इन दिनों ‘चीनी छोड़ो अभियान’ की चर्चा है। पटना के बड़े चिकित्सकों के इससे जुड़ जाने से इसकी गंभीरता और भी बढ़ी है। लोगों पर इसका अच्छा असर दिख रहा है। पर एक दिक्कत आ रही है। सवाल है ंकि चीनी के बदले में हम जो गुड़ खरीदते हैं, वह कितना शुद्ध है!
कभी -कभी नकली और हानिकारक गुड़ कृत्रिम तरीके से बनाते हुए मिलावटखोर टी.वी. चैनलों पर नजर आते रहते हैं। ‘चीनी छोड़ो अभियान’ के साथ -साथ भूख से ‘कम खाओ अभियान’ की भी आज जरूरत है।
पांच साल पहले हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार दुनिया भर में अति भोजन जनित मोटापा की समस्या, कुपोषण और भुखमरी की अपेक्षा अधिक बड़ी समस्या बन चुकी थी। उससे पहले बात उल्टी थी। आज तो स्थिति और भी खराब बताई जा रही है।
भारत के बारे में एक पुरानी कहावत है कि जितने लोग अति भोजन से मरते हैं, उससे कम ही लोग भोजन के अभाव में मरते हैं। मैंने खुद अपने कई परिचितों को अति भोजन का अभ्यस्त पाया। उनमें से शायद ही कोई व्यक्ति अपने शरीर की नियमित डाक्टरी या पैथोलाॅजिकल जांच कराता था। उनमें से कई व्यक्ति कम ही उम्र में दुनिया से उठ गए।
अस्सी के दशक की बात है। न्यूयार्क टाइम्स के नई दिल्ली ब्यूरो चीफ माइकल टी. काॅफमैन पटना आए थे। उनके साथ भोजन का मौका मिला था। उन्होंने सिर्फ तली मछली के कुछ टुकड़े खाए। इधर मैंने चार रोटियों के साथ-साथ और भी बहुत कुछ खा लिया। बाद में मैंने अपने खानपान पर विचार किया। देखा कि मैं अति भोजन का आदी हो गया था। बहुत प्रयास के बाद आदत छूटी। आज यदि मैं एक रोटी से अधिक खा लूं तो असहज महसूस करता हूं। इसके बावजूद मैं बिना थके घंटांे काम करता हूं।
नियमित पैथोलाजिकल जांच कराने और अति भोजन से बचने का अभियान यदि बड़े डाॅक्टर चलाएं तो उसका अच्छा असर पड़ेगा। पर साथ-साथ राज्य सरकार कुकुरमुत्ते की तरह उग आए मानकरहित पैथालाजिकल जांच केंद्रों पर ताले लगवाए। अच्छा है कि पटना हाईकोर्ट इस समस्या पर गंभीर है।
अतिवादियों से दूर ही रहें नेता
अहमदाबाद विस्फोट के आरोपित तौसीफ का संबंध सिमी की बिहार शाखा का प्रधान रह चुका गुलाम सरवर से था। याद रहे कि तौसीफ को हाल में गया से गिरफ्तार किया गया। तौसीफ पर आतंकवादी तैयार करने का आरोप है।
सिमी कैसा संगठन था, इस बात का पता एक बार फिरं देश को चला है। उसका घोषित उद्देश्य हथियारों के बल पर भारत में इस्लामिक शासन कायम करना था। जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन के रूप में 1977 में सिमी का गठन अलीगढ़ में हुआ था। पर जब सिमी की अतिवादी गतिविधियों की खबर जमात-ए-इस्लामी को मिली तो उसने सिमी से अपना संबंध तोड़ लिया।
सिमी को 2001 में प्रतिबंधित किया गया। बाद में सिमी के लोगों ने मिल कर इंडियन मुजाहिद्दीन बना लिया है। इन दिनों आई.एम. किस तरह विस्फोटक कार्रवाइयां कर रहा है, यह हर जागरूक नागरिक को मालूम है। जिसे जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन से दुत्कार दिया, उसे हमारे देश के कुछ तथाकथित ‘सेक्युलर’ नेताओं ने अपना लिया।
करीब 15 साल पहले सिमी के समर्थन में कई राजनीतिक दल और उनके बड़े नेता सार्वजनिक रूप से उठ खड़े हुए थे। उनमें बिहार और उत्तर प्रदेश के चार बड़े नेता प्रमुख थे। क्या वे नेता लोग जनता से इस बात के लिए अब माफी मांगेंगे कि सिमी को पहचानने में उनसे गलती हुई थी ? दरअसल ऐसी गलतियों के कारण ही भाजपा इस देश में मजबूत हुई है। पता नहीं माफी मांगेंगे या नहीं , पर कुछ ऐसे ‘सेक्युलरिस्ट’ नेतागण आज भी उसी तरह की गलतियां दुहरा रहे हैं।
डाॅ. स्वामी की चेतावनी
भाजपा के राज्यसभा सदस्य डाॅ. सुब्रमणियन स्वामी ने कहा है कि मैं अपनी जीवनी लिखूंगा और उसके बाद कई लोगों की प्रतिष्ठा समाप्त हो जाएगी। कौन -कौन लोग उनके दिमाग में हैं, यह तो वे ही जानते हैं। पर कुछ अनुमान जरूर लगाया जा सकता है। यानी राजनीतिक क्षेत्र के कुछ दिग्गज।
दरअसल डाॅ. स्वामी ने मनमोहन ंिसंह के शासनकाल में अनेक महाघोटालों को उजागर किया था। उन्होंने केस करके कई बड़ी हस्तियों को जेल भिजवाया। इस तरह 2014 चुनाव से पहले उन्होंने राजग के लिए राजनीतिक जमीन मजबूत की थी।
यानी 2014 की जीत में कुछ योगदान तो स्वामी का भी रहा। इसके एवज में उन्हें कैबिनेट मंे एक सीट तो मिलनी ही चाहिए थी। इसकी उम्मीद वह कर रहे थे। पर उनका दबंग व्यक्तित्व और कुछ मामलों में उनकी अतिवादी सोच के कारण वह नहीं हो सका।
उधर मोदी कैबिनेट में डाॅ. स्वामी के एक कट्टर विरोधी मजबूत स्थिति में हैं। अतः भविष्य में भी कोई चांस नहीं लगता। इस पृष्ठभूूमि में यदि डाॅ. स्वामी कोई विस्फोटक किताब लिखकर कुछ लोगों को बेनकाब करते हैं तो इसमें किसी को एतराज नहीं होना चाहिए। आम लोगों को भी यह जानने का हक है कि किस दल का कौन नेता देश की सेवा कर रहा है या कोई और धंधा। यह सब बताने की हिम्मत कम ही लोग में है। उन साहसी लोगों में डाॅ. स्वामी भी हंै।
बुलेट ट्रेन तो ठीक, पर आम यात्रियों की भी सुध लीजिए!
इस देश में बुलेट ट्रेन आ रही है। कुछ लोगांे को वह भी चाहिए। सरकार तो सबके लिए होती है। पर अब रेल ंत्री को चाहिए कि वह आम यात्रियों पर भी ध्यान दें। पिछली बार जब मैंने रेल यात्रा की थी तो यह अनुभव हुआ कि सेकेंड ए.सी. के शौचालय का दरवाजा टूटा हुआ है। किसी तरह काम चलाया।
अन्य समस्याएं अनेेक हैं। मोदी सरकार के आने के बाद लोगांे में उम्मीद बंधी थी। पर पता नहीं क्यों चीजें नहीं सुधर रही हैं।
क्यों नहीं सुधर रही हैं, उस संबंध में एक खबर जवाब देगी। हजारों गैंग मैन रेलवे के बड़े अफसरों की निजी सेवा मंे हैं और उधर पटरियां असुरक्षित हैं। दुर्घटनाएं हो रही हैं। जिस महकमे में ऐसे -ऐसे अफसर हों, वहां किस तरह की उम्मीद आप कर सकते हैं?
एक भूली बिसरी याद
प्रधानमंत्री बनने से पहले तक लाल बहादुर शास्त्री के पास अपनी कोई निजी कार नहीं थी। याद रहे कि उससे पहले वे देश के गृहमंत्री और रेलमंत्री रह चुके थे। प्रधानमत्री बनने के बाद परिवार के सदस्यों ने उनसे कहा कि कम से कम अब तो एक अपनी कार होनी चाहिए। शास्त्री जी मान गए। उन्होंने अपना बैंक खाता चेक किया। उसमें 7 हजार रुपए थे। फिएट कार की कीमत उन दिनों 12 हजार रुपए थी। उन्होंने 5 हजार रुपए बैंक से कर्ज लिया।
कर्ज वापस करने से पहले ही शास्त्री जी का निधन हो गया। परवर्ती प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा कि इस कर्ज को हम माफ कर देना चाहते हैं। दिवंगत नेता की विधवा ललिता शास्त्री ने मना कर दिया। पेंशन के पैसे से कर्ज का भुगतान हुआ।
और अंत में
स्वच्छ भारत अभियान का काम जहां से शुरू करना चाहिए था, वहां से नहीं हो रहा है। पहले तो देखना चाहिए कि देश के महानगरों और नगरों में जो वेतन भोगी सफाईकर्मी हैं, क्या उनकी संख्या पर्याप्त हैं ?
कार्यरत सफाई कर्मियों में से कितने कर्मी अफसरों के घरेलू नौकर बने हुए हैं और कितने सरजमीन सक्रिय हंै ? जिन सफाईकर्मियों को वेतन मिल रहे हैं, उनमें से कितने बोगस हैं और कितने असली ?
सफाई के काम के लिए ठीके पर लगाई गयी निजी एजेंसियों के साथ निकायों के अफसरों के घूसखोरी के रिश्ते की खबर में कितनी सच्चाई है ?
कभी -कभी नकली और हानिकारक गुड़ कृत्रिम तरीके से बनाते हुए मिलावटखोर टी.वी. चैनलों पर नजर आते रहते हैं। ‘चीनी छोड़ो अभियान’ के साथ -साथ भूख से ‘कम खाओ अभियान’ की भी आज जरूरत है।
पांच साल पहले हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार दुनिया भर में अति भोजन जनित मोटापा की समस्या, कुपोषण और भुखमरी की अपेक्षा अधिक बड़ी समस्या बन चुकी थी। उससे पहले बात उल्टी थी। आज तो स्थिति और भी खराब बताई जा रही है।
भारत के बारे में एक पुरानी कहावत है कि जितने लोग अति भोजन से मरते हैं, उससे कम ही लोग भोजन के अभाव में मरते हैं। मैंने खुद अपने कई परिचितों को अति भोजन का अभ्यस्त पाया। उनमें से शायद ही कोई व्यक्ति अपने शरीर की नियमित डाक्टरी या पैथोलाॅजिकल जांच कराता था। उनमें से कई व्यक्ति कम ही उम्र में दुनिया से उठ गए।
अस्सी के दशक की बात है। न्यूयार्क टाइम्स के नई दिल्ली ब्यूरो चीफ माइकल टी. काॅफमैन पटना आए थे। उनके साथ भोजन का मौका मिला था। उन्होंने सिर्फ तली मछली के कुछ टुकड़े खाए। इधर मैंने चार रोटियों के साथ-साथ और भी बहुत कुछ खा लिया। बाद में मैंने अपने खानपान पर विचार किया। देखा कि मैं अति भोजन का आदी हो गया था। बहुत प्रयास के बाद आदत छूटी। आज यदि मैं एक रोटी से अधिक खा लूं तो असहज महसूस करता हूं। इसके बावजूद मैं बिना थके घंटांे काम करता हूं।
नियमित पैथोलाजिकल जांच कराने और अति भोजन से बचने का अभियान यदि बड़े डाॅक्टर चलाएं तो उसका अच्छा असर पड़ेगा। पर साथ-साथ राज्य सरकार कुकुरमुत्ते की तरह उग आए मानकरहित पैथालाजिकल जांच केंद्रों पर ताले लगवाए। अच्छा है कि पटना हाईकोर्ट इस समस्या पर गंभीर है।
अतिवादियों से दूर ही रहें नेता
अहमदाबाद विस्फोट के आरोपित तौसीफ का संबंध सिमी की बिहार शाखा का प्रधान रह चुका गुलाम सरवर से था। याद रहे कि तौसीफ को हाल में गया से गिरफ्तार किया गया। तौसीफ पर आतंकवादी तैयार करने का आरोप है।
सिमी कैसा संगठन था, इस बात का पता एक बार फिरं देश को चला है। उसका घोषित उद्देश्य हथियारों के बल पर भारत में इस्लामिक शासन कायम करना था। जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन के रूप में 1977 में सिमी का गठन अलीगढ़ में हुआ था। पर जब सिमी की अतिवादी गतिविधियों की खबर जमात-ए-इस्लामी को मिली तो उसने सिमी से अपना संबंध तोड़ लिया।
सिमी को 2001 में प्रतिबंधित किया गया। बाद में सिमी के लोगों ने मिल कर इंडियन मुजाहिद्दीन बना लिया है। इन दिनों आई.एम. किस तरह विस्फोटक कार्रवाइयां कर रहा है, यह हर जागरूक नागरिक को मालूम है। जिसे जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन से दुत्कार दिया, उसे हमारे देश के कुछ तथाकथित ‘सेक्युलर’ नेताओं ने अपना लिया।
करीब 15 साल पहले सिमी के समर्थन में कई राजनीतिक दल और उनके बड़े नेता सार्वजनिक रूप से उठ खड़े हुए थे। उनमें बिहार और उत्तर प्रदेश के चार बड़े नेता प्रमुख थे। क्या वे नेता लोग जनता से इस बात के लिए अब माफी मांगेंगे कि सिमी को पहचानने में उनसे गलती हुई थी ? दरअसल ऐसी गलतियों के कारण ही भाजपा इस देश में मजबूत हुई है। पता नहीं माफी मांगेंगे या नहीं , पर कुछ ऐसे ‘सेक्युलरिस्ट’ नेतागण आज भी उसी तरह की गलतियां दुहरा रहे हैं।
डाॅ. स्वामी की चेतावनी
भाजपा के राज्यसभा सदस्य डाॅ. सुब्रमणियन स्वामी ने कहा है कि मैं अपनी जीवनी लिखूंगा और उसके बाद कई लोगों की प्रतिष्ठा समाप्त हो जाएगी। कौन -कौन लोग उनके दिमाग में हैं, यह तो वे ही जानते हैं। पर कुछ अनुमान जरूर लगाया जा सकता है। यानी राजनीतिक क्षेत्र के कुछ दिग्गज।
दरअसल डाॅ. स्वामी ने मनमोहन ंिसंह के शासनकाल में अनेक महाघोटालों को उजागर किया था। उन्होंने केस करके कई बड़ी हस्तियों को जेल भिजवाया। इस तरह 2014 चुनाव से पहले उन्होंने राजग के लिए राजनीतिक जमीन मजबूत की थी।
यानी 2014 की जीत में कुछ योगदान तो स्वामी का भी रहा। इसके एवज में उन्हें कैबिनेट मंे एक सीट तो मिलनी ही चाहिए थी। इसकी उम्मीद वह कर रहे थे। पर उनका दबंग व्यक्तित्व और कुछ मामलों में उनकी अतिवादी सोच के कारण वह नहीं हो सका।
उधर मोदी कैबिनेट में डाॅ. स्वामी के एक कट्टर विरोधी मजबूत स्थिति में हैं। अतः भविष्य में भी कोई चांस नहीं लगता। इस पृष्ठभूूमि में यदि डाॅ. स्वामी कोई विस्फोटक किताब लिखकर कुछ लोगों को बेनकाब करते हैं तो इसमें किसी को एतराज नहीं होना चाहिए। आम लोगों को भी यह जानने का हक है कि किस दल का कौन नेता देश की सेवा कर रहा है या कोई और धंधा। यह सब बताने की हिम्मत कम ही लोग में है। उन साहसी लोगों में डाॅ. स्वामी भी हंै।
बुलेट ट्रेन तो ठीक, पर आम यात्रियों की भी सुध लीजिए!
इस देश में बुलेट ट्रेन आ रही है। कुछ लोगांे को वह भी चाहिए। सरकार तो सबके लिए होती है। पर अब रेल ंत्री को चाहिए कि वह आम यात्रियों पर भी ध्यान दें। पिछली बार जब मैंने रेल यात्रा की थी तो यह अनुभव हुआ कि सेकेंड ए.सी. के शौचालय का दरवाजा टूटा हुआ है। किसी तरह काम चलाया।
अन्य समस्याएं अनेेक हैं। मोदी सरकार के आने के बाद लोगांे में उम्मीद बंधी थी। पर पता नहीं क्यों चीजें नहीं सुधर रही हैं।
क्यों नहीं सुधर रही हैं, उस संबंध में एक खबर जवाब देगी। हजारों गैंग मैन रेलवे के बड़े अफसरों की निजी सेवा मंे हैं और उधर पटरियां असुरक्षित हैं। दुर्घटनाएं हो रही हैं। जिस महकमे में ऐसे -ऐसे अफसर हों, वहां किस तरह की उम्मीद आप कर सकते हैं?
एक भूली बिसरी याद
प्रधानमंत्री बनने से पहले तक लाल बहादुर शास्त्री के पास अपनी कोई निजी कार नहीं थी। याद रहे कि उससे पहले वे देश के गृहमंत्री और रेलमंत्री रह चुके थे। प्रधानमत्री बनने के बाद परिवार के सदस्यों ने उनसे कहा कि कम से कम अब तो एक अपनी कार होनी चाहिए। शास्त्री जी मान गए। उन्होंने अपना बैंक खाता चेक किया। उसमें 7 हजार रुपए थे। फिएट कार की कीमत उन दिनों 12 हजार रुपए थी। उन्होंने 5 हजार रुपए बैंक से कर्ज लिया।
कर्ज वापस करने से पहले ही शास्त्री जी का निधन हो गया। परवर्ती प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा कि इस कर्ज को हम माफ कर देना चाहते हैं। दिवंगत नेता की विधवा ललिता शास्त्री ने मना कर दिया। पेंशन के पैसे से कर्ज का भुगतान हुआ।
और अंत में
स्वच्छ भारत अभियान का काम जहां से शुरू करना चाहिए था, वहां से नहीं हो रहा है। पहले तो देखना चाहिए कि देश के महानगरों और नगरों में जो वेतन भोगी सफाईकर्मी हैं, क्या उनकी संख्या पर्याप्त हैं ?
कार्यरत सफाई कर्मियों में से कितने कर्मी अफसरों के घरेलू नौकर बने हुए हैं और कितने सरजमीन सक्रिय हंै ? जिन सफाईकर्मियों को वेतन मिल रहे हैं, उनमें से कितने बोगस हैं और कितने असली ?
सफाई के काम के लिए ठीके पर लगाई गयी निजी एजेंसियों के साथ निकायों के अफसरों के घूसखोरी के रिश्ते की खबर में कितनी सच्चाई है ?
(प्रभात खबर पटना में 22 सितंबर 2017 को प्रकाशित)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें