खैर जो हो, पर निंदक नियरे राखिए........वाली कबीर वाणी कम से कम कुछ मामलों में तो इस देश को माननी चाहिए। इससे पहले चीन ने यह भी कहा था कि ‘भारत में सरकारी भ्रष्टाचार इतना अधिक बढ़ चुका है कि विकास व कल्याण कार्यों के लिए आवंटित पैसों में से अधिकांश, वैसे ही जाया हो जाता है जिस तरह छेद वाले किसी लोटे में से उसका अधिकांश पानी नीचे गिर जाता है। ’याद रहे कि चीन में भ्रष्ट लोगों के लिए फांसी की व्यवस्था है जबकि भारत में जो जितना अधिक भ्रष्ट है, उस व्यक्ति के लिए उतना ही अधिक महत्वपूर्ण पद पर पहुंच जाने की गुंजाइश है।
चीन की इन बातों का मनन करके यदि भारत खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करे तो यह कोई हेठी की बात नहीं होगी। हमारे बाद आजाद हुए चीन ने अनेक मामलों में हमसे बेहतर ढंग से अपने देश को बनाया है तो उसे उपदेश देने का नैतिक अधिकार भी है।
सरकारी भ्रष्टाचार को कम करने के मामले में हमारे देश का यदि खराब रिकार्ड है तो इसके लिए हमारे हुकमरान ही जिम्मेदार रहे हैं। पर यह भ्रष्टाचार रक्षा खरीद मामलों में भी अपना असर दिखा रहा है जो देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक बात है। हाल में यह भी खबर आई थी कि मुम्बई के ताज होटल आदि पर हुए आतंकी हमले के समय हमारे पुलिस अफसरों ने जो बुलेट प्रूफ जैकेट पहन रखे थे, वे घटिया थे क्योंकि उसकी खरीद में घोटाला हुआ था। सोफमा जैसी बेहतर तोप को छोड़कर हमने बोफर्स तोप खरीदी थी, यह बात तो जगजाहिर है। पर इसके अलावा बहुत सी बातें जगजाहिर नहीं होतीं और बड़े बड़े घोटाले पलते रहते हैं। इससे हमारी रक्षा तैयारियां पीड़ित होती है।
भले अब हम सन 1962 की स्थिति में नहीं हैं जब हमारी चीन से शर्मनाक हार हुई थी। पर हमें जो चीन तक पहुंचना चाहिए था, हम वह काम भी नहीं कर पा रहे हैं तो इसके पीछे विभिन्न सरकारी स्तरों पर व्याप्त भीषण भ्रष्टाचार ही है। इस समस्या के कोढ़ में खाज का काम करती है उस भीषण भ्रष्टाचार के प्रति हमारे यहां की विभिन्न सरकारों व नेताओं की भारी सहिष्णुता।
कई बार यह कहा जा चुका है कि रक्षा मामलों में हमारी बदतर तैयारियों ने इस देश को विदेशी हमलावरों के समक्ष लाचार भी बना दिया था।
मध्य युग में बाबर कीे फौज में तोप थी तो राणा सांगा के सैनिकों के पास महज तलवारें और भालें। युद्ध में बाबर की ओर से एक तोप चलती थी और अनेक राजपूत वीर , तत्काल वीर गति को प्राप्त कर जाते थे। एक बार फिर तोप के सामने तलवार लेकर खड़े हो जाने के लिए सैनिकों की जमात तैयार हो जाती थी।
बाद के दिनों में भी इस देश में शाहजहां ने ताज महल और विशाल किलों के निर्माण में समय, शक्ति व धन तो खूब लगाये जबकि उसे देश की हमलावरों से रक्षा के लिए नेवी पर भी खर्च करना चाहिए था। हमलावर समुद्री मार्ग से भारत आये थे।
आज जब भारत का अपने पड़ोस से अच्छा संबंध नहीं है तो हमारी तैयारी भी ऐसी होनी चाहिए ताकि दुश्मन हमारे खिलाफ कोई खिलवाड़ करने से पहले थोड़ा रुक कर सोंचें। परमाणु संपन्न देश बन जाने के कारण भारत की सैनिक धाक जरूर बढ़ी है। पर वही काफी नहीं है। हमें आर्थिक रूप से भी एक संपन्न देश बनना पड़ेगा। इसके लिए भ्रष्टाचार पर काफी हद तक काबू पाना होगा। भ्रष्टाचार कम होने से रक्षा तैयरियों में भी बेहतरी आएगी। साथ ही देश का आर्थिक स्वास्थ्य भी सुधरेगा। गांवों में भी जो व्यक्ति आर्थिक रूप से संपन्न होता है, उसे उसके विरोधी भी जल्दी उससे नहीं उलझते।
चीन का मन इसलिए भी बढ़ा रहता है क्योंकि भारत ने आजादी के बाद खुद को बुलंद नहीं बनाया। अब भी यहां 84 करोड़ लोग औसतन बीस रुपये रोज पर किसी तरह पेट को पीठ से अलग रखने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। दूसरी ओर इस देश में धनपशुओं, कालाबाजारियों, करोड़पति-अरबपति नेताओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इस देश का भारी धन विदेशी बैंकों की शोभा बढ़ा रहे हैं। ऐसे में चीन की निंदा को कबीर तरह हम लें तो हमारा ही भला होगा।
(दैनिक ‘जागरण’ पटना संस्करण:16 फरवरी 2010 से साभार)
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