देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के मामलों में भी हमारे यहां की राजनीति आखिर इतनी बंटी हुई क्यों है ? कहीं आतंकी घटना या उस पर कार्रवाई हुई नहीं कि इस देश के नेतागण परस्पर विरोधी स्वर में बोलने लगते हैं।
क्या किसी अन्य देश में ऐसा होता है ? शायद नहीं।
क्या किसी ने कभी सुना कि अमेरिका के विश्व व्यापार केंद्र पर हमले को लेकर वहां के विरोधी दल ने सत्ताधारी नेताओं पर कोई आरोप लगाया ?
हां, उन दिनों भारत के कुछ कथित ढोंगी धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों ने यह सवाल जरूर उठाया गया था कि 11 सितंबर 2001 को विश्व व्यापार केंद्र में कार्यरत सारे यहूदी कर्मचारी एक साथ छुट्टी पर क्यों थे ?
हाल में पोरबंदर के पास पाकिस्तान की एक संदिग्ध नाव पर भारतीय कार्रवाई के बाद कांग्रेस ने सवाल खड़ा कर दिया है। हालांकि पेशेवर खोजबीनकत्र्ता जरूर कुछ संतुलित सवाल उठा सकते हैं। वह नाव मछुआरों की थी या आतंकियों की ?
उस पर मादक पदार्थों के तस्कर थे या उस नाव का उद्देश्य कुछ और था ?
भारत के नेशनल टेकनिकल रिसर्च आॅर्गनाइजेशन के अनुसार उस नाव में सवार चार लोगों के पास स्नाइपर राइफले, अग्नि बम और गोला -बारुद थे।
एक अन्य खबर के अनुसार उस नाव पर मादक पदार्थों के पाकिस्तानी तस्कर थे। पर, सवाल है कि पकड़े जाने की आशंका से तस्कर आत्महत्या कर लेते हैं ?
आतंकवाद और मादक पदार्थों की तस्करी के बीच के गहरे रिश्ते को पूरी दुनिया जानती है, सिर्फ उन भारतीय नेताओं को छोड़कर जो भारत सरकार से सबूत मांग रहे हैं।
इस माहौल में कई लोगों को मध्ययुग की याद आती है जब इस देश पर बाहरी लोगों द्वारा कब्जा करने के प्रयास में इसी देश के कुछ लोगों ने उन्हें मदद की थी।
एक ब्रिटिश इतिहासकार प्रो. जे. आर. शेेली ने भी लिखा है कि हमने बेहतर नस्ल होने के कारण भारत को नहीं जीता, बल्कि खुद कुछ भारतीयों ने भारत को हमारे लिए जीत कर हमारी तश्तरी में परोस दिया।
ठीक ही कहा गया है कि जो इतिहास से नहीं सीखता ,वह इतिहास को दुहराने को अभिशप्त होता है।यह कहावत भारत पर अधिक लागू होती है। हमारे यहां तो कुछ इतिहासकारों की यह भी शिकायत रही है कि यहां सच्चा व संपूर्ण इतिहास तो पढ़ाया ही नहीं जाता।
26 नवंबर 2008 को पाकिस्तान से भेजे गए आतंकियों ने मुम्बई में ताज होटल सहित दस स्थानों पर हमला करके सौ से अधिक निर्दोष लोगों को मार डाला।
उससे पहले दिल्ली के बाटला हाउस में आंतकियों ने पुलिस अफसर की हत्या कर दी। दोनों ही मामलों में अदालतों ने आतंकियों का सजाएं दीं। ये सजाएं जब हुईं तब देश में भाजपा की सरकार नहीं थी।
पर मुम्बई हमले के बाद एक पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया था कि इस कांड में बाहरी नहीं बल्कि भीतरी तत्वों का ही हाथ है।
बाटला हाउस मुठभेड़ पर एक अन्य कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ने आशंका जाहिर की थी कि वह मुठभेड़ नकली थी।
इस पृष्ठभूमि में भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने ठीक ही कहा है कि आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई पर कांग्रेस के सवाल पाकिस्तान को आक्सीजन दे रहे हैं ।
याद रहे कि पोरबंदर नौका कांड को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता अजय कुमार ने सवाल उठाया है कि कोई सबूत नहीं है, फिर भी यह दावा कैसे कर सकते हैं कि आतंकी हमले को नाकाम कर दिया गया ?
साभार-दैनिक भास्कर पटना में 06 जनवरी 2015 को प्रकाशित
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