शनिवार, 2 जनवरी 2016

जीतना ही होगा अपराधियों-भ्रष्टों के खिलाफ जारी राज्य शासन का यह निर्णायक युद्व


बिहार के छोटे-बड़े अपराधियों और भ्रष्टों के खिलाफ शासन ने
निर्णायक युद्व छेड़ दिया है।
यह युद्ध शासन को जीतना ही होगा।यह लड़ाई जीतना अब आसान भी
होगा।क्योंकि सत्ताधारी दलों के प्रमुख नेताओं ने यह आश्वासन दे रखा है
कि ऐसे लोगों को उनका कोई संरक्षण न है और न मिलेगा।
राजनीतिक कवच नहीं हो तो अपराधी और भ्रष्ट तत्व अधिक दिनों तक
नहीं टिक पाते।हालांकि वे भी आखिरी दम तक लड़ेंगे।क्योंकि उनमें से कई
लोगों की यह आदत बन चुकी है।यह उनका रोजगार भी है।
मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने ऐसे तत्वों के खिलाफ निर्णायक जंग का कड़ा
आदेश सरकारी तंत्र को दे दिया है।यदि इस काम में तंत्र ने मुख्य मंत्री का
पूरे दिल से साथ नहीं दिया तो उसे भी परिणाम भुगतने के लिए तैयार
रहना होगा।
दरभंगा में दो अभियंताओं की हत्या के बाद
यह सवाल उठ रहा है कि इस युद्ध में अंततः आखिर किसकी जीत होगी।
इस जघन्य हत्याकांड के बाद प्रतिपक्षी नेताओं को यह कहने का मौका
मिल गया है कि बिहार में जंगल राज लौट रहा है।
इस आरोप का जवाब शासन को अपने कर्मों के जरिए जल्दी ही देना
पड़ेगा।
अनेक लोगों को यह भरोसा है कि नीतीश सरकार अपराधियों और
भ्रष्ट लोगों पर देर-सवेर काबू पा लेगी।
गत चुनाव के बाद ही नीतीश कुमार ने एक बार फिर लोगों को यह
आश्वासन दिया था कि राज्य में कानून-व्यवस्था कायम है और कायम
रहेगी।
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने भी कह दिया है कि ‘कोई व्यक्ति कानून
अपने हाथ में नहीं लेगा।’ उन्होंने यहां तक भी कह दिया कि ‘कोई यह
भ्रम नहीं पाले कि जाति विशेष का होने से किसी पर कार्रवाई नहीं
होगी।’ लालू प्रसाद भी अपनी बातों पर कायम हैं, ऐसे संकेत मिल रहे
है।
इन बातों का काफी हद तक सकारात्मक असर पड़ा है।
इसके बावजूद कुछ समस्याएं अभी हल होनी बाकी हंै।संगठित अपराध
और स्थानीय पुलिस की उनसे साठगांठ चिंताजनक है।लगता है कि
सत्ताधारी नेताओं का उपर्युक्त संदेश सरजमीन तक पूरी तरह नहीं पहुंच
रहा है।शासन का उपरी हिस्सा निचले स्तर के कर्मचारियों और अफसरों
को यह समझाने में अभी सफल नहीं हुआ है कि सुशासन और विकास की
गति तेज करने के लिए आत्मानुशासन जरुरी है।यही सरकार की नीति है।
यदि वे आसानी से नहीं समझ रहे हैं तो उन्हें कड़े अनुशासन के डंडे से
समझाना पड़ेगा।मुख्य मंत्री ने इसका संकेत भी दे दिया है।
यदि कानून तोड़कों के खिलाफ यह युद्ध नहीं जीता जा सका तो
नीतीश सरकार के अगले पांच साल के एजेंडे को लागू नहीं किया जा
सकेगा।
शासन के निचले स्तर की भ्रष्टाचार, लापारवाहियों और उदंडता के कुछ
उदाहरण यहां पेश किये जा सकते हैं।सुरक्षा वापस लेने के अगले ही दिन
दरभंगा जिले में सड़क निर्माण कंपनियों के दो अभियंताओं की हत्या कर
दी गयी।
सवाल है कि क्या हत्यारा गिरोह और स्थानीय पुलिस के बीच साठगांठ
के परिणामस्वरुप सुरक्षा हटाई गयी थी ?
क्या निचले स्तर के राजनीतिककर्मियों का संरक्षण विभिन्न हत्यारा गिरोहों
को हासिल रहता है ? ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि किसी
प्रतिपक्षी दल ने भी अब तक यह आरोप नहीं लगाया है कि संतोष झा
गिरोह को राज्य के किसी बड़े सत्ताधारी नेता का संरक्षण हासिल है।
याद रहे कि तरह-तरह के छोटे-बड़े कानून तोड़क इन दिनों सुशासन
की परीक्षा ले रहे हैं।
यह परीक्षा और भी कड़ी होगी जब अगले अप्रैल में नशाबंदी लागू करने
का समय आएगा।साथ ही मैट्रिक और इंटर परीक्षाओं में कदाचार रोकने
की कोशिश के दौरान भी शासन की इच्छाशक्ति की परीक्षा होगी।
उससे पहले शासन को इन दिनों रोज ब रोज खुद को प्रमाणित करने का
मौका मिल रहा है।कुछ मामलों में सफलता और कुछ में विफलता मिल रही
है।
पटना में सघन वाहन जांच और अतिक्रमण हटाने के काम चल रहे
हैं।मंत्री के पी.ए. और पुलिसकर्मी भी जुर्माना अदा करने को मजबूर हो रहे
हैं।बिना हेलमेट व कागजात के पकड़े जाने पर नियम तोड़क लोग
पुलिसकर्मियों से भिड़ जाते हैं।इससे भी लगता है कि चीजें कितनी बिगड़ी
हुई हंै और उसे सुधारना कितना जरुरी है।
मंत्री के पी.ए.को जुर्माना भरना पड़ेगा तो उससे शासन की हनक कायम
होगी।
पर अतिक्रमण हटाने के काम में शासन वैसी चुस्ती नहीं दिखा पा रहा है।
क्योंकि आम तौर पर अतिक्रमणकारियों की स्थानीय पुलिस से साठगांठ
रहती है।पुलिस की नाजायज कमाई का वह भी एक जरिया है।
पटना में वाहन जांच और अतिक्रमण हटाने के काम यदि बिना किसी
भेदभाव के संपन्न होते हैं तो उसका असर राज्य के अन्य जिलों में भी
पड़ेगा।
खगौल रोड ओवर ब्रिज को बंद करके उसके बाकी काम पूरे किये जा रहे
हैं।बड़े वाहनों के लिए बदले हुए मार्ग की घोषणा भी जिला प्रशासन ने कर
दी है।शासन ने यह आदेश जारी किया है कि बड़े वाहन फुलवारी शरीफ
से एन.एच.-98 होते हुए नौबत पुर जाएंगे और वहां से शिवाला होते हुए
पटना लौटेंगे। पर वाहन बदले हुए मार्ग पर नहीं चल रहे हैं।बड़ी संख्या
में बड़े वाहन नकटी भवानी से चकमुसा- कुर्जी-सरारी होते हुए गुजर रहे
हैं। लोगों को बड़ी परेशानी हो रही है।दुर्घटनाएं हो रही हैं। अन्य छोटे
वाहनों का पतली सड़क पर चलना कठिन हो गया है।इसके लिए कौन
जिम्ेदार है ? पुलिस बल की कमी, उसकी काहिली या भ्रष्टाचार ?
पटना की दो खबरें चिंताजनक हैं।पटना जिला मुख्यालय से कुछ ही
कदम पर प्रखंड कार्यालय स्थित है।जिलाधिकारी संजय अग्रवाल के औचक
निरीक्षण से अंचल कार्यालय की पोल खुल गयी।
अंचल कार्यालय की जमीन पर भारी अतिक्रमण और दलालों के जमावड़े
को देखकर डी.एम.दंग रह गये।सवाल है कि इससे पहले किसी डी.एम.ने
इतने करीब स्थित अंचल कार्यालय की ओर झांकने तक की जहमत क्यों
नहीं उठायी थी जबकि वहां के भ्रष्टाचार की खबरें आम हैं ?
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के गेट पर अपराधियों के गिरोह खुलेआम
शराब पीते हैं।वहां महिलाएं कौन कहे,पुरुष भी असुरक्षित हैं।मना करने पर
उन लोगों ने डाक्टरों से मारपीट कर ली।स्थानीय पुलिस आखिर करती
क्या है ? सुशासन के प्रति राजनीतिक कार्यपालिका की इच्छाशक्ति की
हनक वहां तक भी पहुंचनी चाहिए।ऐसी छोटी-छोटी घटनाएं आम लोगों के
दिलो दिमाग पर शासन के प्रति नकारात्मक असर डालती हैं।
पर,इस बीच पुलिसकर्मियों के खाली पदों को भरना होगा।
पुलिसकर्मियों को बेहतर प्रशिक्षण के साथ-साथ आधुनिक हथियार भी
मिलने चाहिए।संगठित गिरोंहों के पास पुलिस से बेहतर व आधुनिक
हथियार हैं।
पुलिस को बेहतर सेवा शत्र्तों की भी दरकार है।उनके काम के घंटे तय
होने चाहिए।उन्हें असीमित घंटे काम करने पड़ते हैं।
बड़ी-बड़ी बातें तो ठीक हैं।पर ऐसे छोटे-मोटे सुधारों से राज्य में
विकास का माहौल बनेगा।यदि बिहार का कायापलट करना है तो अब यह
नहीं चलने दिया जाना चाहिए कि ‘यहां सब चलता है।’ ं
कानून तोड़कों के खिलाफ यह एक ऐसा युद्ध है जिसे किसी की भी
परवाह किए बिना हर हाल में जीतना ही पड़ेगा ।
@ इस लेख का संपादित अंश दैनिक भास्कर,पटना के 29 दिसंबर 2015
के अंक में प्रकाशित@

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