जिन थोड़े से पत्रकारों को मैं श्रद्धापूर्वक याद करता हूं, उनमें मणिकांत वाजपेयी शामिल हैं। उनका इसी 18 मार्च, 2014 को निधन हो गया।
उन्हें भूल पाना मेरे लिए आसान नहीं होगा। पटना में उनके साथ बैठकर मैं देर तक उनसे बातें किया करता था। उनसे भी मैंने कुछ सीखा है। उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी, उनकी विनम्रता और अपने काम के प्रति उनकी अटूट निष्ठा अनुकरणीय थी।
मेरे पत्रकार जीवन का वह निर्माण काल था जब मैं पहली बार वाजपेयी जी से पटना में मिला था। अच्छा हुआ कि तब वाजपेयी जी के साथ बैठने व बतियाने का मुझे सौभाग्य मिला।,तब मैं उनके सामने हर तरह से जूनियर था। पर उन्होंने ऐसा कभी मुझे आभास नहीं होने दिया।
, पटना रेडियो स्टेशन के महत्वपूर्ण पद पर रहकर काम करना हमेशा ही एक चुनौती भरा दायित्व रहा है। उन दिनों तो रेडियो का और भी अधिक महत्व था। क्योंकि तब तक मीडिया का आज की तरह विस्तार नहीं हुआ था। प्रभावशाली नेता कौन कहे, छुटभैया नेताओं की भी यही इच्छा रहती थी कि उनका नाम शाम के बुलेटिन में जरुर आ जाये।
इसको लेकर वाजपेयी जी को अक्सर धमकियां मिलती थीं। पर वे धमकियों में नहीं आते थे। वे खबरों के साथ कोई पक्षपात नहीं करते थे। ऐसा उनके सहकर्मी भी बताते रहे हैं।
वाजपेयी जी सूचना सेवा के बड़े -बड़े पदों पर रहे। सेवाकाल के अंतिम दिनों में वे डिपुटी प्रिंसिपल इंफोर्मेशन अफसर थे। इसके बावजूद जब वे रिटायर हुए तो उनका बनवाया हुआ अपना कोई मकान या फ्लैट नहीं था।
हां, उनकी तपस्या का फल उन्हें इस रूप में जरूर मिला कि उनकी संतानें संस्कारी हैं।
उनके यशस्वी पुत्र पुण्य प्रसून वाजपेयी की ईमानदारी की चर्चा दिल्ली से पटना तक वे सब लोग करते हैं जो उन्हें किसी न किसी रूप में जानते हैं।
आज के समय में टी.वी. पत्रकारिता का इतना बड़ा नाम और इतनी कठोर ईमानदारी !
सुखद आश्चर्य होता है। पिता के संस्कार और परवरिश का इसमें बड़ा योगदान माना जाएगा। पिछले कुछ साल से वाजपेयी जी बीमार थे। वे एक लाइज बीमारी से ग्रस्त थे। उनके परिवार ने उनकी बड़ी सेवा की।
मणिकांत जी के साथ रेडियो में काम कर चुके महेश कुमार सिन्हा और पत्रकार मोहन सहाय ने बारी -बारी से दिल्ली से फोन पर मंगलवार को मुझे यह दुःखद समाचार दिया। वे मेरे प्रति वाजपेयी जी के स्नेहल व्यवहार को जानते थे। हालांकि तब तक दूरदर्शन का पटना केंद्र यह समाचार दे चुका था।
महेश कुमार सिन्हा के अनुसार वाजपेयी जी अपने काम के प्रति ईमानदार पत्रकार थे। खबर देने के मामले में वे हमेशा तत्पर रहते थे।
स्टेट्समैन के पटना संवाददाता रह चुके मोहन सहाय बताते हैं कि वे स्वच्छ दिल के मिलनसार व्यक्ति थे। उनके बारे में अनेक समकालीन लोगों की भी ऐसी ही राय रही है।
अच्छा लगता ,यदि पटना के अखबारों में भी उनके निधन की खबर आज आ गई होती।
दरअसल अपवादों को छोड़ दें तो पुरानी पीढ़ी के पत्रकारों की खोज -खबर आज का मीडिया ऐसे भी कम ही लिया करता है। जबकि उन पत्रकारों के पास राजनीति, प्रशासन तथा समाज के अन्य वर्गों के बारे में एक तुलनात्मक दृष्टि होती है। उनसे सीखा जा सकता है।
उनके अनुभव बांटे जाने चाहिए। वैसे भी उन में से कई पत्रकार अपने जमाने में राजनीति व प्रशासन को प्रभावित कर चुके होते हैं। पर आज उनमें से अधिकतर पत्रकार उपेक्षित जीवन बिता रहे होते हैं। वैसे भी कुछ दशक पहले तक पत्रकारिता में पैसे भी तो कम ही मिलते थे।
विडंबना यह है कि उनमें से कुछ पत्रकारों के निधन की खबर उनको जानने वाले थोड़े से लोगों के जरिए ही मिल पाती है। जबकि उन पत्रकारों ने खुद अपने कार्यकाल में न जाने कितने लोगों की खबरें आम लोगों तक पहुंचाईं होगी।
उन्हें भूल पाना मेरे लिए आसान नहीं होगा। पटना में उनके साथ बैठकर मैं देर तक उनसे बातें किया करता था। उनसे भी मैंने कुछ सीखा है। उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी, उनकी विनम्रता और अपने काम के प्रति उनकी अटूट निष्ठा अनुकरणीय थी।
मेरे पत्रकार जीवन का वह निर्माण काल था जब मैं पहली बार वाजपेयी जी से पटना में मिला था। अच्छा हुआ कि तब वाजपेयी जी के साथ बैठने व बतियाने का मुझे सौभाग्य मिला।,तब मैं उनके सामने हर तरह से जूनियर था। पर उन्होंने ऐसा कभी मुझे आभास नहीं होने दिया।
, पटना रेडियो स्टेशन के महत्वपूर्ण पद पर रहकर काम करना हमेशा ही एक चुनौती भरा दायित्व रहा है। उन दिनों तो रेडियो का और भी अधिक महत्व था। क्योंकि तब तक मीडिया का आज की तरह विस्तार नहीं हुआ था। प्रभावशाली नेता कौन कहे, छुटभैया नेताओं की भी यही इच्छा रहती थी कि उनका नाम शाम के बुलेटिन में जरुर आ जाये।
इसको लेकर वाजपेयी जी को अक्सर धमकियां मिलती थीं। पर वे धमकियों में नहीं आते थे। वे खबरों के साथ कोई पक्षपात नहीं करते थे। ऐसा उनके सहकर्मी भी बताते रहे हैं।
वाजपेयी जी सूचना सेवा के बड़े -बड़े पदों पर रहे। सेवाकाल के अंतिम दिनों में वे डिपुटी प्रिंसिपल इंफोर्मेशन अफसर थे। इसके बावजूद जब वे रिटायर हुए तो उनका बनवाया हुआ अपना कोई मकान या फ्लैट नहीं था।
हां, उनकी तपस्या का फल उन्हें इस रूप में जरूर मिला कि उनकी संतानें संस्कारी हैं।
उनके यशस्वी पुत्र पुण्य प्रसून वाजपेयी की ईमानदारी की चर्चा दिल्ली से पटना तक वे सब लोग करते हैं जो उन्हें किसी न किसी रूप में जानते हैं।
आज के समय में टी.वी. पत्रकारिता का इतना बड़ा नाम और इतनी कठोर ईमानदारी !
सुखद आश्चर्य होता है। पिता के संस्कार और परवरिश का इसमें बड़ा योगदान माना जाएगा। पिछले कुछ साल से वाजपेयी जी बीमार थे। वे एक लाइज बीमारी से ग्रस्त थे। उनके परिवार ने उनकी बड़ी सेवा की।
मणिकांत जी के साथ रेडियो में काम कर चुके महेश कुमार सिन्हा और पत्रकार मोहन सहाय ने बारी -बारी से दिल्ली से फोन पर मंगलवार को मुझे यह दुःखद समाचार दिया। वे मेरे प्रति वाजपेयी जी के स्नेहल व्यवहार को जानते थे। हालांकि तब तक दूरदर्शन का पटना केंद्र यह समाचार दे चुका था।
महेश कुमार सिन्हा के अनुसार वाजपेयी जी अपने काम के प्रति ईमानदार पत्रकार थे। खबर देने के मामले में वे हमेशा तत्पर रहते थे।
स्टेट्समैन के पटना संवाददाता रह चुके मोहन सहाय बताते हैं कि वे स्वच्छ दिल के मिलनसार व्यक्ति थे। उनके बारे में अनेक समकालीन लोगों की भी ऐसी ही राय रही है।
अच्छा लगता ,यदि पटना के अखबारों में भी उनके निधन की खबर आज आ गई होती।
दरअसल अपवादों को छोड़ दें तो पुरानी पीढ़ी के पत्रकारों की खोज -खबर आज का मीडिया ऐसे भी कम ही लिया करता है। जबकि उन पत्रकारों के पास राजनीति, प्रशासन तथा समाज के अन्य वर्गों के बारे में एक तुलनात्मक दृष्टि होती है। उनसे सीखा जा सकता है।
उनके अनुभव बांटे जाने चाहिए। वैसे भी उन में से कई पत्रकार अपने जमाने में राजनीति व प्रशासन को प्रभावित कर चुके होते हैं। पर आज उनमें से अधिकतर पत्रकार उपेक्षित जीवन बिता रहे होते हैं। वैसे भी कुछ दशक पहले तक पत्रकारिता में पैसे भी तो कम ही मिलते थे।
विडंबना यह है कि उनमें से कुछ पत्रकारों के निधन की खबर उनको जानने वाले थोड़े से लोगों के जरिए ही मिल पाती है। जबकि उन पत्रकारों ने खुद अपने कार्यकाल में न जाने कितने लोगों की खबरें आम लोगों तक पहुंचाईं होगी।
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