बिहार में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान
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उप मुख्य मंत्री की पहल से लोग खुश
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रिसर्च के अनुसार आजादी के बाद भ्रष्टाचार ऊपर से ही शुरू हुआ था,इसलिए खत्म भी ऊपर से ही करना होगा
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सुरेंद्र किशोर
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तब की बात है जब नीतीश कुमार नये- नये मुख्य मंत्री बने थे।
सरकारी दफ्तरों में व्याप्त भीषण भ्रष्टाचार की खबरों से मुख्य मंत्री नाराज हो गये।
मुख्य मंत्री ने घोषणा की कि अब सरकारी आॅफिसेज में स्टिंग्स आॅपरेशन चलाया जाएगा और भ्रष्टों को रंगे हाथ पकड़ा जाएगा।
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फिर क्या था !
बिहार प्रशासनिक सेवा संघ के पदाधिकारियों ने प्रेस कांफ्रंेस करके राज्य सरकार को चुनौती दे दी ।कहा--स्टिग्स आॅपरेशन होगा तो हमलोग हड़ताल कर देंगे।
इस पर नीतीश कुमार ने अपने कदम पीछे हटा लिया।क्योंकि उन्हें अन्य अनेक अच्छे काम करने थे।इस तनाव में नहीं पड़े।
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अब उप मुख्य मंत्री सह राजस्व मंत्री विजयकुमार सिन्हा ने चेतावनी दी है कि जो अफसर गलत करेगा, उन पर कार्रवाई होगी।
एक बार फिर अफसर नाराज हो गये हैं।
कहा है कि अफसरों के प्रति उप मुख्य मंत्री की भाषा अमर्यादित है।अपनी भाषा में सुधार नहीं करेंगे तो हम आंदोलन करेंगे।
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देखना है,इस बार कौन जीतता है।
सरकारी आॅफिसेज में व्याप्त भीषण भ्रष्टाचार से आम जनता बुरी तरह पीड़ित है।इन पंक्तियों का लेखक भी रिश्वतखोरों से बुरी तरह पीड़ित हो चुका है।इसलिए जनता विजय बाबू की बातों से खुश है।उसे उम्मीद है कि शायद इस बार उसे राहत मिले।
हालांकि यह बहुत मुश्किल काम है।क्योंकि पूरे कुएं में भांग पड़ चुकी है।
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राजस्व सेवा के सदस्यों का यह कहना सही है कि सिर्फ राजस्व अफसरों के खिलाफ ही क्यों ?
अन्य सेवाओं के लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई हो जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।
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केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने इसी 21 दिसबर को कहा कि ‘‘हर सांसद और विधायक अपने फंड में से 10 प्रतिशत कमीशन
लेता है।’’
मांझी का बयान अखबारों में प्रमुखता से छपा।फिर भी उस बयान के खिलाफ तो किसी सत्ताधारी या प्रतिपक्षी जन प्रतिनिधि ने एक शब्द का उच्चारण तक नहीं किया।क्यों ?
उन लोगों को छूट क्यों ?
सिर्फ राजस्व कर्मचारियों पर ही कार्रवाई क्यों ?
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सन 1967 में मैं छपरा में रहता था।महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की सरकार बिहार में बनी।
उस सरकार में लगभग सारे मंत्री कट्टर ईमानदार थे।सरकार बनते ही घूसखारों में भय व्याप्त गया।यहां तक कि अदालतों के पेशेकारों ने भी पेशी लेनी बंद कर दी थी।
पर महामाया सरकार के कुछ मंत्रियों की छोटी-मोटी कमजोरियों की खबरें बाहर आने लगीं तो मेरे देखते -देखते छपरा कोर्ट के पेशकरों ने भी फिर से घूस लेना शुरू कर दिया।
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दरअसल सफाई यदि ऊपर से होगी तो कारगर होगी।स्थायी होगी।
अन्यथा ईष्र्या -द्वेष फैलेगा और किसी भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का कोई नतीजा नहीं निकलेगा।
आज इस देश में सरकारी भ्रष्टाचार के कारण घुसपैठियों-राष्ट्रद्रोहियों को काफी बल मिल रहा है।
यानी भ्रष्टाचार राष्ट्रद्रोह को बढ़ा रहा है।इसलिए भ्रष्टाचार के लिए भी फांसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए।क्योंकि राष्ट्रद्रोह के लिए भी तो फांसी की सजा का प्रावधान है।
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अमरीकी समाजशास्त्री पाॅल आर. ब्रास ने सन् 1966 में ही यह लिख दिया था कि
‘भारत में भीषण भ्रष्टाचार की शुरूआत आजादी के बाद के सत्ताधारी नेताओं
ने ही कर दी थी।’
उससे पहले ब्रास ने उत्तर प्रदेश में रह कर भ्रष्टाचार की समस्या का गहन अध्ययन किया था।
इस अध्ययन के बाद लिखी गयी अपनी किताब ‘ फैक्सनल पाॅलिटिक्स इन एन इंडियन स्टेट: दी कांग्रेस पार्टी इन उत्तर प्रदेश ’ में वाशिंगटन विश्व विद्यालय के समाजशास्त्र के प्रोफेसर ब्रास ने लिखा कि ‘कांग्रेसी मंत्रियों द्वारा अपने अनुचरों को आर्थिक लाभ द्वारा पुरस्कृत करना गुटबंदी को स्थायी बनाने का सबसे सबल साधन है।’ अपने शोध कार्य के सिलसिले में ब्रास ने उत्तर प्रदेश के दो सौ कांग्रेसी और गैर कांग्रेसी नेताओं और पत्रकारों से लंबी बातचीत की थी।
ध्यान रहे कि आजादी के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार सहित कई राज्यों के कांग्रेस संगठनों और सरकारों में गुटबंदी तेज हो गयी थी।हालांकि थोड़ी -बहुत गुटबंदी पहले से भी थी।
कौटिल्य ने ‘अर्थशास्त्र’ में लिखा है कि ‘राजा को कोई भी ऐसा कृत्य नहीं करना चाहिए जिससे जनता में गरीबी, लालच और अनमनापन पैदा हो।लालची लोग स्वेच्छा से दुश्मन की तरफ हो जाते हैं।’
भारत के बारे में चीन में यह कहावत है कि ‘भारत सरकार अपने बजट के पैसों को एक ऐसे लोटे में रखती है जिसकी पेंदी में अनेक छेद होते हैं।’
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का 15 अगस्त 2014 का वह वायदा भी कसौटी पर है जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘हम न खुद खाएंगे और न ही किसी को खाने देंगे।’ हालांकि इस मामले में उन्हें एक हद तक सफलता जरूर मिली है,पर अभी उनकी सरकार के लिए इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है।
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