शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

अपनी ही सुरक्षा से बेपारवाह नेता

 गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बीते दिनों लोकसभा में जब यह   सनसनीखेज जानकारी दी कि राहुल गांधी ने गत दो साल में सौ बार सुरक्षा नियमों को तोड़ा है तो कांग्रेसी सांसद नाराज हो गए। समझना कठिन है कि इसमें नाराज होने की क्या बात थी ? खैर इस खबर के साथ इस देश के उन तमाम बड़े नेताओं के नाम स्मृति पटल पर उभर आये जिन नेताओं ने अपनी सुरक्षा में लापरवाही के कारण अपनी जान गंवाई। न सिर्फ इंदिरा गांधी और राजीव गांधी, बल्कि खुद महात्मा गांधी ने भी अपनी सुरक्षा संबंधी पूर्व चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया था।

 इसका खामियाजा न सिर्फ खुद उन नेताओं को बल्कि इस देश को भी भुगतना पड़ा। ऐसे नेताओं की ओर इस देश के करोड़ों लोग बड़ी उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं। इसलिए उनकी जान पर सिर्फ उनका ही नहीं बल्कि देश का भी अधिकार है।

आजादी के बाद एक बार महात्मा गांधी ने कहा था कि वह सौ साल जीना चाहते हैं। पर देश के तनावपूर्ण माहौल में भी अपनी लंबी उम्र के लिए उन्होंने कोई प्रयास नहीं किया। नई दिल्ली की प्रार्थना सभा में सरकारी सुरक्षा की उच्चस्तरीय  पहल को महात्मा गांधी ने इसलिए भी बार-बार ठुकरा दिया था क्योंकि उन्हें ईश्वर पर अटूट विश्वास था। 

    दूसरी ओर तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ईश्वर के साथ-साथ सुरक्षा प्रबंध पर भी भरोसा करते थे। उन्होंने गांधी जी से कई बार विनती की थी कि वे बिड़ला भवन के आसपास हल्की सुरक्षा व्यवस्था भी मंजूर कर लें।  

     बिड़ला भवन के पास 20 जनवरी 1948 को हुए बम विस्फोट की घटना के बाद भी गांधी जी ने सरदार पटेल को धमकी दे दी थी कि यदि प्रार्थना सभा में आने वाले किसी भी व्यक्ति की तलाशी ली गई तो वे उसी क्षण से आमरण अनशन शुरू कर देंगे। आखिर वही हुआ जो गांधी जी के अनुसार ईश्वर को मंजूर था। 30 जनवरी 1948 को प्रार्थना सभा में नाथू राम गोड्से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी। वह पिस्तौल लेकर प्रार्थना सभा में गांधी जी के पास तक आसानी से पहुंच गया था। यदि आगंतुकों की तलाशी हुई होती तो गोड्से की पिस्तौल तो पकड़ ही ली गई होती। महात्मा गांधी यदि सौ साल तक जीवित रहते तो इस देश की तस्वीर शायद कुछ और ही बन सकती थी। शायद बेहतर होती।

     जब महात्मा गांधी की जान नहीं बचा पाने के लिए कसूरवार ठहराते हुए जय प्रकाश नारायण और डा. राम मनोहर लोहिया ने तत्कालीन स्वराष्ट्र मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल पर तीखा वाक् प्रहार किये तो पटेल ने इन शब्दों में उसका प्रत्युत्तर दिया, ‘समाजवादी कहते हैं कि मैं महात्मा की रक्षा करने में असफल रहा। मैं महात्मा गांधी की सुरक्षा के लिए किए गए अनेक उपाय, जो मानव मस्तिष्क में आ सकते हैं, का यहां ब्योरा देते हुए उनके आरोप को अस्वीकार करता हूं।’ दरअसल गांधी जी तलाशी को ही राजी नहीं थे तो सरदार पटेल कितना कुछ करते!

    इसी तरह जून, 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुए ‘ब्लू स्टार आपरेशन’ के बाद प्रधानमंत्री आवास से सारे सिख सुरक्षाकर्मी हटा दिए गए थे। ऐसा इंदिरा जी को बताए बिना किया गया था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस पर सख्त नाराजगी जाहिर की। उनके सचिव आर.के. धवन ने संबंधित सुरक्षा अधिकारी को बुलाकर पूछताछ की। अधिकारी से धवन ने कहा कि मैडम बहुत नाराज हैं। डी.सी. (पुलिस-सुरक्षा) ने कहा कि ब्लू स्टार आपरेशन के बाद अभी देश का माहौल तनावपूर्ण है। ऐसे में धार्मिक भावना में आकर कोई गार्ड प्रधानमंत्री की सुरक्षा पर खतरा पैदा कर सकता है।

   इस तर्क के बावजूद इंदिरा गांधी के सख्त आदेश के मद्देनजर धवन ने उस अफसर को निदेश दिया। आदेश यह था कि वह सिख सुरक्षाकर्मियों को प्रधानमंत्री आवास में इस तरह तैनात करें ताकि वे अक्सर प्रधानमंत्री की नजरों के सामने आते रहंे। ऐसा ही हुआ। नतीजा सामने था। सिख संतरियों ने उनके आवास में ही इंदिरा गांधी की हत्या कर दी। प्रतिक्रियास्वरूप हजारों सिख मार डाले गये।

प्रधानमंत्री आवास में यदि सिख संतरी नहीं होते तो हजारों निर्दोष सिखों की जान तो बच जाती। सिख संतरियों को हटाये जाने से जो नुकसान होना था, उससे अधिक कीमती हजारों सिखों की जान थी। पर इस देश के नेता यह समझें तब तो !

  राजीव गांधी की हत्या तमिल उग्रवादियों ने 1991 में कर दी। उससे तीन सप्ताह पहले राजीव गांधी के सुरक्षा अधिकारी प्रदीप गुप्त ने एक पत्रकार को बताया था कि ‘मैं जानता हूं कि राजीव गांधी अपनी सुरक्षा के प्रति लापारवाह हैं। पर हम सावधान हैं। यदि कुछ होता है तो वह मेरी लाश पर होगा।’

  अब एक रपट पढि़ए जिसमें यह दर्ज है कि किस तरह  राजीव गांधी ने मौत को अपने पास बुलाया था। ‘राजीव गांधी 10 बजे रात में पहुंचे और तुरंत माला पहनानेवाले लोगों ने उन्हें घेर लिया। महिला सब इंस्पेक्टर अनुसूया ने एक बार फिर धनु को राजीव के निकट जाने से रोकने की कोशिश की। उन्होंने करीब- करीब उस हत्यारिन को पकड़ ही लिया था। लेकिन अनुसूया के अनुसार खुद राजीव गांधी ने कहा कि सबको मौका दो। उसके बाद अनसूया वहां से दूर चली गयी। इस तरह खुद उसकी जान बच गयी। धनु इस प्रकार झुुकी ंंजैसे राजीव के पैर छूना चाहती है। फिर राजीव उसे उठाने के लिए झुके। तभी धनु के दाहिने हाथ की उंगली ने बम का स्विच दबा दिया।’

  सन 2002 में लोकसभा के स्पीकर बालयोगी की आंध्र प्रदेश में हेलिकाॅप्टर दुर्घटना में मौत हो गयी। इस मामले में भी सुरक्षा नियमों का सरासर उलंघन किया गया था। नियम है कि वी.वी.आई.पी. जिस विमान या हेलिकाॅप्टर से यात्रा करेंगे, वह दो इंजन वाला होना चाहिए। उसमें दो पायलट भी होने जरूरी हैं। बालयोगी के मामले में इस में से किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया था।

  सन् 1988 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के लिए एस.पी.जी.सुरक्षा का कानूनी प्रावधान किया गया। पर यह सुविधा तब लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता को नहीं दी गयी थी। दरअसल जब नेता सत्ता में होते हैं तो वे सत्ता के नशे में यह नहीं समझ पाते कि वे खुद कभी प्रतिपक्ष में भी जाएंगे।

 इस तरह 1989 में जब राजीव गांधी प्रतिपक्ष के नेता बने तो उन्हें एस.पी.जी. सुविधा उपलब्ध नहीं थी। 1989 में वी.पी. सिंह की सरकार ने भी प्रतिपक्ष के नेता के लिए इसकी जरूरत नहीं समझी थी। यहां तक कि जब 1990 में कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने तौभी राजीव गांधी के लिए एस.पी.जी.सुरक्षा का प्रावधान नहीं किया गया। कांग्रेस ने इसकी मांग भी नहीं की।

 पर जब तमिलनाडु में 1991 में राजीव गांधी की हत्या हो गयी तो कांग्रेस ने वी.पी. सिंह पर आरोप लगाया कि उन्होंने राजीव गांधी को यह सुविधा नहीं दी थी। इस तरह वी.पी. ने राजीव की सुरक्षा को नजरअंदाज किया। पर जब कोई नेता खुद ही अपनी सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहा हो तो भला कोई क्या कर सकता है ?

 राहुल गांधी को तो एस.पी.जी. की सुरक्षा मिली हुई है। फिर भी वह कई बार उसका उपयोग ही नहीं करते। राहुल अपनी विदेश यात्रा में एस.पी.जी. का सुरक्षा कवर नहीं लेते। हाल के गुजरात दौरे में भी राहुल गांधी अपने बुलेट प्रूफ कार के बदले एक अन्य कार पर सवार थे। उसी पर रोड़े लगे थे।

इस मामले में भी कांग्रेसी नेतागण सरकार पर आरोप लगा रहे हैं। राजनीतिक लाभ के लिए वे सिर्फ यही कर सकते हैं। क्योंकि वे सुरक्षा के प्रति सावधान रहने की सलाह राहुल गांधी को देने की हिम्मत तो कर नहीं सकते!
हालांकि यदि बड़े नेताओं के साथ कुछ बुरा घटित होता है तो उसका कुपरिणाम देश और संबंधित पार्टी को भी भुगतना पड़ता है। कल्पना कीजिए कि यदि राजीव गांधी हमारे बीच आज भी होते तो क्या होता ? कम से कम कांग्रेस लोकसभा में 44 सीटों पर तो नहीं ही सिमटती !  

(इस लेख का संपादित अंश 18 अगस्त, 2017 के दैनिक जागरण में प्रकाशित)