मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

 ऐसे मारी जाती है अपने

ही पैरों पर कुल्हाड़ी

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सुरेंद्र किशोर

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 आरक्षण आंदोलन के दिनों मंडल आरक्षण के विरोधियों से मैं  कहा करता था कि आरक्षण का विरोध मत करो।

यह उनका संवैधानिक हक है।

‘‘गज नहीं फाड़ोगे तो थान हारना पड़ेगा।’’

नहीं माने।

थान हारना पड़ा।

 ‘थान-गज’ वाली मेरी उक्ति को कांग्रेस के पूर्व विधायक हरखू झा आज भी यदा कदा याद करते हैं।

मंडल आरक्षण के विरोध का नतीजा यह हुआ कि वर्षों तक 

बिहार को पटना हाईकोर्ट के अनुसार ‘जंगल राज ’ झेलना पड़ा।साथ ही,यह तर्क हावी रहा कि ‘‘विकास से वोट नहीं मिलते बल्कि सामाजिक समीकरण से वोट मिलते हंै।’’नतीजतन बिहार का विकास रुका।

इतना ही नहीं, बिहार में आज भी किसी सवर्ण के मुख्य मंत्री बनने का कोई चांस दूर -दूर तक दिखाई नहीं पड़ रहा।

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      2 

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नब्बे के दशक में मैं कम्युनिस्टों से सवाल पूछता था-

आप लोग खुद तो व्यक्तिगत रुप से ईमानदार हैं।फिर भी आप भ्रष्ट-जातिवादी राजनीतिक तत्वों का समर्थन क्यों करते हैं ?

 ऐसे में तो आपका एक दिन ‘‘धृतराष्ट्र आलिंगन’’ हो जाएगा।

उसके जवाब में कम्युनिस्ट कहा करते थे कि ‘‘हम साम्प्रदायिक तत्वों यानी भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए ऐसा कर रहे हैं।’’

क्या वे भाजपा को सत्ता में आने से रोक सके ?

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            3

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आज के कई राजनीतिक दल एक खास धर्म के

बीच के अतिवादी तत्वों की तो सख्त आलोचना करते हैं, किंतु दूसरे खास धर्म के बीच के अतिवादी तत्वों को बढ़ावा देते हैं।वोट के लिए उनसे साठगांठ करते हैं।

ऐसा क्यों करते हो भाई ?

वे जवाब देते हैं--एक खास धर्म की साम्प्रदायिकता दूसरे खास धर्म की साम्प्रदायिकता की अपेक्षा देश के लिए अधिक खतरनाक है।

 मेरा उनसे कहना होता है--सभी धर्मांे के बीच के अतिवादी तत्वों का एक साथ समान रूप से विरोध नहीं करोगे तो  एक दिन तुम्हारा दल खुद एक दिन बर्बाद हो जाएगा। अस्तित्व तक नहीं बचेगा।

पर,वे नहीं मानते।

नतीजतन कई तथाकथित धर्म निरपेक्ष राजनीतिक दल देश में धीरे -धीरे सिकुड़ते जा रहे हैं।अभी वे और भी सिकुड़ेंगे।

अब उनका अस्तित्व सिर्फ उन्हीं इलाकों में बना रहेगा जहां के मुस्लिम मतदाता उन्हें चुनाव जितवाने के लिए निर्णायक स्थिति में हैं।

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8 अप्रैल 25


सोमवार, 7 अप्रैल 2025

 बिहार के एक गालीबाज नेता का शुक्र 

गुजार हूं जिसके कारण मैं अब टी.वी.

चैनल के लाइव डिबेट में शामिल नहीं होता।

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शुक्रगुजार इसलिए हूं क्योंकि उससे मेरा 

समय बचता है। उस समय में मैं कुछ अन्य

उपयोगी  काम कर पाता हूं।

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सुरेंद्र किशोर

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कुछ लोग कई बार मुझसे पूछते हैं कि आप टी.वी.

चैनलों के डिबेट्स में क्यों नहीं जाते ?

क्या चैनल वाले आपको नहीं पूछते ?

मैं उनसे कहता हंू कि चैनल वाले मुझ पर बहुत 

मेहरबान हैं।वे अक्सर पूछते रहते हैं।डिबेट में 

शामिल होने का आग्रह करते हैं।पर,मैं उनसे 

कह देता हूं कि मेरे पास समय नहीं है।

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पर,असली कारण कुछ और है।

कई साल पहले की बात है।एक चैनल के लाइव 

डिबेट में मैं शामिल हुआ था।

राजनीतिक चर्चा के दौरान बिहार के एक गाली बाज 

नेता ने मेरे खिलाफ ऐसी सड़क-छाप अशिष्ट टिप्पणी 

कर दी कि उसके बाद ही मैंने तय कर लिया कि मैं किसी डिबेट में शामिल 

नहीं होऊंगा।

दरअसल मेरे परिवार का एक सदस्य वह डिबेट देख रहा था।उसने मुझसे कहा कि आपके खिलाफ बोला तो हमें बहुत अपमान महसूस हुआ।जब आपकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है या किसी दल में आप नहीं हैं,कोई मजबूरी नहीं है तो क्यों अपनी और परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लगाने के लिए टी.वी.डिबेट में शामिल होते हैं ?

उसके बाद तो यह निश्चय करना ही था।

अब आप ही अनुमान लगाइए कि उस निश्चय से मुझे कितना लाभ हुआ होगा।दूसरे काम के लिए मेरा समय कितना बचता है।इसलिए मैं उस गालीबाज नेता का बहुत-बहुत शुक्रगुजार हूं।

उस नेता का नाम नहीं बताऊंगा अन्यथा वह मेरे घर में घुस कर भी मुझे अपमानित करने की ताकत रखता है।

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लगे हाथ राष्ट्रीय चैनलों पर इन दिनों  हो रहे डिबेट्स पर जरा ध्यान दीजिए।

आए दिन गाली-गलौज-,मारपीट की नौबत आ जाती है।

जो गेस्ट लोग उस जंगली व्यवहार में शामिल होते हैं,उन्हें शामिल होने की कोई मजबूरी होगी।या फिर उनके बाल-बच्चे उनसे यह नहीं कहते होंगे कि पापा,आपको जब टी.वी.डिबेट के दौरान कोई गाली देता है,अपमानित करता है या

मारने दौड़ता है तो हमें बहुुत अपमान महसूस होता है।

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और अंत में 

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लगता है कि अधिकतर टी.वी.चैनल वाले कई गाली बाज, असभ्य और अप्रासंगिक बातें करने के लिए कुख्यात गेस्ट को जानबूझ कर बुलाते हैं ताकि दर्शकों -श्रोताओं का मनोरंजन हो सके।चैनल की दर्शक-संख्या बढ़े।

पर,वे यह नहीं महसूस करते कि ऐसे अशिष्ट डिबेट्स से नई पीढ़ियों के मानस पर प्रतिकूल असर पड़ता है, ठीक उसी तरह जिस तरह अनेक सांसदों के सदन में लगातार असंसदीय व्यवहार से आम लोगों की राजनीति के प्रति घृणा बढ़ती जाती है।

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6 अप्रैल 25



शनिवार, 5 अप्रैल 2025

 रामानन्द तिवारी की पुण्य तिथि पर

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(1906--1980)

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बिहार के गृह मंत्री रहे रामानन्द तिवारी दूध 

बेच कर परिवार चलाते थे

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‘द हिन्दू’ के पटना स्थित विशेष संवाददाता रमेश उपाध्याय ने अपने अखबार में लिखा था कि पूर्व कैबिनेट मंत्री रामानन्द तिवारी दूध बेच कर परिवार चला रहे हैं। 

खैर,इन पंक्तियों का लेखक तो इस बात का खुद गवाह ही है कि तिवारी जी की गाय के दूध का एक हिस्सा उनके पड़ोसी(आर.ब्लाॅक,पटना)व कांग्रेस एम.एल.सी.कुमार झा के घर जाता था।

मैं अक्सर तिवारी के आवास के बरामदे में बैठकर उनकी बातें सुना करता था।

  उन्हीं दिनों एक दिन जो बातें मैंने सुनीं ,उसके बाद तिवारी जी के प्रति मेरा आदर काफी बढ़ गया।

वह बातचीत तब के संसोपा विधायक वीर सिंह (चनपटिया-1969-72)और तिवारी जी के बीच हो रही थी।

 पहले इसकी पृष्ठभूमि बता दूं।

सन् 1970 के सितंबर की घटना है।रामानन्द तिवारी के नेतृत्व में समाजवादियों ने भूमि संघर्ष के सिलसिले में चंपारण जिले के लालगढ़ फार्म पर सत्याग्रह किया था। पर, पुलिस बल की मौजूदगी में लठैतों की क्रूर जमात ने सत्याग्रहियों पर हमला कर दिया। मझौलिया चीनी मिल के मालिक की इस (हदबंदी से फाजिल)जमीन पर अहिंसक सत्याग्रह के सिलसिले में रामानन्द तिवारी पर जानलेवा हमला किया गया। कुछ सत्याग्रहियों ने यदि तिवारी जी को अपने शरीर से ढंक नहीं लिया होता तो उनकी मौत निश्चित थी। उनको बचाने के सिलसिले में रोगी महतो की जान चली गई और कई कार्यकर्ता घायल हो गये। खुद रामानन्द तिवारी को विमान से बेतिया अस्पताल से पटना पहंुचाया गया जहां उन्हें इलाज के लिए लंबे समय तक अस्पताल में रहना पड़ा।

   वीर सिंह, रोगी महतो हत्याकांड के मुकदमे में समझौता कर लेने का आग्रह तिवारी जी से उस दिन कर रहे थे। वीर सिंह की बातें सुनकर तिवारी जी की आंखों में आंसू आ गये। उन्होंने रुंधे गले से भोजपुरी में कहा कि ‘हम रोगी महतो के लास पर सउदा ना करब।’ वीर सिंह मन मसोस कर चले गये।

   उस सत्याग्रह पर क्रूर हिंसा का वर्णन साप्ताहिक ‘दिनमान’ ने तब बड़े मार्मिक ढंग से किया था। बुरी तरह घायल तिवारी जी ने अस्पताल में कराहती आवाज में संवाददाता से कहा था, ‘सात तारीख के सात बजे सुबह लालगढ़ फारम में पहुंचली। करीब पांच -छह हजार आदमी साथ में रहन। तीन गो हल, 10-15 कुदाल, 25-30 खुरपी आउर दू अढ़ाई सौ महिला। लोग के समझा देनी कि पत्थर -ढेला लेके ना चले के चाहीं। हिनसा न करे के होई। नहीं तो हम अपन पथ से भटक जायब। हिनसा से समाज बदली ना। अगर बदली भी तो जे हिंसा के नेता होला ओकर कलपना हिंसा से पूरा ना होला। गांधी जी इहे चंपारण में सत्याग्रह किये थे और गांधी जी के रास्ता से ही समाज बदली।’

   तिवारी जी ने कहा कि ‘फार्म पूर्व-पश्चिम लंबा था। पूर्व में भी ईंख और पश्चिम में भी ईंख लगी थी। बीचों-बीच कोई 50-60 बीघा जमीन परती थी। हम हल ले के खेत में चले। हमारे पीछे दो हल और था। अन्य सत्याग्रही मर्द - औरत कुदाल -खुरपी से खेत कोड़ने लगे। हमसे दक्षिण उत्तर की तरफ बीस -पच्चीस आदमी करीब दो सौ गज की दूरी पर लाठी, भाला और गंड़ासा लेकर खड़े थे। पुलिस के लोग भी थे।

हल चलने लगा तो पुलिस कोई बीस कदम की दूरी पर आकर खड़ी हो गई और तभी सीटी की आवाज आई। ईंख के खेत से चालीस- पचास आदमी मारो-मारो कहते हुए निकले। हम लोग अपने लोगों को न भागने को कहते हुए और आगे बढ़ गये। मुझको पहली लाठी दायें कंधे पर, दूसरी दायें पैर पर और तीसरी बायें हाथ पर लगी। मैं बेहोश होकर गिर पड़ा। मुझको नंद लाल, लक्ष्मण कलीम हुदा आदि कार्यकर्ताओं ने ढांप लिया। और बाद में पता चला कि एक फरसा मेरे सिर पर भी मारा था।’

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 तिवारी जी का जन्म उन्हीं के शब्दों में ‘एक कंगाल द्विज’ के घर हुआ था।

वे बिहार के अविभाजित शाहाबाद जिले के मूल निवासी थे।

  उनके होश सम्भालने से पहले ही उन पर से पिता का साया उठ गया।

  उनकी मां ने किसी तरह उन्हें बड़ा किया।

  पहले तो तिवारी जी रोजी-रोटी की तलाश में कलकत्ता गये।

   पर, उन्हें वहां काफी कष्ट उठाना पड़ा तो  वे लौट आये। 

  उन्हें हाॅकर, पानी पांड़े और कूक के भी काम करने पड़े। 

  वे पुलिस में भर्ती हो गये।

  सन 1942 में महात्मा गांधी के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गये।

  उन्होंने अपने कुछ साथी सिपाहियों को संगठित किया और आजादी के सिपाहियों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया।

  तिवारी जी गिरफ्तार कर लिये गये।

  हजारीबाग जेल भेज दिये गये।

   जेल में उनकी जयप्रकाश नारायण से मुलाकात  हुई।

  जेपी से प्रभावित होने की घटना के बारे में तिवारी जी ने एक बार इन पंक्तियों के लेखक को बताया था। उन्होंने कहा कि दूसरे बड़े नेता जेल में अलग खाना बनवाते थे।

  पर, जेपी जेल में अपने साथियों के साथ ही खाते और रहते थे।

  इसी बात ने तिवारी जी को जेपी की ओर मुखातिब किया और वे भी समाजवादी बन गये।जेपी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापकों में थे।

  आजादी के बाद सन 1952 के चुनाव में ही तिवारी जी शाह पुर से समाजवादी पार्टी के विधायक बन गये।वे लगातार सन 1972 के प्रारंभ तक विधायक रहे।

सन 1972 में वे हार गये। सन 1977 में वे बक्सर से 

जनता पार्टी के सांसद बने ।

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  जेपी आंदोलन के समय का एक प्रेस कांफ्रेंस मुझे याद है।रामानंद तिवारी ने पटना के मजहरूल हक पथ स्थित पिं्रस होटल में संवाददाता सम्मेलन बुलाया था।

मैं भी उस प्रेस सम्मेलन में शामिल था।

  उसमें एक बड़े दैनिक अखबार के संवाददाता ने,जो जाति से ब्राह्मण था,तिवारी जी से एक असामान्य सवाल कर दिया।

  उसने कहा कि ‘‘तिवारी जी, आप भी ब्राह्मण हैं,इंदिरा जी भी ब्राह्मण हैं।आप अपनी ही जाति के प्रधान मंत्री के खिलाफ आंदोलन क्यों कर रहे हैं ?’’

तिवारी जी देर किए बिना जवाब दिया, ‘‘बाचा, तू पत्तरकारिता करत बाड़, खाली उहे कर।रजनीति मत कर।’’

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 तिवारी जी छोटे- छोटे समाजवादी कार्यकर्ताओं को भी चिट्ठियां लिखा करते थे।

साठ-सत्तर के दशकों में मैं भी संसोपा कार्यकर्ता था।

उन दिनों सारण जिला स्थित अपने गांव में ही आम तौर पर मैं रहता था।

कभी -कभी पटना भी आया करता था।

पार्टी के राष्ट्रीय और प्रादेशिक सम्मेलनों में जरूर जाया करता था।

मासिक पत्रिका ‘जन’ और साप्ताहिक ‘दिनमान’ आदि में मेरी चिट्ठियां प्रकाशित हुआ करती थीं।दिनमान में पत्र छप जाना भी तब बड़ी बात मानी जाती थी।

उन दिनों के समाजवादी नेताओं  और कार्यकर्ताओं में पढ़ने -लिखने वाले लोग अधिक होते थे।

इसलिए देश-प्रदेश  के अनेक नेता व कार्यकर्ता मुझे जानते थे।

इस पृष्ठभूमि में रामानंद तिवारी जी ने मुझे मेरे गांव के पते पर एक चिट्ठी लिखी।वह पोस्टकार्ड था।

 उसमें तिवारी जी ने मुझे अन्य बातों के अलावा यह भी लिख दिया था कि ‘‘सुरेंद्र,मैं तुम्हें शिवानंद से भी अधिक प्यार करता हूं।’’

मेरे बाबू जी ने वह चिट्ठी पढ़ ली।

बाबू जी ने मेरी मां से भोजपुरी में कहा,‘‘ देखीं, इ कतना करम जरू बा।

तेवारी जी एकरा के बेटा अइसन मानलन।

इ उनका से कहीत त एकरा के चपरासियो में नौकरी ने लगवा देतन !’’

दरअसल तिवारी जी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने तथा उनसे अपनापन बनाये रखने के लिए वैसा पत्र लिखते रहते थे।

मैं तब जिस स्तर का कार्यकर्ता था,उस स्तर के आज के कार्यकर्ताओं को आज के बड़े नेता चिट्ठियां भी लिखते हैं,यह मुझे नहीं मालूम।    

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और अंत में

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  सन 1972-73 में मैं कर्पूरी ठाकुर का निजी सचिव था।पर,मैं पत्रकारिता में जाना चाहता था।(कर्पूरी जी मेरी कोई नाराजगी नहीं हुई थी।न उनकी मुझसे हुई थी।बस मैं अपना काम बदलना चाहता था।)

मुख्य धारा की पत्रकारिता में मेरा सीधा प्रवेश कई कारणों से तब एकबारगी संभव नहीं था।इसलिए समाजवादी आंदोलन से जुड़ी पत्रिकाओं के जरिए मुख्य धारा में जाना चाहता था।उन्हीं दिनों तिवारी जी ने पटना के नया टोला से साप्ताहिक ‘जनता’ का प्रकाशन फिर से  करवाया।उसमें तिवारी जी ने मुझे बुलाकर सहायक संपादक बनाया।

बाद में जब संपादक ने मुझे हटाने की कोशिश की तो तिवारी जी उस बात के लिए राजी नहीं हुए।यानी तिवारी जी के कारण मेरी नौकरी बच गई थी।

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5 अप्रैल 25

   


रविवार, 30 मार्च 2025

 देश को सिर्फ प्रतिभा-विदेशी डिग्री वाला 

नहीं बल्कि जरूरी जानकारियों के अलावा 

अच्छी मंशा और देश की मिट्टी 

की समझ वाला शासक चाहिए।

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सुरेंद्र किशोर

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‘‘भाजपा अनपढ़ों की फौज,इसके कमांडर भी अनपढ’’

   ---डा.शकील अहमद खान

बिहार कांग्रेस विधायक दल के नेता

दैनिक जागरण-29 मार्च 25     

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‘‘मोदी बहुत बुद्धिमान ,वार्ता सार्थक होगी’’

 अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टं्रप

दैनिक हिन्दुस्तान-30 मार्च 2025

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इन दो बयानों को तथ्यों की कसौटी पर जरा कस कर देखिए।

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 आजादी के तत्काल बाद के हमारे अति प्रमुख सत्ताधीशों में से अधिकतर आॅक्सफोर्ड या कैम्ब्रिज से शिक्षित थंे।

इसके बावजूद प्रारंभ के चार दशकों में ही एक सरकारी रुपया 

घिसकर  15 पैसा क्यों और कैसे बन गया ? 

हमारी सीमाएं क्यों सिकुड़ गई ?

(चीन ने 1962 में हमारी 38 हजार वर्ग किलो

मीटर जमीन हमसे छीन ली।)

 ए.जी.नूरानी ने सबूतों के आधार पर इलेस्ट्रेटेड विकली आॅफ इंडिया में कई दशक पहले लिखा था कि चीन ने सोवियत संघ से पूर्व अनुमति लेकर ही 1962 में भारत पर चढ़ाई की थी।इधर विदेश -शिक्षित प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू पूर्व चेतावनियों के बावजूद शांति के कबूतर उड़ा रहे थे।

 याद रहे कि सन 1985 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि ‘‘हम दिल्ली से 100 पैसे भेजते हैं किंतु गांवों तक उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं।’’

एक दिन में तो 100 पैसे 15 पैसे नहीं हो गये थेे।इसके लिए एक से अधिक प्रधान मंत्रियों के ‘‘योगदान ’’ की जरूरत पड़ी थी।

1962 से पहले नेहरू शासन काल में जब रक्षा मंत्रालय ने सेना की बुनियादी जरूरतों के लिए पैसे मांगे तो वित्त मंत्रालय ने नहीं दिये।

घोटालों की शुरूआत तो जीप घोटाले (1948)से ही हो 

गयी  थी। बेचारे कहां से पैसे देते ?

सन 1963 में ही तत्कालीन कांग्रेस  अध्यक्ष डी.संजीवैया को इन्दौर के अपने भाषण में यह कहना पड़ा  कि ‘‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे।’’

 गुस्से में बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा था कि ‘‘झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’’

(कांग्रेस ने पहले मोदी मंत्रिमंडल में खाक पति से लाखपति बने मंत्री खोजे।जब नहीं मिले तो ‘अनपढ’़ का आरोप मढ़ दिया।)

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शिक्षित शासकों की सूची पेश है--

1.-जवाहरलाल नेहरू-प्रधान मंत्री-कैम्ब्रिज 

2.-इंदिरा गंाधी--प्रधान मंत्री--आॅक्सफोर्ड 

3.-राजीव गांधी-प्रधान मंत्री-कैम्ब्रिज

4.-जाॅन मथाई-वित मंत्री-आॅक्सफोर्ड

5.-सी.डी.देशमुख-वित मंत्री-कैम्ब्रिज

6.-एच.एम.पटेल-वित सचिव

       और बाद में वित मंत्री-आॅक्सफोर्ड

7.-मोहन कुमार मंगलम -केदं्रीय मंत्री-कैम्ब्रिज 

8-मनमोहन सिंह-रिजर्व बैंक के गवर्नर--कैम्ब्रिज

9.-एल.के.झा-रिजर्व बैंक के गवर्नर--कैम्ब्रिज

(यह सूची अपूर्ण है।)

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दूसरी ओर, नरेंद्र मोदी के शासन काल में भारत सरकार का कर राजस्व सन 2014 की अपेक्षा बढ़कर आज लगभग तीन गुणा से भी अधिक  हो गया है।इसलिए देश में विकास

नजर आ रहा है।सेना के पास आज अधिक मात्रा में आधुनिक अस्त्र-शस्त्र हैं।दुश्मन देश आज हमसे सहमते हैं।

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10 साल (2015-25)में भारत की अर्थ व्यवस्था 2 दशमल 1 ट्रिलियन डाॅलर से बढ़कर 4 दशमलव 3 ट्रिलियन डाॅलर हो चुकी है।

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करीब बीस साल की आजादी के बावजूद सन 1966-67 में बिहार में भारी सूखा और अकाल पड़ा था।

लोग भूखों मर रहे थे।मवेशियां मर रही थीं।

बिहार सरकार ने केंद्र सरकार अनाज की मांग की।

उस मांग पर 5 नवंबर 1966 को प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने 

पटना में संवाददाताओं से कहा कि ‘‘भारत सरकार के लिए यह संभव नहीं है कि हम बिहार की अनाज की मांग पूरी कर सकें।’’ध्यान रहे कि तब दोनांे जगह कांग्रेस सरकारें ही थीं। 

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दूसरी ओर,कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने 80 करोड़ जनता के लिए हर माह अनाज देने का जो प्रावधान किया,वह आज भी जारी है।

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पढ़े-लिखे प्रधान मंत्री

मनमोहन सिंह के पास जाकर कोई जरूरी  काम के लिए भी धन मांगता था तो सरदार जी कहते थे कि ‘‘रुपए पेड़ पर नहीं उगते।’’

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बेचारे सरदार जी क्या करते ?

दरअसल किसी और के इशारे पर रुपए तो घोटालों में चले जाते थे।जब भ्रष्टाचार की बात की जाती तो सरदार जी कहते कि ‘‘गठबंधन सरकार की कुछ मजबूरियां होती हैं।’’

इधर डा.शकील अहमद खान के शब्दों में ‘‘अनपढ़ों’’की सरकार मोदी सरकार के घोटाले खोज -खोज प्रतिपक्षी नेता,वकील ,पत्रकार हार गये।अब तक तो नहीं मिला।

पता नहीं,शायद  आगे मिले !!!

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सुना है कि किसी प्रतिपक्षी दल का भी कोई संासद नितिन गडकरी के यहां अपने क्षेत्र में सड़क बनवाने की मांग करने जाता है तो मंत्री उसे भी उपकृत कर देते हैं ।क्योंकि भारत सरकार के पास अब पैसों की कमी नहीं है।  

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दरअसल सिर्फ प्रतिभा-डिग्री से ही नहीं बल्कि शासक की अच्छी मंशा से देश आगे बढ़ता है।वैसे आज की भारतीय राजनीति में सर्वाधिक प्रतिभाशाली -सुपठित नेता सुधांशु त्रिवेदी भाजपा में हीं मौजूद हैं,इतना जानकार किसी अन्य दल में नहीं।ओवैसी भी सुधांशु की प्रतिभा की तारीफ कर चुके हैं।

कांग्रेस तो राहुल गांधी की अपेक्षा अधिक प्रतिभाशाली दिखाई पड़ने वाले नेताओं को ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह पार्टी से बाहर करती रहती है।

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30 मार्च 25


शनिवार, 29 मार्च 2025

 बांग्ला देश की घटनाओं ने दे दी सीख 

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बांग्ला देश में हुए -हो रहे अल्पसंख्यक संहार-

बलात्कार के बाद भारत में जो भी चुनाव हो 

रहे हैं, उनमें भाजपा गठबंधन ही जीत रहा है।

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सुरेंद्र किशोर

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गत साल अगस्त में बांग्ला देश में सत्ता पलट हुआ।

जेहादी मानसिकता वाले नये सत्ताधारियों ने उसके बाद वहां के अल्पसंख्यकों का भारी संहार किया।उनकी महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया।आगजनी की।वहां से लगातार महिलाओं की चीत्कार सुनी गई।

वे सारे चीत्कार सहित लोमहर्षक दृश्य भारत के लोगों ने अपने -अपने टी.वी.सेटों पर देखे।

  वह सब देखकर भारत के बहुसंख्यक समुदाय के लोग मध्य युग के अपने पूर्वजों की अपार दुर्दशा-पीड़ा  की कल्पना कर रहे थे।साथ ही, नब्बे के दशक में कश्मीर में हुए हिन्दू संहार-बलात्कार की गंभीरता की कल्पना भी कर रहे थे।

कश्मीर और मध्य युग वाली घटनाओं के लोमहर्षक दृश्य तो यहां के आज के किसी ने तब नहीं देखे थे।

  उसी बीच कांग्रेस के दो पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर और सलमान खुर्शीद ने बारी -बारी से सार्वजनिक रूप से यह भी कह कर जले पर नमक छिड़क दिया कि जो कुछ बांग्ला देश में हो रहा है,वह भारत में भी हो सकता है।

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उन घटनाओं पर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि 

‘‘बंटोगे तो कटोगे।’’

नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘‘एक रहोगे तो सेफ रहोगे।’’

इसका भी व्यापक असर हुआ। 

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उसके बाद इस देश में मुख्यतः दो घटनाएं हुईं।

1.-महाकुम्भ में अभूतपूर्व भीड़ हुई।

2.-बांग्ला देश के तख्ता पलट सह व्यापक हिंसा के बाद भारत में जितने चुनाव हुए,सबमें एन.डी.ए.की ही जीत हुई।

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1.-हरियाणा में विधान सभा चुनाव--अक्तूबर, 2024

2.-नवंबर 24 में बिहार में 4 विधान सभा क्षेत्रों में उप चुनाव।

3.-महाराष्ट्र  विधान सभा चुनाव-दिसंबर, 2024

4.-दिल्ली विधान सभा चुनाव-फरवरी, 2025

5.-यू.पी.का मिल्कीपुर विधान सभा उप चुनाव

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इस बीच कोई अन्य चुनाव हुआ हो तो बताइएगा।

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  दूर -दूर तक फैले इन 5 राज्यों के चुनावों में लगातार विजय !

क्या यह संयोग है या बांग्ला देश से लोगों ने सबक 

सीख ली ?

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मेरा तो मानना है कि बांग्ला देश के उन्मादी जेहादी हिंसा ने भारत के हिन्दुओं को अनजाने में जगा कर सीख दे दी।

मध्य युग के मुस्लिम आक्रांताओं की क्रूरता की लीपापोती करने वाले वामपंथी इतिहासकारों का रहा-सहा प्रभाव भी बांग्लादेश के उन्मादी जेहादियों ने भारतीय जन मानस से मिटा दिया होगा,ऐसी उम्मीद है।

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इस बीच और आगे यदि कोई राजनीतिक चमत्कार नहीं हुआ तो अगले किसी चुनाव में भी राजग विरोधी राजनीतिक शक्तियों का चुनावी भविष्य सीमित है।

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और अंत में 

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बिहार के अगले चुनाव के बारे में कोई भविष्यवाणी करते समय 

हाल के चुनावी इतिहास को याद कर लें।

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बिहार में तीन प्रमुख राजनीतिक शक्तियां हैं।

1.-राजद व सहयोगी

2.-भाजपा व सहयोगी

3.-जदयू व सहयोगी  

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इन तीन में से जो भी दो शक्तियों आपस में मिलकर चुनाव लड़ती हैं,सरकार उसी की बनती है।

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याद रहे कि बांग्ला देश में हुए और रह-रह कर हो रहे हिन्दू संहार के दृश्य बिहार के लोग भी उसी चिंता के साथ अपने टीे.वी.सेटों पर देखते रहे हैं।

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 पहचानिए हवा का रुख अन्यथा

बिला जाएंगे हवा में !

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सुरेंद्र किशोर

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1.-भ्रष्टाचार

2.-अपराध

3.-वंशवाद-परिवारवाद

4.-जेहाद

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मेरी समझ से आज इस देश की यही मुख्य 

चार समस्याएं हैं।

जो प्रतिपक्षी या सत्ताधारी नेता इन समस्याओं के

खिलाफ जितना तेज अभियान चलाएंगे,वे बहुसंख्य 

जनता के बीच उतना ही अधिक लोकप्रिय होते जाएंगे।

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दूसरी ओर, जो नेता इन चार समस्याओं को जितना  

अधिक बढ़ाएंगे, उनका जन समर्थन उतनी ही तेजी 

से घटता जाएगा।

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बांग्ला देश की घटनाओं 

ने दे दी है सीख 

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बांग्ला देश में हुए -हो रहे अल्पसंख्यक संहार-

बलात्कार के बाद भारत में जो भी चुनाव हो 

रहे हैं, उनमें भाजपा गठबंधन ही जीत रहा है।

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    गत साल अगस्त में बांग्ला देश में सत्ता पलट हुआ।

जेहादी मानसिकता वाले नये सत्ताधारियों ने उसके बाद वहां के अल्पसंख्यकों का भारी संहार किया।उनकी महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया।

आगजनी की।वहां से लगातार महिलाओं की चीत्कार भारत के टी.वी.चैनलों पर भी सुनी गई।

 चीत्कार सहित लोमहर्षक दृश्य भी देखे गये।

  वह सब देखकर भारत के बहुसंख्यक समुदाय के लोग मध्य युग के अपने पूर्वजों की अपार दुर्दशा-पीड़ा  की कल्पना कर रहे थे।साथ ही, नब्बे के दशक में कश्मीर में हुए हिन्दू संहार-बलात्कार की गंभीरता की कल्पना भी कर रहे थे।

कश्मीर और मध्य युग वाली घटनाओं के लोमहर्षक दृश्य तो यहां के आज के किसी ने तब नहीं देखे थे।

  उसी बीच कांग्रेस के दो पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर और सलमान खुर्शीद ने बारी -बारी से सार्वजनिक रूप से यह भी कह कर जले पर नमक छिड़क दिया कि जो कुछ बांग्ला देश में हो रहा है,वह भारत में भी हो सकता है।

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संभवतः उन्हीं घटनाओं पर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि 

‘‘बंटोगे तो कटोगे।’’

नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘‘एक रहोगे तो सेफ रहोगे।’’

इसका भी व्यापक असर हुआ। 

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उसके बाद इस देश में मुख्यतः दो घटनाएं हुईं।

1.-महाकुम्भ में अभूतपूर्व भीड़ हुई।

2.-बांग्ला देश के तख्ता पलट सह व्यापक हिंसा के बाद भारत में जितने चुनाव हुए,सबमें एन.डी.ए.की ही जीत हुई।

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ये चुनाव हैं जिनमें राजग विजयी रहा।

1.-हरियाणा में विधान सभा चुनाव--अक्तूबर, 2024

2.-नवंबर 24 में बिहार में 4 विधान सभा क्षेत्रों में उप चुनाव।

3.-महाराष्ट्र  विधान सभा चुनाव-दिसंबर, 2024

4.-दिल्ली विधान सभा चुनाव-फरवरी, 2025

5.-यू.पी.का मिल्कीपुर विधान सभा उप चुनाव

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  मेरा तो मानना है कि बांग्ला देश के उन्मादी जेहादी हिंसा ने भारत के हिन्दुओं को अनजाने में जगा कर सीख दे दी।

मध्य युग के मुस्लिम आक्रांताओं की क्रूरता की लीपापोती करने वाले वामपंथी इतिहासकारों का रहा-सहा प्रभाव भी बांग्लादेश के उन्मादी जेहादियों ने भारतीय जन मानस से मिटा दिया होगा,ऐसी उम्मीद है।

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29 मार्च 25


शुक्रवार, 28 मार्च 2025

 भारत एक देश या धर्मशाला ?

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बांग्लादेशी-रोहिंग्या  घुसपैठिए इसलिए 

आ रहे हैं क्योंकि ममता सरकार सीमा 

पर बाड़बंदी के लिए जमीन नहीं दे रही है।

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कल संसद में कहा कि 

‘‘बंगाल सरकार बाड़बंदी के लिए जमीन नहीं दे रही है,इसलिए घुसपैठिए आ रहे हैं।’’

शाह ने यह भी कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं, इसलिए कड़ी नजर रहेगी।

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सवाल है कि पश्चिम बंगाल में सन 2026 में होने वाले विधान सभा चुनाव का इंतजार भाजपा -केंद्र सरकार क्यों कर रही  है ? क्या जरूरी है कि तब वहां भाजपा को सत्ता मिल ही जाएगी ?

उससे पहले राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं ?

देश में इस्लामी शासन की आशंका को कम करना हो तो बंगाल में राष्ट्रपति शासन जरूरी है।

2026 तक तो और लाखों घुसपैठिए, जो वास्तव में जेहादी हैं,बंगाल के रास्ते हमारे देश में प्रवेश कर जाएंगे।

घुसपैठिए झारखंड के आदिवासी इलाकों में तो आादिवासी लड़कियों से शादी करके उनकी जमीन पर कब्जा करते जा रहे हैं।इस काम में झारखंड की सोरेन

सरकार का उन्हें समर्थन प्राप्त है।

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याद रहे कि अब तक करीब 8 करोड़ घुसपैठिए भारत के विभिन्न राज्यों में फैल चुके हैं।

प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए ही सीमा की तारबंदी की कोई कोशिश नहीं की।उनका बहाना था--घेराबंदी से दुनिया में भारत की छवि खराब होगी।

कई साल पहले पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे ने एक टी.वी.डिबेट में यही बात कही थी।उस डिबेट में शिवसेना के संजय निरुपम भी थे।

  दिवंगत दुबे ने कहा कि घेराबंदी से दुनिया में हमारी छवि खराब होगी।उस पर निरुपम ने पूछा--दुबे जी,आप भारत के विदेश सचिव थे या बांग्ला देश के ?’

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मुस्लिम वोट लोलुपता के कारण बंगाल की पहले वाम सरकार और बाद की ममता सरकार ने इस मामले में बंगाल व देश की स्थिति विस्फोटक बना दिया ।

  ज्योति बसु सरकार की पुलिस ने 

 1979 में मरीचझांपी में शरण लिए हिन्दू बंाग्ला देशी शरणार्थियों को तो गोलियों से उड़ा दिया।दूसरी ओर मुस्लिम घुसपैठियों को पश्चिम बंगाल में मतदाता बनवा दिया।

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28 मार्च 25