गुरुवार, 15 अगस्त 2013

आयोग के कारण तो गिर गई थी एक अच्छी सरकार

(सितंबर 2009 में प्रकाशित लेख)


एक न्यायिक जांच आयोग के असर ने सन् 1967 में तब की सरकार ही गिरवा दी थी।

   सन् 1967 का महामाया मंत्रिमंडल निष्पक्ष प्रेक्षकों द्वारा बिहार का अब तक का सबसे बढि़या मंत्रिमंडल माना जाता है। उसके करीब-करीब सभी मंत्री जनसेवा की भावना से ओत-प्रोत थे। उस मंत्रिमंडल के होम करते हाथ जल गये थे। उस सरकार के गिरने के कारण बिहार की अधिकतर जनता दुःखी थी। पर वह अब भी निष्पक्ष लोगों से यह सराहनीय पाती है कि वह बिहार का अब तक का सबसे अच्छा मंत्रिमंडल था।
यहां किसी एक मुख्यमंत्री की बात नहीं कही जा रही है। पूरे मंत्रिमंडल की बात कही जा रही है। वह जिन कारणों से एक ही साल के भीतर गिरा दी गई तो उसके दो मूल कारण थे। एक तो खुद संयुक्त मोर्चा में शामिल दलों के अनेक विधायक सत्तालोलुप हो गये थे। दूसरा किंतु सबसे महत्वपूर्ण कारण यह था कि अय्यर जांच आयोग से बिहार कांग्रेस के कई दिग्गज नेता बौखला गये थे और वे जल्द से जल्द महामाया सरकार को गिरा देना चाहते थे। पदलोलुपों की मदद से वे इस काम में सफल भी हो गये।

    महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में बिहार में जो सरकार बनी थी उसमें संसोपा, सी.पी.आई. और जनसंघ के मंत्री भी शामिल थे। पर मंत्री पद को लेकर बी.पी. मंडल और जगदेव प्रसाद नाराज थे और उन्होंने शोषित दल बना कर सरकार गिरा दी। पर इस काम में उन्हें बिहार कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेताओं का भरपूर सहयोग हासिल था।

महामाया प्रसाद सिन्हा की सरकार ने सन् 1946 से 1966 तक मंत्री व मुख्यमंत्री रहे छह कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की जांच के लिए अय्यर न्यायिक जांच आयोग का गठन कर दिया। अय्यर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिष्ठित जज रह चुके थे। इस आयोग के गठन के पीछे तत्कालीन मंत्री भोला प्रसाद सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका थी। वे आज भी बताते हैं कि किस तरह कुछ कांग्रेसी नेताओं ने महामाया प्रसाद की सरकार को गिराने के लिए कल-बल-छल का इस्तेमाल किया था। तत्कालीन उपमुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के आवास पर बम फेंके गये। विधायकों को प्रलोभन दिया गया। धमकाया गया। अपहरण करने की कोशिश की गई। तब सरकार गिरने की आशंका से उपजी राजनीतिक अनिश्चितता के कारण पुलिस भी असमंजस में थी। वह उन सरकार समर्थक विधायकों को समुचित संरक्षण नहीं दे रही थी जिनके अपहरण की आशंका थी। इसलिए कुछ विधायकों व मंत्रियों को बचाने के लिए संयुक्त मोर्चा के नेताओं ने निजी सुरक्षा व्यवस्था पर ही भरोसा किया।

   जितने विधायकों ने दलबदल करके शोषित दल बनाया, उन सबको बी.पी. मंडल सरकार में मंत्री बना दिया गया। यह राजनीति में पतन की ठोस शुरुआत थी। सवाल एक ऐसे आयोग का जो था। उस आयोग में सबकी गरदन फंस रह थी। अगले मुख्य मंत्री बी.पी. मंडल की तारीफ करनी होगी जिसने आरोपितों के दबाव के बावजूद अय्यर कमीशन को भंग नहीं किया।

पर बाद की अवधि में बार- बार सरकार बदलते जाने के कारण गवाहों व सबूतों को जुटाने में दिक्कत जरूर हुई। फिर भी सभी छह अभियुक्त किसी न किसी कदाचार-भ्रष्टाचार के लिए आयोग द्वारा  दोषी पाए ही गये थे। एक आयोग ने सरकार गिरवा कर अपना कमाल दिखा दिया। इससे यह भी पता चलता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई निर्णायक कदम उठाना उस समय तक भी कितना कठिन काम हो चुका था। अब तो यह काम दुष्कर बन चुका है।

   महामाया सरकार ने यह सोचा था कि अय्यर आयोग के जरिए दोषी नेताओं को सजा दिलवा कर आगे के भ्रष्ट नेताओं को चेतावनी दे दी जाए। पर उस काम में सफलता नहीं मिली। बल्कि एक अच्छी खासी सरकार शहीद हो गई।

महामाया सरकार जब बनी थी तब देश में भयंकर सूखा था। बिहार में उसका सर्वाधिक असर था। महामाया सरकार के अनेक मंत्रियों और अफसरों ने रात दिन एक करके राहत के काम नहीं किये होते तो हजारों लोग तब भूख से मर गये होते। जय प्रकाश नारायण ने भी सराहनीय राहत कार्य किया। उस सरकार को भी भ्रष्ट और सत्तालोलुप नेताओं ने नहीं बख्शा था।

याद रहे कि अय्यर आयोग भंग करने का राजनीतिक समझौता करके तब महामाया सरकार बचाई जा सकती थी। पर ऐसा करना उस समय के संयुक्त मोर्चा की सरकार ने उचित नहीं समझा। उस समय बी.पी. मंडल को बिहार में मंत्री बने रहने दिया गया होता और जगदेव प्रसाद को मंत्री बना दिया गया होता तोभी महामाया सरकार नहीं गिरती। पर ऐसा समझौता भी नहीं किया गया। ऐसे नहीं माना जाता है तब के मंत्रिमंडल को अब तक का सबसे अच्छा मंत्रिमंडल !

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