मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024

   जेहादी तत्व अब जल्दीबाजी में ?

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  सांप्रदायिक हिंसक मानसिकता को 

    अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में देखिए

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   सुरेंद्र किशोर

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   बहराइच(यू.पी.) के सांप्रदायिक दंगे पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि 

‘‘इसके लिए शासन-प्रशासन जिम्मेदार है।

उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘चुनाव आना और साम्प्रदायिक माहौल बिगड़ जाना ,यह संयोगवश नहीं है।

हार के डर से हिंसा का सहारा लेना किसकी पुरानी रणनीति है ?

यह उप चुनाव की दस्तक है।’’

   याद रहे कि दुर्गा मूर्ति विसर्जन जुलूस को रास्ते में ही रोके जाने और पथराव किए जाने के बाद बहराइच में दंगे हुए।इस घटना को दुनिया के अन्य हिस्सों में जारी ऐसी ही घटनाओं से काट कर नहीं देखा जा सकता।

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 कल की एक खबर का शीर्षक है--

‘‘बांग्लादेश में अब मूर्ति विसर्जन जुलूस को बनाया गया निशाना।’’

बांग्ला देश में न तो भाजपा-आर.एस.एस.की कोई शाखा है और वहां न ही कोई चुनाव होने वाला है।

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 इसी अगस्त-सितंबर में यूरोप से जेहाद विरोधी और जेहादी गतिविधियों की कई खबरें आईं।

एक खबर 4 अगस्त, 24 को आई जिसका शीर्षक है--

‘‘पी.एम.स्टारमर ने इमरजेंसी कैबिनेट बुलाई।

ब्रिटेन में प्रवासी विरोधी दंगे...हाई अलर्ट।’’

याद रहे कि मुस्लिम प्रवासियों ने, जो पहले शरणार्थी बनकर वहां गये थे,ब्रिटेन के साउथपोर्ट शहर में पिछले हफ्ते 3 बच्चियों को मौत दे दी।

मौत के बाद मूलवासियों ने हिंसक प्रदर्शन किये।

ब्रिटेन में इससे पहले भी ऐसी घटनाएं होती रही हैं।वहां के मुस्लिम, ब्रिटेन पर जबरन कब्जा करना चाहते हैं।कई मुहल्लों पर उनका कब्जा हो चुका है।लंदन सहित सात नगर निकायों के प्रधान मुस्लिम हैं। 

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5 अगस्त, 24 को ही यह खबर आई--

‘‘13 साल में ब्रिटेन में सबसे बड़ा दंगा-100 लोग गिरफ्तार।’’

वहां कोई चुनाव नहीं होने वाला है।हाल ही में स्टारमर पी.एम. बने हैं।

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27 सितंबर, 24 को रोम से दैनिक भास्कर संवाददाता ताहिर इमरान ने जो खबर भेजी,उसका शीर्षक है--

‘‘इटली समेत 5 देश अवैध प्रवासियों पर सख्त,

इस साल 2 लाख को वापस भेजने की तैयारी।’’

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उधर चीन सरकार कहती है कि ‘‘चीन में इस्लाम को हमारे यानी हमारी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों के अनुकूल होना चाहिए।’’

चूंकि वह संभव नहीं है,इसलिए चीन के 2 करोड़ उइगर मुसलमानों को चीन सुरक्षा बल नियंत्रण मंे रखने के लिए प्रयासरत है।

चीन सरकार यह भी कहती है कि जेहादियों का इलाज हमारी जैसी राजनीतिक व्यवस्था में ही संभव है ,लोकतांत्रिक शासन वाले देश में नहीं है।

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यानी,इन दिनों भारत सहित दुनिया भर में जेहादी, इस्लामिक शासन कायम करने के लिए हिंसक रास्तों का सहारा ले रहे है।आसपास के मुस्लिम देश इजरायल के अस्तित्व को ही समाप्त कर देने के लिए युद्धरत हैं।

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भारत का दुर्भाग्य है कि इस देश के कुछ वोट लोलुप राजनीतिक दल जेहादियों की मंशा को या तो समझ नहीं पा रहे हैं या सब कुछ समझ बुझ कर भी वोट के स्वार्थ में अंधा होकर भारत की एकता और भारतीय अस्मिता को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

 ऐसे तत्वों की पहचान यह है कि वे बहुसंख्यकों की सांप्रदायिक हिंसा का तो जोरदार विरोध करते हैं।किंतु अल्पसख्यकों की जेहादी हिंसा के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलते।यहां तक कि उन लोगों ने बांग्ला देश के हिन्दुओं के साथ जारी जघन्य हिंसा व बलात्कार की घटनाओं की भी निन्दा नहीं की।

बल्कि उल्टे जेहादियों की हिंसा के लिए भाजपा-आर.एस.एस.को ही वे दोषी ठहरा देते हैं।

जबकि पी.एफ.आई.यह खुलेआम एलान करता है कि हम हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देंगे।

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15 अक्तूबर 24    


रविवार, 13 अक्तूबर 2024

 अभियान के पीछे छिपा एजेंडा ?

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कहीं पे निगाहंे, कहीं पर निशाना !

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   भ्रम -1

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सन 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक संसद से पास कराया।

  उसके बाद असददुद्दीन आवैसी अन्य मुस्लिम नेताओं और मुस्लिम वोट लोलुप राजनीतिक दलों ने उसका भारी विरोध किया।

  भ्रम फैलाया गया कि इससे इस देश के मुसलमानों की नागरिकता छीन ली जाएगी।

गृह मंत्री अमित शाह ने तब बार- बार यह कहा कि इस कानून में नागरिकता देने का प्रावधान है,किसी की नागरिकता लेने का नहीं।

  फिर भी जेहादी संगठन पी.एफ.आई.ने शाहीनबाग में दीर्घकालीन धरना दिलवाया।

कांग्रेस सहित तथाकथित सेक्युलर दलों ने धरना स्थल पर जाकर उनका हौसला बढ़ाया।

 तब दिल्ली में दंगाइयों ने भारी हिंसा भी की।याद रहे कि पी.एफ.आई.का लक्ष्य हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देना है।

 उनके हथियारबंद कातिल दस्ते तैयार हो रहे हैं।

 इन दिनों इस देश के अधिकतर मुस्लिम वोट पी.एफ.आई.के -एस.डी.पी.आई.के ही कब्जे में है।बेचारे औवैसी साहब दरकिनार किए जा रहे हैं।

हमारे देश के वोट लोलुप नेताओं को इस बात की कोई चिंता नहीं रही है कि यह देश धर्म निरपेक्ष बना रहता है या इस्लामिक बन जाता है।

  उन्हें तो अपने जीवनकाल में वोट और सत्ता चाहिए।बाद में जो होना होगा ,हो।

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 नागरिकता संशोधन कानून के तहत अफगानिस्तान,बांग्ला देश और पाकिस्तान से आए हिन्दू,सिख,जैन,बौद्ध,पारसी और ईसाई शरणार्थियों को बड़ी संख्या में नागरिकता देने का काम भारत में चल रहा है।

क्या इस क्रम में किसी भारतीय मुस्लिम की नागरिकता इस बीच छीनी गयी ?

बिलकुल नहीं।

यदि छीनी गयी होती तो अब तक न जाने कितनी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी गयी होतीं।

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भ्रम --2

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वक्फ संशोधन विधेयक पर भारतीय संसद में फैसला होना है।

ओवैसी तथा अन्य लोग इस विधेयक का निराधार तर्कों के आधार पर विरोध कर रहे हैं।

हालांकि ओवैसी सार्वजनिक रूप से यह कह स्वीकार (यू ट्यूब देख लीजिए)कर रहे हैं कि यू.पी.में एक लाख 21 हजार वक्फ संपत्ति है।किंतु उनमें से एक लाख 12 हजार संपत्ति पर अधिकार का कोई कागजी सबूत वक्फ बोर्ड के पास नहीं है।मुस्लिम नेता गण और उनके समर्थक दल यह चाहते हैं कि जहां जिस संपत्ति पर वक्फ बोर्ड का कब्जा है,उससे बोर्ड को बेदखल नहीं किया जाये।

याद रहे कि वे संपत्ति वक्फ संशोधन बिल के पास हो जाने और लागू होने के बाद हमसे छिन जाएगी।

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अब तक वक्फ बोर्ड करता यह रहा है कि किसी भी संपत्ति को वह वक्फ संपत्ति घोषित कर देता रहा।

 उस संपत्ति का जो जायज मालिक हैं, उन्हें उसका कानूनी विरोध करने का भी अधिकार नहीं है।ऐसा प्रावधान 1995 में तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने किया।

तमिलनाडु के एक गांव में स्थित 15 सौ साल पुराने एम.चंद्र शेखर स्वामी मंदिर को वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित कर दी ।जबकि इस्लाम का उदय उस मंदिर के निर्माण के बाद हुआ।इसी तरह महाराणा प्रताप परिवार की संपत्ति को भी वक्फ ने अपनी संपत्ति घोषित कर रखी है।

 1995 के कानून में प्रावधान कर दिया गया कि वक्फ बोर्ड जिस किसी संपत्ति को भी अपनी संपत्ति घोषित कर देगा,उसके फैसले के खिलाफ असली मालिक को इस देश के किसी सामान्य कोर्ट में जाने का अधिकार नहीं होगा।उसी  वक्फ के कोर्ट में विचार होगा जिसमें फैसला करने वाले सिर्फ मुस्लिम होंगे।

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यदि मोदी सरकार मौजूदा वक्फ संशोधन बिल संसद से पास कराने में सफल हुई तो जिस वक्फ संपत्ति का कागजी सबूत वक्फ बोर्ड के पास होगा,उस संपत्ति से कोई शक्ति वक्फ बोर्ड को बेदखल नहीं कर सकती।

लेकिन नाजायज कब्जा अब नहीं चलेगा।

चाहे कोई हस्ती धार्मिक भावना उभारे या जो करे।

अब मुस्लिम नेता कह रहे हैं कि मौजूदा वक्फ संशोधन बिल के संसद से पास हो जाने के बाद मस्जिद,मजार और कब्रिस्तान छीन लिये जाएंगे।

जबकि वास्तविकता यह है कि यदि जिस किसी मस्जिद,मजार या कब्रिस्तान की जमीन पर वक्फ बोर्ड का कानूनी हक होगा,कागज होगा,वह कभी कोई उनसे नहीं छीन सकता।

हां,अब यह नहीं होगा कि किसी कागज के बिना दखल कब्जा जारी रहेगा।(याद करिए, कुछ ही साल पहले घुसपैठिए और उनके लाभुक यह कहते थे कि ‘‘हम कागज नहीं दिखाएंगे।’’)

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दरअसल सी.ए.ए.के विरोध के पीछे भी एक छिपा हुआ एजेंडा था।

वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ भी एक छिपा हुआ एजेंडा है।

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13 अक्तूबर 24





  


गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

 विश्व डाक दिवस( 9 अक्तूबर, 24)

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सुरेंद्र किशोर

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लगता है कि इस देश के डाक महकमे में कर्मचारियों की भारी कमी हो गयी है।

यानी, काम अधिक ,हाथ कम।

वैसे भी हमारे शासन तंत्र में काहिलों और इधर-उधर करने वाले लोगों की कमी कभी नहीं रही।

फिर भी पहले डाक विभाग की ओर से उपभोक्ताओं का कुछ अधिक ध्यान रखा जाता था। 

  इन दिनों लोगबाग बताते हैं कि साधारण डाक की डिलेभरी लगभग बंद है।

  रजिस्टर्ड पोस्ट्स की भरसक डिलेभरी हो रही है।

पर,वह भी राम भरोसे।

मैं खुद भुक्तभोगी हूं।

पहले साप्ताहिक पत्रिका ‘‘इंडिया टूडे’’ साधारण डाक से मंगवाता था।शायद ही कोई अंक मिल पाता था।

 लगता है कि डाक कर्मचारियों के घरों में इस पत्रिका के प्रशंसक बहुत हैं।

 तो फिर इंडिया टूडे प्रबंधन ने मुझे अपने खर्चे से स्पीड पोस्ट के जरिए भेजना शुरू किया।फिर भी रेगुलर नहीं।

कभी -कभी सर्कुलेशन डिपार्टमेंट से विनती करके मैं एक -एक महीने के सारे अंक दुबारा एक साथ मंगवाया करता हूं ताकि मेरी निजी लाइब्रेरी में इस पत्रिका के सारे अंक मौजूद रहें।

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  भारत सरकार के संबंधित अफसरों को चाहिए कि वे डाक विभाग की विश्वसनीयता को फिर से बहाल करने का ठोस उपाय करंे।निगरानी तंत्र दुरुस्त करे।लोगों की शिकायतें सुनने का बेहतर प्रबंध हो।

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9 अक्तूबर 24

  

 


शनिवार, 5 अक्तूबर 2024

 भाजपा नेता दिवंगत कैलाशपति मिश्र 

के जन्म दिन पर

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सुरेंद्र किशोर

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मां का महत्व किसे नहीं मालूम ?

मुझे भी मालूम है।

पर,बिहार भाजपा के शीर्ष नेता कैलाशपति मिश्र ने 

इसके महत्व को एक पत्र के जरिए मुझे विशेष रूप से समझाया था।

सन 1994 में मेरी मां के निधन की जानकारी जब 

उन्हें मिली तो उन्होंने एक भावुक पत्र मुझे लिखा।  

कैलाशजी ने लिखा--

‘‘मुझे पता चला है कि आपकी पूजनीया माता जी गोलोकवासी हो गयी हैं।

 मातृ विहीन होने की पीड़ा मैं स्वयं भोग चुका हूं,उससे सहज ही आपकी पीड़ा का अनुमान होता है।

यह हमेशा विश्वास रखना चाहिए कि जिस मां की ममता की स्नेह छाया में व्यक्ति पलता और बढ़ता है,

उस मां का आशीर्वाद दिवंगत होने पर भी परोक्ष रूप से सदा ही मिलता रहता है।

  दिवंगत आत्मा के प्रति मेरी श्रद्धांजलि स्वीकार कीजिए और अपने कर्ममय जीवन में किसी प्रकार की उदासीनता नहीं आने दीजिए,इसी से दिवंगत आत्मा को शांति मिलती है।’’ 

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सन 1994 में मेरी मां ने जिउतिया का उपवास किया था।

यानी, अपनी संतान के दीर्घ जीवन की कामना के क्रम में उसने अपने जीवन पर विराम लगा दिया।

मेरी पत्नी ने उससे कहा था कि आप उपवास मत कीजिए।आपका शरीर अब इस लायक नहीं है।(उसके पेट का एक बार आॅपरेशन हो चुका था।)पर,उसने चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया।

ऐसी होती है मां की ममता !

 उपवास के बाद उसकी जो हालत बिगड़ी तो वह संभल नहीं सकी।

मेरे छोटे भाई नागेंद्र के डाक्टर मित्र डा.विजय कुमार पूरी रात उसे बचाने के लिए जगे रहे।

पर,जो होना था,वह हो गया।

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अब कैलाश जी पर कुछ बातें।

मेरे मित्र सुधीर शर्मा ने अपने फेसबुक वाॅल पर कैलाश जी के बारे में ठीक ही लिखा है--

 ‘‘बिहार भाजपा के लिए अटल,आडवाणी,दीनदयाल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी सब वही थे।’’

 मैंने भी बहुत पहले यह सुन रखा था कि बिहार में जनसंघ को खड़ा करने में कैलाशपति मिश्र,ठाकुर प्रसाद और एक अन्य हस्ती (नाम भूल रहा हूं।)का सबसे अधिक योगदान था।

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यह बात तब की है,जब बिहार की कानून-व्यवस्था भगवान भरोसे थी।

एक दिन मैंने कैलाश जी को अकेले कार से कहीं जाते ओल्ड बाइपास पर देखा।

बाद में मैंने उनके एक करीबी युवा नेता से कहा कि कैलाश जी को अपनी सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए।

युवा नेता ने कहा कि वे अजातशत्रु हैं।उन्हें कुछ नहीं होगा।

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5 अक्तूबर 24

   


गुरुवार, 3 अक्तूबर 2024

      

   आज के ‘राज’ दरबारों में 

   बिदुरों का नितांत अभाव

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        सुरेंद्र किशोर

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मैं 1967 से ही इस देश-प्रदेश की राजनीति और राजनेताओं को देखता-पढ़ता और समझने की कोशिश करता रहा हूं।

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कुछ शीर्ष नेताओं और दलों को अपनी दुर्दशा इसलिए झेलनी पड़ी और पड़ रही है क्योंकि वे अपने दरबार में ‘‘शकुनी’’ को तो सम्मान की जगह दे देते हैं, पर, किसी ‘‘बिदुर’’ को स्थान नहीं देते।

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ठीक ही कहा गया है कि दुनिया की सबसे अधिक मीठी चीज मुंह से नहीं खाई जाती है,बल्कि कान से पी जाती है-वह है  प्रशंसा ! 

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3 अक्तूबर 24


बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

 महात्मा गांधी-लालबहादुर शास्त्री जयंती

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अपने यहां आज मैंने पीपल 

का पौध रोपण किया

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सुरेंद्र किशोर

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 मैंने आज अपने घर के पास पीपल का पौधा लगाया।

  स्कंद पुराण में एक श्लोक है जिसका अर्थ है--

‘‘एक पीपल, एक नीम, एक वट वृक्ष ,दस इमली, तीन खैर, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम का वृक्ष लगाने वालों को नरक का मुंह नहीं देखना पड़ता है।’’

  ध्यान दीजिए, यहां भी पहला नाम पीपल का ही है।

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नीम,आंवला,आम तो हमारे परिसर में पहले से मौजूद हैं।

बाकी के बारे सोचूंगा।यहां या गांव मंे लगेगा।

 पर्यावरण विशेषज्ञ बताते हैं कि जहां हर पांच सौ मीटर की दूरी पर पीपल का एक वृक्ष हो, आॅक्सीजन की वहां कोई कमी नहीं रहेगी।

  यदि आजादी के तत्काल बाद से ही केंद्र व राज्य सरकारें पीपल का पौध रोपण करवातीं तो हमारे यहां पर्यावरण असंतुलन की समस्या कम रहती।

 खबर है कि कुछ ही साल पहले बिहार सरकार ने अपने साधनों से पीपल के पौधे लगवाने शुरू किए हैं।

पता नहीं, उसमें प्रगति कितनी है ! 

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आजादी के बाद हमारी सरकारों ने पीपल की जगह यूकेलिप्टस और गुल मोहर आदि के पौधों का रोपण सरकारी स्तर से करवाया।

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आजादी के तत्काल बाद की सरकार ने पीपल का पौधा नहीं लगाया क्योंकि उस ‘‘एकांगी सेक्युलर’’ सरकार को उससे देश में हिन्दू धार्मिक भावना बढ़ने का खतरा लगा।

   याद रहे कि इस देश की बहुसंख्यक आबादी का बड़ा हिस्सा पीपल को पूजता है।

उनका मानना है कि पीपल के वृक्ष पर सभी देवताओं का वास होता है।

पीपल की पूजा करने से सभी देवताओं के आशीर्वाद मिलते हैं।

साथ ही, यह भी कहा जाता है कि पीपल पर रोज जल चढ़ाने से पितरों के आशीर्वाद भी मिलते हंै।

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पीपल वृक्ष लगवाने पर आजादी के तत्काल बाद के उन शासकों पर यह आरोप लगने का खतरा था कि वे स्कंद पुराण का अनुसरण कर रहे हैं ?

जब इस देश में वायु प्रदूषण, कंट्रोल से बाहर होने लगा तो

एक राज्य के मुख्य मंत्री ने वन विभाग के अफसर से कहा कि आप राज्य में बड़े पैमाने पर पीपल के पेड़ लगवाइए।

  अफसर ने कहा कि सरकारी स्तर पर पीपल लगाने पर पहले की सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा है।

उस गैर कांग्रेसी मुख्य मंत्री ने पीपल लगाने का आदेश दे दिया।

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2 अक्तूबर 24

     




मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

 अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस

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बेटी और बहू में फर्क 

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इस देश में ओल्ड एज होम्स की संख्या बढ़ रही है।

इसके कई कारण हैं।

पर, मैं यहां सिर्फ एक कारण की चर्चा करूंगा।

वैसे तो सभी सास एक तरह की नहीं होतीं।

पर,यह भी सच है कि अधिकतर सास को यह 

याद नहीं रहता कि वह भी कभी बहू थी।

यदि हर सास अपनी बेटी और बहू में फर्क करना छोड़ दे तो 

ओल्ड एज होम की संख्या नहीं बढ़ेगी।

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सुरेंद्र किशोर

1 अक्तूबर 24