शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025

 संदर्भ-आई.ए.एस.संतोष वर्मा की ब्राह्मणों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी

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हर जाति में अच्छे-बुरे लोग होते हैं।

आलोचना व्यक्ति की करिए, जाति की नहीं

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सुरेंद्र किशोर

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आज मैं यहां ब्राह्मण के खिलाफ अभद्र टिप्पणियों की चर्चा करूंगा।क्योंकि हाल में मध्य प्रदेश के एक आई.ए.एस.अफसर ने अभद्र टिप्पणी की है जो पूरी तरह अस्वीकार है।

  मैं ब्राह्मण नहीं हूं किंतु मैं ब्राह्मणों का प्रशंसक हूं।अपने निजी अनुभवों के आधार पर मैं यह बात कह रहा हूं।मैंने ब्राह्मणों से न सिर्फ बहुत कुछ सीखा है,बल्कि पाया भी है।

 ऐसा नहीं है कि अन्य जातियों के लोगों से मैंने नहीं सीखा।किंतु पत्रकारिता में ब्राह्मण अधिक हैं,इसलिए मेरा अनुभव अधिक है।

ऐसा नहीं है कि ब्राहमण सिर्फ पत्रकारिता में ही अधिक हैं।

  पूर्व प्रधान मंत्री वी.पी.सिंह ने पत्रकार राम बहादुर राय को बताया था कि आजादी की लड़ाई में उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक ब्राह्मण शामिल हुए थे।

  मेरा पारिवारिक संस्कार यह था कि हम लोग ब्राह्मण को ‘‘ब्राह्मण देवता’’ कहते थे।

गो ब्राह्मण की रक्षा करने की जो बात कही गई थी,वह अकारण नहीं था।

भारत की देसी गाय मंे जो औषधीय गुण पाया जाता है,वैसा गुण किसी अन्य 

नस्ल की गाय में नहीं पाया जाता।

वही स्थिति गंगा नदी का है जिसके जल में औषधीय गुण पाया जाता है।

किंतु आजादी के तत्काल बाद वाली तथाकथित सेक्युलर सरकार ने गंगा और गाय के साथ जो किया,वह जग जाहिर है।

खैर,


  

   ख्कििसी जाति खास कर ब्राह्मण के खिलाफ 


1.-त्रेता युग में इस धरा के ब्राह्मणों ने स्वजातीय किंतु मर्यादाहीन 

रावण की जगह मर्यादा पुरूषोत्तम राम का साथ दिया था।

यह भी रही है ब्राहमणों की दिव्य परंपरा ।

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2.- इस घोर कलियुग का भी एक उदाहरण पेश है।

 स्वजातीय पत्रकारों की जोरदार पैरवियों को ठुकरा कर प्रभाष जोशी

ने मुझे 1983 में ‘जनसत्ता’ में रखा।

 पटना के एक्सप्रेस आॅफिस को एकाधिक संदेश भेज कर उन्होंने पटना

से मुझे दिल्ली बुलवाया था।

मेरा पहले से उनसे कोई परिचय तक नहीं था।

सिर्फ वे मेरा काम जानते थे।

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3.-1977 में जब मैंने पटना में दैनिक ‘आज’ ज्वाइन किया तो ब्यूरो 

प्रमुख पारसनाथ सिंह ने मुझे एक मंत्र दिया।

उन्होंने कहा कि पत्रकारिता ब्राह्मणों के स्वभाव के अनुकूल पेशा हैं।

ब्राह्मण विनयी और विद्या व्यसनी होते हैं।

यदि आपको इस पेशे में बेहतर करना है तो ये दो गुण अपनाइए।

मैंने इसकी कोशिश की।

मुझे लाभ हुआ।

4.-कैरियर के बाद के वर्षों में इस देश के जिन आधा दर्जन प्रधान संपादकांे ने इस गैर ब्राह्मण को यानी मुझे संपादक बनाने की कोशिश की,उनमें चार ब्राह्मण ही थे।

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मैंने यह सब आज क्यों लिखा ?

थोड़ा लिखना, बहुत समझना !

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