अब हम लौट चलें जैविक
खेती की ओर !!
अन्यथा, हमारे प्राण नहीं बचेंगे।
भ्रष्ट नेता तो विदेशों में जा बसेंगे !
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सुरेंद्र किशोर
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कोविड से भारत में 5 लाख 33
हजार लोग मरे
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सन 2022 में भारत में कैंसर से करीब
नौ लाख से भी अधिक लोग मरे।
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कैंसर से मृतकों की संख्या हर साल बढ़ती
ही जा रही है।
इसके कई कारण हैं।
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पर,सबसे बड़ा कारण हमारे खेतों में खास कर
पंजाब के खेतों में
रासायनिक खाद और रासायनिक कीटनाशक दवाओं
का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल है।
दूसरा कारण है लगभग हर खाद्य-भोज्य पदार्थ में भारी मिलावट।
(भटिण्डा से बिकानेर के बीच जो एक ट्रेन चलती है उसे ‘‘कैंसर मेल ’’ कहते हैं।
क्योंकि उसमें बड़ी संख्या में कैंसर मरीज होते हैं।
बिकानेर में जैनियों का कैंसर अस्पताल है जहां कैंसर का मुफ्त इलाज होता है।जबकि, पंजाब में भी कई कैंसर अस्पताल खोलने पड़े हैं।)
पंजाब में मंडी के दलाल और अढ़तिया किसानों को भारी एडवांस दे -देकर बड़ी मात्रा में खेतों में रासायनिक खाद-कीटनाशक डलवाते हैं ताकि उपज अधिक हो और उनका मुनाफा बढ़े।
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आजादी के बाद की ‘हरित क्रांति’ का इस विपत्ति में
बड़ा योगदान है।
अधिक उपज लेने के चक्कर में खेतों में केमिकल जहर फैलाने का काम सरकारी प्रोत्साहन से तभी शुरू हो गया था।अधिक उपज के लिए इसके बदले देश में सिंचाई का व्यापक प्रबंध करना चाहिए था।
बिहार के एक बड़े कांगे्रसी नेता जगलाल चैधरी, जो देसी सोच वाले थे,साठ के दशक में हमारे गांव में भी आकर किसानों से विनम्र निवेदन कर रहे थे कि आप लोग रासायनिक खाद का इस्तेमाल न करें।
यह जानलेवा है।आपकी मिट्टी बर्बाद हो जाएगी।मैंने भी उन्हें ऐसा कहते हुए सुना और देखा था।
(नतीजा सामने है-इन दिनों दक्षिण भारतीय सद्गुरु मिट्टी बचाओ अभियान चला रहे हैं।जिस तरह आॅक्सीटोसिन इंजेक्सन का बुरा असर दुधारू पशु के स्वास्थ्य और उस दूध के उपभोक्ताओं के शरीर पर पड़ता है,उसी तरह रासायनिक खाद का कुप्रभाव खेत की मिट्टी और उस फसल के उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है।)
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आजादी के तत्काल बाद की हमारी सरकार तो अपनी अदूरदर्शिता के कारण
हमारे देश के खेतों में क्षणिक लाभ के लिए जहर बोने पर अमादा थी।उन नेताओं का ‘‘मिट्टी’’ से कोई लगाव नहीं था।
याद रहे कि जगलाल चैधरी सन 1937 के बिहार मंत्रिमंडल के कुल चार कैबिनेट मंत्रियों में से एक थे।उस सरकार में जगजीवन राम संसदीय सचिव थे।
जगलाल चैधरी ने जब गांधी जी के प्रभाव में आकर अपनी पढ़ाई छोड़ी थी, तब वे कलकत्ता मेडिकल काॅलेज के चैथे वर्ष के छात्र थे।यानी वे पढ़े-लिखे गांधीवादी थे।
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दूसरी ओर,उन्हीं दिनांे अमेरिका में क्या हो रहा था ?
वहां के लोग रासायनिक खाद
के कटु अनुभव भुगतने के बाद जैविक खेती की ओर लौट रहे थे।
साठ दशक में मैंने आचार्य रजनीश (तब तक वे ओशो नहीं बने थे।)का भाषण सुना था।
वे कह रहे थे कि अमेरिका की दुकानों पर जो अनाज बिकता है,उसमें से कुछ पर यह लिखा रहता है -‘‘यह जैविक खाद के जरिए उपजाया गया है।’’
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आजादी के तत्काल बाद हमारी सरकार ने टाटा कंपनी की हवाई जहाज सेवा का अधिग्रहण कर लिया था।
पर,जब ‘‘भ्रष्टों की मेहरबानी’’ से सरकारी हवाई सेवा का घाटा बेशुमार बढ़ने लगा तो फिर वह सेवा, टाटा को सौंप दी गयी है।
सार्वजनिक उद्योगों के कभी प्रबल समर्थक व निजी उद्योगों के दुश्मन सी.पी.एम. सरकार को भी बंगाल में अपने रुख से पलटना पड़ा था।
सी.पी.एम.सरकार ने कलकत्ता के विशाल ग्रेट ईस्टर्न होटल को निजी कंपनी के हाथों बेच दिया।
नन्दीग्राम में उद्योग लगाने के लिए टाटा को जमीन देने का उपक्रम सी.पी.एम.सरकार ने ही किया था।
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टाटा की ओर तो हम लौट गये,पर पूर्ण जैविक खेती की ओर कब लौटेंगे ?
साबित हो चुका है कि भ्रष्ट सरकारी तंत्र से सार्वजनिक उद्योग चलना संभव नहीं है।
सौ सरकारी पैसों में से 85 पैसे तो बिचैलियों को ही चाहिए थे ! यह जरूर है कि अब रेट थोड़ा कम हुआ है।
मानवता को बचाने के लिए न सिर्फ जैविक खेती की ओर लौटना ही पड़ेगा,बल्कि अलग से ‘‘मिलावट निरोधक मंत्रालय’’ भी बनाना पड़ेगा जो हर दिन सिर्फ मिलावट के राक्षसों से जनता के प्राण बचाने का काम करे।
अभी तो सिर्फ पर्व-त्योहारों के समय ही दिखावटी छापामारियां होती हैं।
आम लोगों को कैंसर तथा अन्य मर्जों से बचाने के लिए मिलावटखोरों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान जल्द से जल्द करना ही पड़ेगा।
क्योंकि आज बाजार में शायद ही कोई खाद्य या भोज्य पदार्थ ऐसा है जो मिलावट खोर दानवों
की गिरफ्त में नहीं है।
अधिकतर घूसखोर खाद्य निरीक्षक गण पैसे के सामने अपनी भी अगली पीढ़ियों के स्वास्थ्य व जानमाल को रोज -रोज दांव पर लगा रहे हैं।
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पुनश्चः
इस अभागे देश में हद तो यह हो चुकी है कि
आज के वोट लोलुप राजनीतिक राक्षस गण, यह
भी नहीं चाहते कि थूक -पेशाब मिश्रित भोज्य पदार्थों के खिलाफ भी कोई नेता या सामाजिक कार्यकर्ता
आवाज उठाये या कदम उठाये !
वे चाहते हैं कि आम जनता जीवन काल में ही नरक भोगती रहे और उन्हें थोक में वोट मिलते रहे।
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6 नवंबर 24
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