रविवार, 16 जुलाई 2017

इस गरीब बिहार में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा है भी या नहीं ?

ऊपरी तौर पर तो अब यह लग रहा है कि बिहार का सत्ताधारी महागठबंधन बिखराव के कगार पर है, पर राजनीति में कभी भी कुछ भी संभव है। इस बीच कोई दूसरा मोड़ भी आ सकता है। अगले कुछ दिन  महत्वपूर्ण होंगे। तब सब कुछ साफ हो जाएगा।

ताजा टकराव उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के इस्तीफे की मांग को लेकर है। पर क्या जदयू और राजद के बीच मतभेद का सिर्फ यही कारण है ? या फिर पहले से ही कुछ मुद्दों पर महागठबंधन के घटक दलों में भीतर -भीतर टकराव जारी था ? क्या वह राजनीतिक शैलियों का टकराव नहीं रहा है ?

क्या ताजा विवाद ऊंट की पीठ पर अंतिम तिनके के रूप में सामने आया है? पता नहीं। आने वाले दिन इन सवालों का जवाब दे सकते हैं।

याद रहे कि गठबंधन में टूट के बाद आरोप-प्रत्यारोपांे का दौर शुरू होता है। उस दौरान बहुत सारी अनकही बातें सामने आती हैं। इस मामले में वह नौबत आएगी ही, ऐसा यहां नहीं कहा जा रहा है। पर नहीं ही आएंगी, यह भी तय नहीं है।

यदि जदयू और राजद के बीच टकराव ऐसे ही जारी रहा तो आने वाले दिनों में कुछ भीतरी बातें भी खुल कर सामने आ ही सकती हैं। लगता है कि मूलतः यह शैलियों के बीच के टकराव की समस्या है। राजद और जदयू की शैलियों पर क्रमशः लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की छाप रही है। वैसे नीतीश सरकार के वरिष्ठ मंत्री और जदयू नेता बिजेंद्र प्रसाद यादव का यह सवाल एक हद तक सही है कि जब जदयू और राजद के बीच समझौता हुआ था तब नहीं जानते थे कि लालू चार्जशीटेड हैं?

पर सवाल सिर्फ लालू प्रसाद का ही नहीं है। अब तो नीतीश कुमार के बगल में बैठने वाले उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का भी है। याद रहे कि लालू प्रसाद के दोनों पुत्र तेजस्वी और तेज प्रसाद नीतीश मंत्रिमंडल में हैं।
रेलवे के होटलों की नीलामी जिसके नाम हुई, उसी व्यापारी से पटना में जमीन लेने का आरोप लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव पर लगा है। इस मामले में सी.बी.आई. ने इन तीनों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है।

इस पर जब भाजपा ने तेजस्वी के इस्तीफे की मांग की तो जदयू ने कहा कि जिन पर आरोप है, वे अपने जवाब से जनता को संतुष्ट करें। जदयू का इशारा तेजस्वी की ओर है। तेजस्वी और राजद अपने ढंग से जवाब दे रहे हैं। राजद ने कहा है कि तेजस्वी निर्दोष हैं और वह इस्तीफा नहीं देंगे। अब देखना है कि तेजस्वी के बारे में राजद के इस जवाब से जदयू संतुष्ट होता भी है या नहीं। उम्मीद तो कम है।  

तेजस्वी के इस्तीेफे की संभावना से साफ इनकार के बाद अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर यह निर्भर है कि वह तेजस्वी सहित राजद खेमे के मंत्रियों से खुद को अलग कर लेने के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हैं या तेजस्वी को बर्खास्त करने की राज्यपाल से सिफारिश करते हैं। वह घड़ी आने से पहले इस बीच जितने दिन दागी उपमुख्यमंत्री के साथ सरकार चलाएंगे, उतने ही दिन नीतीश की छवि पर प्रश्न चिह्न बना रहेगा।
वैसे राजद से नाता तोड़ने की स्थिति में भाजपा नीतीश की सरकार को बाहर से समर्थन देने को तैयार है। अब फैसला नीतीश को ही करना है। 

इस बीच महागठबंधन के नेताओं के बीच भ्रष्टाचार के सवाल पर बहस शुरू हो गयी है। एक लालू समर्थक नेता और पूर्व जदयू सांसद शिवानंद तिवारी ने सवाल किया है कि क्या नीतीश के साथ बैठने वाले नेता हरिश्चंद्र की औलाद हैं ?

यानी राजद का यह तर्क है कि जब आपके साथ भी दागी लोग मौजूद ही हैं तो हमारे नेता पर प्राथमिकी दर्ज होने मात्र से इस्तीफा क्यों मांग रहे हैं? राजद का यह भी तर्क है कि भाजपा जब लालू परिवार को जेल भिजवा देगी तो नीतीश कुमार को मसलने में उसे कितना समय लगेगा।

पर जदयू का तर्क है कि खुद नीतीश कुमार पर कोई दाग नहीं है और वह अपनी सरकार की छवि साफ-सुथरी रखना चाहते हैं। इससे कोई समझौता नहीं होगा, चाहे सरकार रहे या जाए।

दरअसल राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार भ्रष्टाचार के आरोपों के मामले में ‘गुण’ के साथ-साथ ‘मात्रा’ का भी अब सवाल है। भ्रष्टाचार के आरोपी को  सहने की क्षमता अलग -अलग नेताओं की अलग -अलग रही है। इस मामले में नीतीश की तो बहुत कम है। दरअसल हाल के दिनों में लालू परिवार के खिलाफ जितने घोटालों की खबरें सामने आती जा रही  हैं, उनको यदि जांच एजेंसियां तार्किक परिणति तक पहुंचाने लगंेगी तो लालू परिवार के अनेक सदस्य जांच के दायरे और न्याय के कठघरे में होंगे।

ऐसे में सवाल यह है कि एक ऐसी पार्टी के साथ मिलकर साफ छवि वाले नीतीश, सरकार चलाएंगे जिस दल के अधिकतर प्रमुख नेता जांच के घेरे में हो ? जदयू के सामने यह एक बड़ा सवाल है। यदि सरकार चलाएंगे तो नीतीश की छवि पर उसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। यदि छवि बची रहेगी तो आगे भी नीतीश मुख्यमंत्री बन सकते हैं। यदि वही नहीं रहेगी तो फिर क्या होगा ?

पर इस राजद-जदयू मुठभेड़ में जदयू के ही दो वरिष्ठ नेता नीतीश से अलग राय रखते हैं। बिजेंद्र प्रसाद यादव के बयान का चुनावी राजनीति की नजर में भी खास महत्वपूर्ण है। उधर जदयू सांसद शरद यादव ने भी इस मामले में जदयू की लाइन से अलग राह पकड़ ली है। शरद-बिजेंद्र की लाइन पर जदयू के और कितने विधायक हैं ? यह देखना दिलचस्प होगा। क्या इन दोनों नेताओं पर अपने ‘खास’ मतदाताओं की ओर से कोई दबाव है? क्या उन मतदाताओं की सहानुभूति लालू परिवार के साथ है ?

यदि ऐसा है तब तो बिहारी समाज में उसकी प्रतिक्रिया भी संभव है। न्यूटन का सिद्धांत लागू हो सकता है। इसकी प्रतिक्रिया राजद और कांग्रेस विधायक दलों में भी हो सकती है। फिर इस राज्य की अगली राजनीति कुछ अलग ढंग की होगी।

इसी माहौल में इस बीच यदि बिहार विधानसभा के मध्यावधि चुनाव की नौबत आ जाए तो फिर कैसे नतीजे आएंगे ? मध्यावधि चुनाव की आशंका जाहिर करने का कारण मौजूद हैं। मौजूदा महागठबंधन यदि टूटेगा तो नया गठबंधन बन सकता है। इस बनने-बिगड़ने के क्रम में यह भी संभव है कि कुछ विधायक दलों में भी छोटी-मोटी टूट-फूट हो। फिर तो राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति बन सकती है। वैसी स्थिति में विधानसभा के मध्यावधि चुनाव की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है।

यदि चुनाव होगा तो उसके नतीजों से इस बात का पता चल जाएगा कि इस गरीब प्रदेश बिहार के आम मतदातागण भ्रष्टाचार और अपराध को कितना बुरा मानते हैं। या फिर इन दोनों तत्वों को वे राजनीति का अनिवार्य अंग मानते हैं। चुनाव नतीजे के जरिए इस सवाल का भी जवाब मिल जाएगा कि मतदातागण राजनीति और प्रशासन में भ्रष्टाचार को दाल में नमक के बराबर ही बर्दाश्त करेंगे या अतिशय भ्रष्टाचार से भी उन्हें कोई एतराज नहीं है। सामाजिक न्याय, धर्म निरपेक्षता, सुशासन और स्वच्छ छवि के भी सवाल उठंेगे। वे भी मतदाताओं की कसौटी पर होंगे। याद रहे कि इन सभी तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले दल और नेतागण बिहार की राजनीति में अलग -अलग अपनी उपस्थिति बनाये हुए हैं।

बिहार में यह सवाल भी उठता रहा है कि आजादी के तत्काल बाद के कुछ सत्ताधारी नेतागण जब लूट रहे थे तो इतना हंगामा क्यों नहीं हुआ ? मीडिया तथा सवर्ण शक्तियां तब क्यों चुप थीं ? अब क्यों हंगामा हो रहा है? पर मौजूदा भ्रष्टाचार पर तो एतराज जदयू को भी है जो पिछड़ा नेतृत्व वाली पार्टी है। पिछड़ा नेतृत्व जरूर है, पर जदयू में विभिन्न सामाजिक जमातें अन्य दलों की अपेक्षा बेहतर अनुपात में उपस्थित हैं।


( 15 जुलाई 2017 के राष्ट्रीय सहारा के ‘हस्तक्षेप’ में प्रकाशित)

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