सरदार पटेल के जन्म दिन पर विशेष ( 31 अक्तूबर )
राज गोपालाचारी ने सरदार पटेल के निधन के दो दशक बाद यह लिखा था कि यदि आजादी के बाद सरदार पटेल इस देश के प्रधानमंत्री और जवाहर लाल नेहरु विदेश मंत्री बने होते तो देश के लिए बेहतर होता।
आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल राज गोपालाचारी उर्फ राजाजी ने इस बात के बावजूद यह बात लिखी कि जवाहर लाल नेहरु उन्हें यानी राजाजी को देश के प्रथम राष्ट्रपति बनवाना चाहते थे। पर सरदार पटेल राजेंद्र बाबू के पक्ष में थे ,इसलिए राजाजी नहीं बन सके।
खुद की बनिस्पत देश के हित के बारे में अधिक सोचने वाले राजा जी का यह विचार आज के नेताओं के लिए सीख है। राजाजी चाहते थे कि उनके राजनीतिक विरोधी भी यदि योग्य हैं तो प्रधानमंत्री वही बनते तो देश के लिए अच्छा होता।
उधर किस तरह राजा जी के मामले में जवाहर लाल नेहरु और सरदार पटेल के बीच कड़ी रस्साकसी चली थी, वह विवरण जानना दिलचस्प होगा।
‘यूं तो मैं जानता हूं कि राज गोपालाचारी का नाम उनके सन् 1942 के आंदोलन का विरोध करने के कारण, कांग्रेस वालों को बहुत अच्छा नहीं लगेगा, पर यदि विदेशी खिड़की से झांका जाए तो राजाजी का व्यक्तित्व बहुत ऊंचा है। उन्होंने गवर्नर जनरल के रूप में बहुत कुछ नाम कमाया है।’
कांग्रेस विधान पार्टी की बैठक में 1949 में जवाहर लाल नेहरू ने राजगोपालाचारी को देश का प्रथम राष्ट्रपति बनाने के लिए उपर्युक्त शब्दों में अपनी बात रखी थी। बैठक आरंभ होते ही जवाहर लाल जी ने कहा कि ‘राजेंद्र बाबू ने अपना नाम वापस ले लिया है और यह बड़े गौरव की बात इतिहास में जाएगी कि हमने प्रथम राष्ट्रपति को निर्विरोध चुन लिया।’ यह विवरण महावीर त्यागी की चर्चित पुस्तक ‘आजादी का आंदोलनःहंसते हुए आंसू’ में दर्ज है। त्यागी केंद्र में मंत्री भी रहे थे।
महावीर त्यागी ने बैठक के बारे मंे लिखा कि जब जवाहर लाल जी ने राजा जी के नाम का प्रस्ताव किया तो हमारी टोली के सदस्यों ने खड़े होकर जवाहर लाल जी के इस प्रस्ताव का विरोध कर दिया। पहले जस्पत राय कपूर बोले। फिर राम नाथ गोयनका ने बड़े गुस्से से चिल्ला कर कहा कि हमें यह बताइए कि हम राष्ट्रपति कांग्रेस वालों के लिए चुन रहे हैं या उनके विरोधियों के लिए? जब आप अपने मुंह से मान रहे हो कि राजाजी का नाम कांग्रेस वालों को पसंद नहीं आयेगा तो हम क्या कांग्रेसी नहीं हैं ? मैंने भी विरोध करते हुए कहा कि जवाहर लाल जी आपको यह क्या आदत पड़ गई है कि आप हमेशा विदेशी खिड़कियों में से झांकते हैं। फतेहपुर सिकरी के बुलंद दरवाजे में से देखो तो आप जानोगे कि राजेंद्र बाबू का व्यक्तित्व आसमान के बराबर ऊंचा है। इसी तरह सबने विरोध किया।
बालकृष्ण शर्मा नवीन ने कहा कि मैं प्रस्ताव करता हूं कि यह प्रश्न जवाहर भाई के ऊपर छोड़ दिया जाए। इस पर एक सदस्य ने यह संशोधन पेश किया कि जवाहर लाल जी और सरदार पटेल दोनों मिलकर निर्णय लें। बस सबने ताली बजा दी।
महावीर त्यागी के अनुसार ,अगले दिन सरदार पटेल ने बताया कि हम लोगों के जाते ही जवाहर लाल और वे एक कमरे में सलाह करने के लिए जा बैठे। जवाहर लाल जी ने कहा कि मेरी राय में तो यह अच्छा ही हुआ कि पार्टी ने यह सवाल हमारे ऊपर छोड़ दिया। राजेंद्र बाबू तो उम्मीदवार हैं नहीं। इसलिए हमें अपना निर्णय राज गोपालाचारी के पक्ष में दे देना चाहिए।
इसपर सरदार ने कहा कि प्रस्ताव के शब्दों के अनुसार हमें पार्टी की आवाज के अनुसार फैसला देना है। अपनी आवाज के अनुसार नहीं। पार्टी के अधिकतर लोग राजेंद्र बाबू को चाहते हैं। हमें अपनी राय नहीं बतानी, वह तो सबको पता है। हमको पंच फैसला देना है। क्या आपकी राय में बहुमत राजाजी को स्वीकार करेगा? इसको सुनकर जवाहर लालजी ने धीरे से कहा तो आप फैसला सुना दो कि हम दोनों की राय में राजेंद्र बाबू को ही राष्ट्रपति चुना जाना चाहिए। इस तरह राजेंद्र बाबू चुन लिये गये।
पर इससे पहले एक दिलचस्प किंतु प्रेरणादायक प्रकरण भी हुआ। इससे जवाहर लाल जी के तब के लोकतांत्रिक मिजाज और राजेंद्र बाबू सत्ता के प्रति निर्मोही रुख का पता चलता है।
याद रहे कि कांग्रेस विधान पार्टी की बैठक में जवाहर लाल जी ने यहां तक कह दिया था कि यदि आप लोग राजा जी को राष्ट्रपति नहीं बनाएंगे तो आपको अपनी पार्टी का नया नेता भी चुनना होगा। जवाहर लाल जी पार्र्टी के नेता थे और प्रधानमंत्री भी।
पर अधिकतर सदस्य जब इस धमकी में भी नहीं आए तो जवाहर लाल जी राजेंद्र बाबू के यहां चले गये। उन्होंने राजेंद्र बाबू से पूछा कि क्या आप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं ? उन्होंने कहा कि मैं किसी पद का उम्मीदवार नहीं हूं। इस पर जवाहर लाल जी ने कहा कि राजेंद्र बाबू आपसे मेरी अपील है कि आप राजा जी को निर्विरोध चुना जाने दो। राजेंद्र बाबू के अनुसार ‘इस पर मैं लाजवाब हो गया और उनके कहे अनुसार यह लिख कर दे दिया कि राज गोपालाचारी के राष्ट्रपति चुने जाने पर मुझे कोई एतराज नहीं है और मैं इसका उम्मीदवार नहीं हूं।’
इसपर बाद में जब सरदार पटेल और राजेंद्र बाबू के समर्थकों ने राजेंद्र बाबू के सामने गुस्सा जाहिर किया तो राजेंद्र बाबू दोनों हाथों से सिर थाम कर बैठ गये और कहा कि गांधीवादी होते हुए मेरे लिए यह कैसे संभव था कि मैं बच्चों की तरह पद के लिए जिद करता ?
तब राजेंद्र बाबू के समर्थकों ने कहा कि एक बात हो सकती है। आप जवाहर लाल जी को एक पत्र लिख दें। आप लिखें कि मैं अपनी बात पर कायम हूं। पर पार्टी के साथियों से बिना परामर्श किये मैंने अपना नाम वापस लिया है। इसलिए मेरी प्रार्थना है कि आप पार्टी के प्रमुख सदस्यों को बुलाकर समझा दें कि वे मेरे वापस हो जाने पर चुनाव निर्विरोध हो जाने दें। उन्होंने तुरंत चिट्ठी लिख दी।
(जनसत्ता ः 31 अक्तूबर 2013)
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