रविवार, 1 मार्च 2009

डायरी भी लिखते थे रोहतास के डकैत

रोहतास और चंपारण को कभी ‘बिहार का चंबल’ कहा जाता था। डाकुओं की वहां समानांतर सरकारें हुआ करती थीं। उनमें से अनेक डाकुओं को राजनीतिक संरक्षण हासिल था। कई नेताओं के बारे में यह जग जाहिर था कि वे डाकुओं की मदद से ही चुनाव लड़ते और जीतते थे। कई डाकुओं को जातियों के आधार पर भरपूर संरक्षण भी हासिल था। पर, समय बीतने के साथ उनका दबदबा कम होने लगा। अब तो उन डाकुओं का उत्पात समाप्तप्राय है। अनेक नामी गिरामी डाकू या तो मारे गए या फिर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया।

ये डाकू कभी शासन और आम जनता के लिए कभी सिरदर्द बने हुए थे। वे किस तरह लोगों से डरा धमका कर पैसे वसूलते थे या फिर उनकी मानसिक स्थिति कैसी थी ? वे क्या कुछ करते थे, इन सब बातों की कुछ झलकें ं उनकी डायरी पढ़ने से मिलती हंै। ऐसे लोगों का दबदबा फिर कभी कायम न हो, इसका ध्यान प्रशासन और जनता को रखना होगा। शासन व समाज को यह भी देखना होगा कि ऐसी सामाजिक और आर्थिक स्थिति नहीं बने, जिसमें डाकुओं को पैदा होने का मौका मिलता है।

उनकी डायरी के कुछ पन्नों से यहां कुछ प्रकरण दिए जा रहे हैं।

रोहतास के कुख्यात डाकू मोहन बिंद उर्फ मोहन राजा की डायरी चंद दीप सिंह लिखता था। रोहतास जिले के मटिआवा गांव का निवासी 18 वर्षीय चंद्रदीप आठवीं कक्षा तक पढ़ा था। वह मोहन ंिबंद का काफी नजदीकी व्यक्ति था। मोहन की हत्या के बाद एक अन्य कुख्यात डाकू रामाशीष कोइरी उर्फ दादा को लगा कि शायद चंद्र दीप उसकी हत्या कर स्वयं गिरोह का नेता बन जाएगा। इसलिए दादा ने चंद्रदीप तथा दो अन्य व्यक्तियों की हत्या कर दी। दादा की डायरी उसका साला प्रेम आजाद लिखता था। इनकी डायरियों के अध्ययन के बाद यह लगता है कि सिर्फ दादा गिरोह की मासिक आमदनी एक लाख रुपए थी। यह अस्सी के दशक की बात है।

डाकू इलाके के संपन्न किसानों के नाम बैंकों में रुपए जमा करते थे और जरूरत पड़ने पर निकलवाते थे। लगभग 1500 वर्ग किलोमीटर में कैमूर की पहाडि़यों तथा कुछ आसपास के इलाकों पर इन डाकुओं का दबदबा था। जो इनका कहा नहीं मानता, उसकी मौत सामने होती।

डाकू और अपराधी कई जातियों से आते थे। अनेक स्थानीय नेतागण उन्हीं डकैतों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की मांग करते थे जो उनके वोट बैंक वाली जाति से नहीं आता था। अब उन इलाकों में करीब करीब इसी तरह का दबदबा नक्सलियों का है। रामाशीष कोइरी उर्फ दादा की डायरी के कुछ अंश यहां दिए जा रहे हैं।


12 जून 1985
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चैन पुर थाने के कल्याणी पुर गांव में गोली चली। हमारी तरफ से पचास राउंड गोली चली। पुलिस डांटने पर भी नहीं मानी।

5 जुलाई 1985
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बांडा गांव में गोली चली है। जै मां दुर्गा , कैमूर घाटी।

25 सितंबर 1985
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घी-वसूली उसरी यादव-तीन किलोग्राम। बांके यादव- 7.50 किलो। बाकी 5 किलो। नथुनी यादव-8 किलोग्राम। नागेश्वर यादव -तीन किलो। सोमी पाल - 5 किलो। रामजी गौंड़- 2 किलो। वगैरह वगैरह। (यह गिरोह ग्रामीणों से घी वसूल कर बेचता था। डायरी में घी वसूली का विवरण भरा पड़ा है।)

5 अप्रैल 1985
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चुवडि़या के ठेकेदार महेंद्र राम ठेका चलाते हैं। आपको एक कूप पर 5 हजार रुपया देना है। (डाकू रुपए वसूलने के लिए जो नोटिस देते थे, वह डायरी में लिख लेते थे।)

20 अप्रैल 1985
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हथियार लाने वालों के नाम- रंगी यादव- 2 बंदूक। राम स्वरूप एक राइफल लाया। राम स्वरूप मुखिया, कृष्ण कुमार यादव-एक बदूक, एक राइफल। राज रूप यादव, शिवपूजन यादव, मूरत यादव-दो बंदूक। (इस तरह डायरी में कई नाम दर्ज हैं जिन्होंने इन्हें हथियार दिए।)

16 जुलाई 1985
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सकलदीप सिंह के हाथ से मिला 50 छर्रा। राइफल की गोली दस।

10 अगस्त 1985
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करम चंद बांध के ठेकेदार राज कुमार पांडेय, आप करम चंद बांध में ठेका चलाते हैं। इसलिए आपको एक साल में बीस हजार रुपया देना है, दो किस्तों में। पहली किस्त 10 हजार रुपया 8 जनवरी 1986 को। दूसरी किस्त 8 दिसंबर 1986 को दस हजार।

3 सितंबर 1985
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प्रिय भाई सरपंच जी, शुभ आशीर्वाद। हमलोग कुशलपूर्वक हैं। आपकी कुशलता के लिए जय मां दुर्गा से।आगे आपको मालूम कि पुलिस ने पेपर दिया है। उस पर जांच किया जाए कि यह कैसा कागज भेज रहा है। सभी आदमी को रोकना है।

26 सितंबर 1985
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करम चट के ठेकेदार विजय नारायण सिंह आपको साल में देना है 50 हजार रुपया और पांच घड़ी।कमला सिंह की पहली किस्त 20 हजार रुपया जिसमें बाकी है 10 हजार रुपया। दूसरी किस्त 8 दिसंबर 1986 को देना है।

16 अक्तूबर 1985
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बड़वान बस्ती में कांड हुआ है। तीन आदमी को गोली मार दी है।



चंद्रदीप सिंह की डायरी
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1 जनवरी 1985
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सभी साथियों से मुलाकात। सारे वैर भुला कर प्रेम की नदी बहाउंगा। दिल नहीं चाहे देगी तो बैरागी बन जाउंगा।

9 जनवरी 1985
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ले चल बोतल छिपाकर कफन में , कब्र में ढार ढार पीया करेंगे, खुदा भी मांगेगा तो प्याले में ढार ढार कर दिया करेंगे।

17 जनवरी 1985
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रात्रि विश्राम चुटिया में ।

18 जनवरी 1985
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रात्रि विश्राम धरवार।

7 मई 1985
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सुगवा घाट के ठेकेदार से पांच छाता, बीस लुंगी मिले।

26 मई 1985
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बीस हजार रुपया रखा नीचे में । (यानी पहाड़ से उतर कर समतल के किसी गांव में किसी के यहां।)

 11 जून 1985
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पांच हजार रुपया नगद मिला चाकडीह यूनिट से। दो सेट पैंट सर्ट कपड़ा कोरहास यूनिट से।

(24 फरवरी, 2009 को सन्मार्ग, पटना में प्रकाशित)

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