शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

 ‘‘शेरपुर-दिघवारा 6 लेन पुल के लिए 

7 एजेंसियां तैयार, मार्च में शुरू होगा निर्माण

पुल सन 2026 तक बन कर तैयार होगा’’

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सुरेंद्र किशोर

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इसी शीर्षक के तहत दैनिक भास्कर के इन्द्रभूषण ने आज जो खबर दी है,उससे मुझ सहित लाखों लोगों को खुशी मिली।

मेरा पुश्तैनी गांव दिघवारा से करीब 3 किलोमीटर उत्तर स्थित है।

यदि सब कुछ अनुकूल रहा तो मैं पटना का माया-मोह छोड़कर अपने उसी गांव में बसना चाहता हूं।

 मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने भी करीब एक साल पहले कहा था कि शेरपुर -दिघवारा गंगा पुल के निर्माण के बाद

दिघवारा से नया गांव तक का इलाका ‘न्यू पटना’ बन जाएगा।

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पता चला है कि अनेक दूरदर्शी डेवलपर्स सोनपुर से दिघवारा तक जमीन 

की खरीद-बिक्री के काम में पहले से ही लग गए हैं।

मैं उम्मीद करता हूं कि इस 6 लेन के गंगा पुल का बनना शुरू होने के तत्काल बाद प्रस्तावित न्यू पटना में बिल्डर्स भी रूचि लेने लगेंगे।

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न्यू पटना के बस जाने के बाद मूल पटना पर भी आबादी का दबाव घट जाएगा।

उससे न सिर्फ प्रदूषण घटेगा,बल्कि रोड जाम की समस्या भी कम होगी।

पर शर्त है कि गंगा पार के इलाकांे में सक्रिय जमीन के कारोबारियों को राज्य सरकार सहयोग करे और उन पर नियंत्रण भी रखे ताकि वहां व्यवस्थित ढंग से मुहल्लों का निर्माण हो सके ।किसी नियंत्रण के अभाव में पटना के आसपास के अधिकतर इलाकों में तो स्लम ही बन रहे हंै।

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साथ ही, बिहार सरकार अपने कुछ संस्थानों को न्यू पटना में स्थानांतरित करने पर विचार करे।

केंद्र सरकार ने एक बार यह प्रस्ताव किया था कि केंद्रीय सचिवालय की राज्यों में भी शाखाएं स्थापित हांेगीे।

यदि उसकी यह योजना अब भी कायम है तो उसके लिए वह जमीन का अधिग्रहण प्रस्तावित न्यू पटना में आसानी से कर सकती है।

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30 दिसंबर 22  


       प्रमुख पत्रकार देवेंद्रनाथ का निधन

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        सुरेंद्र किशोर 

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बहुमुखी प्रतिभा के धनी पत्रकार देवेंद्रनाथ जी का 22 दिसंबर, 2022 को निधन हो गया।वे पूर्व रक्षा मंत्री वी.के. कृष्ण मेनन के भी करीबी थे।

वे साप्ताहिक ‘रविवार’ से भी जुड़े थे।

वे देवघर के मूल निवासी थे।

उनका फिल्मी दुनिया से गहरा संबंध था।

वी.के.कृष्ण मेनन सन 1969 में पश्चिम बंगाल के मिदनापुर से  कम्युनिस्टों की मदद से लोक सभा का उप चुनाव लड़ रहे थे।

जीते भी।याद रहे प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के विशेष आग्रह के बावजूद कांग्रेस हाई कमान ने मेनन का 1967 में टिकट नहीं दिया था।

तब तक कांग्रेस पर किसी एक नेता का वर्चस्व नहीं था।

तब देवेंद्रनाथ जी ने उप चुनाव के दौरान मेनन के लिए दुभाषिये का काम किया था।

उस दौरान वे मेनन के काफी करीबी हो गए थे।

मेनन ने देवंेद्रनाथ जी को एक ऐसी बात बताई थी जो इस देश में कम ही लोगों को मालूम रही होगी।

  मेनन जीप खरीद घोटाले को लेकर चर्चित व बदनाम हुए थे।

  मेनन ने देवेंद्र जी को बताया था कि प्रधान मंत्री आॅफिस की ओर से मुझे एक खास कंपनी के बारे में कहा गया था।उसी के अनुसार मैंने ब्रिटेन की उस कंपनी को जीप की आपूत्र्ति का आॅर्डर दिया था।

मेनन तब ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त थे।

वह कंपनी पहले से बदनाम थी।

लगभग पूरा पैसा एडवांस ले लेने के बावजूद उस कंपनी ने कुछ ही घटिया

जीपों की आपूर्ति की।

देवेंद्र जी ने गत साल मुझे बताया था कि मेनन ने नेहरू जी को बदनामी से बचाने के लिए इस बात का रहस्योद्घाटन नहीं किया।सारी बदनामी खुद ही ले ली।

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हालंाकि नेहरू ने मेनन को केंद्र में रक्षा मंत्री बना कर इसके लिए मेनन को उसका मुआवजा दे दिया था।

1962 में जब भारत चीन से बुरी तरह हार गया तौभी नेहरूजी मेनन से इस्तीफा लेना नहीं चाहते थे।

क्योंकि वे अच्छी तरह जानते थे कि हार के लिए सिर्फ मेनन जिम्मेदार नहीं थे।पर,जब राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने नेहरू को बुलाकर ऊंच-नीच समझाया,तभी मेनन का इस्तीफा आया। 

पता नहीं,देवेंद्र जी ने खुद यह बात कहीं लिखी है या नहीं।

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ईश्वर देवेंद्रनाथ जी की आत्मा को शांति दे।उनके परिवार को

दुख सहने की ताकत दे। 

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28 दिसंबर 22


 


छात्राओं की सुरक्षा के लिए ‘छेड़खानी विरोधी दस्तों’ का सशक्तीकरण जरूरी 

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सुरेंद्र किशोर

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कुछ साल पहले पटना पुलिस ने ‘एंटी रोमियो दस्ता’ बनाया  था।

पर,वह कारगर नहीं हो सका।

 पटना सहित बिहार के विभिन्न जिलांे से यह खबर आती रहती है कि शैक्षणिक संस्थाओं के आसपास ‘‘छेड़खानी दस्ते’’ सक्रिय रहते हैं।

छात्राओं की मदद के लिए वहां एंटी रोमियो दस्ता नजर नहीं आता।

कुछ जगहों से यह भी खबर मिल रही है कि इस कारण कुछ छात्राएं स्कूल जाना छोड़ रही हैं।

  पटना के एक स्कूल में असामाजिक तत्व परिसर में भी प्रवेश कर जाते हैं। 

उन्हें स्थानीय दबंगों का संरक्षण हासिल रहता है।

ऐसे में शिक्षक कौन कहें,छात्राओं के अभिभावक भी खुद को लाचार और बेबस महसूस करते हैं।

  छात्राओं के साथ ऐसी घटनाओं का उनके मन -मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है।

उनका सामान्य विकास नहीं हो पाता।

इस संबंध में एक संस्था ने सर्वेक्षण भी किया है।

पहले बिहार में पुलिस बल की कमी थी।अब तेजी से बहालियां हो रही हैं।

  राज्य सरकार को चाहिए कि वह अधिक संख्या में छेड़खानी विरोधी दस्तों का गठन करे।

उनमें शामिल पुलिस बल की विशेष टंे्रनिंग हो।

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    एक बार फिर ‘स्कूटर पर सांड’ 

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     छह दिसंबर, 1985 को रांची से सड़क मार्ग से घागरा चार सांड पहुंचाए गए।

रांची से घागरा की दूरी 344 किलोमीटर है।

   बिहार सरकार के पशुपालन विभाग ने इसके एवज में तैयार 1289 रुपये के जाली बिल का भुगतान  ठेकेदार को कर दिया। 

पर, जब इस विपत्र की सघन जांच सी.ए.जी..ने की तो उसे पता चला कि जिस वाहन का बिल पेश किया गया था , वह कोई ट्रक नहीं बल्कि स्कूटर था।यानी सांड वहां भेजे  ही नहीं गये थे।सब कुछ जाली था।

याद रहे कि तब तक बिहार का विभाजन नहीं हुआ था।

1985 में राज्य में कांग्रेस की सरकार थी।

  इस साल भी सी.ए.जी.की ताजा रपट बिहार विधान सभा के पटल पर रखी गई।

 इस ताजा रपट

में भी उसी तरह के घोटाले की चर्चा है जबकि पिछले घोटालेबाजों को सजा हो चुकी है।

 आखिर, ऐसा क्यों हो रहा है ?

घोटालेबाज पिछली सजा से कुछ सीख क्यों नहीं रहे हैं ?  इसलिए कि ऐसे मामलों में कम ही सजा का कानूनी प्रावधान है। 

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   चुनावी भविष्यवाणी में जल्दीबाजी

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सन 2024 के लोक सभा चुनाव का क्या नतीजा होगा ?

इस पर पक्के तौर पर कुछ कहना अभी जल्दीबाजी होगी।

हां,कोई चाहे तो अपनी सदिच्छा को भविष्यवाणी के रूप में प्रस्तुत कर सकता है।हालांकि वह अपनी साख की कीमत पर ही ऐसा करेगा।फिर भी कुछ लोग ऐसा कर रहे हैं।

  अभी पूरा साल यानी 2023 सामने है।अगले साल नौ राज्य विधान सभाओं के चुनाव होने हैं।

उस चुनाव के क्या नतीजे होते हैं,पहले उसे देख और समझ लेना महत्वपूर्ण होगा।

इसके साथ ही,अगले सवा साल में देश-दुनिया में कैसी -कैसी घटनाएं होती हैं,वह भी देखना होगा।क्योंकि उन घटनाओं का यहां के अगले चुनाव पर असर पड़ सकता है।

यह भी संभव है कि उसका निर्णायक असर हो !

इसीलिए भविष्य वक्ताओं को अभी से अधीर नहीं होना चाहिए।

हां, राजनीतिक दलों के नेताओं को अपने पक्ष में भविष्यवाणियां करके हवा बनाने की पूरी छूट है। 

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भूली बिसरी याद  

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सन 1939 के त्रिपुरी कांग्रेस के अध्यक्षीय भाषण में नेता जी सुभाषचंद्र बोस ने कहा था कि ब्रिटिश शासन से निर्णायक

संघर्ष की घड़ी आ गई है।

मध्य प्रदेश में स्थित त्रिपुरी में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था।

उसमें सुभाषचंद बोस अध्यक्ष चुने गए थे।

नेता जी ने अपने ऐतिहासिक भाषण में कहा था कि ‘‘अब हमारे पास जो ताकत है ,वह है सत्याग्रह की ताकत।

ब्रिटिश सरकार आज इस स्थिति में नहीं है कि अखिल भारतीय सत्याग्रह जैसे किसी बड़े संघर्ष का वह लंबे समय तक सामना कर सके।

  मुझे इस बात का दुख है कि कांग्रेस में ऐसे निराशावादी लोग हैं जो समझते हैं कि अभी ब्रिटिश साम्र्राज्यवाद पर कोई बड़ा हमला करने का समय नहीं आया है।

पर,मुझे निराशा का कोई कारण नजर नहीं आता।

 आठ प्रांतों में कांग्रेस के सत्ता में होने के कारण हमारी राष्ट्रीय संस्था की ताकत और प्रतिष्ठा बढ़ी है।

पूरे ब्रिटिश भारत में जन आंदोलन काफी आगे बढ़ चुका है।

देशी रियासतों में एक अभूतपूर्व जागृति पैदा हुई है।

स्वराज की दिशा में अंतिम कदम उठाने को हमारे राष्ट्रीय इतिहास में इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता है ?

तब, जबकि अंतरराष्ट्रीय हालत भी हमारे पक्ष में है।’’

याद रहे कि महात्मा गांधी तथा अन्य नेतागण बोस के इस विचार से सहमत नहीं थे।

अंततः उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा।नेता जी ने फारवर्ड ब्लाक नाम से अपनी पार्टी का गठन किया। 

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    और अंत में 

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पटना के मजहरुल हक पथ यानी फ्रेजर रोड पर सड़क पार करना बहुत ही कठिन काम है।

पटना रेलवे जंक्शन से निकल कर गांधी मैदान जाने वाली इस सड़क पर दिन भर बड़ी संख्या में हर तरह के वाहनों की आवाजाही होती रहती है।

सड़क की दोनों ओर महत्वपूर्ण दुकानें हैं।

भारी ट्राफिक के कारण एक तरफ से दूसरी तरफ जाना कठिन काम है।पता नहीं, अब तक शासन ने इस मार्ग पर ‘‘फुट ओवर ब्रिज’’ बनाने के बारे में क्यों नहीं सोचा ?

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प्रभात खबर,पटना,26 दिसंबर 22

 


मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

 आज का चिंतन

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सुप्रीम कोर्ट से इस आम नागरिक की,

जो संयोग से पत्रकार भी है,आतुर गुहार !

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सुरेंद्र किशोर

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सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-142 का सहारा लेकर बाबरी मस्जिद -राम मंदिर विवाद सलटा दिया है।

याद रहे कि उस विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सलटाना इस देश के नेताओं के वश में नहीं था।

यह काम हमारी सबसे बड़ी अदालत को करना पड़ा।

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इस बीच हमारे देश में कुछ ऐसी समस्याएं पैदा आती रहती हैं या की जाती हैं जिन्हें हमारे नेता या तो सलटाना नहीं चाहते या वे सलटा नहीं पा रहे हैं।या उन समस्याओं को बनाए रखने में उनका निहित स्वार्थ है। 

सुप्रीम कोर्ट से मेरी आतुर गुहार है कि उन मामलों को भी आप ही सलटाइए ताकि लोगों का लोकतंत्र में विश्वास बना रहे।

यदि लोकतंत्र नहीं रहेगा तो स्वतंत्र न्यायपालिका भी नहीं रहेगी।

वैसे भी इन दिनों सुपीम कोर्ट कुछ अधिक ही सक्रिय हो चला है।

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फिलहाल मैं दो-तीन मुख्य बातों की ही चर्चा करूंगा।

1. दिल्ली सरकार के मंत्री सत्यंेद्र जैन जेल में हैं ।फिर भी वे मंत्री बने हुए हैं।

संविधान निर्माताओं ने इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन इस देश ऐसे-ऐसे नेता और उस दल के

ऐसे सुप्रीमो होंगे जिनका लोकलाज से तनिक भी संबंध न होगा।

यह अनर्थ उसी महा नगर में हो रहा है जहां सुप्रीम कोर्ट का वास है।

ऐसा अनर्थ हाल में महाराष्ट्र में भी हो चुका है।आगे भी नहीं होगा,उसकी कोई गारंटी नहीं।

इसलिए हे सुप्रीम कोर्ट ! जल्दी कोई उपाय करिए।

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2.-सांसद फंड-विधायक फंड इस देश के भ्रष्टाचार को आगे बढ़ाने के लिए ‘डबल इंजन’ का काम कर रहा है।

वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाले प्रशासनिक सुधार आयोग ने बहुत पहले ही यह सिफारिश कर रखी है कि सांसद क्षेत्र विकास फंड को बंद कर देना चाहिए।

इसके बावजूद इसे न तो प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चाहते हुए भी बंद नहीं कर पाए और न ही प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह चाहते हुए भी बंद कर पाए।

इस फंड के समर्थकों की जरा ‘ताकत’ तो देखिए !

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी इसे चाहते हुए भी नहीं बंद कर पा रहे हैं।

अब तो सुप्रीम कोर्ट ही सहारा है।

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सांसद-विधायक फंड किस तरह अपवादों को छोड़कर प्रशासन व राजनीति को दूषित कर रहा है,यह बात बच्चा-बच्चा जानता है।

यदि अदालत को शक हो तो वह एक जांच आयोग बैठा दे।

क्या यह बात सही है कि सांसद-विधायक फंड के खर्चे की जांच सी.ए.जी.नहीं करता ?

दरअसल सांसद-विधायक फंड को खत्म किए बिना प्रशासन-राजनीति से भ्रष्टाचार दूर करना असंभव होगा।

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1993 में सुप्रीम कोर्ट के जज रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव संसद में आया था।

उस प्रस्ताव को कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने मिल कर पास नहीं होने दिया।

क्या यह बात सही है कि उस घटना के बाद न्यायपालिका के बीच के भ्रष्ट तत्वों का मनोबल बढ़ गया है ?

सुप्रीम कोर्ट को इस बात की जांच करानी चाहिए।

इससे अदालतों का सम्मान और भी बढ़ेगा।

इस तरह यह मामूली आदमी सबसे बड़ी अदालत से, जो उम्मीद की आखिरी किरण है,लोकतंत्र के तीनों स्तम्भों की सफाई के उपाय करने की गुहार की हैै।

सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद -142 के जरिए बहुत बड़ा ब्रह्मास्त्र प्रदान कर दिया गया है।

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अनुच्छेद-142 के अनुसार,

‘‘उच्चत्तम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए,और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ,ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा।’’

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27 दिसंबर 2022

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 ‘गोदी मीडिया’ कब नहीं था ?!

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सुरेंद्र किशोर

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सन 1987 से 1989 तक इस देश में बोफोर्स घोटाले की जोरदार चर्चा रही।

उस तथा कुछ अन्य घोटालों के कारण सन 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सीटें 404(1984 में इतनी सीटें मिली थीं।) से घट कर 197 रह गईं।

बाद में संबंधित प्रभावशाली संस्थाओं व हस्तियों ने मिलकर इस घोटाले के मुख्य आरोपितों को साफ बचा लिया।

हालांकि मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्रित्व काल में ही भारत सरकार के ही आयकर न्यायाधीकरण ने बोफोर्स घोटाले की दलाली का पर्दाफाश कर दिया था।

नतीजतन,

सन 2019 के नवंबर में आयकर विभाग ने मुम्बई स्थित बोफोर्स दलाल विन चड्ढ़ा के फ्लैट को 12 करोड़ ़2 लाख रुपए में नीलाम कर दिया,इंकम टैक्स के पैसे वसूलने के लिए।

आयकर महकमे का तर्क था कि दलाली में जो पैसे मिले हैं,उस पर आयकर बनता है। 

उससे पहले न्यायाधीकरण ने कह दिया था कि बोफोर्स की दलाली के मद में 41 करोड़ रुपए क्वात्रोचि और विन चड्ढ़ा को मिले थे।

याद कीजिए,राजीव गांधी लगातार कहते रहे कि बोफोर्स सौदे में कोई दलाली नहीं ली गई।लोस की सीटें 

इसलिए घटी क्योंकि मतदाताओं को लगा कि गोदी मीडिया की मदद से प्रधान मंत्री राजीव गांधी बोफोर्स दलाल क्वात्रोचि का लगातार बचाव कर रहे हैं।

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 सी.बी.आई. ने स्विस बैंक की लंदन शाखा में बोफोर्स की दलाली के पैसे का पता लगा लिया था।

वह पैसा क्वात्रोचि के खाते में था।

उस खाते का नंबर था-99921 टी.यू.।

बोफोर्स घोटाले के आरोप पत्र में भी यही खाता नंबर है।

 उस खाते को गैर- कांग्रेसी शासन काल में सी.बी.आई.ने जब्त करवा दिया था।

पर बाद में मन मोहन सरकार ने अपने एक बड़े अफसर को  लंदन भेजकर उस जब्त खाते को खुलवा दिया।

   उससे पहले क्वात्रोचि को भारत से भाग जाने दिया गया था।

  लंदन बैंक के अपने खाते से पैसे भी क्वात्रोचि ने निकाल लिए।

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आज मैं एक पत्रिका की फाइल उलट रहा था। 

20 नवंबर 1988 का वह अंक मेरे सामने है।

उसमें एक बड़े पत्रकार का लेख छपा है जिसमें उस स्विस बैंक खाते की चर्चा है।

उस लेख का शीर्षक है--‘‘द चार्ज आॅफ लाई ब्रिगेड’’।

लेख वी.पी.के सख्त खिलाफ और राजीव गांधी के बचाव में है।(वह पत्रिका तब गोदी मीडिया का जीता-जागता उदाहरण थी।)

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चार्ज लगाया था वी.पी.सिंह ने पटना में अराजपत्रित कर्मचारियों की सभा में।

4 नवंबर 1988 को उस सभा में श्री सिंह ने कहा कि स्विस बैंक की लंदन शाखा में बोफोर्स की दलाली के पैसे खुफिया खाते में रखे हुए हैं।

उस खाते का नंबर है--99921 टी.यू.।

 उस सभा में मैं जनसंत्ता संवाददाता के रूप में मौजूद था।

मुझे टी.यू.के बदले पी.यू. सुनाई पड़ा।(मेरी गलती थी)

मैंने जनसत्ता को रपट भेजी।

संख्या तो सही छपी,किंतु टी.यू.के बदले पी.यू.छपा।

  सिर्फ एक ही अखबार में यानी सिर्फ जनसत्ता में खाता नंबर छपा था।(कल्पना कीजिए कि तब गोदी मीडिया का कितना बड़ा विस्तार था !)

एक न्यूज एजेंसी ने यह खबर 4 नवंबर को ही जारी भी की थी।पर,ऊपरी दबाव में उस खबर को ‘किल’ कर दिया गया।

उस दिन देर शाम आई.बी.के दो अफसर हमारे ‘जनसत्ता’ आॅफिस में आ धमके।

मुझे आशंका हुई।पर उन्हें सिर्फ खाता नंबर चाहिए था।दिल्ली से मांग हुई थी।

मैंने दे दिया क्योंकि वह तो सार्वजनिक हो चुका था। 

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वी.पी.सिंह ने 8 नवंबर, 1988 को नई दिल्ली में वही आरोप दुहराया और खाता नंबर बताया।

दूसरी बार, जनसत्ता में खाता नंबर सही छपा।

उस पत्रिका के लेखक ने पी.यू. बनाम टी.यू. को मुद्दा बना कर अपने लेख में वी.पी.सिंह की पूरी खिंचाई कर दी।

उन्हें नौटंकीबाज लिखा।

 इस तरह उसने गोदी मीडिया की भूमिका सफलतापूर्वक निभाई।

वह भी एक भ्रष्टाचार के बचाव में और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने वाले के खिलाफ जाकर।

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मैंने गोदी मीडिया का यहां एक ही उदाहरण दिया है।

आजादी के बाद के ऐसे अनेक उदाहरण आपको मिल जाएंगे।

बोफोर्स घोटाला विवाद के समय देश का मीडिया दो हिस्सों में बंट चुका था।

उन दिनों के अखबार और पत्रिकाआंे की फाइलें देखने से यह बात साबित हो जाएगी।

कुछ अखबार राजीव सरकार के घोटालों को उजागर करने में लगे थे तो अन्य अधिकतर सरकार पक्षी अखबार बचाव और वी.पी.सिंह के खिलाफ झूठे आरोप गढ़ने और उसे छापने में लगे थे।

 वी.पी.सिंह के खिलाफ आरोप अंततः गलत साबित हुए।

राजीव गांधी के खिलाफ आरोप सही साबित हुए।तभी तो विन चड्ढा का फ्लैट जब्त हुआ।

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(इस पोस्ट के साथ उस पत्रिका के लेख के संबंधित अंश की फोटोकाॅपी है।

साथ में बोफोर्स केस से संबंधित आरोप पत्र का वह पेज है जिस पर  स्विस बैंक का खाता नंबर लिखा हुआ है।)

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27 दिसंबर 22

 

 


गुरुवार, 22 दिसंबर 2022

 कल्पना कीजिए कि अभिषेक मनु सिंघवी राज्य सभा और (कांग्रेस छोड़ने से पहले)

ज्योतिरादित्य सिंधिया लोक सभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता होते !

फिर क्या होता ?

क्या कांग्रेस की आज की अपेक्षा बेहतर छवि संसद के भीतर और बाहर नहीं बनती ?!

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पर, ऐसा न होना था और न हुआ।न आगे का कोई चांस है।

(फिल्मी दुनिया के जानकार दिवंगत भूपेंद्र अबोध (कार्टूनिस्ट पवन के पिता)की एक बात मुझे याद आती है।

उन्होंने एक बार मुझे बताया था कि निदेशक इस बात का ध्यान रखते हैं कि हीरोइन 

की सहेलियांें में से कोई भी सहेली हीरोइन से अधिक सुंदर न हो।)

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ऐसा सिर्फ कांग्रेस में ही नहीं होता।

सन 1967 में बिहार में बनी गैर कांग्रेसी सरकार में शामिल 

समाजवादी नेतृत्व ने तेज-तर्रार जगदेव प्रसाद के बदले मध्यमार्गी उपेन्द्र नाथ वर्मा को राज्य मंत्री बनवा दिया था।

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बाद के वर्षों में प्रो.जाबिर हुसेन की जगह चम्पारण के एक मुस्लिम नेता को राज्य सभा भेज दिया गया।

1984 में राम विलास पासवान को राज्य सभा भेजने की जगह एक अन्य पासवान जी को संवैधानिक पद दे दिया गया।

ये तो कुछ नमूने हैं।

लिस्ट लंबी हो सकती है।

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दूसरी ओर, जनसंघ - भाजपा की शैली अलग ढंग की है।

पहले अटल बिहारी वाजपेयी और एल.के.आडवाणी की जोड़ी थी।

बाद में सुषमा स्वराज-अरुण जैटली आगे किए गए।

फिर नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी आई।

पीढ़ी परिवर्तन के तहत आगे क्या होगा ?

(अन्य अधिकतर दलों में तो वंशज, आसानी से पूर्वज की जगह ले लेते हैं।)

पर, भाजपा में आगे मुझे डा.सुधांशु त्रिवेदी और डा.सम्बित पात्रा की जोड़ी नजर आ रही है।

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उससे आगे ??

अनुमान लगाइए।

मुझे तो फिलहाल दो अन्य दिखाई पड़ रहे हैं।

1.-कर्नाटका से भाजपा के लोक सभा सदस्य तेजस्वी सूर्या 

और 2.-लद्दाख से भाजपा के एम.पी.जे.टी.नामग्याल !

इस संबंध में आप भी अपने अनुमान के घोड़े दौड़ाइए !

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शायद भाजपा यह समझती है कि पुराने नेता दरअसल तालाब के स्थिर जल हैं।

पीढ़ी -परिवर्तन के तहत आया नया नेता नदी का स्वच्छ बहता पानी साबित हो सकता है।

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सुरेंद्र किशोर

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22 दिसंबर 22


 



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    गांधी, इंदिरा और राजीव

   शहीद या कुछ और ?!

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    सुरेंद्र किशोर

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    महात्मा गांधी

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 बिड़ला भवन के पास 20 जनवरी, 1948 को बम विस्फोट हुआ था।

उसके बाद वहां के एस.पी.,डी.आई.जी.और बाद में खुद गृह मंत्री सरदार पटेल ने बारी -बारी से गांधी जी से मुलाकात की।

उनसे विनती की कि प्रार्थना सभा में आने वालों की तलाशी लेने की आप अनुमति दीजिए।

उस पर गांधी जी ने कहा कि ‘‘यदि किसी व्यक्ति की तलाशी ली गई तो मैं उसी क्षण से आमरण अनशन शुरू कर दूंगा।’’ 

   30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला भवन में आयोजित प्रार्थना सभा में नाथूराम गोड्से ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी।

वह पिस्तौल लेकर प्रार्थना सभा में गांधी जी के पास तक पहुंच गया था।यदि आगंतुकों की तलाशी हुई होती तो गोड्से की पिस्तौल तो पकड़ ही ली गई होती।

अब आप गांधी जी को शहीद कहेंगे या कुछ और ?

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इंदिरा गांधी

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याद रहे कि सन 1984 के ‘ब्लू स्टार आपरेशन’ के बाद प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की सुरक्षा में लगे बड़े अफसरों ने प्रधान मंत्री के आवास पर तैनात सिख सुरक्षाकर्मियों को वहां से हटवा दिया था।

पर, जब इस बात का पता इंदिरा जी को चला तो उन्होंने उन सिख सुरक्षाकर्मियों को फिर से अपने आवास पर तैनात करवा दिया था।

   उन्हीं सुरक्षाकर्मियों ने प्रधान मंत्री की हत्या कर दी।

अब आप इंदिरा गांधी को शहीद कहेंगे या अपनी सुरक्षा के प्रति लापरवाह नेता ?

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राजीव गांधी

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राजीव गांधी के पेरम्बदूर दौरे के समय 

‘ब्लू बुक’ में दर्ज सुरक्षा के उपायों का पालन नहीं किया गया था।

राजीव गांधी के पास जाने वालों की तलाशी होनी चाहिए थी।

 जब ‘मानव बम’ धनु राजीव गांधी की ओर बढ़ रही थी तो एक उप निरीक्षक स्तर की महिला सुरक्षाकर्मी अनुसूया अर्नेस्ट ने उसे आगे बढ़ने से रोका।

अनुसूया ने एक नहीं, तीन-तीन बार रोका।

राजीव यह सब कुछ ही गज की दूरी से देख रहे थे।

उन्होंने अनुसूया से कहा कि ‘‘ उसे आने दीजिए।’’

फिर क्या था !

धनु राजीव के पास पहुंच गई।

फिर जो कुछ हुआ,वह इतिहास है।

राजीव गांधी के साथ अन्य अनेक बहुमूल्य लोगों की जानें गईं।

ऐसे में आप राजीव गांधी को शहीद कहेंगे या अपनी सुरक्षा के प्रति एक लापरवाह नेता ??

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अधिक दिन नहीं हुए जब तब के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा था कि राहुल गांधी अब तक 125 बार सुरक्षा नियमों का उलंघन कर चुके हैं।

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.कुछ नेता गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करते हैं और नतीजतन जानें आम निर्दोष लोगों की जाती हैं।

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21 दिसंबर 22

 




सोमवार, 19 दिसंबर 2022

 बिहार के डी.जी.पी.के रूप में राजविंदर 

सिंह भट्टी की नियुक्ति सराहनीय

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सुरेंद्र किशोर

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नब्बे के दशक की बात है।

उन दिनों मैं दैनिक जनसत्ता (इंडियन एक्सपे्रस प्रकाशन समूह ) का बिहार संवाददाता था।

एक दिन मुझे इंडियन एक्सप्रेस के दिल्ली आॅफिस से फोन आया।

फोन एक वरिष्ठ मैनेजर का था।वे पूर्णिया के मूल निवासी थे।

आम तौर पर,तब ‘जनसत्ता’ के किसी संवाददाता को किसी मैनेजर का फोन नहीं आता था

--वह भी किसी पैरवी के लिए।

 जिस मैनेजर की बात कर रहा हूं ,

उनके भाई पूर्णिया में अपना व्यवसाय चलाते थे ।

 पूर्णिया जिले का एक बाहुबली से उन्हें काफी परेशान कर रहा था।

उससे तंग आकर वे अपनी संपत्ति बेच कर बिहार से बाहर चले जाना चाहते थे।

किंतु राजनीतिक संरक्षण प्राप्त वह बाहुबली उन्हें संपत्ति बेचकर भागने भी नहीं दे रहा था।

एक्सप्रेस के मैनेजर ने मुझसे कहा कि ‘‘आप मेरे भाई की कोई मदद कर सकते हों तो मैं आभारी रहूंगा।’’ 

मैंने पता लगाया।

वहां यही भट्टी साहब एस.पी.थे।

यह भी पता चला कि वे कत्र्तव्यनिष्ठ अफसर हैं।

यह जानकर मैंने उन्हें फोन किया।

अपना परिचय दिया और समस्या बताई।

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बाद में मुझे पता चला कि मेरा फोन जाने के तुरंत बाद भट्टी साहब ने उस पीड़ित व्यवसायी के लिए वह सब कुछ कर-करा दिया जो वे चाहते थे।

 उस व्यवसायी को सुरक्षा देकर पूर्णिया जिले की सीमा तक पहुंचवा दिया भट्टी साहब ने।

जिन लोगों ने वह दौर देखा और झेला है,वे आसानी से यह समझ सकते हैं कि भट्टी साहब कितनी विपरीत परिस्थिति में वह काम कर रहे थे।

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इस पृष्ठभूमि में जब मुझे कल पता चला कि भट्टी साहब डी.जी.पी.बन रहे हैं तो मेरी उम्मीद 

जगी कि अब बिहार की बिगड़ती कानून-व्यवस्था में काफी सुधार होगा।

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आज बिहार की शासकीय पृष्ठभूमि भी इस कत्र्तव्यनिष्ठ डी.जी.पी.के लिए अनुकूल है।

नब्बे के दशक वाली स्थिति अब नहीं है।

उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस बार पद संभालने के बाद से ही राज्य के अपराधकर्मियों को चेतावनी दे रहे हैं।

कह रहे हैं कि अब पहले जैसा नहीं चलेगा।

हालांकि इसके बावजूद अनेक अपराधी तत्व तेजस्वी यादव के संकेत को ग्रहण नहीं कर रहे हैं।

उम्मीद है कि नए डी.जी.पी.उन लोगों को सही रास्ते पर लाने का प्रबंध देर-सबेर कर देंगे।

याद रहे कि मुख्य मंत्री नीतीश कुमार तो शुरू से ही कहते रहे हैं कि ‘‘न किसी को बचाऊंगा और न किसी को फंसाऊंगा।’’

वे यथासंभव इसका पालन भी कर रहे हैं।भट्टी की नियुक्ति से मुख्य मंत्री की मंशा का पता चल जाता है।

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सत्ता संभालने के बाद सन 2005 से लेकर 2010-12 तक बिहार में सुशासन का दौर था।

बाद में भी रहा किंतु ढीला-ढाला।

अब उसे फिर से पहले जैसा चुस्त-दुरुस्त करने की जरूरत है।

इसके लिए सबसे पहले जिला आरक्षी अधीक्षकों को ‘कर्तव्य निष्ठ’ बनाना पड़ेगा।

भट्टी साहब,पता लगाइए कि डी.एन.गौतम और किशोर कुणाल जैसे अफसर जब किसी जिले के एस.पी.बनते थे तो क्यों अधिकतर अपराधी वह जिला छोड़ कर भाग जाते थे ?

आज उस स्थिति में इतना बदलाव क्यों आया है ?

मर्ज जान जाने पर ही तो उसका इलाज आप कर पाएंगे !

मुझे पूरा विश्वास है कि भट्टी साहब के काम में राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होगा। 

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2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा, बिहार में ‘‘बुलडोजर बाबा’’ के नमूने का प्रचार करेगी।

बगल के राज्य के योगी बाबा का बिहार में इस्तेमाल किया जाएगा।

2017 के बाद दूसरी बार भी यू.पी.में भाजपा की सरकार बन गई तो उसका सबसे बड़ा कारण बेहतर होती कानून -व्यवस्था है।

  इस बार गुजरात के चुनाव प्रचार के दौरान भी अनेक मतदाताओं को यह कहते टी.वी.चैनलों पर मैंने सुना कि यहां सन 2002 के बाद कोई दंगा नहीं हुआ।पहले तो अक्सर कफ्र्यू झेलना पड़ता था।

शांति-व्यवस्था के कारण हम अपना व्यापार कर पा रहे हैं।ऐसा कहने वालों में गुजरात के अनेक मुसलमान भी थे।

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और अंत में

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बिहार के व्यापक भले के लिए मैं यह उम्मीद करता हूं कि मुख्य मंत्री,उप मुख्य और नए डी.जी.पी.ऐसे -ऐसे सख्त कदम उठाएंगे जिससे सन 2005-12 वाला सुशासन लौट आए।

उससे वोट का लाभ भी मिलेगा और पीड़ित कमजोर लोगों की दुआएं भी मिलेंगी।

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फेसबुक वाॅल से

19 दिसंबर 22    

 


   मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्रित्वकाल में वित्त मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय से पूछा था कि क्या चीन से खतरा दो साल बाद भी बना रहेगा ?

 यानी,क्या सेना विस्तार के लिए 65 हजार करोड़ रुपए खर्च करना जरूरी है ?

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         सुरेंद्र किशोर    

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 भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय ने चीन से भारतीय सीमा पर खतरे को देखते हुए सेना विस्तार के लिए 65 हजार करोड़ रुपये की एक योजना बना कर वित्त मंत्रालय को भेजा था।

  इस पर वित्त मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय से एक अनोखा सवाल पूछा।

  उसने लिख कर यह पूछा कि क्या चीन से खतरा दो साल बाद भी बना रहेगा ?

यह पूछ कर वित्त मंत्रालय ने 

रक्षा मंत्रालय को लाल झंडी दिखा दी।

दरअसल वित्त मंत्रालय रक्षा मंत्रालय को यह संदेश देना  चाह रहा था कि यदि दो साल बाद भी खतरा बना नहीं रहेगा तो इतना अधिक पैसा रक्षा तैयारियों पर खर्च करने की जरूरत ही कहां है ?

 अब भला रक्षा मंत्रालय या कोई अन्य व्यक्ति भी इस सवाल का कोई ऐसा जवाब कैसे दे सकता था जिससे वित्त मंत्रालय संतुष्ट हो जाता ।

वैसे भी उसे संतुष्ट होना होता तो ऐसा सवाल ही क्यों करता ?

  क्या कोई बता सकता है कि चीन का अगला कदम क्या होगा ?

याद रहे कि इस आशय की खबर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के 11 जनवरी 2012 के अंक में छपी थी।

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सन 1962 के युद्ध से पहले कुछ देशभक्त सांसद गण  केंद्र सरकार से यह मांग कर रहे थे कि वह अपनी सीमाओं पर ध्यान दे।

तब की केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया था कि नेफा में घास का एक तिनका भी नहीं उगता।

  तब रक्षा सामग्री उत्पादित करने वाले कारखाने में हमारी तब की सरकार ने जूते बनवाने शुरू करा दिये थे।

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   देश के प्रमुख पत्रकार मन मोहन शर्मा के अनुसार,

‘‘एक युद्ध संवाददाता के रूप में मैंने चीन के हमले को कवर किया था।

  मुझे याद है कि हम युद्ध के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे।

 हमारी सेना के पास अस्त्र,शस्त्र की बात छोड़िये,कपड़े तक नहीं थे।

 प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कभी सोचा ही नहीं था कि चीन  हम पर हमला करेगा।

शर्मा ने लिखा कि एक दुखद घटना का उल्लेख करूंगा।

अंबाला से 200 सैनिकों को एयर लिफ्ट किया गया था।

उन्होंने सूती कमीजें और निकरें पहन रखी थीं।

उन्हें बोमडीला में एयर ड्राप कर दिया गया

जहां का तापमान माइनस 40 डिग्री था।

वहां पर उन्हें गिराए जाते ही ठंड से सभी बेमौत मर गए।

  युद्ध चल रहा था,मगर हमारा जनरल कौल मैदान छोड़कर दिल्ली आ गया था।

ये नेहरू जी के रिश्तेदार थे।

इसलिए उन्हें बख्श दिया गया।

हेन्डरसन जांच रपट आज तक संसद में पेश करने की किसी सरकार में हिम्मत नहीं हुई।’’

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1962 के चीनी हमले से पहले रक्षा मंत्रालय ने कुछ जरूरी सामान की खरीद के लिए वित मंत्रालय से एक करोड़ रुपए मांग थे।

वित्त मंत्रालय ने देने से मना कर दिया था।उस पृष्ठभूमि में मनमोहन शर्मा की रपट एक बार फिर पढ़िए।

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एक कांग्रेसी प्रधान मंत्री ने एक बार कहा था कि सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हम सीमा पर आधारभुत संरचनाओं का निर्माण न करें।

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16 दिसंबर 22




गुरुवार, 15 दिसंबर 2022

    आज का चिंतन

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 चुनावी आंकड़ा विशेषज्ञ प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव के बारे में कहा है कि

 ‘‘दसवीं पास सी.एम.बनने का सपना देख रहे हैं और पढ़-लिखे लोग दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।’’

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  क्या प्रशांत किशोर ने कभी राहुल गांधी के बारे में ऐसी कोई टिप्पणी की है ?

पता नहीं !

मुझे तो याद नहीं है।

रजत शर्मा से बातचीत में एक बार जेठमलानी ने राहुल गांधी के बारे में यह जरूर कहा था कि मैं तो राहुल गांधी को अपने आॅफिस में क्लर्क की नौकरी भी देने लायक नहीं समझता।

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मैं खुद न तो राहुल गांधी का प्रशंसक हूं न ही तेजस्वी यादव का।

किंतु मुझे इन दोनों में तेजस्वी बेहतर लगते हैं-अपेक्षाकृत एक सुलझे हुए दिमाग के नेता हैं।

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आप मुझसे पूछ सकते हैं कि आप किस या किन अन्य सत्तासीन नेता या नेताओं के प्रशंसक हैं ,उनके काम देखने बाद ?

मेरा जवाब यह है कि मैं इन दिनों मुख्यतः दो सत्तासीन नेताओं का प्रशंसक हूं-

 नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार।

आखिर क्यों ?

इसलिए कि इन दोनों में तीन-तीन मुख्य गुण हैं।

1-अपने लिए जायज आय से अधिक रुपए-पैसे एकत्र करने में कोई रूचि नहीं है।

2.-परिवारवाद से दूर हैं।

3.-जन सेवा भाव से भरे हैं और विकास व कल्याण के लिए इनमें बेजोड़ कल्पनाशीलता भी है।

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हां, इन दोनों की व्यक्तिगत ईमानदारी का उनकी सरकारी मशीनरी पर कम ही सकारात्मक असर देखा जा रहा है।

यह इस गरीब देश के लिए अच्छी बात नहीं है।

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सुरेंद्र किशोर

15 दिसंबर 22


मंगलवार, 13 दिसंबर 2022

 



सत्तर के दशक में कर्जदार धर्म तेजा का न सिर्फ भारत सरकार ने लंदन से प्रत्यर्पण कराया,बल्कि उसे कोर्ट से 3 साल की सजा भी दिलवाई

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सुरेंद्र किशोर

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भारत सरकार ने जयंती शिपिंग कंपनी के मालिक धर्म तेजा का 1971 में लंदन से भारत प्रत्यर्पण कराने में सफलता पाई थी।

  कर्ज लेकर चुकाने और टैक्स देने में विफल रहे आरोपी धर्मतेजा को भारत की अदालत ने तीन साल की सजा दी।

  वह 1975 में भारतीय जेल से रिहा हुआ।

सन 1977 में विदेश भाग गया।

सन 1985 में अमेरिका में उसका निधन हो गया।

धर्मतेजा ने जहाज खरीदने के लिए भारत सरकार से 20 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था।

उन दिनों जहाज खरीदने के लिए कंपनियों को केंद्र सरकार जहाज के मूल्य का 90 प्रतिशत तक कर्ज देती थी। हर जहाज की खरीद पर कमीशन मिलता था जो कंपनियों के निदेशक रख  लेते थे।लेन देन का यह काम विदेश में ही संपन्न हो जाता था।

 हालांकि तत्कालीन परिवहन राज्य मंत्री सी.एम.पुनाचा ने कहा था कि धर्म तेजा को 20 करोड़ नहीं बल्कि सिर्फ सवा छह करोड़ रुपए ही कर्ज मिला था।हालांकि उन्होंने यह  माना कि कंपनी की निजी पूंजी से कर्ज चैगुना अधिक है।

 साठ के दशक में सवा छह करोड़ रुपए भी एक बहुत बड़ी राशि थी।

 आंध्र प्रदेश का मूल निवासी धर्म तेजा अनिवासी भारतीय था।साठ के दशक में उसने अपनी शिपिंग योजना से तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को प्रभावित कर दिया था।

  धर्मतेजा पर आरोप लगा कि वह पैसे लिचेस्टाइन बैंक के अपने निजी खाते में जमा करता था।

फिर वह देश छोड़कर  भाग गया।सन 1970 में लंदन में उसे गिरफ्तार किया गया।भारत सरकार के प्रयास से उसका प्रत्यर्पण हुआ।

उस पर मुकदमा चला और भारतीय अदालत ने धर्म तेजा को  सजा दी।

 उससे पहले लंदन की एक अदालत में धर्मतेजा ने आरोप लगाया था कि उसने एक बड़ी कांग्रेसी नेत्री को चुनाव में जीप खरीदने के लिए पैसे दिए थे।

दो सत्ताधारी कांग्रेसी नेताओं ने एक अखबार को 10 लाख रुपए चंदा देने का दबाव बनाया था ।

पर मैंने नहीं दिया।इसलिए सरकार नाराज होकर मुझे तंग करना चाहती है।

यह खबर उन दिनों अखबारों में छपी थी जिसका कोई खंडन नहीं आया था।

   धर्म तेजा की कहानी इस देश में कतिपय सत्ताधारी नेताओं, कई अफसरों  और  कुछ व्यापारियों की अपवित्र साठगांठ की कहानी है।

यानी ऐसी साठगांठ की शुरुआत  आजादी के तत्काल बाद ही हो चुकी थी।

यह जरुर है कि आजादी के बाद के प्रारंभिक वर्षों में घोटाले कम होते थे।घोटालों की रकम भी आम तौर पर अपेक्षाकृत कम ही रहती थी।

तब लोकलाज थोड़ा बचा हुआ था।पर, अब छोटे घोटालों ने बटवृक्ष का रूप धारण कर लिया है।

अब कई ‘‘आधुनिक धर्म तेजाओं’’ के प्रत्यर्पण की इस देश में प्रतीक्षा हो रही है।

   धर्म तेजा ने दावा किया था कि वह एक राष्ट्रवादी परिवार से हैं ।

सन 1922 में उसके जन्म के समय महात्मा गांधी उसके घर मंे ही थे।

 तेज तर्रार धर्म तेजा, विजयलक्ष्मी पंडित के एक अत्यंत करीबी रिश्तेदार के जरिए तत्कालीन प्रधान मंत्री नेहरू के नजदीक पहुंचा था।उनका करीबी बना।

नेहरू परिवार के एक करीबी ने लिखा है कि इंदिरा गांधी उनकी आवभगत किया करती थीं।खुद नेहरू उसके काम  और व्यापारिक प्रस्तावों से प्रभावित थे।

 नेहरू के 13 साल तक निजी सचिव रहे एम.ओ.मथाई के अनुसार  नेहरू को  पैसे का तो कोई लोभ नहीं था।पर,संभव है कि वह यह समझते हों कि धर्म तेजा देश के विकास में मददगार होगा।

धर्मतेजा का दावा था कि उसने कुछ विदेशी हस्तियों से  जवाहरलाल नेहरु की मुलाकात करवाई थी।

   परिवहन और जहाज रानी मंत्रालय के तत्कालीन सचिव डा.नगेंद्र सिंह ने धर्म तेजा के प्रति प्रधान मंत्री की मेहरबानी पर एतराज किया था।

उन्होंने मथाई से मिलकर अपना एतराज जताया था।डा.सिंह मानते थे कि धर्म तेजा सरकार को नुकसान पहुंचा सकता है।

 धर्म तेजा ने अपने धंधे को जारी रखने के लिए इस देश की प्रभावशाली हस्तियों के रिश्तेदारों को अपनी कंपनी से जोड़ा।

वित्तीय कुप्रबंधन के कारण जब जयंती शिपिंग कंपनी के कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ गए तो संसद में डाह्या भाई पटेल ने,जो सरदार पटेल के पुत्र थे, आवाज उठाई।इंदिरा गांधी सरकार को जांच करानी पड़ी।

जांच रपट के आधार पर सी.बी.आई.ने कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर दिया।

कोर्ट ने आरोपों को सही मान कर धर्म तेजा को सजा सुनाई।

 भारत सरकार की राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यपालिका के बीच  धर्म तेजा को लेकर समय -समय पर मतभेद उभरे।

पर,तब के दिग्गज प्रतिपक्षी नेताओं ने अक्सर धर्म तेजा के कारनामों को उजागर ही किया।

डा.राम मनोहर लोहिया ने तब संसद में यह आरोप लगाया था कि प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने धर्म तेजा से महंगा ‘‘मिंक कोट’’ उपहार के रूप में  स्वीकार किया है।

उसे सरकार के पास  जमा नहीं किया गया।जब इस पर हंगामा हुआ तो इंदिरा गांधी ने उस कोट को बाद में जमा करवा दिया।दूसरी ओर, एक अन्य प्रधान मंत्री ने बाद के वर्षों में सार्वजनिक रूप से यह कह दिया था कि धर्म तेजा ने देश से जितना लिया,उससे अधिक देश को दिया है।हालांकि कोर्ट और आयकर महकमे की राय  अलग रही।

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वेबसाइट-मनीकंट्रोल हिन्दी पर 10 दिसंबर 22 को प्रकाशित 

     


 अरे भई,जेपी गंगा पथ को जेपी गंगा पथ ही रहने दो ,

क्यों खामख्वाह उसे ‘मरीन ड्राइव’ नाम दे रहे हो ?!

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सुरेंद्र किशोर

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यदि आपको सड़क जाम की महा विपत्ति में फंसे बिना पटना के गांधी मैदान से पटना एम्स पहुंचना हो तो जेपी गंगा पथ से गुजरिए।

कल मैंने वही सुगम राह पकड़ी थी।

  पर,गांधी मैदान और जेपी गंगा पथ के बीच के संपर्क मार्ग पर एक सरकारी साइन बोर्ड देखकर मुझे झटका लगा।

उस पर लिखा है--‘मरीन ड्राइव’ !

 उस साइन बोर्ड पर तीर का निशान बनाकर यात्रियों को यह निदेश दिया गया है कि आप ‘मरीन ड्राइव’ की ओर जाइए।

मुम्बई में समुद्र किनारे की सड़क को मरीन ड्राइव कहा जाता है।

क्योंकि अंग्रेजी शब्द मरीन का अर्थ है समुद्री।

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अरे भइर्, नकल करने में थोड़ी अकल तो लगा लेते !

 अधिक से अधिक यहां ‘गंगा ड्राइव’ लिख सकते थे !

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पर,क्या कीजिएगा !

जिस राज्य में बी.पी.एस.सी.की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी सही -सही प्रश्न पत्र सेट करने वालों की कमी होती जा रही है,वहां नदी किनारे वाली सड़़क को मरीन ड्राइव लिख देने से किसी का क्या बिगड जाएगा !

हां, कोई बंबइया व्यक्ति पटना के इस नकली मरीन ड्राइव से कभी गुजरेगा तो जरूर हम बिहारियों पर एक बार फिर........!! 

  याद रहे कि यह गलती आम बिहारियों की नहीं,बल्कि अधपढ़ सरकारी बाबुओं की है जिन्होंने साइन बोर्ड पर मरीन ड्राइव लिखवाया। 

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 कल पहली बार मैं जेपी गंगा पथ से गुजरा।

कोरजी स्थित अपने आवास से गांधी मैदान यानी मुख्य पटना पहुंचने का एक सुगम विकल्प मिल गया।

  इससे पहले महा जाम में फंसने के डर से कई बार पटना की कम जरूरी यात्राएं मैं स्थगित करता रहा हूं।

दो दशक पहले तक पटना में जेपी गंगा पथ जैसे अद्भुत निर्माण  की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी।

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पुनश्चः

अक्सर कुछ अखबार यह लिख देते हैं कि छपरा के मशरख में फलां घटना हुई है।

जबकि लिखना यह चाहिए था-सारण जिले के मशरख में...!

छपरा एक नगर है।

वह सारण जिला और प्रमंडल का मुख्यालय है। छपरा में मशरख नाम का कोई मुहल्ला भी नहीं है।

छपरा से मशरख मीलों दूर है।

  खैर, हमारे कुछ अखबार मशरख को छपरा तक ही पहुंचाते हैं ! बड़ी कृपा !!

सड़क महकमे के हमारे अफसर तो मरीन

ड्राइव को मुम्बई से खीेंचकर पटना तक पहुंचा देते हैं।

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12 दिसंबर 22 


 सिंगापुर तब और अब

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सुरेंद्र किशोर

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भारत के अनेक समर्थ लोगों की यह राय रही है कि जरूरत पड़ने पर वे सिंगापुर के अस्पतालों पर सर्वोत्तम इलाज के लिए पूरा भरोसा कर सकते हैं।

   सिंगापुर जैसे एक छोटे देश ने कुछ ही दशकों में ऐसा कमाल कैसे कर दिया ?

याद रहे कि वह कभी मछुआरों और लुटेरों का देश था।

हमारे देश की तरह कभी सोने की चिड़िया नहीं था।

पर,हाल के दशकों में उसे ठीक कर देने का श्रेय ली कुआन शू को जाता है ।

वे सन 1959 से सन 1990 तक सिंगापुर के प्रधान मंत्री थे।

  उन्होंने देश को पूरी तरह बदल दिया।

वहां अन्य चीजें पटरी पर आ र्गइं ंतो अस्पताल भी ठीक हो गए।

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हां,शू ने शासन को टाइट करने के लिए थोड़ी कड़ाई जरूर की थी ।

 वैसी कड़ाई की भारत में आज भी कमी देखी जाती है।यहां शासन ढीला-ढाला है।

जिसे जब जो जी में आता है,करता रहता है।

अपवादों की बात और है।

यहां कुछ अधिक ही ‘‘लोकतंत्र’’ है।

इसे लूट तंत्र भी आप कह

सकते हैं।यहां सुधार की रफ्तार अत्यंत धीमी है।

लुटेरों और देशद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई करने वाले शासकों को,यहां तक कि प्रधान मंत्री तक को भी जान से मारने की धमकी दी जाती है।

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 शू के सत्ता में आने से पहले सिंगापुर में प्रति व्यक्ति आय मात्र पांच सौ यू.एस.डाॅलर थी।

समय के साथ वह बढ़कर अब वहां की प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. 60 हजार यू.एस.डालर से भी अधिक हो चुकी है।

 आजादी के तत्काल बाद की हमारी सरकार के बारे में ली कुआन शू की राय थी कि 


‘‘.................समस्याओं के बोझ के कारण प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने विचारों और नीतियों को लागू करने का जिम्मा मंत्रियों और सचिवों को दे दिया।

अफसोस की बात है कि वे लोग भारत के लिए वांछित परिणाम लाने में असफल रहे।’’

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 सिंगापुर की जब बात होती है तो यहां के कुछ लोग यह कहने लगते हैं कि वह छोटा देश है।

उसे ठीक करना आसान है।

भारत बड़ा देश है।

यह काम मुश्किल है। 

मेरी समझ से यह बहाना है।

दिल्ली व मुम्बई महानगर पालिकाएं तो छोटी-छोटी शासकीय इकाइयां ही हैं।

वहां के कूड़े तक साफ नहीं होते।

हर बरसात में भारी जल जमाव होता है।

सड़क जाम की समस्या तक दूर नहीं होती।

इसलिए कि वहां के भ्रष्टों के खिलाफ कठोर कारवाई नहीं होती।

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12 दिसंबर 22


 ब्राह्मण नहीं होते तो हम पूरे 

भारत को जल्द ही ईसाई बना देते

   ---सेंट फ्रांसिस जेवियर

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आज जे.एन.यू. में ब्राह्मण निशाने पर क्यों हैं ?

कभी सोचा है ?

दरअसल,मुगलों के समय युद्ध की सफलता का पैमाना यही था कि आपने कितने किलो जनेऊ इकट्ठे किए।

ब्राह्मण सनातन धर्म का वाहक था।

सेंट फ्रांसिस जेवियर ने कहा था कि ब्राह्मण नहीं होते तो वह पूरे भारत को जल्द ईसाई बना देता।

  उसने कोशिश भी की लेकिन सफल न हुआ।

     ---ब्रज मोहन सिंह,दैनिक जागरण,पटना

    13 दिसंबर 22

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पूर्व प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कहा था कि आजादी की लड़ाई में उत्तर प्रदेश में सक्रिय सर्वाधिक संख्या में ब्राह्मण थे।

--पुस्तक ‘मंजिल से ज्यादा सफर’ से

पुस्तक लेखक- राम बहादुर राय

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13 दिसंबर 22


 हरिवंश रचित पुस्तक ‘‘सृष्टि का 

मुकुट: कैलास मान -सरोवर’’

के बारे मेें दो शब्द

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‘‘........वास्तव में शिव लोकहित के देवता हैं।

उनकी हर लीला में लोक मानस और लोक कल्याण प्रदर्शित होता है।

  ‘सृष्टि का मुकुट: कैलास-मान सरोवर’ यात्रा -वृतांत को लोकप्रिय पत्रकार हरिवंश ने बहुत डूब कर लिखा है।

बचपन में होश संभालने से लेकर उम्र का अधिकांश वक्त बिताने तक,वह इस यात्रा की अभिलाषा में रहे कि इस यात्रा को करना है।

  इसके लिए इस विषय पर छपी बहुतेरी पुस्तकें (अंग्रेजी-हिन्दी) पढ़तेे रहे।

........यात्रा के दौरान की हर बारीक से बारीक बात को जिस अंदाज में हरिवंश ने लिखा है ,वह साहित्य में यात्रा-संस्मरणों का दिलचस्प और कलेक्टिव डाॅक्यूमेंट है।.........’’

---  अतुल कुमार, हैदराबाद  

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‘मान्यता है कि हिमालय समान,पवित्र स्थान सृष्टि में नहीं है।

भारतीय मानस में जन्म-जन्मान्तर से कैलास दर्शन की साध रही है।

इसे तीर्थों का तीर्थ कहते हैं।

इस यात्रा की चाहत लम्बे समय से पत्रकार -सम्पादक हरिवंश को रही।

  पर,यह यात्रा आसान नहीं।

हिमालय, कैलास -मान सरोवर में कुछ है, शायद सृष्टि का अनजाना रहस्य !

  प्रकृति का वैभव, अध्यात्म का मर्म।

इस आकर्षण से बंधी रोमांचक यात्रा के संस्मरण।

इसे पढ़ते हुए पाठकों को भी कैलास मान -सरोवर की इस यात्रा के कठिन डगर से गुजरने का अहसास होेगा।’

  --- इसी पुस्तक का एक अंश   

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‘सृष्टि का मुकुट: कैलास मानसरोवर’

लेेखक - हरिवंश

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वाणी प्रकाशन,नयी दिल्ली,

शाखाएं-

पटना,इलाहाबाद और वर्धा

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शनिवार, 10 दिसंबर 2022

     कारण तो बता दो 

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फेसबुक संस्थान किसी व्यक्ति या संस्था का एकाउंट बंद या निलंबित करने के साथ ही उसका कारण भी उसे बताए जिसका एकाउंट वह बंद या निलंबित कर रहा है।

बताए कि

1-क्या एकतरफा सामग्री पोस्ट हो रही है ?

2.-क्या झूठी सामग्री आ रही है ?

3.-क्या मानहानिकारक सामग्री पोस्ट की जा रही है ?

या 4-कोई अन्य कारण है ?

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सुरेंद्र किशोर

10 दिसंबर 22


गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

 देश-प्रदेश की 7 दिसंबर, 22 की खबरें

जो 8 दिसंबर यानी आज के अखबारों में छपीं।

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सुरेंद्र किशोर

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  कल्पना कीजिए कि यह विवरण 200 साल तक मौजूद रह जाए !

उस समय की पीढ़ी इसे पढ़ेगी तो उसे कैसा लगेगा ?

वह पीढ़ी आसानी से सौ साल पहले की खबरों की तुलना तब के समय की स्थिति से करने की स्थिति में होगी।

अल बरूनी ने लिखा था कि 700 साल पहले हिन्दुस्तान के लोग क्या खाते थे ! वह दिलचस्प विवरण अब भी उपलब्ध है।

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खबरें 

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राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का सुप्रीम कोर्ट से रद होना संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता

---उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़

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जल्द ही भारत विश्व का ऐसा पहला देश बन जाएगा जहां  चलेगी ऐसी लू जो इंसान के लिए बर्दाश्त के बाहर होगी

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बिहार के गोपालगंज जिले के माझा में शिक्षक के घर चल रहा था (राज्य सरकार का)अंचल कार्यालय

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पश्चिम बंगाल के तृणमूल विधायक ही तय करते थे शिक्षक बनने के लिए कौन दे सकता है मोटी रकम

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रिश्वत नहीं देने पर कोलकाता पुलिस ने जब्त की पद्मभूषण राशिद खान की कार

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 हिमाचल प्रदेश के लाहुल स्पीति जिले के चंडीगढ़ गांव में रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग नहीं होता।

प्रयोग होने पर जुर्माना लगता है।

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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि संसद में अवरोध खासकर नए सदस्यों के लिए पीड़ादायक

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पूर्व आई.ए.एस.व ‘लोकसत्ता’ के नेता जयप्रकाश नारायण ने लिखा है कि ‘‘हमें अगले दो दशकों तक आर्थिक विकास पर निरंतर ध्यान देने की जरूरत है।

कानून का शासन,

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं स्वास्थ्य ,

नियोजित शहरीकरण और ग्रामीण -शहरी क्षेत्रों के बीच बेहतर संपर्क देश की समृद्धि ,

स्थिरता एवं सामाजिक सद्भाव के लिए महत्वपूर्ण है।

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ऊपर लिखी सारी खबरें आज के दैनिक जागरण,पटना में प्रकाशित।

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फरार आई.पी.एस.आदित्य ने 11 साल की नौकरी में आय से 131 प्रतिशत अधिक की संपत्ति बनाई

(अब तक तो अपराधी फरार होते थे।अब आई.पी.एस.अफसर भी फरार होने लगे।घोर कलयुग !!!)

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पटना रिंग रोड: जनवरी के अंत तक एन एच ए आई को मिलेगी जमीन

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ईको पार्क को छोड़ पटना के सभी इलाकों में बढ़ा प्रदूषण

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अमेरिका में लोडेड हैंडगन रखने वाले दोगुने हुए

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सभी खबरें दैनिक भास्कर, पटना से 

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बनेगी विशेष टास्क फोर्स,जिला अस्पतालों से हटेगा अतिक्रमण

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पांच साल में पटना में 5 प्रतिशत बढ़े मध्यवर्गीय परिवार

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पटना हाईकोर्ट ने बिना बेहोशी का इंजेक्शन दिये नसबंदी करने के मामले में केंद्र और राज्य से जवाब मांगा।

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26 नवंबर, 22 तक देश के 50 कस्बों में पहुंची 5 जी सेवा

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चीन द्वारा वास्तविक नियंत्रण सीमा रेखा को बदलने के प्रयासों को हम नहीं बर्दाश्त करेंगे--भारत के विदेश मंत्री

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ये खबरें ‘प्रभात खबर’ में प्रकाशित

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बिहार में खान विभाग की होगी अपनी पुलिस

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खाद -कीटनाशक के बेतहाशा प्रयोग ने मिट्टी की सेहत बिगाड़ी 

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कोरोना के बाद अस्पतालों में 30 प्रतिशत बढ़े मानसिक रोगी

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पटना में दिन भर जाम

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टै्रफिक पुलिस के लिए चलंत शौचालयों की व्यवस्था होगी पटना में 

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दैनिक हिन्दुस्तान,पटना से 

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8 दिसंबर 22

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     हमारे ग्रामीण इलाके की नामी-गिरामी

    दिवंगत हस्तियां जिन्होंने अपनी छाप छोड़ी

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      सुरेंद्र किशोर

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मैं बिहार के सारण जिले के जिस गांव का मूल निवासी हूं,

उस गांव के आसपास कई नामी-गिरामी लोग हुए हैं।

हमें उन लोगों से पे्ररणा मिलती रही।

उनके नाम हैंे-

पृथ्वीनाथ त्रिपाठी-बी.बी.काॅलेजिएट स्कूल,

मुजफ्फरपुर के प्राचार्य

विश्वमोहन कुमार सिन्हा-वाइस चांसलर

राजदेव सिंह-सी.बी.आई.े निदेशक

युगेश्वर पांडेय-बिहार वाणिज्य मंडल के अध्यक्ष

राजेंद्र सिंह,छपरा से 1957 में लोक सभा सदस्य

 और फिरंगी सिंह-स्वतंत्रता सेनानी।

ऐसे अन्य भी होंगे,किंतु मुझे तुरंत उनके नाम याद नहीं।

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ये हस्तियां अब इस दुनिया में नहीं हैं।

मेरी रूचि इस बात में है कि जीवन,संघर्ष और इनकी उपलब्धियों के बारे में संक्षेप में कुछ लिख दूं ताकि नई पीढ़ी जान सके कि ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकल कर भी किस तरह ये लोग शीर्ष पर पहुंचे।

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 इन्हें करीब से जानने वाले और इनके वंशज इनके बारे में इनके चित्र सहित एक -दो हजार शब्दों में लिखकर मुझे भेजें तो मैं पुस्तक नहीं तो कम से कम सोशल मीडिया के जरिए नई पीढी को इनके बारे में बता सकूंगा।

इससे आज की पीढ़ी को प्रेरणा मिल सकती है। 

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मेरा पता है--

सुरेंद्र किशोर

ग्राम-कोरजी

पोस्ट-मोहम्मद पुर

भाया-खगौल

जिला-पटना

पिन-801105

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 भीषण ठंड के मौसम में बुजुर्गों के 

लिए पुस्तक मेले में जाना कठिन

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सुरेंद्र किशोर

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पटना में दिसंबर में पुस्तक मेला आयोजित करने पर प्रबंधकों को पुनर्विचार करना चााहिए।

 क्योंकि भीषण ठंड के कारण बुजुर्गों व छोटी उम्र के लोगों के लिए पुस्तक मेले में जाना कठिन हो जाता है।

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अक्तूबर या फरवरी में पटना में पुस्तक मेला लगाने के बारे में विचार करना चाहिए।

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8 दिसंबर 22

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सोमवार, 5 दिसंबर 2022

 कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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 अपराधीकरण पर आयोग की सिफारिश पर गौर 

करे सुप्रीम कोर्ट 

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चुनाव आयोग ने गंभीर अपराधों के आरोप के तहत मुकदमे का सामना कर रहे लोगों को चुनाव नहीं लड़ने देने की सिफारिश की है।

 सन 2013 के नवंबर में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष  इस संबंध में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखा था।

वह प्रस्ताव अपराधियों को चुनावी राजनीति से दूर रखने के लिए था।

 चुनाव आयोग की राय रही है कि यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ ऐसे मामले में कोर्ट ने आरोप गठित कर दिया है जिसके तहत उसे पांच साल की सजा हो सकती हो,तो उस व्यक्ति को चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया जाना चाहिए।

 सुप्रीम कोर्ट यदि इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाता है तो वह देश के लोकतंत्र और शांतिप्रिय लोगों के लिए बड़ी राहत की बात होगी।़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़  

पिछले ही महीने सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता की चिंता की है।

उसकी चिंता जायज है।

सबसे बड़ी अदालत की मंशा यह है कि  मुख्य चुनाव आयुक्त और आयोग के अन्य सदस्यों के पदों पर निष्पक्ष लोगों की तैनाती हो।

पर,इस मामले में कोई राह तैयार होने से पहले देश की सबसे बड़ी अदालत चुनाव आयोग की पिछली सिफारिशों को लागू कराने का प्रयास कर सकती है।उससे देश के लोकतंत्र का  भला होता।

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गैर जरूरी उप चुनाव 

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सन 2017 और उसके बाद से अब तक उत्तर प्रदेश के रामपुर में लोक सभा और विधान सभा के कुल पांच चुनाव हो चुके है।

इस महीने छठे चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे।

वैसे तो वहां इस अवधि में लोक सभा व विधान संभा के सिर्फ तीन चुनाव ही होने चाहिए थे।

पर, तीन उप चुनाव भी कराने पड़े।

 ऐसा सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं हुआ है।

देश भर में आए दिन ऐसा होता रहता है।

क्यों न उप चुनावों का प्रावधान ही समाप्त कर दिया जाए ?

 यदि कोई सीट खाली होती है तो उसे सदन की अवधि समाप्त होने तक खाली ही रहने दिया जाए।

या, ऐसी संवैधानिक व्यवस्था हो कि संबंधित दल वैकल्पिक व्यक्ति का नाम दे दे।

उसे सदन का सदस्य मनानीत कर दिया जाए।

इसलिए जरूरी है कि निचले सदन में मनोनयन के लिए कुछ सीटें निर्धारित कर दी जाएं।

हां,इसमें एक अपवाद हो सकता है।यदि कोई सरकार मात्र एक या दो विधायक या सांसद के बहुमत से चल रही हो तो वहां का कोई उप चुनाव टाला नहीं जाना चाहिए।  

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 ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़हत्या के मामलों की केस डायरी

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दंड प्रक्रिया संहिता ,1973 की धारा -172 के तहत प्रत्येक पुलिस अधिकारी अन्वेषण में की गई अपनी कार्यवाही को दिन -प्रतिदिन एक डायरी में लिखेगा।उसमें उस समय का जिक्र होगा,जब उसे घटना की जानकारी मिली।

वह समय लिखेगा जब उसने जांच शुरू की।वह समय जिन स्थानांे पर अन्वेषण अधिकारी गया।

वह समय भी डायरी में लिखेगा जब उसने जांच का काम पूरा किया।

   याद रहे कि किसी मामले में केस डायरी का बड़ा महत्व होता है।

यदि किसी डायरी में जानबूझ कर हेर-फेर कर दी जाए तो अभियुक्त के बच निकलने की आशंका रहती है।

  क्या बिहार राज्य पुलिस मुख्यालय कम से कम हत्याओं के मामलों में पुलिस थानों में लिखी जा रही डायरियों की माॅनिटरिंग नहीं कर सकती ?

याद रहे कि राज्य में हत्या और हत्या के प्रयासों के मामलों बिहार में अदालती सजा का प्रतिशत असंतोषजनक है।

आधुनिक तकनीकी के इस युग में हत्या के अनुसंधान के कम मंें लिखी जा रही डायरियों का विवरण समय -समय पर राज्य पुलिस मुख्यालय चाहंेे तो अपने पास मंगवा सकता है।या मुख्यालय थानों को यह निदेश दे दे कि वे डायरी भेज दिया करे।

इससे यह होगा कि किसी प्रभाव में आकर केस डायरी में परिवर्तन कर देने की आशंका समाप्त हो जाएगी।   

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     भूली-बिसरी याद

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देशरत्न डा.राजेंद्र प्रसाद ने लिखा है कि ‘‘महात्मा गांधी मनुष्य का चरित्र सुधारने के लिए यह जरूरी समझते थे कि नशा छोड़ दी जाये।

  क्योंकि कोई भी जब नशे में होता है तो उसका विवेक नष्ट हो जाता है।

वह भला-बुरा ,पाप-पुण्य और सत्य-असत्य का भेद समझने में असमर्थ हो जाता है।

उसकी शक्ति इतनी क्षीण हो जाती है कि वह अपने को संभाल भी नहीं सकता।

राजेन बाबू लिखते हैं कि ‘‘इसीलिए गांधी जी नशाबंदी को एक आवश्यक और महत्वपूर्ण बात मानते थे।

वे चाहते थे कि जनता में प्रचार करके नशा छुड़वाया जाए और सरकार भी इसे कानून द्वारा बंद कर दे।

इसीलिए सन 1921 में ही उनके आदेश से शराब,गांजा आदि की दुकानों पर धरना देने का कार्यक्रम प्रारंभ किया गया था।’’ 

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और अंत में

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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के.एम.जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश राय के खंड पीठ ने गत 9 नवंबर को एक केस की सुनवाई करते हुए कहा कि ‘‘भ्रष्ट लोग देश को तबाह कर रहे हैं और पैसे की मदद से बच निकलते है।’’

  उससे पहले इसी माह की 3 तारीख को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘‘हमें ऐसा प्रशासनिक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ शून्य सहिष्णुता रखता हो।’’

  इन दो शीर्ष हस्तियों की ऐसी टिप्पणियों में भ्रष्टाचार पीड़ित लोगों को उम्मीद की नयी किरण दिखाई पड़ती है।

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प्रभात खबर

पटना

5 दिसंबर 22


   


शनिवार, 3 दिसंबर 2022

 सन 1969 में ‘दिनमान’ में पत्र लिखकर मैंने भी आह्वान किया   था कि सक्रिय राजनीति में ‘‘लौट आओ जयप्रकाश’’

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   सुरेंद्र किशोर

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  वैसे तो जयप्रकाश नारायण ने सन 1974 में ही आंदोलन 

का नेतृत्व करना शुरू किया था।

किंतु उससे पहले मुझ सहित अनेक छोटे-बड़े नेता,कार्यकर्ता,बुद्धिजीवी तथा युवजन उनसे सार्वजनिक रूप से और मिल कर यह अपील करते रहे थे कि आप सक्रिय राजनीति में आ जाइए।

  सबसे गंभीर अपील डा.राम मनोहर लोहिया ने उनसे मिलकर की थी।

जेपी से कहा था कि ‘‘तुम ही इस देश को गरमा सकते हो।’’

वह सच साबित हुआ भी।

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दरअसल जेपी की धर्म पत्नी प्रभावती जी के निधन और उनके मित्र और आजादी की लड़ाई के सहयोगी क्रांतिकारी सूरज नारायण सिंह की निर्मम हत्या के बाद जेपी आंदोलन में कूद पड़ने के लिए उनकी मानसिक पृष्ठभूमि तैयार हो गई।स्वास्थ्य कारणों से प्रभावती जी उन्हें सक्रिय होने नहीं देती थंीं।

सूरज बाबू की हत्या से जेपी के मन में शासन के प्रति क्षोभ  

भर उठा।

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जेपी के ‘‘लौट आने’’ के लिए उससे पहले मैंने दिनमान(18 मई,1969)में एक चिट्ठी लिखी थी।

मैं उन दिनों सुरेंद्र अकेला के नाम से लिखा करता था।

‘दिनमान’ तब की सर्वाधिक लोकप्रिय व प्रतिष्ठित पत्रिका थी।मत-सम्मत यानी संपादक के नाम पत्र भी पढ़े जाते थे।

जिस पत्रिका के संपादक सच्चिदानंद (हीरानंद) वात्स्यायन

(अज्ञेय) हों।

जिस पत्रिका के बिहार संवाददाता फणीश्वरनाथ रेणु हों,उस पत्रिका का भला क्या कहना !

संभवतः खुद जेपी भी उसे पढा कऱते थे।

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रेणु जी बिहार विधान सभा की प्रेस दीर्घा में बैठकर भी रिपोर्टिंग करते थे।

नियम को शिथिल करके पहली बार किसी साप्ताहिक पत्रिका के संवाददाता को विधान सभा की प्रेस दीर्घा का प्रवेश पत्र मिला था।रेणु जी जब संवाददाता बन जाएं तब तो नियम शिथिल होना ही था।

प्रस पास उन्हें मिले भी क्यों नहीं !

स्पीकर के पद उन दिनों लक्ष्मी नारायण सुधांशु विराजमान थे जो खुद साहित्यकार भी थे।

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अब मैं अपनी वह चिट्ठी यहां प्रस्तुत करता हूं।

उस चिट्ठी का शीर्षक था-

   ‘‘लौट आओ जयप्रकाश’’

 पूरा पत्र इस प्रकार है--

 श्री जयप्रकाश नारायण के समय-समय पर व्यक्त विचारों से लगता है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं में आज भी उनकी गहरी रुचि है।

  विनोबा के आदर्शों और कार्य पद्धतियों के औचित्य-अनौचित्य तथा उसमें जयप्रकाश के बहुमूल्य जीवन के सदुपयोग-दुरुपयोग की चर्चा छोड़ भी दी जाए तो भी एक सवाल तो बच ही जाता है कि क्या जयप्रकाश जी ने अपने विचारों के मौलिक पविर्तन के कारण राजनीति को छोड़ देश-सेवा का व्रत लिया है ,या देश की गंदी राजनीति से ऊबकर पलायनवादिता का सहारा लेकर राजनीति से विरत हुए हैं ?

  इसका जवाब उन्हें ही देना है।

 देश जब इस भयंकर आर्थिक संकट ,क्षेत्रीय बिखराव और भावनात्मक विभेद के दौर से गुजर रहा हो,तो जयप्रकाश नारायण तट पर सर्वोदय की छाया में खडे़ हों और ऐसे आदर्शों की बातें करते रहें जिनकी पूर्ति मर कर भूत बन जाने के बाद भी होने की आशा दूर -दूर नहीं दिखाई पड़े तो आनेवाली पीढ़ी कभी उन्हें माफ नहीं करेगी।

   यदि उनके दिल में थोड़ी भी द्विविधा हो तो उन्हें निर्भयतापूर्वक पुनर्विचार करना चाहिए।

  सक्रिय राजनीति में उनके लौटते कदम का स्वागत वे सारे लोग करेंगे जिन्हें देश का समाजवादी -जनतांत्रिक भविष्य धूमिल होता नजर आ रहा है।

  ---सुरेंद्र अकेला,  

   भरतपुर(सारण)

साप्ताहिक दिनमान,18 मई 1969

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(तब का सुरेंद्र अकेला अब का सुरेंद्र किशोर)

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दशकों बाद अपने इस पत्र को दुबारा मैंने पढ़ा है।

मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि मैं उस कम उम्र में भी ऐसी चिट्ठी लिख सका।

हालांकि एक कमी जरूर रही ।वाक्य लंबे थे।

लंबे वाक्य पाठकों के दिमाग पर बोझिल होते हैं

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3 दिसंबर 22





  


गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

 भगवान भी उसी की मदद करता है 

जो अपनी मदद खुद करे !

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 महा कालेश्वर के समक्ष राहुल गांधी का साष्टांग दंडवत

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  सुरेंद्र किशोर

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इस पोस्ट के साथ नीचे ‘इंडियन एक्सप्र्रेस’ की कटिंग है।

उसमें एक चित्र है।

चित्र में यह नजर आ रहा है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के गर्भ गृह के सामने दंडवत प्रणाम कर रहे हैं।

यानी, पेट के बल लेट कर प्रणाम !

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एक कहावत है कि भगवान भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करता है।

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कांग्रेस ने सन 1984 के बाद ‘खुद की मदद करना’ बंद कर दिया है।

कल्पना रहित नेतृत्व इसका सबसे बड़ा कारण है।

उसके कुछ अन्य कारण भी हैं।

उन कारणों को दूर किए बिना महाकालेश्वर भी उनकी मदद नहीं कर सकते।

पर, कांग्रेस नेतृत्व उन कारणों को दूर करने को क्या अब भी तैयार है ?

क्या उसे उन कारणों की पहचान भी है ?

शायद नहीं है।

या, है भी तो लगता है कि कांग्रेस अपने-आप को सुधारने की क्षमता भी अब खो बैठी है।

एक लोकतांत्रिक मिजाज का व्यक्ति होने के कारण मेरी यह व्यक्तिगत राय रही है कि कांग्रेस कम से कम एक मजबूत व जिम्मेवार प्रतिपक्ष की भूमिका निभाना सीख जाए।

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अवसान के कारण 

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सन 2014 लोस चुनाव में करारी हार के बाद गठित ए.के. एंटोनी समिति ने कहा था कि ‘‘हम इसलिए हारे क्योंकि मतदाताओं को यह लगा कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों की तरफ जरूरत से अधिक झुकी हुई है।’’

एंटोनी ने अन्य बातें भी कहीं।

किंतु कांग्रेस नेतृत्व ने उस रपट पर ध्यान भी नहीं दिया।यानी खुद में सुधार नहीं किया।

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 पराभव के कुछ अन्य ठोस कारण भी हैं।

उन कारणों को समझने,स्वीकारने और उन्हें दूर करने की जरूरत है।

 भ्रष्टाचार,घोटाले-महा घोटाले कांग्रेस के पतन के दूसरे कारण रहे।

टुकड़े -टुकड़े गिरोह तथा अन्य देश तोड़क ताकतों के खिलाफ कांग्रेस डटकर खड़ी नहीं हो पा रही है।

उसकी वोट बैंक की राजनीति उसमें बाधक है।

इस रुख ने कांग्रेस को जनता में काफी कमजोर बनाया।

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 भ्रष्टाचार के प्रति कांग्रेस की क्या राय है ?

क्या वही राय है जो नोबेल विजेता व राहुल गांधी के अघोषित आर्थिक सलाहकार अभिजीत बनर्जी की है जिन्होंने कांग्रेस को ‘‘न्याय योजना’’ का मंत्र दिया है ?

अभिजीत बनर्जी ने 2019 में कहा था कि ‘‘नरेंद्र मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार को देश की अर्थ व्यवस्था से काट कर अलग कर दिया जो अच्छा नहीं हुआ।’’(हिन्दुस्तान टाइम्स)

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एक ही परिवार के तीन अकुशल मांझी डगमगाती नाव को तीन दिशाओं की ओर अनंत काल तक खींचते नहीं रह सकते।

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इस देश के बड़े -बड़े नेता विदेशों में जाकर अपना इलाज तो करवाते ही हैं।

उसी तरह जिन दलों की लोकप्रियता में गिरावट जारी है,वे भी विदेशी विशेषज्ञों को बुलाकर गिरावट के कारणों की जांच करवा लें।

उन कारणों को दूर करने का उपाय करें।

तभी दलों का पुनरुद्धार संभव है।

मेरा मानना है कि कारणों का जो विवरण मैंने यहां दिया है,वैसा ही विवरण किसी विदेशी विशेषज्ञ से भी उन्हें प्राप्त होगा।

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30 नवंबर 22