रविवार, 28 सितंबर 2025

 ‘सभ्यताओं के संघर्ष’ पर 

गोलमेज सम्मेलन जरूरी

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अब शुरू हो चुका है‘‘सभ्यताओं का संघर्ष।’’

इस संघर्ष से पीड़ित देश इस समस्या पर काबू पाने 

के लिए शीघ्र गोलमेज सम्मेलन बुलाएं।

अन्यथा देर हो जाएगी।

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सुरेंद्र किशोर

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नब्बे के दशक में अमरीकी राजनीतिक वैज्ञानिक सेम्युएल 

पी. हंटिग्टन ने लिखा था कि ‘‘शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अब देशों के बीच नहीं, बल्कि सभ्यताओं के बीच संघर्ष होगा।

  उस संघर्ष में चीन इस्लामिक देशों के साथ रहेगा।’’

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करीब तीन दशक बाद हंटिंग्टन की भविष्यवाणी का मूर्त रूप सामने है।

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इसका निदान अभी नहीं तो कभी नहीं !!

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(सभ्यताओं के संघर्ष का मुख्य केंद्र अभी ब्रिटेन बन गया है।क्या दूसरा केंद्र भारत बनेगा ?)  

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27 सितंबर 25





गुरुवार, 11 सितंबर 2025

 किसी ने ठीक ही कहा है--

‘‘जरूरी नहीं है बीमार होने की वजह बीमारी ही हो .....कुछ लोग तो दूसरों की खुशियां देखकर भी बीमार हो जाते हैं।’’

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ऐसे बीमार लोगों में से कुछ की बीमारी शारीरिक होती है तो कुछ की मानसिक।शारीरिक बीमारी से ग्रस्त लोग तो अस्पताल पहुंच जाते हैं। किंतु मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति आम लोगों के बीच अपने पागलपन के नमूने बिखरते रहते हैं--कुछ देश में रह कर तो कुछ विदेश जाकर।


 फेसबुक संवाद की एक झलक

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जिनके पास आपके तथ्यों और तर्कों का सही -सटीक जवाब नहीं होता ,वे 

पहले आपकी मंशा पर सवाल उठाते हैं और फिर अशिष्टता-असभ्यता-अश्लीलता पर उतर सकते हैं।

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ऐसे लोगों की परवाह न करके अपने मान-अपमान की चिंता किए बिना जो

बात  भी देशहित में हैं,उसे लिखते जाइए।

क्योंकि देश इन दिनों अभूतपूर्व संक्रमण काल से गुजर रहा है।

ऐसे में जरुरी है कि आप लोकतंत्र,संविधान,धर्म निरपेक्षता,कानून के शासन के पक्ष में मजबूती से खड़े रहें।

  


सोमवार, 8 सितंबर 2025

 क्या पोलैंड में भी आर.एस.एस.-

भाजपा सक्रिय है ???!!!

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सुरेंद्र किशोर

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यूरोपीय देश पोलैंड की संसद ने कह दिया है कि ‘‘मुसलमानों के लिए हमारे देश में कोई जगह नहीं है।

मुसलमानों को जगह देना यानी अपने देश में तबाही के लिए बम 

लगा देना।’’ 

(इस खबर को आप यूट्यूब पर देख सकते हैं।)

दूसरी ओर, भारत के तथाकथित और एकांगी सेक्युलर राजनीतिक दल और कुछ बुद्धिजीवी यह प्रचार करते रहते हैं कि इस देश की मुस्लिम सांप्रदायिकता -कटृटरपन,दरअसल भाजपा-संघ के कारण है।

क्या उनसे यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि पोलैंड और यूरोप के कई देशों में वहां की मूल आबादी अतिवादी मुस्लिमों के खिलाफ इन दिनों यदि उद्वेलित है,तो उसका कारण क्या है ?

क्या वहां भी भाजपा-आर.एस.एस. सक्रिय है ?

जापान में इन दिनों मुसलमानों के खिलाफ प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं ?

चीन सरकार अपने देश के उइगर मुसलमानों को अभूतपूर्व ढंग से क्यों प्रताडित कर रही है ?डर के मारे कोई मुस्लिम देश या भारत का सेक्युलर चीन की इस निरंतर प्रताड़ना के खिलाफ आवाज तक नहीं उठाता। 

एक आकलन के अनुसार भारत के करीब 10 प्रतिशत मुसलमान अपने समुदाय के अतिवादियों-जेहादियों से सहमत नहीं हैं।पर वह  10 प्रतिशत न तो प्रभावकारी है और न ही मुखर।

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8 सितंबर 25


मंगलवार, 2 सितंबर 2025

 अगले कुछ महीनों में शिवानन्द तिवारी और

 अमृतलाल मीणा के संस्मरण आपको पढ़ने को 

मिल सकते हैं।

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सुरेंद्र किशोर

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शिवानन्द तिवारी बिहार की राजनीति का एक बड़ा नाम है।पता चला है कि वे अपने संस्मरण लिख रहे हैं।साठ के दशक से ही वे राजनीति में अत्यंत सक्रिय रहे हैं।

मैंने देखा है कि उनकी स्पष्टवादिता से भले कोई नाराज हो जाए,पर वे किसी को सिर्फ खुश करने के लिए कोई बात नहीं करते चाहे सामने वाला कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो !उम्मीद है उनके संस्मरणों पर भी उनकी इस बात की छाप रहेगी।फिर तो किताब काफी पठनीय होगी। 

अमृत लाल मीणा ने भी ,जो राज्य के मुख्य सचिव पद से रिटायर हुए हैं,कहा है कि वे अपने संस्मरण लिखेंगे।

इन दोनों हस्तियों की पुस्तकें आ गईं तो पाठकों को बहुत सारी ऐसी बातें पढ़ने को मिलेंगी जिनसे लोग अब तक अनजान रहे हंैं।

एक अफसर चाहे वे सेवारत हो,या रिटायर, उनकी तो अपनी सीमाएं होती हैं।

पर,शिवानन्द तिवारी पर कोई सीमा नहीं लग सकती।

साठ के दशक से मैं भी समाजवादी आन्दोलंन की कुछ अच्छी-बुरी घटनाओं का गवाह रहा हूं।पर उसका बयान करने की जो हिम्मत तिवारी जी में है,वह हिम्मत मेरे जैसे दुबले-पतले आदमी में कत्तई नहीं है।इस कारण शिवानन्द भाई के संस्मरणों की मुझे भी प्रतीक्षा रहेगी।वे लंबे समय तक इनसाइडर भी रहे हैं जो सौभाग्य मुझे नहीं मिला।

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सेवारत मुख्य सचिव मीणा जी  और बिहार सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री और पूर्व राज्य सभा सदस्य तिवारी जी के संस्मरणों से नई पीढ़ी को सीखने का अवसर मिलेगा,यदि वह सीखना चाहे।

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राजनीतिक क्षेत्रों के अधिकतर जानकार लोग अपने संस्मरण अपने ही साथ लेते चले गये।उन लोगों ने मेरी समझ से अच्छा नहीं किया।वैसे अपने देश में आत्म कथा या संस्मरण का अधिक चलन नहीं है।

बी.बी.सी.के लिए काम कर चुके डा.विजय राणा ने एक बार मुझे बताया था कि ब्रिटेन के लोग तो अपने मुहल्ले पर भी किताब लिख देते हैं।

 (दूसरी ओर भारत और बिहार के अधिकतर जानकार लोग देश या प्रदेश के बारे में भी शायद ही कुछ लिखते हैं।)

बहुत पहले राज्य सभा के पूर्व सदस्य बाबू गंगाशरण सिंह के पास उनके राजेंद्र नगर स्थित आवास पर उनसे लंबी बातें करने का मुझे अवसर मिला था।उनके संस्मरण सुनकर मुझे लगा कि वह सब बातें किताब के रूप में आनी चाहिए थीं।उनकी कई बातें अचरज से भरी हुई थीं। 

मैं पटना के पूर्व सांसद ,पटना विश्व विद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर सारंगधर सिंह के पास भी उनके एक्जीविशन रोड स्थित बंगले पर  अक्सर बैठता था।उनके पास जो संस्मरण थे,वे कहीं नहीं छपे हैं।शीर्ष नेताओं के बारे में उनके पास संस्मरणों का खजाना था।

स्वतंत्रता सेनानियों की पहली पीढ़ी के लोगों के बारे में संस्मरण।सारंगधर बाबू संविधान सभा के भी सदस्य थे।

सारंगधर बाबू के बाकरगंज, पटना स्थित षड्ग विलास प्रेस में भारतंेदु हरिश्चंद्र की सारी रचनाएं छपी थीं।देश के अन्य छापाखानोें ने छापने से मना कर दिया था।

 उनके परिजन से एक बार मैंने पूछा- सारंगधर बाबू कुछ लिखते भी 

हैं या नहीं ?

उनके नाती ने बताया कि कुछ -कुछ लिखते रहते हैं।कोई उनके परिवार का निकटवर्ती हो तो अब भी  पता लगा सकता है कि उनके लिखे हुए की किताब बन सकती है क्या ?

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एक समकक्ष ने एक बार गंगाशरण सिंह से पूछा--आप अपने संस्मरण क्यों नहीं लिखते ?

उन्होंने कहा कि यदि मैं सच- सच लिख दूं तो जिन नेताओं को आप स्वर्गीय कहते हैं,उन्हें आप ‘‘नारकीय’’कहने लगेंगे।

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1 सितंबर 25  


 ब्रिटेन इस्लामिक सल्तनत की ओर बढ़ रहा ?

क्या अगला खतरा भारत पर है !

कई यूरोपीय शासकों की अपेक्षा इस मामले में 

मोदी -शाह की भूमिका काफी बेहतर है।

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 सुरेंद्र किशोर

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क्या ब्रिटेन जल्द ही इस्लामिक देश बन जाएगा ?

सोशल मीडिया की खबरों पर भरोसा करें तो ‘‘दुनिया पर कभी राज

 करने वाला ब्रिटेन अब अपनी ही गलियों में डर -डर कर रहा है।’’

सिर्फ लंदन में 10 लाख मुस्लिम हैं।

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ब्रिटिशर्स ने भारत में ‘‘बांटो और राज करो’’ की नीति अपनाई थी।

व्यापार करने भारत आए और भारत के राजा बन गये थे।

मुस्लिम लोग ब्रिटेन तथा यूरोप के अन्य देशों में शरणार्थी बन कर गए थे,अब बारी -बारी से कई यूरोपीय देशों पर वे कब्जा करने की प्रक्रिया में हैं।

यानी, प्रवासी-शरणार्थी मुस्लिम लोग गोरों के साथ ‘‘मियां की जूती मियां का सर’’ कर रहे हैं।

ब्रिटेन के उदारवादी और मानवतावादी राजनीति का लाभ उठाकर मुस्लिम धीरे- धीरे पूरे देश पर कब्जा करने के क्रम में आगे बढ़ रहे हैं,यदि आपको सोशल मीडिया पर विश्वास हो तो इसे भी सच मानिए।

कहा जा रहा है कि जेहादियों का अगला टारगेट भारत है।

हमारे यहां भी वोट लोलुप सेक्युरिस्टों के बल पर मुस्लिमों ने आबादी बढ़ा कर अनेक जिलों पर कब्जा कर लिया है।

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हालांकि भारत में बेहतर स्थिति यह है कि अभी राष्ट्रवादियों की सरकार है जिसके पी.एम.मोदी ने उच्चाधिकारप्राप्त डेमोग्राफिक मिशन बनाने की हाल में घोषणा कर दी है।बांग्ला देशी और रोहिंग्या धीरे-धीरे देश से भगाए जा रहे हैं।

पर,केंद्र सरकार का असल टेस्ट पश्चिम बंगाल में होगा जहां विशेष मतदान सूची परीक्षण होने ही वाला है।नरेंद्र मोदी जानते हैं कि जेहादियों से कैसे निपटा जाता है।

जिस तरह इजरायल में शत्रु बोध है।इजरायल  गाजा-हमास के पूर्ण सफाए में लगा हुआ है।वहां भी वही ्िरस्थति है--चाहे इजरायल जिंदा रहेगा या उसके पड़ोस की जेहादी शक्तियां।

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भारत में भी इजरायल फार्मूला अपनाए बिना यह देश एक बार फिर मुगल काल में वापस चला जा सकता है कम से कम एक हिस्सा,ऐसा जानकार लोग बताते हैं।

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और अंत मंें

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यदि बिहार विधान सभा चुनाव में जेहादी पक्षियों को बल मिला तो पूरे देश पर खतरा बढ़ जाएगा।

सन 2020 के बिहार विधान सभा चुनाव में जिन मतदाता लोगों ने चिराग पासवान के दल को वोट दिए,उन लोगों ने बाद में पछताया--कहा कि जंगल राजकी पुनरावृति से हम बाल-बाल बचे।

यदि इस बार भी चिराग पासवान के नये संस्करण के चक्कर में पड़े तो आप अपने और पूरे देश के लिए भारी संकट को आमंत्रित करेंगे।

याद रहे कि इस बार के बिहार चुनाव में जितने बड़े पैमाने पर पैसों का खेल होने वाला है--वैसा खेल इससे पहले कभी नहीं हुआ था यहां।

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29 अगस्त 25   



 ब्रिटिश इतिहासकार सर जे.आर.सिली (1834-1895)ने लिखा है कि ब्रिटिशर्स ने भारत को कैसे जीता।

मशहूर किताब ‘द एक्सपेंसन आॅफ इंगलैंड’ के लेखक सिली  की स्थापना थी कि 

‘‘हमने (यानी अंग्रेजों ने) नहीं जीता,बल्कि खुद भारतीयों ने ही भारत को जीत कर हमारे प्लेट पर रख दिया।’’

  चैधरी चरण सिंह ने सर जे.आर.सिली की पुस्तक का हिन्दी में अनुवाद करवाकर बंटवाया था।

  चरण सिंह ने एक तरह से हमें चेताया था कि यदि इस देश में गद्दार मजबूत होंगे तो देश नहीं बचेगा।

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मध्य युग में भी वीरता की कमी के कारण हम नहीं हारे।

बल्कि आधुनिक हथियारों की कमी और आपसी फूट के कारण हारे।

हमारे राजा अपने विदेशी दुश्मन की माफी को बार-बार स्वीकार कर उसे बख्श देते थे।

  पर, दुश्मन एक बार भी नहीं बख्शता था।