शनिवार, 10 दिसंबर 2016

भूपेंद्र अबोध को हार्दिक श्रद्धांजलि



एक बार मैंने यूंही भूपेंद्र अबोध से पूछ दिया था कि आखिर मनोहर श्याम जोशी आपको और प्रभाष जोशी मुझे इतना प्यार क्यों करते हैं ?

अबोध जी ने बिना देर किए कहा कि ‘जोशी लोग बड़े उदार होते हैं।’ बाद में जब नवीन जोशी का भी स्नेह मुझे मिला तो अबोध जी की बात मुझे और भी सही लगने लगी।

 मनोहर श्याम जोशी जब साप्ताहिक हिंदुस्तान के संपादक थे तो दिलीप कुमार ने इंटरव्यू देना मंजूर किया था। जोशी जी ने बिहार से भूपेंद्र अबोध को ही इस काम के लिए बंबई भेजा था। अबोध जी की प्रतिभा पर ऐसा विश्वास था मनोहर श्याम जोशी का। अबोध जी ने तो फिल्मी दुनिया की बहुत सी रपटें लिखीं। पटना में स्वामी दादा फिल्म की कहानी को लेकर जब केस हुआ था तो देवानंद ने कल्पना कार्तिक के भाई को पटना जाकर भूपेंद्र अबोध से मिलने को कहा था।

  पर अबोध जी का रचना संसार सिर्फ फिल्मी क्षेत्र ही नहीं था। टेलीफोन एक्सचेंज की साधारण नौकरी और बड़े परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी के बावजूद उन्होंने कविता -कहानी के साथ-साथ कथा रिपोर्ताज भी खूब लिखे।

  महेंद्र मिसिर और नक्षत्र मालाकार पर अबोध जी की खोजपूर्ण रपट मुझे याद हंै। संभवतः किन्हीं बड़ी हस्तियों के लिए वे ‘घोस्ट राइटिंग’ भी करते थे। उनके साथ बातचीत में इसका संकेत भी मुझे मिला था। हालांकि वे इसका खुलासा नहीं करते थे। लगता है कि परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी उठाने के लिए उन्हें यह सब करना पड़ता था। क्षमता से अधिक मेहनत।

इलाहाबाद के मित्र प्रकाशन की पत्रिकाओं के लिए भी उन्होंने जम कर लेखन किया।

 अबोध जी नये पत्रकारों के लिए मार्ग दर्शक भी थे। मैं भी उनके साथ लंबी बैठकी करता था और कुछ सीखता था। हम दोनों की बैठकी के बीच एक ही बाधा थी उनकी चेन स्मोकिंग की लत। अतिशय सिगरेट ने उनके शरीर को जर्जर बना दिया था। ऐसे बहुमूल्य जीवन को अपने लिए नहीं तो कम से कम समाज के लिए अपने स्वास्थ्य को बचाकर रखना चाहिए।

अब अबोध जी हमारे बीच नहीं रहे। खैर उनकी निशानी के रूप में उनकी बहुत सारी रचनाएं और उनका प्रतिभाशाली कार्टूनिस्ट पुत्र पवन हमलोगों के बीच है। योग्य पिता के योग्य पुत्र।
पवन जैसा कार्टूनिस्ट विरले हैं।

एक से अधिक लोगों ने मुझे बताया कि हिंदुस्तान के प्रति उनके आकर्षण का सबसे बड़ा कारण पवन के कार्टून हंै।

नंद किशोर नवल ने 2007 में लिखा था कि ‘मनोहर श्याम जोशी ने भूपेंद्र अबोध की प्रतिभा को पहचाना था जिससे वे साप्ताहिक हिंदुस्तान के अनिवार्य लेखक हो गए थे। वे मूलतः कवि और कथाकार थे। अखबारी और सामयिक लेखन उनके लिए उपयुक्त क्षेत्र नहीं था। लेकिन जब वे उस तरफ मुड़े तो वहां भी अपनी सर्जनात्मक प्रतिभा का चमत्कार दिखाया।’    

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