(08 मई, 2007 को प्रकाशित लेख)
अपना फायदा लालू के लिए हरदम सर्वोपरि
कम से कम तीन उदाहरण काफी होंगे। ताजा उदाहरण आपातकाल के समर्थन को लेकर है। उन्होंने पहले तो सार्वजनिक रूप से कह दिया कि 1975 में देश में आपातकाल लगाना जरूरी था, पर बाद में वे अपने बयान से पलट गए। इससे पहले भी अपने फायदे के लिए दो बार अपने महत्वपूर्ण बयानों से वे पलट चुके हैं।
सब अपने लाभ के लिए। वैसे पलटे तो हैं और भी कई बयानों से। पर इन तीन को महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए।
लालू प्रसाद 1989 में लोकसभा के सदस्य चुने गए थे। भागलपुर दंगे पर लोकसभा में चर्चा हो रही थी। लालू प्रसाद ने सदन में दावे के साथ कहा कि दंगे में आर.एस.एस. या भाजपा का हाथ नहीं है। दंगा शुरू कराया दो मुस्लिम अपराधियों ने। यह बात लालू प्रसाद ने इसलिए कही क्योंकि तब केंद्र में वी.पी. सिंह की सरकार भाजपा के समर्थन से चल रही थी। बिहार विधानसभा का चुनाव 1990 में होने वाला था। चुनाव के परिणाम उनके दल के अनुकूल हो, इसके लिए जरूरी था कि केंद्र में वी.पी. सिंह की सरकार बनी रहे। ऐसा तभी संभव था जब भाजपा का समर्थन उसे मिलता रहे। भागलपुर दंगे को लेकर भाजपा या आर.एस.एस. पर आरोप लगाकर उसे नाराज करना ठीक नहीं लगा लालू प्रसाद को।
पर जब 1990 में लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने भागलपुर दंगे के कारणों को लेकर अपना विचार बदल लिया। तब तक भाजपा ने केंद्र की सरकार से अपना समर्थन वापस लेकर वी.पी. सिंह की सरकार को गिरा दिया था। फिर क्या था, लालू प्रसाद ने न सिर्फ भाजपा और आर.एस.एस. बल्कि एल.के. आडवाणी को भी भागलपुर दंगे के लिए जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। उन दिनों यशवंत सिन्हा बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे। उन्होंने लोकसभा में 1989 में दिए गए लालू प्रसाद के उस भाषण को विधानसभा में पढ़कर सुना दिया जिसमें उन्होंने आर.एस.एस. और भाजपा को क्लिन चीट दी थी।
बिहार का विभाजन मेरी लाश पर होगा : लालू (2000 में बोले)
दूसरा मामला बिहार के विभाजन को लेकर है। सन् 2000 से पहले लालू प्रसाद अक्सर यह कहा करते थे कि ‘बिहार का विभाजन मेरी लाश पर होगा।’ पर सन 2000 में लालू प्रसाद के राजद को विधानसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिला। राजद की सरकार का गठन तभी हो सकता था जब कांग्रेस का उसे समर्थन मिलता। कांग्रेस ने यह शर्त रख दी कि लालू प्रसाद यदि राज्य के विभाजन के लिए राजी हो जाएं तो
कांग्रेस समर्थन देकर सरकार बनवा देगी। लालू प्रसाद तुरंत राजी हो गए। वे अपना यह बयान भूल गए कि उनकी लाश पर विभाजन होगा। बिहार में उनके दल की सरकार जरूरी थी क्योंकि चारा घोटाले से संबंधित केस सामने थे और अपनी सरकार रहने पर विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में ठीक ठाक सुविधाएं मिल जाती हैं।
आपातकाल का समर्थन
तीसरा उदाहरण आपातकाल के समर्थन का है। लालू प्रसाद की अपनी एक खासियत है। उनके दिल में जो बात रहती है, वे उसे परिणामों की परवाह किए बिना कभी कभी बोल देते हैं। इंदिरा गांधी की तरह ही भ्रष्टाचार व परिवारवाद के तरह तरह के आरोप झेल रहे लालू प्रसाद को शायद लगता है कि एक बार फिर आपातकाल लग जाने के बाद वे इंदिरा गांधी की तरह ही अदालती कार्रवाइयों से बच जाएंगे। याद रहे कि आपात काल लगाकर कानून बदल देने के बाद इंदिरा गांधी इलाहाबाद हाई कोर्ट के जजमेंट का परिणाम भुगतने से बच गई थीं। याद रहे कि हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी की संसद की सदस्यता खारिज कर दी। चुनाव में भ्रष्ट आचरण का आरोप सिद्ध हो जाने के बाद कोर्ट ने ऐसा किया था।
कांग्रेस ने आपातकाल लगाने पर जरूर बाद में अफसोस जाहिर किया था, पर अनेक कांग्रेसियों के मन में आपातकाल के प्रति आकर्षण अब भी है। शायद सोनिया गांधी लालू के इस बयान से भीतर भीतर खुश होंगी, यही सोच कर लालू प्रसाद ने आपातकाल के पक्ष में बयान दिया। यह और बात है कि अपनी पुरानी आदत के तहत उन्होंने बयान का इस इलेक्ट्राॅनिक मीडिया के युग में भी तुरंत खंडन भी कर दिया। इससे उनकी साख कुछ और घटी क्योंकि कुछ ही समय पहले टी.वी. पर लोगों ने लालू प्रसाद को आपातकाल का समर्थन करते हुए देखा और सुना था। लालू प्रसाद के इस बयान पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि उनका बयान प्रतिक्रिया के काबिल भी नहीं है। उन्हें अभी कांग्रेस सरकार से कई काम कराने हैं। उनका इशारा था कि चारा घोटाले संबंधित केस में केंद्र सरकार से लालू प्रसाद को मदद चाहिए।
लालू प्रसाद के आपातकाल समथर््ाक बयान पर उन नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है जो आंदोलन में सक्रिय थे और जिन्होंने आपातकाल की ज्यादतियां झेली थीं। आपातकाल के पक्ष में बयान देकर लालू प्रसाद ने उन्हें यह भी मौका दे दिया कि वे लालू प्रसाद की कमजोरियों की एक बार फिर चर्चा करें। लालू प्रसाद ने जेपी आंदोलन के दौरान अपनी अनेक कमजोरियां दिखाई थीं। उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि अगर आपातकाल कुछ समय और रहता तो लालू प्रसाद उसी समय कांग्रेस की गोद में जा बैठते।
बिहार भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री और जेपी आंदोलन के एक नेता हरेंद्र प्रताप ने लालू प्रसाद से संबंधित एक शर्मनाक प्रकरण की चर्चा कर दी। उन्होंने कहा कि 1985 में विद्यार्थी परिषद के सम्मेलन को लेकर राम बहादुर राय और लालमुनी चैबे के साथ मैं अब्दुल गफूर से मिला। तब वे केंद्र में मंत्री थे। श्री राय से जब उनका परिचय कराया गया तो उन्होंने कहा कि ‘इन्हीं के चलते बिहार से मेरा राजपाट चला गया। लालू को तो हमलोगों ने मिला लिया था। वह पैसा भी लेता था।’ राम बहादुर राय जेपी आंदोलन के प्रमुख नेताओं में थे और तब अब्दुल गफूर बिहार के मुख्यमंत्री थे।
जदयू के प्रवक्ता शिवानंद तिवारी ने लालू के आपातकाल समर्थक बयान पर कहा कि लालू प्रसाद ने आंदोलन को अपनी बुलंदी के लिए सीढ़ी बनाइ्र्र। उनकी धोखाधड़ी की आदत अब भी कायम है। बिहार सरकार के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह ने कहा है कि हमने उन्हें आंदोलन में लाया था। वे तो वेटनरी कालेज में किरानी का काम करते थे। उनका एकमात्र काम था चंदा वसूलना। छात्र युवा संघर्ष संचालन समिति में लालू प्रसाद की हैसियत एक सदस्य मात्र की थी। समिति का कोई अध्यक्ष नहीं था। तब के आंदोलन में सक्रिय रहे भवेश चंद्र प्रसाद, विक्रम कुंअर, अश्विनी कुमार चैबे और अरूण कुमार सिंहा ने भी लालू प्रसाद के बारे में इसी तरह की राय प्रकट की है। कुल मिलाकर अपने बयान से लालू प्रसाद ने कांगेस को भले खुश किया होगा, पर जेपी आंदोलन में जो भी उनका थोड़ा बहुत योगदान था, उसपर भी उन्होंने पानी फेर दिया। निष्पक्ष लोगों में उनके प्रति यही राय बनी है।
(08 मई, 2007 को प्रकाशित लेख)
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