गुरुवार, 31 मार्च 2022

 स्टेप्स आॅफ डेस्टिनी

(यानी नियति के डेग)

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इसी नाम से एक संस्मरणात्मक पुस्तक आने वाली है।

अभी कलमबद्ध, साॅरी कम्प्यूटरबद्ध हो रही है।

लेखक हैं अवकाशप्राप्त आई.ए.एस.अधिकारी राम उपदेश सिंह विदेह।

  राम उपदेश बाबू, जो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं,कई पुस्तकों के लेखक हैं।

उनकी अगली पुस्तक संस्मरणात्मक होगी।

यानी,प्रशासन व राजनीति से जुड़े उनके संस्मरण।

यदि ऐसी हस्तियों की संस्मरणात्मक पुस्तक आए तो वह किताब अफवाहों के कुछ बादलों को भी छांटेंगी। 

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डा.विजय राणा बी बी सी से जुड़े रहे।

अब लंदन में रहते हैं।

कल ही उनसे बातें हो रही थीं।

उन्होंने बताया कि ब्रिटेन में तो अपने मुहल्लों के इतिहास-भूगोल के विवरण  भी लोग लिखते रहते हैं।

भारत में तो बड़ी -बड़ी बातें जानने वाले अधिकतर लोग भी अपने संस्मरण लिखने में संकोच करते हैं।

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खुशी  की बात है कि ‘स्टेप्स आॅफ डेस्टिनी’ के जरिए हम बिहार की ब्यूरोके्रसी और राजनीति के बारे में संभवतः कई ऐसी बातें जान पाएंगे जो अन्यथा नहीं जान पाते।

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सुरेंद्र किशोर

31 मार्च 22 

 



 करीब दस साल पहले की बात है।

बिहार के एक पूर्व सांसद ने मुझे गंगा पार से फोन किया।

कहा कि ‘‘मैं आज शाम चार बजे (पटना के )स्टेट गेस्ट हाउस में रहूंगा।आपसे वहीं मिलना चाहता हूं।’’

मैं पौने चार बजे ही वहां पहुंच गया।

जब छह बजे तक नहीं आए तो मैं घर लौट आया।

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दिवंगत नेता जी को कहीं देर हो गई होगी।

किंतु उनके हाथ में हमेशा मोबाइल रहता था।

फोन कर देते

कि मैं नहीं आ पाऊंगा।

तो, मेरा समय बर्बाद नहीं होता।

किंतु उन्होंने वह काम नहीं किया।

जब वे एक व्यस्त पत्रकार के साथ ऐसा कर सकते थे तो आम आदमी के साथ क्या करते होंगे आप कल्पना कर लीजिए।

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कुछ महीने पहले एक चैनल के पटना संवाददाता ने मुझे फोन किया,‘‘हमारे चैनल हेड दिल्ली से आए हैं।

आपसे मिलना चाहते हैं।

मैंने उन्हें हतोत्साहित करने के लिए कहा कि मैं मुख्य नगर से दूर रहता हूं।

 आने -जाने में उनका बहुत समय लग जाएगा।

उनसे फोन पर ही बात करा दीजिए।

उन्होंने जिद की,‘‘नहीं, नहीं आपसे मिलना चाहते हैं।’’

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चैनल हेड साहब किसी अन्य अधिक जरूरी काम में व्यस्त हो गए होंगे।

नहीं आए।

कोई बात नहीं।

किंतु उनके संवाददाता जी मुझे सूचित कर देते कि हम नहीं आ पा रहे हैं तो मैं मानता कि उन्हें दूसरे के समय की भी चिंता है।

  याद रहे कि यदि कोई अतिथि आपके यहां आने वाले होते हैं तो आपके पूरे परिवार का ध्यान उधर ही रहता है जब तक वे आकर चले न जाते।

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यह कोई इक्की-दुक्की घटना नहीं है।

ऐसा अक्सर होता रहता है।

अरे भाई !

जरा जिम्मेदार व्यक्ति बनिए।

लोग मिलते हैं तो मुझे अच्छा लगता है।

यदि नहीं मिलते हैं तो और भी अच्छा लगता है।

किंतु जब कह कर भी नहीं आते तो बहुत बुरा लगता है।

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मेरे पास समय कम है और करने योग्य काम बहुत बचा हुआ है।

साथ ही, घर खर्च चलाने के लिए अखबारों व वेबसाइट के लिए मुझे बहुत लिखना पड़ता है।

 मेरे पास किसी को देने के लिए मेरा सिर्फ अच्छा-बुरा लेखन है।

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मैं आम तौर पर किसी के यहां नहीं जा पाता तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं उस व्यक्ति की उपेक्षा करता हूं।

दरअसल मेरे पास अब समय बहुत कम बचा है। 

पता नहीं, कितना बचा है।

वह तो सिर्फ ईश्वर जानता है।

पर, जो भी बचा है,उसका बेहतर इस्तेमाल करना चाहता हूं।

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सुरेंद्र किशोर

30 मार्च 22

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      अभूतपूर्व मोरचा का अभूतपूर्व लक्ष्य

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‘‘अखिल भारतीय सी.बी.आई.पीड़ित, ई.डी.पीड़ित, इनकम टैक्स महकमा पीड़ित व सी.वी.सी. पीड़ित मोरचा’’ के गठन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

  ऐसे सारे ‘पीड़ित-प्रताड़ित’ नेताओं व उनके परिजनों से अपील है कि वे इस प्रस्तावित मोरचा में जल्द से जल्द शामिल हों और इसको मजबूत करें।

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यह मोरचा इसी मुद्दे पर अगला चुनाव लड़ेगा कि हम सत्ता में आने के बाद इन सरकारी एजेंसियों को हिन्द महा सागर में डूबो देंगे ताकि हमारी हर तरह की ‘आजादी’ बनी रहे।

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बुधवार, 30 मार्च 2022

 मुफ्ती मोहम्मद सईद से पहले या बाद में भी किसी मुस्लिम को इस देश का गृह मंत्री नहीं बनाया गया ?

 खुद को सर्वाधिक सेक्युलर घोषित करने वाले नेहरू -गांधी परिवार के किसी प्रधान मंत्री ने भी ऐसा करने की ‘हिम्मत’ नहीं की।

आखिर क्यों ?

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क्योंकि देश-दुनिया ने देखा कि मुफ्ती के कार्यकाल में कश्मीर में पंडितों के साथ क्या-क्या हुआ !

क्या-क्या नहीं हुआ ?

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      अभूतपूर्व मोरचा का अभूतपूर्व लक्ष्य

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‘‘अखिल भारतीय सी.बी.आई.पीड़ित, ई.डी.पीड़ित, इनकम टैक्स महकमा पीड़ित व सी.वी.सी. पीड़ित मोरचा’’ के गठन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

  ऐसे सारे ‘पीड़ित-प्रताड़ित’ नेताओं व उनके परिजनों से अपील है कि वे इस प्रस्तावित मोरचा में जल्द से जल्द शामिल हों और इसको मजबूत करें।

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यह मोरचा इसी मुद्दे पर अगला चुनाव लड़ेगा कि हम सत्ता में आने के बाद इन सरकारी एजेंसियों को हिन्द महा सागर में डूबो देंगे ताकि हमारी हर तरह की ‘आजादी’ बनी रहे।

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 किस नेता के निदेश पर कैप्टेन सरकार की पुलिस ने 

 पंजाब जेल में दो साल तक रखा था मुख्तार अंसारी को ?

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सुरेंद्र किशोर

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पंजाब पुलिस ने मुख्तार अंसारी को फर्जी केस में फंसाया और उसे रोपड़ जेल में दो साल तक रखा।

योगी आदित्यनाथ सरकार की पुलिस के कोप से अंसारी को बचाने के लिए ऐसा इंतजाम वहां के कांग्रेसी मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कराया था।

सुनते हैं कि खुद तो कैप्टेन साहब कुल मिलाकर ठीकठाक नेता हैं।

पर यह आम धारणा है कि यह काम उन्होंने कांग्रेस के किसी शीर्ष नेता के कहने पर किया था।

  जरा उस नेता का नाम भी बता दीजिए कैप्टेन साहब !

अब आपको कांग्रेसियों से कैसी ममता ?

बता दीजिएगा तो ‘‘आधुनिक राजनीति’’ के बारे में नई पीढ़ी का कुछ ज्ञान वर्धन होगा।

सीधे नहीं बता सकते हों तो किसी पत्रकार के कान में धीरे से ‘लीक’ कर दीजिए।

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29 मार्च 22

  


मंगलवार, 29 मार्च 2022

     

यदि उन्हें पद्मश्री नहीं मिला होता तो इस देश की मुख्य धारा की मीडिया के जरिए आपको यह पता नहीं चल पाता कि 

दुनिया के सबसे उम्रदराज व्यक्ति 124 साल के बाबा शिवानंद काशी में रहते हैं।

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मुझे सोशल मीडिया से पता चला कि इस देश में एक ट्रेन की लंबाई करीब पौने तीन किलोमीटर है।

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यह बात तो मुझे किसी मीडिया की जगह एक पत्रकार ने 

बताई कि मुजफ्फर पुर जिले के एक समाजवादी परिवार ने अपनी बहुत सारी जमीन दूसर जरूरतमंदों को दान में दे दी।

यह परिवार पूर्व जमीन्दार था।

मैं इस डर से नाम नहीं बता रहा हूं कि वे बुरा न मान जाएं।

क्योंकि वह नेकी कर दरिया में डाल देने की प्रवृति वाला परिवार  हैं।

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समाजवादी नेता राजनारायण जब भी अपने गांव (रामनगर,काशी) जाते थे तो अपनी कुछ पुश्तैनी जमीन किसी गरीब को दे देते थे।

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और, आज के अधिकतर तथाकथित समाजवादियों का क्या हाल है ?

वे तो उल्टी गंगा बहा रहे हैं।

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सुरेंद्र किशोर

29 मार्च 22

 


रविवार, 27 मार्च 2022

 कलयुग या कल -पुर्जा युग ?

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सुरेंद्र किशोर

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सतयुग,

त्रेता,

द्वापर

और अब कलयुग।

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कलयुग के बाद क्या ?

या, फिर कलयुग के साथ क्या-क्या  ?

कलयुग में क्या ?

कल-पुर्जा युग ??

नहीं,

स्मार्ट फोन युग

हां,

यह भी विशेष तरह का कल- पुर्जा ही तो है 

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गांव से लेकर शहर तक, खेत से खलिहान तक ,जहां भी नजर दौड़ाइए -- लोग स्मार्ट फोन में अटके पड़े हैं।

एक ही तरह की इतनी अधिक चीजें, इतने अधिक लोगों के हाथों में इससे पहले कभी आपने देखा जितनी संख्या में स्मार्ट फोन आज आप देख रहे हैं ?

नहीं ।

अब कुछ लोग अपने अतिथियों को यह कहने की हिम्मत जुटा रहे हैं कि भई, जब भी मेरे यहां आइए,स्मार्ट फोन अपने घर पर ही छोड़ आइए।

अपने साथ सिर्फ पुश बटन मोबाइल सेट ला सकते हैं।

   क्या ऐसा कहने की हिम्मत आप भी अपने अतिथियों से करेंगे ?

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26 मार्च 22

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पुनश्चः

मौजूदा पीढ़ी पर स्मार्ट फोन के भयंकर परिणामों के बारे में विशेषज्ञ लोग अपनी माथापच्ची करते रहें,चेतावनी देते रहें ,कोई कुछ सुनने-मानने वाला नहीं है ।

   रूस के पुतिन की आत्मा उन लोगों में पहले ही समा चुकी है !!!

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26 मार्च 22

 


 सरकारी ‘जिला स्कूलों’ को सेंट्रल

 स्कूलों के प्रबंधन को सौंप दें

या फिर 

 जिला स्कूलों को निजी किंतु 

अनुभवी हाथों में दे दें !

     --सुरेंद्र किशोर-- 

राज्य सभा के सदस्य व बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की यह मांग सही है कि केंद्रीय विद्यालयों में सांसद कोटा समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

अन्य बातों के अलावा मोदी ने यह भी कहा है कि 10 विद्यार्थियों के कोटे के कारण सांसदों को जनता की नाराजगी झेलनी पड़ती है।

क्योंकि सिर्फ दस पाते हैं और बाकी सैकड़ों लोग निराश होकर लौटते हैं। 

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यह तो सांसदों की बात हुई।

इसके साथ ही, सांसदों के मित्रों-परिचितों-रिश्तेदारों को भी अपने लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ती है।

अनेक लोग यह समझते हैं कि मेरा मित्र यदि अपने मित्र सांसद महोदय से कह देता तो हमारे परिजन विद्यार्थी को जरूर दाखिला मिल जाता।

  पर, जब खुद सांसदों का यह हाल है तो वह अपने मित्र के कंडीडेट को दाखिला कैसे करा देगा ?

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दरअसल इस देश के अधिकतर सरकारी स्कूलों की शिक्षा-व्यवस्था ध्वस्त हो जाने के कारण लोगबाग सेंट्रल स्कूल की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं जहां की शिक्षण-व्यवस्था सही है।

  ऐसी समस्या एक हद तक स्थायी समाधान खोजती हैं

समाधान यह हो सकता है कि कम से कम हर जिले के एक सरकारी स्कूल को,जिनमें आधारभूत संरचना बेहतर होती है,  निजी हाथों में सौप दिया जाए।ऐसे हाथों में जिसे पहले से एक सफल निजी स्कूल चलाने का लंबा अनुभव हो।

सरकार फीस में सब्सिडी दे।

या फिर सरकारी जिला स्कूलों को नजदीक के सेंट्रल स्कूलों के प्रबंधन से जोड़ दिया जाए।

या कोई तीसरा उपाय हो जिससे अल्प आय वाले अभिभावकों का कल्याण हो और शिक्षा की गुणवत्ता भी बनी रहे। 

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26 मार्च 22 


 सदन की सदस्यता की शपथ लिए बिना 

अखिलेश यादव प्रतिपक्ष के नेता नियुक्त  

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यह कैसे हुआ ?

संविधान विशेषज्ञ मार्ग दर्शन करें 

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सुरेंद्र किशोर

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उत्तर प्रदेश विधान सभा सचिवालय के प्रधान सचिव प्रदीप दुबे के अनुसार अखिलेश यादव सदन में प्रतिपक्ष के नेता 

नियुक्त कर दिए गए हैं।(इंडियन एक्सप्रेस-27 मार्च 22)

  सवाल है कि जब अखिलेश यादव या किसी अन्य चुने हुए सदस्य ने अभी सदन की सदस्यता की शपथ नहीं ली है तो

प्रतिपक्ष के नेता की नियुक्ति में ऐसी जल्दीबाजी क्यों ?

एक न एक दिन बनना तो अखिलेश जी को ही था।

फिर प्रारंभिक प्रकिंया पूरी क्यों नहीं होने दी गई ?

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27 मार्च 22


शनिवार, 26 मार्च 2022

          झुक कर नमस्कार करने का राज 

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    पिछले महीने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सिर्फ डा.राममनोहर लोहिया,जार्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार को ‘सच्चा समाजवादी’ कहा था।

  कल नीतीश कुमार ने लखनऊ में प्रधान मंत्री को कुछ अधिक ही झुक कर नमस्कार किया।

 मुझे लगता है कि मुख्य मंत्री ‘सच्चा समाजवादी’ कहने के कारण मोदी जी के प्रति उस मुद्रा के जरिए विशेष आभार व्यक्त  कर रहे थे।

 लोहिया और जार्ज तो अब इस दुनिया में नहीं हैं।

यानी,प्रधान मंत्री के अनुसार, जीवित नेताओं में नीतीश कुमार एकमात्र सच्चे समाजवादी हैं।

 मोदी जी ने हालांकि सच्चे समाजवादी का एक ही लक्षण बताया था।

--यह कि लोहिया,जार्ज और नीतीश के परिवार का कोई भी व्यक्ति राजनीति में नहीं है।

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सचमुच किसी बड़े नेता के लिए यह बड़ा मुश्किल काम होता है कि वे कैसे अपने बाल -बच्चों को राजनीति में आने से रोकें।

रोकने की केशिश में एक बड़े नेता को अपनी जान गंवाते मैंने देखा-जाना है।

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डा.श्रीकृष्ण सिंह और कर्पूरी ठाकुर ने तो कह दिया था कि यदि मेरे पुत्र को टिकट देना है तो मैं खुद चुनाव नहीं लड़ूंगा।

आज के बेटे होते तो वे कह देते कि ‘‘ठीक है पिता जी, अब आप आराम कीजिए।’’

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उन बेटों को धन्यवाद कीजिए जिन बेटों ने तब बाप का मान रख लिया था।

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शिवनाथ काटजू नामक पुत्र ने भी अपने पिता कैलाशनाथ काटजू का मान रख लिया था।

बात तब की है जब कैलाशनाथ काटजू पश्चिम बंगाल के गवर्नर थे।

वहां के एक बड़े व्यवसायी ने शिवनाथ काटजू को अपना कानूनी सलाहकार बनाने का प्रस्ताव किया।

पुत्र ने खुशी होकर अपने पिता को सूचित किया।

गवर्नर साहब ने जवाब दिया,बड़ी खुशी की बात है कि तुम इतने योग्य हो गये हो।तुम्हारी तरक्की पर मैं खुश हूं।

किंतु योगदान करने से पहले मुझे कुछ समय दो ताकि मैं राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दूं।

उसके बाद तुम कानूनी सलाहकार बन जाना।

बेटा ने पिता का मान रखते हुए कह दिया मैं वह पद स्वीकार नहीं करूंगा।

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 26 मार्च 22


  


शुक्रवार, 25 मार्च 2022

 जानी-अनजानी बातें

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 चर्चित नेता मुलायम सिंह यादव के बारे में जो बातें डा.रवीन्द्र नाथ तिवारी(प्रधान संपादक ‘‘भारत वार्ता’’)ने लिखी हैं,वह सब मैं पहले नहीं जानता था।

  ‘‘........अमित शाह ने कहा कि राहुल गांधी की तरह अखिलेश भी नेता नहीं, हवा-हवाई हैं।

 फिर अमित शाह बताने लगे कि मुलायम सिंह संघर्ष से उपजे थे।

मुलायम उन्हें बताते थे कि ‘‘अमित,मैं 5 रुपए में पांच से छह बार कुश्ती लड़ता था।

बदले में मुझे एक ग्लास दूध मिलता था।

कुश्ती लड़ने के लिए मुलायम 30 किलोमीटर साइकिल चलाकर अखाड़ा जाया करते थे।’’

अमित शाह बोले कि वहां से उठकर मुलायम सिंह तीन-तीन बार प्रदेश के मुख्य मंत्री बने।

पूरी राजनीति का शीर्षासन करा दिया।’’

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--मासिक पत्रिका ‘भारत वार्ता’,पटना - मार्च 2022-

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गुरुवार, 24 मार्च 2022

 यदि किसी ने आपकी कभी गाढ़े में मदद की 

है तो उसे आप जरूर कृतज्ञतापूर्वक याद रखिए

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इससे मददगार को किसी अन्य को भी मदद 

करने की इच्छा होगी

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सुरेंद्र किशोर

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एक बार किसी ने स्वामी विवेकानन्द से कहा था,

‘‘फलां व्यक्ति आपकी बड़ी आलोचना कर रहा था।’’

उस पर विवेकानन्द ने कहा कि ‘‘आपकी बात गलत है।’’

‘‘क्यों’’--उस व्यक्ति ने सवाल किया।

विवेकानन्द ने कहा,

‘‘क्योंकि मैंने तो कभी उसका कोई भला किया ही नहीं !’’

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  ऐसा क्यों होता है ?

इसका जवाब ओशो यानी आचार्य रजनीश ने अन्य संदर्भ में दिया है।

रजनीश के अनुसार, ‘‘आप जिसका भला करते हैं,वह आपके सामने आने पर खुद को छोटा महसूस करने लगता है।

उस हीन भावना से उबरने के लिए आपकी आलोचना करके वह आपसे खुद को बड़ा साबित करने की कोशिश करता है।’’

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किसी को उसकी कभी की मदद के लिए याद करने का अच्छा प्लेटफार्म आज यह सोश्ल मीडिया है।

इसमें कोई शुल्क तो लगना नहीं है।

मैं ऐसी ही एक शुरूआत करता हूं।

कुछ दशक पहले की बात है।

प्रो.जाबिर हुसेन तब बिहार विधान परिषद के सभापति थे।

(अब तो वे सक्रिय राजनीति से अलग हैं और साहित्य में डूबे हुए हैं।)

मैं तब अपनी पत्रकारीय लेखन को लेकर भारी परेशानी में पड़ गया था।

 उस परेशानी से निकलना मेरे लिए कठिन हो रहा था।

 मुझे याद नहीं कि मैंने इसके लिए जाबिर साहब से खुद कोई मदद मांगी थी या नहीं। 

  जो हो,उनकी भरपूर मदद मुझे मिली।

इस तरह उन्होंने मेरा तनाव दूर कर देने का उपाय कर दिया।

लगे हाथ बता दूं कि जिस रपट के कारण मैं परेशानी में पड़ा था,उस रपट में मेरी कोई गलती नहीं थी।

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23 मार्च 22


 पूर्व सांसद देवेंद्र प्रसाद यादव भी राजद में शामिल हो गए।

उनसे पहले नामी-गिरामी नेता शरद यादव राजद में शामिल हो चुके हैं।

राजद में शामिल होने का उनका फैसला सही है।

ये बड़े नेता पहले छोटे दलों में थे।

यानी, गुरदेल की गोली थे।

अब बंदूक की गोली हो गए हैं।

हालांकि इन दोनों में से किसी नेता का वास्तविक गोली-बंदूक से कभी कोई सीधा संबंध नहीं रहा है। 

इस देश में दलों की संख्या जितना कम हो तो लोकतंत्र उतना ही बेहतर ढंग से काम करेगा।

वैसे भी कुछ छोटे -छोटे दल धीरे -धीरे कमजोर होते जा रहे हैं।

आगे भी ऐसे बाकी दलों का भविष्य बेहतर नजर नहीं आ रहा है।

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सुरेंद्र किशोर

24 मार्च 22


सोमवार, 21 मार्च 2022

    23 मार्च डा.लोहिया का जन्म दिन है

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आज देश के कई नेतागण डा.राममनोहर लोहिया का बहुत नाम लेते रहते हैं।

इन नेताओं ने लोहिया के नाम पर स्मारक भी बनवाए हैं।

इन नेताओं में अत्यंत थोड़े से नेता ही हैं जो लोहिया का नाम लेने लायक हैं।

अधिकतर नेतागण लोहिया के राजनीतिक व जीवन मूल्यों के ठीक विपरीत काम करते रहते हैं।

यदि लोहिया आज जीवित होते तो ऐसे नेताओं से मिलने से भी इनकार कर देते।

इससे नई पीढ़ी को कई बार यह गलतफहमी हो जाती है कि क्या लोहिया भी आज के इन भ्रष्ट-वंशवादी-परिवारवादी नेताओं जैसे ही थे जो आज लोहिया के नाम का तोता रटंत करते रहते हैं ?

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इस गलतफहमी को दूर करने के लिए लोहिया साहित्य पढ़ने-पढ़ाने की आज जरूरत अधिक है।

जिन्हें वास्तविक समाजवादी आंदोलन में रूचि है,वे जरूर पढ़ंे।

  पर, कहां से लेकर पढ़ें ?

बाजार में कुछ लोहिया साहित्य उपलब्ध जरूर हैं,पर वह काफी महंगा है।

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मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक रमाशंकर सिंह ने अपने आई टी एम विश्व विद्यालय (ग्वालियर) के जरिए लोहिया साहित्य प्रकाशित किए हैं।

  विद्यार्थियों के लिए पुस्तकों की कम कीमत रखी गई है।

जिन्हें रूचि हो,वे वहां से मंगा सकते हैं।

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प्रकाशक का पता है-

पत्रकारिता एवं जन संचार विभाग ,

आई.टी.एम.यूनिवर्सिटी

ग्वालियर

मध्य प्रदेश

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सुरेंद्र किशोर

21 मार्च 22


     उत्तर प्रदेश में भाजपा की 2022 में 

    शुरू हुई नई परंपरा

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  2023 के विधान सभा चुनावों में भी भाजपा नहीं 

  देगी अपने सांसदों के परिजनों को टिकट

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 वंशवादी-परिवारवादी दलों से अलग दिखने 

  की नरेंद्र मोदी  की कोशिश

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सुरेंद्र किशोर

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  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि हमने पांच राज्यों के गत चुनावों में किसी सांसद के परिजन को टिकट नहीं दिए।

यानी, उन्होंने 2022 से यह परंपरा शुरू की है।पहले ऐसा नहीं था।

राजनाथ सिंह के पुत्र पहली बार 2017 में ही विधायक बन गए थे।

उम्मीद है कि मोदी जी अपने नए स्टैंड पर अब कायम रहेंगे और 2023 के विधान सभा चुनावों में वे न किसी सांसद बल्कि किसी मंत्री या विधायक के परिजन को भी टिकट नहीं देंगे।

   मध्यप्रदेश और राजस्थान सहित करीब आधा दर्जन प्रदेशों में 2023 में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं।

 खबर है कि इन राज्यों के परिवारवादी भाजपा नेता अभी से चिंतित किंतु सतर्क हो गए हैं।

 उन्हें लगता है कि मोदी उत्तर प्रदेश की कहानी जरूर दुहराएंगे और उनके परिजन टिकट से वंचित रह जाएंगे।

  बेहतर हो,वे ऐसे दलों से अपने परिजन के लिए टिकट का जुगाड़ कर लें जिनके लिए परिवारवाद-वंशवाद कोई गंदा शब्द नहीं है।बल्कि राजनीति की सामान्य प्रक्रिया है।

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शनिवार, 19 मार्च 2022

 खुद को खतरे में डालकर मधु लिमये की जान

बचाने वाले रामदेव सिंह यादव नहीं रहे

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सुरेंद्र किशोर

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बिहार सरकार के पूर्व मंत्री रामदेव सिंह यादव का गुरुवार को मुंगेर मंे निधन हो गया।

वे 84 साल के थे।

वे मुंगेर से विधायक हुआ करते थे।

1990 से 1994 तक रामदेव यादव लालू प्रसाद मंत्रिमंडल में थे।

वे महाबली नेता लालू प्रसाद से भी दबते नहीं थे।

यदा कदा दोनों के बीच मतभेद सामने आता रहता था। 

रामदेव जी शरीर से मजबूत व साहसी व्यक्ति थे।

उन्होंने सन 1967 में मुंगेर में एक जानलेवा हमले में  मधु लिमये को बचाया था।

राजनीतिक विरोधियों के हमले से जब मधु लिमये जमीन पर गिर गए तो 

मधु लिमये के शरीर को ढकते हुए रामदेव यादव ने उन्हें बचाया और खुद भी चोट खाई।

मधु लिमये और राम देव दोनों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था।

मधु लिमये के करीबी रहे पूर्व सांसद राजनीति प्रसाद से मैंने आज पूछा कि क्या उस हमले के आरोपितों को कोई सजा हुई थी ?

उन्होंने कहा, नहीं।

 मधु लिमये 1967 में मुंगेर लोक सभा चुनाव क्षेत्र में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे।

उनके खिलाफ कांग्रेस के चंद्र शेखर सिंह मुख्य मुकाबले में थे।

मधु लिमये 1967 में दूसरी बार मुंगेर से विजयी हुए थे।

उन्हें एक लाख 8 हजार 111 मत मिले।

कांग्रेस के उम्मीदवार को 71 427 मत मिले।

उससे पहले 1964 में हुए उप चुनाव में मधु लिमये मुंगेर से जीत कर पहली बार लोक सभा गए थे।

1971 में मुंगेर में मधुजी, कांग्रेस के डी.पी.यादव से हार गए।

बाद में वे बांका से दो बार सांसद रहे।

1971 के चुनाव से ठीक पहले इंदिरा गांधी ने ‘शेेर ए बिहार’ रामलखन सिंह यादव के समक्ष आंचल फैला कर कहा था कि आप मुझे मुंगेर और बाढ़ की सीट जितवा दीजिए।

  याद रहे कि इंदिरा जी तारकेश्वरी सिन्हा(बाढ़) और मधु लिमये को किसी भी कीमत पर हरवाना चाहती थीं।

दोनों हार गए।

लालू प्रसाद के उदय से पहले तक दिवंगत रामलखन सिंह यादव ही बिहार के यादवों के सबसे बड़े नेता थे।

उनके समर्थक उन्हें ‘शेर ए बिहार’ कहते थे।

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18 मार्च 22 


गुरुवार, 17 मार्च 2022

 अनिल अंबानी का व्यापारिक साम्राज्य डूब रहा है।

इसका मतलब यह तो नहीं कि वे अपने कारोबार को 

किसी अन्य व्यक्ति को सौंप कर खुद हिमालय चले जाएं या विदेश में बस जाएं ?!!

  उसी तरह यदि कोई खानदानी राजनीतिक पार्टी डूब रही है तो इसका मतलब यह तो नहीं ,वह दल, खानदान से अलग किसी अन्य व्यक्ति को सौंप दिया जाए !

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एक समय था जब राजनीति सेवा थी।

बाद में नौकरी हुई।

फिर व्यापार बनी।

अब उद्योग है।

अपवादों की बात और है।

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पुनश्चः

संकेत हैं कि खानदानी पार्टियां एक -एक कर डूबेंगी।

कुछ जल्दी और कुछ अन्य देर से।

जिन दलीय सुप्रीमो ने चंबल के डकैतांे (बेचारे वे तो कुछ हजार-लाख पर ही संतोष कर लेते थे !!)की तरह देश के अरबों रुपए लूट कर रखे हैं और जिन पर गंभीर मुकदमे चल रहे हैं,वे भी देर-सवेर सत्ताधारी दल के समक्ष सरेंडर करेंगे।

गत चुनाव में उत्तर प्रदेश में ऐसी घटना घट चुकी है।

क्योंकि जेलों में बड़ा कष्ट होता है।

जयललिता,हर्षद मेहता अन्य उसके उदाहरण हैं।

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15 मार्च 22


 सन 2014 में इस देश के 14 राज्यों में कांग्रेस की सरकारें थीं।

तब तक केंद्र में भी मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री थे।

पर,पिछले 8 वर्षों में क्या हुआ ?

अब दो राज्यों में ही कांग्रेस की सरकारें हंै।

 कांग्रेस नेतृत्व की यही ‘उपलब्धि’ है।

विनोबा भावे कहते थे कि यदि आपका रसोइया 100 में से 60 रोटियां जला दे तो क्या उसे आप रसोइया बनाए रखेंगे ?

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पर,विनोबा की बात व्यक्तिगत रसोई घर तक सीमित रहती  है। 

क्योंकि रसोई आपकी है और आटा भी आपका।

पर कुछ राजनीतिक दलों व नेताओं के लिए तो न तो पार्टी उनकी है और न ही देश।

फिर फिक्र करने क्या जरूरत  ?

जब तक हो सके दल व देश से फायदा उठा लो।

बाद में देश जाने और दल जाने !

हमारी तो कोई ‘पूंजी’ लगी नहीं है।

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सोमवार, 14 मार्च 2022

 कौन हारा, कौन जीता ? 

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गत पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में भाजपा की  विधान सभा की सीटें 3 से बढ़कर 77 हो गईं ।

फिर भी इस देश के  खास तरह के बुद्धिजीवियों-पत्रकारों-नेताओं ने कहा कि भाजपा बंगाल में बुरी तरह हार गई।

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उत्तर प्रदेश चुनाव में सपा अपनी पिछली सीटों की अपेक्षा तिगुनी सीटें पा गईं।

77 में तीन से भाग दीजिए।

कितना आएगा ?

तिगुना से कितना अधिक है ?

पर, कोई ‘सेक्युलर’ या ‘गैर सेक्युलर’ यह नहीं कह रहा है कि सपा बुरी तरह हार गई।

बल्कि यह कहा जा रहा है कि अखिलेश बहादुरी से लड़े।

तब सेक्युलर ब्रिगेड की ओर से यह नहीं कहा गया कि ममता के ‘जंगल राज’ के बावजूद  भाजपा बहादुरी से लड़ी।

याद रहे कि चुनाव आयोग के एक अफसर ने तब कहा था कि पश्चिम बंगाल में नब्बे के दशक के बिहार जैसा ‘जंगल राज’ है।

बंगाल में जिस तरह भाजपा सत्ता में आने का दावा कर रही थी,उसी तरह का दावा सपा उत्तर प्रदेश में कर रही थी।

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सुरेंद्र किशोर



रविवार, 13 मार्च 2022

 जज ने अपने वेतन से लाचार 

विधवा के बैंक कर्ज चुकाए

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सुरेंद्र किशोर

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यह कहानी भागलपुर जिले के नव गछिया की है।

अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अमिताभ चैधरी ने अपने वेतन के पैसे से एक लाचार विधवा के बैंक कर्ज चुका दिए।

 लोक अदालत में उनके सामने एक सर्टिफिकेट केस आया।

नंदलाल दास ने स्टेट बैंक से कर्ज लिया था।

 कैंसर से उसकी मौत हो गई।

उसका पुत्र मंद बुद्धि का है।

विधवा कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं थी।

कर्ज तो अधिक था कि जज ने मामला का समझौता 25 हजार रुपए में करवाया। 

25 हजार रुपए जज ने स्वयं भगतान कर दिया।

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13 मार्च 22


    ग्रामीणों ने तो सड़क का आकार दे दिया

   शासन अब इसे बेहतर ‘मोटरेबल’ बनाए

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सुरेंद्र किशोर

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यह पटना एम्स के पास के मेरे गांव की कहानी है।

इसे आज के दैनिक भास्कर,पटना ने प्रकाशित किया है।

फुलवारीशरीफ अंचल की भुसौला दानापुर ग्राम पंचायत में एक गांव है--कोरजी।(कुर्जी नहीं)

  कोरजी से करीब एक किलोमीटर दूर स्थित है नेशनल हाईवे।

 इसी नेशनल हाईवे पर थोड़ी ही दूरी पर पटना एम्स अवस्थित है।

किंतु वहां पहुंचने के लिए लोगों को पहले घुमावदार राह अपनानी पड़ती थी।

कुछ साल पहले कोरजी के ग्रामीणों ने तय किया कि हम जमीन और चंदा देकर सड़क बनाएंगे।

चंदा देने वालों में इन पंक्तियों का लेखक भी था।

कोरजी गांव के विद्यानंद शर्मा तथा अन्य 20 किसानों ने सड़क के लिए अपनी जमीन मुफ्त में दे दी।

  सड़क तो बन गई है।

पर,इसे बेहतर मोटरेबल बनाने की अभी जरूरत है।

शायद भास्कर में छपी इस खबर के बाद किसी हुक्मरान की नजर इस पर और इस सड़क को बेहतर बनाने का कोई उपाय हो।

इससे अन्य स्थानों के वैसे लोगों को भी प्रोत्साहन मिलेगा जो लोग अपने प्रयास से सार्वजनिक काम करना चाहते हैं या करते हैं।

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11 मार्च 22 


गुरुवार, 10 मार्च 2022

 इन चुनाव नतीजों में कुछ बातें खास तौर से 

गौर करने लायक हैं।

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इन चुनावों में कौन हार रहा है ?

आम तौर पर वही जो राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद-जातिवाद-संप्रदायवाद को बुरा नहीं मानते।

जो अपने व अपने सहयोगियों के भ्रष्टाचारों और घोटालों का मजबूती से बचाव करते हंै।

जिनकी दृष्टि में कानून-व्यवस्था को प्राथमिकता पर रखने की कोई जरूरत नहीं है।

जो यह मानते हैं कि विकास से नहीं बल्कि सामाजिक-धार्मिक समीकरणों से वोट मिलते हैं।

जिनके लिए आतंकवाद-जेहाद वाद-अलगाव वाद कोई समस्या नहीं है।

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10 मार्च 22.


   


 कहीं जन औषधि केंद्रों का हाल आई डी पी 

एल जैसा न हो जाए !!

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सुरेंद्र किशोर

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जन औषधि केंद्र से मिल रही सस्ती दवाओं के 

कारण इस देश के मरीजों ने गत साल  

अपने 5 हजार करोड़ रुपए बचाए ।

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संकेत हैं कि यह बचत आने वाले दिनों में बढ़ सकती है।

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यदि एक तरफ मरीजों ने बचाए हैं तो दवा व्यवसाय में लगे अति मुनाफाखोर लोगों ने इतने ही पैसे गंवाएं भी हैं।

यानी, उनके मुनाफे में कमी आई है।

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जिन मुनाफाखारों को हर साल हजारों करोड़ रुपए का ‘घाटा’ 

होने लगेगा,वे चुप नहीं बैठेंगे।

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मेडिकल क्षेत्र के अति मुनाफाखोरों पर नकेल कसने के लिए 

सन 1961 में केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र में आई.डी.पी.एल.की स्थापना की थी।

 उसका दवा कारखाना बिहार के मुजफ्फर पुर में भी था।

उसकी दवाएं अत्यंत सस्ती व कारगर होती थीं।

पटना के मशहूर डाक्टर शिवनारायण सिंह सिर्फ उसी

कंपनी की दवा लिखते थे।

  उनकी दवा इसलिए भी कारगर होती थी क्योंकि आई.डी.पी.एल. की दवाओं में मिलावट से किसी को कोई खास लाभ नहीं होता था।

ब्रांडेड कंपनी की जो दवा दस रुपए में मिलती थी,आई डी पी एल की उसी फार्मूले वाली दवा दस आने में।

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मुनाफाखोर मेडिकल माफिया तथा अन्य तत्वों ने मिलकर आई डी पी एल को बंद करा दिया।

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जाहिर है कि निहितस्वार्थी तत्व जन औषधि केंद्रों की दवाओं को भी विफल करने के लिए सक्रिय हो गए होंगे।

  अब यह केंद्र सरकार की सतर्कता पर निर्भर है कि वह आई डी पी एल की पुनरावृति कैसे रोकती है।

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साठ के दशक में लोक सभा में यह आवाज उठी थी कि जिस पेंसिलिन के उत्पादन में मात्र तीन आने का खर्च आता है,उसे सात रुपए में क्यों बेचा जाता है ?

याद रहे कि दवा क्षेत्र में भारी अतार्किक मुनाफे को अब भी केंद्र सरकार नहीं रोक पाई है।

हां,जन औषधि की दवाओं की समानांतर व्यवस्था करके परोक्ष रूप से मुनाफा रोकने का सराहनीय प्रयास जरूर हो रहा है।

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देखना है कि अंततः मुनाफाखोर जीतते हैं या सरकार !!

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10 मार्च 22


 सन 2014 के लोक सभा चुनाव से ठीक पहले मशहूर कन्नड़ लेखक  यू.आर.अनंतमूत्र्ति 

ने कहा था कि यदि नरेंद्र मोदी सत्ता में आ गए तो मैं यह देश छोड़ दूंगा।

हालांकि उन्होंने बाद में अपना इरादा बदल लिया था।

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हाल में शायर मुनव्वर राणा ने कहा कि यदि योगी की सरकार फिर बन जाएगी तो मैं उत्तर प्रदेश छोड़ दूंगा।

उम्मीद है कि मुनव्वर साहब ने भी अब तक अपना इरादा बदल लिया होगा।

वैसे किसी मीडिया ने अब तक उनकी कोई खोज-खबर नहीं ली है।

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सुरेंद्र किशोर 

10 मार्च 22


बुधवार, 9 मार्च 2022

     लगातार गाछ बदलने वाली राजनीतिक अमरलत्तियां

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सुरेंद्र किशोर

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डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी,यशवंत सिन्हा और शरद यादव आदि अब भी  राज्य सभा की सदस्यता का मोह छोड़ने को तैयार नहीं हैं।

लगातार गाछ बदलने वाली अमरलतियां कब तक अपनी खैर मनाएंगी ?!!

  इनसे अच्छे तो एल.के.आडवानी और मुरली मनोहर जोशी हैं जो सम्मान के साथ रिटायर लाइफ बिता रहे हैैं।

  एक इशारे पर मधु लिमये को मुलायम सिंह यादव और कपिलदेव ंिसंह को कर्पूरी ठाकुर या मुलायम सिंह यादव उच्च सदन में भेज सकते थे।

 पर, जहां तक मेरी जानकारी है, मधु लिमये और कपिलदेव सिंह ने उसके लिए कभी कोई रूचि नहीं दिखाई।

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9 मार्च 22 

    


शनिवार, 5 मार्च 2022

      श्रद्धांजलि

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रमेश थानवी नहीं रहे।

वे 78 साल के थे।

गत 12 फरवरी, 2022 को ही जयपुर में उनका निधन हुआ।

निधन के समय वे अपने भतीजा ओम थानवी (पूर्व संपादक और मौजूदा वी.सी.)के आवास पर थे।

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उनके निधन की सूचना मुझे उनकी पत्रिका ‘औपचारिकता’ के जरिए मिली जिसका ताजा अंक मुझे डाक से आज मिला। 

रमेश जी उस पत्रिका के संस्थापक संपादक थे।

रमेश जी शिक्षा विद्,गांधी विचार के संवाहक,प्रौढ़ शिक्षा का अलख जगाने वालों में अग्रणी और साहित्य दर्शन के अध्येता  थे।

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रमेश थानवी 2019 में मेरे पटना स्थित आवास पर आए थे।

उस समय मैंने जो पोस्ट लिखा था,उसे दुबारा यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।

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4 अक्तूबर, 2019

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आज रमेश थानवी मेरे घर आए।

स्नेहिल व्यक्तित्व के धनी थानवी जी शहर से दूर गांव में होने के बावजूद मेरे यहां आए।

सड़क भी अच्छी नहीं है।

वे गांधी विचार समागम के सिलसिले में पटना आमंत्रित थे।

रमेश जी जब सत्तर के दशक में दिल्ली से प्रकाशित चर्चित साप्ताहिक पत्रिका ‘प्रतिपक्ष’  के संपादकीय विभाग मंे कार्यरत थे,उन दिनों मैं उस पत्रिका का बिहार संवाददाता था।

  उन दिनों तो यदाकदा पत्रिका के काम के सिलसिले में  उनसे सिर्फ पत्र-व्यवहार होता था।

बाद के वर्षों में कई बार फोन पर बातचीत हुई।

 रमेश थानवी एक ऐसे परिवार से आते हैं जिसके एक से अधिक सदस्य अपने बारे में कम ,देश व समाज के बारे में अधिक सोचते रहे हैं।

यह परिवार जोधपुर के पास के गांव का मूल निवासी है।

 खुद रमेश जी ने अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किया।

देश-विदेश घूमे।

ज्ञानार्जन किया।

नये काम किए।

  उनके भतीजा ओम थानवी जनसत्ता के संपादक रहे।

इन दिनों ओम जी हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जन संचार विश्व विद्यालय,जयपुर के कुलपति हैं।

  ओम थानवी के दिवंगत पिता शिवरतन थानवी शिंक्षक,शिक्षाविद् और शिक्षा से संबंधित दो सम्मानित पत्रिकाओं के संपादक रह चुके थे।

गत साल उनका निधन हो गया।

जब मैं जनसत्ता में था तो ओम थानवी जी यदाकदा कहा करते थे कि आप तो मेरे चाचा के साथ काम कर चुके हंै।

ऐसे यशस्वी परिवार के सदस्य रमेश थानवी जब आज मेरे घर आए तो उसके पीछे  सिर्फ उनका मेरे प्रति स्नेह ही था और किसी प्रयोजन का सवाल की नहीं उठता।

मैं अभिभूत हो गया।

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सुरेंद्र किशोर


बुधवार, 2 मार्च 2022

 क्या इक्के -दुक्के वैसे नेता भी सत्ता में 

न रहें जिनकी ‘‘नाक नहीं कटी’’ है ?

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सुरेंद्र किशोर

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मैं यहां नीतीश सरकार या नरेंद्र मोदी सरकार की सफलता या विफलता की चर्चा नहीं करूंगा।

उस पर अलग -अलग राय हो सकती है।

मैं नीतीश कुमार के सिर्फ दो विरल गुणों की चर्चा करूंगा।

उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी उन पर भ्रष्टाचार या वंशवाद-परिवारवाद का आरोप नहीं लगा सकते।

यही बात मैं नरेंद्र मोदी के बारे में कहूंगा।

नीतीश कुमार व नरेंद्र मोदी जैसे इस देश में अभी कितने नेता मौजूद हैं जिन्होंने लंबे समय तक सत्ता के शीर्ष पदों पर रहने के बावजूद इन दो गुणों को बनाए रखा ?

होंगे,पर मुझे नहीं मालूम।

  ऐसे नेताओं को किसी न किसी बहाने सत्ता से जल्द से जल्द हटाने की कोशिश निहितस्वार्थियों द्वारा होती रहती है।

कारण कई हैं।

पर, एक कारण यह भी है कि इनके हटने से देश भर में फैले वंशवादी-परिवारवादी व भ्रष्ट नेताओं को यह कहने का अवसर मिल जाएगा कि राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद और भ्रष्टाचार जरूरी है।याद रहे कि अपवादों को छोड़कर जो वंशवादी परिवार वादी है,वह भ्रष्ट भी है। 

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दश्कों से देख रहा हूं।

बिहार के कई नेताओं ने सांसद बनने के बाद दूसरी शादी कर ली।

उनमें से एक नेता ने अपनी पहली पत्नी को यह कह कर समझाया था कि दिल्ली की राजनीति में तरक्की करने के लिए दूसरी पढ़ी लिखी पत्नी जरूरी है।

  (उस पहली पत्नी ने पत्रकार कन्हैया भेलारी को यह बात कई दशक पहले बताई थी।)

मुझे तो लगता है कि नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का आॅफर देना उस उद्देश्य का हिस्सा हो सकता है ।वह यह कि एक ईमानदार मुख्य मंत्री को उसके पद से यथाशीघ्र अलग कर दिया जाए।

नरेंद्र मोदी से ‘पीड़ित’ बाहर-भीतर के भ्रष्ट तत्व भी कह रहे हैं कि 75 साल की उम्र के बाद उन्हें पद से हट जाना चाहिए।ताकि, कोई ऐसा प्रधान मंत्री बने जो भ्रष्टों का भी ध्यान रखे।

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मैं कोई दावा नहीं करता कि नीतीश कुमार की सरकार में भ्रष्टाचार मौजूद नहीं है।

किंतु इस गरीब प्रदेश के लिए यह संतोष की बात है कि जो सरकारी पैसे पहले अधिकतर मुख्य मंत्री लूटते रहे हैं,वे बच रहे हैं और  अब जनता के कल्याण के काम में लग रहे हैं।

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कुछ लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार का पुत्र राजनीति में आने को अनिच्छुक है।

इसलिए उन पर यह आरोप नहीं है।

पर सवाल है कि भ्रष्ट तरीके से अपार धन कमाने से नीतीश को कौन रोक रहा है ?कौन प्रवृति बाधक है ?

  दरअसल ऐसा सवाल करने वाले यह स्वीकार नहीं करते कि जिस नेक व सेवा भावी प्रवृति के कारण कोई भ्रष्ट नहीं होता,उसी प्रवृति के कारण वह परिवारवादी-वंशवादी भी नहीं होता।

क्या इस देश के वंशवादी परिवारवादी नेता सिर्फ पुत्र को ही राजनीति में आगे बढ़ाते हैं ?

नेहरू और मुलायम जैसे नेताओं ने तो लगभग अपने सभी उपलब्ध परिजन को राजनीति में आगे किया।

  नीतीश कुमार व मोदी के भी भाई,भतीजा,साला, बहनोई हैं।

किसी अन्य परिवारवादी नेताओं के रिश्तेदारों से वे कम योग्य नहीं हैं।

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लगता है कि कुछ नेता चाहते हैं कि वैसे सत्ताधारी नेताओं को मुख्य धारा से हटा दिया जाए जिनकी ‘नाक अब तक नहीं कटी’ है।

हमारी नाक कटी है तो राजनीति ऐसी बने जिसमें सबकी कटी हुई दिखाई पड़नी चाहिए।

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23 फरवरी 22   


 


 चारा घोटाले के सजायाफ्ता आई.ए.एस.अफसरों 

 को मिले अपार कष्टों से भी किसी ने सबक नहीं सीखा

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     सुरेंद्र किशोर

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  बिहार के चर्चित चारा घोटाले में अन्य लोगों के अलावा आधा दर्जन आई.ए.एस.अफसर भी आरोपित किए गए थे।

सजायाफ्ता भी हुए।

उन्होंने जेल और जेल के बाहर भी अपार कष्ट झेले।

उनकी दुनिया ही बदल गई।

 इसके बावजूद प्रशासन में भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ।हां,चारा घोटाले जैसे बड़े और अनोखे घोटाले अब नहीं हो रहे हैं।

‘मेरे जीवन में अंधेरा छा गया।’यही कहा था कि आयुक्त स्तर के  आई.ए.एस.अफसर रहे के. अरुमुगम ने ।

कई साल पहले की बात है।वे चारा घोटाले से संबंधित  मुकदमे की सुनवाई के सिलसिले में अपने गृह राज्य तमिल नाडु से रांची अदालत में पहुंचे थे।

   बिहार सरकार के पशुपालन विभाग के सचिव रहे अरूमुगम को चारा घोटाले में सन 2013 में तीन साल की सजा हुई।ढाई साल तक जेल में रहे और अर्थाभाव व उपेक्षा के बीच कुछ ही साल पहले चीफ सेके्रट्री बनने का सपना लिए इस दुनिया से चले  गए।

  जो अन्य आई.एस.अफसर सजा पाए ,उनके नाम हैं फूलचंद सिंह,बेक जुलियस,महेश प्रसाद,एस.एन.दुबे और सजल चक्रवर्ती। 

अब भी इस घोटाले में जेल में बंद अनेक नेता, अफसर, आपूत्र्तिकत्र्ता खुद और उनके परिजन  कष्ट ,अर्थाभाव व उपेक्षा झेल रहे हैं।

 फिर भी आश्चर्य है कि बिहार में या यूं कहिए कि पूरे देश में भ्रष्टाचार कम ही नहीं हो रहा है।

कभी सृजन घोटाला सामने आ रहा है तो कभी मुजफ्फर पुर आसरा गृह घिनौना कांड।

 न तो नल जल योजना में भ्रष्टाचार रुक रहा है और न एमपी-विधायक फंड में कमीशनखारी बंद हो रही है।

 सवाल है कि घोटालेबाजों को अपना धंधा जारी रखने की यह ताकत कहां से मिल रही है ? 

नेताओं से,अफसरों से या फिर पूरा सिस्टम ही इसके लिए जिम्मेदार  है ?

इस पृष्ठभूमि में बिहार के चर्चित चारा घोटाले की एक बार फिर चर्चा मौजू है।क्योंकि हाल में एक अन्य केस में लालू प्रसाद तथा अन्य लोगों को सजा हुई है।

  इसके बावजूद अन्य मामलों में भी बाद के वर्षों में देश के  अन्य आई.ए.एस.अफसर भी जेल जाते रहे हैं।यानी कई लोग कोई सबक लेने को तैयार ही नहीं हंै।

भ्रष्टाचार से मिल रहे आसान पैसों का आकर्षण तो देखिए !

 चारा घोटाले के सिलसिले में जितने लोग अभी जेल में हैं,उनमें से कुछ लोग बीमार हैं।उनमें से कुछ लोग चारों तरफ से उपेक्षा के भी शिकार है।

 कुछ अन्य लोगों के परिवार बिखर गए।

कुछ आरोपी असमय गुजर गए।

कुछ ने आत्म हत्या कर ली।

 घोटाले के मुख्य अभियुक्त के पुत्र की असमय मृत्यु हो गयी क्योंकि जांच एजंेसी की पूछताछ वह बर्दाश्त नहीं कर सका।

पुत्र के शोक में  मुख्य अभियुक्त का भी असमय निधन हो गया।

 कई आरोपितों व सजायाफ्ताओं के परिवार की शादियां टूट गयीं।परिवार बिखर गए।

मित्र कन्नी काटने लगे।

नाजायज ढंग से कमाए धन अदालती चक्कर में समाप्त हो गए।

 इसमें आई..एस.अफसर अरूमुगम की कहानी दर्दनाक रही।

निधन से पहले उन्होंने कहा था कि ‘‘चारा घोटाले में नाम आते ही मेरी दुनिया बदल गयी।’’

 अरूमुगम को  तीन साल की सजा हुई थी।

बाद में जमानत पर छूटे थे।

अरूगुगम ने  बताया था कि लंबे कारावास के कारण  मोतियाबिंद का समय पर आपरेशन नहीं हो सका।नतीजतन मेंरी एक आंख जाती रही।

रख रखाव के अभाव में मेरी निजी कार रखी -रखी सड़ गयी।

मेरे पास उसे रखने की कहीं जगह नहीं थी।

कबाड़ी में बेचना पड़ा।

जेल से बाहर आने के बावजूद मेरा निलंबन नहीं उठा।

यह सब कतिपय बड़े अफसरों के द्वेषवश हुआ जो मुझे मुख्य सचिव नहीं बनने देना चाहते थे।

रिटायर होने के बाद केस की सुनवाई के लिए मुझे अक्सर तमिलनाडु से रांची आना पड़ता था।

रांची में एक छोटे से कमरे में रहता था जो मेरे एक मित्र से मिला था।ढाबे में खाना खाता था।

कभी- कभी चूड़ा दूध खाकर काम चला लेता था।मुकदमों ने धन और चैन दोनों छीन लिए।

मेरे जीवन में अंधेरा छा गया।

  याद रहे कि पूर्व मुख्य मंत्री द्वय लालू प्रसाद व डा.जगन्नाथ मिश्र सहित कुछ अन्य आइ.ए.एस.अफसरों को भी सजाएं हुई हैं।

उनकी भी दुनिया बदल चुकी है।नेता लोग तो ऐसे भी राजनीतिक आंदोलनों के सिलसिले में जेल यात्राओं  के अभ्यस्त होते हैं। 

पर किसी आई.ए.एस. के तो सपने ही कुछ और होते हैं।

उनके ईर्दगिर्द एक अजीब प्रभा मंडल रहता है।खुद अरूमुगम भी मुख्य सचिव बनने के सपना देख रहे थे।पर उनकी गलतियों ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा।

 चारा घोटालेबाजों के कष्टों को देखते हुए पहले यह माना जा रहा था कि अब गलत ढंग से सरकारी खजाने से पैसे निकालने से पहले कोई हजार बार सोचेगा।

पर नहीं।

कुछ ही साल पहले भागल पुर से यह खबर आई कि वहां के सरकारी खजाने से अरबों रुपए इधर से उधर कर दिए गए।

आरोप है कि प्रभावशाली नेताओं-अफसरों के संरक्षण में ही वह घोटाला हुआ जो सृजन घोटाले के नाम से जाना जाता है।सी.बी.आई.उसकी भी जांच कर रही है।बड़ी संख्या में लोग गिरफ्तार हुए है।अब भी हो रहे हैं।

  ऐसी घटनाओं से  एक महत्वपूर्ण सवाल  उठता है ।

    सवाल यह कि नये घोटालेबाज उन पिछली सजाओं से भी नहीं डर रहे हैं जो पिछले घोटालों के बड़े बड़े ओहदेदार आरोपितों को मिलती जा रही है ? 

आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ?

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 आज के टाइम्स आॅफ इंडिया 

की एक खबर

(स्कैन काॅपी साथ में) 

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भारत में उक्रेन के राजदूत ने कहा है कि

जिस तरह मध्यकाल में मुगलों ने भारत में राजपूतों का कत्लेआम किया था,उसी तरह की नृशंसता रशियन 

हमलावर सेना आज उक्रेन में कर रही है।

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शायद लगता है कि भारत के ‘अति धर्मनिरेपक्ष ’ इतिहासकारों से उक्रेनियन राजदूत की मुलाकात ही नहीं हुई है !

अन्यथा, वे उन्हें अब तक यह पाठ पढ़ा दिए होते कि मुगलकाल में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था !!

मुगल तो महान थे !!!

हमने यानी इतिहासकारों ने अधिकतर भारतीयों को यह पाठ पढ़ा भी दिया है।

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सुरेंद्र किशोर

2 मार्च 22    


 राजस्थान की परीक्षाओं में कदाचार 

की यही सजा होगी

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10 साल की कैद, 10 करोड़ रुपए तक 

का जुर्माना और आरोपित की संपत्ति जब्त

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सुरेंद्र किशोर

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परीक्षाओं में कदाचार के लिए कितनी सजा होनी चाहिए ?

उतनी ही जितनी सजा का प्रस्ताव राजस्थान सरकार ने 

एक विधेयक के जरिए किया है।

राजस्थान विधान सभा में वह विधेयक पेश हो चुका है।

पास भी हो जाएगा।

वहां सदन की बैठक जारी है।

  आशंका है कि इस कानून के लागू हो जाने के बाद गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार संभवतः सन 2023 चुनाव में अपदस्थ हो जाएगी।

जब एक घनघोर अपराधी के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के बाद 2018 के राजस्थान विधान सभा चुनाव में भाजपा सरकार हार गई थी तो कदाचार रोकना तो किसी अपराधी के मारे जाने की अपेक्षा अनेक लोगों की दृष्टि में अधिक बड़ा ‘‘अपराध’’ है।

  याद रहे कि उस घनघोर अपराधी की जाति के अनेक मतदाताओं ने राजस्थान की भाजपा सरकार को हराने में तब महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार ने कभी परीक्षा में कदाचार लोहे के हाथों से रोका था।

अगले ही चुनाव के ठीक पहले मुलायम सिंह की पार्टी ने कदाचारियों के पक्ष में हवा बनाई।

 विधान सभा चुनाव में सपा कल्याण सरकार को हटा कर खुद सत्ता में आ गई थी।लोग ‘‘राम लला मंदिर’’ के लिए  कल्याण सरकार के योगदान को भी भूल गए थे।

मुलायम सरकार ने नकल

विरोधी कानून को रद करा दिया।

  उसी तरह मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार पर एक घनघोर अपराधी की पुलिस मुंठभेड़ में हत्या का आरोप है।

देखना है कि उस अपराधी की जाति के कितने लोग इस चुनाव में कैसी भूमिका निभाते हैं !

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खैर जो हो,गहलोत सरकार इस विधेयक के लिए बधाई की  पात्र है।

  क्योंकि विभिन्न परीक्षाओं में भारी कदाचार इस देश के लिए भीषण अभिशाप बन चुका है।

पीढ़ियां बर्बाद हो रही हैं।

उसी के साथ देश भी।

विभिन्न परीक्षाओं में कदाचार इस तेजी से बढ़ता जा रहा है कि लगता है कि आगे चल कर न तो ठीकठाक प्रश्न

पत्र सेट करने लायक योग्य व्यक्ति मिलेंगे और न ही प्रश्न पत्र सही सही जांचने वाले।

  चिंता की बात यह है कि देश के अनेक मेडिकल और इंजीनिरिंग कालेजों (सभी नहीं)के भी छात्र कदाचार की अनुमति के बिना परीक्षाओं में बैठने के लिए भी तैयार नहीं होते हैं।

  अनेक मेडिकल काॅलेजों से आ रही इस तरह की सनसनीखेज जानकारियों की सत्यता की सरकारें व्यापक खुफिया जांच करवाएं।

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1 मार्च 22 


 राष्ट्र हित, धर्म हित और विचार धारा हित !

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सुरेंद्र किशोर

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मुख्यतः इन्हीं तीन बातों को ध्यान में रखते हुए दुनिया का कोई भी देश अपनी विदेश नीति-रणनीति तय करता रहा है।

कोई देश इनमें से किसी एक तत्व पर जोर देता है तो कोई अन्य देश किसी अन्य तत्व पर। 

किंतु आजादी के बाद हमारे देश के कर्णधार ने विश्व नेता बनने के लिए विश्व हित का राष्ट्रहित की अपेक्षा अधिक ध्यान में रखा।

इस देश को उसके बुरे नतीजे भुगतने पडे़।

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  आज भी इस देश के कुछ अतीतजीवी लोग सवाल उठा रहे  हैं कि मोदी सरकार ने रूस-उक्रेन युद्ध में रूस का साथ क्यों नहीं दिया ?

  अब सवाल है कि क्या सन 1962 के चीनी हमले के समय सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया था ?

 उस समय यह तर्क

दिया गया कि सोवियत संघ ने कहा कि हम भाई व मित्र के बीच हस्तेक्षप नहीं किया।

 किंतु असल कारण यह नहीं था।

असल कारण सोवियत संघ का विचारधारा हित था।

यानी, एक कम्युनिस्ट देश सोवियत संघ एक अन्य कम्युनिस्ट देश चीन के साथ था। 

 एक रिसर्च से बाद यह पता चला था कि सोवियत संघ की सहमति के बाद ही 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया था।

 रिसर्च पर आधारित वह लेख इलेस्ट्रेटेड वीकली आॅफ इंडिया में छपा भी था।

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1 मार्च 22