सहारा समूह पर छापे के दौरान मिली एक डायरी इस समय देश भर में चर्चा का केंद्र है। लेकिन क्या इस डायरी में दर्ज सूची का हाल भी वही होने वाला है जो पहले की सूचियों का हुआ ?
नब्बे के दशक में चंदे की एक ऐसी ही सूची जैन हवाला डायरी में मिली थी।
हवाला घोटाले की वह सूची तो आखिरकार दबा ही दी गयी।
अब देखते हैं कि सहारा सूची का क्या होता है ! जब किसी सूची में अनेक दलों के बड़े-बड़े नेताओं के नाम होते हंै तो उसके अंततः दब जाने की ही आशंका रहती है। बिहार का चारा घोटाला भी एक हद तक सर्वदलीय और बहुपक्षीय प्रेरित घोटाला ही था।उस घोटाले की जांच के सिलसिले में भी एक सूची मिली थी।उस सूची में करीब चार दर्जन पत्रकारों के नाम भी थे।
चलिए चारा घोटाले में कुछ लोगों को निचली अदालतों से सजाएं होने लगीं हैं।पर चारा घोटाला के मामलों को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने और वहां अंतिम फैसला होने में अभी वर्षों लगेंगे।
इस देश में व्हिसिल ब्लोअर एक सूची से दूसरी सूची की ओर दौड़ रहे हैं।इस बीच एक से बढ़कर एक सूची सामने आती रहती है।
भला सिस्टम से कोई कितना और कैसे लड़ सकता है ! तब जबकि सिस्टम में ही घुन लग गया हो !
व्हिसिल ब्लोअर विनीत नारायण हवाला मामले को उसकी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंचा सके।अब देखना है कि सहारा डायरी मामले में प्रशांत भूषण को कितनी सफलता मिलती है ! पर एक बात जरूर है।अदालती फैसला आने से पहले जागरूक मीडिया के कारण असली बातें लोगों तक पहुंच ही जाती हैं।आजकल तो सोशल मीडिया भी ताकतवर होता जा रहा है जो कुछ भटकावों के बावजूद कमाल कर रहा है।सकारात्मक बात यह है कि विनीत नारायण और प्रशांत भूषण जैसे बहादुर लोग उपलब्ध हैं।सिस्टम से लड़ने का जोखिम उठाना भी बहुत बड़ी बात है।यहां तक कि हवाला डायरी मामले में भी विनीत नारायण के अलावा भी कुछ लोगों ने सराहनीय भूमिकाएं निभाई थीं।
सहारा सूची का क्या हश्र होगा,यह तो बाद की बात है।इस अवसर पर पहले जैन हवाला कांड का हश्र देख लेना मौजूं होगा।उससे आगे का संकेत मिल सकता है।
1991 की बात है।उन दिनों भी देश में आतंकी घटनाएं हो रही थीं।
दिल्ली पुलिस ने जे.एन.यू. के एक छात्र शहाबुददीन गोरी को जामा मस्जिद इलाके से पकड़ा।उस पर आरोप था कि वह कश्मीरी आतंकियों को पैसे पहुंचाता था।पैसे हवाला के जरिए बाहर से आते थे।गोरी के यहां से जैन बंधुओं का सुराग मिला।
मामला सी.बी.आई.को सौंपा गया। सी.बी.आई. ने दिल्ली के साकेत में एस.के. जैन बंधुओं के यहां छापा मारा।वहां भारी रकम के अलावा सनसनीखेज डायरी भी मिली।उससे पता चला कि इन हवाला कारोबारियों ने देश के विभिन्न दलों के करीब 115 बड़े नेताओं और अफसरों को कुल मिलाकर 64 करोड़ रुपए दिये।
उन नेताओं में पूर्व प्रधान मंत्री ,पूर्व व वत्र्तमान केंद्रीय मंत्री, पूर्व मुख्य मंत्री तथा अन्य प्रमुख नेता शामिल थे ।
उनमें से सिर्फ शरद यादव ने यह स्वीकार किया कि उन्हें जैन से 5 लाख रुपए मिले थे।क्या जैन बंधुओं के पैसे सिर्फ शरद यादव के लिए थे ?
ऐसा कत्तई नहीं था।
पैसे लेने वाले अन्य नेताओं ने इस आरोप को साजिश बताया। विनीत नारायण की जान पर खतरा भी आया।उन्हें धमकियां मिल रही थीं।याद रहे कि विनीत इस मामले को अदालत ले गए थे।आरोपित नेता गण इतने ताकतवर थे कि इस बीच उन नेताओं के प्रभाव में आकर एक बहुत बड़े वकील ने विनीत का साथ छोड़ दिया।
हालांकि ‘दान’ लेने वालों के नाम अखबारांें में छपे।लोकलाज से मुख्यतः लालकृष्ण आडवाणी और तीन केंद्रीय मंत्रियों ने अपने पदों से इस्तीफा भी दिया।
विदेश राज्य मंत्री सलमान खुर्शीद ने तब यह स्वीकार किया कि चुनाव फंड में पारदर्शिता न होने के कारण हवाला कांड होते हैं।
पर सवाल है कि खुर्शीद और उनकी पार्टी बाद में अनेक वर्षों तक सत्ता में रहे।क्यों नहीं पारदर्शिता लाने की कोशिश की ?
जैन हवाला रिश्वत कांड का यह मामला जब अदालत में पहुंचने वाला था तो जांच एजेंसी सी.बी.आई पर भारी दबाव पड़ा।जब सत्ताधारी दल और मुख्य प्रतिपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं पर आरोप हों तो ‘सरकारी तोता’ यानी सी.बी.आई.आखिर कर भी क्या सकती है ?
पर आरोपितों को इतने से संतोष नहीं हुआ।उनमें से किसी ने सुप्रीम कोर्ट पर भी दबाव डलवाया।यह सब ऐसे कांड में हुआ जिस कांड में आतंकवाद का तत्व भी जुड़ा हुआ था।यानी जैन बंधुओं ने संभवतः इसलिए भी देश के लगभग सभी प्रभावशाली नेताओं और अफसरों को रिश्वत दी ताकि कश्मीरी आतंकवादियों को पैसे पहुंचाते रहने में उन्हें कोई बाधा नहीं आए।चिंताजनक बात यह है कि आतंकवाद के प्रति हमारे अधिकतर हुंक्मरानों का ऐसा ही रवैया रहा है।हालांकि यह भी कहा गया कि कुछ नेताओं के पैसे उनकी काली कमाई के थे।
ताजा सहारा डायरी के अनुसार लाभुकों की दमदार सूची देखकर यह अंदाज लगाया जा सकता है कि इनके साथ जांच एजेंसियां कैसा सलूक करेंगी ! भूतकाल के अनुभव अच्छे नहीं हैं।
आगे का अंदाजा न्यायमूत्र्ति जे.एस.वर्मा की पिछली टिप्पणी से लगाया जा सकता है।
14 जुलाई 1997 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जे.एस.वर्मा ने अदालत में कहा था कि हवाला कांड को दबाने के लिए हम पर लगातार दबाव पड़ रहा है।
हालांकि उन्हें दबाव में आने की जरूरत ही नहीं पड़ी।सी.बी.आई.ने ही इस कांड की ठीक से जांच नहीं की।वर्मा ने बाद में सी.बी.आई.तथा अन्य जांच एजेंसियों के प्रति अपनी नाराजगी भी दर्ज कराई।
नब्बे के दशक में चंदे की एक ऐसी ही सूची जैन हवाला डायरी में मिली थी।
हवाला घोटाले की वह सूची तो आखिरकार दबा ही दी गयी।
अब देखते हैं कि सहारा सूची का क्या होता है ! जब किसी सूची में अनेक दलों के बड़े-बड़े नेताओं के नाम होते हंै तो उसके अंततः दब जाने की ही आशंका रहती है। बिहार का चारा घोटाला भी एक हद तक सर्वदलीय और बहुपक्षीय प्रेरित घोटाला ही था।उस घोटाले की जांच के सिलसिले में भी एक सूची मिली थी।उस सूची में करीब चार दर्जन पत्रकारों के नाम भी थे।
चलिए चारा घोटाले में कुछ लोगों को निचली अदालतों से सजाएं होने लगीं हैं।पर चारा घोटाला के मामलों को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने और वहां अंतिम फैसला होने में अभी वर्षों लगेंगे।
इस देश में व्हिसिल ब्लोअर एक सूची से दूसरी सूची की ओर दौड़ रहे हैं।इस बीच एक से बढ़कर एक सूची सामने आती रहती है।
भला सिस्टम से कोई कितना और कैसे लड़ सकता है ! तब जबकि सिस्टम में ही घुन लग गया हो !
व्हिसिल ब्लोअर विनीत नारायण हवाला मामले को उसकी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंचा सके।अब देखना है कि सहारा डायरी मामले में प्रशांत भूषण को कितनी सफलता मिलती है ! पर एक बात जरूर है।अदालती फैसला आने से पहले जागरूक मीडिया के कारण असली बातें लोगों तक पहुंच ही जाती हैं।आजकल तो सोशल मीडिया भी ताकतवर होता जा रहा है जो कुछ भटकावों के बावजूद कमाल कर रहा है।सकारात्मक बात यह है कि विनीत नारायण और प्रशांत भूषण जैसे बहादुर लोग उपलब्ध हैं।सिस्टम से लड़ने का जोखिम उठाना भी बहुत बड़ी बात है।यहां तक कि हवाला डायरी मामले में भी विनीत नारायण के अलावा भी कुछ लोगों ने सराहनीय भूमिकाएं निभाई थीं।
सहारा सूची का क्या हश्र होगा,यह तो बाद की बात है।इस अवसर पर पहले जैन हवाला कांड का हश्र देख लेना मौजूं होगा।उससे आगे का संकेत मिल सकता है।
1991 की बात है।उन दिनों भी देश में आतंकी घटनाएं हो रही थीं।
दिल्ली पुलिस ने जे.एन.यू. के एक छात्र शहाबुददीन गोरी को जामा मस्जिद इलाके से पकड़ा।उस पर आरोप था कि वह कश्मीरी आतंकियों को पैसे पहुंचाता था।पैसे हवाला के जरिए बाहर से आते थे।गोरी के यहां से जैन बंधुओं का सुराग मिला।
मामला सी.बी.आई.को सौंपा गया। सी.बी.आई. ने दिल्ली के साकेत में एस.के. जैन बंधुओं के यहां छापा मारा।वहां भारी रकम के अलावा सनसनीखेज डायरी भी मिली।उससे पता चला कि इन हवाला कारोबारियों ने देश के विभिन्न दलों के करीब 115 बड़े नेताओं और अफसरों को कुल मिलाकर 64 करोड़ रुपए दिये।
उन नेताओं में पूर्व प्रधान मंत्री ,पूर्व व वत्र्तमान केंद्रीय मंत्री, पूर्व मुख्य मंत्री तथा अन्य प्रमुख नेता शामिल थे ।
उनमें से सिर्फ शरद यादव ने यह स्वीकार किया कि उन्हें जैन से 5 लाख रुपए मिले थे।क्या जैन बंधुओं के पैसे सिर्फ शरद यादव के लिए थे ?
ऐसा कत्तई नहीं था।
पैसे लेने वाले अन्य नेताओं ने इस आरोप को साजिश बताया। विनीत नारायण की जान पर खतरा भी आया।उन्हें धमकियां मिल रही थीं।याद रहे कि विनीत इस मामले को अदालत ले गए थे।आरोपित नेता गण इतने ताकतवर थे कि इस बीच उन नेताओं के प्रभाव में आकर एक बहुत बड़े वकील ने विनीत का साथ छोड़ दिया।
हालांकि ‘दान’ लेने वालों के नाम अखबारांें में छपे।लोकलाज से मुख्यतः लालकृष्ण आडवाणी और तीन केंद्रीय मंत्रियों ने अपने पदों से इस्तीफा भी दिया।
विदेश राज्य मंत्री सलमान खुर्शीद ने तब यह स्वीकार किया कि चुनाव फंड में पारदर्शिता न होने के कारण हवाला कांड होते हैं।
पर सवाल है कि खुर्शीद और उनकी पार्टी बाद में अनेक वर्षों तक सत्ता में रहे।क्यों नहीं पारदर्शिता लाने की कोशिश की ?
जैन हवाला रिश्वत कांड का यह मामला जब अदालत में पहुंचने वाला था तो जांच एजेंसी सी.बी.आई पर भारी दबाव पड़ा।जब सत्ताधारी दल और मुख्य प्रतिपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं पर आरोप हों तो ‘सरकारी तोता’ यानी सी.बी.आई.आखिर कर भी क्या सकती है ?
पर आरोपितों को इतने से संतोष नहीं हुआ।उनमें से किसी ने सुप्रीम कोर्ट पर भी दबाव डलवाया।यह सब ऐसे कांड में हुआ जिस कांड में आतंकवाद का तत्व भी जुड़ा हुआ था।यानी जैन बंधुओं ने संभवतः इसलिए भी देश के लगभग सभी प्रभावशाली नेताओं और अफसरों को रिश्वत दी ताकि कश्मीरी आतंकवादियों को पैसे पहुंचाते रहने में उन्हें कोई बाधा नहीं आए।चिंताजनक बात यह है कि आतंकवाद के प्रति हमारे अधिकतर हुंक्मरानों का ऐसा ही रवैया रहा है।हालांकि यह भी कहा गया कि कुछ नेताओं के पैसे उनकी काली कमाई के थे।
ताजा सहारा डायरी के अनुसार लाभुकों की दमदार सूची देखकर यह अंदाज लगाया जा सकता है कि इनके साथ जांच एजेंसियां कैसा सलूक करेंगी ! भूतकाल के अनुभव अच्छे नहीं हैं।
आगे का अंदाजा न्यायमूत्र्ति जे.एस.वर्मा की पिछली टिप्पणी से लगाया जा सकता है।
14 जुलाई 1997 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जे.एस.वर्मा ने अदालत में कहा था कि हवाला कांड को दबाने के लिए हम पर लगातार दबाव पड़ रहा है।
हालांकि उन्हें दबाव में आने की जरूरत ही नहीं पड़ी।सी.बी.आई.ने ही इस कांड की ठीक से जांच नहीं की।वर्मा ने बाद में सी.बी.आई.तथा अन्य जांच एजेंसियों के प्रति अपनी नाराजगी भी दर्ज कराई।
(इस लेख का संपादित अंश वेबसाइट हिंदी फस्र्ट पोस्ट के 23 दिसंबर 2016 के अंक में प्रकाशित )
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