काले धन की झाड़ी साफ करने की कोशिश जारी है।पर झाड़ी की जड़ में मट्ठा कब डाला जाएगा? जड़ खोदे बिना काले नोटों की झाड़ी फिर- फिर उग आएगी।
वोहरा कमेटी ने भ्रष्टाचार, अपराध और आतंक के त्रिगुट की चर्चा की है। जड़ तो वही है। नीरा राडिया टेप प्रकरण के अनुसार उस त्रिगुट में कुछ अन्य तत्व भी जुड़ चुके हैं।
भ्रष्टाचार को जड़ से मिटा देने से संबंधित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ताजा वायदा देशवासियों को संतोष और दिलासा देने वाला है।
पर, वायदा पूरा करने के सिलसिले में उन्हें वोहरा समिति की रपट पर से भी धूल झाड़नी पड़ेगी। वह रपट कें्रदीय सचिवालय में 1993 से पड़ी हुई है।
23 साल पहले वोहरा रपट आने के बाद तो इस बीच भ्रष्टाचार, अपराध और आतंक की जड़ें और भी गहरी हो चुकी हैं। इनसे कुछ अन्य अवांछित तत्व जुड़कर उन्हें बेहद ताकतवर बना रहे हैं।
रपट में उन तत्वों की बेबाक चर्चा है।
तत्कालीन गृह सचिव एन.एन.वोहरा के नेतृत्व में बनी समिति की रपट में सरकारी अफसरों, नेताओं और देश के माफिया गिरोहों के बीच के अपवित्र गठबंधन का जिक्र है। गठबंधन को तोड़ने के उपाय भी सुझाए गये हैं। यह गठजोड़ अब अधिक खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है।
माफिया तत्वों, आर्थिक क्षेत्र में सक्रिय लाॅबियों, तस्कर गिरोहों के साथ कतिपय प्रभावशाली नेताओं और अफसरों की सांठगाठ की विस्तृत चर्चा वोहरा समिति की रपट में है। पर, 1993 और उसके बाद की किसी भी सरकार ने उसकी सिफारिश पर अमल करने का साहस नहीं दिखाया। इससे माफिया तत्वों की ताकत का पता चलता है।
याद रहे कि 1993 के बंबई बम विस्फोट की पृष्ठभूमि में ही वोहरा समिति का गठन किया गया था। श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट बाहर-भीतर के आतंकी और देशद्रोही तत्वों की आपसी साठगांठ का परिणाम था। उसमें करीब 300 निर्दोष लोगों की जानें गई थीं।
पांच दिसंबर, 1993 को वोहरा ने अपनी सनसनीखेज रपट गृह मंत्री को सौंपी थी। रपट में कहा गया कि ‘इस देश में अपराधी गिरोहों, हथियारबंद सेनाओं, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले माफिया गिरोहों, तस्कर गिरोहों, आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय लाॅबियों का तेजी से प्रसार हुआ है। इन लोगों ने विगत कुछ वर्षों के दौरान स्थानीय स्तर पर नौकरशाहों, सरकारी पदों पर आसीन लोगों, राज नेताओं, मीडिया से जुड़े व्यक्तियों तथा गैर सरकारी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ व्यापक संपर्क विकसित किये हैं। इनमें से कुछ सिंडिकेटों की विदेशी खुफिया एजेंसियों के साथ-साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय सबंध भी हैं।’
रपट में यह भी कहा गया है कि इस देश के कुछ बड़े प्रदेशों में इन गिरोहों को स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दलों के नेताओं और सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों का संरक्षण हासिल है। तस्करों के बड़े-बड़े सिंडिकेट देश के भीतर छा गये हैं। उन्होंने हवाला लेन-देनों, काला धन के परिसंचरण सहित विभिन्न आर्थिक कार्यकलापों को प्रदूषित कर दिया है। उनकी समानांतर अर्थव्यवस्था के कारण देश के आर्थिक ढांचे को गंभीर क्षति पहुंची है। इन सिंडिकेटों ने सरकारी तंत्र को सभी स्तरों पर सफलतापूर्वक भ्रष्ट किया हुआ है। इन तत्वों ने जांच-पड़ताल तथा अभियोजन अभिकरणों को इस तरह प्रभावित किया हुआ है कि उन्हें अपना काम चलाने में अत्यंत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।’
रपट के अनुसार ‘कुछ माफिया तत्व नारकोटिक्स, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी में संलिप्त हैं। चुनाव लड़ने जैसे कार्यों में खर्च की जाने वाली राशि के मददेनजर नेता भी इन तत्वों के चंगुल में आ गये हैं। रपट में आई.बी. के निदेशक की बातें दर्ज की गयी हैं। उनके अनुसार ‘माफिया तंत्र ने वास्तव में एक समानांतर सरकार चलाकर राज्य तंत्र को एक विसंगति में धकेल दिया है।’
‘इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि इस प्रकार के संकट से प्रभावी रूप से निपटने के लिए एक संस्थान स्थापित किया जाए। इस समय ऐसा कोई तंत्र मौजूद नहीं है जो विशेषकर अपराध सिंडिकेट और माफिया के सरकारी तंत्र के साथ बने संबंधों के बारे में सूचनाएं एकत्रित और समेकित कर सके।’
सी.बी.आई. के निदेशक के अनुसार बड़े शहरों में संगठित अपराधी सिंडिकेट/माफिया की आय का प्रमुख साधन भू संपदा आदि है। वे भूमि और भवनों पर जबरन कब्जा कर लेते हैं। इस प्रकार से अर्जित धनशक्ति का इस्तेमाल नौकरशाहोंं तथा नेताओं के साथ संपर्क बनाने के लिए किया जाता है ताकि वे बेरोकटोक अपनी गतिविधियां चालू रख सकें। वे लठैत पालते हैं। उनका इस्तेमाल चुनावों में भी होता है।
छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी लठैतों का दबदबा आम बात हो गयी है। भाड़े के हत्यारे इन संगठनों के अभिन्न अंग हैं। अपराधी गिरोहों, पुलिस, नौकरशाही तथा नेताओं के बीच साठगांठ अब देश के विभिन्न हिस्सों में खुलकर सामने आ चुकी है। वर्तमान आपराधिक न्याय प्रणाली, जो मूलतः व्यक्तिगत अपराधों से निपटने के लिए बनाई गयी थी, माफिया की गतिविधियों से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है। आर्थिक अपराधों के संबंध में भी हमारे कानून के उपबंध कमजोर हैं।’
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के अफसर ने कहा कि विदेशों में स्थित इस एजेंसी के कार्यालयों की वर्तमान क्षमता इतनी अधिक नहीं है कि वह अपनी गतिविधियों के क्षेत्र को व्यापक बना सके।
1993 के बाद देश के संसाधनों को लूटने वालों ने अपनी कार्यशैली व रणनीति में थोड़ा बदलाव जरूर किया है, पर मूल तत्व वहीं हंै। इस बीच नये कानून व संस्थान भी बने हैं। पर वे अपर्याप्त हैं।
समिति की मुख्य सलाह यह है कि गृह मंत्रालय के तहत एक नोडल एजेंसी तैयार हो जो देश मेंे जो भी गलत काम हो रहे हैं, उसकी सूचना वह एजेंसी एकत्र करे। ऐसी पक्की व्यवस्था भी की जाए ताकि सूचनाएं लीक नहीं हों।
सावधानी बरतते हुए वोहरा ने इस रपट की सिर्फ तीन प्रतियां तैयार की थीं। यह काम उन्होंने खुद किया।ऐसा उन्होंने लीक होने के डर से किया। वोहरा ने रपट की प्रति तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री और गृह राज्य मंत्री (आंतरिक सुरक्षा) को सौंपी। तीसरी प्रति वोहरा ने अपने पास रखी।
वोहरा ने उस रपट में लिखा कि ‘गृह मंत्री द्वारा इस रपट के अवलोकन के बाद मैं उनसे अनुरोध करूंगा कि वे आगे की कार्रवाई के लिए वित्त मंत्री,राज्य मंत्री @आंतरिक सुरक्षा@ और मेरे साथ विचार विमर्श करने का कष्ट करें। उससे जो रास्ता निकलेगा, उसको अमल में लाने से पहले प्रधानमंत्री जी की मंजूरी प्राप्त की जा सकती है।’
पर जानकार लोग बताते हैं कि वोहरा की इस सलाह को सरकार ने कुल मिलाकर नजरअंदाज ही कर दिया।
वोहरा कमेटी ने भ्रष्टाचार, अपराध और आतंक के त्रिगुट की चर्चा की है। जड़ तो वही है। नीरा राडिया टेप प्रकरण के अनुसार उस त्रिगुट में कुछ अन्य तत्व भी जुड़ चुके हैं।
भ्रष्टाचार को जड़ से मिटा देने से संबंधित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ताजा वायदा देशवासियों को संतोष और दिलासा देने वाला है।
पर, वायदा पूरा करने के सिलसिले में उन्हें वोहरा समिति की रपट पर से भी धूल झाड़नी पड़ेगी। वह रपट कें्रदीय सचिवालय में 1993 से पड़ी हुई है।
23 साल पहले वोहरा रपट आने के बाद तो इस बीच भ्रष्टाचार, अपराध और आतंक की जड़ें और भी गहरी हो चुकी हैं। इनसे कुछ अन्य अवांछित तत्व जुड़कर उन्हें बेहद ताकतवर बना रहे हैं।
रपट में उन तत्वों की बेबाक चर्चा है।
तत्कालीन गृह सचिव एन.एन.वोहरा के नेतृत्व में बनी समिति की रपट में सरकारी अफसरों, नेताओं और देश के माफिया गिरोहों के बीच के अपवित्र गठबंधन का जिक्र है। गठबंधन को तोड़ने के उपाय भी सुझाए गये हैं। यह गठजोड़ अब अधिक खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है।
माफिया तत्वों, आर्थिक क्षेत्र में सक्रिय लाॅबियों, तस्कर गिरोहों के साथ कतिपय प्रभावशाली नेताओं और अफसरों की सांठगाठ की विस्तृत चर्चा वोहरा समिति की रपट में है। पर, 1993 और उसके बाद की किसी भी सरकार ने उसकी सिफारिश पर अमल करने का साहस नहीं दिखाया। इससे माफिया तत्वों की ताकत का पता चलता है।
याद रहे कि 1993 के बंबई बम विस्फोट की पृष्ठभूमि में ही वोहरा समिति का गठन किया गया था। श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट बाहर-भीतर के आतंकी और देशद्रोही तत्वों की आपसी साठगांठ का परिणाम था। उसमें करीब 300 निर्दोष लोगों की जानें गई थीं।
पांच दिसंबर, 1993 को वोहरा ने अपनी सनसनीखेज रपट गृह मंत्री को सौंपी थी। रपट में कहा गया कि ‘इस देश में अपराधी गिरोहों, हथियारबंद सेनाओं, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले माफिया गिरोहों, तस्कर गिरोहों, आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय लाॅबियों का तेजी से प्रसार हुआ है। इन लोगों ने विगत कुछ वर्षों के दौरान स्थानीय स्तर पर नौकरशाहों, सरकारी पदों पर आसीन लोगों, राज नेताओं, मीडिया से जुड़े व्यक्तियों तथा गैर सरकारी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ व्यापक संपर्क विकसित किये हैं। इनमें से कुछ सिंडिकेटों की विदेशी खुफिया एजेंसियों के साथ-साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय सबंध भी हैं।’
रपट में यह भी कहा गया है कि इस देश के कुछ बड़े प्रदेशों में इन गिरोहों को स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दलों के नेताओं और सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों का संरक्षण हासिल है। तस्करों के बड़े-बड़े सिंडिकेट देश के भीतर छा गये हैं। उन्होंने हवाला लेन-देनों, काला धन के परिसंचरण सहित विभिन्न आर्थिक कार्यकलापों को प्रदूषित कर दिया है। उनकी समानांतर अर्थव्यवस्था के कारण देश के आर्थिक ढांचे को गंभीर क्षति पहुंची है। इन सिंडिकेटों ने सरकारी तंत्र को सभी स्तरों पर सफलतापूर्वक भ्रष्ट किया हुआ है। इन तत्वों ने जांच-पड़ताल तथा अभियोजन अभिकरणों को इस तरह प्रभावित किया हुआ है कि उन्हें अपना काम चलाने में अत्यंत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।’
रपट के अनुसार ‘कुछ माफिया तत्व नारकोटिक्स, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी में संलिप्त हैं। चुनाव लड़ने जैसे कार्यों में खर्च की जाने वाली राशि के मददेनजर नेता भी इन तत्वों के चंगुल में आ गये हैं। रपट में आई.बी. के निदेशक की बातें दर्ज की गयी हैं। उनके अनुसार ‘माफिया तंत्र ने वास्तव में एक समानांतर सरकार चलाकर राज्य तंत्र को एक विसंगति में धकेल दिया है।’
‘इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि इस प्रकार के संकट से प्रभावी रूप से निपटने के लिए एक संस्थान स्थापित किया जाए। इस समय ऐसा कोई तंत्र मौजूद नहीं है जो विशेषकर अपराध सिंडिकेट और माफिया के सरकारी तंत्र के साथ बने संबंधों के बारे में सूचनाएं एकत्रित और समेकित कर सके।’
सी.बी.आई. के निदेशक के अनुसार बड़े शहरों में संगठित अपराधी सिंडिकेट/माफिया की आय का प्रमुख साधन भू संपदा आदि है। वे भूमि और भवनों पर जबरन कब्जा कर लेते हैं। इस प्रकार से अर्जित धनशक्ति का इस्तेमाल नौकरशाहोंं तथा नेताओं के साथ संपर्क बनाने के लिए किया जाता है ताकि वे बेरोकटोक अपनी गतिविधियां चालू रख सकें। वे लठैत पालते हैं। उनका इस्तेमाल चुनावों में भी होता है।
छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी लठैतों का दबदबा आम बात हो गयी है। भाड़े के हत्यारे इन संगठनों के अभिन्न अंग हैं। अपराधी गिरोहों, पुलिस, नौकरशाही तथा नेताओं के बीच साठगांठ अब देश के विभिन्न हिस्सों में खुलकर सामने आ चुकी है। वर्तमान आपराधिक न्याय प्रणाली, जो मूलतः व्यक्तिगत अपराधों से निपटने के लिए बनाई गयी थी, माफिया की गतिविधियों से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है। आर्थिक अपराधों के संबंध में भी हमारे कानून के उपबंध कमजोर हैं।’
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के अफसर ने कहा कि विदेशों में स्थित इस एजेंसी के कार्यालयों की वर्तमान क्षमता इतनी अधिक नहीं है कि वह अपनी गतिविधियों के क्षेत्र को व्यापक बना सके।
1993 के बाद देश के संसाधनों को लूटने वालों ने अपनी कार्यशैली व रणनीति में थोड़ा बदलाव जरूर किया है, पर मूल तत्व वहीं हंै। इस बीच नये कानून व संस्थान भी बने हैं। पर वे अपर्याप्त हैं।
समिति की मुख्य सलाह यह है कि गृह मंत्रालय के तहत एक नोडल एजेंसी तैयार हो जो देश मेंे जो भी गलत काम हो रहे हैं, उसकी सूचना वह एजेंसी एकत्र करे। ऐसी पक्की व्यवस्था भी की जाए ताकि सूचनाएं लीक नहीं हों।
सावधानी बरतते हुए वोहरा ने इस रपट की सिर्फ तीन प्रतियां तैयार की थीं। यह काम उन्होंने खुद किया।ऐसा उन्होंने लीक होने के डर से किया। वोहरा ने रपट की प्रति तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री और गृह राज्य मंत्री (आंतरिक सुरक्षा) को सौंपी। तीसरी प्रति वोहरा ने अपने पास रखी।
वोहरा ने उस रपट में लिखा कि ‘गृह मंत्री द्वारा इस रपट के अवलोकन के बाद मैं उनसे अनुरोध करूंगा कि वे आगे की कार्रवाई के लिए वित्त मंत्री,राज्य मंत्री @आंतरिक सुरक्षा@ और मेरे साथ विचार विमर्श करने का कष्ट करें। उससे जो रास्ता निकलेगा, उसको अमल में लाने से पहले प्रधानमंत्री जी की मंजूरी प्राप्त की जा सकती है।’
पर जानकार लोग बताते हैं कि वोहरा की इस सलाह को सरकार ने कुल मिलाकर नजरअंदाज ही कर दिया।
( 8 दिसंबर 2016 के राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें