मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

वन में कहां मिलेगी कुंडल की कस्तूरी !


‘कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढै वन माहिं।’ कांग्रेस की मौजूदा दुर्दशा पर 

कबीर की यह वाणी याद आती है।


  इस दुर्दशा का इलाज खुद नेहरु-इंदिरा परिवार के पूर्ववर्ती नेताओं की राजनीतिक व प्रशासनिक शैली में निहित है। कोई देखना चाहे तो देश और पार्टी के संविधान भी अच्छी राह दिखा सकते हैं। इससे भी काम नहीं चले तो कांग्रेस का मौजूदा नेतृत्व खुद से सवाल कर सकता है कि उसने आई.पी.सी. और सी.आर. पीसी की धाराओं को कितनी निष्पक्षता से जनहित में लागू होने दिया था ? 

  कांग्रेस की दुर्दशा के मुख्य कारण है कि उसके अधिकतर छोटे -बड़े नेताओं ने सरकारी तिजोरी के सदुपयोग के मामले में जवाहरलाल नेहरु की ईमानदारी का त्याग कर दिया। कठोर निर्णय के मामले में इंदिरा गांधी की राह छोड़ दी। राजीव गांधी की सहृदयता से भी कांग्रेस का कोई नाता नहीं रहा।

वोट के लिए शाही इमाम से मिलने वाली पार्टी के नेता राहुल गांधी अब पार्टी काॅडर से पूछ रहे हैं कि क्या कांग्रेस को हिन्दू विरोधी माना जा रहा है ? दर्द हाईकमान ने दिया, पर दवा कार्यकर्ताओं से मांगी जा रही है। बेचारे कार्यकर्ता और मध्यम दर्जे के नेतागण अब क्या बताएंगे जो आंख मूंद कर हाईकमान के हर निर्णय का समर्थन करने को बाध्य थे ?

क्या हाईकमान के खिलाफ एक शब्द उच्चारित करने की पहले उन्हें छूट थी ? कांग्रेस की दुर्दशा देखकर वैसे लोग भी दुःखी हैं जो कांग्रेस के समर्थक नहीं हैं, पर वे यह चाहते हैं कि देश में  अच्छी सरकार के साथ -साथ मजबूत और प्रामाणिक विपक्ष भी हो। पर कांग्रेस अब न तो मजबूत है और न ही प्रामाणिक। उसे ऐसा बने बिना उसका काम नहीं चलेगा।

 अधिकतर लोग यह मानते हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत का अधिक श्रेय मनमोहन सरकार की विफलता को जाता है। उससे थोड़ा कम श्रेय नरेंद्र मोदी को जाता है।

पर, सत्ता में आने के बाद  मोदी  सरकार अपनी नकारात्मक ताकत को भी सकारात्मकता में बदलने पर उतारू है। यानी उसके एक से एक बेहतर कामों और नेक मंशा से लोगबाग और भी प्रभावित होते जा रहे हैं। यदि वह जारी रहा और कारगर भी हुआ तो कांग्रेस को कहीं पैर रखने की जगह नहीं मिलेगी।

इसके बावजूद कांग्रेस हाईकमान खुद के बदले कार्यकर्ताओं से पूछ रहा है। मानो गलती कार्यकर्ताओं ने ही की हो। हकीकत यह है कि खुद कांग्रेस हाईकमान और उसकी सरकार इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है। यानी हाईकमान खासकर सोनिया गांधी-राहुल गांधी को खुद की नीयत, नीति और रणनीति बदलनी होगी।

मनमोहन सरकार के घोटालों के खिलाफ अन्ना हजारे अभियान चला रहे थे तो एक मंत्री ने पलट कर यह कहा था कि ‘अन्ना हजारे नीचे से ऊपर तक भ्रष्ट हैं।’ जब एक बड़ा घोटाला सामने आया तो एक दूसरे मंत्री ने कहा कि ‘इसमें जीरो लाॅस हुआ है।’ इतना ही नहीं बड़े से बड़े घोटालेबाज तभी जेल गए जब अदालत ने हस्तक्षेप किया।

एक पक्ष का आतंकवादी गिरफ्तार होता था तो सत्ताधारी नेता कहते थे कि इस गिरफ्तारी से मुझे पूरी रात नींद नहीं आई। जबकि इस देश में गिरफ्तार तो दोनों पक्षों के अतिवादी होते रहे हैं !

मनमोहन सरकार के एक अन्य मंत्री ने कहा था कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ जारी मुकदमों की सुनवाई के लिए विशेष कोर्ट बनाने के प्रस्ताव पर विचार किया जाएगा। इन सब एकतरफा बातों और कामों से भाजपा को लाभ मिलना ही थां।इस स्थिति में सुधार कौन कर सकता है ? कांग्रेस कार्यकर्ता, नेता या खुद पार्टी हाई कमान ?

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