न तो समयबद्धता का ध्यान और न ही निर्माण में गुणवत्ता। ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाराज होना स्वाभाविक ही था। राजगीर में बिहार पुलिस अकादमी के निर्माणाधीन भवन का हाल देख-सुनकर किसी को भी गुस्सा आ जाये !
मुख्यमंत्री के गृह जिले में यह हाल है जहां वे अक्सर जाते रहते हैं। राज्य के दूर-दराज इलाकों में सरकारी
निर्माण कैसे चल रहा होगा, इसकी कल्पना कठिन नहीं है।
इस सिलसिले में एक उदाहरण पर्याप्त होगा।
2014 के अगस्त की बात है। मुजफफरपुर जिले से यह खबर आई कि 25 करोड़ रुपये की लागत से बना पुल उद्घाटन से पहले ही ध्वस्त हो गया। बागमती नदी की उपधारा पर बसघटा के पास बिहार राज्य पुल निर्माण निगम ने वह पुल बनवाया था।
स्थानीय लोगों ने बताया कि घटिया सामग्री के इस्तेमाल के कारण ऐसा हुआ।शासन ने भी कहा कि इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। पता नहीं चला कि कोई कार्रवाई हुई भी या नहीं।
दरअसल ऐसे मामलों में आम तौर पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती। इसलिए भी गलत काम करने वालों का धंधा चलता रहता है। आम लोगों के जानमाल की कीमत पर ऐसा हो रहा है। राजगीर का मामला भी उसी कड़ी में है। बागमती पुल जैसे मामले यदाकदा सामने आते रहते हैं।
क्या ऐसे घोटालेबाज और कामचोर लोग संतोष झा गिरोह की अपेक्षा राज्य को कम नुकसान पहुंचाते हैं ? याद रहे कि दरभंगा जिले में निर्माण कार्य में लगे दो इंजीनियरों की हाल में हत्या कर दी गयी। संतोष गिरोह ने 75 करोड़ रुपये की रंगदारी मांगी थी। न देने पर हत्या की गयी।
हालांकि यह समस्या सिर्फ बिहार सरकार में ही नहीं है। पिछले महीने रेलवे सुरक्षा आयुक्त पी.के. आचार्य पटना आये थे। वे दीघा-पहलेजा रेल पुल का निरीक्षण कर रहे थे। उन्होंने उसमें कई गड़बडि़यां पायीं।
जांच स्थल पर ही उन्हें यह कहना पड़ा कि जब तक कुछ लोगों को निलंबित नहीं किया जाएगा, तब तक वे सुधरेंगे नहीं। इस देश में आखिर यह सब क्या हो रहा है ?
राजगीर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब स्थल निरीक्षण किया, तब उन्हें यह पता चला कि सब कुछ ठीकठाक नहीं है।
स्थानीय रेलवे अधिकारियों द्वारा सब कुछ ठीकठाक घोषित कर देने के बाद ही मुख्य सुरक्षा आयुक्त स्थल निरीक्षण पर जाते हैं। इसके बावजूद आचार्य ने गत 17 दिसंबर को यह पाया था कि रेल की पटरी से दो बोल्ट गायब थे। एक अन्य स्थान पर उन्होंने पटरियों को जोड़ने के स्थान पर ‘होल’ को गलत पाया।
सवाल यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सुरक्षा आयुक्त पी.के आचायर् से पहले नीचे के अन्य संबंधित अधिकारी गण इन चीजों को ठीक क्यों नहीं करते ? इसके पीछे काहिली है या भ्रष्टाचार ? या फिर तकनीकी
पक्ष की कमजोरी ? क्या इस देश के अभियंताओं की शिक्षा-दीक्षा में ही कुछ कमी रह जा रही है।
संतोष झा गिरोह की धरपकड़ के लिए विशेष पुलिस दस्ते गठन हुआ है। क्या निर्माण की गुणवत्ता और समयबद्धता बनाये रखने के लिए भी किसी स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा? मुख्यमंत्री तो हर जगह निरीक्षण कर नहीं सकते।
मुख्यमंत्री के गृह जिले में यह हाल है जहां वे अक्सर जाते रहते हैं। राज्य के दूर-दराज इलाकों में सरकारी
निर्माण कैसे चल रहा होगा, इसकी कल्पना कठिन नहीं है।
इस सिलसिले में एक उदाहरण पर्याप्त होगा।
2014 के अगस्त की बात है। मुजफफरपुर जिले से यह खबर आई कि 25 करोड़ रुपये की लागत से बना पुल उद्घाटन से पहले ही ध्वस्त हो गया। बागमती नदी की उपधारा पर बसघटा के पास बिहार राज्य पुल निर्माण निगम ने वह पुल बनवाया था।
स्थानीय लोगों ने बताया कि घटिया सामग्री के इस्तेमाल के कारण ऐसा हुआ।शासन ने भी कहा कि इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। पता नहीं चला कि कोई कार्रवाई हुई भी या नहीं।
दरअसल ऐसे मामलों में आम तौर पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती। इसलिए भी गलत काम करने वालों का धंधा चलता रहता है। आम लोगों के जानमाल की कीमत पर ऐसा हो रहा है। राजगीर का मामला भी उसी कड़ी में है। बागमती पुल जैसे मामले यदाकदा सामने आते रहते हैं।
क्या ऐसे घोटालेबाज और कामचोर लोग संतोष झा गिरोह की अपेक्षा राज्य को कम नुकसान पहुंचाते हैं ? याद रहे कि दरभंगा जिले में निर्माण कार्य में लगे दो इंजीनियरों की हाल में हत्या कर दी गयी। संतोष गिरोह ने 75 करोड़ रुपये की रंगदारी मांगी थी। न देने पर हत्या की गयी।
हालांकि यह समस्या सिर्फ बिहार सरकार में ही नहीं है। पिछले महीने रेलवे सुरक्षा आयुक्त पी.के. आचार्य पटना आये थे। वे दीघा-पहलेजा रेल पुल का निरीक्षण कर रहे थे। उन्होंने उसमें कई गड़बडि़यां पायीं।
जांच स्थल पर ही उन्हें यह कहना पड़ा कि जब तक कुछ लोगों को निलंबित नहीं किया जाएगा, तब तक वे सुधरेंगे नहीं। इस देश में आखिर यह सब क्या हो रहा है ?
राजगीर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब स्थल निरीक्षण किया, तब उन्हें यह पता चला कि सब कुछ ठीकठाक नहीं है।
स्थानीय रेलवे अधिकारियों द्वारा सब कुछ ठीकठाक घोषित कर देने के बाद ही मुख्य सुरक्षा आयुक्त स्थल निरीक्षण पर जाते हैं। इसके बावजूद आचार्य ने गत 17 दिसंबर को यह पाया था कि रेल की पटरी से दो बोल्ट गायब थे। एक अन्य स्थान पर उन्होंने पटरियों को जोड़ने के स्थान पर ‘होल’ को गलत पाया।
सवाल यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सुरक्षा आयुक्त पी.के आचायर् से पहले नीचे के अन्य संबंधित अधिकारी गण इन चीजों को ठीक क्यों नहीं करते ? इसके पीछे काहिली है या भ्रष्टाचार ? या फिर तकनीकी
पक्ष की कमजोरी ? क्या इस देश के अभियंताओं की शिक्षा-दीक्षा में ही कुछ कमी रह जा रही है।
संतोष झा गिरोह की धरपकड़ के लिए विशेष पुलिस दस्ते गठन हुआ है। क्या निर्माण की गुणवत्ता और समयबद्धता बनाये रखने के लिए भी किसी स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा? मुख्यमंत्री तो हर जगह निरीक्षण कर नहीं सकते।
( 2 जनवरी, 2016 के दैनिक भास्कर,पटना से साभार)
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