कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा भारतीय जनता पार्टी के गले की हड्डी बन गये हैं। जातीय वोट बैंक के आधार पर राजनीतिक ताकत पाये इस देश के अन्य नेताओं की तरह येदियुरप्पा भी अपने राज्य में अपनी मर्जी चलाना चाहते हैं। उधर माया और राम के बीच डोलती भाजपा को इस मामले में न माया मिलेगी और न राम। अभी तो यही लगता है।
भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा नेतृत्व के दोहरे चरित्र के कारण ही येदियुरप्पा जैसे नेताओं को विद्रोह करने के लिए बल मिलता है। इस मामले में येदियुरप्पा की यह टिप्पणी आंशिक रूप से ही सही है कि ‘सोनिया गांधी का नेतृत्व भाजपा से बेहतर है, क्योंकि कांग्रेस में कोई गलती करे तो पार्टी उसका साथ देती है, पर भाजपा में उसे छोड़ दिया जाता है।
बंगारू लक्ष्मण के मामले में भी भाजपा ने उन्हें तब छोड़ा जब कोर्ट ने हाल में उन्हें सजा दे दी। अन्यथा दल की राष्ट्रीय कार्यसमिति से बंगारू ने पहले ही इस्तीफा दे दिया होता। कोर्ट की सजा के बाद तो आम जनता भी आम तौर पर अपने पुराने नेताओं को छोड़ने लगती है।
बंगारू जी जब एक लाख रुपये रिश्वत लेते हुए कैमरे पर पकड़े गये थे तब तो पार्टी प्रवक्ता विजय कुमार मल्होत्रा ने कहा था कि उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि पार्टी फंड के लिए वे पैसे लिये थे। भाजपा ने अगले चुनाव में बंगारू की पत्नी को टिकट भी दे दिया था। दिलीप सिंह जू देव के साथ भी पार्टी ने कुछ नहीं किया, जिन्हें लोगों ने अपने टी.वी. सेट पर कहते हुए सुना था कि पैसा खुदा तो नहीं, पर खुदा कसम खुदा से कम भी नहीं।
यदि भाजपा ने इससे पहले भी भ्रष्टाचार के आरोपितों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया होता तो येदियुरप्पा का मनोबल नहीं बढ़ता। जब किसी अधिक वजन के बोरे के कारण कोई नाव डूबने लगती है तो होशियार नाविक अन्य सामान व सवारियों को बचाने के लिए उस बोरे को बीच नदी में पानी में फेंक देता है। पर भाजपा सहित इस देश के कुछ दलों के साथ दिक्कत यह है कि वे इस रणनीति का अनुसरण करते हैं कि भले पूरी नाव डूब जाए, पर अवांछित सामान को भी ढोये जाना है।
ऐसा हो भी क्यों नहीं ? कई बार राजनीतिक बोझोें को उठाये रखने में राजनीतिक व आर्थिक फायदे भी तो होते हैं। हालांकि वे अततः क्षणिक ही साबित होते हैं।
अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा के खिलाफ के आरोपों की जांच सीबी.आई. से कराने का आदेश दे दिया, तब वे चाहते हंै कि कर्नाटक में उनके मन मुताबिक का मुख्यमंत्री बनें। सन 1997 में इसी तरह की परिस्थितियों में लालू यादव ने अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनवाया था। सन 2000 के चुनाव में लालू को बिहार विधानसभा में बहुमत नहीं मिला। वह तो कांग्रेस थी जिसने लालू के दल के साथ मिलकर राबड़ी देवी की सरकार फिर बनवा दी अन्यथा राजद तभी सत्ता से बाहर हो जाता। सत्ता से बाहर होने का यह काम हुआ 2005 में। कांग्रेस ने 1997 में कहा था कि भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए वह राजद के साथ बिहार में मिलकर सरकार बना रही है। पर कांगेेस न तो भाजपा को सत्ता में आने से रोक सकी और न ही अगले चुनावों में अपनी पार्टी की इज्जत बचा सकी।
दरअसल नीति -सिद्धांतांे के बदले जातीय वोट बैंक के आधार पर राजनीतिक ताकत बढ़ाने वाले येदियुरप्पा पर भाजपा अपना दांव खेलेगी तो वही होगा जो आज कर्नाटक में हो रहा है।
दलीय सिद्धांत, सुशासन, सर्वजन कल्याण और राजनीतिक शुचिता के आधार पर जब कोई पार्टी संगठित होगी तो येदियुरप्पा जैसा कोई वोट का ठेकेदार पैदा नहीं होगा। भाजपा के साथ- साथ अन्य दलों के लिए भी यह एक सीख है। हालांकि ऐसे जातीय -सह-राजनीतिक महंत को भी भ्रष्टाचार के आरोप में जब कोई अदालत सजा दे देती है तो उसका प्रभाव उस जाति में भी कम होने लगता है। अभी तो आरोप लगे हैं, इसके बावजूद कर्नाटक से यह खबर आ रही है कि येदियुरप्पा का लिंगायतों के बीच भी पहले जैसा दबदबा नहीं है।
यदि भाजपा ने येदियुरप्पा के मामले में कछुए की तरह कभी मुंह बाहर और कभी मुंह भीतर किया तो उसे न सिर्फ सन 2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में ,बल्कि सन 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
अगर इसके विपरीत कर्नाटक में सत्ता गंवाने की कीमत पर भी भाजपा ने येदियुरप्पा से किसी तरह का समझौता करने से इनकार कर दिया तो उसका राजनीतिक लाभ भाजपा को लोकसभा चुनाव में पूरे देश में मिल सकता है।
ऐसे भी यदि कांग्रेस की गलतियों का लाभ उठाकर 2014 में भाजपा केंद्र में सत्ता में आ ही गई तो वह येदियुरप्पा जैसे नेताओं को पाल पोस और अपने दाये-बाएं रखकर देश में कौन सा अच्छा काम कर पाएगी। येदियुरप्पा से निबटते समय भाजपा यह भूल रही है कि अभी देश में भ्रष्टाचार विरोधी माहौल है और भ्रष्टाचार के आरोप से सने नेताओं के प्रति कोई भी कमजोरी भाजपा को महंगी पड़ सकती है। जिस तरह भाजपा ने येदियुरप्पा को सी.एम.पद से हटाया, उसी तरह उसे अब येदियुरप्पा को साफ -साफ यह कह देना चाहिए था कि अब आप सी.बी.आई. और कोर्ट से स्वच्छता प्रमाण पत्र ले लेने के बाद ही कर्नाटक भाजपा के कामों में हस्तक्षेप करेंगे। कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने भी कहा है कि येदियुरप्पा के खिलाफ आरोप गंभीर हैं। पर क्या येदियुरप्पा से यह कहने का नैतिक साहस आज भाजपा में है ? क्या भाजपा एक भारी बोरे को बचाने के चक्कर में नाव को ही डूबो देगी? यह अब उसे ही तय करना है।
(जनसत्ता: 16 मई 2012:से साभार)
भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा नेतृत्व के दोहरे चरित्र के कारण ही येदियुरप्पा जैसे नेताओं को विद्रोह करने के लिए बल मिलता है। इस मामले में येदियुरप्पा की यह टिप्पणी आंशिक रूप से ही सही है कि ‘सोनिया गांधी का नेतृत्व भाजपा से बेहतर है, क्योंकि कांग्रेस में कोई गलती करे तो पार्टी उसका साथ देती है, पर भाजपा में उसे छोड़ दिया जाता है।
बंगारू लक्ष्मण के मामले में भी भाजपा ने उन्हें तब छोड़ा जब कोर्ट ने हाल में उन्हें सजा दे दी। अन्यथा दल की राष्ट्रीय कार्यसमिति से बंगारू ने पहले ही इस्तीफा दे दिया होता। कोर्ट की सजा के बाद तो आम जनता भी आम तौर पर अपने पुराने नेताओं को छोड़ने लगती है।
बंगारू जी जब एक लाख रुपये रिश्वत लेते हुए कैमरे पर पकड़े गये थे तब तो पार्टी प्रवक्ता विजय कुमार मल्होत्रा ने कहा था कि उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि पार्टी फंड के लिए वे पैसे लिये थे। भाजपा ने अगले चुनाव में बंगारू की पत्नी को टिकट भी दे दिया था। दिलीप सिंह जू देव के साथ भी पार्टी ने कुछ नहीं किया, जिन्हें लोगों ने अपने टी.वी. सेट पर कहते हुए सुना था कि पैसा खुदा तो नहीं, पर खुदा कसम खुदा से कम भी नहीं।
यदि भाजपा ने इससे पहले भी भ्रष्टाचार के आरोपितों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया होता तो येदियुरप्पा का मनोबल नहीं बढ़ता। जब किसी अधिक वजन के बोरे के कारण कोई नाव डूबने लगती है तो होशियार नाविक अन्य सामान व सवारियों को बचाने के लिए उस बोरे को बीच नदी में पानी में फेंक देता है। पर भाजपा सहित इस देश के कुछ दलों के साथ दिक्कत यह है कि वे इस रणनीति का अनुसरण करते हैं कि भले पूरी नाव डूब जाए, पर अवांछित सामान को भी ढोये जाना है।
ऐसा हो भी क्यों नहीं ? कई बार राजनीतिक बोझोें को उठाये रखने में राजनीतिक व आर्थिक फायदे भी तो होते हैं। हालांकि वे अततः क्षणिक ही साबित होते हैं।
अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा के खिलाफ के आरोपों की जांच सीबी.आई. से कराने का आदेश दे दिया, तब वे चाहते हंै कि कर्नाटक में उनके मन मुताबिक का मुख्यमंत्री बनें। सन 1997 में इसी तरह की परिस्थितियों में लालू यादव ने अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनवाया था। सन 2000 के चुनाव में लालू को बिहार विधानसभा में बहुमत नहीं मिला। वह तो कांग्रेस थी जिसने लालू के दल के साथ मिलकर राबड़ी देवी की सरकार फिर बनवा दी अन्यथा राजद तभी सत्ता से बाहर हो जाता। सत्ता से बाहर होने का यह काम हुआ 2005 में। कांग्रेस ने 1997 में कहा था कि भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए वह राजद के साथ बिहार में मिलकर सरकार बना रही है। पर कांगेेस न तो भाजपा को सत्ता में आने से रोक सकी और न ही अगले चुनावों में अपनी पार्टी की इज्जत बचा सकी।
दरअसल नीति -सिद्धांतांे के बदले जातीय वोट बैंक के आधार पर राजनीतिक ताकत बढ़ाने वाले येदियुरप्पा पर भाजपा अपना दांव खेलेगी तो वही होगा जो आज कर्नाटक में हो रहा है।
दलीय सिद्धांत, सुशासन, सर्वजन कल्याण और राजनीतिक शुचिता के आधार पर जब कोई पार्टी संगठित होगी तो येदियुरप्पा जैसा कोई वोट का ठेकेदार पैदा नहीं होगा। भाजपा के साथ- साथ अन्य दलों के लिए भी यह एक सीख है। हालांकि ऐसे जातीय -सह-राजनीतिक महंत को भी भ्रष्टाचार के आरोप में जब कोई अदालत सजा दे देती है तो उसका प्रभाव उस जाति में भी कम होने लगता है। अभी तो आरोप लगे हैं, इसके बावजूद कर्नाटक से यह खबर आ रही है कि येदियुरप्पा का लिंगायतों के बीच भी पहले जैसा दबदबा नहीं है।
यदि भाजपा ने येदियुरप्पा के मामले में कछुए की तरह कभी मुंह बाहर और कभी मुंह भीतर किया तो उसे न सिर्फ सन 2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में ,बल्कि सन 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
अगर इसके विपरीत कर्नाटक में सत्ता गंवाने की कीमत पर भी भाजपा ने येदियुरप्पा से किसी तरह का समझौता करने से इनकार कर दिया तो उसका राजनीतिक लाभ भाजपा को लोकसभा चुनाव में पूरे देश में मिल सकता है।
ऐसे भी यदि कांग्रेस की गलतियों का लाभ उठाकर 2014 में भाजपा केंद्र में सत्ता में आ ही गई तो वह येदियुरप्पा जैसे नेताओं को पाल पोस और अपने दाये-बाएं रखकर देश में कौन सा अच्छा काम कर पाएगी। येदियुरप्पा से निबटते समय भाजपा यह भूल रही है कि अभी देश में भ्रष्टाचार विरोधी माहौल है और भ्रष्टाचार के आरोप से सने नेताओं के प्रति कोई भी कमजोरी भाजपा को महंगी पड़ सकती है। जिस तरह भाजपा ने येदियुरप्पा को सी.एम.पद से हटाया, उसी तरह उसे अब येदियुरप्पा को साफ -साफ यह कह देना चाहिए था कि अब आप सी.बी.आई. और कोर्ट से स्वच्छता प्रमाण पत्र ले लेने के बाद ही कर्नाटक भाजपा के कामों में हस्तक्षेप करेंगे। कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने भी कहा है कि येदियुरप्पा के खिलाफ आरोप गंभीर हैं। पर क्या येदियुरप्पा से यह कहने का नैतिक साहस आज भाजपा में है ? क्या भाजपा एक भारी बोरे को बचाने के चक्कर में नाव को ही डूबो देगी? यह अब उसे ही तय करना है।
(जनसत्ता: 16 मई 2012:से साभार)
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