बुधवार, 27 नवंबर 2024

 योगी अदित्यनाथ लोकप्रिय क्यों ?

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सुरेंद्र किशोर

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महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव नतीजा आने के तत्काल बाद वरिष्ठ नेता शरद पवार ने कहा कि योगी आदित्यनाथ के 

नारे और शिन्दे सरकार की लाड़िली बहन योजना के कारण राजग को इस चुनाव में लाभ मिला।(द हिन्दू-25 नवंबर 24)

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शरद पवार जैसे अनुभवी नेता की टिप्पणी को गंभीरता से लेने की जरूरत है।

आखिकार योगी का नारा काम क्यों कर रहा है ?

इससे पहले हरियाणा विधान सभा चुनाव

नतीजे पर भी योगी के नारे का भाजपा के पक्ष में 

असर पड़ा था।

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योगी का चर्चित नारा असरदार क्यों हुआ ?

क्योंकि योगी के नारे के पीछे उनके कर्मों और उपलब्धियों का बल हैं।

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4 सितंबर, 24 के इंडिया टूडे (हिन्दी) में एक देशव्यापी सर्वेक्षण का नतीजा छपा है।

‘‘देश का मिजाज सर्वेक्षण’’ के नतीजे के अनुसार पूरे देश के एक लाख 36 हजार 463 लोगों में से 46.30 प्रतिशत लोगों ने योगी अदित्यनाथ को देश का सबसे अच्छा मुख्य मंत्री बताया।

इंडिया टूडे के अनुसार , 

‘‘लोकप्रियता में कुछ गिरावट के बावजूद उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ देश में अव्वल नंबर पर’’ हंै। 

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अब सवाल है कि योगी आदित्य नाथ को सबसे अधिक लोग पसंद क्यों करते हैं ?

ध्यान रहे कि यह सिर्फ किसी एक राज्य के सर्वे का नतीजा नहीं है।

बल्कि 30 राज्यों में यह सर्वे हुआ था।

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मेरी समझ से देश के समक्ष जो मुख्य तीन सबसे कठिन समस्याएं हैं ,उनके समाधान के लिए योगी जी   

किसी भी अन्य मुख्य मंत्री की अपेक्षा अधिक गंभीरता से यहां तक कि भारी खतरा उठाकर भी देशहित में सचेष्ट हैं।

उनकी सचेष्टता के कारण ही योगी को जान से मारने की लगातार धमकियां मिल रही हंै।

वे समस्याएं कौन-कौन सी हैं ?

वे हैं--

1.-सर्वव्यापी भीषण भ्रष्टाचार,

2.- बेलगाम (सामान्य) अपराध 

और 3--जेहाद का गंभीर खतरा।

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निष्कर्ष--ये तीनों समस्याएं देशव्यापी हैं।

पर,इन समस्याओं के प्रति अलग -अलग राज्य सरकारों के 

रुख-रवैऐ में भारी फर्क है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।

कहीं -कहीं तो कुछ राज्य सरकारें ही ऐसी समस्याएं बढ़ा रही हैं।ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि योगी की ओर देश के विवेकशील व राष्ट्रभक्त लोगों का ध्यान जाये।

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याद रहे जो भी सत्ताधारी या विपक्षी नेता इन समस्याओं को लेकर जितना कम चिंतित हंै या जो इन समस्याओं को घटाने के बदले बढ़ाने की दिशा में प्रयत्नशील हैं,उनकी ओर से आम जनता (अपवादों को छोड़कर )धीरे -धीरे विमुख होती जाएगी।बल्कि होती जा रही है।

बेहतर है कि वे देशहित मेें अब भी सावधान हो जाएं ,यदि वे अपनी राजनीतिक खैर चाहते हैं।

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26 नवंबर 24 



शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

 क्षमा-याचना सहित

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स्वाभाविक ही है।

लोग सामाजिक तथा अन्य तरह के समारोहों 

में शामिल होने के लिए मुझे यदाकदा बुलाते हैं।

पर, कई कारणों से मैं शामिल नहीं हो पाता।

इसके कुछ तो अपरिहार्य कारण हैं।

मेरा न जाना, किन्हीं के प्रति अवज्ञा कत्तई नहीं है।

किसे अच्छा नहीं लगेगा कि वह कहीं जाये और वहां उसे मान मिले।

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स्वाभाविक ही है कि उम्र बढ़ते जाने के कारण कार्य क्षमता कम होती जाती है।

 साथ ही, मेरे पास समय कम है और बहुत काम अभी बाकी हंै।

कुछ प्रकाशकों के प्रति इस बीच मेरी वचनबद्धता भी हो गयी है। काम पूरा करके उन्हें समय पर सौंपना है।

ऐसा न करने पर साख खराब होती है।

इसलिए बुलावे पर भी न जा पाने के लिए मेरी तरफ से क्षमा याचना !

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सुरेंद्र किशोर

15 नवंबर 24 


गुरुवार, 14 नवंबर 2024

 नेहरू के जन्म दिन (14 नवंबर) पर

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आज इस देश के कितने लोग अपनी सुख-सुविधाएं छोड़कर 

सिर्फ जन सेवा के लिए (कुर्सी के लिए नहीं)सक्रिय राजनीति में खुद को झांेक दे रहे हैं ?!!

अत्यंत विरल।

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सुरेंद्र किशोर

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 किंतु जवाहरलाल नेहरू ने जालियांवाला बाग नर संहार (1919)की हृदय विदारक घटना से क्षुब्ध होकर उसके तत्काल बाद आजादी की लड़ाई में कूद कर देशहित में खुद के

अनिश्चिंतता के भंवर डाल दिया था।

1919 में कितने लोगों को यह उम्मीद थी कि अंग्रेज कभी भारत छोड़ेंगे और हमें राजपाट करने का 

अवसर मिल जाएगा ?

बहुत ही कम लोगों को।

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नेहरू की उसी भूमिका को लेकर उनके आलोचक डा.राम मनोहर लोहिया ने उनके निधन (1964) पर कहा था--   

‘‘1947 के पहले के नेहरू को मेरा सलाम !’’  

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  यह और बात है कि प्रधान मंत्री के रूप में जवाहरलाल नेहरू विफल साबित हुए।यह सिर्फ मेरी नहीं,बल्कि आज की पीढ़ी की भी राय है।

इसीलिए गत साल ‘‘इंडिया टूडे’’ ने लोगों से जब यह पूछा कि अब तक के इस देश के किस प्रधान मंत्री को आप सबसे अच्छा प्रधान मंत्री मानते हैं तो सिर्फ पांच प्रतिशत लोगों ने नेहरू के पक्ष में अपनी राय दी।

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इसके बावजूद नेहरू के बारे में खास कर उनके जीवन के कुछ खास वर्षों के बारे में जो बातें स्मरणीय-प्रेरणादायक हैं ,उनकी चर्चा जरूरी है।शायद उससे आज की (अपवादों को छोड़कर) भौतिकवादी पीढ़ी को कुछ प्रेरणा मिले !

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   उस भीषण नर संहार से पहले भी आजादी की लड़ाई में वह शामिल होना चाहते थे।पर,उनके पिता मोतीलाल नेहरू के मना करने पर वे मान गये थे।

  तब मोतीलाल नेहरू की राय थी कि 

‘‘मुट्ठी भर लोगों के जेल चले जाने से देश गुलामी से मुक्त नहीं हो सकता।’’

 जवाहर की बहन कृष्णा हठी सिंह ने लिखा है कि ‘‘जवाहर के आजादी की लड़ाई में शामिल होने से  

हमारे परिवार का जीवन प्रवाह ही बदल गया।

जालियां वाला बाग की दर्दनाक घटना के बाद आजादी की लड़ाई में शामिल होने को लेकर परिवार की दुविधा समाप्त हो गई थी।’’

    एक नरंसहार के कारण जवाहर लाल नेहरू जैसे शानदार और जानदार नेता आजादी की लड़ाई के लिए मिल गया।

नेहरू ने अपना सुखमय जीवन छोड़कर अनिश्चितता के भंवर में खुद को डाल दिया था।इस देश में त्याग करने वालों कोे सम्मान की नजर से देखा जाता है।

नेहरू तब युवकांे के हृदय सम्राट थे।उनसे प्रेरणा लेकर न जाने कितने नौजवान आजादी की लड़ाई में शामिल हुए होंगे।  कोई व्यक्ति अपना सुखमय जीवन छोड़कर सिर्फ देश के भले के लिए (न कि अपना घर भरने के लिए)खुद को राजनीतिक अनिश्चितता के भंवर में डाल दे,यह बात आज विरल है।

आज इस देश के अधिकतर लोग सत्ता-पैसा-धाक  के लिए ही राजनीति ज्वाइन कर रहे हैं।

आज तो एक पार्टी से जब उनका स्वार्थ साधन नहीं होता है तो वे तुरंत दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं।

हाल के दशकों में उच्च सदनों के कितने निवर्तमान सदस्य रहे हैं जिन्हें यदि अगली बार भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो भी वे उसी दल में जमे रह गये ?!

वैसे भी आज देश की राजनीति का महत्वपूर्ण स्थान वंशवादियों और परिवारवादियों से भरता जा रहा है।कुछ अयोग्य वंशजों के कारण तो खुद वैसी वंशवादी-परिवारवादी पार्टियां भी बर्बाद होती जा रही हैं।

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 लगे हाथ बता दूं कि राजनीति में वंशवाद -परिवारवाद की नींव खुद मोतीलाल नेहरू ने 1928-29 में डाली थी जब उन्होंने महात्मा गांधी पर भारी दबाव बनाकर(मोतीलाल नेहरू पेपर्स इसका गवाह है)

1929 में अपने पुत्र को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया।

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14 नवंबर 24

     


 


 


बुधवार, 13 नवंबर 2024

 जिस देश में भ्रष्टाचार कैंसर की 

तरह पनप रहा हो ,उसे देर-सबेर गुलाम 

होने से भला कौन बचा सकता है ?!

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जेहादियों के लिए भारत में आज

बहुत ही अनुकूल अवसर है

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सुरेंद्र किशोर

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मौजूदा पृष्ठभूमि में आज के दैनिक जागरण तथा दैनिक भास्कर में प्रकाशित सनसनीखेज रपटों को पढ़िए-- कटिंग्स की स्कैन काॅपिज यहां दी जा रही हंै।

छापों के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने यह उद्घाटित किया है कि 

किस तरह बड़े पैमाने पर भारत में बगल के देश से मुसलमानों की घुसपैठ कराई जा रही है।इस तरह  भारत में मुसलमानों

की आबादी बढ़ाई जा रही है।

अन्य सूत्रों के अनुसार जेहादी तत्व गृह युद्ध शुरू करके भारत पर कब्जा कर यहां इस्लामिक शासन कायम करना चाहते हैं।

पी.एफ.आई. इसके लिए बड़े पैमाने पर हथियार जुटाने और हत्यारी जमात गठित करने में लगा हुआ है।कह रहा है कि यदि भारत के दस प्रतिशत भी मुस्लिम उसका साथ दे दें तो हम यहां इस्लामिक शासन कायम कर लेेंगे।

यह अच्छा पक्ष है कि उसके साथ हथियारबंद होने के लिए इस देश के 10 प्रतिशत मुस्लिम भी तैयार नहीं हैं।हालांकि अब थोक में किसी एक ही मोदी विरोधी उम्मीदवार या गठबंधन को वोट देने में लगे हैं।गत लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के 95 प्रतिशत मुसलमानों ने सपा-कांग्रेस को वोट दिये।

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इस देश के किसी भी तथाकथित सेक्युलर दल या बुद्धिजीवी के लिए यह चिंताजनक स्थिति भी कोई समस्या नहीं।

क्योंकि उन्हें तो सिर्फ मुस्लिम वोट चाहिए ताकि वे सत्ता में आकर लूटपाट कर सकें।

इस नाजुक स्थिति की वे चर्चा तक नहीं करते है। वे मुसलमानों के अधिकतर वोट पाकर एक ऐसी केंद्र सरकार को हटाने के प्रयास में लगे हैं जो सरकार जेहादियों से भरसक लड़ रही है।

  हालांकि केंद्र की लड़ाई अभी कमजोर है ।क्योंकि कई राज्य सरकारें जेहादियों के पूरी तरह साथ हैं,उन्हें मदद कर रही हैं या उनकी गतिविधियों के प्रति अंधी हैं।इसीलिए एन.आई,ए,को बंगाल -झारखंड में छापेमारियां करनी पड़ रही हैं।

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कल टी.वी.पर सीमा सुरक्षा बल के एक रिटायर डी.जी.की टिप्पणी सुन रहा था।उन्होंने कहा कि बी.एस.एफ.में सब ईमानदार नहीं हैं।पर जो ईमानदारी से घुसपैठियों को पकड़कर राज्य पुलिस को सौंप भी देते हैं उन्हें भी ऊपरी निदेश के तहत राज्य पुलिस बाद में छोड़ देती है।उनका इशारा बंगाल सरकार की ओर था।

घुसपैठिए देश के विभिन्न हिस्सों में बस रहे हैं।राज्य सरकारें अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए उन्हें छुड़वा देती हैं।

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हाल में एक पाक टी.वी.चैनल पर वहां के एक वक्ता को यह कहते हुए सुना कि --‘‘भारत के 150 जिलों में अब हिन्दू बहुमत में नहीं हैं।’’

  कुछ साल पहले मणि शंकर अय्यर पाकिस्तान जाकर वहां के टी.वी.चैनल के जरिए पाकिस्तानियों से यह अपील कर चुके हैं कि आप मोदी को सत्ता से हटाइए।

  याद रहे कि अय्यर मनमोहन सरकार में मंत्री थे।वे भारत सरकार को चेताते रहते हैं कि पाक से झगड़ा मत करो क्योंकि उसके पास एटम बम है।ऐसे नेताओं से भरा-पड़ा है अपना यह देश।मध्य युग से भी आज इस मामले में बदतर  स्थिति बन गई लगती है।पर अच्छी बात है कि भारत सरकार के पास आज काफी पैसा है।क्योंकि उसने केंद्रीय मंत्रिमंडल स्तर पर से भ्रष्टाचार लगभग समाप्त कर दिया है।सन 2014 की अपेक्षा भारत सरकार का कर राजस्व आज तीन गुना है।

उसने सेना और अर्ध सैनिक बल को मजबूत करना शुरू कर दिया है ताकि किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना किया जा सके।

  हालांकि स्थिति की गभीरता देखिए।

उधर डा.जाकिर नाइक ने करीब साल भर पहले कह दिया था कि अब भारत में हिन्दुओं की आबादी सिर्फ 60 प्रतिशत ही रह गई है।

प्रतिबंधित जेहादी संगठन पी.एफ.आई.का लक्ष्य सन 2047 है,पर टी.वी.पर अक्सर प्रकट होने वाले एक मौलाना को यह कहते हुए सुना कि हम वह लक्ष्य उससे पहले ही प्राप्त कर लेंगे।

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अत्यंत भ्रष्ट प्रशासन,वोटलोलुप नेता और कमजोर (अन इक्वल टू द टास्क )केंद्र सरकार से जेहादियों का मनोबल बढ़ रहा है।

अब आम राष्ट्र भक्त व लोकतांत्रिक जनता को ही यह सोचना है कि उसे इस देश को बचाना है या मध्य युग की पुनरावृति होने देनी  है ्!!!

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13 नवंबर 24

 


 हमारा इतिहास बताता है कि हम जब -जब 

बंटे थे, तब -तब बुरी तरह कटे थे

एक बार फिर हम बंटने के कारण

ही खतरे में हैं।

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सुरेंद्र किशोर

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(1.)--712 ईस्वी में मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध के ब्राह्मण राजा दाहिर सेन पर आक्रमण किया।

कासिम ने धन और पद का लोभ देकर दाहिर के पुजारियों तथा कुछ अन्य को मिला लिया था।नतीजतन दाहिर हार गया।

कासिम ने दाहिर को हराने के बाद उन पुजारियों तथा अन्य को भी मार डाला था जिन्होंने उसका साथ दिया था।क्योंकि उनके लिए तो सब काफिर ही थे !!!

यानी,देखिए कैसे जब हम बंटे तो किस तरह बुरी तरह कटे।

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(2)--1192 में मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चैहान को हराया।

उससे पहले के युद्ध में चैहान ने गोरी को हरा कर भगा दिया था।क्योंकि तब जयचंद ने चैहान का साथ दिया था।

इस बीच चैहान ने जयचंद की पुत्री संयोगिता का अपहरण कर उससे शादी कर ली।

इससे नाराज होकर जयचंद ने 1192 के युद्ध में चैहान का साथ नहीं दिया।नतीजतन चैहान हारा और मारा गया।

पर,गोरी ने लोगों ने बाद में जयचंद को भी मार डाला।गोरी के लोगों ने संयोगिता के साथ कैसा सलूक किया,उसे यहां लिखा नहीं जा सकता।

देखिए किस तरह हम बंटे तो कटे।

(इस कहानी का सबक यह है कि आज के भारत के आधुनिक  ‘‘जयचंद’’ वोट के लिए जेहादियों का साथ दे रहे हैं,उनका भी हश्र जयचंद और सिंध के पुरोहितों का ही हो सकता है।)

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(3.)--अब आइए किस तरह हमारे आपस में बंट जाने के कारण भारत में ब्रिटिश साम्राज्य कायम हुआ।

एक ब्रिटिश इतिहासकार से ही वह कहानी जान लीजिए। 

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उदारवादी ब्रिटिश इतिहासकार सर जे.आर. सिली

ने लिखा है कि ‘‘भारत को हमने नहीं जीता, बल्कि खुद भारतीयों ने भारत को जीत कर हमारे प्लेट पर रख दिया।’’

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अपनी मशहूर किताब ‘द एक्सपेंसन आॅफ इंगलैंड’ के लेखक सिली  की स्थापना थी कि 

‘‘हमने (यानी अंग्रेजों ने) नहीं जीता,बल्कि खुद भारतीयों ने ही भारत को जीत कर हमारे प्लेट पर रख दिया।’’

  चैधरी चरण सिंह ने सर जे.आर.सिली की पुस्तक का हिन्दी में अनुवाद करवाकर बंटवाया था।

  चरण सिंह ने एक तरह से हमें चेताया था कि यदि इस देश में गद्दार मजबूत होंगे तो देश नहीं बचेगा।

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(4.)--भारत एक बार फिर बुरी तरह बंटा नजर आ रहा है।

आज भी चुनाव जीत कर इस देश को लूटने वाले राजनीतिक दल मुस्लिम जेहादियों की मदद कर इस देश की एकता-अखंडता को भारी खतरे में डाल रहे हैं।

उसके लक्षण और सबूत निम्नलिखित हैं।

प्रतिबंधित जेहादी संगठन पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया ने खुलेआम यह घोषणा की है कि हम हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देंगे।

इसके लिए उसने बड़े पैमाने पर हथियार जुटाने शुरू किये हैं।

उसके हजारों ‘‘ सिपाही ’’ तैयार हैं।पाॅपुलर फं्रट के राजनीतिक संगठन एस.डी.पी.आई. से सन 2018 के कर्नाटका विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने तालमेल किया था।एस.डी.पी.आई.ने कांग्रेस के लिए 25 सीटें तब छोड़ दी थीं।

खबर है कि वायनाड लोक सभा उप चुनाव में पी.एफ.आई. कांग्रेस उम्मीदवार की मदद कर रहा है।पी.एफ.आई.ही इन दिनों केरल,कर्नाटका तथा अन्य कई राज्यों में अधिकतर मुस्लिम वोट को कंट्रोल करता है।

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कांग्रेस ने भी पी.एफ.आई.के पूर्व संगठन सिमी का भी साथ दिया था।

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  पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अन्सारी ने एक बार कहा था कि वह सेक्युलरिज्म मौजूदा (मोदी)सरकार के शब्दकोश में नहीं है जो 2014 से पहले की केंद्र सरकार के शब्दकोश में था। 

(याद आया तब के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों खास कर मुसलमानों का है ? ) 

  क्या हामिद अंसारी और कांग्रेस का सेक्युलरिज्म,पी.एफ.आई.के सेक्युलरिज्म से मेल खाता है ?

  यदि ऐसा नहीं है तो हामिद अंसारी पी.एफ.आई.की महिला शाखा के समारोह में शामिल होने के लिए 23 सितंबर, 2017 में कोझीकोड क्यों गए थे ?(याद रहे कि पी.एफ.आई.ने कहा है कि भारत के 10 प्रतिशत मुसलमान भी हमारा साथ दे दें तो हम भारत में इस्लामिक शासन जल्द ही कायम कर देंगे।यानी 10 प्रतिशत भी उसका साथ युद्ध लड़ने के लिए नहीं दे रहे हैं। हां, वैसे 92 प्रतिशत मुसलमानों ने 2024 के लोस चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस का साथ वोट देने में जरूर दिया था।ऐसा बाहरी संकेत पर हुआ था।) 

    केरल सरकार की पुलिस ने  24 दिसंबर, 2012 को वहां के हाईकोर्ट से कहा कि सिमी का ही नया रूप पाॅपुलर फं्रट आॅफ इंडिया है।

केरल पुलिस के डी.जी.पी.ने सी.पी.एम. मुख्य मंत्री से सिफारिश की थी कि वह पी.एफ.आई.पर प्रतिबंध लगाएं।

पर मुख्य मंत्री ने कहा कि हम उससे राजनीतिक रूप से लड़ंेगे,प्रतिबंध नहीं लगाएंगे।प्रतिबंध बाद में मोदी सरकार ने लगाया।

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   जेहादी छात्र संगठन सिमी के बारे में जानिए।

 उस संगठन के अहमदाबाद जोन के सेके्रट्री साजिद मंसूरी ने सन 2001 में  मीडिया से  बातचीत  में कहा था कि

 ‘‘जब हम भारत में सत्ता में आएंगे तो सभी मंदिरों को नष्ट कर देंगे और वहां मस्जिद बना देंगे।’’

सिमी के एक दूसरे नेता ने मीडिया से कहा था कि लोकतांत्रिक तरीके से भारत में इस्लामिक शासन संभव नहीं है।इसलिए हमारा  एकमात्र रास्ता जेहाद है।

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार सन 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया था।

बाद की मनमोहन सरकार ने भी उस पर प्रतिबंध जारी रखा।क्योंकि खुफिया रपट ही वैसी थी।

प्रतिबंध के खिलाफ कांग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद सुप्रीम कोर्ट में सिमी के वकील थे।खुर्शीद उस समय यू.पी.कांग्रेस के अध्यक्ष थे।

  इस देश के अधिकतर तथाकथित ‘सेक्युलर’ दलों ने समय -समय पर सार्वजनिक रूप से सिमी का बचाव किया।

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वैसे तो हमारे बंटने के अनेक ताजा उदाहरण मौजूद हैं।पर,कुछ नमूने यहां पेश हैं।

बांग्ला देश में लगातार हिन्दू संहार-उत्पीड़न हो रहा है।पर भारत का कोई भी तथाकथित सेक्युलर दल उसकी निन्दा नहीं कर रहा है।क्योंकि उन्हें डर है कि निन्दा करने से भारत के अधिकतर मुस्लिम मतदाता उनसे नाराज हो जाएंगे।

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कनाडा में भी हिन्दुओं को मारा जा रहा है।उस पर भी भारत में ‘‘धर्म निरपेक्ष चुप्पी’’ है।ं

इतना ही नहीं, सन 2002 के गोधरा टे्रन दहन कांड पर भी वैसी ही चुप्पी थी।

गुजरात के गोधरा में ट्रेन 59 कार सेवक दहन कांड 27 फरवरी 2002 की सुबह में ही हो गया था।

पर, उस दिन शाम तक किसी तथाकथित सेक्युलर दल के नेता ने उस नृशंस कांड की निन्दा तक नहीं की थी।

27 फरवरी 2002 को जेहादियों ने गोधरा रेलवे स्टेशन पर खड़ी ट्रेन के डिब्बे को बाहर से पेट्रोल छिड़ककर जला दिया। 

भीतर मौजूद 59 कार सेवक जिन्दा जल मरे।वे अयोध्या से लौट रहे थे।

वह हृदय विदारक घटना सुबह में ही हुई थी।

24 घंटे टी.वी.चैनलों वाले इस देश में दिन भर किसी सेक्युलर नेता ने उस घटना की निन्दा तक नहीं की।

किंतु जब शाम में गुजरात में प्रतिशोधात्मक दंगे शुरू हुए तो सेक्युलर दल के नेतागण उसके खिलाफ चिल्लाने लगे।

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इस तरह के अनेक उदाहरण आए दिन मिलते रहे हैं।

इस तरह बंट चुका समाज यदि अब भी इतिहास से नहीं सीखेगा तो उसे और उसकी आनेवाली पीढ़ियों को भला विनाश से कौन बचा सकता है ????  

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10 नवंबर 24


बुधवार, 6 नवंबर 2024

     4 नवंबर, 1974 की याद में 

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जब बौराई पुलिस के लाठी प्रहार से 

जयप्रकाश नारायण मूर्छित हो गये थे

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सुरेंद्र किशोर

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बौराई पुलिस ने 4 नवंबर, 1974 को जयप्रकाश नारायण पर लाठी प्रकार कर उन्हें मूर्छित कर दिया था।

 वहां मौजूद छायाकार सत्यनारायण दूसरे के अनुसार, मूच्र्छित जेपी को सर्वाेदय नेता बाबूराव चन्दावार और समाजवादी युवा नेता रघुपति ने संभाला।

 उससे पहले जेपी पर हुए एक प्रहार को रोकने के लिए उस जीप पर सवार नानाजी ने अपना हाथ आगे कर दिया और उससे नानाजी घायल हो गये।

 उस दिन पटना के आयकर गोलबंर के पास जुलूस के साथ पहुंची जेपी की जीप को इंगित करके पुलिस ने अश्रुगैस का गोला भी मारा था।

वह गोला उस जीप के पास इकट्ठी महिलाओं में से मेरी पत्नी रीता सिंह के सिर पर गिरा।

 उससे वह बुरी तरह झुलस गई।

 बेहोश हो गयी।

 अर्ध सैनिक बल के जवान बेहोश रीता को पास के नाले में फेंकने का उपक्रम कर ही रहे थे कि बिहारी साव लेन (पटना)की आन्दोलनकारी महिला गिरिजा देवी ने

पुलिस से विनती की।

कहा कि यह मेरी बेटी है,इसे छोड़ दीजिए।

उस कारण रीता की जान बची।

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 कल्पना कीजिए, यदि अश्रुगैस का वह गोला उम्र दराज जेपी के सिर पर गिरा होता तो क्या होता ?

मेरी पत्नी लंबे समय तक पटना मेडिकल काॅलेज अस्पताल में

इलाजरत रही थी।

उस घटना में घायलों में नानाजी देशमुख और अली हैदर तथा कुछ अन्य भी उसी अस्पताल में थे।

पुलिस की निर्मम पिटाई से सबसे अधिक घायल बुजुर्ग अली हैदर (गया निवासी) थे जो बाद में बिहार सरकार के मंत्री बने।

जयप्रकाश नारायण घायलों से मिलने दो बार पटना मेडिकल काॅलेज के राजेंद्र सर्जिकल वार्ड गये थे।दोनों बार मेरी पत्नी के बेड के पास भी गये और चिकित्सकों से कहा कि इसके इलाज में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।

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 सन 1977 में बिहार विधान सभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नामों का चयन होने लगा। जेपी ने पूछा--‘‘क्या उस लड़की का आवेदन पत्र नहीं है जिसके सिर पर अश्रु गैस का गोला गिरा था ?’’

याद रहे कि आवेदन पत्र नहीं था।

    गत 5 जून, 2024 को ‘संपूर्ण क्रांति’ दिवस पर जब रीता पटना के कदम कुआं स्थित जेपी मूत्र्ति पर माला चढ़ाने गयी थी तो माननीया तारा सिन्हा ने उससे कहा कि ‘‘रीता, तुम्हें दादा (जेपी) ही टिकट देना चाहते थे । समझो कि तुम एम.एल.ए.बन गयी।’’

तारा सिन्हा डा.राजेंद्र प्रसाद की पोती हैं।

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दरअसल इमरजेंसी (1975-77) में बड़ौदा डायनामाइट षड्यंत्र केस के सिलसिले में सी.बी.आई.बेचैनी से मेरी तलाश कर रही थी।मैं मेघालय के फुलबाड़ी (गारो हिल्स जिला)नामक छोटे स्थान में जाकर छिप गया था।

वहां मेरे बहनोई का व्यापार था। वहां गैर कांग्रेसी सरकार थी। इसलिए वहां इमरजेंसी का अत्याचार नहीं था। 

इस बीच हम पति-पत्नी ने तय किया था कि हम दोनों में से कोई एक ही राजनीति में रहेगा,दूसरा घर चलाने के लिए नौकरी करेगा। (क्योंकि उससे पहले एक समाजवादी कार्यकर्ता के रूप में 1966-67 से बाद तक भारी आर्थिक परेशानी और अपमान झेलने पड़े थे।)

सन 1977 के चुनाव से पहले ही बिहार सरकार ने प्राप्तांकों के आधार पर शिक्षकों की बहाली शुरू की।

 रीता उसके तहत सरकारी शिक्षिका बन गयी।

वैसे भी 1977 में उसकी उम्र चुनाव लड़ने लायक यानी 25 साल नहीं हुई थी।

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हालांकि बाद में भी हमने कभी किसी राजनीतिक पद के लिए कभी कोई कोशिश नहीं की।

मैं भी इमरजेंसी हटने के बाद मुख्य धारा की पत्रकारिता जैसे सम्मानजनक तथा प्रभावशाली पेशे से जुड़ गया।

  हालांकि मैं समाजवादी आंदोलन के सिलसिले में 1968 में तिहाड़ जेल मंे रह चुका था। उससे पहले भी गिरफ्तार होता रहा।

डा.लोहिया से प्रभावित होकर में राजनीति में आया था।मुझे लिखी लोहिया की चिट्ठी अब भी मेरे पास है।

तिहाड़ जेल में मेरे साथ के विचाराधीन कैदियों में राजनीति प्रसाद भी थे जो बाद में राज्य सभा के सदस्य बने थे।

  बिहार समाजवादी युवजन सभा का सन 1969 में मैं संयुक्त सचिव चुना गया था।

अन्य दो संयुक्त सचिव थे--लालू प्रसाद और बेगूसराय की शांति देवी।सचिव बने थे शिवानन्द तिवारी।

यह सब मैंने इसलिए लिखा क्योंकि राजनीति और राजनीतिक पद का मोह छोड़ना कठिन तो है,किंतु असंभव नहीं। जहां सम्मान और सच्चाई के साथ जीना संभव न लगे तो उस जगह को छोड़ ही देना चाहिए। 

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एक बात, एक बार फिर

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तब घायल नानाजी देशमुख को देखने अटल बिहारी वाजपेयी पटना आये थे।

उन दिनों मैं दिन में वहीं रहता था और नानाजी के पास जाकर अक्सर बैठा करता था।

अटल जी ने आते ही अस्पताल के रसोई घर में जाकर नाना जी के लिए आॅमलेट बनाया।

यह कोई बड़ी खबर नहीं है।

बड़ी खबर यह है कि उस समय मेरे सहित नानाजी के पास जितने लोग बैठे थे,अटल जी ने सबके लिए बारी- बारी से आॅमलेट बनाया ।और, ला-लाकर हमें हमारे हाथों में दिया।

हमने लाख मना किया।

पर अटल जी हमें आॅमलेट खिला कर ही संतुष्ट हुए।

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4 नवंबर 24

  

 


 अब हम लौट चलें जैविक 

खेती की ओर !!

अन्यथा, हमारे प्राण नहीं बचेंगे।

भ्रष्ट नेता तो विदेशों में जा बसेंगे ! 

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सुरेंद्र किशोर

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कोविड से भारत में 5 लाख 33 

हजार लोग मरे 

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सन 2022 में भारत में कैंसर से करीब 

नौ लाख से भी अधिक लोग मरे।

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कैंसर से मृतकों की संख्या हर साल बढ़ती 

ही जा रही है।

इसके कई कारण हैं।

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पर,सबसे बड़ा कारण हमारे खेतों में खास कर 

पंजाब के खेतों में

रासायनिक खाद और रासायनिक कीटनाशक दवाओं 

का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल है।

दूसरा कारण है लगभग हर खाद्य-भोज्य पदार्थ में भारी मिलावट।

(भटिण्डा से बिकानेर के बीच जो एक ट्रेन चलती है उसे ‘‘कैंसर मेल ’’ कहते हैं।

क्योंकि उसमें बड़ी संख्या में कैंसर मरीज होते हैं।

बिकानेर में जैनियों का कैंसर अस्पताल है जहां कैंसर का मुफ्त इलाज होता है।जबकि, पंजाब में भी कई कैंसर अस्पताल खोलने पड़े हैं।)

पंजाब में मंडी के दलाल और अढ़तिया किसानों को भारी एडवांस दे -देकर बड़ी मात्रा में खेतों में रासायनिक खाद-कीटनाशक डलवाते हैं ताकि उपज अधिक हो और उनका मुनाफा बढ़े। 

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आजादी के बाद की ‘हरित क्रांति’ का इस विपत्ति में  

बड़ा योगदान है।

अधिक उपज लेने के चक्कर में खेतों में केमिकल जहर फैलाने का काम सरकारी प्रोत्साहन से तभी शुरू हो गया था।अधिक उपज के लिए इसके बदले देश में सिंचाई का व्यापक प्रबंध करना चाहिए था।

 बिहार के एक बड़े कांगे्रसी नेता जगलाल चैधरी, जो देसी सोच वाले थे,साठ के दशक में हमारे गांव में भी आकर किसानों से विनम्र निवेदन कर रहे थे कि आप लोग रासायनिक खाद का इस्तेमाल न करें।

यह जानलेवा है।आपकी मिट्टी बर्बाद हो जाएगी।मैंने भी उन्हें ऐसा कहते हुए सुना और देखा था।

(नतीजा सामने है-इन दिनों दक्षिण भारतीय सद्गुरु मिट्टी बचाओ अभियान चला रहे हैं।जिस तरह आॅक्सीटोसिन इंजेक्सन का बुरा असर दुधारू पशु के स्वास्थ्य और उस दूध के उपभोक्ताओं के शरीर पर पड़ता है,उसी तरह रासायनिक खाद का कुप्रभाव खेत की मिट्टी और उस फसल के उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है।)

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 आजादी के तत्काल बाद की हमारी सरकार तो अपनी अदूरदर्शिता के कारण 

हमारे देश के खेतों में क्षणिक लाभ के लिए जहर बोने पर अमादा थी।उन नेताओं का ‘‘मिट्टी’’ से कोई लगाव नहीं था।

याद रहे कि जगलाल चैधरी सन 1937 के बिहार मंत्रिमंडल के कुल चार कैबिनेट मंत्रियों में से एक थे।उस सरकार में जगजीवन राम संसदीय सचिव थे।

जगलाल चैधरी ने जब गांधी जी के प्रभाव में आकर अपनी पढ़ाई छोड़ी थी, तब वे कलकत्ता मेडिकल काॅलेज के चैथे वर्ष के छात्र थे।यानी वे पढ़े-लिखे गांधीवादी थे।

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दूसरी ओर,उन्हीं दिनांे अमेरिका में क्या हो रहा था ?

 वहां के लोग रासायनिक खाद 

के कटु अनुभव भुगतने के बाद जैविक खेती की ओर लौट रहे थे।

साठ दशक में मैंने आचार्य रजनीश (तब तक वे ओशो नहीं बने थे।)का भाषण सुना था।

वे कह रहे थे कि अमेरिका की दुकानों पर जो अनाज बिकता है,उसमें से कुछ पर यह लिखा रहता है -‘‘यह जैविक खाद के जरिए उपजाया गया है।’’

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आजादी के तत्काल बाद हमारी सरकार ने टाटा कंपनी की हवाई जहाज सेवा का अधिग्रहण कर लिया था।

पर,जब ‘‘भ्रष्टों की मेहरबानी’’ से सरकारी हवाई सेवा का घाटा बेशुमार बढ़ने लगा तो फिर वह सेवा, टाटा को सौंप दी गयी है।

सार्वजनिक उद्योगों के कभी प्रबल समर्थक व निजी उद्योगों के दुश्मन सी.पी.एम. सरकार को भी बंगाल में अपने रुख से पलटना पड़ा था।

  सी.पी.एम.सरकार ने कलकत्ता के विशाल ग्रेट ईस्टर्न होटल को निजी कंपनी के हाथों बेच दिया।

नन्दीग्राम में उद्योग लगाने के लिए टाटा को जमीन देने का उपक्रम सी.पी.एम.सरकार ने ही किया था।

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टाटा की ओर तो हम लौट गये,पर पूर्ण जैविक खेती की ओर कब लौटेंगे ?

साबित हो चुका है कि भ्रष्ट सरकारी तंत्र से सार्वजनिक उद्योग चलना संभव नहीं है।

सौ सरकारी पैसों में से 85 पैसे तो बिचैलियों को ही चाहिए थे ! यह जरूर है कि अब रेट थोड़ा कम हुआ है।

मानवता को बचाने के लिए न सिर्फ जैविक खेती की ओर लौटना ही पड़ेगा,बल्कि अलग से ‘‘मिलावट निरोधक मंत्रालय’’ भी बनाना पड़ेगा जो हर दिन सिर्फ मिलावट के राक्षसों से जनता के प्राण बचाने का काम करे।

अभी तो सिर्फ पर्व-त्योहारों के समय ही दिखावटी छापामारियां होती हैं।

 आम लोगों को कैंसर तथा अन्य मर्जों से बचाने के लिए मिलावटखोरों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान जल्द से जल्द करना ही पड़ेगा।

क्योंकि आज बाजार में शायद ही कोई खाद्य या भोज्य पदार्थ ऐसा है जो मिलावट खोर दानवों 

 की गिरफ्त में नहीं है।

अधिकतर घूसखोर खाद्य निरीक्षक गण पैसे के सामने अपनी भी अगली पीढ़ियों के स्वास्थ्य व जानमाल को रोज -रोज दांव पर लगा रहे हैं।

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 पुनश्चः

इस अभागे देश में हद तो यह हो चुकी है कि 

आज के वोट लोलुप राजनीतिक राक्षस गण, यह 

भी नहीं चाहते कि थूक -पेशाब मिश्रित भोज्य पदार्थों के खिलाफ भी कोई नेता या सामाजिक कार्यकर्ता 

आवाज उठाये या कदम उठाये !

वे चाहते हैं कि आम जनता जीवन काल में ही नरक भोगती  रहे और उन्हें थोक में वोट मिलते रहे। 

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6 नवंबर 24


शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

 उनके न रहने पर इंदिरा जी को 

ऐसे याद किया था खुशवंत सिंह ने -----------------------

‘‘सत्ता की राजनीति के खेल में श्रीमती (इंदिरा)गांधी कोई मर्यादा का पालन करने में विश्वास नहीं करती थीं’’

           ----  खुशवंत सिंह

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सन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लेखक सह 

 पत्रकार खुशवंत सिंह ने लंबा लेख लिखा था।

साप्ताहिक ‘रविवार’ (11 नवंबर 1984 ) में प्रकाशित उस लेख

का एक अंश यहां प्रस्तुत है।

‘‘एक बार मैं बाबू जगजीवन राम के एक समर्थक के दूत के रूप में इंदिरा गांधी (पूर्व प्रधान मंत्री) के पास गया था।

मेरा उद्देश्य मेनका पर इस बात के लिए दबाव डालना था कि वह (मेनका गांधी के संपादकत्व में प्रकाशित मासिक पत्रिका )‘सूर्या’ में एक कालेज की लड़की के साथ सुरेश राम (जगजीवन राम के पुत्र)के नग्न चित्र न छापें।मैं नहीं जानता था कि इन गंदे चित्रों की बात कैसे शुरू करूं।मैं उन्हें अपने आने का उद्देश्य बताना शुरू ही किया था (यह 12 ,विलिंगटन क्रीसेंट की बात है)कि उन्होंने कहा,‘यहां नहीं बाहर आइए।’जाहिर है कि उन्हें यह लग रहा था कि उनके कमरे में बातचीत सुनने की मशीनें बिठाई गई थीं।(तब मोरारजी देसाई की केंद्र में सरकार थी)

 हम बाहर बगीचे में चले आये और हमने सुरेश राम के लघु पापों की चर्चा की।

 श्रीमती गांधी ने सारे चित्र देख रहे थे,मुझे उम्मीद थी कि शालीन महिला के रूप में वे इन चित्रों को छापना घृणित मानेंगी,लेकिन उन्होंने तस्वीरों को छापने के लिए मेनका को अपनी अनुमति दे दी थी।

  उन्होंने मुझे कहा कि ‘‘इस आदमी जगजीवन राम ने मेरे परिवार और संजय का जितना नुकसान किया है,उतना किसी और ने नहीं।

 उसे इसकी सजा मिलती है तो मिले।’’

कुल मिलाकर सत्ता की राजनीति के खेल में श्रीमती गांधी कोई मर्यादा का पालन करने में विश्वास नहीं करती थीं।

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(सरदार खुशवंत सिंह अपने ढंग के प्रभावशाली व्यक्ति थे।

उन्हें जो ठीक लगता था,वे लिखते थे।मैंने अपने निजी लाइब्रेरी में सूर्या की फाइल आज एक बार फिर देखी।पता चला कि  मेनका गांधी की पत्रिका सूर्या के प्रिंटलाइन में सलाहकार संपादक के रूप में खुशवंत सिंह का नाम पहले छपता था।

बाद में उनका नाम छपना बंद हो गया।

प्रधान मंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी ने सरदार जी को राज्य सभा का सदस्य मनोनीत कराया।संजय गांधी ने उन्हें एक बहुत बड़े अखबार का संपादक बनवाया।पर,सी.पी.आई.के राज्य सभा सदस्य भूपेश गुप्त ने खुशवंत सिंह को इंदिरा गांधी का चमचा कहा।

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सरदार जी ने ठीक ही लिखा है कि इंदिरा जी सत्ता की राजनीति में मर्यादा का ख्याल नहीं रखती थीं।

उसका सबसे बड़ा उदाहरण था--आपातकाल(1975-77)।

इंदिरा जी ने सिर्फ अपनी लोक सभा सीट बचाने के लिए पूरे देश को एक बड़े जेलखाने में बदल दिया था।

जेपी सहित सारे पतिपक्षी नेताओें सहित एक लाख से भी अधिक लोगों को जेलों में बंद कर दिया।

लोगों के जीने का अधिकार भी छीन लिया।

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एक बात और

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इंदिरा जी का जगजीवन बाबू पर अति गुस्सा अकारण था।

  शायद इंदिरा जी को लगता था कि 1977 में लोस चुनाव की घोषणा के बाद जगजीवन राम ने अचानक कांग्रेस छोड़

दी,इसीलिए जनता पार्टी के पक्ष में चुनावी

 हवा बन गई।मोरारजी की सरकार बन गयी।उस सरकार में इंदिरा और संजय को कानूनी परेशानियों का सामना करना पड़ा था।

यदि उनकी यह धारणा थी तो वह गलत थी।

सरजमीन की हकीकत यह थी कि 1977 में जगजीवन बाबू की समधिन सुमित्रा देवी बिहार में लोक सभा चुनाव हार गयी। 

वह बलिया से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़ी थीं और जगजीवन बाबू ने बेगूसराय की चुनाव सभा में उनकी उम्मीदवारी की भी चर्चा की थी।हालांकि चर्चा करते ही सभा में हंगामा हो गया था।

मैं उन दिनों संवाददाता था।बिहार में कार्यरत था।मेरा मानना है कि जगजीवन बाबू कांग्रेस में रह गये होते तो वे भी चुनाव हार जाते।

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1 नवंबर 24