सोमवार, 26 सितंबर 2022

     आप जब ऊपर उठते हैं तो ईष्र्यालुओं को सिर्फ 

    आपकी टांगें ही तो दिखाई पड़ती हैं !

        ........................................

          सुरेंद्र किशोर 

        ................................... 

आप जितना अधिक ऊपर उठते हैं,उतने ही अधिक लोग 

खुद ब खुद आपसे नीचे हो जाते हैं।

भले उनके नीचे हो जाने में आपका कोई हाथ नहीं होता।

  पर, जब वे नीचे होंगे तो उन्हें आपकी टांगें पहले दिखाई पड़ेंगीं।शरीर के दूसरे हिस्से बाद में।

फिर वे क्या करेंगे ?

आपकी टांगंे खींचेंगे।

कोई जोर से खींचेगा तो कोई अन्य धीरे से।

इतना ही हो तो कोई बात नहीं।

उससे संतुष्ट न होने पर आपके ‘‘नाजुक अंगों’’ पर शब्दों से वार करेंगे।इस वार के कई आयाम हैं।

आपके और आपके सात पुश्तों के बारे में ईष्र्यालु और विघ्नसंतोषी लोग ऐसी -ऐसी बातों का आविष्कार करेंगे जिनके बारे में आपको कभी पता ही नहीं रहा होगा।

.............................

अब इसका क्या उपाय है ?

नार्मल ढंग से आप जितना ऊपर पहुंच सकें, उतना ही उठिए।

प्रयास करके या नाजायज तरीकों से कुछ पाने की कोशिश मत कीजिए।

 अन्यथा,आप पर आपकी अगली पीढ़ी भी गर्व करेगी ,यह जरूरी नहीं।क्योंकि आपको चाहे-अनचाहे कीचड़ में जाना पड

सकत़ा है ।

कई साल पहले पटना विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर के मुंह से सत्तर के दशक के एक चपरासी की जितनी तारीफ मैंने सुनी थी,वैसी तारीफ उन्होंने पटना विश्व विद्यालय के किसी अन्य की नहीं की।

..........................

यानी, महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि आप कितने ऊंचे  पद पर हैं।

 अधिक महत्वपूर्ण यह है कि आप जिस पद पर हैं,उस पद की जिम्मेदारियों का निर्वहन कितनी मेहनत और ईमानदारी से करते हैं।

इस देश में एक प्रधान मंत्री और एक मुख्य मंत्री के बारे में बच्चों को भी यह नारा लगाते मैंने सुना था--

गली -गली में शोर है,फलां (प्रधान मंत्री का नाम लेकर ) चोर है।

गली -गली में शोर है,फलां (मुख्य मंत्री का नाम लेकर)चोर है।

....................................... 

एक फिल्म में अमिताभ बच्चन के हाथ पर लिख दिया गया था था-- ‘‘मेरा बाप चोर था !’’

अब यह लिखने की जरूरत नहीं पड़ती।जनता जानती है कि कौन चोर है और कौन ईमानदार !

..........................

बिहार काॅडर के एक आफिसर थे-आभाष चटर्जी।उन्होंने अस्सी के दशक में कमिश्नर के पद पर अपनी रूटीन प्रोन्नति को ठुकरा दिया था।

उनका तर्क था कि यहां जितने बड़े पद पर कोई जाता है,उसे उतना ही अधिक गलत काम करना पड़ता है।

बाद में शायद उन्होंने किसी दबाव में या दिल -परिवर्तन के तहत प्रमोशन स्वीकार कर लिया था।लेकिन मेसेज तो उन्होंने दे ही दिया था।

मैं संवाददाता के रूप में चटर्जी साहब से मिलता था।उन्होंने एक बार मुझे बिहार के सबसे ताकतवर सत्ताधारी नेता के खिलाफ एक अत्यंत गलत काम का कागजी सबूत मुझे दिया था।याद रखिए वह अस्सी के दशक की बात थी।

यानी, वे किसी से डरते नहीं थे।

..................................

25 सितंबर 22


  


कोई टिप्पणी नहीं: