सत्तर के दशक की बात है। तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई सोवियत संघ के दौरे पर थे। एक विदेशी संवाददाता ने उनसे पूछा कि दोनों देशों की बातचीत में असहमति के कौन-कौन से मुद्दे थे ? देसाई ने प्रति सवाल किया कि ‘क्या आप सहमति के मुददों को लेकर कोई सवाल नहीं कर सकते थे ?’
इसी तरह इन दिनों लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के बीच असहमति के मुददों की कुछ अधिक ही खोज हो रही है। हो सकता है कि कुछ मुद्दों पर दोनों नेताओं में असहमति हों। पर राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार ऐसे मुददों में भी टकराव का आविष्कार किसी के हित में नहीं है जहां ऐसा नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
पाकिस्तान यात्रा भी ऐसा ही एक मुद्दा था। उस पर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के अलग-अलग तरह के बयान जरुर आये थे। पर, उन बयानांे का बिहार की महागठबंधन सरकार से भला क्या संबंध ?
जो लोग यह मानकर चलते हैं कि किसी एक गठबंधन के दलों के नेताओं को हर मुददे पर एक ही स्वर में बोलना चाहिए, उनलोगों ने दोनों नेताओं के अलग -अलग तरह के उपर्युक्त बयानों में राजनीति खोज ही ली। पर अब तो लालू प्रसाद ने यह कह दिया कि ‘मैंने नीतीश कुमार की बात नहीं काटी थी। मेरा यही कहना है कि देश सुरक्षित हाथों में नहीं है।’
उधर प्रधानमंत्री की पाकिस्तान यात्रा पर नीतीश कुमार ने कहा था कि उनकी यात्रा सही दिशा में एक कदम थी। माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने देशहित को ध्यान में रखते हुए उनकी पाकिस्तान यात्रा की सराहना की। वैसे भी आज पाकिस्तान से संवाद बनाये रखने के सिवा भारत जैसे शांतिप्रिय देश के पास और रास्ता ही क्या है ?
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि नीतीश कुमार ने गठबंधन में शामिल दल की लाइन के खिलाफ अपनी स्वतंत्र राजनीतिक लाइन ली है। जदयू ने राष्ट्रपति चुनाव में प्रणव मुखर्जी को वोट दिये थे। भाजपा की लाइन अलग
थी। याद रहे कि तब बिहार में जदयू-भाजपा की मिलीजुली सरकार थी और नीतीश कुमार मुख्य मंत्री थे।
दरअसल नेता अगले चुनाव को ध्यान में रखकर काम करते हैं और ‘स्टेट्समैन’ अगली पीढि़यों को ध्यान में रखकर अपने कदम उठाते हैं।
इस संबंध में डा. राम मनोहर लोहिया का एक उदाहरण मौजूं होगा। डा.लोहिया ने 1967 में चुनाव की पूर्व संध्या पर यह कह दिया था कि देश में समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए। तब वे खुद एक ऐसे क्षेत्र में उम्मीदवार थे जहां अल्पसंख्यकों की बड़ी संख्या थी। इस पर उनके समाजवादी मित्रों ने कहा कि ऐसे बयान के बाद तो अब आपको अल्पसंख्यकों के मत नहीं मिलेंगे। इस पर डा. लोहिया ने कहा कि ‘मैं वोट के लिए नहीं बल्कि देश के हित के लिए राजनीति करता हूं।’
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