सरकारी भ्रष्टाचार के लिए रावणी अमृत कुंड
है एम.पी.-विधायक फंड का भ्रष्टाचार
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जीतन राम मांझी ने यह कह कर एम.पी.-विधायक फंड की समाप्ति का औचित्य सिद्ध कर दिया कि मैंने 40 लाख कमीशन लिया
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सुरेंद्र किशोर
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केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया है कि सालाना पांच करोड़ रुपए के सांसद फंड में से सांसद को 10 प्रतिशत कमीशन मिलता है।
उन्होंने यह भी कहा कि हर सांसद-विधायक कमीशन लेते हैं।मैंने इसी कमीशन राशि में से पार्टी को 40 लाख रुपए दिये।
(मांझी जी,आपने यह कह कर देश-प्रदेश का बहुत भला किया है।लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता को सब कुछ मालूम होना ही चाहिए।वह भी सबूत के साथ।मेरी तरफ से आपके साहस के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई।)
मांझी जी का यह बयान आज एक से अधिक
अखबारों में छपा है।अब वे इसका खंडन भी नहीं कर सकते।
पर,मेरा मानना है कि इस स्वीकारोक्ति के साथ ही मांझी जी ने इस फंड की समाप्ति का अनिवार्य कत्र्तव्य अघोषित रूप से नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के दरवाजे पर पहुंचा दिया है।वे इसे पूरा करें।
चूंकि मोदी-नीतीश व्यक्तिगत रूप से खुद अत्यंत ईमानदार शासक हैं,इसलिए उनसे यह उम्मीद तो की ही जा सकती है।
अब प्रधान मंत्री -मुख्य मंत्री पर यह निर्भर करता है कि भ्रष्टाचार के इस ‘‘रावणी अमृत कुंड’’ पर वे वाण चलाते हैं या नहीं।या दबाव में आ जाते हैं।
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मेरा मानना है कि आज अत्यंत थोड़े अपवादों को छोड़कर केंद्र और राज्य सरकारों के दफ्तरों में जो व्यापक भ्रष्टाचार व्याप्त है,उसको जारी रखने व बढ़ाते जाने की प्रेरणा सरकारी सेवकों को एम.पी.-विधायक फंड में जारी भ्रष्टाचार से ही मिल रही है।
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जो जन प्रतिनिधि सेवा के लिए राजनीति में जाते हैं,यदि वे ही आदर्श उपस्थित नहीं करेंगे तो नौकरी के लिए आने वालों से आप उम्मीद कैसे करेंगे ?
नतीजतन आज अत्यंत थोड़े अपवादों को छोड़कर बिहार सहित पूरे देश में घूस के बिना कोई सरकारी काम नहीं होता।वैसे सांसदों में भी कुछ इक्के-दुक्के अपवाद हैं जो कमीशन नहीं लेते।
पर,अपवादों से देश नहीं चलता।
इस फंड की समाप्ति की शुरूआत करके मोदी-नीतीश सरकारी सेवकों से ईमानदार होने की उम्मीद कर सकते हैं।हर क्षेत्र में आज भी ईमानदार मौजूद हैं,पर दाल में नमक के बराबर ही।
कुछ साल पहले दैनिक ‘‘प्रभात खबर’’ में मेरे ही लिखने के बाद नीतीश सरकार ने विधायक फंड को समाप्त कर दिया था।उस कैबिनेट की बैठक के तत्काल बाद नीतीश कुमार और तब के उप मुख्य मंत्री सुशील मोदी ने बारी बारी से मुझे फोन करके बताया था कि आपने जो लिखा,वह हमने कर दिया। पर,बाद में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने दबाव में आकर उस फंड को फिर से चालू कर दिया।दरअसल फंड के ठेकेदार अधिकतर संासदों-विधायकों के लिए पार्टी कार्यकर्ता का भी काम करते हैं।अधिकतर सांसद -विधायक यह चाहते हैं कि उनके परिवार का ही कोई व्यक्ति उनके बाद उनकी जगह ले।यदि उनके क्षेत्र का कोई कार्यकर्ता चमक गया तो वह टिकट का दावेदार बन सकता है।ठेकेदार दावेदार नहीं होगा।
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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ साल पहले सांसदों से राय ली थी कि सांसद फंड का क्या किया जाये ?
दो-चार संासदों को छोड़कर किसी ने इसे समाप्त करने के पक्ष में राय नहीं दी।
इसलिए मोदी जी भी डर गये।लगा कि खत्म करने पर कुछ सांसद विद्रोह न कर दें।
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बिहार विधान सभा चुनाव के बाद अब महाराष्ट्र-अरुणाचल के स्थानीय निकाय के चुनावों में भी भाजपा गठबंधन
को भारी जीत मिली है।
सन 2024 से शुरू बांग्ला देश की हिन्दू विरोधी हिंसा और भारत के तथाकथित सेक्युलर दलों की ओर से जारी मतदाता सूची पुनरीक्षण के विरोध के बाद अब मोदी के नेतृत्व वाला गठबंधन कोई चुनाव नहीं हार रहा है।झारखंड ही अपवाद रहा।आगे भी नहीं हारेगा राजग।
क्योंकि लोग समझ गये हैं कि पुनरीक्षण का विरोध का मतलब जेहादियों का समर्थन।इस देश को पाक-बांग्ला देश बनाने की पृष्ठभूमि।
ऐसे में फंड के लिए मोदी -नीतीश से विद्रेाह भला कौन सांसद-विधायक करेगा ?
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इसलिए मोदी जी-नीतीश जी, किसी फंड समर्थक सांसद -विधायक के
विरोध की परवाह किए बिना इसे शीघ्र समाप्त करिए।
इस फंड को प्रधान मंत्री पी.वी.नरसिंह राव ने सांसदों को ‘‘अपने स्तर पर’’(संदर्भ--हर्षद मेहता रिश्वत कांड) ला देने के लिए ही नब्बे के दशक में इसे शुरू किया था।राव पर आरोप लगा था कि उन्होंने शेयर घोटालेबाज हर्षद मेहता से एक
करोड़ रुपए रिश्वत ली।
उनकी जब भारी बदनामी हुई तो उन्होंने तय किया कि सांसदों के लिए सालाना विकास फंड के रूप में एक करोेड़ रुपए दे दिए जाएं।उस समय सरकारी कमीशन का रेट 20 प्रतिशत था।
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22 दिसंबर 25
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इस देश की संसदीय राजनीति की प्रतिष्ठा बचानी है तो दो में से एक ही रास्ता है।
1-या तो सांसद-विधायक फंड को समाप्त कीजिए
या 2--जीतनराम मांझी से यह सबूत मांगिए कि सभी सांसदों-विधायकों पर आरोप लगाने का आपका आधार क्या है ?मानहानि का मुकदमा आप पर क्यों नहीं किया जाये ?
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