नीतीश कुमार लोहियावाद के अबतक के सबसे बड़े प्रतीक पुरुष के रुप में उभरे हैं।
इससे पहले कर्पूरी ठाकुर प्रतीक पुरुष थे।पर उनके निहितस्वार्थी मंत्रिमंडलीय सहयोगियों ने उन्हें जनहित के कई महत्वपूर्ण काम करने ही नहीं दिया।
इधर नीतीश कुमार किसी दबाव में नहीं आये।उम्मीद है कि आगे भी दबाव में नहीं आएंगे।
डा.राम मनोहर लोहिया का नाम सबसे अधिक जपने वाली मौजूदा समाजवादी पार्टी के किसी नेता में लोहिया और लोहियावाद की कोई झलक तक दिखाई नहीं पडत़ी।
पर नीतीश ने नयी राजनीतिक परिस्थितियों में लोहिया की मूल धारणाओं के अनुकूल भरसक काम किया है।समाज पर उसका सकारात्मक असर पड़ा। इस तरह लोहिया को सिरफिरा कहने वालों का उन्होंने मुंह बंद किया।
दशकों पहले इस देश के एक प्रधान मंत्री ने चीन सरकार के प्रमुख को लिखा था कि ‘हमारे देश में सिरफिरों की एक पार्टी है।’वे लोहिया की पार्टी का जिक्र कर रहे थे।
नीतीश सरकार ने महिलाओं के लिए जितना काम किया,वह एक रिकाॅर्ड है।लोहिया हर जाति की महिलाओं को पिछड़ा मानते थे।
नीतीश ने वैसे तो समाज के सभी तबकों के लिए काम किये,पर पिछड़ों और दलितों में जो अधिक पिछड़े हैं ,उनके लिए विशेष तौर से काम किये।याद रहे कि लोहिया समाज के ‘अंतिम व्यक्ति’ का भला चाहते थे।
उनके राजनीतिक विरोधियों ने लोहिया को सवर्ण विरोधी बताया था।इसके विपरीत यह तथ्य है कि लोहिया के लगभग सारे निजी सचिव ब्राह्मण थे।
नीतीश के अधिकतर करीबी मित्र सवर्ण ही हैं। लोहिया का न तो कोई बैंक खाता था और न ही निजी कार । इधर ऐसी कोई खबर नहीं है कि नीतीश कुमार ने अवैध तरीके से कोई निजी संपत्ति बनाई है।इसके अलावा भी कुछ बातें हैं।
मुख्य मंत्री के पुत्र निशांत कुमार ने कहा है कि राजनीति में मेरी कोई रूचि नहीं है।मैं जहां हूं,संतुष्ट हूं। उधर नीतीश कुमार भी यह नहीं चाहते कि उनके सहारे उनका कोई परिजन कोई पद पाये।निशांत भी अपने पिता के अनुकूल ही काम कर रहे हैं।पुत्र हो तो ऐसा।
संभव है कि निशंात को राजनीति मेें सचमुच कोई रूचि नहीं हो।यह भी संभव है कि अपने पिता की इच्छा के अनुकूल वे काम कर रहे हांे। कुछ भी हो, नीतीश कुमार वंशवाद के आरोप से तो बचे हुए हैं। इस कारण भी नीतीश की एक अलग छवि बन सकी है। राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं में नीतीश की साख बढ़ी है।
सारे कार्यकत्र्ताओं को पद नहीं दिया जा सकता।पर जदयू में किसी कर्मठ कार्यकत्र्ता को यह भय तो नहीं है कि उनका हक मारकर नीतीश कुमार अपने किसी परिजन को कोई पद दे देंगे। इस छवि को बनाये रखने में एक पुत्र अपने पिता का सहयोग कर रहा है।
नीतीश कुमार के बड़े भाई सतीश कुमार को मैं 1980 से जानता हूं। शुक्रवार को जितने लोगों ने मंत्री पद की शपथ ली ,उनमें से कई लोगों से अधिक राजनीतिक सूझबूझ सतीश कुमार में है।इसके बावजूद अब तक यह खबर नहीं है कि उन्होंने किसी पद के लिए अपने अनुज पर दबाव बनाया।
1980 में संजय गांधी के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने अनिच्छुक राजीव गांधी को राजनीति में ला दिया था।राजीव सेवारत पायलट थे । राजनीति मंे उनकी कोई रूचि नहीं थी।तब तक वे सरल हृदय के एक भले आदमी के रुप में जाने जाते थे। पर उन्हें राजनीति में आने के लिए मनाया गया।सवाल वंशवाद को आगे बढ़ाने का जो था !
इस देश में ऐसे भी कई उदाहरण हंै कि पिता तो सिद्धांततः वंशवाद के सख्त खिलाफ थे,पर उनके पुत्र ने उनपर भारी दबाव बनाकर उनके इस सिद्धांत का कचूमर निकाल दिया।बेचारे क्या करते ! सोचा कि बुढ़ापे के सहारे को कैसे नाराज करें ।
पर एक ऐसे राजनेता पिता को भी जानता हूं जिन्होंने अपने पुत्र की ओर से मिलने वाली प्रताड़ना को तो सहा,पर उसे अपने जीवनकाल में अपने पुण्य-प्रताप के बल पर राजनीति में कभी उसे आगे नहीं बढ़ाया ।तब यह भी चर्चा थी कि पिता के असमय निधन का कारण पुत्र की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ही बनी।
राजद सुप्रीमो ने तय किया है कि वह खुद या उनके परिजन पुलिस के कामकाज में दखल नहीं देंगेे।उधर मुख्य मंत्री ने पुलिस अफसरों से कहा है कि वे अपराधियांे को कुचल दें।उपर्युक्त बातें राज्य के शांतिप्रिय लोगों को बड़ी राहत पहुंचाती हैं।
इससे पहले कर्पूरी ठाकुर प्रतीक पुरुष थे।पर उनके निहितस्वार्थी मंत्रिमंडलीय सहयोगियों ने उन्हें जनहित के कई महत्वपूर्ण काम करने ही नहीं दिया।
इधर नीतीश कुमार किसी दबाव में नहीं आये।उम्मीद है कि आगे भी दबाव में नहीं आएंगे।
डा.राम मनोहर लोहिया का नाम सबसे अधिक जपने वाली मौजूदा समाजवादी पार्टी के किसी नेता में लोहिया और लोहियावाद की कोई झलक तक दिखाई नहीं पडत़ी।
पर नीतीश ने नयी राजनीतिक परिस्थितियों में लोहिया की मूल धारणाओं के अनुकूल भरसक काम किया है।समाज पर उसका सकारात्मक असर पड़ा। इस तरह लोहिया को सिरफिरा कहने वालों का उन्होंने मुंह बंद किया।
दशकों पहले इस देश के एक प्रधान मंत्री ने चीन सरकार के प्रमुख को लिखा था कि ‘हमारे देश में सिरफिरों की एक पार्टी है।’वे लोहिया की पार्टी का जिक्र कर रहे थे।
नीतीश सरकार ने महिलाओं के लिए जितना काम किया,वह एक रिकाॅर्ड है।लोहिया हर जाति की महिलाओं को पिछड़ा मानते थे।
नीतीश ने वैसे तो समाज के सभी तबकों के लिए काम किये,पर पिछड़ों और दलितों में जो अधिक पिछड़े हैं ,उनके लिए विशेष तौर से काम किये।याद रहे कि लोहिया समाज के ‘अंतिम व्यक्ति’ का भला चाहते थे।
उनके राजनीतिक विरोधियों ने लोहिया को सवर्ण विरोधी बताया था।इसके विपरीत यह तथ्य है कि लोहिया के लगभग सारे निजी सचिव ब्राह्मण थे।
नीतीश के अधिकतर करीबी मित्र सवर्ण ही हैं। लोहिया का न तो कोई बैंक खाता था और न ही निजी कार । इधर ऐसी कोई खबर नहीं है कि नीतीश कुमार ने अवैध तरीके से कोई निजी संपत्ति बनाई है।इसके अलावा भी कुछ बातें हैं।
पुत्र भी हो तो निशांत जैसा
मुख्य मंत्री के पुत्र निशांत कुमार ने कहा है कि राजनीति में मेरी कोई रूचि नहीं है।मैं जहां हूं,संतुष्ट हूं। उधर नीतीश कुमार भी यह नहीं चाहते कि उनके सहारे उनका कोई परिजन कोई पद पाये।निशांत भी अपने पिता के अनुकूल ही काम कर रहे हैं।पुत्र हो तो ऐसा।
संभव है कि निशंात को राजनीति मेें सचमुच कोई रूचि नहीं हो।यह भी संभव है कि अपने पिता की इच्छा के अनुकूल वे काम कर रहे हांे। कुछ भी हो, नीतीश कुमार वंशवाद के आरोप से तो बचे हुए हैं। इस कारण भी नीतीश की एक अलग छवि बन सकी है। राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं में नीतीश की साख बढ़ी है।
सारे कार्यकत्र्ताओं को पद नहीं दिया जा सकता।पर जदयू में किसी कर्मठ कार्यकत्र्ता को यह भय तो नहीं है कि उनका हक मारकर नीतीश कुमार अपने किसी परिजन को कोई पद दे देंगे। इस छवि को बनाये रखने में एक पुत्र अपने पिता का सहयोग कर रहा है।
नीतीश कुमार के बड़े भाई सतीश कुमार को मैं 1980 से जानता हूं। शुक्रवार को जितने लोगों ने मंत्री पद की शपथ ली ,उनमें से कई लोगों से अधिक राजनीतिक सूझबूझ सतीश कुमार में है।इसके बावजूद अब तक यह खबर नहीं है कि उन्होंने किसी पद के लिए अपने अनुज पर दबाव बनाया।
अनिच्छुुक राजीव आये थे राजनीति में
इस देश में ऐसे भी कई उदाहरण हंै कि पिता तो सिद्धांततः वंशवाद के सख्त खिलाफ थे,पर उनके पुत्र ने उनपर भारी दबाव बनाकर उनके इस सिद्धांत का कचूमर निकाल दिया।बेचारे क्या करते ! सोचा कि बुढ़ापे के सहारे को कैसे नाराज करें ।
पर एक ऐसे राजनेता पिता को भी जानता हूं जिन्होंने अपने पुत्र की ओर से मिलने वाली प्रताड़ना को तो सहा,पर उसे अपने जीवनकाल में अपने पुण्य-प्रताप के बल पर राजनीति में कभी उसे आगे नहीं बढ़ाया ।तब यह भी चर्चा थी कि पिता के असमय निधन का कारण पुत्र की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ही बनी।
और अंत में
राजद सुप्रीमो ने तय किया है कि वह खुद या उनके परिजन पुलिस के कामकाज में दखल नहीं देंगेे।उधर मुख्य मंत्री ने पुलिस अफसरों से कहा है कि वे अपराधियांे को कुचल दें।उपर्युक्त बातें राज्य के शांतिप्रिय लोगों को बड़ी राहत पहुंचाती हैं।
(दैनिक भास्कर, पटना : 22 नवंबर 2015)
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