सोमवार, 26 सितंबर 2022

 कानांेकान

सुरेंद्र किशोर

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 नौकरी से वंचित परिवारों के उम्मीदवारों को पहले मिले सरकारी जाॅब   

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बेरोजगारों को नौकरियां देने के मामले में बिहार सरकार इन दिनों कुछ अधिक ही गंभीर नजर आ रही है।

उद्योग और सेवा क्षेत्रों में रोजगार के अवसर तलाशे जा रहे हैं।इस पर ठोस काम हो रहे हैं।नौकरियां मिलनी शुरू भी हो गई हैं।

यदि आगे इस दिशा में और तेजी से काम हुए तो इस पिछड़े राज्य में फर्क आएगा।

पर, इस मामले में एक खास पहलू पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

जिस परिवार का एक भी सदस्य अब तक सरकारी नौकरी में नहीं है,उसकी आर्थिक स्थिति दयनीय रहती है।

चाहे वह परिवार जिस किसी जाति-बिरादरी से आता हो ।

ऐसे परिवारों के बेरोजगार उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों  में प्राथमिकता मिलनी चाहिए।जरूरत हो तो इसके लिए नियम बदले जाएं।

 पहली नौकरी के बाद किसान परिवार में आई संपन्नता के  कई उदाहरण मौजूद हैं।क्योंकि नौकरी के बाद उस किसान को खेती में लगाने के लिए पूंजी की कमी नहीं होती।उससे खेती का भी विकास होता है।    

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तेलांगना से खास खबर

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तेलांगना सरकार की योजना है कि हर सरकारी डाक्टर के मोबाइल में जी.पी.एस.टै्रकर फिट कर दिया जाए।

ताकि चिकित्सकों पर चैबीसों घंटे निगरानी रखी जा सके।

प्राइवेट प्रैक्टिस रोकने के लिए  तेलांगना सरकार यह काम कर पाएगी,या नहीं, यह कहा नहीं जा सकता।किंतु बिहार सरकार उससे कम कड़ा उपाय तो कर ही सकती है।

  कम से कम डाक्टरों के ड्यूटी आॅवर में उनके कार्य स्थल की आधुनिक तकनीकी के जरिए निगरानी रखी जा सकती है।

पर, उससे पहले दो महत्वपूर्ण काम करने होंगे।सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की संख्या बढ़ानी होगी।साथ ही ‘‘धरती के भगवान’’ के वेतन को किसी भी अन्य सरकारी कर्मी से अधिक तय करना होगा।

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 सौ रुपए में निबंधन

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एक निबंधन अफसर ने सन 2019 में मीडिया को बताया था कि ‘‘कागजात तैयार कर लाएं।सिर्फ एक सौ रुपए में पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा हो रहा है।लोग इस कानून का लाभ आसानी से ले सकते हैं।’’

सचमुच यह अच्छा कानून है।

पर इसके कार्यान्वयन के बारे में मेरी जानकारी कुछ अलग है।

 जाहिर कारणों से निबंधन कार्यालयों में इस काम के प्रति काफी अरूचि है।

 राज्य सरकार को भी इस बात का पता है।इसीलिए मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने अफसरों को निदेश दिया है कि इस सुविधा का लाभ अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने का प्रबंध किया जाए।देखना है कि मुख्य मंत्री का यह ताजा आदेश लागू होता है या नहीं।

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कटु अनुभव से सबक

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भाजपा बिहार में मुख्य मंत्री का चेहरा घोषित कर सन 2025 में विधान सभा चुनाव लड़ेगी।

 पर, उससे पहले पार्टी सन 2024 के लोक

सभा चुनाव का रिजल्ट देख लेगी। बिहार के रिजल्ट से यह पता चलेगा कि भाजपा के प्रति किस सामाजिक समूह का कैसा रुख-रवैया है।

लगता है कि सन 2014 के विधान सभा चुनावों में की गई अपनी गलतियों से भाजपा ने सबक लिया है।

तब भाजपा ने लीक से हटकर हरियाणा मंे एक गैर जाट को मुख्य मंत्री बनवा दिया था।

झारखंड में तब एक गैर आदिवासी नेता मुख्य मंत्री बने।महाराष्ट्र में गैर मराठा भाजपा के मुख्य मंत्री थे।

पर, वे प्रयोग सफल नहीं हुए।लीक से अलग हुए तो किसी मुख्य मंत्री को ‘योगी’ की तरह ‘राज’ चलाना पड़ेगा।उसके बिना काम नहीं चलेगा। 

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भूली -बिसरी याद

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सन 1967 के आम चुनाव से ठीक पहले की बात है।

तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने यह कोशिश की थी कि लोक सभा के उम्मीदवार उनकी इच्छा के अनुसार ही तय किए जाएं।

भले ही विधान सभाओं के कांग्रेसी उम्मीदवारों के नाम जैसे भी तय कर लिए जाएं।

पर,ऐसा न हो सका।

 क्योंकि कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति में इंदिरा गांधी के सिर्फ एक ही समर्थक थे।उनका नाम था द्वारिका प्रसाद मिश्र।वे मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री थे।

परिणामतः और तो और ,इंदिरा जी वी.के.कृष्ण मेनन को भी कांग्रेस का चुनावी टिकट नहंीं दिलवा सकीं।

जबकि मेनन बंबई महानगर के एक चुनाव क्षेत्र से निवर्तमान सांसद थे।

इंदिरा गांधी कांग्रेस में सक्रिय ताकतवर गुट की मदद से 1966 में प्रधान मंत्री बनी थीं।उस गुट को ‘‘सिंडिकेट’’ कहा जाता था।

सिंडिकेट के अघोषित सदस्य एस.के.पाटील और अतुल्य घोष जैसे ताकतवर क्षेत्रीय कांग्रेसी नेता थे।

इंदिरा जी यह नहीं चाहती थीं कि सन 1967 के चुनाव के बाद भी वह सिंडिकेट की मुखापेक्षी रहें।

पर,केंद्रीय चुनाव समिति ने इस तरह टिकट वितरण किया जिससे इंदिरा गांधी की लाचारी बनी रही।उम्मीदवारों में अधिकतर सिंडिकेट के अनुयायी थे या मुख्य मंत्रियों के कृपापात्र।

 चूंकि मोरारजी देसाई को ‘सिंडिकेट’ पसंद नहीं करता था,इसलिए 1967 में भी सिंडिकेट इंदिरा गांधी को प्रधान मंत्री बनाने को बाध्य हो गया।

  सिंडिकेट से मुक्ति पाने के लिए इंदिरा गांधी ने 1969 में कांग्रेस तोड़ दी।दरअसल 1967 में भी इंदिरा जी देश में सर्वाधिक लोकप्रिय कांग्रेसी नंेता थीं।किंतु अपनी ही पार्टी पर उनका निर्णायक प्रभाव नहीं था।वह प्रभाव 1971 के लोक सभा चुनाव के बाद कायम हो गया।

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और अंत में

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असम विधान सभा ने असम ग्रामदान कानून,1965 और असम भूदान कानून, 1956 को रद कर दिया है।उसकी जगह असम भूमि और राजस्व रेगुलेशन संशोधन विधेयक,

 2022 पास कर दिया है।

भूदान में मिली जमीन पर अतिक्रमण रोकने के लिए उसने ऐसा किया है।बिहार में भूदान में मिली जमीनों का ताजा हाल क्या है ?

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प्रभात खबर,पटना,26 सितंबर 22


  


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