छत्तीगढ़ के खबरखोजी पत्रकार मुकेश
चंद्राकार की गत माह हुई निर्मम हत्या
----------------
खबर खोजी पत्रकारों की सुरक्षा के लिए संस्थागत
प्रबंध करे सरकार और मीडिया संस्थान
-------------------
सुरेंद्र किशोर
------------------
छत्तीस गढ़ के खबर खोजी पत्रकार मुकेश चंद्राकर की अत्यंत निर्मम तरीके से गत माह हत्या कर दी गयी।
सरकार की सड़क योजना में घटिया निर्माण को लेकर रिपोर्टिंग करने के कारण उसकी हत्या कर दी गयी।
यानी वह पत्रकार एक तरह से सरकार यानी जनता का ही काम कर रहा था।
हत्याकांड का षड्यंत्रकारी गिरफ्तार कर लिया गया है।यदि सिस्टम ने ठीक से काम किया तो उसे सजा भी हो जाएगी।
पर,बेचारे पत्रकार के परिवार को तो परिवार के मुखिया की गैर मौजूदगी की पीड़ा आजीवन भुगतनी पड़ेगी।
दरअसल खबरखोजी पत्रकारों की जान पर अक्सर खतरा बना रहता है।
कुछ की जान बच जाती है, पर कुछ अन्य की चली जाती है।
या, दूसरे प्रकार से भी ऐसे पत्रकारों को निहित स्वार्थी तत्वों की ओर से भारी नुकसान पहुंचाया जाता है।
बेचारा पत्रकार तो निहत्था होता है--घर पर भी और कार्य स्थल पर भी।
------------
मीडिया संस्थान यदि किसी पत्रकार को खतरे वाली खबर खोजने में लगाता है तो अब उसकी सुरक्षा का प्रबंध भी उसे करना ही चाहिए।
या तो सरकार बाॅडी गार्ड दे या फिर मीडिया संस्थान कोई इंतजाम करे।यदि सुरक्षा नहीं दे सकता हो तो ऐसे काम में पत्रकार को न लगाये।
आज सांसदों-विधायकों तथा अन्य बड़ी हस्तियों को सरकारें उदारतापूर्वक बाॅडी गार्ड क्यांे देती है ?
क्योंकि आज कानून-व्यवस्था को लेकर देश-प्रदेश में आदर्श स्थिति नहीं है।कई मामलों में अवकाश ग्रहण करने के बाद भी उन्हें बाॅडी गार्ड की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
क्योंकि यह माना जाता है कि जनहित के काम के सिलसिले में उनकी जान पर खतरा कभी भी आ सकता है।सेवा काल में भी और रिटायर होने के बाद भी।
चैथा स्तम्भ भी तो जनहित का ही काम करता है।पत्रकार के रिटायर होने के बाद उन्हें भी खतरा हो सकता है।
करीब दो दशक पहले केंद्रीय खुफिया एजेंसी (एस.आई.बी.)के पटना आॅफिस ने अपने दिल्ली आॅफिस और बिहार के डी.जी.पी.को रिपोर्ट भेजी कि एक माफिया ने पटना के एक वरीय पत्रकार (जाहिर है कि रिपोर्ट में नाम भी लिखा था।)को मारने के लिए शूटर रवाना कर दिया है।
डी.जी.पी.,डी.पी.ओझा ने तत्काल उस पत्रकार को आधुनिक आग्नेयास्त्रों के साथ दो सुरक्षा गार्ड मुहैया करा दिये।
वह पत्रकार भाग्यशाली था जो समय पर सूचना मिल गयी थी।
पर, छत्तीस गढ़ का पत्रकार मुकेश चंद्राकर उतना भाग्यशाली नहीं था।
इसलिए ऐसे मामलों को देखते हुए देश -प्रदेश की सरकारें कोई न कोई संस्थागत प्रबंध करे।
ताकि कोई दूसरा मुकेश माफियाओं का शिकार न बने।
--------------
7 जनवरी 25
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें