बुधवार, 7 अगस्त 2013

प्रथम चुनाव में नेहरू की 18 हजार मील की विमान यात्रा


इन दिनों इस देश के कुछ लोहियावादी बुद्धिजीवी, जवाहरलाल नेहरू के ‘पुनर्मूल्यांकन’ के काम में लगे हुए हैं। थोड़े से नेहरूवादी भी डा. राम मनोहर लोहिया पर अब अपनी संतुलित दृष्टि डाल रहे हैं।

  यह इस देश की राजनीति में एक नया विकास है। कुछ साल पहले तक तो अधिकतर नेहरूवादियों ने डा. लोहिया और अधिकतर लोहियावादियों ने नेहरू में शायद ही कोई गुण देखा हो।

  पर, अब जब दोनों पक्षों ने संतुलित नजरों से इन दिग्गज महारथियों, स्वतंत्रता सेनानियों व विचारकांे को देखना शुरू किया है तो इसमें किसी तरह की अति नहीं हो तो बेहतर होगा। सपा सांसद मोहन सिंह उन बुद्धिजीवी नेताओं में शामिल हो गए हैं जो नेहरू पर ‘दूसरी नजर’ डाल रहे हैं। उन्होंने नेहरू पर पुस्तक लिख कर इस देश के बचे -खुचे लोहियावादियों को भी यह संदेश दिया है कि वे सिर्फ कुछ नेहरू निंदक समाजवादियों की नजर से ही नेहरू को नहीं देखें।

    मोहन सिंह ने 25 अप्रैल 2009 के ‘जागरण’ में यह लिखा है कि ‘प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कभी चुनावी यात्रा हवाई जहाज से नहीं की।’यह बात सही नहीं है। प्रथम आम चुनाव के दौरान उनकी चुनावी यात्राओं का विवरण उपलब्ध है। तब उन्होंने विमान से 18348 मील की चुनावी यात्राएं की थीं। उन्होंने कार से 5682 मील और ट्रेन से 1612 मील की यात्रा की। यहां तक कि उन्होंने तब 90 मील नावों पर चढ़कर चुनावी यात्रा की थी। मोहन सिंह की इस बात के बहाने नेहरू की चुनाव यात्राओं पर एक नजर डालना दिलचस्प होगा।

  यह बात सही है कि यदि आज वे होते तो आज के कुछ नेताओंे की तरह हेलिकाॅप्टर का बैलगाड़ी की तरह इस्तेमाल कतई नहीं करते। पर यह बात भी सही है कि उन्होंने ही सरकारी खर्च पर चुनाव प्रचार के लिए हवाई जहाज अपने लिए हासिल करने की परंपरा भी डलवाई थी। लोकतंत्र में यह अजूबा ही है कि ऐसी सुविधा सिर्फ प्रधानमंंत्री को ही मिले।

  यदि अपनी बिटिया इंदिरा गांधी को राजनीति में आगे बढ़ाने की उनकी कमजोरी   को भुला दिया जाए तो नेहरू स्वार्थी नेता नहीं थे। याद रहे कि नेहरू के जीवन काल में ही इंदिरा गांधी सन् 1958 में कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य और 1959 में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दी गई थीें। नेहरू के कुछ राजनीतिक और प्रशासनिक फैसले भी  गलत माने जा सकते हैं, पर वे हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि उन पर जनता के टैक्स के पैसे में से कम से कम खर्च हो। आज के अधिकतर नेताओं से यह बात नेहरू को अलग करती है।

डा.राम मनोहर लोहिया ने तीन मूर्ति भवन जैसे आलीशान मकान में उनके रहने और खुद पर काफी खर्च करने को लेकर संसद के भीतर और बाहर तीखी आलोचना की थी। पर यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने जिद करके नेहरू को चार कमरे के एक छोटे मकान से निकाल कर तीन मूर्ति भवन में पहुंचवाया था। नेहरू इस पक्ष में नहीं थे कि वे किसी बड़े मकान में रहें। महात्मा गांधी की हत्या के बाद पटेल ने नेहरू से कहा था कि यदि वे बड़े और सुरक्षित मकान में नहीं जाएंगे तो वे गृह मंत्री पद छोड़ देंगे। क्योंकि महात्मा जी के बाद आप के साथ यदि कुछ हो जाए तो यह देश वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। याद रहे कि देश के विभाजन और लुटे -पिटे शरणार्थियों के आगमन के कारण देश में काफी तनाव था।

   अब जरा प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार के लिए सरकारी विमान के प्रावधान की कथा एक बार फिर याद कर ली जाए। तब इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक ने प्रधानमंत्री सचिवालय को यह सलाह दी कि चुनाव प्रचार के लिए प्रधानमंत्री कमर्शियल फलाइट से यात्रा न करें। उनके लिए वायु सेना के विमान की व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि उनकी जान को खतरा है। निदेशक की इस सलाह पर प्रधानमंत्री सचिवालय हरकत में आ गया। कोई खतरा उठाना नहीं चाहता था। नेहरू भी चाहते थे कि कोई ऐसा निर्णय न हो जाए जिसे अनुचित माना जाए। इसलिए वे खुद इस संबंध में कोई निर्णय नहीं करना चाहे थे।

    इस संबंध में इस देश में पहले से कोई परंपरा नहीं थी। क्योंकि आजादी के बाद के पहले आम चुनाव को लेकर यह समस्या सामने आई थी। इस संबंध में तब के कैबिनेट सचिव एन.आर.पिल्लई ने प्रस्ताव किया कि इस मुद्दे पर विचार के लिए एक उच्चस्तरीय समिति बना दी जाए। समिति हर पहलू पर विचार करके कोई सलाह दे। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अनुमति से तीन सदस्यों की समिति बना दी गई। कैबिनेट सचिव अध्यक्ष और रक्षा सचिव समिति के सदस्य बने। एक अन्य सदस्य थे आई.सी.एस. अधिकारी तारलोक सिंह। समिति ने प्रधानमंत्री की निजी सुरक्षा को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना।

  समिति ने वायु सेना के विमान के इस्तेमाल की सिफारिश करते हुए अपनी सिफारिश में कहा कि ‘यदि प्रधानमंत्री कभी किसी गैर सरकारी काम से भी यात्रा करते हैं तो वे उतने समय के लिए प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाते। विमान में भी वे अनेक सरकारी काम कर सकते हैं। रात में वे जहां रुकेंगे, वहां भी सरकारी काम करेंगे।’ पर समिति ने यह भी कहा कि वे गैर सरकारी दौरे में वायु सेना के विमान का उपयोग तो करेगे, पर वे अपनी जेब से उसके भाड़े का भुगतान करेंगे। भाड़ा व्यावसायिक विमान की दर पर लिया जाएगा।’

   इस सिफारिश पर आगे काम होने वाला ही था। प्रधानमंत्री ने कैबिनेट सचिव से कहा कि वे इस सिफारिश की प्रति मंत्रिमंडल के सदस्यों में वितरित करा दें। मंत्रिमंडल ही इस पर कोई निर्णय करे। पर इसी बीच किसी ने प्रधानमंत्री को यह सलाह दी कि वे ऐसी समिति की सिफारिश पर कोई काम नहीं करें जो आपके मातहत अफसरों की समिति है। क्योंकि इसकी आलोचना होगी। इससे प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा को आंच आ सकती है। इसे आर्थिक घोटाला भी माना जा सकता है। सरकार के पैसों को निजी कामों मेंं खर्च करने का यह मामला माना जाएगा। इसलिए वायु सेना के विमान के प्रधानमंत्री द्वारा चुनाव कार्यों में इस्तेमाल की सिफारिश ऐसे किसी प्रतिष्ठान से होनी चाहिए जिसके रोज ब रोज के कामों में सरकार का सीधा असर नहीं रहता हो।े  
   
 इस पृष्ठभूमि में इस मामले को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक नर हरि राव को भेज दिया गया। सारे कागजात उन्हें भेज दिए गए। कागजात के अध्ययन के बाद उन्होंेने प्रधानमंत्री सचिवालय को बताया कि अभी देश में स्थिति असामान्य है। इस हालात में प्रधानमंत्री की निजी सुरक्षा पर ध्यान रखना जरूरी है। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री को चुनाव कार्यों के लिए वायु सेना के विमान की सुविधा दी जा सकती है। पर नरहरि राव ने अपने नोट में यह भी लिख दिया कि किसी अगले प्रधानमंत्री के लिए यह पूर्व उदाहरण नहीं माना जाएगा। सी.ए.जी. की इस सलाह को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। कैबिनेट के निर्णय के बाद सी.ए.जी. की सिफारिश की प्रति प्रेस को वितरित कर दी गई।

  सन् 1951 में वायु सेना के पास सिर्फ कुछ डकोटा विमान ही थे। प्रधानमंत्री ने उसी का इस्तेमाल किया। प्रथम आम चुनाव की प्रक्रिया लम्बी चली। वह चुनाव सन् 1951 के अक्तूबर और दिसंबर तथा 1952 कीे फरवरी में हुआ था। बाद के प्रधान मंत्रियों ने भी चुनाव के समय वायु सेना के विमानों का इस्तेमाल किया। पर नर हरि राव की इस सलाह का कि यह पूर्व उदाहरण नहीं माना जाएगा,समाधान कैसे किया गया, यह पता नहीं चल सका। 

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