मंगलवार, 28 जनवरी 2014

ऊपरी सदन में बिहार की छवि बदलेंगे ये नुमाइंदे

  जनता दल (यू) और भाजपा बिहार से शालीन व बौद्धिक छवि के लोगों को राज्यसभा में भेज रहे हैं। राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव के लिए इस बार जिन उम्मीदवारों का चयन किया गया है, उन लोगों से बारी से पहले बोलने की कोशिश करने की कतई उम्मीद नहीं है।

 सदन की कार्यवाही में इनके द्वारा बाधा पहुंचाये जाने का प्रयास करने की भी कोई उम्मीद नहीं है। याद रहे कि गत दो दशकों से लोकसभा व राज्यसभा के सत्र शोरगुल, हंगामा, नारेबाजी, अभद्रता तथा इस तरह के अन्य गैर संसदीय आचरण के लिए चर्चित रहे हैं।

सदन की बैठकों को किसी न किसी उचित-अनुचित बहानों से बाधित करने में वैसे तो लगभग अधिकतर राज्यों के कुछ सदस्यों का योगदान रहा है, पर ऐसे कामों में बिहार के कतिपय सदस्यों की अपेक्षाकृत कुछ अधिक ही विवादास्पद भूमिका रही है। इससे बिहार की छवि खराब भी होती रही है। दूसरी ओर बेहतर लोगों के सदन में जाने से बिहार की छवि सुधरेगी।

  पिछली लोकसभा में बिहार से ही एक महिला सांसद ने सदन में ही यह कह दिया था कि मैं तो शांतिपूर्वक सदन की कार्यवाही में भाग लेना चाहती हूं, पर हमारे दल के नेता हमें हंगामा करने के लिए कहते हैं। ऐसे में मैं क्या करुं, कुछ समझ में नहीं आता।

  इस पृष्ठभूमि में यह महत्वपूर्ण है कि कोई दल ऐसे लोगों को देश के सर्वोच्च सदन मेें भेजे जो अपनी शालीनता व बौद्धिक क्षमता से सदन की उस गरिमा को कायम रखे जिसकी उम्मीद संविधान निर्माताओं ने की थी।

 आजादी के तत्काल बाद के वर्षों में राज्यसभा में आम तौर पर गरिमामय व्यक्तित्व वाले बौद्धिक लोगों को ही भेजा जाता था। पर बाद के वर्षों में कई कारणों से इस परंपरा को कायम नहीं रखा जा सका। हाल के वर्षों में बिहार सहित कुछ अन्य राज्यों से कुछ ऐसे-ऐसे लोग राज्यसभा में गये जो अपने गैर संसदीय कार्यों के लिए ही अधिक चर्चित रहे हैं।

  दूसरी ओर, बिहार से ताजा उम्मीदवारी में उस परंपरा की हल्की झलक मिलती है जो आजादी के तत्काल बाद शुरू की गई थी। भाजपा ने डा. सी.पी. ठाकुर और आर.के. सिन्हा तथा जदयू ने हरिवंश, रामनाथ ठाकुर और कहकशां परबीन को बिहार से राज्यसभा का इस बार उम्मीदवार बनाया है।

  जरूरत पड़ने पर मतदान सात फरवरी को होगा। जदयू और भाजपा के विधानसभा सदस्यों की संख्या को देखते हुए इन उम्मीदवारों की जीत पक्की मानी जा रही है। डा. ठाकुर एक प्रतिष्ठित डाक्टर हैं और केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं। वे शालीन व्यवहार के लिए जाने जाते हैं। उन्हें कभी सदन में शोरगुल करते नहीं देखा गया।

 आर.के. सिन्हा यानी रवींद्र किशोर अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों में चर्चित पत्रकार रहे हैं। प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश सौम्य स्वभाव के चिंतक पत्रकार हैं। वे अच्छे वक्ता भी हैं।

वे बिहार और झारखंड के पिछड़ापन को सवाल मजबूती से उठाते रहे हैं। बिहार के पूर्व मंत्री रामनाथ ठाकुर चर्चित, ईमानदार व शालीन नेता दिवंगत कर्पूरी ठाकुर के पुत्र हैं। पूरी नहीं, पर कर्पूरी ठाकुर की कुछ-कुछ छाप उन पर जरूर है।

  कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवनकाल में तो अपने किसी परिजन को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाया, पर उनके निधन के बाद पहले लालू प्रसाद और बाद में नीतीश कुमार ने रामनाथ ठाकुर को समय-समय उचित सम्मान दिया। जदयू अध्यक्ष शरद यादव के मन में भी कर्पूरी ठाकुर के लिए विशेष श्रद्धा के भाव रहे हैं।

पटना में 24 जनवरी को कर्पूरी जयंती के अवसर पर जब शरद यादव ने राज्यसभा उम्मीदवारों के नामों की सार्वजनिक रूप से घोषणा की तो समारोह में उपस्थित रामनाथ ठाकुर की आंखों में खुशी के आंसू आ गये। भर्राए गले से उन्होंने मीडिया से कहा कि मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था।

याद रहे कि रामनाथ ठाकुर ने इस उम्मीदवारी के लिए न तो कोशिश की थी और न ही इतनी बड़ी जगह मिलने की उन्हें उम्मीद ही थी। पर नीतीश कुमार ऐसे मामलों में कई बार लोगों को अंतिम समय में चकित करते रहे हैं।

  कहकशां परबीन बिहार महिला आयोग की अध्यक्ष हैं और भागलपुर नगर निगम की मेयर रह चुकी हैं। बिहार से राज्यसभा के लिए पांच सीटों पर चुनाव होना है। 243 सदस्यीय विधानसभा के पिछले चुनाव में जदयू और भाजपा के कुल 206 सदस्य विजयी हुए थे। सबसे बड़े प्रतिपक्षी दल राजद के सदस्यों की संख्या मात्र 22 है। यानी जदयू और भाजपा को छोड़कर किसी अन्य दल को अपना एक उम्मीदवार जिताने की भी क्षमता नहीं है।ं

  हरिवंश तो पूर्णकालिक पत्रकार रहे हैं, पर बिहार से ही पूर्व पत्रकार अली अनवर पहले से ही राज्यसभा में हैं। अली अनवर दैनिक जनशक्ति, जनसत्ता तथा कई अन्य प्रकाशनों के लिए काम कर चुके हैं।

 इस बार राज्यसभा के लिए भाजपा उम्मीदवार आर.के. सिन्हा भी सत्तर के दशक में बिहार के चर्चित पत्रकार थे। उन्होंने पटना के दैनिक प्रदीप और इलाहाबाद की पत्रिका माया के लिए काम किया था। उन्होंने तब कई स्टोरी ब्रेक की थी। बाद में दूसरे काम में लग गये। वे भी शालीन स्वभाव के नेता हैं।

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