका महत्वपूर्ण रही।

कुम्भ मेले के समय गंगा के ऊपरी प्रवाह के किनारे स्थित कारखानों को कुछ दिनों के लिए बंद करना पड़ता है।

  जानकार सूत्रों के अनुसार सन 1985 से 2014 तक गंगा की सफाई पर चार हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए।

नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता संभालने के बाद अगले 15 साल के लिए गंगा की सफाई पर 30 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई है।

उस में से अब तक 11 हजार करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।

कई जगह गंगा जल में गुणात्मक सुधार हुआ भी है।

.पर,सवाल है कि पूरी गंगा साफ कब होगी ?

जानकार लोग बताते हैं कि उसके लिए न सिर्फ गंगा से मिलने वाली नदियों को साफ करना होगा बल्कि गंगा की अविरलता भंग करने व दूषित करने वाले बांधों -नहरों-कारखानों को लेकर कठोर कदम उठाने होंगे।

औषधीय गुणों के कारण गंगा को विशेष स्थान देना होगा।

प्रकृति किसी अन्य देश को ऐसी नदी दी होती तो वह देश इसे संजो कर रखता।

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देश के सर्वाधिक स्वच्छ नगर इन्दौर से हाल में एक चिकित्सक पटना आए थे।

पटना नगर की गंदगी देखकर उन्होंने कुछ टिप्पणी भी की।

स्वाभाविक ही है कि उन्होंने क्या कहा होगा !

बिहार की राजधानी पटना में गंदगी व मुख्य ड़कों पर भी अतिक्रमण की समस्या पुरानी है।इससे आगंतुकों में बिहार की छवि खराब होती है।

कानून -व्यवस्था के मामले में तो अब इस राज्य की स्थिति बेहतर है।क्योंकि पिछले डेढ़ दशक में इस दिशा मंें राज्य सरकार ने काम किया है।उसी तरह की गंभीरता नगर की सफाई व अतिक्रमण मुक्ति को लेकर दिखाने में बिहार सरकार के सामने कौन सी दिक्कतें हैं ?

क्या अतिक्रमणकारी  व साफ-सफाई

में जानबूझ कर कोताही बरतने वाले लोग बिहार सरकार 

से अधिक ताकतवर हंै ? 

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भूली-बिसरी याद

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भारतीय संसद में दशकों से जारी हुड़दंग को लेकर लोक सभा के पूर्व स्पीकर बलिराम भगत की टिप्पणी भुलाए नहीं भूलती।

कई साल पहले उन्होंने कहा था कि हमारी संसद कैरिकेचर बन कर रह गई है। 

  दिवंगत भगत ने, जिनका सन 2011 में निधन हुआ,बिहार के ही मूल निवासी थे।वे केंद्र में मंत्री और लोक सभा के स्पीकर रह चुके थे।

सन 2003 में मीडिया

से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा था कि ‘‘हमारी संसद महज केरिकेचर बन कर रह गई है।

लोक सभा के काम काज में दिन ब दिन गिरावट आ रही है।’’

2003 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी।

कांग्रेस प्रतिपक्ष में थी।

उस गिरावट के लिए कौन कौन दल और कौन कौन तथा कौन कौन तत्व कसूरवार हैं ,यह बात उन्होंने नहीं बताई।

खैर,अपने पुराने अनुभवों के आधार पर भगत जी ने कहा कि 

‘‘अब हालात बहुत बदल गए हैं।पहले लोक सभा अध्यक्ष कुछ कहने के लिए अपने आसन से जब उठता था तब सभी सदस्य चुपचाप होकर उनकी बातों को सुनते थे।

पर अब सदस्यों की हुल्लड़बाजी से अध्यक्ष को ही पलायन करना पड़ रहा है।

यह परिपाटी संसदीय प्रणाली आधारित सरकारों के लिए घातक साबित होगी।

 शैक्षणिक योग्यता नहीं रहने के कारण अब ऊंचे दर्जे के महत्वपूर्ण विषयों पर बहस नहीं होती।’’

  अब तो संसद हुल्लड़बाजी से हंगामे की ओर बढ़ गई है।अब पीठासीन अधिकारी के साथ हाथापाई होती है।महिला मार्शलों के साथ दुव्र्यवहार होता है।आज भगत जी जीवित होते तो क्या कहते,कल्पना कर लीजिए।

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और अंत में

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शराब में अधिक नशा है या रिश्वत में ?

यह सवाल ही क्यों ?

क्योंकि बिहार में इन दिनों शराबखोरी और रिश्वतखोरी के आरोप में गिरफ्तारियां रुकने का नाम नहीं ले रही हैं।किंतु इसके बावजूद उतनी ही तेजी से ये दोनों अपराध घटित भी हो रहे हैं।दरअसल नशे के अभ्यस्त लोग अर्ध चेतन अवस्था में जो होते हैं !उन्हें न तो अपना ख्याल रहता है और न परिवार का। 

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प्रभात खबर, पटना 

31 दिसंबर 21

  



   


बुधवार, 29 दिसंबर 2021

      देखते जाइए, सिद्धू और क्या-क्या करते हैं !!!

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       --सुरेंद्र किशोर--

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‘‘जैसे सोनिया गांधी की बात पूर्व पी एम मनमोहन सिंह 

मानते थे, मैं भी अध्यक्ष होने के नाते मुख्य मंत्री चन्नी से यही उम्मीद रखता हूं।’’

      -- पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू

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  दैनिक भास्कर ( 29 दिसंबर, 21) से बातचीत में श्रीमान सिद्धू ने तो घुमा फिराकर यह कह दिया है कि मनमोहन जी अपनी सरकार की नीतियां सोनिया जी से पहले तय करवा लेते थे।सिद्धू बचाकर बोले।

   पर, प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार (2004-2008) रहे संजय बारू ने तो अपनी पुस्तक (द एक्सीडेंटल पी.एम.......) में साफ -साफ लिख दिया है कि ब्यूरोक्रेट पुलक चटर्जी के जरिए सोनिया गांधी पूरी सरकार चलाती थीं।

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अधिकतर जानकार लोग यही जानते रहे हैं कि सोनिया गांधी ही सरकार थीं और मनमोहन सिंह मात्र रबर स्टाम्प थे।

सिद्धू ने इस धारणा की लगभग पुष्टि कर दी है।

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पर, अपरिपक्व सिद्धू को यह नहीं पता कि ऐसी सुविधा सिर्फ फस्र्ट फेमिली को हासिल रही है।

1946-47 के कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.बी.कृपलानी को ऐसी ही गलतफहमी थी।

पर तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें उनकी हैसियत बता दी।

गांधी जी भी कृपलानी की कोई मदद नहीं कर सके थे। 

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जब आप किसी अपरिपक्व नेता को अघोषित कारणों से ऊंचे पद पर बैठा देंगे तो वह आपकी पार्टी व सरकार का फायदा कम और नुकसान अधिक कर देगा।

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एक बार राहुल गांधी ने कह दिया था कि हमारे परिवार ने 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए।

जबकि कांग्रेस यह कहती रही है कि बांग्ला देश मुक्ति वाहिनी ने नया देश बनाया।हमने उसकी सिर्फ मदद की।

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राहुल गांधी ने 2008 में अमृतसर जाकर कहा कि सिखों के खिलाफ 1984 में हुए दंगे पूरी तरह गलत थे।

राहुल ने सही कहा।

  पर ऐसा कहना राजनीतिक रूप से यह कांग्रेस के लिए सही ंनहीं था।

क्योंकि उस दंगे के बारे में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी कह चुके थे कि ‘‘जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।’’   

 वैसे उसे दंगा कहना भी गलत है।

वह तो एक तरफा नरसंहार था।

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अब सवाल है कि सिद्धू पंजाब सरकार से क्या चाहते हैं ?

पहले ही वे दबाव डालकर डी.जी.पी.और महा अधिवक्ता को हटवा चुके हैं।

  अब लगता है कि वे सिर्फ उतने ही से संतुष्ट नहीं है।

बेचारा चन्नी !!!

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29 सिबंर 21 


मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

आजादी के तत्काल बाद के शासकों ने 

ऐसे लागू किया अपना ‘‘आइडिया आॅफ इंडिया’’

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--सुरेंद्र किशोर--

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आजादी के तत्काल बाद के हमारे सेक्युलर (उनका सेक्युलरिज्म एकतरफा था) शासकों ने चार ‘‘महत्वपूर्ण काम’’ किए।

1.-देसी गाय को हाइब्रिड बनवाया।या, बनाने दिया।

याद रहे कि देसी गाय के दूध में जो विशेष गुण हैं, वे हाइब्रिड गायों में नहीं।

2.-शासकों ने पीपल के पौधों को सरकारी खर्चे पर लगवाने पर रोक लगा दी।

विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि कुछ खास दूरी पर पीपल के वृक्ष हों तो पर्यावरण चैबीसों घंटे स्वच्छ रहेगा।

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3.-शासक ने हमारी मिट्टी में बड़ी मात्रा में रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं को डलवाना शुरू किया।

इससे हमारी मिट्टी जहरीली हो रही है और जमीन अनुर्वर।

इन मामलों में पंजाब में सबसे खराब हालत है।

4.-विशेष औषधीय गुणों वाली गंगा नदी

को जानबूझ कर गंदे नाले में परिणत कर दिया।यानी उसे पहले जैसी अविरल नहीं रहने दिया।

अविरल नहीं तो निर्मल भी नहीं। 

जबकि, मुगल और ब्रिटिश शासकों के काल में भी गंगा निर्मल थी।

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मैं बचपन में अपनी फुुआ के साथ अपने गांव से चलकर दिघवारा (सारण,बिहार)के पास गंगा स्नान करने जाया करता था।

एक बार मैंने दतवन का चीरा गंगा में फेंक दिया था।

फुआ ने मुझे बहुत डांटा।

  तब वहां गंगा में घुटने भर पानी में उतरने के बाद भी मैं अपने पैरों की अंगुलियां तक देख सकता था।गंगा इतनी निर्मल थी।

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 27 दिसंबर 21  



   




सोमवार, 27 दिसंबर 2021

      अकबरूद्दीन बनाम यति नरसिंहानंद

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         सुरेंद्र किशोर

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  अकबरूद्दीन ओवैसी यानी जूनियर ओवैसी ने कुछ साल पहले एक अभूतपूर्व भाषण दिया था।

उनके उस भाषण का विडियो पूरी दुनिया में इलेक्ट्राॅनिक चैनलों पर देखा-सुना गया था।

 सन 2012 में आदिलाबाद की सभा में उन्होंने हिन्दुओं को संबोधित करते हुए कहा था कि 

‘‘तुम सौ करोड़ हो न,हम 25 करोड़ हैं।

15 मिनट के लिए पुलिस हटा लो तो पता चल जाएगा कि तुम कितने हो और हम कितने हैं।’’

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    इस पर अकबरूद्दीन के खिलाफ केस हुआ।

हाल में उनके दल के नेता वारिस पठान ने जानकारी दी कि 

अकबरूद्दीन को अदालत ने इस मामले में दोषमुक्त कर दिया है।

  जाहिर है कि हैदराबाद की पुलिस ने अभियोजन चलाया था।यानी, ओवैसी के ‘‘अनुकूल न्याय’’ दिलवा दिया गया।

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हाल में हरिद्वार में  

 आयोजित धर्म संसद में तो हिन्दू संत यति नरसिंहानंद ने अति कर दी।

उन्होंने मुसलमानों से हिन्दू धर्म पर भारी खतरा बताया।

साथ ही, हिन्दू युवकों का आह्वान करते हुए कहा कि ‘‘तुम प्रभाकरण और भिंडरवाला बनो।’’

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उत्तराखंड की भाजपा सरकार की पुलिस ने नरसिंहानंद पर आदि मुकदमा किया है।

पर सिनियर ओवैसी को उससे संतोष नहीं है।

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सिनियर ओवैसी ने अपने दल की उत्तराखंड शाखा को निदेश दिया है कि वह इस संबंध में केस दायर करे।

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ओवैसी का दोहरा मापदंड

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अकबरूद्दीन के आदिलाबाद स्पीच के बारे में इस बीच जब भी संवाददाताओं ने सिनियर ओवैसी से पूछा तो उन्होंने बस इतना ही कहा कि कोर्ट में मामला है।

  यति आदि के खिलाफ भी केस दर्ज हो चुका है तो उन्हें अदालत पर विश्वास करना चाहिए।

 पर, अकबरूद्दीन जैसा न्याय यति आदि को कहीं मिल न जाए, यह ओवैसी को मंजूर नहीं। 

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वैसे मेरी राय है कि अकबरूद्दीन को दोषमुक्त किया जाना गलत है।

पता नहीं ऊपरी अदालत में दोषमुक्ति के खिलाफ अपील हुई भी है या नहीं।

  उसी तरह यदि यति को सजा नहीं मिलेगी तो वह भी गलत होगा।

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पर,सवाल है कि इस देश में कितने लोग चाहते हैं कि देश में कानून का शासन हो।अनेक लोग कुछ और ही चाहते हैं।

वैसे जो समझते हैं कि कानून हाथ में लेना उनके लिए जरूरी है तो वे उसके तहत मिलने वाली सजा के लिए भी खुद को उन्हें प्रस्तुत करना चाहिए।

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अकबरूद्दीन को सजा नहीं हुई तो किसी ने उनकी दोषमुक्ति के खिलाफ कोई आंदोलन नहीं किया।

पर असदुद्दीन ओवैसी कह रहे हैं कि यदि नरसिंहानंद आदि को सजा नहीं हुई तो वे आंदोलन करेंगे।

यह बात मैं दोनों यानी सभी पक्षों के वैसे लोगों के लिए कह रहा हूं जो ‘‘हेट स्पीच’’ देना अपना धर्म समझते हैं।

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26 दिसंबर 21


शनिवार, 25 दिसंबर 2021

 अटल बिहारी वाजपेयी

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( 25 दिसंबर 1924--16 अगस्त 2018)

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अटलजी के साथ मीडिया का एक और अन्याय !

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 बांग्ला देश युद्ध के समय इस देश के प्रेस ने अटल बिहारी वाजपेयी के मुंह में इंदिरा गांधी के लिए ‘दुर्गा’ शब्द डाल दिया था।

   जबकि, दुर्गा शब्द का उच्चारण आंध्र के एक कांग्रेसी एम.पी.ने लोक सभा में किया था।

सन 2002 में अमरीकी मैगजिन ‘टाइम’ ने लिख दिया कि बैठकों में प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सो जाते हैं।

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  पहले आम तौर पर यह माना जाता था,मै भी मानता था कि ‘टाइम’ एक बहुत ही जिम्मेदार पत्रिका है।

  कोई भी बात वह पत्रिका ठोक- बजा कर लिखती है।

उसका यह दावा भी था कि कोई भी स्टोरी करने के लिए पहले पत्रिका अपने संवाददाता-छायाकार की टीम भेजती है।

  उस टीम के लौटने के बाद वह दूसरी टीम उसकी पुष्टि के  लिए भेजती है।

  पर, उसका दावा बार -बार गलत निकला।

इसके कई अन्य उदाहरण सामने आए।

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साठ के दशक में गलत खबर से खिन्न डा.राम मनोहर लोहिया 

ने ‘टाइम’ पर मानहानि का मुकदमा कर दिया था। 

  उन्होंने दस पैसे के हर्जाने की कोर्ट से मांग की थी।

  याद रहे कि फूल पुर लोक सभा उप चुनाव के संबंध ‘टाइम’ ने निराधार खबर छापी थी।

‘टाइम’( 4 दिसंबर 1964) ने अन्य बातों के अलावा यह भी लिख दिया था 

कि ‘ डा.लोहिया नेहरू परिवार के आजीवन शत्रु हैं।’

  भारत की राजनीति के बारे में ‘टाइम’ की छिछली जानकारी का ही यह नतीजा था।

दरअसल समाजवादी नेता डा.लोहिया जवाहर लाल नेहरू की नीतियों का विरोध करते थे न कि वे उनके आजीवन शत्रु थे।

एक बार डा.लोहिया ने अपने मित्रों से कहा था कि ‘‘यदि मैं बीमार पड़ूंगा तो मेरी सबसे अच्छी सेवा- शुश्रूषा जवाहर लाल नेहरू के घर में ही होगी।’’

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सन 2019 के लोक सभा चुनाव के ठीक पहले टाइम मैगजिन ने प्रधान मंत्री मोदी के बारे में जो लेख लिखा, उसका शीर्षक था--‘‘इंडिया ’ज डिवाइडर इन चीफ’’

पर,जब लोस चुनाव में 303 सीटें मिल गईं तो टाइम ने अगले अंक में मनोज लदवा का एक लेख छापा जिसका आशय था--मोदी ने भारत को जिस तरह यूनाइट किया,वैसा पिछले कुछ दशकों में किसी अन्य प्रधान मंत्री ने नहीं किया।

याद रहे कि मोदी के शासनकाल में सांप्रदायिक दंगे पहले की  अपेक्षा बहुत ही कम हुए।

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याद रहे कि ‘डिवाइडर इन चीफ’ वाले लेख के  लेखक थे -आतिश तासिर।

वे पाकिस्तानी पिता और हिन्दुस्तानी महिला पत्रकार तवलीन सिंह के पुत्र हैं।

संभवतः वे लंदन में रहते हैं।

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   ऐसा नहीं कि सिर्फ भारतीय मीडिया गलतियां करता है।

  कई बार तो साधन की कमी के कारण भारतीय मीडिया को एक ही स्टोरी पर अधिक समय लगाना महंगा पड़ता है।

पर टाइम जैसी पत्रिका को साधनों की क्या कमी है ?

हर सप्ताह उसेे निकालने के लिए कंट्रीब्यूटर्स तथा करीब दो सौ स्टाफ जर्नलिस्ट होते हैं।

हां,कभी- कभी पत्रिका कीं मंशा गड़बड़ हो जाती है।

अन्यथा,लोहिया के बारे में वह पत्रिका यह बात नहीं लिखती--

 ‘‘लोहिया ने मतदाताओं से कहा कि विजयलक्ष्मी पंडित की सुन्दरता के जाल में न फंसें।

उनके अंदर केवल विष है।’

‘टाइम’ के अनुसार डा.लोहिया ने फुलपुर के मतदाताओं से  कहा कि श्रीमती पंडित की युवावस्था जैसी सुन्दरता इसलिए कायम है क्योंकि उन्होंने यूरोप में प्लास्टिक शल्य चिकित्सा करायी है।’’ याद रहे कि नेहरू के निधन से खाली हुई सीट से श्रीमती पंडित चुनाव लड़ रही थीं।

  ‘टाइम’ संवाददाता न तो फूलपुर गया था न ही कभी लोहिया से मिला था।

किसी अन्य व्यक्ति को भी उधृत नहीं किया था।

बैठकों में प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सो जाने की खबर को ‘टाइम’ ने किसी के हवाले से नहीं छापा ।

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पत्रकारिता का मूल मंत्र है कि जिस पर आरोप है,उस पर उस व्यक्ति का पक्ष भी भरसक साथ -साथ ही आ जाना चाहिए।

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25 दिसंबर 21 

 


     

   

 

 


मंगलवार, 21 दिसंबर 2021

 ‘‘मेरी जरूरतें बहुत कम हैं,

इसीलिए मेरे जमीर में बहुत दम है’’


        अब समय है, चेत जाइए

       इस लोकतंत्र को बचाए रखिए

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       सुरेंद्र किशोर

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इस देश में लोकतंत्र को यदि बनाए-बचाए रखना है तो सिर्फ वैसे ही नेताओं को वोट दीजिए,वैसे ही सुप्रीमो को आगे बढ़ाइए , जिनका उद्देश्य राजनीति व सत्ता की ताकत से खुद के लिए पैसे कमाना नहीं है।

साथ ही,जिनका लक्ष्य अपने वंश या परिवार को राजनीति व सत्ता में जगह दिलाना नहीं है।

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कुछ अनुभवी लोग इन दिनों बता रहे हैं कि इस देश की कम-से कम दो समस्याओं का हल इस ढीले -ढाले लोकतंत्र में नहीं है।

 उसके लिए देश को एक ‘‘परोपकारी तानाशाह’’ चाहिए ।

चीन की सरकार भी कहती है कि वह जिस आतंकवाद से इन दिनों अपने देश में जूझ रही है,उस आतंकवाद का इलाज लोकतांत्रिक व्यवस्था में संभव ही नहीं है।

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इन अनुभवी लोगों के विचार को अधिक बल न मिले,इसके लिए यह जरूरी है कि इस देश के लोकतांत्रिक सिस्टम से भ्रष्टों और वंशवादियों-परिवारवादियों को जल्द से जल्द निकाल बाहर कर दिया जाए।

  अन्यथा,देर-सवेर  तानाशाही आएगी ही।

यदि वैसा हुआ तो पहले तो तानाशाही परोपकारी दिखाई पड़ेगी,पर बाद में अत्याचारी बन सकती है।

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20 सिबंर 21


     तीन मंजिले पर बैठा देने के बावजूद

    कुत्ता तो कुत्ता ही रहेगा !!

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    --सुरेंद्र किशोर--

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साठ के दशक में बिहार के मुख्य मंत्री रहे पंडित विनोदानंद झा कहा करते थे कि 

‘‘यदि कुत्ते को तीन मंजिला पर बैठा दोगे,फिर भी तो वह कुत्ता ही रहेगा।’’

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एक संशोधन-

राजनीतिक अवसरवाद के इस कलियुग में आज भी कुत्ते  अनेक कृतघ्न नेताओं से बेहतर होते हैं।

वे जिनकी एक भी रोटी खा लेते हैं,उसकी रक्षा के लिए दौड़ पड़ते हैं।

 पर, राजनीति में तो,यूं कहें तो अन्य क्षेत्रों में भी, अनेक लोग ऐसे हैं जो काम निकल जाने के बाद उन लोगों को भी दुत्कार देते हैं जिन्होंने उन्हें कभी जमीन से उठाकर सिंहासन पर यानी ऊंचे पदों पर बैठा दिया होता है। 

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20 दिसंबर 21 


शनिवार, 18 दिसंबर 2021

 धर्म निरपेक्ष और साम्प्रदायिक 

व्यक्तियों की अब नई पहचान ?!!

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पहले तो यह माना जाता था कि जो व्यक्ति बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों समुदायों के बीच के सांप्रदायिक तत्वों की समान रूप से आलोचना करे ,वह वास्तविक धर्म निरपेक्ष है।

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पर, अब कुछ लोगों के लिए परिभाषा बदल चुकी है।

अब सर्टिफिकेट बांटने वाले धर्म निरपेक्ष उन्हें ही करार देते हैं जो सिर्फ बहुसंख्यकों के बीच के साम्प्रदायिकों के खिलाफ बोले और लिखे।

यदि अल्पसंख्यकों के बीच के साम्पदायिक लोगों पर कोई अंगुली उठाता है,वह आले दर्जे का कम्युनल है।

असली धर्म निरेक्ष वही है जो बहुसंख्यकों की साम्प्रदायिकता के खिलाफ तो गला फाड़ कर बोलता है या कलम तोड़ लेखन करता है,पर दूसरे पक्ष की भावना को सहलाता रहता है,कई तरह से मदद भी करता है।

 आप यदि उसे भी साम्प्रदायिक कह देंगे जो खुलेआम जेहाद की वकालत करता है,अपने लिटरेचर में वैसा लिखता है,मीडिया में वैसा बयान भी देता है, तो भी आप सेक्युलरों की सूची से बाहर कर दिए जाएंगे।

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ऐसे कैसे चलेगा यह देश !!  

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18 दिसंबर 21   


 


कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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हर्ष फायरिंग पर विभिन्न अदालतों के फैसलों का अध्ययन करे सरकार  

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आए दिन हर्ष फायारिंग में निर्दोष लोगों की जानें जाती रहती हैं।

  हर्ष फायरिंग का एक मामला सन 2015 में दिल्ली अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मनोज जैन की अदालत में आया था।अदालत ने दोषी व्यक्ति को सजा देते हुए कहा था कि ‘‘समय आ गया है कि सरकार शस्त्रों के लाइसेंस देने की प्रक्रिया कड़ी करे।

साथ ही एक मजबूत तंत्र विकसित करे ताकि यह सुनिश्चित हो कि इन लाइसेंसों का दुरुपयोग ना हो।’’  

  अदालत ने यह भी कहा था कि हर्ष फायरिंग जब राष्ट्रीय राजधानी में हो रही है तो ग्रामीण और दूर दराज के इलाकों के बड़े हिस्सों में यह निश्चित रूप से होगा।सन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी हर्ष फायरिंग के खिलाफ अपनी राय जाहिर की थी।

इन सबके बावजूद हर्ष फायरिंग और उनमें हो रही हत्याएं नहीं रुक रही हैं।

ऐसे में एक सवाल उठना मौजू है। शासन जिन्हें आग्नेयास्त्र का लाइसेंस देता है,क्या उनकी कोई जांच होती है ?

खासकर यह जांच कि उस व्यक्ति शस्त्र चलाने आता भी है या नहीं ?

क्या ऐसा कोई नियम भी है ?

यदि है तो लगता है कि उसका पालन नहीं होता।

यदि नियम नहीं है तो ऐसा नियम बनना चाहिए।

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  त्रिकोणीय बनती देश की राजनीति

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लोक सभा के अगले चुनाव में अभी देर है।पर मोर्चेबंदी अभी से शुरू है।

उस चुनाव को लेकर सर्वाधिक हड़बड़ी में ममता बनर्जी हैं।

संकेत साफ हैं।ममता चाहती हैं कि प्रतिपक्ष उनके ही नेतृत्व में 2024 में नरेंद्र मोदी का मुकाबला करे।

पर,यह संभव होता प्रतीत नहीं हो रहा है।

 कांग्रेस को ममता का नेतृत्व मंजूर नहीं है।उधर ममता को कांग्रेस का नेतृत्व पसंद नहीं है।

 यानी,बीच में कोई राजनीतिक चमत्कार नहीं हुआ तो अगला लोक सभा चुनाव त्रिकोणात्मक होगा।

इससे सबसे अधिक प्रसन्न कौन होगा ?

जाहिर है कि राजग और उसके नेता नरेंद्र मोदी।

 ममता बनर्जी की जिद के कारण अगले लोक सभा चुनाव का मुकाबला राष्ट्रीय स्तर पर त्रिकोणात्मक होने की संभावना 

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भूली बिसरी याद

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दिसंबर का महीना कई मामलों में महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक है।

बंगला देश मुक्ति युद्ध की समाप्ति के बाद 16 दिसंबर, 1971 को 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने ढाका में आत्म समर्पण किया।

  देश के प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद का 3 दिसंबर, 1884 को हुआ था।

कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर, 1885 को हुई थी।

मशहूर गणितज्ञ एस रामानुजन का जन्म दिसंबर में हुआ था।

राजनेता और सामाजिक कार्यकत्र्ता ई.वी.रामास्वामी पेरियार 

की पुण्य तिथि दिसंबर में ही है। 

पूर्व प्रधान मंत्री चैधरी चरण सिंह और पत्रकार-लेखक बनारसीदास चतंर्वेदी का जन्म दिसंबर में हुआ था।

राम वृक्ष बेनीपुरी का जन्म दिसंबर में हुआ तो मैथिली शरण गुप्त का निधन इसी महीने हुआ।स्टालिन,माओ और अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म दिसंबर में हुआ।

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ऐसे हो वाहनों का इस्तेमाल 

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आम तौर पर एक ही विमान में राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री एक साथ एक जगह से दूसरी जगह नहीं जाते।

राज्यपाल और मुख्य मंत्री भी एक साथ एक ही वाहन में यात्रा

नहीं करते।

  पर जिस देश में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में करीब डेढ़ लाख लोगों की जान जाती हो,वहां साधन वाले लोग एक सावधानी बरत सकते हैं।

 वे परिवार के सभी महत्वूपर्ण सदस्य एक ही गाड़ी में बैठकर सफर न करंे।

साथ ही सफर की शुरुआत करते समय यह बात सुनिश्चित कर लें कि उनके ड्रायवर ने पिछली रात अच्छी नींद ली है या नहीं।

 हाल में सी.डी.एस.बिपिन रावत की हेलिकाॅप्टर दुर्घटना में मौत हो गई।उनके साथ कई अन्य बहुमूल्य जानें चली गईं।

 भविष्य में महत्वपूर्ण हस्तियों को अलग -अलग हेलिकाप्टर में सफर करने की सुविधा  मिलनी चाहिए।

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बाहुबलियों से मुक्ति कैसे मिले

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उत्तर प्रदेश के विवादास्पद नेता अजय मिश्र टेनी को न तो मीडियाकर्मियों की प्रतिष्ठा का ध्यान रहा और न ही अपने पद की गरिमा का ख्याल।

दरअसल बाहुबलियों के साथ यह समस्या कोई नई नहीं है।

बाहुबलियों से लगभग पूरे देश की राजनीति भरी पड़ी है। 

इस देश के ऐसे बाहुबली नेता आए दिन अपनी हरकतों से अपनी पार्टी को भी शर्मिंदा करते रहे हैं।

 क्या इस देश की राजनीति ऐसे बाहुबलियों से मुक्ति नहीं पा सकती ?

जरूर पा सकती है।पर उसके लिए दलों के बीच आम सहमति 

की आवश्यकता पड़ेगी जिसका इन दिनों राजनीति में भारी अभाव है।

  वैसे सदिच्छा रखने में हर्ज ही क्या है ?

समय- समय पर सरकार दल व समाज को परेशान करने वाले वैसे खूंखार बाहुबली  की संख्या देश की विधायिकाओं में दो-तीन प्रतिशत से अधिक नहीं है।वे अपने चुनाव क्षेत्रों में 

 भी लोकप्रिय हैं।हालांकि उन्हें 50 प्रतिशत से  कम ही वोट मिलते हैं।कोई दल ऐसे बाहुबलियों को टिकट न दे।

यदि वह निर्दलीय लढड़ता है तो सभ्ी दल मिलकर उसके खिलाफ कोई एक उम्मीदवार खड़ा करे।

फिर तो उसकी हार निश्चित है।कुछ चुनाव हारने के बाद उसकी प्रभाव भी अपने क्षेत्र में कम हो जाएगा।


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और अंत में

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बिहार में टांसमिशन व डिस्ट्रिब्यूशन में करीब एक तिहाई बिजली का ‘लोप’ हो जाता है।

 24 नवंबर 2005 से पहले बिहार में बिजली की दैनिक खपत करीब सात सौ मेगावाट थी।

अब खपत बढ़कर 6627

मेगावाट हो गई है।

अधिक खपत यानी अधिक घाटा।

इसे कम करने के लिए बिहार सरकार ने स्मार्ट प्री पेड मीटर लगाने का काम शुरू किया है।पर ऐसे मीटर का जहां -तहां किसी न किसी बहाने विरोध हो रहा है।

विरोध करने वालों की मंशा समझ लीजिए। 

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प्रभात खबर पटना -17 दिसंबर 21


 शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का 

एक उपाय यह भी

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  किसी भी समुदाय में थोड़े से लोग ही अतिवादी होते हैं।

अतिवाद तरह-तरह के होते हैं।

सभी समुदायों के विवेकशील लोग अपने बीच के अतिवादियों पर काबू रखने की भरसक कोशिश करते रहें।

  यदि उस कोशिश में सफल नहीं भी होते हैं तो कम से कम उनका बचाव न करें।

  फिर देखिए, कैसे शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का बेहतर माहौल इस देश में बनता है।

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यह मेरी सदिच्छा है।

पता नहीं, यह पूरी होगी या नहीं।

फिर भी सदिच्छा पालने में हर्ज ही क्या है ?!

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17 दिसंबर 21.


    कैंसर की महामारी से देश को 

   बचाने के लिए जैविक खेती अनिवार्य

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--सुरेंद्र किशोर--

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केंद्रीय मंत्री आर सी पी सिंह ने कहा है कि 

‘‘मैं खुद अपने गांव में प्राकृतिक खेती करूंगा।’’

  केंद्रीय मंत्री की यह पहल सराहनीय है।

प्राकृतिक खेती यानी जैविक खेती देश में कैंसर की महामारी फैलने से बचाएगी।

 इससे पहले भाजपा के पूर्व राज्य सभा सदस्य आर.के.सिन्हा 

भोजपुर जिले के अपने पुश्तैनी गांव में बड़े पैमाने पर जैविक खेती करवाते हैं।

वहां के दो उत्पाद चने का सत्तू और सरसों तेल मैं खरीदता हूं।

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आरसीपी सिंह और आर.के.सिन्हा जैसे समाज के अगुआ लोग जैविक खेती को आगे बढ़ाएं तो अन्य लोग भी उनका अनुसरण करेंगे ।

 इस तरह देश कैंसर की महामारी से बच सकेगा।

अब भी यह समस्या गंभीर है भले अभी महामारी नहीं है। 

 रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं के अत्यधिक इस्तेमाल से कैंसर का प्रकोप बढ़ता जा रहा है।

पंजाब में तो यह समस्या भीषण स्वरूप धारण कर चुकी है।

पर देश का दुर्भाग्य है कि हाल में चले किसान आंदोलन के नाम पर मुख्यतः अढ़तियों और मंडी के दलालों के आंदोलन में यह कोई मुद्दा नहीं था।

 वे मानते हैं कि कृत्रिम खादों व कीटनाशक दवाओं के अधिकाधिक  इस्तेमाल से अधिक उत्पादन होगा और उससे अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।

भले उस कारण मिट्टी अनुर्वर हो जाए और भूजल जहरीला बन जाए।

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18 दिसंबर 21 


 


बुधवार, 15 दिसंबर 2021

    भारतीय संसद पर आतंकी हमला

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13 दिसंबर ,2001 को भारतीय संसद पर हुए भीषण हमले के बाद इस देश के एक तथाकथित सेक्युलर नेता ने भारत सरकार से मांग की थी कि वह पाक सरकार को 

मुआवजा दे !

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सुरेंद्र किशोर

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13 दिसंबर, 2001 को जेहादियों ने भारतीय संसद पर जोरदार हमला किया था।

14 लोगों की मुख्यतः संतरियों की जानें गईं।

यदि संतरी सतर्क नहीं रहे होते तो न जाने कितने सांसदों की जानें भी चली जातीं।

 हमले के समय संसद की कार्यवाही जारी थी। 

उस घटना के बाद पाक और भारत के बीच भारी तनाव हो गया।

दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर पहुंच गईं।

कुछ समय तक लगा कि युद्ध होकर रहेगा।

पर, युद्ध टल गया।

क्योंकि अटल और मोदी में फर्क है।

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किंतु भारत के एक नेता ने उस पर क्या बयान दिया ?

याद है ?

अखबारों में छपा वह बयान मुझे याद है।

किंतु उस नेता का नाम यहां नहीं लिखूंगा।

 क्योंकि संबंधित कटिंग अभी मेरे सामने नहीं है।

एक प्रमुख दल के शीर्ष नेता ने कहा कि भारत सरकार को चाहिए कि वह पाकिस्तान सरकार को मुआवजा दे।

 क्योंकि सेना को बैरकों से निकाल कर सीमा पर पहुंचाने में पाकिस्तान सरकार को भारी खर्च उठाना पड़ा है।

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दरअसल वह खर्च तो भारत सरकार को भी उठाना पड़ा था।

किंतु वोट बैंक लोलुप उस नेता को पाकिस्तान सरकार के खर्चे की अधिक चिंता थी।

  उस नेता को पाक खुफिया एजेंसी आइ एस आई का एजेंट भी कहा जाता रहा है।

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ऐसे पाक परस्त नेताओं की इस देश में कभी कोई कमी नहीं रही है।

भाजपा के मजबूत होने का यह भी एक कारण है।

आप कल्पना कीजिए कि इस देश की सुरक्षा के प्रति जो सरकारें संवेदनशील रहा करती हैं,उनके सामने बाहर व भीतर से कितनी बड़ी-बड़ी चुनौतियां आती रहती हैं।

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13 दिसंबर 21 


     औरंगजेब और शिवाजी के नाम इसलिए 

    लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने

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    सुरेंद्र किशोर 

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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गत सोमवार को काशी में कहा कि   ‘‘भारत में जब भी औरंगजेब पैदा हुआ,तब इस मिट्टी से शिवाजी का भी उदय हुआ।’’

  नरेंद्र मोदी ने औरंगजेब का नाम क्या लिया कि अनेक लोग तिलमिला उठे ! 

तिलमिलाए लोगों को लगता है कि कहीं इससे आम लोगों के बीच से भी शिवाजी जैसों का उदय न हो जाए।

फिर उनके ‘वोट बैंक’ का क्या होगा ?

   याद रखिए, औरंगजेब के मानस पुत्र इस देश में अब भी पूरी ताकत से सक्रिय हैं।

 उनका मुकाबला अभी सेना,पुलिस और अन्य सरकारी एजेंसियां ही कर रही हैं।

  वैसे इस देश के मुसलमानों के बीच ऐसे भी लोग मौजूद हैं जो औरंगजेब के मानस पुत्र नहीं हैं।

  डा.वेद प्रताप वैदिक ने आज के ही दैनिक भास्कर में लिखा है कि ‘‘इस्लामी जगत में परिवर्तन की नई लहरें उठ रही हैं।’’

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औरंगजेब के मानस पुत्रों के बारे में कुछ बातें --

30 सितंबर, 2001 के टाइम्स आॅफ इंडिया में सिमी (अब प्रतिबंधित)के अहमदाबाद जोन के सचिव साजिद मंसूरी की एक टिप्पणी छपी है।(अखबार की स्कैन काॅपी इस पोस्ट के साथ प्रस्तुत है)

उसमें उसने कहा कि 

‘‘जब भी हम सत्ता में आएंगे, हमलोग मंदिरों को नष्ट कर देंगे भले वे सोने की ही क्यों न बनी हों।

फिर वहां हम मस्जिद बनाएंगे।’’

है न औरंगजेब का मानस पुत्र !!

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सिमी के एक अन्य सदस्य बशर ने कहा था कि ‘‘लोकतांत्रिक तरीके से इस्लामिक शासन संभव नहीं है,इसलिए उसके लिए एकमात्र रास्ता जेहाद है।’’

--राष्ट्रीय सहारा 28 सितंबर 2008

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हाल में केरल के डी.जी.पी ने वहां के हाईकोर्ट को बताया कि 

‘‘सिमी के लोगों ने ही पी.एफ.आई.बनाया है।’’

याद रहे कि केरल के माकपा मुख्य मंत्री ने अपने डी.जी.पी.के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि पी.एफ.आई.पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

इसका राजनीतिक लाभ सी.पी.एम. को हाल के विधान सभा  चुनाव में मिला।

कांग्रेस के समर्थक रहे मुस्लिम मतदाताओं ने भी सी.पी.एम.को वोट दे दिया।

ऐसा ही धु्रवीकरण पश्चिम बंगाल में हुआ था।

क्योंकि ममता बनर्जी ने कह दिया था कि यदि सी ए ए और एन आर सी लागू हुआ तो खून की नदियां बहेंगी।

शायद इसी तरह के धु्रवीकरण के लिए उत्तर प्रदेश में भी  एक गठबंधन के नेतागण जिन्ना का नाम ले रहे हैं।

किंतु उन्हें याद नहीं कि उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों की आबादी केरल व बंगाल जितनी नहीं है।

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हां, मनमोहन सिंह सरकार ने सन 2008 में एक अच्छा काम किया था।

उसने सिमी पर प्रतिबंध जारी रखा।

प्रतिबंध अटल सरकार ने सन 2001 में लगाया था।

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प्रधान मंत्री मोदी या किसी अन्य को लाॅर्ड क्लाइव या वारेन हेस्ंिटग्स के नाम लेने की जरूरत नहीं पड़ती।

क्योंकि उनके मानस पुत्र इस देश पर कब्जा करने के लिए हथियार नहीं उठाए हुए हैं।

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अब सिमी और पी.एफ.आई.की ताकत का अंदाज लगा लीजिए।

सन 1977 में अलीगढ़ में स्थापित सिमी के 2001 में ही एक लाख सदस्य पूरे देश में बन चुके थे।

सिमी उर्दू,अंग्रेजी और हिन्दी में अनेक पत्र प्रकाशित करता था जिनमें वह संगठन खुलेआम अपने उपर्युक्त खतरनाक इरादों का प्रचार करता था।उसने अपना आदर्श ओसामा बिन लादेन को बनाया था।

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पाॅपुलर फं्रट आॅफ इंडिया की ताकत और विस्तार का अनुमान उन लोगों को है जो इस पर ध्यान देते रहे हैं।खासकर शाहीन बाग व दिल्ली-यू.पी.दंगों पर।

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और अंत में

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आजादी के तत्काल बाद इस देश के शीर्ष शासक ने अपने पालतू व खास विचारों से लैस इतिहासकारों को यह निदेश दे दिया था कि वे इतिहास में महाराणा प्रताप और शिवाजी की वीरता , शौर्य और उपलब्धियों का महिमामंडन कत्तई न करें अन्यथा उससे हिन्दू सांप्रदायिकता बढ़ेगी।

यही उनका ‘‘आइडिया आॅफ इंडिया’’ था !!! 

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15 दिसंबर 21

     

 

     


मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

 पाक के पास अपनी सरकार चलाने के लिए पैसे नहीं हैं।

पर, भारत पर चार बार हमला करने व लगातार आतंकी भेजने-पालने के लिए पैसे की कोई कमी नहीं !

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इधर जफर अब्बास जैसों की भारत में मौजूदगी व सक्रियता इस देश के अनेक राजनीतिक-गैर राजनीतिक वोटलोलुप-धनलोलुप लोगों के लिए कोई समस्या नहीं !!!!

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   --सुरेंद्र किशोर--

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पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान ने हाल में कहा कि ‘‘हमारे पास अपनी सरकार चलाने के लिए पैसे नहीं हैं।’’

हां, याद रहे कि पाकिस्तान के पास भारत सहित दुनिया भर में आतंक फैलाने और इस्लाम का शासन कायम करने के लिए पैसों की कोई कमी नहीं है।लश्कर ए तोयबा सहित करीब एक दर्जन इस्लामिक आतंकी पाक में पल रहे हैं। 

इससे समझ जाइए कि पाक की प्राथमिकताएं क्या हैं ! 

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 पाकिस्तान के पास आजादी के बाद भारत पर चार बार हमला करने के लिए पैसे की कोई कमी नहीं रही।

पाक भारत में बड़ी संख्या में अपने एजेंट पाल रखे हैं।उन

पर वह खुलकर पैसे लुटाता है।

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हाल में बिहार के गोपालगंज में गिरफ्तार लश्कर एक तोयबा का ओवर ग्राउंड वर्कर जफर अब्बास के भारत स्थित बैंक खातों में पाक से 50 करोड़ रुपए आए थे।

ऐसे न जाने पाक के कितने भारतीय जासूस व दलाल भारत में सक्रिय हैं !

वे दिन रात काम कर रहे हैं।

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पाकिस्तान का निर्माण ही इसी उद्देश्य से हुआ था।

पाक सरकार के पास अपने कर्मचारियों व पाक दूतावासों के 

स्टाफ को वेतन देने के लिए भले पैसे न हों।

किंतु भारतीयों के बीच अपने समर्थक व लश्कर पालने के लिए पैसे जरूर है।

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उसके ऐसे रवैए के बावजूद कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तान जाकर (2015)वहां के लोगों से अपील की कि आप लोग नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाइए।

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अब पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सिद्धू कह रहे हैं कि भारत सरकार पाक के साथ लगनेवाले बोर्डर खोल दे ताकि अधिक से अधिक व्यापार होने लगे।

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क्या सिद्धू को व्यापार बढ़ने के नतीजे

मालूम हैं ?

अधिक व्यापार यानी पाक व्यापारियों के पास अधिक पैसे।

नतीजतन उन पैसों में से वे व्यापारी भारत में आतंक

तेज करेंगे और इस देश में निजाम ए मुस्तफा कायम करने की और तेज कोशिश करंेगे।

उनका लक्ष्य है कि पहले कश्मीर पर कब्जा किया जाए फिर भारत के कुछ अन्य राज्यों पर।यह और बात है कि वे अपने लक्ष्य को पा सकेंगे या नहीं।

पर आश्चर्य है कि भारत के अधिकतर तथाकथित सेक्युलर दलों व बुद्धिजीवियों के

लिए जफर अब्बास जैसे लोगों की इस देश में बड़े पैमाने पर उपस्थिति व सक्रियता कोई समस्या ही नहीं।इस पर वे न तो कोई बयान देते हैं और न लेख लिखते हैं।लिखते और बोलते भी हैं तो वे इसके लिए भारत सरकार आदि को ही दोषी ठहराते हुए।

यह इस देश का दुर्भाग्य है।यह दुर्भाग्य कोई नया नहीं है।

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10 दिसंबर, 21  

  


 डा.राममनोहर लोहिया कहा करते थे कि

‘‘बलात्कार और वादाखिलाफी को छोड़कर स्त्री 

और पुरुष के बीच के सारे संबंध जायज है।’’ 

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 मान लीजिए, किसी ने किसी से प्रेम किया।

शादी का वायदा किया।

शादी कर ली।

यानी, वादा निभाया।

अब ऐसे में किसी को क्यों 

कोई शिकायत 

होनी चाहिए ?!!!

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आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने ईसाई महिला से शादी

की थी।

क्या उसके कारण आदिवासियों ने जयपाल सिंह

को छोड़ दिया ?

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डा.आम्बेडकर ने ब्राहमण महिला से शादी की थी।

क्या इस कारण अनुसूचित जाति के लोगों ने डा.आम्बेडकर 

को छोड़ दिया ?

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इंदिरा गांधी ने पारसी से शादी की।

क्या ब्राह्मणों ने इंदिरा गांधी को छोड़ दिया ?

बिलकुल नहीं।

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सुरेंद्र किशोर

14 दिसंबर 21


     भ्रष्टाचारियो बिहार छोड़ो !

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बिहार में भ्रष्ट सरकारी सेवकों के खिलाफ जितने बड़े पैमाने 

पर विशेष निगरानी इकाई इन दिनों कारर्रवाइयां कर रही हैं,वह एक रिकाॅर्ड है।

  इतने कम समय में इतनी बड़ी-बड़ी कार्रवाइयां मैं पहली बार देख रहा हूं।

जबकि, मैं सन 1967 से ही लगातार तमाम सरकारों के काम -काज को गौर से देख -जान चुका हूं।

सरकारी भ्रष्टाचार से परोक्ष व प्रत्यक्ष रूप से बुरी तरह पीड़ित आम जनता ताजा कार्रवाइयों से खुश है।

 नीतीश सरकार को चाहिए कि वह सन 2022 को ‘‘भ्रष्टाचार निरोधक वर्ष’’ मनाने की घोषणा करे और चल रही कार्रवाइयों को और भी व्यापक बनाए।

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नारा लगे- 

‘‘हर क्षेत्र में फैले हर तरह के भ्रष्टाचारियो !

बिहार छोड़ो।’’

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   जब तेल आयात लाॅबी ने सन 2013 में 

 पेट्रोलियम मंत्री मोइली को धमकाया था !!!

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जो लाॅबी मंत्री को धमका सकता था,उसे धमकाने 

की ताकत कहां से मिलती थी ?

अनुमान लगाना कठिन नहीं

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--सुरेंद्र किशोर--

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तब मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री थे।

हालांकि वास्तविक सत्ता किसके हाथों में थी,यह कोई रहस्य नहीं था।

  14 जून, 2013 को तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री विरप्पा मोइली ने एक सनसनीखेज खुलासा किया था।

  मोइली ने कहा कि तेल लाॅबी मुझे धमका रही है।ऐसा इसलिए ताकि मैं तेल आयात कम करने का फैसला न लूं।

हर पेट्रोलियम मंत्रियों को लाॅबी धमकाती है।

मोइली ने कहा कि लाॅबी मंत्रालय के फैसलों को प्रभावित करने की कोशिश करती है।कई बार फैसलों को रुकवा दिया जाता है।

आप अंदाज लगा लीजिए कि मंत्री से ऊपर कौन होता है।

रोकता-रुकवाता तो वहीं होगा !!

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नरेंद्र मोदी के शासनकाल में अपने देश में हथियारों का निर्माण काफी बढ़ गया है।

इससे भी हथियार के सौदागर व उनके दलाल इन दिनों दुखी बताए जाते हैं।

हथियारों की दलाली के काम में दिल्ली के कुछ बड़े पत्रकार भी पहले सक्रिय थे।अब दाल नहीं गल रही है।

वे अब क्या कर रहे होंगे ,उसका अनुमान लगा लीजिए।

  नीरा राडिया टेप प्रकरण के समय यह खबर आई थी कि एक पत्रकार ने एक नेता को मंत्री बनवाया और उसे मलाईदार मंत्रालय भी दिलवा दिया।

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सुना है कि तब यदा कदा जिस अनाज का निर्यात होता था,उसी का आयात भी होता था। यानी दलालों की दोगुनी  कमाई।

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यह कहानी अनंत है।

ऐसे दलालों को इन दिनों कितनी तरजीह मिलती है ?

संकेत हैं कि कम ही मिलती होगी।

बाकी दलाल क्या करते होंगे !

अनुमान लगा लीजिए। 

कुछ ज्ञान वर्धन भी कीजिए।

लेकिन सबूत हो तभी। 

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10 दिसंबर 21

 


 डा.राममनोहर लोहिया कहा करते थे कि

‘‘बलात्कार और वादाखिलाफी को छोड़कर स्त्री 

और पुरुष के बीच के सारे संबंध जायज है।’’ 

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 मान लीजिए, किसी ने किसी से प्रेम किया।

शादी का वायदा किया।

शादी कर ली।

यानी, वादा निभाया।

अब ऐसे में किसी को क्यों 

कोई शिकायत 

होनी चाहिए ?!!!

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आदिवासी नेता जयपाल सिंह ने इसाई महिला से शादी

की थी।

क्या उसके कारण आदिवासियों ने जयपाल सिंह

को छोड़ दिया ?

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डा.आम्बेडकर ने ब्राहमण महिला से शादी की थी।

क्या इस कारण अनुसूचित जाति के लोगों ने डा.आम्बेडकर को छोड़ दिया ?

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इंदिरा गांधी ने पारसी से शादी की।

क्या ब्राह्मणों ने इंदिरा गांधी को छोड़ दिया ?

बिलकुल नहीं।

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सुरेंद्र किशोर

14 दिसंबर 21


रविवार, 12 दिसंबर 2021

 दबाव में वोट बैंक की राजनीति

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--सुरेंद्र किशोर--

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यदि कहीं भी मुस्लिमों के बीच ध्रुवीकरण होगा तो 

बहुसंख्यक समुदाय में उसकी प्रतिक्रिया भी होगी

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सुशासन और विकास की राजनीति अपनी जड़ें जमाने लगी हैं।

इसके सकारात्मक संकेत मिलने लगे हैं।

इसके कारण सामाजिक समीकरण और वोट बैंक की राजनीति अब दबाव की मुद्रा मंे है।

वह झुंझला कर हमले भी कर रही है।

उत्तर प्रदेश की बात करंे तो वोट बैंक की छीना-झपटी के प्रयास के तहत कुछ नेता जिन्ना को याद कर रहे हैं तो कुछ अन्य हिन्दुत्व पर अपमानजनक टिप्पणियां कर रहे हैं,ताकि अल्पसंख्यक वोट उनकी ओर मुखातिब हो।

 इस बीच एक ताजा चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के अनुसार सन 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को बढ़त मिलती दिख रही है।

हालांकि बहुमत पहले की अपेक्षा थोड़ा कम हो जाएगा।

 उधर बिहार में हाल में हुए उप चुनावों के नतीजे बता रहे हैं कि कोविड-19 की पृष्ठभूमि में विपरीत राजनीतिक व प्रशासनिक परिस्थितियों के बावजूद राजग की बढ़त इस राज्य में बरकरार है।

  सामान्य परिस्थितियों में चुनाव जीतना भी बड़ी बात होती है,पर यह उल्लेखनीय है कि कोई दल अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में चुनाव जीते।

  राजनीतिक साख की पूंजी बड़ी रहने पर ही कोई विपरीत परिस्थितियों में चुनाव जीतता है।

मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के साथ जातीय समीकरण के कारण नहीं,बल्कि काम के कारण डेढ़ दशक की सत्ता के बावजूद बिहार में सत्ता विरोधी लहर न होने के पीछे कुछ बात तो है।

  नीतीश कुमार ने अपने शासन काल के प्रारंभिक वर्षों से ही विकास और सुशासन पर बल दिया।

उनका नारा रहा है - ‘‘न्याय के साथ विकास।’’

 दूसरी ओर, मुख्य प्रतिपक्षी दल राजद के नेता की समझदारी रही है कि वोट विकास से नहीं ,बल्कि सामाजिक समीकरण से मिलते हैं।

  अब राजद के लिए चिंतन करने का अवसर आ गया है कि उसे विकास पर भी ध्यान देना चाहिए या सिर्फ समीकरण पर ही जोर देते रहना चाहिए।

 वास्तव में यही बात दूसरे राज्यों के दलों पर भी लागू होती है।

   उत्तर प्रदेश में केंद्र सरकार खास कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सक्रिय सहयोग और मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ की दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण हाल में कुछ क्षेत्रों में त्वरित विकास हुआ है।

इससे भी बड़ी बात यह हुई है कि उत्तर प्रदेश में जेहादी,अपराधी और माफिया तत्वों के खिलाफ जिस तरह की कठोर कार्रवाई हुई है, उसका कोई दूसरा उदाहरण इस देश के किसी अन्य राज्य में नहीं मिलता।

  कोरोना काल में योगी सरकार की विफलताओं को बढ़ा- चढ़ाकर प्रचाारित किया गया।

नदी किनारे की उन लाशों को भी कोविड का शिकार बता कर प्रदर्शित किया गया जो खास समुदाय के लोग अपनी परंपरा के अनुसार बालू में गाड़ देते रहे हैं।

 उत्तर प्रदेश में सपा ,बसपा, ए आइ एम आइ एम और कांग्रेस के बीच अल्पसंख्यक मतों के लिए खींचतान जारी है।

ओम प्रकाश राजभर को पहले लगा था कि अल्पसंख्यक वोट असदुद्दीन ओवैसी खींच लेंगे तो वह उनके साथ हो लिए।

  किंतु ‘चुनावी मौसम’ पहचान लेने के बाद राजभर सपा की शरण में हो लिए।

कंग्रेस की छटपटाहट इसी बात को लेकर अधिक है।

राहुल गांधी,सलमान खुर्शीद,राशीद अल्वी,मणिशंकर अय्यर तथा ऐसे अन्य नेताओं के हिन्दुत्व विरोधी बयानों को कुछ लोग कांग्रेस का भ्टकाव बता रहे हैं,पर ऐसा है नहीं।

 यह उनकी मजबूरी है।

एकमात्र सहारा यानी रहा-सहा मुस्लिम वोट भी कांग्रेस के हाथ से निकल रहा है।

   एक तरफ सपा के अखिलेश यादव और उनके सहयोगी ओम प्रकाश राजभर जिन्ना को गांधी-पटेल की बराबरी के स्वतंत्रता सेनानी बता कर अपना वोेट बैंक सुदृढ करने की कोशिश कर रहे हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस हिन्दुत्व पर चोट कर कुछ अल्पसंख्यक वोट हासिल करने की कोशिश में है।

कंाग्रेस के पास अब कुछ ही राज्यों में मुस्लिम वोट बैंक बचा है।

और वह भी वहीं, जहां वह भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी है।,

    हाल मंें विधान सभा चुनाव में केरल और बंगाल में कांग्रेस को मुस्लिम वोट लगभग नहीं के बाराबर मिले।

यदि उत्तर प्रदेश में भी वही हाल हुआ तो उसके लिए अपनी सात सीटें भी बचा लेना मुश्किल होगा।

  इसीलिए हिन्दुत्व की आलोचना करने के लिए कांग्रेसी नेतागण ‘ओवर एक्टिंग’ कर रहे हैं।

  यही उनकी मजबूरी हो गई है।

  वैसे कांग्रेस दुनिया की एकमात्र राजनीतिक पार्टी है,जो अपने देश के बहुसंख्यक समाज की भावनाओं पर लगातार चोट करके भी चुनाव जीतने की उम्मीद रखती है।

  सलमान खुर्शीद ने हिन्दुत्व की तुलना आइ. एस. और बोको हराम से की।

  उन्हें लगता है कि इससे कम कड़ी बात कहने से काम नहीं चलेगा।

  लोग भूले नहीं होंगे सन 2001 में जब वाजपेयी सरकार ने जेहादी संगठन ‘सिमी’ पर प्रतिबंध लगाया था तो उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष सलमान खुर्शीद ही सुप्रीम कोर्ट में सिमी के वकील थे।

सिमी ने खुलेआम घोषणा कर रखी थी कि हम हथियारों के बल पर भारत में इस्लामिक शासन कायम करंेगे।

 नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सी ए ए और एन आर सी की चर्चा के बीच अल्पसंख्यक समुदाय किसी एक दल को एकजुट होकर वोट दे रहा है।

बंगाल विधान सभा के गत चुनाव के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन चैधरी ने कहा था कि कांग्रेस ओर माकपा के भी मुस्लिम समर्थकों ने इस बार तृणमूल कांग्रेस को वोट दे दिए।

  केरल में भी ऐसा ही हुआ।

वहां धु्रवीकरण माकपा के पक्ष में हुआ।

  इससे पहले माकपा सरकार ने पी.एफ.आई.पर प्रतिबंध लगाने की वहां के डी.जी.पी.की सलाह ठुकरा दी थी।

डी.जी.पी.ने केरल हाईकोर्ट से कहा था कि सिमी के लोगों ने ही पी एफ आई बनाया है।

  यदि कहीं भी मुस्लिमों के बीच धु्रवीकरण होगा तो बहुसंख्यक समुदाय के बीच उसकी प्रतिक्रिया स्वाभाविक है।

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11 दिसंबर, 21 के दैनिक जागरण और नईदुनिया(मध्य प्रदेश)में प्रकाशित।                                           


     भ्रष्टाचारियो बिहार छोड़ो !

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बिहार में भ्रष्ट सरकारी सेवकों के खिलाफ जितने बड़े पैमाने 

पर विशेष निगरानी इकाई इन दिनों कारर्रवाइयां कर रही हैं,वह एक रिकाॅर्ड है।

  इतने कम समय में इतनी बड़ी-बड़ी कार्रवाइयां मैं पहली बार देख रहा हूं।

जबकि, मैं सन 1967 से ही लगातार तमाम सरकारों के काम -काज को गौर से देख -जान चुका हूं।

सरकारी भ्रष्टाचार से परोक्ष व प्रत्यक्ष रूप से बुरी तरह पीड़ित आम जनता ताजा कार्रवाइयों से खुश है।

 नीतीश सरकार को चाहिए कि वह सन 2022 को ‘‘भ्रष्टाचार निरोधक वर्ष’’ मनाने की घोषणा करे और चल रही कार्रवाइयों को और भी व्यापक बनाए।

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नारा लगे- 

‘‘हर क्षेत्र में फैले हर तरह के भ्रष्टाचारियो !

बिहार छोड़ो।’’

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बुधवार, 8 दिसंबर 2021

    खूंखार सजायाफ्ता बंदियों के लिए 

   अंडमान निकोबार द्वीप में 

   जेल का निर्माण करवाए सरकार ?!!

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--सुरेंद्र किशोर--

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उच्चतम न्यायालय ने हाल में बिहार सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि गवाहों को प्रभावित होने की आशंका को देखते हुए एक हिस्ट्री शीटर ,जिसके खिलाफ 100 से अधिक आपराधिक मामले हैं,उसे वहां की जेल में क्यों रखा जाए और  राज्य से बाहर क्यों स्थानांतरित नहीं किया जाए ?

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अदालत का सवाल सही है।

पर,अदालत को हिस्ट्री शीटर मुख्तार अंसारी के मामले को भी ध्यान में रखना चाहिए।

उसे तो उत्तर प्रदेश की पुलिस से बचाने के लिए पंजाब की  जेल में रखने का ‘‘प्रबंध’’ कर दिया गया था।

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खैर, यह तो विचाराधीन कैदियों को लेकर समस्या है।

   पर सजायाफ्ता बंदियों के बारे में भी तो सुप्रीम कोर्ट कुछ करे !

  उनके लिए सुप्रीम कोर्ट अंडमान निकोबार में नए जेल बनवा कर वहां खंूखार सजायाफ्ता कैदियों को रखने की व्यवस्था सरकार से कराए।

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8 दिसंबर 21


 कीटनाशक दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल 

से खेत, किसान  और आमजन पीड़ित 

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--सुरेंद्र किशोर--

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करीब एक साल से दिल्ली के आसपास किसानों का आंदोलन चल रहा है।

आंदोलन तब भी चल रहा है जब केंद्र सरकार ने कृषि कानून वापस ले लिए।

दूसरे मुद्दों पर आंदोलनकारी अड़े हुए हैं।

पर, किसी भी किसान नेता ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा को आज तक नहीं उठाया।

किसी ने उठाया भी हो,तो इन पंक्तियों के लेखक के ध्यान में नहीं आया। 

यह मुद्दा नहीं उठाने का ठोस कारण है।

क्योंकि कहा जाता है कि उसमें आंदोलनकारियों का निहितस्वार्थ है।

वह मुद्दा अत्यधिक रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं के

इस्तेमाल से बढ़ रहे कैंसर का है।

इसके कुप्रभाव से मिट्टी व पेयजल भी दूषित हो रहे हैं।

देश के कई इलाकों में कैंसर बढ़ रहा है।

पंजाब इस समस्या से सर्वाधिक पीड़ित है।

पंजाब के भटिंगा से रोज बिकानेर ट्रेन जाती है जिसे कैंसर मेल कहा जाता है।

बिकानेर के एक अस्पताल में कैंसर

का मुफ्त इलाज होता है।

किंतु अन्य राज्यों में भी यह समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है।

इसलिए कि पंजाब का अनाज देश के अन्य हिस्सों में भी जाता है।

  हालांकि यह भी देखना है कि बिहार सहित अन्य राज्यों में भी रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं का कितना इस्तेमाल हो रहा है।

इस राज्य के गंगा के तटीय इलाकों में फैल रहे कैंसर पर कैसे कबू पाया जाए।

  पंजाब में रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं को देश में सर्वाधिक इस्तेमाल करते हैं।

वहां एक हेक्टेयर में 190 किलोग्राम रासायनिक खाद का इस्तेमाल होता है।

उसी तरह वहां  एक हेक्टेयर में 923 ग्राम कीटनाशक दिया जाता  है जबकि राष्ट्रीय औसत 570 ग्राम है।

खबर है कि खेतों में खाद व कीटनाशक दवाएं अधिकाधिक देने के लिए मंडी के दलाल और अढ़तिए किसानों को साधन उपलब्ध कराते हैं।

 अधिक उपज यानी उनके लिए अधिक मुनाफा।उनको लोगों के स्वास्थ्य से क्या सराकार ?

जबकि पंजाब सहित पूरे देश में कैंसर जनित अनाज और आर्सेनिक युक्त जल की समस्या गंभीर होती जा रही है।

कैंसर का सिर्फ यही एक कारण नहीं है।पर,रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाएं भी कारण हैं।

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कानोंकान,

प्रभात खबर,

पटना ,

3 दिसंबर 21 .


 क्यों न बाउंसर और देसी पहलवानों को विधायक और सासंद बनवाकर उनसे ही सदन में शांति कायम करवाई जाए ??? 

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  --सुरेंद्र किशोर--

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इस देश की विधायिकाआंे में शांति बनाए रखने में यह लोकतांत्रिक सिस्टम पूरी तरह फेल हो गया है।

  क्यों न अब यह काम बाउंसरों और देसी पहलवानों को सौंप दिया जाए ?

 बाउंसरों व पहलवानों को सदन का मार्शल बनाकर नहीं बल्कि सदन का सदस्य बनवाकर।

  इनके लिए अघोषित रूप से दस प्रतिशत सीटें

आरक्षित हो जाएं।हर सदन में हल्ला ब्रिगेड के सदस्यों की संख्या भी 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होती।

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अघोषित आरक्षण एक मामले में तो पहले से है।

जातिवादी-परिवारवादी दलों के सुप्रीमो के

परिजन के लिए अघोषित आरक्षण का कोटा बढ़ता जा रहा है।

अपवादों को छोड़कर जितने परिजन उपलब्ध व इच्छुक होते हैं,वे सब किसी न किसी सदन के सदस्य बना ही दिए जाते रहे हैं।

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दस प्रतिशत बाउंसर-पहलवान के आलावा अन्य दस प्रतिशत सीटें संसदीय मामलों के जानकार लोगों के लिए आरक्षित हांे।

  ऐसा नहीं कि आज विभिन्न सदनों में वैसे जानकार लोग नहीं हैं।

जरूर हैं, पर ,उनकी संख्या बढ़े।

हां,यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बाउंसर या पहलवान 

आदतन अपराधी या चोर न हो।

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बाउंसरों -पहलवानों का काम यह होगा कि जैसे ही सदन में ‘हल्ला ब्रिगेड’ सदन का माहौल बिगाड़ना शुरू करे,वे उठकर उनकी निर्धारित सीटों पर उन्हें जबरन बैठा दिया करें।

उनके पास खड़े रहें।

पीठासन पदाधिकारी देशहित-लोकतंत्र हित में उन्हें यह ‘कत्र्तव्य’ निभाने दें।

सदन में जैसे ही ‘गुंडई’ शुरू हो , बाउंसर-पहलवान सदस्य सक्रिय हो जाएं।

यदि मैंने गंुडई शब्द का इस्तेमाल कर दिया तो क्या वह गलत है ?

इन दिनों देश के विभिन्न सदनों में अक्सर जिस तरह के अशोभनीय दृश्य उपस्थित होते रहते हैं,यदि वैसे दृश्य कोई चैक -चैराहे पर उपस्थित करे,तो आप उसे गुंडा कहेंगे या शरीफ आदमी ?

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   8 दिसंबर 21



गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

    जिन लोगों को गुटका, तम्बाकू और जर्दा सहित पान खाने की लत लग चुकी है, वे एन.सी.पी.नेता शरद पवार के चेहरे का ‘भूगोल’ अखबारों में व टी.वी. पर गौर से देख लें।

   कुछ दशक पहले एक बार पटना में  शरद पवार के प्रेस कांफ्रेंस में शामिल होने का मुझे अवसर मिला था।

एक ही वार्ता में उन्हें कई बार गुटका लेते हुए मैंने देखा था।

मन ही मन मैं समझ गया कि नेता जी  खतरे में हैं।

--सुरेंद्र किशोर

2 दिसंबर 21


      स्कूली शिक्षा की गिरावट में ‘‘छड़ियों 

    की छुट्टी’’ का कितना योगदान ?

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      ---सुरेंद्र किशोर--

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बाइबिल का एक वाक्यांश या मुहाबरा है--

‘‘स्पेयर द रड स्प्वाॅयल द चाइल्ड।’’ 

यानी, ‘‘छड़ी को छुट्टी’’ दे देने से बच्चे बिगड़ जाते हैें।

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दुनिया में पहली बार शिक्षकों के हाथों में जब छड़िर्यां आइं थीं, तो वह संभवतः बाइबिल से ही प्रेरित होकर।

  मैं सन 1962 तक स्कूली छात्र था।

मैंने प्राथमिक से लेकर हाई स्कूल तक शिक्षकों के हाथों में छड़ियां देखी थीं।

  कुछ मोटी तो कुछ पतली !

वैसे सारे छड़ीधारी शिक्षकों को छड़ियों का इस्तेमाल करना नहीं पड़ता था।यदाकदा ही उसका इस्तेमाल होता था।

    छड़ी फटकारने से ही काम चल जाए तो इस्तेमाल क्यों करना ?

पर ,छड़ी की झलक पाते ही हम ‘चटिया’ यानी विद्यार्थी अपनी स्लेट-पेंसिल-किताब -कापी की ओर आकर्षित हो जाते थे।

हल्ला -गुल्ला बंद हो जाता था।

’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’

कुछ साल पहले इस देश में खास बिहार में सरकार ने शिक्षकों को उनकी छड़ियों से महरूम कर दिया।

अब विद्यालयों में शिक्षा-परीक्षा का क्या हाल है ?

सब कहेंगे कि गिरावट आई है।

  पांचवीं के छात्र तीसरी क्लास तक की भी जानकारी नहीं रखते।

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शासन को इस बात की पड़ताल करानी चाहिए कि गिरावट में ‘‘छड़ियों की छुट्टी’’ का कितना योगदान रहा है ? 

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2 दिसंबर 21


   2019 के लोस चुनाव से ठीक पहले मुलायम 

 ने मोदी को फिर पी.एम.बनने का आशीर्वाद 

क्यों दिया था ?

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  --सुरेंद्र किशोर--

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याद है आपको ?

2019 के लोक सभा चुनाव से ठीक पहले मुलायम सिंह यादव ने लोक सभा की आखिरी बैठक में क्या कहा था ?

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में उन्होंने उनसे कहा था कि आप फिर से प्रधान मंत्री बनें,यह मेरा आशीर्वाद है आपको। 

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मुलायम जी तब भी सपा में ही थे।

सपा ने सन 2019 का लोक सभा चुनाव भाजपा के खिलाफ लड़ा भी।

खैर, बाकी तो इतिहास है।

अब सवाल है कि मुलायम जी ऐसा क्यों कहा ?

क्या इसके पीछे प्रधान मंत्री आॅफिस में सुरक्षित एक संवेदनशील फाइल है ?

 क्या उस फाइल में मुलायम सिंह यादव का पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई.से सीधा संबंध का कच्चा चिट्ठा है ?

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सन 1997 में तत्कालीन भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने मुलायम सिंह यादव पर,जो तब रक्षा मंत्री थे, यही आरोप लगाया था।

  सिन्हा ने यह भी कहा कि खुफिया रिपोर्ट से इस आरोप की पुष्टि होती है।

  यशवंत सिन्हा के, जो अब भाजपा में नहीं हैं, उस बयान की कटिंग की स्कैन काॅपी यहां प्रस्तुत है।

इस पृष्ठभूमि में आप पूर्व मुख्य मंत्री अखिलेश यादव के जिन्ना संबंधी बयान पर गौर करें।

कैसे-कैसे नेता हैं अपने देश मंे !!!

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 27 नवंबर 21


    जिन लोगों को गुटका, तम्बाकू और जर्दा सहित पान खाने की लत लग चुकी है, वे एन.सी.पी.नेता शरद पवार के चेहरे का ‘भूगोल’ अखबारों में व टी.वी. पर गौर से देख लें।

   कुछ दशक पहले एक बार पटना में  शरद पवार के प्रेस कांफ्रेंस में शामिल होने का मुझे अवसर मिला था।

एक ही वार्ता में उन्हें कई बार गुटका लेते हुए मैंने देखा था।

मन ही मन मैं समझ गया कि नेता जी  खतरे में हैं।


शनिवार, 27 नवंबर 2021

   ईश्वर ने यह शरीर सौ साल के लिए बनाया

  शराब पीकर अपनी आयु आधी क्यों कर रहे हो ?

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  पत्नी व बच्चों को अनाथ व बिलखता छोड़कर 

   क्यों चले जाना चाहते हो ?

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 ---सुरेंद्र किशोर-- 

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महात्मा गांधी के आह्वान पर कांग्रेसियों ने सन 1921 में शराब,गांजा आदि की दुकानों पर धरना दिया और वे जेल गए।

गांधी जी मानते थे कि 

‘‘आबकारी से प्राप्त राजस्व पाप की आमदनी है।’’

डा.राजेंद्र प्रसाद के अनुसार, अंत -अंत तक गांधी जी अपने इस विचार पर कायम रहे।

पर कांग्रेसियों ने बिहार में जगलाल चैधरी को सन 1952 में मंत्री बनाने से इनकार कर दिया क्योंकि जब वे उससे मंत्री थे तो नशाबंदी लागू कर दी थी।

जबकि नशाबंदी की आय से ही उनके परिवार ने जगलाल चैधरी को मेडिकल पढ़ाने के लिए कलकत्ता भेजा था।

चैधरी जी ने जनहित में न तो

अपने परिवार की आय का ध्यान रखा और न ही अपनी जाति पासी की आय का।

देश का नेता हो तो ऐसा !

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आजादी के तत्काल बाद से ही सत्ताधारी कांग्रेसियों ने गांधी की इस बात का भी उलंघन करना शुरू कर दिया था।

तब के शीर्ष सत्तासीनों ने कहा था कि आबकारी राजस्व के बंद होने से शिक्षा व विकास जैसे जनोपयोगी काम रुक जाएंगे।

उस पर गांधी ने कहा कि ‘‘पाठशालाओें को बंद कर देना पड़े तो उसे मैं सहन कर लूंगा।

पर, पैसे के लिए कुछ लोगों को पागल बनाने की नीति एकदम गलत है।’’

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गांधी जी को इस बात का दुख था कि सन 1921 में नशाबंदी के लिए जेल जाने वाले कांग्रेसी सत्ता पाने के बाद अब कहते हैं कि नशाबंदी मौलिक अधिकारों का हनन है।

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2016 से लागू शराबबंदी के बाद बिहार में फर्क आया।

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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार 2015-16 और 2019-20 के बीच बिहार में एक करोड़ लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया।

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बिहार के एक पिता ने अपने पुत्र के बारे में बताया--

‘‘मेरा बेटा अपने अमीर मित्रों के साथ उनके खर्चे से शराब पी रहा था।

अब चूंकि कड़ाई हो गई और काले बाजार में शराब महंगी भी हो गई।इसलिए अब अमीर मित्र अपने गरीब मित्र को मुफ्त में शराब नहीं पिला रहा है।

इस तरह मेरा बेटा आदतन शराबी बनने से बच गया।’’

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कुछ शराबियों का तर्क है कि मशहूर लेखक-पत्रकार खुशवंत सिंह तो रोज शराब पीकर भी सौ साल जीए।

अरे भई,अपवाद नियम नहीं बन सकता।

मैं पटना के ही कई पत्रकारों को जानता हूं जो शराब-सिगरेट के कारण आधी उम्र में ही परिवार को बिलखता छोड़कर ऊपर

चले गए।

इस देश के कई तेजस्वी व जनाधार वाले नेता अपनी किडनी-लीवर डैमेज करके अपने प्रशंसकों व अनुयायियों को 

निराश कर दिया।

कुछ ऊपर चले गए,कुछ अन्य रास्ते में हैं।

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27 नवंबर 21

 


बुधवार, 24 नवंबर 2021

      पवन वर्मा की राजनीतिक यात्रा

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       --सुरेंद्र किशोर--

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बहुत पहले की बात है।

नई दिल्ली के एक बड़े अखबार के सहायक संपादक अखबार के मालिक से मिले।

उन्होंने अपनी एक दर्जन किताबों को उन्हें समर्पित करते हुए उनसे कहा कि ‘‘मुझे संपादक का पद मिलना चाहिए।’’

  मालिक ने पुस्तकों को उलट-पलट कर देखा और सहायक संपादक जी से कहा कि 

‘‘आप हमारा काम कर रहे थे या किताबें लिख रहे थे ?’’

  सहायक संपादक महोदय समझ गए कि मालिक उन्हें संपादक नहीं बनाएगा।

वे वहां से जल्द ही विदा हुए।

कुछ दिनों के बाद अखबार से भी।

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 प्रायवेट सेक्टर में ऐसा ही होता है।

आपको वह काम करना पड़ता है जिस काम के लिए आप बहाल हुए हंै।

पर, सरकार में या राजनीतिक दलों में ?

काम करने की कोई मजबूरी नहीं।

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जदयू से निष्कासित जदयू के पूर्व राज्य सभा सदस्य पवन वर्मा ने अब ममता बनर्जी की पार्टी ज्वाइन कर ली है।

शुभकामना !

उम्मीद है कि वर्मा जी ममता को प्रधान मंत्री बनवाने की भरपूर कोशिश करेंगे।

राजनीति में आने से पहले वर्मा जी विदेश सेवा में थे।

हाल ही में वर्मा जी ने बताया कि

 ‘‘मैंने 24 किताबें लिखी हैं।’’

जब वे सरकारी सेवा में थे,तभी उनकी एक मशहूर किताब 

‘द ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास’ (1998)आई थी।

पर,मुझे यह नहीं मालूम कि 24 में से कितनी किताबें उन्होंने सरकारी सेवा काल में लिखीं और कितनी बाद में ?

जवाहरलाल नेहरू जब आंदोलन में थे तो जेल में किताबें लिखते रहे।

पर प्रधान मंत्री बनने के बाद ?

मुझे नहीं मालूम कि उन्हें किताब लिखने की फुर्सत मिली।

आम तौर पर सरकारी सेवक भी रिटायर होने के बाद ही किताब लिख पाते हैं।

एक एम.पी.की भी कम जिम्मेदारियां नहीं होतीं,यदि वह ईमानदारी से उसे निभाए। 

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पवन वर्मा एक सुपठित व विद्वान व्यक्ति हैं।

उनकी किताब भी लोग पढ़ते हैं।

किंतु सवाल है कि किताबें लिखने के क्रम में आपने अपनी सरकारी सेवा व राज्य सभा की सदस्यता के कत्र्तव्यों के साथ कितना न्याय किया ?

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अब आप तृणमूल कांग्रेस के सदस्य बन गए हैं।

 सुप्रीमो ममता बनर्जी की अपने सदस्यों से कुछ सामान्य तो कुछ असामान्य अपेक्षाएं रहती हैं।

टीएमसी नेतृत्व की अपेक्षाएं कई बार राष्ट्रहित से टकराती रहती हैं।

उम्मीद है कि उन सारी अपेक्षाओं पर वर्मा जी खरा उतरेंगे ताकि उनकी राजनीतिक यात्रा में स्थिरता आ सके।

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24 नवंबर 21