रविवार, 31 मार्च 2024

 इस देश का चुनावी इतिहास 

--------------

जिस दल या गठबंधन को जनता ने अपेक्षाकृत अधिक 

भ्रष्ट व नुकसानदेह माना,उसे केंद्र की सत्ता नहीं सौंपी

-------------------

सुरेंद्र किशोर

--------------

 इस देश में 1967 और उसके बाद के जितने भी चुनाव हुए,सबका मुझे थोड़ा-बहुत अनुभव और मोटा-मोटी जानकारियां हैं।

----------

अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर हर बार मतदाताओं ने 

‘बदतर’ को ‘छोड़कर’ बेहतर को ही चुना है।

कौन बेहतर और कौन बदतर है,इसे अधिकतर जनता जानती है,चाहे कोई कितना भी गाल बजाये।

लोक सभा के मौजूदा चुनाव का रिजल्ट भी वैसा ही होगा,ऐसा मेरा अनुमान है।

------------

ऐसा क्यों होता है ?

इसलिए कि अधिकतर लोग जानते हैं कि कोई व्यक्ति,पार्टी या विचारधारा पूर्ण नहीं है।

न तो मैं पूर्ण हूं ,न ही आप और न कोई नेता या कोई पार्टी।

पूर्ण तो सिर्फ ईश्वर है।(जो खुद को पूर्ण समझते हैं,वे मुझे ऐसी टिप्पणी के लिए कृपया माफ कर देंगे।)

इसीलिए इस देश के मतदातागण अपेक्षाकृत ‘‘कम पूर्ण’’ से ही काम चला लेते हैं।

और ‘‘अधिक अपूर्ण’’ को टरका देते हैं।

------------

मैंने देखा है कि पिछले किसी चुनाव में यह तर्क नहीं चला कि मैं भ्रष्ट तो मेरा प्रतिद्वंद्वी भी तो भ्रष्ट।

इसीलिए मतदातागण मुझे ही अपना लेंगे।

आम लोगों में से अधिकतर लोग यह देखते हैं कि कौन सा दल और नेता, देश व समाज के लिए कम नुकसान देह और अपेक्षाकृत अधिक फायदेमंद है।

  जो अपेक्षाकृत अधिक नुकसानदेह और कम फायदेमंद होता है,वह मौजूदा के बदले अगले चुनाव में अपनी तकदीर आजमाने को अभिशप्त होता है।

किसी का प्रचार जो कहे,मीडिया जो कहे,पर आम लोग नेताओं व दलों के चाल,चरित्र और चिंतन के बारे में अधिक जानते हैं।

------------------

1977 में जब लोक सभा चुनाव हुआ तब भी इमरजेंसी हटी नहीं थी।

क्रूर तानाशाह ने ढिलाई जरूर दे दी थी।

घनघोर आपातकाल के बीच मैं भूमिगत जार्ज फर्नांडिस से मिला था।

  जार्ज ने एक अंग्रेजी अखबार के एक वरिष्ठ संवाददाता की रपट की चर्चा की।

कहा कि वह पत्रकार साख वाला है।ईमानदार है।इंदिरा के प्रभाव में आने वाला नहीं है।

वह झूठ नहीं लिखता।

उसने लिखा है कि प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की जनसभा में जो लोग जुटे थे,उनके चेहरों पर इंदिरा के लिए वास्तविक समर्थन और प्रेम के भाव थे।

   जार्ज ने मुझसे कहा कि लगता है कि इंदिरा ने लोगों को मोह लिया है।

इसीलिए जब फरवरी 1977 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने लोस चुनाव कराने की घोषणा की तो जार्ज ने यह राय प्रकट की थी कि हमलोगों को चुनाव का बहिष्कार करना चाहिए।

पर,केंद्रीय नेतत्व संभवतः जेपी के कहने पर जार्ज चुनाव लड़नेे के लिए राजी हो गये।करीब साढे तीन लाख मतों से जीते।़

--------------

उधर यह भी खबर आई थी कि आई.बी.ने इंदिरा गांधी को यह जानकारी दी कि चुनाव हो जाए तो आप एक बार फिर सत्ता में आ जाएंगी।

चुनाव के पीछे ऐसी ही रपटें थीं जो अंततः झूठी साबित हुईं।

यानी आम जनता (1977 में) किसे वोट देगी,इसका पता न तो आई.बी.को चल सका था और न ही जार्ज के मित्र व अनुभवी संवाददाता ,जो जार्ज की दृष्टि में निष्पक्ष थे।

--------------

1977 के लोक चुनाव में 

अंततः जनता ने सही फैसला किया और इंदिरा गांधी को सत्ता से बाहर कर दिया।

इंदिरा गांधी के इरादे का पता इसी से चलता था कि चुनाव कराते समय भी उन्होंने इमरजेंसी जारी रखी थी।

सत्ता में लौटतीं तो क्या करतीं ,उसका अनुमान कर लीजिए।

इमरर्जेंसी में उन्होंने क्या-क्या किया था,उसे जानने के लिए शाह आयोग की रपट पढ़ लीजिए।

--------------

31 मार्च 24   


‘भारत रत्न’ कर्पूरी ठाकुर के बारे में 

एक सनसनीखेज जानकारी

----------------------- 

क्या 1984 में कर्पूरी जी की हत्या की 

साजिश एक नेता घर रची गयी थी

-------------------

सुरेंद्र किशोर

------------

बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर ने 11 सितंबर, 1984 को बिहार सरकार के मुख्य सचिव के.के.श्रीवास्तव को एक गोपनीय पत्र (संख्या-101/वि.स./आ.स.)

लिखा था।

उन्होंने लिखा कि ‘‘मैं एक आवश्यक ,किंतु गोपनीय विषय की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं।

 इस अगस्त महीने में श्री ..............के पटना स्थित आवास में एक खानगी मिटिंग हुई थी जिसमें सिर्फ दस आदमी हाजिर थे।

..............................

............................

.......................

श्री...............ने उस मिटिंग में कहा कि ...दस लाख रुपए इकट्ठा करना चाहिए और इस राशि से आग्नेयास्त्र खरीदना चाहिए।

  इन आग्नेयास्त्रों का इस्तेमाल हरिजनों और पिछड़ों के तेजस्वी और लड़ाकू तत्वों का सफाया करने के लिए किया जाना चाहिए।

  तीन महीने बाद कर्पूरी ठाकुर के औरंगाबाद और गया जिले में आने पर बिलकुल साफ हो जाना चाहिए।’’

मैं यह पत्र सूचनार्थ लिख रहा हूं ताकि समय पर काम आवे।

.................................

..........................

               आपका 

             कर्पूरी ठाकुर  

---------------------

पुनश्चः

दरअसल उस मिटिंग में जो लोग मौजूद थे ,उनमें से एक व्यक्ति ने इस साजिश की जानकारी पूर्व मंत्री रामलखन सिंह यादव और दूसरे ने पूर्व मंत्री कपिलदेव सिंह को दे दी थी।फिर यह बात कर्पूरी ठाकुर तक पहुंची।

-----------------

उधर मुख्य सचिव ने कर्पूरी ठाकुर की चिट्ठी मुख्य मंत्री चंद्रशेखर सिंह को दिखाई।

मुख्य मंत्री ने निदेश दिया कि ‘‘किस व्यक्ति द्वारा इन्हें सूचना मिली,इसकी जानकारी प्राप्त कर पूछताछ की जानी चाहिए।’’

------------

बाद में इस प्रसंग में क्या हुआ ,वह सब पता नहीं चल सका।

पर,जब 1988 में कर्पूरी ठाकुर की संदेहास्पद स्थिति में मौत हुई तो पूर्व मुख्य मंत्री रामसुन्दर दास ने उनकी मौत की जांच कराने की केंद्र और राज्य सरकार से मांग की थी।

  बिहार सरकार के पूर्व राज्य मंत्री व विधान सभा के सदस्य रघुवंश प्रसाद सिंह ने 22 फरवरी, 1988 को प्रधान मंत्री राजीव गांधी को पत्र लिखकर उनसे मांग की थी कि कर्पूरी ठाकुर की मौत की उच्चस्तरीय जांच कराई जाये।

रघुवंश जी ने,जो बाद में केंद्र में मंत्री बने थे ,प्रधान मंत्री को अपने पत्र में लिखा कि ‘‘....प्रधान मंत्री ने दो वर्ष पूर्व बिहार में समाजशास्त्रीय अध्ययन कराया था कि कर्पूरी ठाकुर के नहीं रहने पर बिहार की राजनीतिक स्थिति का क्या होगा ?

कर्पूरी जी का जो जनाधार है,वह कहां जाएगा ?

आपके द्वारा निदेशित यह समाजशास्त्रीय अध्ययन भी अब शंकाओं की परिधि में आ गया है।

    ----------------------

 

ं 


 भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर के बारे में कुछ बातें 

जो आज अत्यंत प्रासंंिगक

------------------

सुरेंद्र किशोर

--------------

     1

------------

सन 1970 में मुख्य मंत्री रह चुके कर्पूरी ठाकुर सन 1972-73 में रिक्शे पर ही चलते थे।क्योंकि उनके पास निजी कार नहीं थी।

एक बार मैं कर्पूरी जी के साथ रिक्शे पर पटना में एक जगह से दूसरी जगह जा रहा था।

कर्पूरी जी ने कहा कि ‘‘सुरेंद्र जी,यदि मेरे पास तेज सवारी होती तो मैं लोगों का अधिक काम कर पाता।’’

  -----------------

       2

------------------

पटना के सालिमपुर अहरा स्थित पार्टी आॅफिस में तीन व्यक्ति आसपास बैठे थे।

अस्सी के दशक की बात है।

पीलू मोदी,कर्पूरी ठाकुर और मैं।

भारी शरीर के मोदी जी एक आराम कुर्सी पर पसरे हुए थे।

बगल की कुर्सी पर बैठे कर्पूरी जी ने पीलू जी मोदी से कहा,‘‘मोदी साहब,यदि राज्य पार्टी के लिए एक हेलीकाॅप्टर का प्रबंध हो जाये तो हम बिहार विधान सभा की आधी सीटें जीत जाएंगे।’’

हंसोड़ मोदी ने जवाब दिया,

‘‘मिस्टर कर्पूरी,मैं दो का कर देता हूं।सारी सीटें जीत जाओ।अरे भाई हेलीकाॅप्टर से चुनाव नहीं जीते जाते।’’

  खैर, कहने का मतलब यह कि अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कर्पूरी जी चुनाव प्रचार के लिए अपने लिए हेलीकाॅप्टर को  तरस गये।वे चाहते तो नाजयज पैसे जुटाकर यह काम कर सकते थे।पर,नहीं किया।

दूसरी ओर, आज की राजनीति का क्या हाल है ?

देश अब भी गरीब ही है।

पर,अब तो अधिकतर नेताओं के लिए चार्टर्ड प्लेन का जमाना आ गया है।अधिकतर नेता जहाज भाडे़ पर लेकर राजनीतिक व निजी यात्राएं कर रहे हैं।

इन्हें पैसे कौन देते है ?

जग जाहिर है।

क्योंकि आम जनता में से 80 करोड़ लोगों को तो अब भी सरकार मुफ्त राशन दे रही है।देने को मजबूर है।

---------------

    3

-------------- 

  बिहार के निगरानी अन्वेषण ब्यूरो के रिटायर निबंधक उमेश प्रसाद सिंह के अनुसार ,

‘‘1977-79 के मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर ने अपने कार्यकाल में सी.बी.आई.को लिखा था कि सी.बी.आई.को बिहार सीमा में कोई भी गंभीर मामले की जानकारी मिले तो वह गोपनीय ढंग से उसकी जांच शुरू कर दे।उसमें राज्य सरकार की अनुमति आवश्यक नहीं होगी।

उमेश जी के अनुसार यह आदेश सन 1996 के आरंभ तक प्रभावी रहा।

पर, जब चारा घोटाले की जांच के लिए जनहित याचिका पटना हाई कोर्ट में दाखिल की गयी तो  बिहार सरकार ने उस आदेश को निरस्त कर दिया।

राज्य सरकार नहीं चाहती थी कि सी.बी.आई. खुद जांच अपने हाथ में ले ले।’’

दूसरी ओर, हाल के वर्षों में अनेक राज्य सरकारों ने सी.बी.आई. जांच करने की आम मनाही कर दी।

कारण सब जानते हैं।अब सी.बी.आई.जांच आम तौर पर अदालती आदेश से ही संभव हो पाती है।

जब केंद्रीय एजेंसियां जांच के बाद नेताओं व अफसरों के घरों से करोड़ों-करोड़ रुपए जब्त करती है तो आरोपी नेता आरोप लगाते हैं कि बदले की भावना से केंद्र सरकार काम कर रही  है।

 --------------------

        4

--------------

अस्सी के दशक की बात है। डा.जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्य मंत्री थे और कर्पूरी ठाकुर विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता।

डा.मिश्र पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते ही रहते थे।

एक बार जब कर्पूरी ठाकुर ने सदन में उनपर कोई आरोप लगाया तो मुख्य मंत्री ने कर्पूरी ठाकुर पर भी पलट कर आरोप लगा दिया।

उस पर कर्पूरी ठाकुर ने यह मांग कर दी कि आप मेरे खिलाफ आरोप की जांच के लिए न्यायिक जांच बैठाइए।

 डा.मिश्र ने जांच आयोग बैठाने की मांग नहीं मानी।उस पर कर्पूरी ठाकुर ने मुख्य मंत्री से कहा कि आप मेरे खिलाफ जांच आयोग नहीं बैठा रहे हैं,उसका कारण है।

 क्योंकि चाहते हैं कि जब हम सत्ता में आएं तो हम भी आपके खिलाफ जांच नहीं कराएं।किंतु आप गलतफहमी में मत रहिए।

हम सत्ता में आने के बाद आपके खिलाफ जांच जरूर कराएंगे।

-------------

अब आप ऐसे मामलों में आज के नेताओं के वक्तव्यों और आचरण को देख लीजिए।

-------------------

31 मार्च 24 


 मैं उतना ही पढ़ पाता हूं जिससे लेख-काॅलम लिखने में मुझे मदद मिले।

 यदि कोई पुस्तक लेखक मुझे इस उद्देश्य से अपनी पुस्तक देते हैं कि मैं उसे पढ़कर उस पर कुछ लिख दूं तो उसके लिए मेरे पास समय नहीं होता।

हां, अपने फेसबुक वाॅल पर मैं यह जरूर लिख देता हूं कि मुझे फलां लेखक की फलां पुस्तक मिलीं।

   ---सुरेंद्र किशोर



शुक्रवार, 29 मार्च 2024

  इस देश में जब भी कोई खूंखार जेहादी आतंकवादी या दुर्दान्त माफिया मरता है या मारा जाता है तो उसके तुरंत बाद कई दलों और नेताओं का असली चरित्र जनता बीच एक बार फिर प्रकट हो जाता है।

वे इस तरह से शोकग्रस्त होकर चीत्कार करने लगते हैं जैसे उनके ही घर में गमी हुई है। 

वैसे यह सब एक तरह ठीक ही होता है।

शांतिप्रिय जनता कुछ खास तरह के लोगों से एक बार फिर सावधान हो जाती है।

--------------

हां,कोई माफिया हो या आतंकी,उसको सजा कानूनी प्रक्रिया अपना कर ही दी जानी चाहिए।

उसकी हत्या नहीं होनी चाहिए।

यदि हत्या होती है तो हत्यारों का पता लगाकर उन्हें सजा दी जानी चाहिए।

---------------- 

वैसे अपना देश कैसा बन चुका हैं और यहां ऐसे -ऐसे लोग बसते हैं जो सामान्य कानूनी प्रक्रिया से ‘शांत’ ही नहीं होते।उनकी शक्ति दिन दूनी रात चैगुणी होती जाती है।

इसलिए कुछ लोगों की यह राय रहती है कि उन्हें उसी प्रक्रिया से रास्ते से हटाया जाना चाहिए जिस तरह प्रभु श्रीराम ने बालि को रास्ते से हटाया था।

इसके बावजूद श्रीराम को फिर भी मर्यादा पुरुषोत्तम ही कहा जाता है।

--------------- 


 एक चुनाव यह भी !

-----------

भ्रष्टाचारी और उनके मददगार 

बनाम 

भ्रष्टाचार विरोधी और उनके समर्थक

------------

सुरेंद्र किशोर

------------ 

लोक सभा चुनाव, 2024 की पूर्व संध्या पर 

इस देश के अधिकतर मतदातागण भ्रष्टाचार के सवाल पर भी साफ-साफ दो खेमों में बंटे हुए हैं।हालांकि मुद्दे और भी हैं।

एक पक्ष कहता है कि भ्रष्टाचार मिट नहीं सकता।

दूसरा पक्ष इस बात से असहमत है।

--------------

देखना है कि किसकी जीत होती है !!

पहले यह कहा जाता था कि भ्रष्टाचार के कारण इस देश में गरीबी कम करने में दिक्कत आ रही है।

अब यह भी कहा जा रहा है कि इस देश के सरकारी -गैर सरकारी भ्रष्टाचार के कारण देश की सुरक्षा को लेकर गंभीर खतरा है।

बांग्लादेशियों और रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए यहां रिश्वत देकर मतदाता बन जाना आसान हो गया है।भ्रष्टाचार के अन्य अनेक चिंताजनक कुपरिणाम सामने आ रहे हैं।

----------------

‘‘चाहे यह भ्रष्टाचार का विरोध हो या भ्रष्ट के रूप में देखे जाने का भय,शायद भ्रष्टाचार अर्थ -व्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था, इसे काट दिया गया है।

मेरे कई व्यापारिक मित्र मुझे बताते हैं निर्णय लेेने की गति धीमी हो गई है।.............’’

..................................................

--नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी,

हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान टाइम्स

23 अक्तूबर 2019

(याद रहे कि अभिजीत बनर्जी की सलाह पर ही कांग्रेस ने ‘न्याय योजना’ का नारा उछाला है।) 

--------------

दूसरी ओर,

इस देश का सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि 

‘‘भ्रष्ट लोग देश को तबाह कर रहे हैं।’’

---दैनिक जागरण -10 नवंबर 2022

--------------- 

‘‘पैसे की भूख ने भ्रष्टाचार को कैंसर की तरह पनपने में मदद की है।अदालतें दिखाएं कि भ्रष्टाचार को कत्तई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’’ 

---सुप्रीम कोर्ट--3 मार्च 23

------------

  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि 

‘‘एक भी भ्रष्टाचारी नहीं बचना चाहिए, चाहे वह कितना 

ही शक्तिशाली हो।

बिना हिचक के सी.बी.आई.कार्रवाई करे।’’

उन्होंने यह भी कहा कि 

‘‘भ्रष्टाचार लोकतंत्र और न्याय की राह में सबसे बड़ी बाधा है।’’

------------------

इस देश में भ्रष्टाचार की समस्या पुरानी है।जो समय के साथ बढ़ती 

गई।

‘‘भ्रष्टाचार को लोकतंत्र की अपरिहार्य उपज नहीं बनने दिया    जाना चाहिए’’--महात्मा गांधी

‘‘भ्रष्टाचारियों को नजदीक के लैंप पोस्ट से लटका दिया जाना चाहिए’’--जवाहरलाल नेहरू

‘‘भ्रष्टाचार तो विश्वव्यापी फेनोमेना है।’’

--प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी

‘‘सत्ता के दलालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।’’

--प्रधान मंत्री राजीव गांधी

‘‘मुल्क के शक्तिशाली लोग इस देश को बेचकर खा रहे हैं।’’

 --मधु लिमये--(1988)

‘‘इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है।’’

--मनमोहन सिंह-(1998)

‘‘भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकता।’’

--सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूत्र्ति बी.एन.अग्रवाल--5 अगस्त ,2006

‘‘भ्रष्ट लोगों से छुटकारा पाने का एकमात्र रास्ता यही है कि कुछ लोगों को लैंप पोस्ट से लटका दिया जाए।’’

--सुप्रीम कोर्ट-7 मार्च 2007

‘‘भ्रष्टाचार को साधारण अपराध के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।’’

-दिल्ली हाईकोर्ट --9 नवंबर 2007

‘‘भ्रष्टाचार में जोखिम कम और लाभ ज्यादा है।’’

-एन.सी.सक्सेना,पूर्व सचिव ,केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय

-------

मनी लाउंडरिंग का अपराध हत्या से भी अधिक जघन्य

 --भारत का सुप्रीम कोर्ट

5 फरवरी 2022

--------------

प्रधान मंत्री मोदी ने एक अवसर पर कहा कि  

‘‘भ्रष्टाचार लोकतंत्र और न्याय की राह में सबसे बड़ी बाधा है।’’

------------------

नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने से पहले

अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर इस देश में 

सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष में एक अघोषित समझौता रहा था--

‘‘हम सत्ता में आएंगे तो हम तुम्हें बचाएंगे,तुम सत्ता में आना तो हमें बचाना।’’

 मनमोहन सिंह सरकार के गठन के प्रथम वर्ष में ही केंद्र सरकार ने कहा था कि ‘‘राजग शासन के सभी घोटालों की जांच होगी।’’

(दैनिक जागरण-29 सितंबर 2004)

’’(इस पोस्ट के साथ संलग्न है तत्संबंधी न्यूज आइटम की स्कैन काॅपी)


इस घोषणा के बावजूद जांच नहीं हुई।एक दूसरे को बचा लेने की नीति के तहत जांच नहीं हुई।

...................................

 बकौल प्रधान मंत्री राजीव गांधी -1985 आते -आते केंद्र सरकार  के 100 पैसे घिसकर 15 पैसे ही रह गए।इस बात की जांच नहीं हुई कि 100 पैसे कैसे इतना घिस गये ?

कौन-कौन उसके लिए जिम्मेवार रहे।

......................................... 

सन 1963 में ही तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष डी.संजीवैया को  इन्दौर के अपने भाषण में यह कहना पड़ा  कि 

‘‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे। 

गुस्से में बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा था कि ‘‘झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’’

 1971 के बाद तो लूट की गति तेज हो गयी।

अपवादों को छोड़कर सरकारों में भ्रष्टाचार ने संस्थागत रूप ले लिया।आज तो भ्रष्टाचार लगभग सर्वव्यापी हो चुका है।

....................................

  आजादी के तत्काल बाद एक केंद्रीय मंत्री ने प्रधान मंत्री नेहरू से कहा था कि सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।

इसकी निगरानी के लिए कोई छतरी संगठन बना दीजिए।

जवाहरलाल का जवाब था-उससे शासन में पस्तहिम्मती आएगी।

........................................

आजादी के बाद से अब तक हुए सैकड़ों घोटालों को याद कर लीजिए।

-------------------

अब तो कांग्रेस ने एक ऐसे नोबल विजेता को अपना अघोषित सलाहकार बना लिया है जो भ्रष्टाचार की खुलेआम वकालत करता है।

.............................................

  गत 24 फरवरी, 23 को भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 

‘‘आम आदमी भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है।

हर स्तर पर जवाबदेही तय करने की जरूरत है।’’

अदालत ने यह भी कहा कि 

‘‘किसी भी सरकारी दफ्तर में जाएं तो आप बिना डरे बाहर नहीं आएंगे।’’

.................................

इसके अलावा भी अनेक उक्तियां आपको मिलेंगी।

पर,भ्रष्टाचार के राक्षस से निर्णायक लड़ाई कभी नहीं हुई।

वोट बैंक के दायरे के लोगों को छोड़कर आम जन में भ्रष्टों के खिलाफ भारी गुस्सा है।

देखना है कि अगले चुनाव में कितने मतदाता भ्रष्टों के पक्ष में मतदान करते हैं और कितने लोग उनके पक्ष में जो भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्षरत हैं ?इसी पर देश का भविष्य निर्भर करेगा।

-----------------------

28 मार्च 24

 



गुरुवार, 28 मार्च 2024

 अद्भुत प्रतिभाशाली दिवंगत डा.श्रीकांत 

जिचकर की याद में 

------------------

14 सितंबर 1954--2 जून 2004)

----------------

सुरेंद्र किशोर

---------------

सर्वाधिक शिक्षित होने का विश्व रिकाॅर्ड कायम किया था 

डा.जिचकर ने।

वे राजनीति में भी सक्रिय थे।

वहां भी काफी कारगर साबित हुए।

आज पढ़े-लिखे लोगों के लिए राजनीति में कितनी

जगह बच गई है ?

हां, धनवानो-बाहुबलियों आदि के लिए जगह की कोई कमी नहीं

-------------------

‘‘बेटा, बड़ा होकर जिचकर की तरह बनना’’

-------------------------

नागपुर के अभिभावक गण 

अपने बच्चों से कभी यही कहा करते थे।

संभवतः आज भी कहते होंगे !

-------------

आज देश के विभिन्न क्षेत्रों में,खासकर राजनीति में, कितनी ऐसी हस्तियां मौजूद हैं, जिनकी ओर इंगित करके कोई अभिभावक यह कह सके कि ‘‘बेटा,बड़ा होकर इनके जैसा ही बनना ?’’

------------------

दिल्ली में कितने ऐसे नेता मौजूद हैं जिन्हें कोई पिता अपनी संतान का स्थानीय अभिभावक बनाना पसंद करेगा ?

-------------------

राज्य सभा के सदस्य रहे भाजपा नेता

तरुण विजय ने नागपुर के डा. जिचकर के बारे में पांचजन्य (13 जून 2004)में लिखा था--

‘‘विद्वान शिरोमणि यौवन तेज से भरपूर सुदर्शन चेहरा एवं वाणी मेें नूतन ब्राह्मण का परिमर्जित माधुर्य।’’

---------------

पिछड़ी जाति में जन्मे डा.जिचकर ने खुद कहा था कि 

‘‘अब मैं दीक्षित हो गया हूं।

 दीक्षा प्राप्त करने के बाद ब्राह्मणत्व की श्रेष्ठत्तम परंपरा में सम्मिलित हो गया हूं। 

मैं जन्म से ब्राह्मण नहीं था।

 परंतु घर में अग्नि प्रतिष्ठापित कर अग्निहोत्र धर्म का नियमानुसार पालन कर और अब सोम यज्ञ द्वारा दीक्षित होने के बाद मैं स्वयं को दीक्षित कहने का अधिकारी हो गया हूं।’’

------------------

डा. जिचकर न सिर्फ महाराष्ट्र सरकार के  मंत्री थे बल्कि राज्य सभा के सदस्य भी थे।

वह महाराष्ट्र विधान परिषद के भी सदस्य रहे।

उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर एक बार लोक सभा का चुनाव भी लड़ा था।

पर, वे विफल रहे।

सत्तर के दशक में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया था।

     जिचकर एम.बी.बी.एस. और एम.डी. थे।

 वह एलएल.बी., एलएल.एम. और एम.बी.ए. भी थे।

उन्होंने पत्रकारिता की भी डिग्री ली थी।

दस विषयों में एम.ए. थे।

1973 से 1990 के बीच उन्होंने कुल 20 डिग्रियां लीं।

सारी परीक्षाओं में उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्णता हासिल की।

उन्हें कई स्वर्ण पदक भी मिले।

वह संस्कृत में डि लिट थे।

 1978 में आई.पी.एस.बने।

 इस्तीफा देने के बाद आई.ए.एस.बने।

1980 में महाराष्ट्र विधान सभा के सदस्य बने। 

मंत्री भी बने।

 उनके पास 14 विभाग थे।

------------------

   डा. जिचकर का नाम लिम्का बुक आॅफ वल्र्ड रिकाॅर्ड में  भारत के सबसे अधिक योग्य और निपुण व्यक्ति के नाते दर्ज है।

 वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने जीरो बजट की अवधारणा को कार्यरूप दिया था। 

डा. जिचकर को समय -समय पर याद करके नागपुर का  अभिभावक अपने बच्चों से कहता है कि ‘बेटा, बड़ा होकर श्रीकांत जिचकर की तरह बनना। ’

-------------------------

वह आधुनिक राजनीति में संभवतः एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनको कोई पिता दिल्ली में अपनी संतान का स्थानीय अभिभावक बना सकता था।

    डा. जिचकर ने नागपुर में एक विद्यालय की स्थापना की थी ।

उस स्कूल के बारे में अभिभावकों से अपील करते हुए अखबार में विज्ञापन छपा था, 

‘‘ डा. श्रीकांत जिचकर जिस विद्यालय में अपने बेटे को प्रवेश दिला रहे हैं, क्या आप अपने बच्चों को भी उसी विद्यालय में पढ़ाना चाहेंगे ? ’’

 इस विज्ञापन के छपते ही सैकड़ों अभिभावकों की भीड़ लग गई थी।

यानी, उन्होंने एक ऐसा गुणवत्तापूर्ण स्कूल स्थापित किया था जिसमें उनका बेटा भी पढ़ सके।

   जिचकर नागपुर छात्र संघ के अध्यक्ष भी थे।

 इसके अलावा भी उनके पास डिग्रियां और उपलब्धियां थीं। 

सन् 1983 में दुनिया के दस सर्वाधिक प्रमुख युवा व्यक्तियों की सूची में शामिल होने का सम्मान उन्हें मिला था।

  वह सन 1992 में राज्य सभा के सदस्य चुने गए।

पी.वी.नरसिंह राव उन्हें पसंद करते थे।

राव ने डा. जिचकर को इंदिरा गांधी से मिलवाया था।

डा.जिचकर ने अधिकतर देशों की यात्राएं की थीं।

उनके निजी पुस्तकालय में 52 हजार पुस्तकें थीं।

------------------- 

वे छायांकन, चित्र कला, रंगकर्म के भी जानकार थे।

 उन्हें संपूर्ण गीता कंठस्थ थी। 

साथ ही, उन्होंने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन किया था।

    खेतिहर परिवार के जिचकर के साथ एक सुविधा अवश्य थी कि पैसे की कमी के कारण उनका कोई काम नहीं रुका।

 ----------------------------

    उनमें  और भी अनेक गुण थेे।

पर सबसे बड़ी बात यह थी कि वे राजनीति में भी थे।

 यानी ऐसे लोग राजनीति में आ सकते हैं ,यदि उनके लिए सम्मानपूर्ण जगह बनाई जाए।

 हालांकि आज जितने लोग राजनीति मंे हैं, उनमें से भी अनेक लोग योग्य और कत्र्तव्यनिष्ठ हैं।

 पर, वैसे लोगों की संख्या घटती जा रही है।

   डा. जिचकर जैसी विभूतियों को समय -समय पर याद करके नई पीढ़ी को प्रेरित किया जा सकता है।

-----------------

28 मार्च 24


मंगलवार, 26 मार्च 2024

     भूली -बिसरी यादें

     .................................

       सुरेंद्र किशोर

      ................................  

यह बात मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्रित्वकाल की है।

स्विस बैंकों पर अमेरिका का भारी दबाव पड़ा।

उस कारण अपने यहां के बैंकों खातों की गोपनीयता से संबंंिधत नियमों में ढील देने का स्विस बैंक ने निर्णय किया।

यानी, खातेदारों के नाम जाहिर करने लगा।

..........................................

 इससे घबरा कर भारत सहित दुनिया भर के काला धन वालों ने पास के ही लाइखटेंस्टाइन देश के एल.जी.टी. बैंक की ओर रुख कर लिया।

वह बैंक वहां के राजा के परिवार का है।

 वहां गोपनीयता की गारंटी थी।(ताजा हाल नहीं मालूम।)

    एल.जी.टी. बैंक का एक कम्प्यूटर कर्मचारी हेनरिक कीबर कुछ कारणवश बैंक प्रबंधन से बागी हो गया। 

उसे नौकरी से निकाल दिया गया। 

वह बैंक के सारे गुप्त खातेदारों के नाम पते वाला वाला कम्प्यूटर डिस्क लेकर फरार हो गया। 

.......................................................

इस तरह दुनिया के अनेक देशों के भ्रष्ट लोगों के गुप्त खातों का विवरण कीबर के पास आ गया।

 उसने उस पूरी सी. डी.की काॅपी को जर्मनी की खुफिया पुलिस को 40 लाख पाउंड में बेच दिया। 

..................................................

ब्रिटेन ने सिर्फ अपने देश के गुप्त खातेदारों के नाम उससे लिए। 

इसलिए उसे सिर्फ एक लाख पाउंड में विवरण मिल गया।

जर्मनी भारत सरकार को भारत के लोगों के गुप्त खातों का विवरण मुफ्त देने को तैयार था।

पर,भारत सरकार ने लेने से इनकार कर दिया।

.......................................................

 अमेरिका, आस्ट्रेलिया, बेल्जियम और अन्य दूसरे देश कीबर से बारी -बारी से अपने -अपने देश के भ्रष्ट लोगों के गुप्त खातों के विवरण ले गए।  उस विवरण के आधार पर कार्रवाई करने पर सरकारों को टैक्स के रूप में भारी धन राशि मिल गई।

...............................................

  कीबर भारत सरकार को भी वह जानकारी बेचने को तैयार था।

इस संबंध में एल.के आडवाणी ने मनमोहन सरकार को पत्र लिखा।

पर, भारत सरकार ने नहीं खरीदा।

इतना ही नहीं,यह भी खबर आई कि मनमोहन सरकार ने जर्मनी सरकार से अनौपचारिक रूप से यह कह दिया कि भारत से संबंधित बैंक खातों को जग जाहिर नहीं किया जाए।

.................................................

      याद रहे कि लाइखटेंस्टाइन के उस बैंक में बड़ी संख्या में भारतीयों के भारी मात्रा में काला धन जमा थे।

................................

21 मार्च 24


 सरदार खुशवंत सिंह की याद में 

------------------

(2 फरवरी 1915--20 मार्च 2014)

--------------

पहले खुशवंत सिंह का एक साप्ताहिक काॅलम पढ़िए।

फिर उनके बारे में कुछ बातें।

------------

इस काॅलम में ,जो देश के अनेक बड़े बड़े अखबारों में एक साथ छपता था,खुशवंत सिंह ने नेहरू -गांधी के वंशवाद पर लिखा है।

-------------

फलता-फूलता वंशवाद

------------

भारतीय राजनीति में फैले वंशवाद को राजशाही की धरोहर बता रहे हैं खुशवंत सिंह

------------------

ऐसे देश मंे जहां ग्राम पंचायत या लम्बरदार का बेटा अपने पिता की गद्दी पा लेता है,मुख्य मंत्री का पुत्र या दामाद समझता है कि मुख्य मंत्री पद उनका जन्मसिद्ध अधिकार है।

इस बात से आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि प्रधान मंत्री के पुत्र,पुत्री ,नाती, पोते पीढ़ियों तक ऐसा ही सोचते रहते हैं।

  हमारा अपना ही उदाहरण है।

कांग्रेस के सभापति के रूप में मोतीलाल नेहरू ने (1928-29 में )बापू गांधी के साथ मिलकर अपने बेटे जवाहरलाल नेहरू को (कांग्रेस अध्यक्ष की)गद्दी पकड़ा दी।

उससे भारत के प्रधान मंत्री पद का उनका रास्ता पक्का हो गया।

 अपनी बारी आने पर जवाहरलाल नेहरू, जिन्होंने कभी कहा था वंशानुगत उत्तराधिकार का सिद्धांत हमारे संसदीय प्रजातंत्र के लिए पूरी तरह से विदेशी है और मैं इसके पूरी तरह से खिलाफ हूं,अपनी पुत्री (इंदिरा गांधी )के कांग्रेस पार्टी का सभापति निर्वाचित होने पर तनिक भी विचलित नहीं हुए।(उल्टे कांग्रेस सांसद महावीर त्यागी को लिखे पत्र में नेहरू ने कहा कि इंदु का अध्यक्ष बनना मुफीद होगा।--सु.कि.)

अचानक लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु होने पर उन्हें प्रधान मंत्री पद मिलने का रास्ता पक्का हो गया।

 नेहरू शर्महीन कुनबापरस्ती(शब्दों पर ध्यान दीजिए।)में लिप्त हो गये।

उन्होंने अपनी बहन विजयलक्ष्मी पंडित को मास्को,लंदन और वाशिंगटन में राजदूत और बाद में महाराष्ट्र का राज्यपाल बना दिया।

  जनरल कौल ,जिन्होंने चीन के विरूद्ध 1962 के युद्ध में हमारी सेनाओं की कमान संभाली थी,उनके दूर के रिश्तेदार थे।

 इसी प्रकार आई.सी.एस.बी.के.नेहरू को कश्मीर का राज्यपाल और दूसरे पदों के रूप में भारी-भरकम नौकरियां दी गईं।

  इंदिरा गांधी को संवैधानिक मान्यताओं की तनिक भी ंिचंता करने की आवश्यकता नहीं थी।

वह अपने बेटे संजय को भारत का शासक बनाना चाहती थी।

जब हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गयी तो उनके स्थान पर राजीव गांधी को लाने में उन्हें कोई विचार नहीं करना पड़ा।

अब जबकि संजय,इंदिरा और राजीव नहीं रहे तो हमारे यहां सोनिया और मेनका के रूप में दो विधवाएं हैं जो सर्वोच्च पद पाने की होड़ में लगी हुई हैं।

  सोनिया की संतान प्रियंका और राहुल को मेनका के वरूण के खिलाफ लाया जा रहा है और ये सब केंद्रीय कक्ष में घुसने की प्रतीक्षा में हैं।

 हालांकि हमारे देश का पश्चिमी ढंग से सोचने वाला संभ्रांत वर्ग वंश परम्परा को बढ़ावा देता है।

आम आदमी इन वंशों के उत्तराधिकारियों को ईमानदारी से चुनाव होने पर अपना वोट कभी नहीं देता।यह प्रजातंत्र की उतरन है।मध्ययुगीन और राजशाही की धरोहर है।

खुशवंत सिंह ने इंदर मल्होत्रा की पुस्तक ‘‘डायनेस्टीज आॅफ इंडिया एण्ड बियाण्ड’’को उधृत करते हुए इस देश व पड़ोस के देशों में चल रहे वंशवाद की भी चर्चा की है।

---------------------

आज जबकि भारत की राजनीति में वंशवाद खतरे में आ रहा है,वंश से आए कांग्रेस अयोग्य नेतृत्व के कारण डूब रही है,कई दशक पहले के खुशवंत सिंह के इस काॅलम को पढ़ना 

प्रासंगिक है।

इस बीच इस देश के अनेक नेहरू-गांधी के प्रशंसक पत्रकार,इतिहासकार  व पुस्तक लेखक यह लिखते रहे हैं कि जवाहरलाल नेहरू ने वंशवाद -परिवारवाद को आगे नहीं बढ़ाया।बेखौफ खुशवंत ने अपने काॅलम में उन सबकी कलई खोलकर रख दी।

इमर्जेंसी में संजय गांधी-मेनका गांधी की तारीफ करने के कारण खुशवंत सिंह को कुछ लोग खुशामद सिंह भी कहते थे।पर एक खुशामद सिंह ने ही नेहरू का अच्छी तरह भंडाफोड किया है।

-------------

लेखक हो तो खुशवंत सिंह जैसा--जिसे जब जो ठीक लगा,वह लिखा।उसकी कलम और बुद्धि किसी के यहां गिरवी 

नहीं थी।

--------------

इलेस्टे्रटेड विकली आॅफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक रहे खुशवंत सिंह ने कई चर्चित पुस्तकें लिखीं।

99 साल की उम्र पाये।

एक इंटरव्यू में कहा था-

‘‘मेरा जिस्म बूढ़ा है,आंखें बदमाश और दिल अब भी जवां।’’

--------------------

इस साहसी सरदार जी ने मुस्लिम नेताओं से अपील की थी कि आप लोग तीन स्थानों अयोध्या,काशी और मथुरा हिन्दुओं को सौंप दीजिए।बदले में हिन्दू पक्ष 3997 मस्जिदों पर अपना दावा छोड़ दें।पर,यह न होना था और न हुआ।

-------------------

25 मार्च 24

       

 


सोमवार, 25 मार्च 2024

 पहले पिछड़े समुदाय के नेता सत्ताधारी  कांग्रेस

से ‘आरक्षण’ मांगते थे।

अब खुद कांग्रेस पिछड़ों के 

नेता से अपने लिए लोक सभा की सीटें 

मांगने को मजबूर है।

------------------------

सुरेंद्र किशोर

-------------------

लोक सभा,राज्य सभा और बिहार विधान सभा के सदस्य रहे राम अवधेश सिंह अस्सी के दशक में जो बात कहते थे,वह अब सच साबित हो रही है।

 सन 1969 में आरा से विधायक और 1977 में बिक्रमगंज से सांसद रहे दिवंगत सिंह ने मुझसे कहा था कि कांग्रेस सरकार (मंडल आयोग की रपट के आधार पर)पिछड़ों को आरक्षण नहीं दे रही है।

पर,एक दिन ऐसा आएगा कि जब कांग्रेस ही अपने लिए हमसे आरक्षण मांगेगी।

याद रहे कि मंडल आयोग की रपट 1980 में ही आ गई थी।

उसके बाद उस रपट पर तीन बार संसद में विस्तृत चर्चा हुई।

हर बार चर्चा के बाद कांग्रेसी सरकार के गृह मंत्री ने सदन में कहा कि इसे लागू करने का सरकार का कोई इरादा नहीं है।

पर,जब 1990 में वी.पी.सिंह की गैर कांग्रेसी सरकार ने इसे लागू किया कि आरक्षण विरोधियों ने कहा कि बिना किसी चर्चा के सिंह ने यह लागू कर दिया।  

-------------------- 

अब सन 2024 में जब लोक सभा का चुनाव सामने है तो कांग्रेस, राजद से अपने लिए तालमेल में जितनी सीटें लड़ने के लिए मांग रही है,राजद उतनी सीटें नहीं दे रहा है।दरअसल कांग्रेस अपनी वास्तविक ताकत के अनुपात में अधिक सीटें मांग रही है।

--------------

आरक्षण एक भावनात्मक मुद्दा भी रहा है।

2018 में संसद में जब 10 प्रतिशत  सवर्ण आरक्षण विधेयक पेश हुआ तो राजद ने उसका विरोध कर दिया।नतीजतन 2019 के लोक सभा चुनाव में राजद को एक भी सीट नहीं मिली।

रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह जैसे राजद के अच्छे उम्मीदवार भी लोक सभा चुनाव हार गये।

------------

अब राजद कहता है कि वह ए टू जेड की पार्टी है।पर,देर हो चुकी है।

------------

राजद नेताओं को जिन बुद्धिजीवियों ने सवर्ण आरक्षण का विरोध करने की सलाह दी,उन लोगों ने राजद को नुकसान पहुंचाया।

उसी तरह जिन बुद्धिजीवियों ने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को समय -समय पर मंडल आरक्षण का विरोध करने की सलाह दी,उन लोगों ने कांग्रेस का भारी नुकसान कर दिया।

---------------

याद रहे कि आरक्षण का प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद-340 में कर दिया गया है।

मंडल आयोग को जब वी.पी.सिंह सरकार ने लागू किया तो वह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया था।सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में उस पर अपनी मुहर लगा दी।

----------------

कांग्रेस को नरेंद्र मोदी सरकार से सीखना चाहिए।मोदी सरकार सभी जातियों को विश्वास में लेकर चल रही है ।

 उन्हें भरसक सत्ता में हिस्सेदारी भी दे रही है।इसीलिए भाजपा मजबूत होती जा रही है।

इसके अलावा भ्रष्टाचार विरोध और जेहाद विरोध मोदी सरकार का यू.एस.पी. है।

-------------------

इन दिनों जांच एजेंसियों से पीड़ित प्रतिपक्ष का मुख्य प्रश्न यह है कि भ्रष्टाचार के विरोध में एकतरफा कार्रवाई क्यों हो रही है ?

यदि यह सच है तो भाजपा विरोधी दल डा.सुब्रह्मण्यम सवामी के दिखाए गए रास्ते पर क्यों नहीं चल रहे हैं ?इसलिए नहीं चल रहे हैं क्योंकि उन्हें भाजपा नेताओं के खिलाफ पोख्ता सबूत नहीं मिल रहे हैं।या कोई और बात है ?

जय ललिता के भ्रष्टाचार,नेशनल हेराल्ड के घोटाले और 2 जी मामले में कार्रवाई शुरू कराने के लिए डा.स्वामी को किसी सरकार से मदद लेने की जरूरत नहीं पड़ी थी।तीनों मामलों में स्वामी को सफलता मिली।

-------------

दिल्ली से एक पत्रकार ने कल मुझसे पूछा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ  कार्रवाई शुरू करने के बाद लालू प्रसाद के वोट पर कितना फर्क पड़ा था।

वे इस बात का पूर्व अनुमान लगाना चाहते हैं कि केजरीवाल के चुनावी भविष्य पर अब कैसा असर पड़ेगा ?

-------------

मैंने उन्हें बताया कि चारा घोटाला मामले में 1997 में पहली बार लालू प्रसाद जेल गये थे।

उससे पहले मंडल आयोग की रपट की पक्षधरता के कारण लालू की पार्टी को 1991 के लोक सभा चुनाव में बिहार में और 1995 के बिहार विधान सभा चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला था।

लालू प्रसाद ने पिछड़ों को सीना तान कर चलना सिखाया था।पिछड़ों के लिए उतना बड़ा काम किसी अन्य नेता ने उससे पहले नहीं किया था।

पर 1997 के बाद यानी सन 2000 के बिहार विधान सभा चुनाव में लालू प्रसाद के दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला।

सजा होने पर और अधिक फर्क आया।

पहली बार चारा घोटाले में लालू प्रसाद को 2013 में सजा हुई।सजा के तत्काल बाद राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा था कि लालू जी को सजा होने के बाद बिहार में जो सहानुभूति लहर चलेगी,उसके बल पर हम बिहार की लोक सभा की सभी 40 सीटें जीत जाएंगे।

पर,इस दावे के विपरीत 2014 के लोक सभा चुनाव में राजद यानी लालू प्रसाद की पार्टी को बिहार में लोक सभा की सिर्फ 4 सीटें मिलीं।

------------------

25 मार्च 24 


 फिर पछताए होत का जब 

चिड़िया चुग जाए खेत ?

-------------------

जो लोग सी.ए.ए.और एन.आर.सी.का विरोध कर रहे हैं,उनके 

वास्तविक उद्देश्य व लक्ष्य को जल्द से जल्द समझ लीजिए।

अभी नहीं समझिएगा तो 10-15 साल बाद समझने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। 

---------------

सुरेंद्र किशोर

24 मार्च 24


रविवार, 24 मार्च 2024

 गोपनीयता के आवरण में चुनावी चंदा

------------------

समय के साथ देश में बहुत कुछ बदल गया,लेकिन चुनावी चंदे 

में पारदर्शिता का अभाव जस का तस कायम है

----------------

सुरेंद्र किशोर

----------------

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

लोकतंत्र की सफलता चुनावी प्रक्रिया में स्वतंत्रता ,पारदर्शिता एवं निष्पक्षता से निर्धारित होती है।

 चूंकि चुनाव एक खर्चीली प्रक्रिया भी है तो इस कारण इसमें चुनावी चंदे की भूमिका अहम हो जाती है।

इसी चंदे से जुड़े चुनावी बांड का मुद्दा इन दिनों सुर्खियों में छाया हुआ है।

भारत मेें देसी -विदेशी चुनावी चंदे को लेकर  पर्दादारी की परंपरा दशकों पुरानी है।

विदेशी चंदे के बारे में 1967 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री यशवंतराव बलवंतराव चव्हाण ने लोकसभा यह जानकारी दी थी, ‘इस देश के राजनीतिक दलों को मिले विदेशी चंदे के बारे में भारत के केंद्रीय गुप्तचर विभाग की रपट को प्रकाशित नहीं किया जाएगा,क्योंकि इसके प्रकाशन से अनेक व्यक्तियों और दलों के हितों की हानि होगी।’

 इससे पहले विपक्षी दलों के कुछ नेताओं ने उसके प्रकाशन की मांग की थी।

   इस प्रकार उस समय केंद्र में सत्तारूढ़ इंदिरा गांधी सरकार ने यह परंपरा स्थापित कर दी कि सियासी चंदें के मामले में देश को हानि भले हो जाए,लेकिन राजनीतिक दलों और नेताओं को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए।

वह परंपरा कमोबेश आज भी देश में कायम है।

ऐसे में इस पुरानी मांग पर एक बार फिर गौर करने की जरूरत है कि मान्यताप्राप्त राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार के जरूरी खर्चे खुद सरकार उठाये।

 1967 के आम चुनाव में सात राज्यों में कांग्रेस हार गई थी।

 तब तक लोक सभा और विधान सभाओं के चुनाव साथ -साथ ही होते थे। याद रहे कि 1967 में आम चुनाव के कुछ महीनों के भीतर दलबदल के कारण दो अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकारें भी गिर गई थीं।

 उसके बाद वहां भी गैर कांग्रेसी सरकारें गठित हो गई थीं।

चैथे आम चुनाव में लोक सभा में भी कांग्रेस का बहुमत कम हो गया था।

यानी, आज का यह तर्क सही नहीं है कि विभिन्नताओं वाले इस देश में लोक सभा और विधान सभाओं के चुनाव अलग -अलग ही होने चाहिए ।

जब साथ चुनाव होने पर भी परिणाम अलग -अलग आते ही थे तो एक बार फिर एक ही साथ चुनाव कराने में नुकसान क्या है ?

असल में इसके लाभ अधिक हैं।

  अतीत की ओर देखें तो 1967 की चुनावी हार पर तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी चिंतित हो उठी थीं।

पहले से ही उन्हें यह अपुष्ट खबर मिल रही थी कि इस चुनाव में विदेशी धन का इस्तेमाल हुआ है।

तब इंदिरा गांधी को ऐसा लगा कि विदेशी धन सिर्फ विपक्षी दलों को मिला।

इंदिरा सरकार ने गुप्तचर विभाग को इसकी जांच का जिम्मा सौंपा।

जांच रपट सरकार को सौंप दी गयी,लेकिन रपट को सरकार ने दबा दिया।

ऐसा इसलिए क्योंकि वह रपट सत्तारूढ़ दल के लिए भी असहज करने वाली थी।

जांच के दौरान इस बात के भी सबूत मिले थे कि कांग्रेस के ही कुछ नेताओं ने अमेरिका से तो कुछ दूसरे कांग्रेस नेताओं ने सोवियत संघ से पैसे लिये थे।

इस रपट को बाद में अमरीकी अखबार द न्यूयार्क टाइम्स ने छाप दिया था।

  इस रपट के अनुसार सिर्फ एक राजनीतिक दल को छोड़कर लगभग सभी प्रमुख दलों ने विदेशी चंदा स्वीकार किया था।

गुप्तचर विभाग की उक्त रपट के अनुसार अमेरीकी गुप्तचर एजेंसी और कम्युनिस्ट दूतावासों ने राजनीतिक दलों को काफी पैसे दिए।

उन दिनों विश्व के दो खेमों के बीच शीत युद्ध जारी था।

कम्युनिस्ट और गैर कम्युनिस्ट देशों ने भारत में अपने -अपने खास समर्थक बना रखे थे।

यह किसी से छिपा नहीं रहा कि उस दौर में एक खेमे का नेतृत्त्व अमेरिका और दूसरे खेमे का नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था।

न्यूयार्क टाइम्स की इस सनसनीखेज रपट पर 1967 के प्रारंभ में लोक सभा में बहुत तीखी बहस हुई।

इसके परिणामस्वरूप तमाम भारतीय अखबारों में भी इस खबर को बाद में काफी कवरेज मिला।

जो खबर न्यूयार्क टाइम्स ने ब्रेक की थी, वह खबर भारतीय मीडिया क्यों नहीं ब्रेक कर सका ?

क्या तब भी गोदी मीडिया था ?

इस समय एक तबका गोदी मीडिया का आरोप भारतीय मीडिया को लेकर लगा रहा है,उन्हीं दिनों यह खबर भी आई थी कि इस देश के ही एक बड़े उद्योगपति ने तकरीबन पांच दर्जन सांसदों को अपने ‘पे रोल’ पर रखा हुआ था।

   संसद में स्वतंत्र पार्टी के एक सदस्य ने गृह मंत्री चव्हाण से पूछा कि क्या वह गुप्तचर विभाग की रपट को प्रकाशित करने का बीड़ा उठाएंगे ताकि राजनीतिक दलों को जनता के बीच सफाई पेश करने का मौका मिल सके ?

 रपट के प्रकाशन से इनकार करते हुए चव्हाण ने यह जरूर कहा था कि केंद्र सरकार चुनाव आयोग की मदद से संतानम समिति के उस सुझाव पर विचार कर रही है जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों को हर संभव स्रोतों से प्राप्त होने वाली धन राशि की जांच की बात कही गई है।

इस देश का दुर्भाग्य ही रहा कि जनता आज भी संतानम समिति की रपट को लागू करने की आस लगाए बैठी है।

  समय के साथ राजनीति में काले धन के इस्तेमाल की खबरें बेहद आम होती गयीं।

कई मामलों में तो स्थिति यह हो गयी है कि चुनाव में बाहुबल से अधिक प्रभावी भूमिका धनबल की होती जा रही है।

कुछ समय पहले एक विधान सभा चुनाव में एक उम्मीदवार को दो हजार रुपए के नोट्स मतदाताओं के बीच बांटते हुए टी.वी.पर दिखाया गया था।

अब तो इस देश के छोटे -छोटे दलों के नेता भी र्चाटर्ड प्लेन से घूम रहे हैं।

चुनाव में काले धन के बढ़ते असर से राजनीति की शुचिता प्रभावित हो रही है।

परिणामस्वरूप राजनीतिक कार्यपालिका भी दूषित हो रही है।

प्रशासनिक कार्यपालिका के बारे में तो क्या ही कहा जाए ?

विशेषज्ञ बताते हैं कि एक स्तर पर भ्रष्टाचार, विकास की गति को अपेक्षित रूप से बढ़ने नहीं दे रहा है।

गुणात्मक एवं टिकाऊ

ढांचा निर्माण की कोई गारंटी नहीं है।

चुनावी चंदा भ्रष्टाचार का एक बड़ा स्रोत बना हुआ है।इसी को देखते हुए चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए चुनावी बांड की व्यवस्था की गई थी,लेकिन भली मंशा वाली यह योजना राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में अपेक्षित परिणाम न देकर खुद विवादों के घेरे में घिर गई।

’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’

20 मार्च 24 के दैनिक जागरण और नईदुनिया मे एक साथ प्रकाशित।

      






 भ्रष्टाचार वाद,

परिवार वाद-वंशवाद,

जेहाद वाद और 

बाहुबली वाद 

का भविष्य भी अगला लोक सभा चुनाव रिजल्ट तय कर देगा।

......................................

सुरेंद्र किशोर

24 मार्च 24


शनिवार, 23 मार्च 2024

 अब मत पूछिएगा कि 2 जी में क्या हुआ ?

----------------------

2 जी घोटाला मुकदमे में ताजा प्रगति जानने के 

लिए आज के अंग्रेजी अखबार पढ़ें

,-------------------- 

         --सुरेंद्र किशोर --  

----------------------

अक्सर चुनाव प्रचार या व्यक्तिगत बातचीत में कुछ लोग यह सवाल उठा देते हैं कि 

‘‘आखिर 2- जी घोटाले में क्या मिला ?

बोफोर्स मामले का क्या हुआ ? 

कुछ तो नहीं हुआ।’’

खुद ही जवाब भी दे देते हैं।

-------------

यह सवाल जब-जब टी वी डिबेट्स में उठता है कि भाजपा के भी अध-पढ़ प्रवक्ता चुप रह जाते हैं।

-----------------

यह सवाल उठा कर प्रकारांतर से वे यह कहना चाहते हैं कि आज जिन नेताओं के खिलाफ मोदी सरकार कार्रवाई कर रही है,उनका भी अंततः कुछ नहीं बिगड़ेगा।

ऐसा कह कर वे सिर्फ संतोष कर सकते हैं।बिगड़ेगा तो जरूर।यदि सरकारें बदलती नहीं रहतीं तो बोफोर्स- 2 जी में भी बहुत कुछ हो जाता।

-----------------

फिर भी इन दोनों मामलों में क्या-क्या हुआ,यह जान लीजिए।

----------------

प्रणव मुखर्जी जैसे नेताओं की बातों में भी मत आइएगा जो कह गये हैं कि 

‘‘ बोफोर्स घोटाला सिर्फ मीडिया ट्रायल था।कोई घोटाला था नहीं ।’’

---------------------

  दिल्ली हाईकोर्ट ने 22 मार्च 2024 को कहा कि 2 जी मामले के आरोपितों को दोषमुक्त करने के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई होगी।

 सी.बी.आई.की विशेष अदालत ने सन 2017 में आरोपितों ए.राजा और कनिमोझी आदि को दोषमुक्त करार दे दिया था।

मार्च, 2018 में सी.बी.आई.ने दोषमुक्ति के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की।

हाईकोर्ट ने 22 मार्च 2024 को कहा कि अपील सुनवाई योग्य  है।

  याद रहे कि 2 जी मामले में  200 करोड़ रुपए की घूसखोरी के आरोप को लोअर कोर्ट ने नजरअंदाज करते हुए आरोपितों को दोषमुक्त कर दिया था।

---------------

उधर बोफोर्स मामले में तो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भी अपील करने में जानबूझकर भारी लापरवाही दिखाई थी।

कई महीने लगा दिए।

उसके बाद सन 2004 में उनकी सरकार ही चली गई।

  हालांकि बोफोर्स मामले में दलाली के पैसे एक बाफोर्स दलाल हिन्दुजा के मुम्बई स्थित फ्लैट की नीलामी करके आयकर ने जरूर वसूले।

  किंतु मनमोहन सरकार ने एक अन्य दलाल क्वाचोचि को दलाली के पैसे के साथ साफ बचकर निकल जाने दिया।

-----------------

अस्सी के दशक में जब बोफोर्स घोटाला सामने आया था तो राजीव सरकार ने कहा था कि कोई दलाली नहीं ली या दी गई।जबकि बाद में साबित हो गया कि राजीव सरकार की बात गलत थी।याद रहे कि फ्रांस की सोफ्मा कंपनी चूंकि दलाली नहीं देती थी,इसलिए स्वीडन की बोफोर्स कंपनी से तब तोपें खरीदी गयी थीं।

बोफोर्स कंपनी दलाली देती थी।

बोफोर्स तोप भी अच्छी है,पर सोफ्मा बोफोर्स से बेहतर है।

------------------------

   2 जी. स्पैक्ट्रम घोटाला मुकदमे में ए.राजा और कनिमोझी को दोषमुक्त करते हुए दिल्ली स्थित विशेष सी.बी.आई. जज ओ.पी.सैनी ने कहा था कि

 ‘‘कलाइनगर टी.वी.को कथित रिश्वत के रूप में शाहिद बलवा की कंपनी डी.बी.ग्रूप द्वारा 200 करोड़ रुपए देने के मामले में अभियोजन पक्ष ने किसी गवाह से जिरह तक नहीं की।

कोई सवाल नहीं किया।’’

    मान लिया कि कोई सवाल नहीं किया।

  क्योंकि मनमोहन सरकार के कार्यकाल में सी.बी.आई. के वकील को ऐसा करने की अनुमति नहीं रही होगी।

पर, खुद जज साहब के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में ऐसे ही मौके के लिए  धारा -165 का प्रावधान किया गया है।

   सवाल है कि  धारा -165 में प्रदत्त अपने अधिकार का सैनी साहब ने इस्तेमाल क्यों नहीं किया।

 संभवतः मुख्यतः इसी सवाल पर अब हाई कोर्ट में विचार होगा कि 

 यानी लोअर कोर्ट के जज ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा -165 में  मिली शक्ति का उपयोग क्यों नहीं किया जबकि उनके पास  यह सूचना थी कि इस घोटाले में 200 करोड़ रुपए की रिश्वत देने का आरोप लगा हैै ?

इस केस का यह सबसे प्रमुख सवाल दिल्ली हाईकोर्ट के सामने है।

 बोफोर्स मामले में सुनवाई,यदि सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए राजी होता है तो , के समय यह सवाल

उठेगा कि शासन के दो अंगों ने परस्परविरोधी तरीके से काम क्यों किया ?

  मनमोहन के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अपना प्रतिनिधि लंदन भेज कर स्विस बैंक की लंदन शाखा के उस बंद खाते को चालू करवा दिया जिसमें  बोफोर्स दलाल क्वात्रोचि के पैसे जमा  थे।

वे दलाली में मिले पैसे ही थे।

दूसरी ओर,

 भारत में आयकर महकमे ने उसी केस में दूसरे दलाल हिन्दूजा के फ्लैट को जब्त कर उसे नीलाम पर चढ़ा दिया।

  याद रहे कि आयकर न्यायाधिकरण ने कहा था कि बोफोर्स दलाली के पैसे हिन्दूजा व क्वात्रोचि को मिले थे।

अतः उस पर आयकर बनता है।

 याद रहे कि जब्त खाता खुल जाने के तत्काल बाद क्वोत्रात्रि पैसे निकाल कर भाग चुका था।

.......................................

हाल में यह खबर छपी है कि वी.पी.सिंह ने कागज का एक टुकड़ा ,जिसमें बोफोर्स दलाल के बैंक खाते का नंबर था,हवा में लहराया और राजीव गांधी सरकार चली गयी।

-------------------

जबकि सच्चाई यह है कि वी.पी.सिंह ने स्विस बैंक के जिस खाते का नंबर बताया था,वही नंबर बोफोर्स मुकदमे के आरोप पत्र में दर्ज है।

----------------

बोफोर्स को लेकर मशहूर  वकील अजय अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में  याचिका दायर की थी।उसे सुनवाई के लिए मंजूर भी किया गया था।पता नहीं उसका क्या हश्र हुआ।यानी कब सुनवाई होगी !!

-----------------

23 मार्च 24


 बेशर्मी की हद

-------

इस देश में आज बहस इस बात पर हो रही है कि मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल जेल से सरकार चला सकते हैं या नहीं।

एक ने कहा कि संविधान में ऐसी कोई रोक तो है नहीं।

बेशर्मी की हद है !!!

----------------

अधिक दिन नहीं हुए।

सत्तर के दशक में बिहार के एक बड़े नेता के सामने भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने की नौबत आई थी।

वे शर्म व हया वाले नेता थे।स्वतंत्रता सेनानी थे।

उन्होंने जेल जाने के बदले आत्म हत्या करना बेहतर समझा।

-------------------

यदि ऐसी खबर संविधान निर्माताओं को आज परलोक में

पहुंच जाए तो वे भगवान से प्रार्थना करेंगे कि हमारा अगला जनम वैसे नेताओं के देश में नहीं हो।

------------

सुरेंद्र किशोर

23 उंतबी 24


शुक्रवार, 22 मार्च 2024

 कहां से चलकर कहां पहुंचे केजरीवाल !!!

--------------

सुरेंद्र किशोर

----------

आज की ताजा खबर

-----

दिल्ली के सी.एम.केजरीवाल मनी लांड्रिग मामले में गिरफ्तार

21 मार्च 202

------------

पहले की खबरों की सूची

--------------

भ्रष्टाचार पर समझौता नहीं।

मैं इससे लड़ने के लिए अपनी पूरी जिन्दगी दांव पर लगा दूंगा--केजरीवाल

---राष्ट्रीय सहारा-6 जनवरी 2013

--------------------

दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी आम आदमी सरीखी जीवन शैली के लिए मीडिया की सुर्खियां बटोर रहे हैं।

------दैनिक हिन्दुस्तान--5 जनवरी 2014

----------------------------

हां, मैं अराजक हूं,जरूरत पड़ी तो गणतंत्र दिवस परेड भी नहीं होने दूंगा--मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल

----दैनिक भास्कर

21 जनवरी 2014

------------------

32 घंटे बाद दिल्ली की सड़क से केजरीवाल का धरना खत्म

----22 जनवरी 2014--दैनिक भास्कर

--------------------

राजनीति की आइटम गर्ल है ‘आप’

देश को दांव पर लगाकर राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता हासिल करने में लग गई है आम आदमी पार्टी

--चेतन भगत के लेख का शीर्षक

--दैनिक भास्कर--22 जनवरी 2014

---------------

1984 के सिख दंगों की जांच एस आई टी से हो--केजरीवाल

   30 जनवरी 2014

-------------------

आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्य कारिणी

आम चुनाव में क्रांति का एलान

केजरीवाल ने बनायी भ्रष्ट नेताओं की लिस्ट

लिस्ट में राहुल गांधी और 11 केंद्रीय मंत्रियों के नाम हैं।

-----प्रभात खबर--1 फरवरी 2014

------------------

हां,मैं राजनीतिक क्रांतिकारी हूं

--केजरीवाल

---सहारा-10 फरवरी 2014

--------------------

देश के लिए अगर जान भी देनी पड़े तो दे दूंगा

----केजरीवाल

--प्रभात खबर-15 फरवरी 2014

-------------------

फंड के लिए मफलरमैन के साथ सेल्फी

---22 दिसंबर 2014

------------------

घूसखोरी खत्म करना प्राथमिकता

--अरविंद केजरीवाल

---प्रभात खबर--11 फरवरी 2015

---------------

मुझे एक साल से निशाना बनाया जा रहा था

-केजरीवाल

--30 मार्च 2015

--------------------


गुरुवार, 21 मार्च 2024

 आज का वह ऐतिहासिक दिन

जब आपातकाल हटा 

--------

21 मार्च 1977 को इंदिरा गांधी सरकार ने जाते-जाते 

इमर्जेंसी हटा ली।

जिन लोगों पर इमर्जेंसी का कहर नहीं ढहा और जिन 

सजग पाठकों ने सेंसर का जहर पान नहीं किया,उन्हें इमर्जेंसी के हटने से मिली राहत के सुखद अनुभव का अनुमान नहीं।

---------------

बस एक लाइन में यह समझ लीजिए कि इंदिरा गांधी की सरकार के एटाॅर्नी जनरल ने तब सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया था कि 

‘‘आज यदि शासन किसी नागरिक की जान भी ले ले,तौभी  उसके खिलाफ अदालत की शरण नहीं ली जा सकती।

क्योंकि संविधान में मिले जीने के अधिकार के साथ-साथ सभी मौलिक अधिकार स्थगित कर दिये गये हैं।सुप्रीम कोर्ट ने अनुशासित बालक की तरह इंदिरा सरकार के उस आदेश पर अपनी मुहर लगा दी थी।

जबकि अंग्रेजों के राज में भी पुलिस की गोली से निर्दोष व्यक्ति की हत्या के खिलाफ अदालत की शरण ली जा सकती थी।आज तो इस देश में किसी जेहादी आतंकवादी के लिए भी सुप्रीम कोर्ट आधी रात में भी खुल जाता है।

----------------------

इमर्जेंसी में इस देश का क्या हाल था,खुद मैंने उसे देखा,झेला और महसूस किया था।मैं खुद तब मेघालय में भूमिगत था।

लगता था कि ये अंधेरी रातें कभी समाप्त ही नहीं होंगी।

पर,मेरी बात पर मत जाइए।

अभी नेहरू-इंदिरा के दोस्त देश सोवियत संघ के एक अखबार ने क्या लिखा था-उसे यहां पढ़ लीजिए।

तब दैनिक अखबार ‘‘इजवेस्तियां’’ने लिखा था कि 

‘‘आपात् स्थिति के दौरान सत्ता का दुरुपयोग और लोगों पर ज्यादतियां श्रीमती गांधी के पतन का कारण बनी।’’

मोरारजी देसाई सरकार के गठन के बाद जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि

‘‘नयी सरकार का पहला काम यह होना चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों में जनता के मन में जो भय पैदा कर दिया गया है,उसे हटाया जाये।

 सरकार लोगों को इस बात की पूरी आजादी दे कि उन्हें जो भी कहना हो, वे कहें।

लोग महसूस करें कि यह उन्हीं की सरकार है।’’

-------------------

 25 जून, 1975 को प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर दमघोंटू इमर्जेंसी इसलिए लगाई क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रायबरेली लोक सभा क्षेत्र से इंदिरा गांधी का चुनाव रद कर दिया था।

1971 के चुनाव के दौरान श्रीमती गांधी पर जन प्रतिनिधित्व कानून की दो धाराओं के उलंघन का आरोप साबित हो गया था।

चूंकि उन धाराओं को इंदिरा जी के खिलाफ केस की जरूरत के अनुसार संसद से बदलवा कर उन्हें पिछली तारीख से लागू करवाने का काम इमर्जेंसी लगाकर और सारे प्रतिपक्षी नेताओं को जेलांे में ठूंस कर ही किया जा सकता था।

इसलिए पूरे देश को एक विशाल कारागार बना दिया गया।

तब का सुप्रीम कोर्ट इतना आाज्ञाकारी हो चुका था कि उसने 

जन प्रतिनिधित्व कानून में उस संशोधन को पिछली तारीख से लागू करना भी मंजूर कर लिया ताकि इंदिरा जी की लोस सभा की सदस्यता बरकरार रह जाये।यही हुआ भी।

-------------------------

21 मार्च 24      


सोमवार, 18 मार्च 2024

 मोदी है तो मुमकिन है

-------------

सांसद फंड की समाप्ति के बिना भ्रष्टाचार 

को काबू में लाना असंभव

-------------

समाप्ति का यह काम नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं।

अटल जी और मनमोहन जी तो चाहते हुए भी इसे 

समाप्त नहीं कर सके थे

 --------------------- 

सुरेंद्र किशोर

----------

  मेरा मानना है कि सांसद क्षेत्र विकास फंड सरकारी व राजनीतिक भ्रष्टाचार का ‘‘रावणी अमृत कुंड’’ है।

  इस फंड के प्रावधान की समाप्ति के बिना शासन व राजनीति से भ्रष्टाचार की समाप्ति कौन कहें,इसे कम करने की भी कल्पना नहीं की जा सकती।

  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी आज इतने लोकप्रिय और ताकतवर हैं कि वे ही इस फंड को समाप्त कर सकते हैं।

अभी लोहा गर्म है।

वैसे भी यह जन कल्याण का काम है।

नब्बे के दशक में भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप देने के लिए ही इस फंड को शुरू किया गया था। 

खबर मिली थी कि कुछ साल पहले मोदी जी ने इस फंड की समाप्ति को लेकर सांसदों से राय मांगी थी।

पता चला कि सिर्फ 3 सांसदों ने इसकी समाप्ति के पक्ष में राय दी।इसकी ‘ताकत’ तो देखिए !!

अटल बिहारी वाजपेयी जी ,मनमोहन सिंह जी प्रधान मंत्री थे तो वे चाहते हुए भी इसे समाप्त नहीं कर सके थे।

पर मोदी दूसरी ही मिट्टी के बने हैं।मोदी लुंजपुंज नेता नहीं है।

मोदी है तो यह असंभव सा दिखने वाला यह काम भी 

मुमकिन है।इसके बड़े फायदे हैं।किसी अन्य एक काम से इतना फायदा नहीं।

लोक सभा के भाजपा उम्मीदवारों को, जो अपनी जीत के लिए आज मोदी पर ही निर्भर हैं, ‘‘चुनावी टिकट’’ देते समय ही भाजपा नेतृत्व उनसे यह लिखवा लें या उन्हें साफ -साफ कह दे कि नयी लोक सभा के कार्यकाल शुरू होते ही सांसद फंड बंद हो जाएगा।अन्य किसी दल से ऐसी उम्मीद नहीं की सकती।

--------------------  

अब नहीं तो कभी नहीं मोदी जी !!

सांसद फंड में कमीशनखोरी और न खाएंगे और न खाने देंगे --दोनों बातें एक साथ कैसे चलेंगी ? !!

सांसद शब्द बड़ा पवित्र शब्द है,इसकी गरिमा बढ़ाने का काम तुरंत शुरू हो जाना चाहिए।

-----------------

18 मार्च 24 


 पाक,अफगानिस्तान और

बांग्ला देश से पीड़ित होकर 

भारत में शरण लिए गैर मुस्लिम 

शरणार्थियों के बारे में

------------------

सुरेंद्र किशोर

---------------

सी.ए.ए.के तहत उन्हें बारी -बारी से भारत की नागरिकता दी जा रही है।

उन्हें इस देश की अधिकतर सरकारें (ध्यान रहे,सब नहीं।)

तो मदद करेंगी ही।

साथ ही, देश के व्यापारी और उद्योगपति गण भी ‘‘कंपनी सामाजिक उत्तरदायित्व’’ यानी सी.एस.आर, के तहत उनकी योग्यता के अनुसार उन्हें मदद करें।

----------------  

याद रहे कि इस देश की कंपनियों के लिए यह अनिवार्य है कि वे अपने नेट मुनाफे में से 2 प्रतिशत सी.एस.आर.के तहत खर्च करें।करते भी रहें हैं।पर,यह नई जिम्मेदारी उठाकर उन्हें भी संतोष होगा।

----


        दूरदर्शी सलाहकार जरूरी 

     ----------------------

दूरदर्शी सलाहकारों की कमी के कारण ही नीतीश कुमार ने बारी -बारी से दो बार राजग छोड़ दिय़ा था।

  इस बार जब नीतीश जी राजग में लौटे तो उन्होंने प्रधान मंत्री को सार्वजनिक रूप से यह आश्वासन दिया कि अब आपका साथ हम नहीं छोडे़ंगे।

नीतीश जी ने अच्छा किया।

अपने लिए भी और अपने समर्थकों-प्रशंसकों के लिए भी अच्छा किया।

--------

पर,लगता है कि पशुपति जी पारस के आसपास भी दूरदर्शी सलाहकारों की कमी है।

पारस जी को यह समझ लेना चाहिए कि राम बिलास पासवान जी का वोट बैंक अब चिराग के साथ है, आपके साथ नहीं।

इस संबंध में भाजपा नेतृत्व को सही जानकारी मिली है।

बाल ठाकरे के भतीजा उनके उतराधिकारी नहीं बने।

मुलायम जी के भाई नहीं बन सके।

लालू जी के साला नहीं बने और करूणनिधि के पुत्र ही उनके उत्तराधिकारी बने न कि कोई मारन जी।

वैसे चिराग जी के साथ दिक्कत यह है कि लगता है कि वे थोड़ा ‘जल्दीबाजी’ में हैं।सन 2020 के विधान सभा चुनाव में उनकी भूमिका से यही पता चला।आगे भी ऐसी ‘‘जल्दीबाजी’’ रहेगी तो उनके कैरियर के लिए ठीक नहीं रहेगा।

----------------

केंद्र सरकार का पारस जी और पिं्रसराज के लिए फिलहाल  आॅफर सम्मानजनक है।

हाजीपुर से चुनाव लड़कर यदि हार जाइएगा तो केंद्र सरकार दोबारा आपको वह आॅफर नहीं देगी।

-------------

16 मार्च 24


 रिटायर होने के बाद ‘‘चलो गांव की ओर’’

--यदि गांवों में आपके पास जमीन है।

हां, बिहार सरकार को भी चाहिए कि वह शहरों पर से बोझ घटाने के लिए कानून -व्यवस्था यू.पी. के स्तर पर लाए।

--------

सुरेंद्र किशोर

--------

दिल्ली का वायु प्रदूषण निवासियों की जीवन प्रत्याशा में करीब 12 साल की कमी कर रहा है।

  उसी तरह पटना का वायु प्रदूषण 10 साल आयु घटा रहा है।

मेरा आकलन है कि चुनाव लड़ने वाली कोई भी सरकार न तो परीक्षाओं में नकल या प्रश्न प्रत्र लीक की समस्या पर काबू पा सकती है और न ही प्रदूषण को कम कर सकती है।

हां,मोदी सरकार और नीतीश सरकार ने भ्रष्टाचार कम करके 

सरकारी राजस्व जरूर बढ़ा दिया जिससे अच्छी सड़ंकंे बन रही हैं।बिजली गांवों तक पहुंच गयी।

पटना में फ्लाई ओवर व बेहतर सड़कों से लोग खुश है।हां,जाम की समस्या को काबू करने में बिहार सरकार हांफ रही है।विफल है।

क्योंकि अधिकतर घूसखोर पुलिसकर्मियों व निगम कमियों पर राज्य सरकार का कोई कंट्रोल ही नहीं है।मध्य पटना में भी घूस लेकर बीच सड़क पर दुकानें सजवाई जाती हैं।

  -----

जीने की समस्या का भी यदि समाधान नहीं हो रहा हैं तो इस बीच क्या किया जाये ?! 

‘‘बाईपास’’की तलाश कीजिए ।

मैंने तलाश कर ली है।

चलो गंाव की ओर।

अन्यथा, कैंसर और वायु प्रदूषण से घुट- घुट कर मरिए।

-----

मैं इन दिनों अपने पुश्तैनी गांव में भी अपना एक बसेरा बनाना चाहता हूं।

देखें सफल होता हूं या नहीं।

इसके लिए मैं

अक्सर गांव जा रहा हूं।

आज भी गया था।

जाने में करीब डेढ़ घंटे और आने में उतना ही समय लगा।

शेरपुर-दिघवारा गंगा पुल बन जाने पर करीब पौन घंटा लगेगा।

---------------

बेहतर सड़कों व फ्लाई ओवर  के कारण गति बढ़ी है।

मेरे गांव से किसी मरीज को अब एक से डेढ़ घंटे में ही पटना एम्स पहुंचाया जा सकता है।

----------------

बिजली की आपूर्ति तो अब गांव -गांव अबाध है।मेरे गांव में भी बिजली नीतीश सरकार के आने के बाद ही 2009 में गयी। 

पर,पेय जल का प्रबंध आपको खुद करना पड़ेगा।क्योंकि अपवादों को छोड़कर बिहार में सरकारी नल जल योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है।

’’’’’’’’’’’’’’’’

गांव में रहने पर आप जैविक खेती कर-करा सकते हैं।

क्योंकि अपवादों को छोड़कर नगरों में मिलने वाले दूध से लेकर आलू तक कैंसर कारक है।

------------------

17 मार्च 24   

 


बुधवार, 6 मार्च 2024

 यदाकदा

सुरेंद्र किशोर

-------

 बेहतर कानून-व्यवस्था के लिए कारगर थानेदार जरूरी

----------------

नीतीश सरकार ने बेहतर विधि-व्यवस्था के लिए हाल में अनेक ठोस कदम उठाए हैं।

राज्य सरकार की मंशा अपराधियों पर करारा प्रहार करने की है।न सिर्फ कानून कड़े किए जा रहे हैं बल्कि पुलिस को नये अधिकारों से लैस किया जा रहा है।

साथ ही,                                                                                               पुलिस तंत्र को बेहतर साधन भी मुहैया कराएं जा रहे हैं।

पर,इसके साथ ही,एक और तत्व पर गौर करने की सख्त जरूरत है।

वह है थानेदारों की तैनाती में पारदर्शिता लाने की जरूरत।

जब तक पेशेवर आधार पर थानेदारों की तैनाती नहीं होगी,तब तक कोई अन्य उपाय काम नहीं आएगा।

पेशेवर और गैर पेशेवर तरीकों के अंतर के विस्तार में जाने की यहां कोई जरूरत नहीं है।

---------

भूली बिसरी याद

----------

संविधान सभा के अध्यक्ष डा.राजेंद्र प्रसाद ने 26 नवंबर 1949 को कहा था कि 

‘‘जिन व्यक्तियों का निर्वाचन किया जाता है यदि वे योग्य,चरित्रवान और ईमानदार हैं तो वे एक दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम संविधान बना सकेंगे।

यदि उनमें इन गुणों का अभाव होगा तो यह संविधान देश की सहायता नहीं कर सकेगा।

आखिर संविधान एक यंत्र के समान एक निष्प्राण वस्तु ही तो है।

उसके प्राण तो वे लोग हैं जो उस पर नियंत्रण रखते हैं और उसका प्रवर्तन करते हैं ।

 देश को आज एक ऐसे ईमानदार लोगों के वर्ग से अधिक किसी अन्य वस्तु की आवश्यकता नहीं है जो अपने सामने देश के हित को रखे।’’

डा.प्रसाद ने जो बातें संविधान के बारे में कही थी,वह बात इस देश के नये-पुराने कानूनों पर भी लागू होती हैं।

-------------------

दाखिल खारिज और सेवांत लाभ

----------------

सरकारी सूत्रों के अनुसार बिहार में दाखिल-खारिज के करीब पौने आठ लाख मामले में लंबित हैं।

दाखिल-खारिज के मामलों के समाधान के लिए जमीन मालिकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

इसके कई कारण हैं।

पर,मुख्य कारण लाल फीताशाही है।

 समस्या सरकारी सेवकों के सेवांत लाभ के समय पर भुगतान को लेकर भी सामने आती है।

लाखों लोगों की इन कठिनाइयों का यदि बिहार सरकार समाधान करा दे तो सरकार की वाहवाही होगी।

पर,भुक्तभोगी बताते हैं कि ये काम हिमालय पहाड़ पर चढ़ने की तरह का ही कठिन काम है।

------------

सांसद-विधायक फंड की निगरानी 

----------------

सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही कहा है कि सांसदों-विधायकों की निगरानी के लिए हम उनके शरीर पर चिप नहीं लगा सकते।

अदालत ने संबंधित याचिकाकर्ताओं को फटकारा भी ।अच्छा किया।

उनकी मांग ही गलत थी।

याचिकाकर्ता जन प्रतिनिधियों की सतत निगरानी की मांग कर रहे थे।मांग की गई थी कि सांसदों-विधायकों की गतिविधियों की 24 घंटे डिजिटल माध्यम से निगरानी के लिए अदालत केंद्र सरकार को निदेश दे।ऐसी मांग याचिकाकर्ता के दिमागी दिवालियापन की ही निशानी है।

पर, सरकार को एक काम करना चाहिए।

सांसद-विधायक फंड के सदुपयोग को सुनिश्चित करने की व्यवस्था करनी चाहिए।

इससे जन प्रतिनिधियों का जनता में सम्मान और भी बढ़ जाएगा।


सबक सिखाने वाली घटना

-------------

भोजपुरी फिल्म अभिनेता पवन सिंह

चुनाव टिकट वापसी प्रकरण ने फिल्मी जगत को अच्छी-खासी सीख दे दी है।

भोजपुरी फिल्मों के गीतों ओर संवादों में अश्लीलता की शिकायतें वर्षों से मिलती रही है।

पर,कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया गया।

पवन सिंह के अश्लील गानों का पश्चिम बंगाल में ऐसा विरोध हुआ कि 

उनका चुनाव टिकट कट गया।

भाजपा ने उन्हें आसनसोल से उम्मीदवार बनाया था।

अब राजनीतिक महत्वाकांक्षा वाले कोई अन्य फिल्म अभिनेता अश्लीलता से दूर ही रहेंगे,ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।

वैसे दोष सिर्फ पवन सिंह जैसे अभिनेताओं का ही नहीं है।

 कसूर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड का है।बोर्ड फिल्मों में गैर जरूरी हिंसा

और अश्लीलता को रोकने में अघोषित कारणों से विफल रहा है।

अब आप शायद ही ऐसी फिल्म पाएंगे जिसे आप परिवार के साथ बैठकर  देख सकें।

-----------

सरकार की पहल सराहनीय

------------

इस बीच यह खबर आई है कि केंद्र सरकार फिल्म प्रमाणन प्रक्रिया का कायाकल्प करने जा रही है।

इस संबंध में सलाह मांगी गयी।

 नियम बदले जाने हैं।

बोर्ड में अब अधिक महिलाएं रखी जाएंगी।

उम्मीद की जानी चाहिए कि नये नियम कड़े होंगे।पर,यह देखना होगा कि 

उन नियमों का पालन कितना हो रहा है।

प्रमाणन के पुराने नियम मैंने पढ़े हैं।

वे भी ठीकठाक ही हैं।पर लागू करने वालों ने उन्हें अघोषित कारणों से आम तौर पर लागू नहीं करते।

मैंने 1961 में पहली बार हिन्दी फिल्म देखी थी।गिरावट की रफ्तार भी मैंने देखी है।

यदि पुराने नियम ठीक से लागू हों तो ‘‘नदिया के पार’’ और ‘‘बागवान’’ जैसी फिल्मों को ही प्रमाण पत्र मिल सकते हैं।

पर,हो रहा है बिलकुल उल्टा।सन 2014 में घूसखोरी के आरोप में सेंसर बोर्ड के सी.ई.ओ.गिरफ्तार भी हुए थे।

फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ा।सेंसर बोर्ड आम तौर पर असेंसर बोर्ड ही बना

रहा।उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार की नई पहल कारगर होगी। 

 ---------

और अंत में

-------  

बिहार सरकार को भी पुलिस कमीश्नरी सिस्टम की स्थापना पर विचार करना चाहिए।संभव है कि उसकी स्थापना से कम से कम बड़े नगरों में कानून-व्यवस्था ठीक करने में आसानी हो।देश के कई राज्यों में यह सिस्टम सफलतापूर्वक काम कर रहा है।

-----------------

प्रभात खबर बिहार संस्करण 

4 मार्च 2024

 

 




















































































यदाकदा

सुरेंद्र किशोर

-------

 बेहतर कानून-व्यवस्था के लिए कारगर थानेदार जरूरी

----------------

नीतीश सरकार ने बेहतर विधि-व्यवस्था के लिए हाल में अनेक ठोस कदम उठाए हैं।

राज्य सरकार की मंशा अपराधियों पर करारा प्रहार करने की है।न सिर्फ कानून कड़े किए जा रहे हैं बल्कि पुलिस को नये अधिकारों से लैस किया जा रहा है।

साथ ही,                                                                                               पुलिस तंत्र को बेहतर साधन भी मुहैया कराएं जा रहे हैं।

पर,इसके साथ ही,एक और तत्व पर गौर करने की सख्त जरूरत है।

वह है थानेदारों की तैनाती में पारदर्शिता लाने की जरूरत।

जब तक पेशेवर आधार पर थानेदारों की तैनाती नहीं होगी,तब तक कोई अन्य उपाय काम नहीं आएगा।

पेशेवर और गैर पेशेवर तरीकों के अंतर के विस्तार में जाने की यहां कोई जरूरत नहीं है।

---------

भूली बिसरी याद

----------

संविधान सभा के अध्यक्ष डा.राजेंद्र प्रसाद ने 26 नवंबर 1949 को कहा था कि 

‘‘जिन व्यक्तियों का निर्वाचन किया जाता है यदि वे योग्य,चरित्रवान और ईमानदार हैं तो वे एक दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम संविधान बना सकेंगे।

यदि उनमें इन गुणों का अभाव होगा तो यह संविधान देश की सहायता नहीं कर सकेगा।

आखिर संविधान एक यंत्र के समान एक निष्प्राण वस्तु ही तो है।

उसके प्राण तो वे लोग हैं जो उस पर नियंत्रण रखते हैं और उसका प्रवर्तन करते हैं ।

 देश को आज एक ऐसे ईमानदार लोगों के वर्ग से अधिक किसी अन्य वस्तु की आवश्यकता नहीं है जो अपने सामने देश के हित को रखे।’’

डा.प्रसाद ने जो बातें संविधान के बारे में कही थी,वह बात इस देश के नये-पुराने कानूनों पर भी लागू होती हैं।

-------------------

दाखिल खारिज और सेवांत लाभ

----------------

सरकारी सूत्रों के अनुसार बिहार में दाखिल-खारिज के करीब पौने आठ लाख मामले में लंबित हैं।

दाखिल-खारिज के मामलों के समाधान के लिए जमीन मालिकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

इसके कई कारण हैं।

पर,मुख्य कारण लाल फीताशाही है।

 समस्या सरकारी सेवकों के सेवांत लाभ के समय पर भुगतान को लेकर भी सामने आती है।

लाखों लोगों की इन कठिनाइयों का यदि बिहार सरकार समाधान करा दे तो सरकार की वाहवाही होगी।

पर,भुक्तभोगी बताते हैं कि ये काम हिमालय पहाड़ पर चढ़ने की तरह का ही कठिन काम है।

------------

सांसद-विधायक फंड की निगरानी 

----------------

सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही कहा है कि सांसदों-विधायकों की निगरानी के लिए हम उनके शरीर पर चिप नहीं लगा सकते।

अदालत ने संबंधित याचिकाकर्ताओं को फटकारा भी ।अच्छा किया।

उनकी मांग ही गलत थी।

याचिकाकर्ता जन प्रतिनिधियों की सतत निगरानी की मांग कर रहे थे।मांग की गई थी कि सांसदों-विधायकों की गतिविधियों की 24 घंटे डिजिटल माध्यम से निगरानी के लिए अदालत केंद्र सरकार को निदेश दे।ऐसी मांग याचिकाकर्ता के दिमागी दिवालियापन की ही निशानी है।

पर, सरकार को एक काम करना चाहिए।

सांसद-विधायक फंड के सदुपयोग को सुनिश्चित करने की व्यवस्था करनी चाहिए।

इससे जन प्रतिनिधियों का जनता में सम्मान और भी बढ़ जाएगा।


सबक सिखाने वाली घटना

-------------

भोजपुरी फिल्म अभिनेता पवन सिंह

चुनाव टिकट वापसी प्रकरण ने फिल्मी जगत को अच्छी-खासी सीख दे दी है।

भोजपुरी फिल्मों के गीतों ओर संवादों में अश्लीलता की शिकायतें वर्षों से मिलती रही है।

पर,कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया गया।

पवन सिंह के अश्लील गानों का पश्चिम बंगाल में ऐसा विरोध हुआ कि 

उनका चुनाव टिकट कट गया।

भाजपा ने उन्हें आसनसोल से उम्मीदवार बनाया था।

अब राजनीतिक महत्वाकांक्षा वाले कोई अन्य फिल्म अभिनेता अश्लीलता से दूर ही रहेंगे,ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।

वैसे दोष सिर्फ पवन सिंह जैसे अभिनेताओं का ही नहीं है।

 कसूर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड का है।बोर्ड फिल्मों में गैर जरूरी हिंसा

और अश्लीलता को रोकने में अघोषित कारणों से विफल रहा है।

अब आप शायद ही ऐसी फिल्म पाएंगे जिसे आप परिवार के साथ बैठकर  देख सकें।

-----------

सरकार की पहल सराहनीय

------------

इस बीच यह खबर आई है कि केंद्र सरकार फिल्म प्रमाणन प्रक्रिया का कायाकल्प करने जा रही है।

इस संबंध में सलाह मांगी गयी।

 नियम बदले जाने हैं।

बोर्ड में अब अधिक महिलाएं रखी जाएंगी।

उम्मीद की जानी चाहिए कि नये नियम कड़े होंगे।पर,यह देखना होगा कि 

उन नियमों का पालन कितना हो रहा है।

प्रमाणन के पुराने नियम मैंने पढ़े हैं।

वे भी ठीकठाक ही हैं।पर लागू करने वालों ने उन्हें अघोषित कारणों से आम तौर पर लागू नहीं करते।

मैंने 1961 में पहली बार हिन्दी फिल्म देखी थी।गिरावट की रफ्तार भी मैंने देखी है।

यदि पुराने नियम ठीक से लागू हों तो ‘‘नदिया के पार’’ और ‘‘बागवान’’ जैसी फिल्मों को ही प्रमाण पत्र मिल सकते हैं।

पर,हो रहा है बिलकुल उल्टा।सन 2014 में घूसखोरी के आरोप में सेंसर बोर्ड के सी.ई.ओ.गिरफ्तार भी हुए थे।

फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ा।सेंसर बोर्ड आम तौर पर असेंसर बोर्ड ही बना

रहा।उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार की नई पहल कारगर होगी। 

 ---------

और अंत में

-------  

बिहार सरकार को भी पुलिस कमीश्नरी सिस्टम की स्थापना पर विचार करना चाहिए।संभव है कि उसकी स्थापना से कम से कम बड़े नगरों में कानून-व्यवस्था ठीक करने में आसानी हो।देश के कई राज्यों में यह सिस्टम सफलतापूर्वक काम कर रहा है।

-----------------

प्रभात खबर बिहार संस्करण 

4 मार्च 2024