लोक सभा का चुनाव सामने है। उम्मीदवारों के चयन का काम जारी है। भारतीय संसद ने 1997 में ‘ राजनीति के अपराधीकरण और भ्रष्टाचार की समाप्ति ’ के लिए जो सर्वसम्मत संकल्प किया था, उसे पूरा करने का यही अवसर है। अब जबकि इन दो बुराइयों से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को भी ताकत मिलने की खबरें आने लगी हैं,तो अब भी हमारे देश के विभिन्न दल और नेता नहीं चेतेंगे ? क्या विभिन्न राजनीतिक दल अपने ही उस संकल्प को पूरा करने का कम से कम इस बार प्रयास करेंगे ? इससे पहले तो नहीं किया गया। यदि इस बार भी वे नहीं करेंगे तौभी चुनाव के इस अवसर पर उन्हें इस बात की याद दिला देना जरूरी है कि उन्होंने समय रहते अपना ही वादा पूरा नहीं किया, जिस कारण देश को अपूरणीय क्षति हुई और हो रही है। लोक सभा चुनाव के ठीक पहले सभी दलों के नेता आपसी सहमति से यह तय कर सकते हैं कि वे ऐसे किसी व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाएंगे, जो आदतन अपराधी प्रवृति का है या फिर जिसने भ्रष्टाचार के जरिए अपार निजी संपति बनाई है। यदि नेताओं की मंशा सही हो, तो इस बात का पता लगाना अत्यंत आसान है कि कौन व्यक्ति अपराधी प्रवृति का है और किस व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य जन सेवा नहीं बल्कि ऐन केन प्रकारेण धनोपार्जन है। यदि मंशा ठीक नहीं है तो किसी को दोषी मानने से पहले उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट की काॅपी की मांग की जा सकती है।अब तक तो की ही जाती रही है। पिछले एक चुनाव में बिहार के एक प्रमुख नेता ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि हम बाघ के खिलाफ किसी बकरी को तो चुनाव में उम्मीदवार नहीं बना सकते न ! उनसे पूछा गया था कि आप आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगेां को अपने दल से उम्मीदवार क्यों बना रहे है ?वे यह कहना चाहते थे कि जब तक अन्य दल बाहुबलियों को टिकट देते रहेंगे,तब तक वे भी वैसे लोगों उम्मीदवार बनाते रहेंगे।पर अभी समय है जबकि वे नेता अपने प्रतिद्वंद्वी नेताओं से अपील कर सकते हैं कि आप भी बाहुबलियों को टिकट इस बार मत दीजिए,हम भी नहीं देंगे। इसके लिए वे सर्वदलीय बैठक भी बुला सकते हैं।इस तरह वे सन् 1997 के अपने ही वायदे को पूरा कर देंगे।पर ऐसी कोई सर्वदलीय कोशिश अब तक नजर नहीं आ रही है। पर जब सारे उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतर चुके होंगे तो वही नेता एक बार फिर कहेंगे कि हम क्या करें ? हमारे विरोधी दलों ने तो बाहुबलियों को खड़ा कर दिया है। अब जरा उस सर्वदलीय वायदे को एक बार फिर याद कर लिया जाए जो इस देश के करीब-करीब सभी नेताओं ने संसद के मंच से पूरे देश के सामने किया था। आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर छह दिनों तक चले संसद के दोनों सदनों के विशेष सत्र में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि ‘संसद ने आज एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारत के भावी कार्यक्रम के रूप में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया। प्रस्ताव में भ्रष्टाचार को समाप्त करने, राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त करने के साथ साथ चुनाव सुधार करने, जनसंख्या वृद्धि, निरक्षरता और बेरोजगारी को दूर करने के लिए जोरदार राष्ट्रीय अभियान चलाने का संकल्प किया गया।’ छह दिनों की चर्चा के बाद जो प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास किया गया उस प्रस्ताव को सर्वश्री अटल बिहारी वाजपेयी, इंद्रजीत गुप्त, सुरजीत सिंह बरनाला, कांसी राम, जार्ज फर्नांडीस, शरद यादव, सोम नाथ चटर्जी, एन.वी.एस. चितन, मुरासोली मारन, मुलायम सिंह यादव, डा. एम. जगन्नाथ, अजित कुमार मेहता, मधुकर सरपोतदार, सनत कुमार मंडल, वीरंेद्र कुमार बैश्य, ओम प्रकाश जिंदल और राम बहादुर सिंह ने सामूहिक रूप से पेश किया था। यह प्रस्ताव आने की भी एक खास पृष्ठभूमि थी। सन् 1996 के लोक सभा चुनाव में विभिन्न दलों की ओर से 40 ऐसे व्यक्ति लोक सभा के सदस्य चुन लिए गए थे जिन पर गंभीर आपाराधिक मामले अदालतों में चल रहे थे। उन मेंसे दो बाहुबली सदस्यों ने लोक सभा के अंदर एक दिन आपस में मारपीट कर ली। इस शर्मनाक घटना को लेकर अनेक नेता शर्मसार हो उठे और उनलोगों ने तय किया कि ऐसी समस्याओं पर सदन में विशेष चर्चा की जाए और इन्हें रोकने के लिए कदम उठाए जाएं। इस विशेष चर्चा के दौरान सदन में कोई दूसरा कामकाज नहीं हुआ।वक्ताओं ने सदन में देशहित में भावपूर्ण भाषण किए। पर उस के बाद जब सन् 1998, 1999 और 2004 में जब लोक सभा के चुनाव हुए तो हमारे उन्हीं नेताओं ने अपने ही वायदे भुला दिए। इसका नतीजा यह हुआ कि बाहुबली सांसदों की संख्या इस बीच 40 से बढ़कर करीब सौ हो गई। हाल में जब देश पर आतंकवादी हमले तेज हुए तो सुरक्षा मामलों के जानकारों ने बताया कि माफिया और आपराधिक प्रवृति के प्रभावशाली लोग विदेशी आतंकियों के लिए शरणस्थली मुहैया करते हैं।इस पृष्ठभूमि में देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक बार फिर इस समस्या पर नए ढंग से विचार करने का समय आ गया है। अब यह और आवश्यक हो गया कि बड़ेे अपराधी और माफिया तत्वों के बीच से कुछ लोग चुनाव लड़ कर संसद सदस्य न बन जाएं। इसलिए जरूरी है कि जिन दलों और नेताओं ने आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर संसद में बैठकर देश के सामने जो सर्वसम्मत वादा किया था, उसे वे अब देश की सुरक्षा को ध्यान में रख कर अब तो पूरा करें। अब भी समय है कि विभिन्न दलों के नेतागण मिल बैठकर यह फैसला करंे कि वे अब किसी विवादास्पद व्यक्ति को इस बार लोक सभा चुनाव का उम्मीदवार नहीं बनाएंगे। जिन मुद्दों और समस्याओं को लेकर हमारे नेताओं ने तब संसद में भारी चिंता प्रकट की थी, उन मामलों में इस देश की हालत तब की अपेक्षा अब अधिक बिगड़ी है। राजनीति में अपराधी और भ्रष्ट तत्वों का पहले की अपेक्षा अब अधिक बोलबाला है। पर जब बोलबाला कम था, तब हमारे नेताओं ने 1997 में सदन में क्या- क्या कहा था,उसकी कुछ बानगियां यहां पेश हैं।इससे भी यह पता चलेगा कि इन समस्याओं को हल करना अब और भी कितना जरूरी हो गया है, यदि इस देश में लोकतंत्र को बनाए रखना है और एकता-अखंडता कायम रखनी है। लोक सभामें प्रतिपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने बहस का समापन करते हुए तब कहा था कि ‘एक बात सबसे प्रमुखता से उभरी है कि भ्रष्टाचार को समाप्त किया जाना चाहिए। इस बारे में कथनी ही पर्याप्त नहीं, करनी भी जरूरी है।उन्होंने यह भी कहा था कि राजनीति के अपराधीकरण के कारण भ्रष्टाचार बढ़ा है।’ पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सभी दलों को मिलकर लड़ाई लड़नी चाहिए। तत्कालीन रेल मंत्री राम विलास पासवान ने कहा कि देश के सामने उपस्थित समस्याओं के हल के लिए सभी दलों को मिल बैठकर ठोस कदम उठाने चाहिए। तत्कालीन स्पीकर पी.ए. संगमा ने तो आजादी की दूसरी लड़ाई छेड़ने का आह्वान कर दिया। पर, इस बीच इस देश के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह रही कि दो प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस के टिकट पर ही गत लोक सभा चुनाव में क्रमशः26 और 16 ऐसे उम्मीदवार जीत कर आ गए, जिन पर अनेक आपराधिक मुकदमें विभिन्न अदालतों में चल रहे हैं। जबकि 1997 में संसद में जो प्रस्ताव सर्वसम्मत से पास हुआ था, उसे भाजपा नेता श्री वाजपेयी ने ही पेश किया था।यह भी दुर्भाग्यपूर्ण ही रहा कि इस बीच राजनीति के अपराधीकरण व भ्रष्टीकरण के खिलाफ जो भी कदम उठाए गए, वे मुख्यतः चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट की पहल पर ही उठाए गए।इस मामले में एन.डी.ए. सरकार का छह साल का कार्यकाल भी खुद अटल बिहारी वाजपेयी की उस भावना के अनुकूल नहीं रहा जो भवना अटल जी ने 1997 में लोक सभा में व्यक्त की थी। अब जब विदेशी आतंकवादियों द्वारा हमारे लोकतंत्र की उपर्युक्त बुराइयों का लाभ उठाने की आशंका बढ़ गई है तो क्या अब भी पक्ष-विपक्ष की राजनीति उन वायदों को पूरा करने की दिशा में कोई कदम उठाएगी ?
दैनिक हिन्दुस्तान से साभार
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