‘इस्लाम का गाजी कुफ्र शिकन, मेरा शेर ओसामा बिन लादेन।’
2001 में पटना और लखनऊ में सिमी ने अपने समर्थकों के बीच एक मैगजीन बांटी थी। उसमें उपर्युक्त शेर लिखा हुआ था।
सिमी 1977 में अपने गठन के समय से ही लगातार विवादास्पद रहा। उसने कई बार यह घोषणा की कि वह हथियार के बल पर पूरी दुनिया में इस्लाम का शासन कायम करना चाहता है। आश्चर्य है कि इसके बावजूद इस देश के कई बुद्धिजीवी और अनेक नेता सिमी को छात्रों का निर्दोष संगठन बताते रहे।
‘कुरान हमारा संविधान’
जब 1986 में सिमी ने ‘इस्लाम के जरिए भारत की मुक्ति’ का नारा दिया तो ‘जमात ए इस्लामी’ ने सिमी से अपना संबंध पूरी तरह तोड़ लिया। याद रहे कि सिमी का गठन ‘जमात ए इस्लामी’ हिंद के छात्र संगठन के रूप में हुआ था।
2001 में सिमी पर प्रतिबंध लग जाने के बाद सिमी के कुछ प्रमुख लोगों ने मिलकर इंडियन मुजाहिद्दीन बना लिया। पर उसके कई सदस्यों के नाम के साथ सिमी जुड़ा रहा। क्योंकि उनके खिलाफ के मुकदमों में सिमी का नाम भी जुड़ा रहा।
प्रतिबंध के बाद भी बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ बड़े राजनीतिक नेतागण कई वर्षों तक सिमी को निर्दोष संगठन बताते रहे। आरोप लगा कि वोट के लिए वे नेता ऐसा करते रहे। इससे भी भाजपा को राजनीतिक लाभ मिला।
‘लोकतांत्रिक तरीके से इस्लामिक शासन संभव नहीं’
याद रहे कि 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में एक साथ 21 बम विस्फोट हुए थे जिनमें 56 लोगों की जानें गयीं थीं। इंडियन मुजाहिदीन ने विस्फोट की जिम्मेदारी ली थी। याद रहे कि सिमी के सदस्य ही आई.एम. में सक्रिय हो गये थे।
‘मंदिरों को नष्ट कर वहां मस्जिद बना देंगे’
भोपाल की जेल से भागे सिमी के सदस्यों की मौत असली मुठभेड़ में हुई या नकली ? यह एक अलग सवाल है। इस पर तरह -तरह की बातें आती रहेंगी और पहले की तरह ही ऐसे विवाद से राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश राजनीतिक दल करते रहेंगे।
एक नवंबर 2016 को प्रभात खबर में प्रकाशित
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