आम आदमी पार्टी में वैचारिक संतुलन बिगाड़ने के लिए क्या प्रशांत भूषण कम थे जो शाजिया इल्मी ने भी मोर्चा संभाल लिया? दरअसल यह ‘आप’ में फैली वैचारिक बेतरतीबपना की निशानी है। यह समय-समय पर प्रकट होती रहती है। कुछ लोग इसे वैचारिक अराजकता भी कह रहे हैं।
इससे देश भर में फैले ‘आप’ के अनेक प्रशंसक निराश हो रहे हैं। यदि यह सब जारी रहा तो वे हताश हो सकते हैं। इससे उन लोगों को वास्तव में निराशा हुई है जो उम्मीद कर रहे हैं कि ‘आप’ एक न एक दिन भाजपा और कांग्रेस के मुकाबले देश में ‘वैकल्पिक राजनीति’ पेश करेगी।
पर वैकल्पिक राजनीति पेश करने का काम वह संतुलित विचारों के जरिए ही कर सकती है। ‘आप’ के अधिकतर नेताओं में अच्छी मंशा, त्याग व व्यक्तिगत ईमानदारी की पूंजी पहले से है। इसलिए भी उनमें संभावना है। बल्कि अन्य दलों की अपेक्षा संभावना अधिक है।
भाजपा पर एक रंग की सांप्रदायिकता को हवा देने का आरोप है तो कांग्रेस पर दूसरे रंग की सांप्रदायिकता को बढ़ाने का आरोप है।
कई लोग इस स्थिति से ऊब रहे हैं।
जनता का कुशासन और भ्रष्टाचार विरोधी मूड
आवेश से भरे इस चुनावी माहौल में जनता का कुशासन और भ्रष्टाचार विरोधी मूड साफ देखा जा सकता है। तरह -तरह के सांप्रदायिक तत्वों को सत्ता व राजनीति के शीर्ष से परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देना भी कुशासन का ही तो हिस्सा है।
जनता के मूड को देख कर नरेंद्र मोदी को भी यह कहना पड़ रहा है कि सत्ता मिलने के बाद वे भारत के संविधान के अनुसार ही देश को चलाएंगे। गिरिराज सिंह जैसे नेताओं के जहरीले बयानों की ओर इशारा करते हुए मोदी कहते हैं कि हमारे शुभचिंतक संकीर्ण बयानों से परहेज करें। पर दूसरी ओर गाजियाबाद में आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार शाजिया इल्मी मुसलमानों से अपील कर रही हैं कि उन्हें अधिक धर्मनिरपेक्ष बनने की जरूरत नहीं है। वे थोड़ा सांप्रदायिक होकर वोट करें। विरोध होने पर शाजिया अपने इस विवादास्पद बयान पर माफी मांगने को भी तैयार नहीं हैं।
अपने बयान पर सफाई में शाजिया ने जो कुछ कहा है, वह भी अनेक लोगों की नजरों में उन्हें क्लीन चीट नहीं देता। शाजिया के ऐसे बयान से सिर्फ भाजपा के बीच के अतिवादी तत्वों को ही राजनीतिक फायदा मिलेगा। जनमत सर्वेक्षणों के अनुसार अब भी दिल्ली में भाजपा की मुख्य विरोधी पार्टी ‘आप’ ही नजर आती है। वाराणसी में भी मुख्य मुकाबले में मोदी और केजरीवाल ही अभी बताये जा रहे हैं।
वाराणसी में भी भाजपा को शाजिया के बयान से बल मिल सकता है। क्योंकि एक रंग की सांप्रदायिकता दूसरे रंग की सांप्रदायिकता की खुराक पर पलती है।
वहां कुछ निष्पक्ष लोग यह पूछ सकते हैं कि क्या उन्हें ऐसे दलों के बीच से ही चुनाव करना होगा जिन दलों में गिरिराज सिंह और शाजिया इल्मी जैसे नेता मौजूद हैं ?
याद रहे कि न तो शाजिया को ‘आप’ ने दल से निलंबित किया है और न ही भाजपा ने गिरिराज के खिलाफ कोई कार्रवाई की है।
शाजिया इल्मी एक ऐसी पार्टी की प्रमुख नेता हैं जो पार्टी देश के संविधान और कानून की दुहाई देती रही है। भारतीय संविधान हमें पंथनिरपेक्ष बने रहने की सीख देता है। आप नेता मनीष सिसोदिया ने शाजिया के बयान पर कहा है कि ‘हम सांप्रदायिक राजनीति में विश्वास नहीं करते। बल्कि हम भारत और सभी भारतीयों को एक करने में विश्वास करते हैं।’
पर, ‘आप’ की ओर से इतना ही कहा जाना काफी नहीं है।
अनेक निष्पक्ष राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार कसूर को देखते हुए गिरिराज और शाजिया पर क्रमशः भाजपा व आप का रुख काफी नरम ही माना जा रहा है। ऐसे नरम रुख से बाद में इन दलों के कुछ अन्य अतिवादियोें की ओर से भी कुछ इस तरह के बयान आ सकते हैं।
अरविंद केजरीवाल ने बरती सावधानी
हालांकि इससे पहले मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल ने बाटला हाउस एनकाउंटर की फिर से जांच कराने की मांग ठुकरा कर यह दिखा दिया था कि उनकी राजनीति एक तरफा नहीं है।
हाल में वाराणसी में मुख्तार अंसारी के समर्थन के सवाल पर भी केजरीवाल ने सावधानी बरती।
याद रहे कि विवादास्पद अंसारी के चुनाव मैदान से हट जाने के बाद वाराणसी में एक जाली चिट्ठी बंटी। वह चिट्ठी ‘आप’ की तरफ से अंसारी को लिखी बताई गई थी। उसमें लिखा गया था कि मुख्तार अंसारी के चुनाव मैदान से हट जाने के लिए आम आदमी पार्टी अंसारी का धन्यवाद देती है। अरविंद ने इसे जाली बताया।
आश्चर्य है कि जिस दल में योगेंद्र यादव और प्रो. आनंद कुमार जैसे समाजवादी विचारक हैं, उस दल के कुछ हलकों में एक तरफा बातें की जा रही हैं। तथा कुछ अन्य तरह की वैचारिक तथा अन्य तरह की अराजकता भी देखी जा रही है। दरअसल समाजवादी लोग दोनों रंगों की सांप्रदायिकताओं के खिलाफ रहे हैं।
प्रशांत भूषण का कश्मीर पर बयान
इससे पहले अरविंद केजरीवाल प्रशांत भूषण के उस बयान से अपनी असहमति जाहिर कर चुके हैं जिसमें भूषण ने कश्मीर में जनसंग्रह की बात कही थी। हालांकि प्रशांत ने बाद में अपने बयान पर सफाई दी थी। पर उनकी सफाई भी कश्मीर में भारतीय सेना के रुख से मेल नहीं खाता। इसलिए प्रशांत के बयान व सफाई से आप की एक खास तरह की छवि बन रही है।
यदि यही सब जारी रहा तो आप का कोई अन्य नेता कल बहुसंख्यक सांप्रदायिकता के पक्ष में बयान दे सकता है जो उतना ही बुरा होगा।
(हिंदी दैनिक जनसत्ता के 24 अप्रैल 2014 के अंक में इस लेख का संपादित अंश प्रकाशित)
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