बिहार के एक प्रमुख नेता ने गौतम के लिए इससे भी बेहतर बात कभी कही थी।वह बात कर्पूरी ठाकुर ही कह सकते थे।उन्होंने बिहार विधान सभा में कहा था कि के.बी.सक्सेना और डी.एन.गौतम जैसे अफसर गरीबों के लिए भगवान की तरह हैं।कर्पूरी ठाकुर के बारे में भी यह कहा जा सकता है कि उन्होंने ‘तस की तस धर दीनी चदरिया।पर जस की तस चदरिया को धर देने के लिए जो जतन करना पड़ता है,वह जतन करते हुए मैंने कर्पूरी ठाकुर को करीब से देखा था।गौतम साहब से मेरा कोई खास हेल -मेल नहीं रहा। वे कोई प्रचार प्रिय हैं भी नहीं।पर, उनके बहादुरी भरे कामों पर मैंने उनके सेवा के प्रारंभिक काल से ही गौर किया है।पूत के पांव पालने में ही प्रकट हो गये थे।यदि कोई सरकार सड़क के किनारे- किनारे मजबूत नालियां भी बनवाना शुरू कर दे तो समझिए कि उसका मूल उददेश्य सिर्फ लूटपाट नहीं है।उसी तरह जिस अफसर की भ्रष्ट नेता और माफिया तत्व आलोचना करने लगंे तो समझिए कि वह अपना काम कर रहा है और उसे अपने वेतन मात्र पर ही संतोष है।
ईमानदार तो और कई लोग भी हैं जिन्हें मैं जानता हूं और कई ऐसे लोग भी होंगे जिन्हें मैं नहीं जानता।पर उनमें से अधिकतर निष्क्रिय ईमानदार ही हैं।सक्रिय ईमानदारी से ही जनता को लाभ मिलता है।निष्क्रिय ईमानदारी से खुद को संतोष मिलता है।डी.एन.गौतम की खूबी रही कि वे सक्रिय ईमानदार रहे।
इसीलिए वे अक्सर निहितस्वार्थियों के निशाने पर रहे।पर बिहार की जनता में वे किसी अच्छे नेता की तरह ही लोकप्रिय रहे।उत्तर प्रदेश के हमीर पुर जिले के मूल निवासी गौतम जी 1974 बैच के आई.पी.एस. हैं।उन्होंने एम.एससी.और पीएच.डी. भी किया है। पता नहीं कि वे रिटायर होने के बाद कहां बसेंगे ! यदि वे बिहार में रहते तो कई लोगों को प्रेरित करते रहते।सारण,मुंगेर और रोहतास जिले के एस.पी.के रूप में उन्होंने जिस तरह की कत्र्तव्यनिष्ठता दिखाई ,उससे इस राज्य के निहितस्वार्थी सत्ताधारियों को यह लग गया कि ऐसे अफसर को कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देनी खतरे से खाली नहीं हैं।इसीलिए जब नीतीश कुमार ने उन्हें गत साल पुलिस प्रधान बनाया तो अनेक लोगों ने मुख्य मंत्री की हिम्मत की दाद दी।ऐसा अफसर जो गलत काम कर ही नहीं सकता,उसे पुलिस प्रमुख बना कर बेहतर छवि वाले नीतीश कुमार ने अपनी छवि और भी निखारी।गौतम जी ऐसे अफसर हैं जो यदि किसी खास पद पर जाकर बहुत कुछ करामात नहीं भी कर सकें तो एक बात तो तय है कि जिस उंची कुर्सी पर वे बैठे,उसे घूस कमाने का जरिया तो नहीं बनने दे सकते।इसका भी असर नीचे तक कुछ न कुछ होता है।
पुलिस प्रमुख के रूप में देवकी नंदन गौतम का कुल मिलाकर कैसा अनुभव रहा,यह तो कभी बाद में वे बता सकते हैंे,पर इतना तो कहा ही जा सकता है कि उनके खिलाफ उनकी सेवा अवधि के अंत -अंत तक ऐसा कोई अशोभनीय विवाद नहीं हुआ जिससे उनकी छवि को धक्का लगा हो।वह भी ऐसे समय में जब मनोनीत डी.जी.पी.आनंद शंकर को यह कहना पड़ रहा है कि पुलिसकर्मी वेतन पर ही संतुष्ट रहना सीखें।खुशी की बात है कि आनंद शंकर जी ने बीमारी न सिर्फ पकड़ी है,बल्कि उसका सार्वजनिक रूप से एजहार भी कर दिया है।पर, यह बीमारी उपर भी तो है।एक परिचित थानेदार ने कुछ साल पहले मुझे बताया था कि उसने अपने अब तक के सेवाकाल में दस एस.पी.के मातहत काम किया।पर एक डा.परेश सक्सेना को छोड़कर अन्य सभी नौ एस.पी.ने मुझे तभी थाना प्रभारी बनाया जब उन्हें रिश्वत दी गई।जिस राज्य में भ्रष्टाचार का यह हाल है,वहां डी.एन.गौतम को अपनी चदरिया जस की तस धर देने के लिए कितनी जतन करनी पड़ी होगी,इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है।
बिहार का सौभाग्य होगा यदि गौतम की तरह काम करने की कोशिश करने वाले दस -बीस आई.पी.एस.अफसर यहां मिलें।अपराध और भ्रष्टाचार से निर्णायक लड़ाई का इस राज्य में यह संक्रमण काल भी है।अगले कुछ समय में पता चल जाएगा कि किसकी जीत हुई।अभी भ्रष्ट तत्व तो नहीं,पर अपराधी जरूर दबाव में हैं।डी.एन.गौतम वैसे अफसरों के लिए प्रेरणा पुरूष साबित होंगे जो अफसर अपराधी और भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ मजबूती से उठ खड़े होंगे।इससे उनका इस लोक के साथ साथ वह लोक भी संवर जाएगा।गौतम ने जो पूंजी कमाई है,उसे भला कौन लूट सकता है ? घूसखोरी से बनी पूंजी को तो एक न एक दिन चोर-डकैत, ,विजिलंेस या फिर नालायक संतान द्वारा लूट लिए जाने से कम ही लोग बचा पाते हैं।यदि बचा भी पाए तो वे अपनी अगली कई पीढ़ियों को अपराध बोध की पूंजी जरूर दे जाते हैं।
हां,ईमानदारी से अपने काम करने के सिलसिले में तरह -तरह के कष्ट और तनाव जरूर होते हैं,पर उसके लिए गीता जैसी ‘ तनाव व दर्दनाशक दवा हमारे पूर्वजों ने हमें दे ही रखी है।इसी क्रम में गौतम साहब की सेवा अवधि से जुड़े कुछ संस्मरण यहां पेश हैं।सारण जिले से जब डी.एन.गौतम का समय से पहले तबादला कर दिया गया तो वे छपरा से पटना सड़क मार्ग से आ रहे थे।किसी ने तब मुझे बताया था कि जिसे भी पता चला कि गौतम साहब इस मार्ग से लौट रहे हैं तो वह सड़क के किनारे उन्हें देखने के लिए खडा हो गया।प्रत्यक्षदर्शी ने ,जो गौतम जी का स्वजातीय भी नहीं था,़बताया कि कई लोग उसी तरह रो रहे थे जिस राम के वनवास के समय अयोध्यावासी के रोने की चर्चा रामायण में है।इस घटना ने यह बात भी बताई कि बिहार में बड़े अपराधियों और उनके संरक्षक नेताओं से लड़कर उन्हें कमजारे कर देने की कितनी अधिक जरूरत जनता महसूस करती है।ऐसे ही तत्वों से तो लड़ते हुए गौतम साहब समयपूर्व तबादला ही झेलते रहे।
रोहतास और मुंगेर में भी यही हुआ।मुंगेर में 16 मई 1985 को डी.एन .गौतम ने एस.पी.का पदभार ग्रहण किया ।पर जब उन्होंने भ्रष्ट व अपराधी तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू की तो 9 जुलाई 1986 को उन्हें मुंगेर से हटा दिया गया।
दिलचस्प कहानी हजारीबाग पुलिस प्रशिक्षण कालेज में प्राचार्य के रूप में डी.एन.गौतम की तैनाती के बाद सामने आई।सन् 1994 की बात है।पटना में पहले से ही इस बात की चर्चा थी कि दारोगा की बहाली में इस बार घोर अनियमितता बरती जा रही है। आखिरकार नवनियुकत 1640 दारोगाओं ंको प्रशिक्षण के लिए हजारीबाग भेज दिया गया। इनमें से करीब चार सौ दरोगाओं को प्रशिक्षण कालेज में भर्ती करने से ही गौतम साहब ने साफ इनकार कर दिया। यह अभूतपूर्व स्थिति थी।क्योंकि गौतम के अनुसार वे दारोगा बनने लायक थे ही नहीं ।कुछ की तो निर्धारित मापदंड के अनुसार शरीर की उंचाई तक नहीं थी। इधर उन दारोगाओं को प्रशिक्षण दिलाना कई प्रभावशाली लोगों के लिए जरूरी था।इसीलिए आनन फानन में डी.एन.गौतम को प्राचार्य पद से हटाकर पटना पुलिस मुख्यालय में तैनात कर दिया गया।जो हो,इसी तरह राम राम कहते -कहते गौतम जी सेवा करते रहे।अब उनका ध्यान गीता और विवेकानंद की ओर अधिक जाए तो वह स्वाभाविक ही है।यह देश और प्रदेश ऐसे ‘मानव संसाधन’ की घोर कमी के कारण ही तो दुर्दशा को प्राप्त हो रहा है !
उनकी कत्र्तव्यनिष्ठता के लिए बिहार की ईमानदार जनता की ओर गौतम साहब को हार्दिक धन्यवाद।
प्रभात खबर / 31 जुलाई 2009 /से साभार
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