गुरुवार, 22 सितंबर 2011

बिहार लोकायुक्त बिल

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने टीम अन्ना से कहा है कि वह बिहार लोकायुक्त विधेयक का मसविदा तैयार करे। अन्ना टीम की ओर से यह काम संतोष हेगड़े करेंगे। संतोष हेगड़े कर्नाटक के लोकायुक्त और सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके हैं।
यही बात नीतीश कुमार को अन्य अनेक नेताओं से अलग करती है। याद रहे कि कर्नाटक के लोकायुक्त के रूप में हेगड़े ने भाजपाई मुख्यमंत्री येदुरप्पा की कुर्सी ले ली। पर जिसे कोई घोटाला नहीं करना है, उसे कड़े से कड़ा लोकायुक्त या फिर लोकपाल से क्यों डरना ? सूत्रों के अनुसार मुख्य मंत्री नीतीश कुमार यह भी चाहते हैं कि बिहार का लोकायुक्त विधेयक उस जन लोकपाल विधेयक से भी अधिक कड़ा और कारगर हो जिसको पारित कराने के लिए टीम अन्ना इन दिनों आंदोलित है।
दूसरी ओर लालू प्रसाद और राम विलास पासवान जैसे कुछ नेतागण टीम अन्ना पर रोज -रोज बरस रहे हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार इस तरह लालू-पासवान द्वय खुद ही अपने राजनीतिक पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। पर लगता है कि किसी कारणवश बेचारे ये नेताद्वय ऐसा ही करने को लाचार हैं !
याद रहे कि सामान्य राजनीतिक ज्ञान वाला कोई व्यक्ति भी आसानी से यह देख सकता है कि आज देश में 1967, 1977 और 1989 से भी अधिक केंद्र की सत्ता और देश भर में फैले भ्रष्टाचार के विरोध में हवा है।
जदयू के एक नेता ने इन पंक्तियों के लेखक से हाल में कहा कि हमें तो आशंका थी कि कहीं राम विलास पासवान अन्ना की टीम में शामिल न हो जाएं। उससे हमें बिहार में थोड़ी कठिनाई होती। पर भगवान ने बिहारहित में पासवान की बुद्धि को अन्ना के विरोध में ही जाने दिया।


जनमत संग्रह शुरू
अन्ना आंदोलन की पृष्ठभूमि में जनमत संग्रह शुरू हो चुके हैं। उनके नतीजों पर नेताओं और विश्लेषणकर्त्ताओं की टिप्पणियां भी सामने आने लगी हैं।
एक एजेंसी ने दिल्ली और दूसरी एजेंसी ने हाल में देश के 28 नगरों में जनमत संग्रह किया। एक एजेंसी के अनुसार टीम अन्ना को दिल्ली में भारी जन समर्थन मिल रहा है। दूसरी एजेंसी के अनुसार भाजपा को 28 नगरों में बढ़त मिल रही है। कांग्रेस पीछे चली गई है। 32 प्रतिशत लोग भाजपा को और 20 प्रतिशत कांग्रेस को पसंद कर रहे हैं। यानी अन्ना के आंदोलन का लाभ राजग को मिल रहा है।
ऐसे सर्वेक्षणों पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं अब तक आती रही है, वैसी ही प्रतिक्रियाएं इस बार भी आने लगी हैं। जनमत संग्रह के नतीजे के अनुसार जो दल हारता होता है, उसके नेता हर बार यह कह देते हैं कि यह सर्वे फर्जी है। या फिर चुनाव आने तक स्थिति बदल जाएगी। जिसके पक्ष में जीत नजर आती है, वह कहता है कि हमारी स्थिति अभी और भी सुधरेगी।


कैसे-कैसे टिप्पणीकार !
इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों और उनके नतीजों को लेकर टिप्पणियां करने वालों का पुराना रिकार्ड देखा जाना चाहिए। यदि उन में से किसी ने गत तीन चुनावों की लगातार गलत भविष्यवाणियां ही की हांे तो उनको एक बार फिर यह काम नहीं दिया जाना चाहिए।
ताजा जनमत संग्रह पर जिन नेताओं और विश्लेषणकर्त्ताओं के विचार इस बार आये हैं, उनके पिछले चुनावों के समय क्या विचार थे, यह बात जनता को एक बार फिर मालूम हो जाना चाहिए। यदि पिछली बार भी वे गलत ही साबित हुए थे तो जनता को उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। यदि बात उल्टी हो तो उन्हें जरूर गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
यदि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले उनकी टिप्पणियों की पुरानी क्लिपिंग एक बार फिर दिखा सकें तो आम लोगों को उन टिप्पणीकारों व दलों के बारे में अपनी राय बनाने में काफी सुविधा होे जाएगी।


अगला राजनीतिक दृश्य
यदि इस बीच कोई अनहोनी नहीं हो गई तो लगता है कि लोकसभा का चुनाव 2014 में तय समय पर ही होगा। ताजा इतिहास बताता हैं कि कांग्रेस में येन-केण प्रकारेण गद्दी पर बने रहने की अद्भुत क्षमता है।
यह भी आशंका है कि इस बीच टीम अन्ना को पूरी तरह संतुष्ट करने लायक कोई लोकपाल विधेयक पास करने की स्थिति में कांग्रेस नहीं ही होगी। यानी अगले चुनाव तक अन्ना का आंदोलन चलता रहेगा। स्वामी राम देव भी आंदोलन में एक बार फिर मजबूती से कूदने ही वाले हैं। बाबा राम देव के साथ एक बड़ी संगठित जमात भी है। यानी देश गरमाता रहेगा। इसका लाभ एन.डी.ए. को अगले चुनाव में मिल सकता है।
पर दिक्कत यह है कि एन.डी.ए. में भी ऐसे-ऐसे नेताओं की कोई कमी नहीं है जो थोड़े-बहुत व मध्यम दर्जे के घोटाले के भीतर ही भीतर पक्षधर रहे हैं भले सार्वजनिक रूप से वे ऐसा नहीं कहें। वैसे लोगों की आदत ही ऐसी बन चुकी है। हालांकि राजग की कुल मिलकार कांग्रेस की अपेक्षा भ्रष्टाचार के मामले में अब भी बेहतर स्थिति है।
इसलिए यदि अन्ना को अपने त्याग-तपस्या-संघर्ष का लाभ एन.डी.ए.को ही अंततः पहुंचाना है तो अन्ना को राजग के सामने अभी से ही एक शर्त रखनी चाहिए। वह यह कि आप अपने बीच के भ्रष्ट और अपराधी तत्वों को टिकट कतई नहीं दोगे और परिवारवाद से दूर रहोगे, तभी हमारा समर्थन चुनाव में पाओगे। अगले साल होने वाले यू.पी. के चुनाव में राजग की इस मामले में परीक्षा ले ली जा सकती है। साथ ही अन्ना टीम राजग से यह भी कहे कि आप अपनी पिछली गलतियों के लिए देश से माफी भी मांगिए। यदि यू.पी. के विधान सभा चुनाव में फिर भी राजग कुछ अपराधी और भ्रष्ट उम्मीदवारों को टिकट देता है तो अन्ना टीम को वहां अपने समानांतर उम्मीदवार खड़ा कराने चाहिए अन्यथा जनता की उम्मीदें अन्ना टीम से भी टूटेगी। समानांतर उम्मीदवार के बाद तो राजग अन्ना के यश का लाभ नहीं उठा पाएगा। वैसे भी यदि कांग्रेस सरकार ने अन्ना टीम को सताना जारी रखा तो अन्ना के नेतृत्व में भी नेताओं की नई संघर्षशील व ईमानदार जमात देश भर में उभर जाएगी। जिस तरह जेपी आंदोलन मंे नया नेतृत्व उभरा था। उनमें कई लोगों को जेपी ने भी 1977 में जनता पार्टी का उम्मीदवार बनवाया था। हालांकि उनमें से अधिकतर जेपी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरे।


काम नहीं आएंगे गंदे खेल
1996 में चारा घोटाले की जब जांच शुरू हुई थी तो बिहार की विधायिका ने सी.बी.आई. के अफसर यू.एन. विश्वास को विशेषाधिकार हनन का नाटिस दे दिया था। विश्वास को माफी मांगने पर मजबूर कर दिया गया था। इतना ही नहीं, विधान परिषद में सी. ए.जी. और पटना हाईकोर्ट पर विशेष चर्चा करवा कर उनको क्या -क्या नहीं कहा गया। यानी इन संस्थाओं की अभूतपूर्व आलोचनाएं की गईं।
जांच कर्ताओं, कुछ नेताओं और पत्रकारों को तथा कुछ अन्य लोगों को भी घोटालेबाजों की ओर से धमकियां दी गई। और न क्या -क्या नहीं किया गया ? पर क्या इन तरीकों के जरिए आरोपितगण जेल जाने और मुकदमे का सामना करने से बच पाये ? अन्ना टीम को प्रताड़ित करने से पहले केंद्र सरकार को चाहिए था कि वह बिहार की उन घटनाओं से सबक ले लेती।


और अंत में
बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डा. श्रीकृष्ण सिंह कहा करते थे कि एक ग्रामीण चौकीदार का व्यवहार लोगों के साथ कैसा होता है, उसी को देख कर सरकार की छवि का पता चल जाता है।

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